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सरोजिनी नायडू वजनता महाजवद्यालय

जहन्दी जवभाग

जवभागाध्यक्षा : डॉ. नजलनी

व्याख्याता : डॉ. जिरण शास्त्री

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बी.ए., बी.एस.सी. तथा बी.िॉम. प्रथम वर्ष

जहन्दी - जितीय भार्ा

प्रथम सेजमस्टर

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पुस्तिोों िी सूची :

1) गद्य दर्पण

2) कथा स िंधु

3) सिधापरित व्याकिण

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पाठ्यक्रम जववरणI गद्य दपषण1) चरित्र िंगठि बाबू गुलाबिाय

2) बाजाि दर्पि जैिेंद्र कुमाि

3) भाभी महादेवी वमाप

4) भाित में िंसृ्कसत िंगम िामधािी स िंह सदिकि

5) िाष्ट्र का स्वरूर् वा ुदेव र्िण र्माप

II िथा जसोंधु1) द्गसत पे्रमचिंद

2) छोटा जादूगि जयर्िंकि प्र ाद

3) च का ौदा ुदर्पि

4) प्रायसित भगवती चिण वमाप

5) चीफ़ की दावत भीष्म ाहिी

III व्यािरण

सलिंग

वचि

काल

कािक

वाच्य

वाक्य रु्द्धीकिण

वाक्य में प्रयोग अिुवाद - कायापलयि सहन्दी, र्दिाम

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िैनेंद्र िुमार

लेखि पररचय :

जैिेंद्र कुमाि का जन्म ि् 1905 में अलीगढ़ के एक गााँव में हुआ था | उिके बचर्ि

का िाम आिन्दी लाल था | पे्रमचिंद के बाद प्रस द्ध कथाकाि के रूर् में आर्का िाम सलया जाता

है | िािी मिोसवज्ञाि र्ि आधारित सलखे उर्न्या औि कहासियोिं की तो कोई तुलिा ही िही िं है |

ुखदा, र्िख, दो सचस़ियााँ आसद कुछ प्रमुख िचिाएाँ है | ि् 1988 में आर्की मृतु्य हो गयी |

अध्याय - 1

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बाजार दशषन

लेखक के अिु ाि बाजाि तो रै्ताि का एक ऐ ा जाल होता है, जो जाता है उ में फाँ जाता है| आज का इिं ाि जब बाजाि जाता है तो अर्िी जरूित के सह ाब े माि िही िं खिीदता

बल्कि "र्चेस िंग र्ॉवि" के आधाि र्ि खिीदता है | बाजाि में एक तिह का जादू होता है |

लगता है हि वसु्त हमें अर्िी ओि खी िंच िही है , चुिंबक की र्ल्कि की तिह |

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लेखि िे अनुसार बाजार से अनावश्यि खरीददारी िे मूल में एि तत्व

िी मजहमा जवशेर् है और वह है 'मनीबैग' अथाषत 'पैसे िी गमी | जिसे 'पैसा

पॉवर' भी िहा िा सिता है |

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जवशेर् : इ सिबिंध के माध्यम े लेखक िे आज की जीवि रै्ली का मजाक

उ़िाया है | सज में सदखावा है, छल है औि स्वाथपर्िता है | लगता है आज

मिुष्य का जीवि, ामासजक प्रसतष्ठा, सवचाि,दृसष्ट्कोण, व्यवहाि आसद बाजाि

के अिु ाि चलते हैं | व्यल्किगत जीवि तो िहा ही िही िं | एक ाधािण े सवषय

को सचिंति का सवषय बिाकि उ े उदाहिण द्वािा िोचक बिा देिा इ सिबिंधकी सवरे्षता है |

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पे्रमचोंद

लेखक का र्रिचय:

पे्रमचिंदजी का जन्म ि् 1880 में हुआ था |

सहन्दी ासहत्य जगत के "कथा म्राट" के रूर् में

प्रस द्ध पे्रमचिंद र्हले "धिर्तिाय" औि “िवाब िाय”

िाम े र्हले उदूप में सलखा किते थे| बाद में पे्रमचिंद

िाम े सहन्दी में सलखिा आििंभ सकया | अर्िे लेखोिं

में सिसटर् िकाि के सविोध में सलखिे के कािण

इिकी " ोजेवति" कहािी िंग्रह को िकाि िे

जब्त कि सलया था | इिकी कहासियोिं में ामासजक

कुिीसतयोिं औि सिम्न वगप र्ि होिे वाले अत्याचािोिं का

मासमपक एविं यथाथप सचत्रण समलता है |पे्रमचिंद एक

आदर्पवादी लेखक के रूर् में जािे जाते हैं | इन्ोिंिे

अिेक िाटक,उर्न्या एविं कहासियााँ सलखी िं हैं |

लगभग 300 कहासियााँ "माि िोवि" िाम े 8खिंडोिं में प्रकासर्त है | पे्रमचिंदजी की मृतु्य ि्

1936 में हुई |

अध्याय - 2

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सद्गजत

यह कहािी दुखी िामक एक ग़िीब चमाि की है | जो अर्िी र्त्नी

बुसधया औि ब्याह के योग्य बेटी के ाथ एक अभावग्र जीवि जी

िहा था |

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सुबह िा भूखा जदन भर मेहनत िरते-

िरते दुखी िी ऐसी बुरी दशा हो गई जि

उसने वही ों पर दम तोड़ जदया |

अपनी बेटी िी सगाई िे जलए

मुहूतष जनिलवाने िे जलए दुखी

पोंजडत घासीराम िे घर िाता |

जिों तु पोंजडत उससे लिड़ी

तोड़ने, साफ़-सफाई िरने िैसेिाम िरवाता |

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पता चलने पर उसिी पत्नी और बेटी दौड़ी-दौड़ी पोंजडत िे घर िाती ों

और उसिे शव से जलपट िर रोने लगते | पुजलस िी तहिीिात िे जलए

दुखी िे शव िो वही ों पर छोड़ िर दोनो ों अपने घर लौट िाती ों |

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रात तो िट गई | पर शव जनिालने िोई न

आया | दुगंध फैलने लगी थी | सुबह िा

छुटपुट अोंधेरा था | पोंजडत और पोंजडताइन ने

आपस में सलाह िी | और जफर उस दुष्ट

पोंजडत घासीराम ने दुखी िे पैरो ों में रस्सी बााँध

िर उसे घसीटता हुआ गााँव िे बाहर फें ि

आया |

िहााँ पर जगद्ध, िुते्त, गीदड़ उसिे शव िो

नोच-नोच िर खाने लगे | शायद उस

अभागे दुखी िो िीवन भर िी माजलि

िी सेवा और भक्ति िा यही पुरस्कार

जमला |

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जवशेर्: लेखि ने इस िहानी िे माध्यम से हमारी सामाजिि व्यवस्था

पर गहरी चोट िी है | समाि में व्याप्त िाजत-पाजत , ऊाँ च-नीच आजद िा

भेद भाव, जवशेर् िर जनम्न वगष िे प्रजत मानवता िा अभाव समाि और

देश िो खोखला िर रहा है | इस िहानी िे मुख्य पात्र दुखी िे माध्यम

से लेखि ने यह बताया है जि समाि िा एि वगष ऐसा भी है िो िाजत िे

भेद भाव िा जशिार है, जिसे जवरोध िरना नही ों आता बक्ति, अपने

ऊपर होने वाले अत्याचारो ों िो सहन िरना अपनी जनयजत समझता है |

बड़ी हृदयस्पशी िहानी है |

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सरोजिनी नायडू वजनता महाजवद्यालय

जहन्दी जवभाग

जवभागाध्यक्षा : डॉ. नजलनी

व्याख्याता : डॉ. जिरण शास्त्री

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बी.ए., बी.एस.सी. तथा बी.कॉम. प्रथम वर्ष

हिन्दी - हितीय भार्ा

हितीय सेहमस्टर

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पुस्तिोोंिी सूची

1) गद्य दर्षण

2) कथा हसिंधु

3) हिधाषररत व्याकरण

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पाठ्यक्रम जववरण

I गद्य दपपण

1) धरती का स्वगष हवषु्ण प्रभाकर

2) ताई हवश्विंभरिाथ शमाष 'कौहशक'

3) राजिीहत का बँटवारा िररशिंकर र्रसाई

4) स्वामी हववेकाििंद विंशीधर हवद्यालिंकार

5) र्याषवरण और िम राजीव गगष

II िथा जसोंधु

1) गदल रािंगेय राघव

2) िँसू या रोऊँ हविायकराव हवद्यालिंकार

3) वार्सी उर्ा हप्रयिंवदा

4) सेवा ममता काहलया

5) हसहलया सुशीला टाकभौरे

III व्यािरण

1) सिंहध हवचे्छद

2) हवलोम शब्द

3) र्त्र-लेखि

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लेखि पररचय

हवषु्ण प्रभाकर का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से ग्राम मीरिरु्र में सि् 1912 में हुआ था |

बी.ए. की र्ढाई रू्री करके कुछ समय तक सरकारी कायाषलय में िौकरी की उसके बाद

आकाशवाणी में िाटक हवभाग के अहधकारी के रूर् में काम हकया | इसके बाद तो जीवि

भर स्वतिंत्र रूर् से लेखि कायष करते रिे | इन्ोिंिे अिेक किािी सिंग्रि, उर्न्यास, िाटक,

एकािंकी, आत्मकथा, सिंस्मरण आहद हलखे िैं | "आवारा मसीिा" आत्मकथा र्र साहित्य

अकादमी िारा रु्रस्कार भी हमला | सि् 2009 में इिका हिधि िो गया |

जवषु्ण प्रभािर

अध्याय - 1

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धरती िा स्वगप

इस र्ाठ में लेखक िे धरती का स्वगष मािे जािे वाले कश्मीर की प्राकृहतक सुिंदरता का बडा

िी स्वाभाहवक और रोचक वणषि हकया िै | कश्मीर जैसे स्थाि की यात्रा करिा यािी प्रत्यक्ष

स्वगष के दशषि करिे जैसा िोता िै | लेखक िे र्ाठकोिं को कश्मीर की सैर करा दी िै | सरल

भार्ा और सिज शैली में यात्रा वणषि बडी िी सिजता के साथ हकया गया िै | प्रकृहत के

मिमोिक वणषि के िारा र्ाठकोिं को आरिंभ से अिंत तक इस र्ाठ से बाँधे रखिे में लेखक

रू्णषतः सफल हुए िैं |

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डल झील के अर्िे िाऊस बोट में बैठे लेखक

सूयोदय का सुिंदर दृश्य आज तक भूल ििी िं र्ाए |

कश्मीर को तीिोिं लोकोिं में रत्ोिं को रै्दा करिे वाला

स्थाि किा गया िै | हिमालय की गोद में बसा

कश्मीर बर्फ़ीली र्िाहडयोिं से हघरा एक सुिंदर स्थाि

िै

विाँ की झीलोिं में लोग सैर करते िैं | विाँ के व्यार्ारी

अर्िा सामाि िाव र्र बैठे सवाररयोिं को भी बेचते िैं

| कश्मीरी-िाररयाँ हशकारे लेकर अर्िे-अर्िे काम

र्र हिकल जाती िैं |

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हिमालय की गोद में बसा कश्मीर बर्फ़ीली र्िाहडयोिं से हघरा एक ऐसा सुिंदर स्थाि िै जिाँ र्र

अिेक िहदयाँ, प्रहसद्ध झीलें और चीड, देवदार, अखरोट, बादाम आहद के वृक्ष प्रचुर मात्रा में

देखिे में आते िैं |

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जवनायिराव जवद्यालोंिार

लेखि िा पररचय

हविायकराव जी का जन्म सि् 1895 को िैदराबाद में हुआ था | िैदराबाद के एक जािे-मािे

समाज सेवी और आयष समाज के िेता थे | हिजाम के कुशासि के हवरोध में हकए गये सिंघर्ों में

आर्िे भी बढ-चढ कर हिस्सा हलया था | रु्हलस एक्शि के बाद जो सरकार बिी उसमें

हवत्तमिंत्री के रूर् में इन्ोिंिे सराििीय कायष हकया था | िैदराबाद से प्रकाहशत िोिे वाली

र्हत्रका 'आयष भािु' के सिंर्ादक भी रि चुके थे | इिकी किाहियोिं का सिंग्रि 'चाबुक' िाम से

प्रकाहशत िै | इिकी किाहियो में सामाहजक समस्या और मिुष्य की स्वाथ़ी मािहसकता र्र

व्याग हकया गया िै | सि् 1963 को इिकी मृतु्य िो गयी |

अध्याय -2

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हँसँू या रोऊँ

िँसू या रोऊँ' किािी में अर्िा एक ऐसा अिुभव साझा हकया िै जो लेखक को

स्वयिं से यि प्रश्न करिे र्र हववश कर देता िै हक वे िँसे या रोएँ ? इस किािी में

मिुष्य की स्वाथषर्रता र्र तीखा व्यिंग हकया िै | जो मृतु्य जैसे दुखद अवसरोिं र्र

भी अर्िे मतलब को रू्रा करिे की सोचते िैं | दूसरोिं के दुख से उन्ें कोई लेिा-

देिा ििी िं िोता िै | ऐसे स्वाथ़ी मिुष्य िर जगि हवद्यमाि िैं |

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लेखक अर्िे एक हमत्र राय छोटेलाल की मृतु्य

र्र अिंहतम सिंस्कार के हलए श्मशाि घाट जाते |

हचता के हलए लकहडयाँ बेचिे वाला लकडिारा

इसहलए उदास था क्ोिंहक कुछ हदिोिं र्िले

शिर में इिंफू्लएँजा की बीमारी बडे जोरोिं में फैल

गयी थी | रोजािा चार-र्ाँच सौ लोग मरते थे |

इस श्मशाि घाट र्र प्रहतहदि 30-40 अहथषयाँ

आ जाती थी िं, रोज तीि-साढे तीि सौ मि

लकडी हबक जाया करती थी | र्र अब

मुशहकल से दो-चार मुदे आते िैं तो 3-4 मि

लकडी िी हबकती िै | हजससे उसका 'धिंधा

मिंदा' र्डा िै |

यि सुि कर लेखक स्वयिं से प्रश्न करते िै हक वे

या

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सब कुछ हिर्टा कर जब लेखक हमत्रोिं के साथ बािर हिकलिे लगे तो देखा

हचता र्र लकहडयाँ रखिे वाले मजदूर मृतक के र्ररजिोिं से इिाम माँग रिे थे

| उिकी हिठाई देख लेखक दिंग रि गये | मजदूरोिं का कििा था हक रोज-रोज

तो इतिे बडे व्यक्ति का शव आता ििी िं िै | तो इिाम भी अहधक हमलिा

चाहिए |

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लेखक सोचिे लगे………………..

इि लोगोिं के हलए

श्मशाि घाट िी इिका कायष के्षत्र िै | और मृतु्य

के अहतररि ऐसी कौि सी घटिा िै हजससे ये

लोग लाभ उठा सके | जिाँ से इन्ें भी कुछ

ऊर्र की आमदिी िो सके |

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सरोजिनी नायडू वजनता महाजवद्यालय

जहन्दी जवभाग

जवभागाध्यक्षा : डॉ. नजलनी

व्याख्याता : डॉ. जिरण शास्त्री

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बी.ए., बी.एस.सी. तथा बी.िॉम.

जितीय वर्ष

जहन्दी - जितीय भार्ा

तृतीय सेजमस्टर

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पुस्तिोों िी सूची

1) िाव्य जनजि

2) जहन्दी साजहत्य िा इजतहास

3) जनबोंि

4) अनुवाद

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पाठ्यक्रम जववरणI िाव्य जनजि :

प्राचीन िाव्य1) कबीर के दोहे कबीरदास

2) बाल लीला सूरदास

3) तुलसी के दोहे तुलसीदास

आिुजनि िाव्य

4) नवयुवकोों से मैथलीशरण गुप्त5) फूल और कााँटा अयोध्याससोंह उपाध्याय 'हररऔध'

6) भारत जयशोंकर प्रसाद

7) जीवन का असधकार सुसमत्रानोंदन पोंत

8) मेरा नया बचपन सुभद्रा कुमारी चौहानII जहन्दी साजहत्य िा इजतहास

आसदकाल पररस्थथसतयााँ एवों प्रवृसियााँ

भस्िकाल पररस्थथसतयााँ एवों प्रवृसियााँ

रचनािार सोंजक्षप्त पररचय

चोंदबरदाई

कबीरदास

तुलसीदास

भारतेंदु हररश्चन्द्र

मैथलीशरण गुप्त

जयशोंकर प्रसाद

सुसमत्रानोंदन पोंत

रामधारीससोंह सदनकरIII जनबोंि

IV अनुवाद

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अयोध्याजसोंह उपाध्याय 'हररऔि

िजव पररचय : जिवेदी युग िे प्रमुख िजव हैं | सन् 1865 में आज़मगढ़ में उनिा िन्म हुआ

था | उनिी प्रजसद्ध रचना 'जप्रयप्रवास पर उन्हें मोंगलाप्रसाद पाररतोजर्ि प्रदान जिया गया |

उन्होोंने िाव्य, उपन्यास, नाटि, समालोचना आजद जलखे हैं | उनिी अन्य प्रमुख रचनाएँ

वैदेही वनवास, चौखे चौपदे, चुभते चौपदे, रस िलश, अिखखला फूल, रुखिणी पररणय,

िबीर वचनावली आजद हैं | हररऔि ब्रि और खडीबोली दोनो ों िे सफल िजव हैं | उनिी

िजवताओों में प्रिृजत, शृ्ोंगार, वात्सल्य आजद भाव प्रमुख है | सन् 1947 में उनिा जनिन हो

गया |

अध्याय - 1

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फूल और कााँटा

इस िजवता में िजव ने फूल और िाँटे िे गुणो ों िा वणषन िरते हुए दोनो ों िीतुलना िी है | फूलो ों िी अच्छाइयो ों और िाँटो ों िी बुराइयो ों िा सुोंदर वणषन

जिया है | इस िजवता िे माध्यम से िजव ने मनुष्य िो फूलो ों िे अचे्छ गुणो ों

िो अपना िर िाँटो ों िे दुगुषणो ों से बचने िा सोंदेश जदया है |

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है जनम लेते जगह में एक ही,

एक ही पौधा उन्हें है पालता |

रात में उन पर चमकता चााँद भी,एक ही सी चााँदनी है डालता ||

फूल लेकर सततसलयोों को गोद में,

भोंवर को अपना अनूठा रस सपला |

सनज सुगोंधोों और सनराले ढोंग से,

है सदा देता कली का जी स्िला |

है िटकता एक सबकी आाँि में,

दूसरा है सोहता सुर शीश पर |

सकस तरह कुल की बढाई काम दे,

जो सकसी में हो बड़प्पन की कसर |

मेंह उन पर है बरसता एक-सा,

एक-सी उन पर हवाएाँ बही |

पर सदा ही यह सदिता है समय,ढोंग उनके एक से होते नही ों |

छेद कर कााँटा सकसी की उोंगसलयााँ,

फाड़ देता है सकसी का वर वसन |

प्यार-डूबी सततसलयोों का पर कतर,

भाँवर का है भेद देता श्याम तन |

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जहन्दी साजहत्य िा इजतहासआजदिाल

समय : सोंवत 1050 से सोंवत 1375

इसे “वीरगाथा िाल”, “अपभ्रोंश िाल” और “रासो िाल” भी िहा िाता है

अध्याय - 2

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इस िाल िे रािा थे पृथ्वीराि चौहान

िन्म : सोंवत 1225मृतु्य : सोंवत 1249

पृथ्वीराि चौहान जदल्ली िे अोंजतम जहोंदू शासि थे |िन्नौि िे रािा ियचोंद पृथ्वीराि

चौहान से शतु्रता रखते थे | चौहान ने मोहम्मद गौरी िो 16 बार परास्त जिया था | रािा

ियचोंद िी चौहान िे साथ शतु्रता थी | इसीजलएस्वयोंवर में उनिी बेटी सोंयोजगता िारा

पृथ्वीराि िो वरमाल पहनाए िाने पर भी इस जववाह िो नही ों मानते | पृथ्वीराि चौहान

सोंयोजगता िो िब स्वयोंवर सभा से उठा िर ले िाते तो क्रोजित ियचोंद मोहम्मद गौरी

से पुनः आक्रमण िरने िो िहते और इस बार उसिा साथ देने िा वचन देते | इस

तरह ियचोंद िे र्डयोंत्र से पृथ्वीराि चौहान हार िाते और गौरी िारा बोंदी बना जलए

िाते |

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प्रजतजनजि िजव : चोंदबरदाई

िन्म : सोंवत 1225

मृतु्य : सोंवत 1249चोंदबरदाई पृथ्वीराि चौहान िे जमत्र भी थे और सेनापजत भी | ऐसा माना िाता है जि

दोनो ों िा िन्मऔर मृतु्य एि ही जदन हुई थी |

प्रमुख रचना : पृथ्वीराि रासो

भार्ा : अपभ्रोंशआजदिाल िा यह एि शे्ष्ठ महािाव्य है |

लगभग 2500 पृष्ठो ों में जलखा गया |

इसिे 69 अध्याय हैं |

इसमें पृथ्वीराि चौहान िे वोंश िा पररचय, वीरता िा वणषन, रानी सोंयोजगता से पे्रम िावणषन, मोहम्मद गौरी िा 16 बार हारने िा वणषन आजद जमलता है |

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िन्यवाद

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सरोजिनी नायडू वजनता महाजवद्यालय

जहन्दी जवभाग

जवभागाध्यक्षा : डॉ. नजलनी

व्याख्याता : डॉ. जिरण शास्त्री

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बी.ए., बी.एस.सी. तथा बी.िॉम.

जितीय वर्ष

जहन्दी - जितीय भार्ा

चतुथष सेजमस्टर

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पुस्तिोों िी सूची

1) काव्य निनि

2) निन्दी सानित्य का इनििास

3) निबंि

4) बोिगम्य गद्दयांश

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पाठ्यक्रम जववरण

I िाव्य जनजि

प्राचीन िाव्य

1. मीरा के पद मीराबाई

2. रिीम के दोिे रिीम

3. नबिारी के दोिे नबिारी

आिुजनि िाव्य

4. भगवाि बुद्ध के प्रनि सूययकांि निपाठी निराला

5. वे मुस्कािे फूल ििी ं मिादेवी वमाय

6. क़लमऔर िलवार रामिारी नसंि नदिकर

7. िू क्ों बैठ गया िै पथ पर िररवंशराय बच्चि

8. अिुभव पररपक्व अजे्ञय

II जहन्दी साजहत्य िा इजतहास

1. रीनिकाल पररस्थथनियााँ एवं प्रवृनियााँ

2.आिुनिक काल पररस्थथनियााँ एवं प्रवृनियााँ

(क) भारिेंदु युग, निवेदी युग, छायावाद, प्रगनिवाद, प्रयोगवाद

(ख) निन्दी गद्य का नवकास, निन्दी किािी, निन्दी उपन्यास, निन्दी िाटक

III. जनबोंि

IV. बोिगम्यगद्दयाोंश

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िजव पररचय:

छायावाद िे बाद िे प्रमुख िजवयो ों में राष्ट्रिजव रामिारी जसोंह 'जदनिर' िा िन्म सन्

1908 में जबहार िे मुोंगेर ज़िले िे जसमररया गााँव में एि जिसान पररवार में हुआ था |

उच्च जशक्षा प्राप्त िरने िे बाद िई महत्वपूणष पदो ों पर उन्ोोंने िायष जिया | प्रजसद्ध

महािाव्य 'उवषशी' िे जलए जदनिर िी िो ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्माजनत जिया

गया | इनिी अन्य प्रमुख रचनाएाँ है - रेणुिा, हुोंिार, िुरुके्षत्र, रश्मिरथी आजद | िुछ

बाल-रचनाएाँ भी जलखी ों हैं | खडीबोली जहन्दी िा प्रयोग जिया है | इनिी िजवताओों में

राष्ट्र ीयता और िागरण, युद्ध, शाोंजत, जहोंसा-अजहोंसा, पाप-पुण्य, आत्मबल आजद िे

भाव जमलते हैं | सन् 1974 में जदनिर िी िा जनिन हो गया |

अध्याय - 1

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प्रसु्तत िजवता में जदनिर ने क़लम और तलवार िे महत्व िो बडे ही सुोंदर ढोंग से

प्रसु्तत जिया है | समय और अवसर िे अनुरूप दोनो ों िा प्रयोग िरने िा सोंदेश जदया

है | पाठिोों पर छोड जदया है जि वे ही जनणषय लें इन दोनो ों िा प्रयोग िब और िैसे

जिया िाना चाजहए | भार्ा सरल और सहि है, भाव उच्च है और उदे्दश्य महान है |

क़लमऔर तलवार

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बंद कमरे के एकांि वािावरण में बैठ कर कलम

से मीठे और उच्च भाव वाले गीि नलखिा चाििे िो

| क़लम के प्रयोग से ज्ञाि का दीपक जला कर

चारों ओर प्रकाश फैलािा चाििे िो ? मि में ऊाँ चे

भाव जगािे वाली क़लम चानिए ?

िजव िे प्रश्न

या जिर

खुले मैदाि में िलवार के िारा जंग जीििा चाििे िो ?

िलवार िाथ में लेकर देश की रखवाली करिा ? शरीर में

अजेय शस्ि उत्पन्न करिे वाली िलवार चानिए ?

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अध्याय - 2

जबहारीलाल

िजव िा पररचय :

नबिारीलाल निन्दी सानित्य के रीनिकाल के प्रनिनिनि कनव िैं | सि् 1595 में ग्वानलयर में जन्म

हुआ था | नबिारी के गुरु िरिररदास थे | आमेर के राजा जयचंद के दरबारी कनव थे |

राजा की पे्ररणा से िी नबिारी िे सिसई की रचिा की जो उिकी प्रनसस्द्ध का आिार गं्रथ िै | आगे

चल कर यि गं्रथ 'नबिारी सिसई' िाम से प्रनसद्ध हुआ | नबिारी सिसई के दोिे 'गागर में सागर

भरिा' इस उस्ि को चररिाथय करिे िैं | इि के दोिों की िुलिा 'िावक' के िीर से की गयी िै |

जो नदखिे में भले िी छोटे िोिे िै पर भीिर िक प्रभानवि करिे िैं |नबिारी के दोिे शंृ्गार-भस्ि-

िीनि का संुदर संगम िै | नबिारी के दोिों में शंृ्गार के अंिगयि िारी का िख-नशख रूप सौदयय,

िथा संयोग-नवयोग आनद का बडा िी संुदर वणयि नमलिा िै |

नबिारी िे अिेक प्रनसद्ध अलंकारों का अपिे दोिों में भरपूर प्रयोग नकया िै | नबिारी का ब्रज

भाषा पर पूरा अनिकार था | इिकी भाषा में भाव, लय, मिुरिा, रस, कोमलिा की प्रिाििा िै |

सि् 1663 में नबिारी का देिांि हुआ |

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रीनिकाल के प्रनिनिनि कनव नबिारी आमेर के राजा जयनसंग के दरबारी कनव थे | राजा की पे्ररणा

से िी नबिारी िे सिसई की रचिा की जो उिकी प्रनसस्द्ध का आिार गं्रथ िै | आगे चल कर यि

गं्रथ 'नबिारी सिसई' िाम से प्रनसद्ध हुआ |

नबिारी सिसई का प्रते्यक दोिा 'गागर में सागर

भरिे' की उस्ि को चररिाथय करिा िै |

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नबिारी के शंृ्गार और भस्ि के वणयि का मूल आिार रािा-कृष्ण िी रिे िैं | नबिारी के

दोिों में शंृ्गार के अंिगयि िारी का िख-नशख रूप सौदयय, िथा संयोग-नवयोग आनद का

बडा िी संुदर वणयि नमलिा िै |

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सोहतओढे पीतु पटु, श्याम सलोने गात |

मनौ नीलमजन-सैल पर, आतपु परयौ प्रभात ||

प्रसु्ति दोिा नबिारी सिसई से नलया गया िै | इस दोिे में

कनव िे कृष्ण की संुदर छनव का वणयि नकया िै |

व्याख्या : कनव कििे िैं नक सलोिे शरीर वाले कृष्ण

पीले रंग के वस्त्र पििे अतं्यि सुशोनभि िो रिे िैं | ऐसा

प्रिीि िो रिा िै मािो िीलमनण पवयि पर पडिे वाली

सुबि के सूयय की सुििरी नकरणें उस पवयि को शोभा

प्रदाि कर रिी िै |

जवशेर् : सााँवले रंग के कृष्ण का शरीर िीलमनण पवयि

की िरि िै और पीले वस्त्र उस पवयि पर पडिे वाली सूयय

की स्वनणयम नकरणों की िरि संुदर लग रिी िै |

संुदर उदािरण से कृष्ण का वणयि नकया िै |

दोहा :-

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