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सच्चाई कुछ पन्नो में
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Publishing-in-support-of,
EDUCREATION PUBLISHING
RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001
Website: www.educreation.in __________________________________________________
© Copyright, 2018, Ashish Kumar
All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.
ISBN: 978-1-5457-2323-4
Price: ` 181.00
The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.
Printed in India
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सच्चाई कुछ पन्नो में
आशीष कुमार
EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)
www.educreation.in
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समर्पपत ह ै:
इस पुस्तक की कहाननयों के सारे पात्रो को
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पररचय
सचाई कुछ पन्नो में मेरी पााँचवी पुस्तक ह ैइस पुस्तक
में मैंने एक भारतीय की सामान्य जजदगी के अपने अनुभव
साझा ककये ह ैवो अनुभव नजसमे से ककसी ने मुझे हसंाया,
ककसी न ेरूलाया, ककसी पर मुझे गुस्सा आया, ककसी ने मुझे
सोचन ेपर मजबूर कर कदया आकद आकद । इस पुस्तक के य े
सारे अनुभव मेरे अपने ह ैऔर शत प्रनतशत सत्य ह ैइनम ेस े
कुछ घटनाएाँ मेरे साथ खुद घटी ह ैअन्य मेरे पररवार वालो
के साथ, कुछ दोस्तों के साथ और अन्य मेरे सामने नजनका मै
खुद गवाह हाँ । जजदगी रंग नबरंगी ह ैये हमे हर मोड़ पर अलग अलग
रसो का अनुभव करवाती ह ै । इस पुस्तक में भी कुछ पन्नो
की 27 कहननयााँ ह ै नव रसो में से हर एक रस की 3
कहाननयााँ, पहली 9 कहाननयााँ एक एक रस की नौ रसो तक
किर कहानी नंबर 10 स े18 तक किर उसी क्रम में नौ रसो
की एक एक कहानी ऐसे ही 19 से 27 तक किर उसी क्रम में
नौ रसो की एक एक कहानी । कुछ कहाननयों में सब को
आसानी स ेपता चल जाएगा की वो ककस रस की ह ै। कुछ में उन्हें थोड़ा सोचना पड़गेा इसनलए हर एक कहानी के बाद
मैंने नलख कदया ह ैकी उस कहानी में कौन सा रस प्रधान ह ै
पुस्तक की कहाननयों में रसो का क्रम शंृ्गार, हास्य, अद्भुत,
शांत, रौद्र, वीर, करुण, भयानक एवं वीभत्स हैं
अथाात पहली कहानी शंृ्गार रस दसूरी हास्य ऐसे ही
नवी कहनी वीभत्स रस की ह ै इसी क्रम में दसवीं कहनी
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किर शंृ्गार रस ग्यारवी कहनी किर हास्य रस की ह ैऔर
ऐसे ही उनीसवीं कहनी किर स ेशंृ्गार रस आकद आकद .....
सत्ताईसवीं कहनी वीभत्स रस की ह ै।
मैंने इस पुस्तक में सामान्य बोल चाल की जहदी प्रयोग
की ह ैनजससे सब आसानी से कहाननयों के भावो को समझ
सके जहााँ पर कोई वाताालाप ह ै वहााँ मैने उसे उसी तरह
नलखा ह ैजैस ेवो हुआ था जहदी और अंग्रजी दोनों मे । कुछ
स्थानों पर मैने समान्य बोल चाल से हट कर कहानी के
नहसाब से जहदी शब्द प्रयोग ककये ह ैनजनका अथा मैने उन्ही
शब्दों के आगे () के अंदर अंग्रजी में समझा कदया ह ैअगर मेरे
से पुस्तक में कोई गलती हो गयी हो तो क्षमा का प्राथी हाँ ।
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कहाननयों की सचूी
क्रमाकं नवषय पषृ्ठ सखं्या
1) रेलगाड़ी 1
2) कदमाग का दही 5
3) Mystery 9
4) देवता 13
5) भूल 17
6) मौसम 21
7) छोल ेचावल 25
8) Quarter Number 87 29
9) Sिर 33
10) चुनाव 37
11) बेकार कुर्पसयां 41
12) आराम स े 44
13) Tears 48
14) 24 January 2013 52
15) सरदार 57
16) हमारे प्यारे दत्ता जी 61
17) मनहस गेट 65
18) Who are you? 69
19) सच्चा प्यार 73
20) शौक बड़ी चीज़ ह ै 77
21) आखरी तारीख़ 81
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22) Physics 85
23) ठग 89
24) आलोक जी 92
25) सदमा 96
26) अनसुलझा रहस्य 99
27) कलयुग 103
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सच्चाई कुछ पन्नो में
आशीष कुमार | 1
रेलगाड़ी
बात अगस्त 2007 की ह,ै मेरे पूरे पररवार न ेराजस्थान के
उदयपुर में छुरियााँ व्यतीत करन े का ननणाय नलया I उस
समय मैं पुणे में रहा करता था और मेरा पूरा पररवार मेरे
गृहनगर (Home town) हररद्वार से हमारी सिेद रंग की
कार स ेउदयपुर जा रहा था I
मैने मंुबई से उदयपुर तक रेलगाड़ी में रटकट आरनक्षत
(Reserve) करवा नलया था I बांद्रा स्टेशन स ेमेरा आरक्षण
(reservation) था । नमनश्त भावो (mixed feelings) के
साथ मैं रेलगाड़ी मे बैठ गया । मेरी पसंद की नखड़की के
साथ वाली सीट मेरे नलए आरनक्षत थी ।
मेरे बगल की सीट पर एक मेरी ही उम्र का लड़का बैठा
था । नजसका नाम अनमत था । वैसे उसकी सीट एक तरि
की बीच वाली (side middle) थी । कदन में वो मेरे बगल
में ही बैठा था । वो जहदसु्तान के नंबर 1 होटल में सत्कार
प्रबधंक (hospitality manager) के रूप में कायारत था
एवं छुरियो के बाद वापस काम पर जा रहा था ।
मेरे सामने वाली सीट पर एक मनहला नजसकी उम्र
करीब 42 साल होगी अपने एक पुत्र जो की 16-17 साल
का होगा बैठी थी ।
ये माता- पुत्र एक उच्च वगीय पररवार से थे जो
ज्यादातर अंगे्रजी में बातचीत कर रह े थे। मेरी समझ स े
बहार था की वो लोग हवाई जहाज की जगह रेलगाड़ी स े
सिर क्यों कर रह ेथे ?
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सच्चाई कुछ पन्नो में
आशीष कुमार | 2
वो माता- पुत्र उदयपुर के एक पांच नसतारा होटल में
छुरटया नबतान ेजा रह ेथे। सामने की ही सीट पर एक 43-
44 साल का आदमी बैठा था। नजसका घर नचत्तौरगढ़ में था।
वो मंुबई अपने व्यापर के नसलनसले में आया था एवं अब
वापस नचत्तौरगढ़ जा रहा था। उसका नाम तनसुख था।
धीरे धीरे सब की एक दसूरे से बात होने लगी।
रेलगाड़ी गुजरात राज्य की सीमा (Border) के करीब स े
गुजर रही थी।
तनसुख ने मुझे बताया की इस क्षेत्र की नमटटी में ही
कुछ बात ह,ै यहााँ एक से एक बड़ ेव्यापारी जन्म लेते ह ैऔर
वो अपनी पहचान गुप्त रखत ेह ै।
थोड़ी दरे बाद रसोई खाने का लड़का (pantry boy)
रानत्र भोज का आडार लनेे आया । मैने अपने नलए शुद्ध
शाखाहारी भोजन की थाली का आदशे (order) द े कदया ।
मै थोड़ा असहज सा चारो तरि दखे रहा था की अब जरूर
कोई मांसाहारी भोजन का भी आडार दगेा । कही मेरे बाजु
वाला लड़का ने द ेद े। क्योकक मै शुद्ध शाखाहारी हाँ तो मुझे
खाना खाने में कदककत होती ह ै अगर पास में कोई
मांसाहारी भोजन खा रहा हो तो । मगर बाजु वाले लड़के न े
कुछ नहीं बोला, मुझे लगा सामने बैठा तनसुख जरूर
मांसाहारी भोजन आडार करेगा । पर मै हरैान था की जब
pantry boy ने तनसुख से खाने के आडार के नलए पूछा तो
उसने मना कर कदया । मुझे लगा सामने बैठे लड़का और
उसकी मम्मी जरूर मांसाहारी भोजन आडार करेगे क्योकक
वो कािी आधुननक (modern) और उच्च वगीय लग रह ेथे ।
पर वो दोनों भी चुप रह े।
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सच्चाई कुछ पन्नो में
आशीष कुमार | 3
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की क्यों कोई भी खाना
आडार नहीं कर रहा ह ैजबकक यात्रा तो 12 घंटो से ज्यादा
की बाकी थी ?
मुझे शक हुआ की कही इस रेलगाड़ी के खाने में कोई
गड़बड़ तो नहीं ?
मै सोच ही रहा था की तनसखु की आवाज आयी 'दोस्त
लो नचवड़ा खाओ और कुछ मट्ठी भी' मैने मना कर कदया तो
वो बोला 'अरे खा लो यार घर की बनी ह ै मेरी बीबी न े
बनायीं ह'ै
मैने एक दो ले ली । किर तनसुख न ेअपना मोबाइल
फ़ोन कदया, नजसमे धीमी आवाज़ में गाने बज रह े थे और
बोला 'इसे सामन ेके स्टैंड को खोल कर कांच के नगलास में
रख दो किर दखेो ककतनी अच्छी आवाज आएगी' मैने वैसा
ही ककया । सच में गाने की आवाज अच्छी आने लगी थी ।
तब ही मैने दखेा मेरे पास बैठा अनमत भी अपना खाने
का नडब्बा खोल चूका ह ैऔर मेरी तरि बढ़ा रहा ह ै , मैन े
मना कर कदया तो वो बोला ‘भाई साहब अगर आप नहीं
लेंगे तो मै भी नही खाऊंगा’ दो पूररया मुझे भी खानी पड़ी ।
इतने में सामन े बैठी मनहला और उसके लड़के न े भी एक
बहुत बड़ा खाने का नडब्बा ननकला और मुझसे ननवेदन
(request) कर के नखलान े लगे। बहुत स्वाकदष्ट गुजरती
खाना था । किर क्या था सब एक दसूरे के साथ खाना साझा
करने लगे । 20 नमनट में मेरा पेठ भर गया । मै हरैान और
खुश था इतना स्वाकदष्ट खाना खा कर और एक दसूरे के प्रनत
लोगो का प्यार दखे कर ।
मैने तो सनुा था सिर में अजीब अजीब तरह के लोग
नमलते ह ैजो एक दसूरे स ेठीक स ेबात तक नही करत ेऔर
तो और एक दसूरे का सामान भी लूट लेते ह ै । पर नजन
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सच्चाई कुछ पन्नो में
आशीष कुमार | 4
लोगो के साथ मैं सिर कर रहा था वो तो मुझे अपने भाई
बहन ही लग रह ेथे। इतना अपनापन पहली बार नमलन ेपर
ही, मैं ये सोच ही रहा था की पैंट्री बॉय की आवाज आयी
सर आपका खाना । मैं तो भलू ही गया था की मैन ेखाना भी
आडार कर रखा ह,ै मेरा पेठ तो सहयानत्रयों के प्यार और
लजीज खाने से पूरा भर गया था । मैने खाने का डब्बा नलया
और इधर उधर दखेने लगा तब ही तनसुख न ेकहा ‘लगता ह ै
आपका पेठ भरा ह ैकोई बात नही ककसी और को खाना द े
दो’ । मैने पूरी बोगी (compartment) में ढंूढा मगर एक
भी ऐसा आदमी नही नमला जो भूखा हो । मैं हरैान था और
सोच रहा था की क्या भारत में सच में भुखमारी ह ै? अंत में
मैने वो खाने का डब्बा पैंट्री बॉय को ही वापस कर कदया ।
रस : शंृ्गार
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