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Indian History in hindi शेरशाह सूरी

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Page 1: Indian history in hindi शेरशाह सूरी

Indian History in hindi शेरशाह सूरी

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शेरशाह सूरी

पूरा नाम शेरशाह सूरी

अन्य नाम फ़रीद खा़ाँ, शेर खा़ाँ

जन्म सन ्1485-86[1] या 1472[2]

जन्म भूमम हहसार,

फफ़रोजा, हररयाणा[1]अथवा सासाराम, बिहार[2]

मृत्यु तिथि 22 मई, 1545

मृत्यु स्िान िुन्देलखण्ड

पपिा/मािा हसन खा़ाँ

संिान जलाल खा़ाँ (इस्लामशाह सूरी)

उपाथि शेरशाह

राज्य सीमा उत्तर मध्य भारत

शासन काल 17 मई 1540 - 22 मई 1545

शा. अवथि 5 वर्ष राज्यामभषेक 17 मई 1540

िाममिक मान्यिा

इस्लाम धमष

युद्ि चौसा का युद्ध, बिलग्राम की लडाई

पूवािथिकारी हुमायू़ाँ उत्तराथिकारी इस्लामशाह सूरी

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शेरशाह सूरी (जन्म: 1485-86 अथवा 1472 मृत्यु: 22 मई 1545 िुन्देलखण्ड) का वास्तववक नाम 'फ़रीद खा़ाँ' था। शेरशाह सूरी का भारत के इततहास में ववशेर् स्थान है। शेरशाह, सूर साम्राज्य का संस्थापक था। इसके वपता का नाम हसन खा़ाँ था। शेरशाह को शेर खा़ाँ के नाम से भी जाना जाता है। इततहासकारों का कहना है फक अपने समय में अत्यंत दरूदशी और ववशशष्ट सूझिूझ का आदमी था। इसकी ववशेर्ता इसशलए अधधक उल्लेखनीय है फक वह एक साधारण

जागीदार का उपेक्षित िालक था। उसने अपनी वीरता, अदम्य साहस और पररश्रम के िल पर हदल्ली के शसहंासन पर क़ब्जा फकया था।

जन्म और िचपन

शेरशाह सूरी के जन्म ततधथ और जन्म स्थान के ववर्य में इततहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इततहासकारों ने इसका जन्म सन ्1485-86, हहसार, फफ़रोजा हररयाणामें और कुछ सन ्1472, सासाराम बिहार[2] में ितलाया है। इब्राहहम खा़ाँ के पौत्र और हसन के प्रथम पुत्र फ़रीद (शेरशाह) के जन्म की ततधथ अंगे्रज इततहासकार ने सन ्1485-1486 िताई है। शेरशाह सूरी पर ववशेर् खोज करने वाले भारतीय ववद्वान श्री काशलका रंजन क़ानूनगो ने भी फ़रीद का जन्म सन ्1486 माना है। हसन खा़ाँ के आठ लडके थे। फ़रीद खा़ाँ और तनजाम खा़ाँ एक ही अफ़गान माता से पैदा हुए थे। अली और यूसुफ एक माता से। खुर षम (कुछ गं्रथों में यह नाम मुदहहर है) और शाखी खा़ाँ एक अन्य मा़ाँ से और सुलेमान और अहमद चौथी मा़ाँ से उत्पन्न हुए थे। फ़रीद की मा़ाँ िडी सीधी-सादी, सहनशील और िुद्धधमान थी। फ़रीद के वपता ने इस वववाहहता पत्नी के अततररक्त अन्य तीन दाशसयों को हरम में रख शलया था। िाद में इन्हें पत्नी का स्थान प्राप्त हुआ। फ़रीद और तनजाम के अततररक्त शेर् छह पुत्र इन्हीं की संतान थे। कुछ समय िाद हसन खा़ाँ, फ़रीद और तनजाम की मा़ाँ से उदासीन और दाशसयों के प्रतत आसक्त रहने लगा। वह सुलेमान और अहमद खा़ाँ की मा़ाँ के प्रतत ववशेर् आसक्त था। वह इसे अधधक चाहने लगा था। हसन की यह चहेती (सुलेमान और अहमद खा़ाँ की मा़ाँ) फ़रीद और तनजाम की मा़ाँ से जलती थी, क्योंफक सिसे िडा होने के कारण फ़रीद जागीर का हकदार था। इस पररस्स्थतत में फ़रीद का दखुी होना स्वाभाववक ही था। वपता उसकी ओर से उदासीन रहने लगा।[3]

बलुंद हौसला

फ़रीद खा़ाँ िचपन से ही िडे हौसले वाला इसंान था। उसने अपने वपता से आग्रह फकया फक मुझे अपने मसनदेआली उमर खान के पास ले चशलये और प्राथषना कीस्जये फक वह मुझे मेरे योग्य कोई काम दें। वपता ने पुत्र की िात यह कहकर टाल दी फक अभी तुम िच्चे हो। िडे होने पर तुम्हें ले चलूंगा। फकंतु फ़रीद ने अपनी मां से आग्रह फकया और अपने वपता को इस िात के शलए राजी फकया। हसन, फ़रीद को उमर खान के पास ले गया। उमर खान ने कहा फक िडा होने पर इसे म ैं कोई न कोई काम दूंगा फकंतु अभी इसे महािली (इसका दसूरा नाम हनी है) ग्राम का िलहू नामक भाग जागीर के रूप में देता हू़ाँ। फ़रीद ने िडी प्रसन्नता से अपनी मा़ाँ को इसकी सूचना दी।[3]

पाररवाररक वववाद

वंश सूर वंश

मक़बरा शेरशाह का मक़िरा

संबंथिि लेख

शेरशाह सूरी साम्राज्य

अन्य जानकारी

शेरशाह सूरी, पहला मुस्स्लम शासक था, स्जसने यातायात की उत्तम व्यवस्था की और याबत्रयों एवं व्यापाररयों की सुरिा का संतोर्जनक प्रिंध फकया।

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वपता और शेरशाह के आपसी सम्िन्ध कटु होते जा रहे थे। इस कारण कौटंुबिक वववाद खडा होने लगा। इस वववाद का एक अच्छा फल भी हुआ। वपता की उदासीनता, ववमाता की तनष्ठुरता माता की गंभीरता और पररवार में िढ़ते हुए ववद्वेर्मय वातावरण से िालक फ़रीद खा़ाँ (शेरशाह) शुरू से ही गंभीर, दृढ़तनश्चयी और आत्मतनभ षर होने लगा। यद्यवप नारनौल से सहसराम और खवासपुर पहु़ाँचकर तथा वहा़ाँ िडी जागीर पा जाने से हसन खा़ाँ का दजाष िढ़ गया था, तथावप फ़रीद और तनजाम तथा इनकी माता के प्रतत हसन के व्यवहार में अवनतत ही होती गई। िाप-िेटे का सम्िन्ध हदन पर हदन बिगडता ही गया। फ़रीद रुष्ट होकर जौनपुर चला गया और स्वयं जमाल खा़ाँ की सेवा में उपस्स्थत हो गया। जि हसन खा़ाँ को पता चला फक फ़रीद जौनपुर चला गया है, ति उसे यह भय हुआ फक कहीं वह जमाल खा़ाँ से मेरी शशकायत न कर दे। अतः उसने जमाल खा़ाँ को पत्र शलखा फक, "फ़रीद मुझसे रुष्ट होकर आपके पास चला गया है। कृपया उसे मनाकर मेरे पास भेज देने का कष्ट करें। यहद वह आपके कहने पर भी घर वापस आने के शलए तैयार न हो तो, आप उसे अपनी सेवा में रखकर उसके शलए धाशमषक आचार शास्त्र की शशिा का प्रिंध करने की अनुकंपा करें"। [4]

िहलोल की मतृ्य ु

िहलोल की मृत्यु हो जाने पर शसकंदर लोदी हदल्ली के शसहंासन पर िैठा। उसने अपने भाई िैिक खान (िरिक खान) से जौनपुर सूिा (तत्कालीन)[5] जीत शलया। उसने जमाल खान को जौनपुर का शासक तनयुक्त फकया और उसे आदेश हदया फक वह 12 हजार घुडसवारों की व्यवस्था करके उनमें जौनपुर के सूिे को जागीरों के रूप में िांट दें। जमाल खान,

हसन खान को स्जसकी सेवा से वह िहुत प्रसन्न था, जौनपुर ले आया और उसे 500 घुडसवारों की सेना की व्यवस्था के शलए िनारस के समीप सहसराम, हाजीपुर और टांडा की जागीरें प्रदान कर दीं।[3]

हुमायु़ाँ और शेरशाह

आगरा में हुमायू़ाँ की अनुपस्स्थतत के दौरान (फ़रवरी, 1535-1537 तक) शेरशाह ने अपनी स्स्थतत और मजिूत कर ली थी। वह बिहार का तनवव षरोध स्वामी िन चुका था। नजदीक और पास के अफ़गान उसके नेतृत्व में इकट्ठे हो गये थे। हाला़ाँफक वह अि भी मुगलों के प्रतत वफ़ादारी की िात करता था, लेफकन मुगलों को भारत से तनकालने के शलए उसने खूिसूरती से योजना िनायी। िहादरु शाह से उसका गहरा सम्पकष था। िहादरु शाह ने हधथयार और धन आहद से उसकी िहुत सहायता भी की थी। इन स्रोतों के उपलब्ध हो जाने से उसने एक कुशल और िृहद सेना एकत्र कर ली थी। उसके पास 1200 हाथी भी थे। हुमायू़ाँ के आगरा लौटने के कुछ ही हदन िाद शेरशाह ने अपनी सेना का उपयोग िंगाल के सुल्तान को हराने में फकया था और उसे तुरन्त 1,300,000 दीनार (स्वणष मुद्रा) देने के शलए वववश फकया था।

एक नयी सेना को लैस करके हुमायू़ाँ ने वर् ष के अन्त में चुनार को घेर शलया। हुमायू़ाँ ने सोचा था फक, ऐसे शस्क्तशाली फक़ले को पीछे छोडना उधचत नहीं होगा, क्योंफक इससे उसकी रसद के मागष को खतरा हो सकता था। लेफकन अफ़गानों ने दृढ़ता से फक़ले की रिा की। कुशल तोपची रूमी खा़ाँ के प्रयत्नों के िावजूद हुमायू़ाँ को चुनार का फक़ला जीतने में छः महीने लग गये। इसी दौरान शेरशाह ने धोखे से रोहतास के शस्क्तशाली फक़ले पर अधधकार कर शलया। वहा़ाँ वह अपने पररवार को सुरक्षित छोड सकता था। फफर उसने िंगाल पर दिुारा आक्रमण फकया और उसकी राजधानी गौड पर अधधकार कर शलया।

चौंसा एवं बबलग्राम के यदु्ि

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1539 ई. में चौंसा का एवं 1540 ई. में बिलग्राम या कन्नौज के युद्ध जीतने के िाद शेरशाह 1540 ई. में हदल्ली की गद्दी की पर िैठा। उत्तर भारत में द्ववतीय अफ़गान साम्राज्य के संस्थापक शेर खा़ाँ द्वारा िािर के चदेरी अशभयान के दौरान कहे गये ये शब्द अिरशः सत्य शसद्ध हुए, “ फक अगर भाग्य ने मेरी सहायता की और सौभाग्य मेरा शमत्र रहा, तो मै मुगलों को सरलता से भारत से िाहर तनकाला दू़ाँगा।” चौंसा युद्ध के पश्चात ्शेर खा़ाँ ने ‘शेरशाह’ की उपाधध धारण कर अपना राज्याशभर्ेक करवाया। कालान्तर में इसी नाम से खुतिे (उपदेश या प्रशंसात्मक रचना) पढ़वाये एवं शसक्के ढलवाये। स्जस समय शेरशाह हदल्ली के शसहंासन पर िैठा, उसके साम्राज्य की सीमायें पस्श्चम में कन्नौज से लेकर पूरि में असम की पहाडडयों एवं चटगा़ाँव तथा उत्तर में हहमालय से लेकर दक्षिण में झारखण्ड की पहाडडयों एवं िंगाल की खाडी तक फैली हुई थी।

गक्खरों से यदु्ध

1541 ई. में शेरशाह सूरी ने गक्खरों को समाप्त करने के शलए एक अशभयान फकया। वह गक्खरों को इसशलए समाप्त करना चाहता था क्योंफक, यह जातत आये हदन मुगलों की सहायता फकया करती थी। शेरशाह गक्खर जातत को समाप्त करने के अपने लक्ष्य को तो पूरा नहीं कर सका, लेफकन फफर भी वह गक्खरों की शस्क्त को कम करने में अवश्य सफल रहा। शेरशाह ने अपनी उत्तरी-पस्श्चमी सीमा को सुरक्षित करने के शलए एक शस्क्तशाली ‘रोहतासगढ़’ नामक फक़ले का तनमाषण करवाया। हैित खा़ाँ एवं खवास खा़ाँ के प्रतततनधधत्व में शेरशाह ने यहा़ाँ पर एक अफ़गान सैतनक टुकडी को तनयुक्त कर हदया।

िंगाल का ववद्रोह (1541 ई.)

िंगाल का सूिेदार खखज़्र खा़ाँ, जो एक स्वतन्त्र शासक की तरह व्यवहार कर रहा था, के ववद्रोह को कुचलने के शलए

शेरशाह िंगाल आया। उसने खखज़्र खा़ाँ को िन्दी िना शलया। भववष्य में दोिारा िंगाल में ववद्रोह को रोकने के शलए शेरशाह ने यहा़ाँ एक नवीन प्रशासतनक व्यवस्था को प्रारम्भ फकया, स्जसके अन्तगषत पूरे िंगाल को कई सरकारों (स्जलों) में िा़ाँट हदया गया और साथ ही प्रत्येक सरकार में एक छोटी सेना के साथ ‘शशक़दार’ (फकसी शे्रत्र ववशेर् का अधधकारी) तनयुक्त कर हदया गया। शशक़दारों को तनयंबत्रत करने के शलए एक गैर सैतनक अधधकारी ‘अमीन-ए-िंगला’ की तनयुस्क्त की गई। सव षप्रथम यह पद ‘क़ाजी फ़जीलात’ नाम के व्यस्क्त को हदया गया।

मालवा (1542 ई.)

गुजरात के शासक िहादरु शाह के मरने के िाद मालवा के सूिेदार मल्लू खा़ाँ ने अपने को ‘काहदर शाह’ के नाम से मालवा का स्वतन्त्र शासक घोवर्त कर शलया। उसने अपने नाम से शसक्के ढलवाये एवं 'खुिते' (उपदेश या प्रशंसात्मक रचना) पढ़वाये। शेरशाह मालवा को अपने अधीन करने के शलए काहदर शाह पर आक्रमण करने के शलए आगे िढ़ा और अप्रैल, 1542 ई. में रास्ते में ही शेरशाह ने ग्वाशलयर के फक़ले पर अधधकार कर वहा़ाँ के शासक पूरनमल को अपने अधीन कर शलया। काहदर शाह ने शेरशाह से भयभीत होकर सारंगपुर में उसके समि आत्म समपषण कर हदया। उसके समपषण

के िाद मांडू, उज्जैन एवं सारंगपुर पर शेरशाह का क़ब्जा हो गया। शेरशाह ने भद्रता का पररचय देते हुए काहदर शाह को लखनौती व कालपी का गवषनर तनयुक्त फकया, परन्तु काहदर शाह, शेरशाह से डरकर अपने पररवार के साथ गुजरात के शासक महमूद तृतीय की शरण में चला गया। शेरशाह ने सुजात खा़ाँ को मालवा का गव षनर तनयुक्त कर वापस जाते समय ‘रणथम्भौर’ के शस्क्तशाली फक़ले को अपने अधीन कर पुत्र आहदल खा़ाँ को वहा़ाँ का गव षनर िना हदया।

रायसीन (1543 ई.)

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रायसीन के शासक पूरनमल द्वारा 1542 ई. में शेरशाह की अधीनता स्वीकार करने के िाद भी शेरशाह के शलए रायसीन पर आक्रमण करना इसशलए आवश्यक हो गया था, क्योंफक वहा़ाँ की मुस्स्लम जनता को पूरनमल से िडी शशक़ायत थी। साथ ही रायसीन की सम्पन्नता भी आक्रमण का एक कारण थी। 1543 ई. में रायसीन के फक़ले पर घेरा डाला गया। कई महीने तक घेरा डाले रहने पर भी शेरशाह को सफलता नहीं शमली। अन्ततः शेरशाह ने चालाकी से पूरनमल को उसके आत्म-सम्मान एवं जीवन की सुरिा का वायदा कर आत्म-समपषण हेतु तैयार कर शलया। कुतुि खा़ाँ और आहदल खा़ाँ इस शत ष के गवाह िने। परन्तु रायसीन के मुसलमानों के पुनः दिाि के कारण राजपूतों को दण्ड देने के शलए शेरशाह ने एक रात राजपूतों के खेमों को चारों ओर से घेरा शलया। अपने को तघरा हुआ पाकर पूरनमल एवं उसके शसपाहहयों ने िहादरुी से लडते हुए प्राणोत्सगष कर हदया तथा उनकी स्स्त्रयों ने ‘जौहर’ कर शलया। शेरशाह द्वारा फकया गया यह ववश्वासघात उसके व्यस्क्ततत्व पर काला धब्िा है। इस ववश्वासघात से कुतुि खा़ाँ इतना आहत हुआ फक उसने आत्महत्या कर ली।

शसन्ध एवं मलु्तान (1543 ई.)

शेरशाह ने हैवत खा़ाँ के नेतृत में शसधं तथा मुल्तान के ववद्रोहहयों िख्सू लंगाह एवं फतेह खा़ाँ पर ववजय प्राप्त की। शेरशाह ने मुल्तान में फतेह खा़ाँ एवं शसधं में इस्लाम खा़ाँ को सूिेदार तनयुक्त फकया।

मालदेव से यदु्ध (1544 ई.)

मालदेव, मारवाड (राजस्थान) पर शासन कर रहा था। उसकी राजधानी जोधपुर थी। उसकी िढ़ती शस्क्त से शेरशाह को ईष्र्या थी। अतः िीकानेर नरेश कल्याणमल एवं ‘मेडता’ के शासक वीरमदेव के आमन्त्रण पर शेरशाह ने मालदेव के

ववरुद्ध अशभयान फकया। दोनों सेनायें ‘भल’ नामक स्थान पर एक दसूरे के सम्मुख उपस्स्थत हुई। यहा़ाँ भी शेरशाह ने कूटनीतत का सहारा लेते हुए मालदेव के शशववर में यह भ्ांतत फैला दी फक, उसके सरदार उसके साथ नहीं हैं। इससे मालदेव ने तनराश होकर बिना युद्ध फकये वापस होने का तनणषय कर शलया। फफर भी उसके ‘जयता’ एवं ‘कुम्पा’ नाम के सरदारों ने अपने ऊपर फकये गये अववश्वास को शमटाने के शलए शेरशाह की सेना से टक्कर ली, परन्तु वे वीरगतत को प्राप्त हुए। इस युद्ध को जीतने के िाद शेरशाह ने कहा फक, "मै मुट्ठी भर िाजरे के शलए हहन्दसु्तान के साम्राज्य को प्रायः खो चुका था।" शेरशाह ने भागते हुए मालदेव का पीछा करते हुए अजमेर, जोधपुर, नागौर, मेडता एवं आि ूके फक़लों को अधधकार में कर शलया। शेरशाह की यह ववजय उसके मरने के िाद स्थायी नहीं रह सकी। अशभयान से वापस आते समय शेरशाह नेमेवाड को भी अपने अधीन कर शलया। जयपुर के कछवाह राजपूत सरदारों ने भी शेरशाह की अधीनता स्वीकार कर ली। इस प्रकार राजस्थान उसके तनयंत्रण में आ गया।

हहन्दू शमत्रता की नीतत

शेरशाह सूरी का मक़िरा, सासारामबिहार

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हदल्ली के सुल्तानों की हहन्द ूववरोधी नीतत के खखलाफ़ उसने हहन्दओु ंसे शमत्रता की नीतत अपनायी। स्जससे उसे अपनी शासन व्यवस्था सृदृढ़ करने में सहायता शमली। उसकादीवान और सेनापतत एक हहन्द ूसरदार था, स्जसका नाम हेम ू(हेमचंद्र) था। उसकी सेना में हहन्द ूवीरों की संख्या िहुत थी। उसने अपने राज्य में शांतत स्थावपत कर जनता को सुखी और समृद्ध िनाने के प्रयास फकये। उसने याबत्रयों और व्यापाररयों की सुरिा का प्रिंध फकया। लगान और मालगुजारी वसूल करने की संतोर्जनक व्यवस्था की। शेरशाह सूरी के फ़रमान फ़ारसी भार्ा के साथ नागरी अिरों में भी होते थे। वह पहला िादशाह था, स्जसने िंगाल के सोनागा़ाँव से शसधुं नदी तक दो हजार मील लम्िी पक्की सडक िनवाई थी। उस सडक पर घुडसवारों द्वारा डाक लाने−ले−जाने की व्यवस्था थी। यह मागष उस समय 'सडक-ए-आजम'

कहलाता था। िंगाल से पेशावर तक की यह सडक 500कोस (शुद्ध= क्रोश) या 2500 फकलो मीटर लम्िी थी। शेरशाह ने इस सडक पर याबत्रयों की सुववधा के शलए प्रत्येक कोस पर कोस मीनार िनवायीं, जहा़ाँ पर ठहरने के शलए सराय और पानी का िंदोिस्त रहता था। शेरशाह का भतीजा अदली था, जो शेरशाह के पुत्र और उत्तराधधकारी इस्लामशाह के िाद 1554 ई. में गद्दी पर िैठा था। यहा़ाँ एक बिन्द ुस्मरणीय यह है फक शेरशाह ने अफ़गानों के दिाि के कारण हहन्दओु ंसे जस्जया कर को समाप्त नहीं फकया था।

काशलजंर अशभयान एवं मतृ्य ु(1545 ई.)

यह अशभयान शेरशाह का अस्न्तम सैन्य अशभयान था। काशलजंर का शासक कीरत शसहं था। उसने शेरशाह के आदेश के ववपरीत ‘रीवा’ के महाराजा वीरभान शसहं िघेला को शरण दे रखी थी। इस कारण से नवम्िर, 1544 ई. में शेरशाह ने काशलजंर फक़ले का घेरा डाल हदया। लगभग 6 महीने तक फक़ले को घेरे रखने के िाद भी सफलता के आसार न देख कर शेरशाह ने फक़ले पर गोला, िारुद के प्रयोग का आदेश हदया। ऐसा माना जाता है फक, फक़ले की दीवार से टकराकर लौटे एक गोले के ववस्फोट से शेरशाह की 22 मई, 1545 ई. को मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय वह ‘उक्का’ नाम का एक अग्नेयास्त्र चला रहा था। उसके मरने से पूव ष फक़ले को जीत चुका था। उसकी मृत्यु पर इततहासकार क़ानूनगो ने कहा, "इस प्रकार एक महान राजनीततज्ञ एवं सैतनक का अन्त अपने जीवन की ववजयों एक लोकहहतकारी कायों के मध्य में ही हो गया।”

शेरशाह के तनमाषण कायष

शेरशाह सूरी का मक़िरा, सासारामबिहार

शेरशाह सूरी ने अपने जीवन में अनेक महत्त्वपूणष काय ष सम्पन्न फकए और कई प्रकार के तनमाषण काय ष भी करवाए। उसके तनमाषण कायों में सडकों, सरायों एवं मस्स्जदों आहद का िनाया जाना प्रशसद्ध है। वह पहला मुस्स्लम शासक था, स्जसने यातायात की उत्तम व्यवस्था की और याबत्रयों एवं व्यापाररयों की सुरिा का संतोर्जनक प्रिंध फकया। उसनेिंगाल के सोनागा़ाँव से लेकर पंजाि में शसधुं नदी तक, आगरा से राजस्थान और मालवा तक पक्की सडकें िनवाई थीं। सडकों के फकनारे छायादार एवं फल वाले वृि लगाये गये थे, और जगह-जगह पर सराय, मस्स्जद और कुओ ंका

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तनमाषण कराया गया था। ब्रजमंडल के चौमुहा़ाँ गा़ाँव की सराय और छाता गा़ाँव की सराय का भीतरी भाग उसी के द्वारा तनशमषत हैं। हदल्ली में उसने 'शहर पनाह' िनवाया था, जो आज वहा़ाँ का 'लाल दरवाजा' है। हदल्ली का 'पुराना फक़ला' भी उसी के द्वारा िनवाया माना जाता है।

साहहत्य प्रेमी

शेरशाह सूरी ने कई दाशषतनकों के गं्रथ पढे़। उसने शसकंदरनामा, गुशलस्तां और िोस्तां आहद गं्रथों को कंठस्थ कर शलया। सम्राट िन जाने के िाद भी उसकी हदलचस्पी इततहास के गं्रथों और प्राचीन शासकों के जीवनचररतों के प्रतत िरािर िनी रही। पुस्तकों में शलखी िातों को वह जीवन में उतारने का सफलतापूव षक प्रयास करता था।

श्री काशलकारंजन क़ानूनगो ने शलखा है :- ‘‘िचपन में उसने साहहत्य का जो अध्ययन फकया, उसने उस सैतनक जीवन के मागष से उसे पृथक कर हदया, स्जस पर शशवाजी, हैदर अली और रणजीत शसहं जैसे तनरिण वीर साधारण पररस्स्थतत से ऊ़ाँ चे उठकर राजा की मयाषदा प्राप्त कर लेते हैं। भारत के इततहास में हमें दसूरा कोई व्यस्क्त नहीं शमलता, जो अपने प्रारंशभक जीवन में सैतनक रहे बिना ही एक राज्य की नींव डालने में समथष हुआ हो।’[3]

दाशषतनकों के ववचार

"मशलक मुहम्मद जायसी", "फ़ररश्ता" और "िदायूंनी" ने शेरशाह के शासन की िडी प्रशंसा की है। िदायूंनी ने शलखा है फक-

िंगाल से पंजाि तक तथा आगरा से मालवा तक सडक पर दोनों ओर छाया के शलए फल वाले वृि लगाये गये थे।

कोस−कोस पर एक सराय, एक मस्स्जद और कु़ाँ ए का तनमाषण फकया था। मस्स्जद में एक इमाम और अजान देने वाला एक मुल्ला था।

तनधषन याबत्रयों का भोजन िनाने के शलए एक हहन्द ूऔर मुसलमान नौकर था। 'प्रिंध की यह व्यवस्था थी फक, बिल्कुल अशक्त िुड्ढ़ा अशफफषयों का थाल हाथ पर शलये चला जाय और जहा़ाँ

चाहे वहा़ाँ पडा रहे। चोर या लुटेरे की मजाल नहीं फक, आ़ाँख भर कर उसकी ओर देख सके। उत्तराधधकारी

शेरशाह की मृत्यु के उपरान्त 1545 ई. में उसका पुत्र 'जलाल खा़ाँ' 'इस्लामशाह' की उपाधध धारण कर सुल्तान िना। आहदल खा़ाँ को परास्त कर एवं साम्राज्य में सरदारों के ववद्रोहों का दमन कर उसने सुल्तान के सम्मान और शस्क्त में वृद्धध की और अफ़गनों की स्वतंत्र प्रकृतत को पूणषतया दिा हदया। इस्लाम शाह के समय में प्रान्तीय सूिेदार सुल्तान का तो क्या सुल्तान के जूतों का भी सम्मान करते थे। उसने 1553 ई.तक शासन फकया। शासन व्यवस्था में इस्लामशाह ने अपेक्षित सुधार फकये। उत्तर पस्श्चम की सीमा की सुरिा के शलए वहा़ाँ पा़ाँच फक़ले खडे फकये। ये फक़ले 'शेरगढ़', 'इस्लामगढ़', 'रसीदगढ़', 'फफ़रोजगढ़' और 'मानकोट' में थे। इनको सस्म्मशलत रूप से ‘मानकोट के फक़ले’ कहा जाता है।

हदल्ली पर हुमायू़ाँ का अधधकार

इस्लामशाह के शासन संिंधी सुधारों में सिसे महत्त्वपूणष सुधार ववशभन्न क़ानूनों का तनमाषण और उनका सभी स्थानों पर लागू फकया जाना था। इस्लामशाह के पश्चात ्उसके उत्ताधधकाररयों के समय सूर-साम्राज्य 5 भागों में ि़ाँट गया। सूर-

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साम्राज्य की आपसी कलह का लाभ उठाकर हुमायू़ाँ ने भारत पर आक्रमण कर "मच्छीवारा" और "सरहहन्द" के युद्धों को जीतकर 1555 ई. में हदल्ली पर अधधकार कर शलया।

शेरशाह की प्रशासन-व्यवस्था

कोस मीनार

शेरशाह को व्यवस्था सुधारक के रूप में माना जाता है, व्यवस्था प्रवत षक के रूप में नही। शेरशाह का शासन अत्यधधक केन्द्रीकृत था। सम्पूणष साम्राज्य को 47 सरकारों (स्जलों) में िा़ाँट हदया गया था। ड़ॉ. क़ानून गों के अनुसार- "उसके प्रान्तीय शासन में सरकार से ऊ़ाँ चा ववभाजन नहीं फकया गया था, और प्रान्त एवं सूिों जैसी शासन की कोई ईकाई नहीं थी। परमात्मा सरन, क़ानून गों के ववचारों से असहमतत व्यक्त करते हैं। प्रत्येक सरकार में दो प्रमुख अधधकारी होते थे- 'शशक़दार-ए-शशक़दारों' (शशक़दार=फकसी शे्रत्र-ववशेर् का अधधकारी), और 'मुस्स्सफ-ए-मुस्स्सफां'। प्रत्येक सरदार कई परगनों में ि़ाँटे थे। प्रत्येक परगने में एक शशक़दार, एक मुस्न्सफ, एक 'फ़ोतदार' (खजांची, तहसीलदार) और दो 'कारकुन'

(काय षकताष, काम करने वाला, कमषचारी) होते थे।

'शेरशाह सूरी एक ऐसा व्यस्क्त था, जो जमीनी स्तर से उठ कर शंहशाह िना। जमीनी स्तर का यह शंहशाह अपने अल्प शासनकाल के दौरान ही जनता से जुडे अधधकांश मुद्दो को हल करने का प्रयास फकया। हालांफक शेरशाह सूरी का यह दभुाषग्य रहा फक उसे भारतवर् ष पर काफ़ी कम समय शासन करने का अवसर शमला। इसके िावजूद उसने राजस्व, प्रशासन, कृवर्, पररवहन, संचार व्यवस्था के शलए जो काम फकया, स्जसका अनुसरण आज का शासक वगष भी करता है। शेरशाह सूरी एक शानदार रणनीततकार, आधुतनक भारतवर् ष के तनमाषण में महत्त्वपूणष भूशमका तनभाने वाला महान शासक के रुप में नजर आएगा। स्जसने अपने संक्षिप्त शासनकाल में शानदार शासन व्यवस्था का उदाहरण प्रस्तुत फकया। शेरशाह सूरी ने भारतवर् ष में ऐसे समय में सुढृढ नागररक एवं सैन्य व्यवस्था स्थावपत की जि गुप्त काल के िाद से ही एक मजिूत राजनीततक व्यवस्था एवं शासक का अभाव-सा हो गया था। शेरशाह सूरी ने ही सव षप्रथम अपने शासन काल में आज के भारतीय मुद्रा रुपया को जारी फकया। इसीशलए इततहासकार शेरशाह सूरी को आधुतनक रुपया व्यवस्था का अग्रदतू भी मानते है। मौयों के पतन के िाद पटना पुनः प्रान्तीय राजधानी िनी, अतः आधुतनक पटना को शेरशाह द्वारा िसाया माना जाता है।'[6]

पवत्त व्यवस्िा

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शेरशाह की ववत्त व्यवस्था के अन्तगषत सरकारी आय का सिसे िडा स्रोत जमीन पर लगने वाला कर था, स्जसे ‘लगान’

कहते थे। शेरशाह की लगान व्यवस्था 'रैयतवाडी व्यवस्था' पर आधाररत थी, स्जसमें फकसानों से प्रत्यि सम्पकष स्थावपत फकया जाता था। स्थानीय आय, स्जसे कई प्रकार के करों से एकत्र करते थे, उसे ‘अिवास’ कहा जाता था। शेरशाह के समय में भूशम तीन वगों अच्छी, साधारण एवं खराि में ववभास्जत थी। पैदावार का लगभग एक ततहाई भाग सरकारी लगान के रूप में शलया जाता था। केवल मुल्तान में उपज का 1/4 भाग लगान के रूप में शलया जाता था। लगान नगद रूप में वसूला जाता था, पर नगद में लेना अधधक पसंद फकया जाता था। लगान तनधाषरण हेतु तीन प्रणाशलया़ाँ प्रचलन में थीं-

1. िटाई या गल्ला िक्शी

2. नश्क या मुक्ताई या कनकूत और

3. नगदी या जब्ती या जमी। इन तीनों प्रणाशलयों में फकसानों द्वारा नगदी व जमाई व्यवस्था को अधधक सराहा जाता था। तीन प्रकार की 'िटाई',

'खेत िटाई', 'लंक िटाई' एवं 'रास-िटाई' का भी प्रचलन था। फकसानों को शेरशाह के शासन काल में 'जरीिाना' या 'सवेिण शुल्क' एवं ‘मुहाशसलाना’ या 'कर संग्रह शुल्क' भी देना पडता था, स्जनकी दरें क्रमशः भूराजस्व की 2.5 प्रततशत एवं 5 प्रततशत थी। इसके अलावा प्रत्येक फकसान को पूरी लगान पर 2.5 प्रततशत अततररक्त कर देना होता था। शेरशाह न ेकृवर् योग्य भूशम और परती भूशम दोनों की नाप करवाई। इस काय ष के शलए उसने अहमद खा़ाँ की सहायता ली। शेरशाह द्वारा प्रचशलत 'रैयतवाडी व्यवस्था' मुल्तान को छोडकर राज्य के शलए सभी भागों में लागू थी। मुल्तान में शेरशाह ने राजस्व तनधाषरण और संग्रह के शलए पहले से चली आ रही िटाई (हहस्सेदारी) व्यवस्था को ही प्रचलन में रहने हदया तथा वहा़ाँ से उत्पादन का 1/4 भाग लगान वसूल फकया, जो अन्यत्र प्रचशलत नहीं था।

शेरशाह ने भूमम की माप के मलए 32 अंक वाला ‘शसकन्दरीगज’ एवं ‘सन की डंडी’ का प्रयोग फकया।

'शासन सुधार के िेत्र में भी शेरशाह ने एक जनहहतकारी व्यवस्था की स्थापना की, स्जससे काफ़ी कुछ अकिर न ेभी सीखा था। शासन के सुववधाजनक प्रिन्ध के शलए उसने सारे साम्राज्य को 47 भागों में िा़ाँटा था, स्जसे 'प्रान्त' कहा जाता है। प्रत्येक प्रान्त सरकार, परगने तथा गा़ाँव परगने में ि़ाँटे थे। काफ़ी कुछ यह व्यवस्था आज की प्रशासतनक

व्यवस्था से शमलती है। शेरशाह के शासन काल की भूशम व्यवस्था अत्यन्त ही उत्कृष्ट थी। उसके शासनकाल में महान भू-ववशेर्ज्ञ 'टोडरमल खत्री' था, स्जसने आगे चलकर अकिर के साथ भी काय ष फकया। शेरशाह ने भूशम सुधार के अनेक काय ष फकए। उसने भूशम की नाप कराई, भूशम को िीघों में िा़ाँटा, उपज का 3/1 भाग भूशमकर के शलए तनधाषररत फकया। उसने भूशमकर को अनाज एवं नकद दोनों रूप में लेने की प्रणाली ववकशसत कराई। पट्टे पर मालगुजारी शलखने की व्यवस्था की गई। फकसानों को यह सुववधा दी गई फक वे अपना भूशमकर स्वयं राजकोर् में जमा कर सकते थे। अकिर के शासनकाल की भूशम व्यवस्था काफ़ी कुछ इसी पर आधाररत थी। िाद में अंगे्रजों ने भी इसे ही चालू रखा।'[7]

मदु्रा-सिुार

शेरशाह का दसूरा महत्त्वपूणष सुधार मुद्रा में सुधार था। उसने सोने, चा़ाँदी एवं तांिे के आकर्षक शसक्के चलवाये। कालान्तर में इन शसक्कों का अनुकरण मुगल सम्राटों ने फकया। शेरशाह ने 167 गे्रन सोने की अशरफी, 178 गे्रन का चा़ाँदी का रुपया एवं 380 गे्रन तांिे का ‘दाम' चलवाया। उसके शासन काल में कुल 23 टकसालें थी। उसने अपने शसक्कों पर अपना नाम, पद एवं टकसाल का नाम अरिी भार्ा एवं देवनागरी शलवप में खुदवाया। शेरशाह के रुपये के ववर्य में स्स्मथ ने कहा फक, "यह रुपया वत षमान बब्रहटश मुद्रा प्रणाली का आधार है"।

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पररवहन व्यवस्िा

शेरशाह सूरी के शासनकाल की सिसे िडी ववशेर्ता उसकी पररवहन व्यवस्था है। सडकें फकसी भी राष्र के ववकास व्यवस्था की धुरी मानी जाती हैं। शेरशाह सूरी ने इसके महत्व को जाना और अपने समय से आगे सोचकर इततहास में अमर हो गए। शेरशाह सूरी ने िंगाल के सोनागा़ाँव से शसधं नदी तक दो हजार मील लंिी पक्की सडक िनवाई,

स्जससे यातायात की उत्तम व्यवस्था हो सके। साथ ही उसने याबत्रयों एवं व्यापाररयों की सुरिा के शलए भी संतोर्जनक प्रिंध फकया। ग्रांड रंक रोड का तनमाषण करवाना शेरशाह सूरी के ववलिण सोच का पररणाम है। यह सडक सहदयों से देश ववकास में अहम भूशमका तनभा रही है। उसने सडकों पर मील के पत्थर लगवाए। उसने डाक व्यवस्था को सही फकया और घुडसवारों द्वारा डाक को लाने−ले−जाने की व्यवस्था की। उसके आदेश फारसी के साथ नागरी अिरों में भी होते थे। उसने अनेक भवनों स्जसमें 'रोहतासगढ़ का फक़ला', अपना 'मक़िरा', हदल्ली का 'पुराना फक़ला' का तनमाषण कराया। शेरशाह ने सडकों के फकनारे छायादार एवं फल वाले वृि लगवाये, और जगह-जगह पर सराय, मस्स्जद और कुओ ंका तनमाषण कराया। हदल्ली में उसने शहरपनाह िनवाया था, जो आज वहा़ाँ का 'लाल दरवाजा है।

स्थापत्य कला

वह िेत्र स्जसमें शेरशाह का योगदान तनस्संदेह ही अववस्मरणीय है, वह है- "स्थापत्य कला का िेत्र"। उसके द्वारा ‘सासाराम’ में झील के अन्दर ऊ़ाँ चे टीले पर तनशमषत करवाया गया स्वयं का मक़िरा पूव षकालीन स्थापत्य शैली की पराकाष्ठा तथा नवीन शैली के प्रारम्भ का द्योतक माना जाता है। इसके अततररक्त शेरशाह ने हुमायू़ाँ द्वारा तनशमषत ‘दीनपनाह’ को तुडवाकर उसके ध्वंशावशेर्ों से हदल्ली में ‘पुराने फक़ले’ का तनमाषण करवाया। फक़ले के अन्दर शेरशाह ने ‘फक़ला-ए-कुहना’ मस्स्जद का तनमाषण करवाया, स्जसे उत्तर भारत के भवनों में महत्त्वपूणष स्थान प्राप्त है। शेरशाह ने रोहतासगढ़ के दगु ष एवं कन्नौज के स्थान पर ‘शेरसूर’ नामक नगर िसाया। 1541 ई. में उसने पाटशलपुत्र को ‘पटना’ के नाम से पुनः स्थावपत फकया। शेरशाह ने हदल्ली में ‘लंगर’ की स्थापना की, जहा़ाँ पर सम्भवतः 500 तोला सोना हर हदन व्यय फकया जाता था।

मक़बरा

शेरशाह सूरी का शहर िनारस-कोलकाता रोड पर सासाराम था। यहीं पर उसने अपने जीते जी अपना मक़िरा िनवाना शुरू कर हदया था। मक़िरा पत्थरों से िना है। मक़िरे के सिसे ऊपरी शसरे से पूरे सासाराम का दृश्य साफ़ हदखाई देता है।

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लेिल: भारतीय इततहास

Indian History in hindi महाजनपद

प्रारंस्म्भक भारतीय इततहास में छठी शताब्दी ईसापूव ष को पररवत षनकारी काल के रूप में महत्त्वपूणष माना जाता है। यह काल प्राय: प्रारंस्म्भक राज्यों, लोहे के िढ़ते प्रयोग और शसक्कों के ववकास के के शलए जाना जाता है। इसी समय में िौद्ध और जैन सहहत अनेक दाशषतनक ववचारधाराओ ंका ववकास हुआ। िौद्ध और जैन धमष के प्रारंस्म्भक गं्रथों में महाजनपद नाम के सोलह राज्यों का वववरण शमलता है। महाजनपदों के नामों की सूची इन गं्रथों में समान नहीं है परन्तु वस्ज्ज, मगध, कोशल, कुरु,पाचंाल, गांधार

और अवस्न्त जैसे नाम अक्सर शमलते हैं। इससे यह ज्ञात होता है फक ये महाजनपद महत्त्वपूणष महाजनपदों के रूप में जाने जाते होंगे। अधधकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और सघं नाम से प्रशसद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यस्क्त राजा कहलाता था। भगवान महावीर और भगवान िदु्ध इन्हीं गणों से संिस्न्धत थे। वस्ज्ज संघ की ही तरह कुछ राज्यों में जमीन सहहत आधथषक स्रोतों पर राजा और गण सामूहहक तनयंत्रण रखते थे। स्रोतों की कमी के कारण इन राज्यों के इततहास शलखे नहीं जा सके परन्तु ऐसे राज्य सम्भवतः एक हजार साल तक िने रहे थे।

राजधानी

हर एक महाजनपद की एक राजधानी थी स्जसे फक़ले से घेरा हदया जाता था। फक़लेिंद राजधानी की देखभाल, सेना और नौकरशाही के शलए भारी धन की जरूरत होती थी। सम्भवतः छठी शताब्दी ईसा पूव ष से ब्राह्मणों ने संस्कृत भार्ा में धमषशास्त्र गं्रथों की रचना प्रारम्भ की। इन ग्रन्थों में राजा व प्रजा के शलए तनयमों का तनधारषण फकया गया और यह उम्मीद की जाती थी फक राजा िबत्रय वणष के ही होंगे। शासक फकसानों, व्यापाररयों और

शशल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करते थे। संपवत्त जुटाने का एक उपाय पडोसी राज्यों पर आक्रमण कर धन एकत्र

महाजनपद

पववरण भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा

पूवष छठी शताब्दी से भी पहले का है।

उल्लेख िौद्ध और जैन धमष के प्रारंस्म्भक गं्रथों में महाजनपद नाम के सोलह राज्यों का वववरण शमलता है।

शासन अधधकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और संघ नाम से प्रशसद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यस्क्त राजा कहलाता था।

अन्य जानकारी

शासक फकसानों, व्यापाररयों और शशल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करते थे। संपवत्त जुटाने का एक उपाय पडोसी राज्यों पर आक्रमण कर धन एकत्र करना भी था।

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करना भी था। कुछ राज्य अपनी स्थायी सेनाए़ाँ और नौकरशाही तंत्र भी रखते थे और कुछ राज्य सहायक-सेना पर

तनभ षर करते थे स्जन्हें कृर्क वगष से तनयुक्त फकया जाता था।

सोलह महाजनपद

भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूव ष छठी शताब्दी से भी पहले का है। ये महाजनपद थे-

1. कुरु- मेरठ और थानेश्वर; राजधानी इन्द्रप्रस्थ।

2. पांचाल- िरेली, िदायूं और फ़रुष खािाद; राजधानी अहहच्छत्र तथा कांवपल्य। 3. शूरसेन- मथुरा के आसपास का िेत्र; राजधानी मथुरा। 4. वत्स – इलाहािाद और उसके आसपास; राजधानी कौशांिी। 5. कोशल - अवध; राजधानी साकेत और श्रावस्ती। 6. मल्ल – स्जला देवररया; राजधानी कुशीनगर और पावा (आधुतनक पडरौना) 7. काशी- वाराणसी; राजधानी वाराणसी। 8. अंग - भागलपरु; राजधानी चंपा। 9. मगध – दक्षिण बिहार, राजधानी धगररव्रज (आधुतनक राजगहृ)। 10. वसृ्ज्ज – स्जला दरभंगा और मुजफ्फरपुर; राजधानी शमधथला, जनकपुरी और वशैाली। 11. चेहद - िुंदेलखंड; राजधानी शुस्क्तमती (वत षमान िांदा के पास)।

12. मत्स्य - जयपरु; राजधानी ववराट नगर। 13. अश्मक – गोदावरी घाटी; राजधानी पांडन्य। 14. अवंतत - मालवा; राजधानी उज्जतयनी। 15. गांधार- पाफकस्तान स्स्थत पस्श्चमोत्तर िेत्र; राजधानी तिशशला। 16. कंिोज – कदाधचत आधुतनक अफ़गातनस्तान; राजधानी राजापुर।

इनमें से क्रम संख्या 1 से 7 तक तथा संख्या 11,ये आठ जनपद अकेले उत्तर प्रदेश में स्स्थत थे। काशी, कोशल और

वत्स की सवाषधधक ख्यातत थी।

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