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o/kZeku egkohj [kqyk fo ofo|ky;] dksVkassets.vmou.ac.in/CIJ01.pdf · 2016. 8. 30. · 5 अत: इस इकाई के संि8\त अ /य यन के पात ्आप

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  • 1

    पाठ्य�म अिभकप सिमित

    अ�य�

    �ो. एल.आर. गजु�र िनदशेक, संकाय, व.म.ख.ुिव.िव., कोटा

    सयंोजक/ सम�वयक एवं सद�य

    सम�वयक

    डॉ. मता चौधरी सहायक आचाय�, अं�ेजी व.म.ख.ुिव.िव., कोटा

    सयंोजक

    डॉ. किपल गौतम सहायक आचाय�, सं� कृत व.म.ख.ुिव.िव., कोटा

    सद�य

    �ो. बी. ि�पाठी लाल बहादरु शा� �ी सं� कृत िव"ापीठ, िद$ ली

    �ो. िवनोद कुमार शमा� जगतग'ु रामान( द आचाय� राज� थान सं� कृत िव"ालय, जयपरु

    डॉ. स*रता भागव� राजक,य महािव"ालय, झालावाड़

    डॉ. िजते( - कुमारी ि.वदेी / या0 याता, सं� कृत लाड दवेी शमा� पंचोली सं�कृत महािव"ालय मा1डलगढ़, भीलवाड़ा

    4ी ओम �काश 6 योितषा�चाय�, कोटा

    डॉ. कमलेश जोशी उपकुलसिचव, व.म.ख.ुिव.िव., कोटा

    सपंादन एवं पाठ्य�म लेखन

    स�पादक

    डॉ. दवे�े � कुमार िमा सहायक आचाय�, � योितष, सं� कृत उ� तराख� ड खलुा िव विव!ालय, ह" दवानी नैनीताल, उ� तराख� ड पाठ्य�म लेखन

    1

    सुी सपना सरुाना (5,6,7,8) � योितष िवशारद, जयपरु

    2 ी राज�े � सरुाणा (9,13) � योितष िवशारद, जयपरु

    3 ीमती नीलम सालानी(1,11,12) � योितष व वा� तशुा� ) परामश�दाता, अकोला, महारा* +ा

    3 समुन सचदवे (2,3,4,10) � योितष व वा� तशुा� ) परामश�दाता, जयपरु

  • 2

    अकादिमक एव ं�शासिनक �यव�था

    �ो. िवनय कुमार पाठक

    कुलपित वध#मान महावीर खुला िव$िव%ालय,कोटा

    �ो. एल.आर. गजु�र िनदशेक

    संकाय िवभाग वध#मान महावीर खुला िव$िव%ालय,कोटा

    �ो. पी.के. शमा#

    िनदशेक �े&ीय सेवा �भाग

    वध#मान महावीर खुला िव$िव%ालय,कोटा

    पाठ्य�म उ*पादन

    योगे�+ गोयल सहायक उ*पादन अिधकारी,

    वध�मान महावीर खलुा िव8िव"ालय, कोटा उ*पादन इस साम�ी के िकसी भी अंश भी अंश को व.म.खु.िव., कोटा क� िलिखत अनुमित के िबना िकसी भी �प म� अ�य� पुनः !तुत करने क� अनुमित नह$ है। व.म.खु.िव., कोटा के िलए कुलसिचव को व.म.खु.िव., कोटा (राज.) 'ारा मुि(त एवं कािशत

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    िववरिणका इकाई सं.

    इकाई का नाम प.ृसं.

    इकाई - 1 � योितष शा� ) का उ,व एव ंिवकास – .ाचीन काल, म/ यकाल एव ंआधिुनक काल म1 � योितष शा� ) का प2रचय

    4

    इकाई - 2 फिलत � योितष – सं4ा .करण के अ� तग�त, न8), रािश, वार, योग, करण 9ह: का प2रचय

    15

    इकाई - 3 कु� डली प2रचय ल; नािद सं4ा, कारक 9ह: क> नैसिग�क िम)ता, श),ु उ@ च–नीच, मलू ि)कोणािद 4ान,9ह: कारक� व एव ंBिC िवचार

    56

    इकाई - 4 ल; न का सामा� य फल, 9ह: का शभुाशभु� व एव ंअ2र* ट िवचार 72

    इकाई - 5 भावफल 82

    इकाई - 6 नाभसािद योग 104

    इकाई - 7 आजीिवका एव ंराजयोगिवचार 127

    इकाई - 8 बाला2रC एव ंआयिुवचार 153

    इकाई - 9 दशा4ान:- दशाओ ंका शभुाशभु फल, महादशा, अ�तद�शा एव ं.�य�तद�शा 4ान

    179

    इकाई - 10 मारक 9ह िनण�य 212

    इकाई - 11 शभुाशभु महुFत� िनण�य 2225

    इकाई - 12 िववाह, या)ा महुF� त� 259

    इकाई - 13 ‘शकुंन � योितष’ 316

  • 4

    इकाई - 1

    � योितष शा � का उ�व एवं िवकास – �ाचीन काल, म� यकाल एवं आधुिनक काल म� � योितष शा � का

    प�रचय

    इकाई क� �परेखा

    1.1 .� तावना

    1.2 उG े य 1.3 भारतीय � योितष का इितहास

    1.3.1 पवू� विैदक काल 1.3.2 विैदक काल अथवा उदय काल 1.3.3 विैदक काल म1 � योितष िसHा� त 1.3.4 आिदकाल/पौरािणक काल

    1.4 सारांश 1.5 शI दावली 1.6 अJ यास . न

    1.7 संदभ� 9ंथ सचूी

    1.1 �� तावना

    भारतीय � योितष वदेा;ड़ ह,ै इसे शा� ) कहते ह।ै शा� ) वह ह ैिजसम1 िविध और िनषधे का उपवण�न हो। � योितष क> परP परा विैदक परP परा ही ह।ै यह वदे ने) ह ै – � योितषामयनं च8:ु िक� त ु इसक> ऐितहािसकता म1 िवचारणीय यह ह ै िक भारतीय शा� ) का RमबH अ/ ययन करने क> परP परा का िवकास िकस Sप म1 हTआ? िकन िकन बात: म1 � योितष के िविभ� न प8: का िकतनी गहराई से अ/ ययन िकया गया। यही सब इस इकाई म1 आपको अ/ ययनाथ� .� ततु ह।ै ’’.� य8ं � योितष ंशा� )म’्’ क> उिV सव�था .िसH ह।ै पवू� विैदक काल म1 � योितष सP ब� धी िवशषे सािह� य तो उपलI ध नहW होते िक� त ुइस काल म1 � योितष का होना .मािणत िकया गया ह।ै पवू� विैदक काल, विैदक काल और पौरािणक से लेकर अ!तन � योितष शा� ) के ि)� क� ध का अ/ ययन िव किसत हTआ ह।ै वदे, आर� यक, YाZण उपिनषद ्से लेकर पद े– पद े� योितष से संबंिधत सामि9याँ उपलI ध ह।ै

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    अत: इस इकाई के संि8\ त अ/ ययन के प]ात ्आप � योितष शा� ) के िवकास को भली भांित समझा सक1 ग।े

    1.2 उ�े य

    � योितष शा� ) के इितहासा� मक अ/ ययन से संबंिधत इस इकाई के अ/ ययन के प चात ्आप यह बता सक1 ग ेिक - 1 पवू� विैदक काल म1 � योितष का 4ान था या नहW? 2 विैदक काल अथवा उदयकाल म1 � योितष से सP बि�धत िकतना 4ान

    िवकिसत हो सका? 3 पौरािणक काल म1 � योितष शा� ) के िकस � वSप से िकस � वSप का अ/ ययन िकया गया।? 4 आधिुनक प2रवशे म1 � योितष क> पहचँ कहॉ ं तक ह?ै 5 � योितष का इितहास वा� तव म1 _ या ह?ै 6 � योितष के िकन - िकन प8: का अ/ ययन उपलI ध ह?ै

    1.3 भारतीय � योितष का इितहास

    भारतीय �योितष के उ`म अथवा ज�म का समय 4ात करना संभव नहW ह ै पर�त ु उसके िवकास के आधार पर काल: का िवभाजन िकया जा सकता ह।ै िजस .कार भारतीय सं�कृित के इितहास को िवभािजत िकया गया ह,ै उसी .कार �योितष के इितहास का वगaकरण भी िकया गया माना जा सकता ह।ै सिृC के आरP भ म1 bयिV भाषा क> िलिखत अिभbयिV करने अथवा िकसी घटना को िलिपबH करन ेम1 असमथ� था। धीरे-धीरे वह शIद करना सीखा तथा बोल-चाल शिV बढ़ती गयी और उ@चारण संभाषण शिV भी बढ़ने लगी और भाषण क> इसम1 यो;यता बढ़ने लगी। न तो लेखन के िलए तब कोई साधन उपलIध थे न ही लेखन शैली ने ज�म िलया था। अत: उस सारे 4ान का आधार �मरणशिV थी, वह �मिृत कहलायी। जो भी bयिV 4ान .ाe िकए हTए थे व ेिकसी घटना के B य को दखेकर उसे िव�तार से आ�मसात कर याद कर लेते थे और बोलकर अ�य bयिVय: तक उस 4ान का सं.ेषण करते थे तथा उ�ह:ने वह 4ान िकसी अ�य bयिV से सनुकर .ाe िकया ह।ै अत: उसे िुत कहा जाता था। इस .कार बोले व सनुे गए 4ान के िववरण व िव�तार म1 किमयाँ भी रह गई ंतथा कुछ gांित भी उ�प�न हTई। मन*ुय क> 4ान-िपपासा क> �वाभािवक .विृh म1 _य: तथा कैसे व कब आिद बात1 शािमल हi। इसी कारण वह खोज म1 िनर�तर लगा रहता था अत: िवकास के Rम म1 उसके मन म1 समय, �थान और िदशा क> जानकारी पाने क> िज4ासा हTई। यह कहा जा सकता ह ैिक इन तीन: िवषय: का 4ान �योितष

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    भारत वष� क> .मखु िवशेषताओ ं म1 आ/याि�मक 4ान मkुय ह ै और इसका संपादन योग िRया शिV सम�त सिृC म1 bयाe ह ै तथा मन*ुय म1 यह शिV कु�डिलनी के Sप म1 रहती ह।ै इसके अन�तर चR:, इड़ा, िपंगला, सषुPुना नािड़य: साधनाओ ंसे याद हTआ करता था। इन नािड़य: म1 इड़ा व िपंगला को सयू� व च�� भी कहा गया ह।ै अत: यह मानने का आधार ह ैिक योग 4ान केवल आ/या�म पर आधा2रत ही नहW ह ैबि"क �योितष िवषयक भी ह।ै

    1.3.1 पूव� वैिदक काल पवू� विैदक काल - विैदक दश�न म1 सिृC के आिद अथा�त ्सजृन तथा अ�त अथा�त ्िवनाश माना गया ह।ै इस दश�न के अनसुार सिृC के सजृन के प]ात ्ही मन*ुय 9ह, न8): का अ/ययन आरंभ कर दतेा ह ैतथा �योितष के जीवनोपयोगी तlय: का 4ान .ाe कर अपने 4ान क> भी विृH करता ह।ै _य:िक कब व कैस?े के Rम म1 ही मन*ुय ने दशे काल व �थान के संबंध म1 जानकारी .ाe क> होगी। घटना के घिटत होने के िवषय म1 आपस म1 बातचीत के दौरान ही इस िवषय म1 उ�प�न िज4ासा शा�त होती होगी, �योितष �योितष संबंधी मा�यताओ ंका 4ान �योितष के उदय कालीन या विैदक कालीन सािह�य से लगता ह।ै

    विैदक दश�न के अनुसार सिृC बनने के बाद से ही मन*ुय 9ह न8): का अ/ययन शoु कर दतेा ह।ै इसके साथ ही वह �योितष क> जीवन म1 उपयोग से जड़ुी बात1 4ात कर अपने 4ान म1 विृH करता ह।ै

    मन*ुय जब िच�ता करता ह ैतब उसक> क"पनाशिV तथा वा_शिV और बिुH रह�य: से परत उठाने म1 .व�ृ त होती ह।ै

    इसी काल म1 जनै मा�यता यह रही िक संसार अनािदकाल से ऐसे ही चला आ रहा ह ैइसम1 न कोई नई व�त ुउ�प�न होती ह ैऔर न ही िकसी का िवनाश होता ह ैबि"क व�तओु ंक> पया�य1 बदल जाती ह।ै यह मा�यता �योितष त� � व पर .काश ड़ालने वाली रही ह।ै यह ठीक वसैे ही ह ैजसैे ऊजा� नC नहW होती बि"क Sप बदल लेती ह।ै जैन मा�यता के अनसुार बीस कोड़कोड़ी अHा (यह खरब क> संkया से भी कई गनुा अिधक ह)ै का एक क"पकाल बताया गया ह।ै क"पकाल के दो भदे हi इनके उपभदे: म1 6 भदे माने गए हi।

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    इनके 6 काल: म1 से .थम व ि व�तएु ंक"पव8ृ: से .ाe होती हi) क>, ततृीय काल के आरंभ म1 भोगभिूम व अ�त म1 कम�भिूम क> रचना करती ह।ै इसी संदभ� म1 ततृीय काल म1 14 कुलकर उ�प�न होते हi जो .ािणय: को िविभ�न िश8ाए ंदतेे थे। इसी Rम म1 .थम कुलकर के समय म1 मन*ुय को सयू� व च��मा िदखाई िदए तो वह संदहे से िघर गए और अपने संदहे को दरू करने के िलए कुलकर के पास गए। कुलकर ने उ�ह1 सयू� व च��मा संबंधी �योितष िवषयक 4ान िदया और मन*ुय 9ह: से प2रिचत होकर अपने कायr का संचालन करने लगा।

    ि न8): से जड़ुी शकंाओ ंका िनवारण िकया तथा उस यगु के bयिVय: को आकाश म�डल क> बात: से अवगत कराया। इस बात से यह तlय �पC हो जाता ह ै िक अरब:-खरब: वष� पवू� �योितष तlय: क> िश8ाए ँदी गई थW। आधिुनक इितहास भी जनैधम� के अि�त�व होने क> पिुC करता ह।ै छा�दो;योपिनषद ्म1 भी एक कथा का वण�न ह.ै... इस संदभ� म1 राजा जाबािल से कुछ .s पछेू गए िजनका उhर माँगा।

    स ह कृ@tीबभवू। तंह िचरं वस इ�या4ा\यांचकार। तं होवाच यथा मा �व ंगौतमावदो यथेयं न .ाकृ�वh: परुा िव!ा YाZणान ्ग@छित।

    अथा�त ्- गौतम ऋिष क> .ाथ�ना पर राजा िचि�तत हTए और उ�ह:ने ऋिष से कुछ समय ठहरने का अनरुोध कर उनके .s: का उhर दनेा आरंभ िकया ह ेगौतम। आप मझुसे जो िव!ा .ाe करना चाहते हi, वह आपसे पहले िकसी YाZण को .ाe नहW हTई ह।ै Yहदार�यक उपिनषद ्के म)ं 6/2/8 से भी इस बात क> पिुC होती ह।ै

    अत: यह मानने का पणू� आधार ह ैिक पवू� विैदक काल म1 भी कुछ जनै सािह�य म1 9ह-न8): का �पC िववचेन िमलता ह।ै

    1.3.2 वैिदक काल अथवा उदय काल इस काल म1 सम�त 4ान एक Sप म1 था तथा िवषय: क> BिC से िविभ�न अगं: म1 िवभV नहW हTआ था। .ाचीन मानव �योितष को भी धम� मानता था अत: धम�, दश�न व �योितष के Sप म1 कोई अलग भदे .कट नहW हTआ था सभी िवषय: का सािह�य एक ही था।

    कुछ लोग: क> मा�यता ह ैिक विैदक काल से पवू� आय� लोग भारत म1 उhरी wवु से आए थे और यहाँ बसने के बाद उ�ह:ने वदे, वदेांग आिद सािह�य क> रचना क>। आधिुनक .ािण शािmय: ने अनसंुधान करके यह .मािणत भी कर िदया ह ैिक वा�तव म1 उhरी धुर्व ि�थर नहW ह ैतथा अपने .ाचीन �थान स ेपवू� पि]म और उhर क> ओर चलते हTए वत�मान ि�थित को .ाe हTआ ह ैअत: यह भी �पC ह ैिक .ाचीन आय� उhरी wवु म1 रहते थे तथा यह .दशे भारतवष� म1 अ�तग�त ही आता था। आयr ने उदय काल म1 ही विैदक सािह�य को ज�म िदया।

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    1 वदे, YाZण, 2 आर�यक, 3, ण�क और 5 उपिनषद ्आिद धािम�क रचनाओ ंक> ेणी म1 आती हi पर�त ु इन सभी म1 �योितष, िश"प तथा आयवुnद आिद िवषय: पर साम9ी पया�e मा)ा म1 उपलIध ह।ै

    उदयकाल म1 ही मास, अयन, वष�, यगु, ऋतु, 9ह, 9हण, 9हक8ा, न8), न8) ल;न, िदन-रात का मान उसक> विृH व हािन आिद पर �योितष के BिCकोण से िवचार िकया जाने लगा था। �योितष क> यह चचा� शतपथ YाZण तैिhरीय YाZण, ऐतरेय YाZण आिद 9ंथ: म1 िव�ततृ Sप म1 उपलIध ह।ै �योितष िसHा�त: का शाmोV तथा bयावहा2रक BिCकोण: से .ितपादन भी उपलIध ह।ै

    ऋ;वदे के अनसुार िदन को केवल काम चलाऊ समय के Sप म1 माना जाता था पर�त ु YाZण और आरय�क 9ंथ: म1 िदन क> विृH कब और कैसे होती ह ैतथा िदन बड़ा-छोटा कैसे व कब होता ह,ै इस पर शाmोV मीमांसा होने लगी थी।

    इसी विैदक काल म1 सयू� व च� �मा के अित2रV मंगल, बधु, गoु, शRु व शिन आिद 9ह: से संबंिधत �योितष सािह�य बन गया था। इसके अित2रV जनै सािह�य म1 नव9ह: का उ"लेख ईसा पूव� सहm: वष� पवू� होने लगा था। उदयकालीन समय म1 �वत� ) Sप से �योितष संबंधी रचनाए ं नहW िमलतW। .�येक काल म1 सािह�य व �योितष पर दशे क> प2रि�थितय: व राजनीितक .भाव पड़ता ह,ै यह काल भी ऐसा ही रहा, उस समय क> शासन .णाली का .भाव इतना गहरा था िक फल का .ितपादन करने वाले 9ह: तथा न8): को समान Sप से �वीकार कर िलया गया। 9ह: क> िम)ता, श)तुा, उ@च�व, नीच�व, BिCय: आिद के प2रपे8 म1 िवचार भारत म1 कौिट"य नीित के .चार के प]ात ्ही िकया गया। अत: यह कहा जा सकता ह ैिक �योितष सािह�य इस यगु म1 शशैवकाल म1 ही था तथा धीरे-धीरे उ�थान क> ओर बढ़ रहा था।

    1.3.3 वैिदक काल म � योितष िस�ा� त ऋ;वदे म1 वष� को 12 चा��मास: म1 िवभV िकया गया ह ैतथा सौरमास व चा��मास का सम�वय करने के उG ेय से हर तीसरे वष� अिधकमास व मलमास जोड़ा गया ह।ै इसके अित2रV ऋ;वदे म1 सौर व चा�� मास का उ"लेख कई �थान: पर हTआ अत: �पCत: कहा जा सकता ह ै िक अिधकमास क> क"पना ऋ;वदे: से ही आयी थी। इसके अित2रV .sbयाकरण अगं म1 बारह मास: क> पिूण�माओ ं तथा अमाव�याओ ंके नाम: का उ"लेख भी िमलता ह।ै कई �थान: पर पिूण�माओ ंके नाम के आधार पर ही मास: का नाम के आए हi।

    ऋतु िवचार - ईसा पवू� 8,000 म1 वस�त ऋत ुको ही .ारंिभक ऋत ुमाना जाता था िक�त ुईसा पवू� 500

    म1 वषा� को .ारंिभक ऋत ुमाना जाने लगा, ऐसा तैिhरीय संिहता के 4/4/11 म1 उ"लेख ह।ै ऋ;वदे म1 भी ऋत ुशIद का .योग वष� के अथ� म1 हTआ ह।ै

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    तैिhरीय YाZण म1 वष� को प8ी माना ह ैतथा ऋतओु ंको उस प8ी के िविभ�न अगं बतात ेहTए कहा गया ह ैिक उस प8ी का िसर वस�त ऋतु, 9ी*म ऋत ुदािहना पंख, शरद ऋत ुबायां पंख, वषा� ऋत ुपूँछ तथा उसका म/य भाग हमे�त ऋत ुह।ै तैिhरीय संिहता म1 ऋत ुएक ऐसे पा) के Sप म1 विण�त ह ैिजसके दोन: ओर मखु हi तथा इन मखु: का िदशा 4ान किठन ह ै_य:िक वह सयू� पर िनभ�र ह।ै

    एक वष� म1 सौरमास का आरंभ, च��मास के साथ ही होता ह ैतथा .थम वष� के सौरमास का आरंभ श_ुला अCमी को होना माना गया ह।ै

    शतपथ YाZण 1/6/3 म1 ऋत ुके संबंध म1 आkयान िमलता ह।ै इसके अनसुार सिृC क> रचना के बाद .जापित के पव� (अहोरा)) िशिथल हो गए थे। यहाँ .जापित से ता�पय� संव�सर से िलया गया ह ैतथा पव� का अथ� अहोरा) क> दोन: संिधय: अथा�त ्पिूण�मा, अमाव�या तथा ऋत ुआरंभ ितिथ से िलया गया ह।ै

    अयन िवचार - विैदक काल म1 ही अयन के िवषय म1 भी चचा�ए ंहोने लगी थW। ऋ;वदे म1 अयन शIद का

    .योग कई �थान: पर हTआ ह ैपर�त ुयह �पC उ"लेख नहW था िक यह अयन शIद सयू� के उhरायण व दि8णायन के संदभ� म1 ही ह ैअथवा कुछ और।

    विैदक काल म1 ही शपपत YाZण के xोक

    2/1/3 के अनसुार िशिशर से 9ी*म ऋत ुतक उhरायण तथा वषा� से हमे�त ऋत ुतक दि8णायन होता था।

    इसी विैदक काल क> अिंतम शतािIदय: म1 हमे�त ऋत ुम/य से 9ी*म ऋत ुम/य तक उhरायण माना जाने लगा था।

    तैिhरीय संिहता के म)ं त�मादािद�य: ष�मासो दि8णनेैित षडुhरेण से सयू�देव के छ: मास उhरायण तथा छ: मास दि8णायन �पC होता ह।ै

    म)ैायणी उपिनषद ्म1 उदग,् अयन व उhरायण शIद अिधकांश �थान: पर .यVु हTए हi। उदग ्व अयन के पया�य दवेयान, व दवेलोक हi तथा दि8णायन के पया�य िपतलृोक व िपतयृाण कह ेगए हi।

    अत: यह �पC ह ै िक विैदक काल क> अि�तम शतािIदय: म1 उhरायण व दि8णायन का �योितष के प2र.ेy य म1 सyूम अ/ययन होने लगा था।

    वष� िवचार - ऋ;वदे के दसव1 म�डल म1 'समा’ शIद

  • 10

    शतपथ YाZण 6/7/1/18 के अनसुार िजसम1 ऋतएु ँवास करती हi, वह वष� या संव�सर कहा जाता ह।ै

    यगु - विैदक काल म1 यगु शIद से ता�पय� काल मान से िलया जाता था पर�त ुऋ;वदे म1 इसका अथ� क"प से नहW िलया जाकर सतयगु या

  • 11

    दि8णायन दो भाग: म1 िवभV ह।ै यह कहा जा सकता ह ैिक ईसापवू� 500-400 म1 भारतीय �योितष म1 9ह: के gमण के संबंध म1 मkुयत: दो ही िसHा�त .चलन म1 थे। .थम िसHा�त के अनसुार पlृवी के�� थी तथा वाय ुके कारण 9ह: का gमण होता था तथा दसूरा समुSे को के�� मानकर �वाभािवक Sप से 9ह: का gमण मानता था। विैदक काल म1 ही �योितष को वदेSपी पSुष शरीर का ने) कहा जाने लगा, इसका ता�पय� यह भी ह ै िक िजस .कार मानव शरीर ने): के अभाव म1 अधरूा ह ै ठीक उसी .कार �योितष के 4ान के िबना अ�य िवषय: का 4ान अधरूा व अनपुयोगी ह।ै इस काल म1 �योितष को न केवल bयवहार के BिCकोण से उिचत माना गया बि"क आ�मक"याण करने वाला भी माना गया।

    इस संदभ� म1 आचाय� गग� का यह कथन हi िक �योितष चR सपंणू� जगत के शभु व अशभु को bयV करन ेवाला ह ैअत: जो �योितष शाm का 4ाता ह,ै वह परम क"याण को भी .ाe करता ह।ै ईसा 100 से 300 तक के काल म1 �योितष शाm क> िवशेष उ�नित हTई। कृितका न8) म1 गणना करने पर रािशय: के Rम िनधा�रण म1 किठनाई को दखेते हTए अिzनी न8) से गणना .चलन म1 आई तथा रेवती न8) क> संपात तारा के Sप म1 �वीकृित हTई। इस काल म1 अठारह आचाय� हTए िज�ह:ने अपने िदbय 4ान से �योितष के िसHा�त 9ंथ: क> रचना भी िनमा�ण िकया।

    'सूय� िपतामहो �यसो विस�ोऽि�: पराशर:।

    क�यपो नारदो गग" मरीिचम�नुङ्िगरा:।।

    लोमश: पौिलश*ैव ,यवनो यवनो भृगु:।

    शौनकोऽ/ादशा*ैते 0योित:शा1 2व3�का।।

    ऋिष का यप िवरिचत उपयु�V xोक के अनुसार सयू�, िपतामह, bयास, विस{, अि), पाराशर, का यप, नारद, गग�, मरीिच, मनु, अिंगरा, लोमश पिुलश, @यवन, यवन, भगृ ु तथा शौनक ये अठारह आचाय� �योितषशाm के .वत�क: म1 हi।

    ऋिष पाराशर ने उपयु�V विण�त अठारह आचाय| के अित2रV 'पलु��य; नामक आचाय� को भी इनम1 सिPमिलत िकया ह ैअत: ऋिष पाराशर के अनसुार उ�नीस आचाय� �योितष के .वh�क आचायr म1 हi। इसके िवपरीत नारद ने उपयु�_ त विण�त अठारह आचायr म1 सयू� को गणना म1 नहW िलया, उनके अनसुार सतरह आचाय� ही �योितष के .वत�क हi तथा इन आचायr म1 कुछ आचाय� तो िसHा�त के रचियता हi तथा कुछ संिहता तथा िसHा�त दोन: के ही रचियता हi।

    कौिट"य अथ�शाm के अ/ययन से पता चलता ह ै िक इस काल के �योितषी हर .कार के �योितष व अ�य .कार के गिणत: के पणू� 4ाता थे। �व\न के फल, अगं फड़कना, शभुकमr के महुFत� तथा शकुन शाm आिद सभी से प2रिचत थे।

  • 12

    1.4 सारांश

    4ान के Rिमक िवकास क> आधारिशला के मजबतू हो जाने के बाद मन*ु य क> सP भावक शिV और लेखन शिV का िवकास अव य हTआ होगा। सिृC क> उ� पिh के साथ ही मन*ु य न े 9ह न8): का अ/ ययन भी िकया रहा होगा। .ाचीन समय म1 � योितष को भी धम� माना जाता था। वदे, आर� यक, YाZण का, उपिनषद,् ण�क और अ� य धािम�क रचनाओ ं तथा परवतa सािह� य म1 भी � योितष शा� ) के त� � व पाये जाते हi। विैदक काल म1 � योितष शा� ) के त� � व पाये जाते हाै विैदक काल के � योितष िसHा� त म1 ऋत ु िवचार, अयन िवचार, वष� िवचार, यगु िवचार, 9ह क8ा िवचार, न8) िवचार, यगु िवचार, 9ह क8ा िवचार, न8) िवचार आिद सिPमिलत ह।ै � योितष का वदेा� त के Sप म1 .चलन आिदकाल या पौरािणक काल से ही ह।ै � योितष से संबंिधत म� ) वदे: म1 पाये जाते हi। ऋ; वदे म1 36, यजवुदे म1 44 तथा अथव�वदे म1 कुल िमलाकर 162 से भी अिधक म� ): म1 � योितषीय चचा� ह।ै गगा�चाय� के अनसुार � योितषशा� ) इस सP पणू� जगत ् के शभु और अशभु क> संभावनाओ ंको b य_ त करता ह।ै वस� त के आरP भ से वष� के आरP भ होने का संकेत ऋ; वदे म1 .ा\ त ह।ै

    इस .कार � योितष का इितहास इतना दबु�ल नहW ह।ै अत: इस इकाई के अ/ ययन से आप � योितषशा� ) के अ/ ययन क> Rिमक िवकास या)ा को समझा सक1 ग।े

    1.6 अ� यास � न

    सही िवक" प चनुकर उ� तर दीिजए

    1 नाड़ी का अ/ ययन िकन वदेा� त म1 िविहत ह ै- (क) िश8ा (ख) क" प (ग) � योितष (घ) b याकरण

    2 कोड़कोड़ी आ}हा शI द िकस सम.दाय क> मा� यता का ह ै- (क) बौH (ख) जनै

    (ग) िभ8 ु (घ) कोई नहW

    3 शा� ): क> संk या ह ै- (क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 9

  • 13

    4 .ारिPभक ऋत ुकौन ह ै- (क) िशिशर (ख) हमे� त

    (ग) बस� त (घ) 9ी* म

    5 ऋतओु ंके संबंध म1 आk यान िकस YाZण म1 िमलते हi - (क) गोपथ (ख) शतपथ

    (ग) शांखायन (घ) ऐतरेय

    अ� यास �� न� के उ� तर

    1 ग, 2 ख , 3 ग, 4 ग, 5 ख

    1.7 संदभ� �ंथ सूची

    1 � योितष शा� ) का इितहास – पं; सरेुश च� � िम चौरखP भा .काशन वाराणणसी

    2 � योितष शा� ): का इितहास – डॉ; ताराच� � – चौखP भा .काशन वराणसी

    3 सं� कृत शा� ): का इितहास – डॉ; बलदवे उपा/ याय, चौखP भासरु भारती .काशन, वाराणसी

    4 विैदक सं� कृित का इितहास – काb यमाला िसरीज

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    इकाई 2

    फिलत � योितष – सं"ा �करण के अ& तग(त, न)�, रािश, वार, योग, करण *ह, का प�रचय

    इकाई क� �परेखा

    2.1 .�तावना 2.2 उG े य 2.3 न8) प2रचय 2.4 रािश िवचार 2.5 वार िवचार 2.6 योग िवचार 2.7 करण िवचार 2.8 9 ह प2रचय 2.9 सारांश 2.10 शI दावली 2.11 अJ यास . न 2.12 िनबंधा� मक . न 2.13 संदभ� 9ंथ सचूी

    2.1 ��तावना

    इसके पवू� क> इकाई म1 आपने ज ् योितष के Rिमक इितहास का अ/ ययन िकया ह।ै इस इकाई के अ� तग�त आप न8): , रािशय:, सम� त वार:, योग:, करण: एव ंनव9ह: का प2रचया� मक अ/ ययन करते हTए उनके काया�� मक � वSप का 4ान कर1ग।े न8): क> संk या 27 मानी गयी ह,ै न8): म1 ही उनके � वामी दवेता आिद होते हi। न8): का समहू रािश कहलाता ह।ै बारह रािशयां होती ह।ै इन बारह रािशय: के � वामी 9ह भी होते हi। इन 9ह: क> आपसी म)ैी और श)तुा तथा समभाव भी होते हi। वार, योग, एव ंकरण का भी समावशे पंचाग म1 उतना ही मह� � वपणू� ह।ै फल� वSप 9ह: का खगोलीय एव ं� योितष प2रचय .ा\ त हो तो कु� डली के फलादशे म1 भी पया�\ त सहायता िमलती ह।ै

  • 15

    अत: इस इकाई का अ/ ययन करने के बाद आप पंचाग संबधंी b यव� थाओ ंसे लेकर सम� त आयाम: का 4ान करा सक1 ग।े

    2.2 उ�े य

    ितिथ वारािद, न8) करण योगािद वण�न से संबंिधत इस इकाई के अ/ ययन के प]ात ्आप - 1 न8): का � वSपा� मक 4ान करा सक1 ग।े 2 रािशय: का काया�� मक � वSप जान सक1 ग।े 3 योग एव ंकरण के 4ान से प2रिचत ह:ग।े 4 9ह: का खगोलीय एव ं� योितष प2रचय बता सक1 ग।े 5 � योितष शा� ) म1 िनिम�त होने वाले पंचाग के .मखु िवषय: को समझा सक1 ग।े

    2.3 न�� प�रचय

    प2रचय - विैदक �योितष को वदे: का ने) माना जाता ह ैतथा इसी Rम म1 न8) फिलत अथवा �योितष गणना का आधार �तP भ कह ेगए हi। ''न8) न 8रित, न सरित: इित न8):’’ अथा�त ्जो न चलता ह ैन िहलता ह,ै वही न8) ह।ै िकसी bयिV के ज�म के समय च� �मा िजस न8) म1 gमण कर रह ेहोते हi वही bयिV का ज�म न8) कहलाता ह।ै ज�म न8) के �वामी 9ह क> दशा ही bयिV क> .थम महादशा होती ह।ै न8) चरण म1 ज�म के अनुसार भVु व भो;य दशा का भी िनण�य होता ह।ै

    ज�म न8) से गणना करने पर न8): का िवभाजन Rमश: इस .कार होता ह ै-1. ज�म 2. संपत 3. िवपत 4. 8ेम 5. .�य2र 6. साधक 7. वध 8. िम)/म)ै 9. अितिम)।

    1. ज�म के समय च��मा िजस न8) पर होते हi वही ज�म न8) होता ह।ै

    2. संपत अथा�त ्संपदा दनेे वाला। ज�म न8) से दसूरा न8) संपत न8) कहलाता ह।ै यिद bयिV का ज�म न8) कृितका ह ैतो रोिहणी उसका संपत न8) होगा।

    3. िवपत - िवपत का अथ� ह ैिवपिh या कC दनेे वाला। ज�म न8) से तीसरा न8) िवपत होता ह।ै यिद bयिV का ज�म न8) कृितका ह ैतो मगृिशरा उसका िवपत न8) होगा।

    4. 8ेम - 8ेम का अथ� ठीक-ठाक अथवा म/यम फलदायी माना जा सकता ह।ै ज�म न8) से चौथा न8) 8ेम कहलाता ह।ै यिद bयिV का ज�म कृितका ह ैतो आ�ा� उसका 8ेम न8) होगा।

    5. .�य2र - .�य2र का अथ� ह ैश)।ु ज�म न8) से पाँचवां न8) .�य2र न8) कहलाता ह।ै यिद bयिV का ज�म न8) कृितका ह ैतो पनुव�स ुउसका .�य2र न8) होगा।

  • 16

    6. साधक - साधक अथा�त ्साधने वाला या िसH करने वाला। ज�म न8) से छठा न8) साधक न8) कहलाता ह।ै यिद bयिV का ज�म न8) कृितका ह ैतो प*ुय उसका साधक न8) होगा।

    7. वध - वध का अथ� म�ृय ु अथवा म�ृयतुु"य कC.द। ज�म न8) से सातवां न8) वध न8) कहलाता ह।ै यिद bयिV का ज�म न8) कृितका ह ैतो आxेषा उसका वध 8) होगा।

    8. िम) - िम) का अथ� ह ैकC या मिु कल म1 साथ दनेे वाला। bयिV के ज�म न8) से आठवां न8) उसका िम) कहलाता ह।ै यिद bयिV का ज�म न8) कृितका ह ैतो मघा उसका िम) न8) होगा।

    9. अितिम) - अितिम) का अथ� ह ैिम) से भी अिधक सहयोग करने वाला। bयिV के ज�म न8) से नवां न8) उसका अित िम) न8) कहलाता ह।ै यिद bयिV का ज�म न8) कृितका ह ैतो पवूा�फा"गनुी उसका अितिम) न8) होगा।

    इसी Rम म1 दसवां न8) पनु: ज�म न8) होगा।

    िकसी bयिV के ज�म से लेकर म�ृय ुतक होने वाले सोलह सं�कार: म1 भी न8): का िवशषे मह� � व ह।ै सव�.थम bयिV के ज�म न8) से ही उसका नाम िनकाला जाता ह।ै .�येक न8) म1 चार चरण होते हi। एक न8) का मान 130-20’ होता ह,ै अत: 13020’ / 4 =3020’। अथा�त ्.�येक न8) के एक चरण का मान 3020’ होता ह।ै एक रािश म1 सवा दो न8) होते हi।

    उदाहरणाथ� -

    1 रािश = 300

    300 = 13020’ 1 न8)

    = 13020’ दसूरा न8)

    = 03020’ तीसरे न8) का एक चरण

    उपयु�V िवभाजन मेष, िसंह व धन ुरािश म1 होता ह।ै अ�य रािशय: म1 न8): का िवभाजन िभ�न होता ह।ै न8) के एक चरण का मान 30-20’’ होने से 300 क> एक रािश म1 कुल िमलाकर नौ चरण पड़ते हi।

    इसे इस सा2रणी से समझ सकते हi -

    नामा�र

    R सं. रािश नामा8र न8) एव ंचरण

  • 17

    1. मषे च,ू चे, चो, ला, ली,लू, ले, लो, अ

    अिzनी-4, भरणी-4, कृितका-1

    2. वषृभ इ, उ, ए, ओ, वा,वी, व,ू व,े वो

    कृितका-3, रोिहणी-4, मगृिशरा-2

    3. िमथनु क, क>, कु, घ, ड़

    छ, के, को, ह

    मगृिशरा-2, आ�ा�-4, पनुव�स-ु3

    4. कक� ही, हT, ह,े हो, डा,डी, डू, डे, डो

    पनुव�स-ु1, प*ुय-4, आxेषा-4

    5. िसंह मा, मी, म,ू मे, मो

    टा, टी, टू, टे

    मघा-4, पफूा.-4, उफा.-1

    6. क�या टो, प, पी, प,ू ष,ण, ढ, पे, पो

    उफा-3, ह�त-4, िच)ा-2

    7. तलुा रा, री, S, रे, रो,

    ता, ती, त,ू ते

    िच)ा-2, � वाती-4, िवशाखा-3

    8. विृ]क तो, ना, नी, न,ू ने,नो, या, यी, य ू

    िवशाखा-1, अनरुाधा-4, �ये{ा-4

    9. धन ु ये, यो, भ, भी, भ,ू घ, फ, ढ़, ढे

    मलू-4, पषूा.-4, उषा.-1

    10. मकर भो, जा, जी, खी ख,ूखे, खो, ग, गी

    उषा.-3, वण-4, धिन{ा-2

    11. कंुभ ग,ू गे, गो, सा, धिन{ा-2, शतिभषा-4, पभूा.-3

  • 18

    सी,स,ू स,े सो, दा

    12. मीन दी, द,ू थ, झ, ञ,द,े दो, चा, ची

    पभूा.-1, उभा.-4, रेवती-4

    पाया -

    ज�म न8) के आधार पर ही पाया का िनधा�रण होता ह ैिजसे हम िनPन सा2रणी से समझ सकते हi-

    पाया सा8रणी

    पाया न�� प8रणाम

    चाँदी का पाया आ�ा�, पनुव�स,ु प*ुय, आxेषा,मघा,पवूा�फा"गनुी, उhराफा"गनुी, ह�त,िच)ा, � वाती

    चाँदी के पाये म1 ज�म शभु माना जाता ह ै

    लोह ेका पाया रोिहणी, मगृिशरा लोह े के पाये म1 ज�म अशभु एव ंहािनकारकमाना जाता ह।ै

    ताँबे का पाया िवशाखा, अनरुाधा, �ये{ामलू, पवूा�षाढ़ा, उhराषाढ़ा, वण, धिन{ा, शतिभषा

    ताँबे के पाये म1 ज�म शभु माना जाता ह ै

    सोने का पाया पवूा�भा�पद, उhराभा�पद, रेवती, अिzनी, भरणी, कृितका जाता ह ै

    सोने के पाये म1 ज�म म/यम शभु माना

  • 19

    न�� प8रचय -

    न8): के �वSप एव ं.भाव को जानने के िलए हम1 यह देखना होता ह ै िक न8) के �वामी 9ह और �वामी दवेता कौन हi और न8) िकस रािश म1 पड़ रहा ह?ै इसी .कार न8) का िच�ह भी उतना ही मह� � व रखता ह।ै ज�म न8) का .भाव bयिV क> काय� .णाली और काय� 8े) पर दखेा जा सकता ह।ै

    1. अि:नी

    अिzनी न8) मषे रािश म1 पड़ता ह ैऔर इसके �वामी 9ह केत ुहi। अत: अिzनी न8) म1 मंगल और केतु का .भाव दखेने को िमलता ह।ै आकाश म1 यह न8) घोड़े के िसर के समान िदखता ह।ै घोड़ा Bढ़ता और ऊजा� का .तीक ह।ै अत: यह सभी गणु अिzनी न8) म1 िनिहत होते हi। मगंल का .भाव जहॉ ंनेत�ृव 8मता दतेा ह ैवहW केतकेु कारण अधीरता मkुय गणु हो जाता ह।ै केत ुमो8 के .तीक हi और आ/या�म से इ�ह1 जोड़ा गया ह,ै इसिलए ये धम� .धान न8) कहा गया ह।ै

    अिzनी न8) के �वामी दवेता सयू�प)ु अिzनी कुमार हi, जो दवेताओ ंके िचिक�सक हi। इसिलए इलाज करने का गणु भी इस न8) म1 होता ह।ै

    2. भरणी

    भरणी न8) मेष रािश म1 पड़ता ह ैऔर इसके �वामी 9ह शRु हi। मगंल और शRु के सिPमिलत .भाव के कारण यह न8) ऊजा� और कला का अ,ुत िमण िलए हTए ह।ै यह न8) यो;यता और उhरदािय�व क> पणू�ता दतेा ह ैऔर यही पणू�ता लyय .ािe क> ओर .े2रत करती ह।ै यह अथ� .धान न8) ह ैइसिलए भौितक सुख-सिुवधाओ ंक> .ािe के िलए आव यक कौशल यह न8) दतेा ह।ै भरणी के �वामी दवेता यम हi। यम bयिV के कम� और धम� के आधार पर ही उसक> योिन का िनधा�रण करते हi इसीिलए भरणी न8) म1 अ@छे और बरेु का भदे करने क> 8मता होती ह।ै

    3. कृितका

    कृितका न8) मषे तथा वषृभ रािश म1 संयVु Sप से पड़ता ह।ै इसके �वामी 9ह सयू� हi। मगंल, सयू� व शRु के .भाव के कारण उ@चकोिट क> सजृनशीलता, नेत�ृव 8मता व साहस इस न8) म1 पाया जाता ह।ै कृितका अथा�त ्काटने वाला। नाम के अनSुप ही यह न8) आ�म-िवxेषण क> .ेरणा दतेा ह।ै िजससे िक अपने �वभावगत दोष: को काटकर अलग कर िदया जाए और गणु: का िवकास िकया जाए।

    कृितका न8) के दवेता 'अि;न’ हi। वह अि;न जो िक िनयंि)त हो तो भोजन पकाने का काय� करती ह ैऔर अिनयंि)त हो जाए तो अपने ताप से जला भी दतेी ह,ै इसक> तेजि�वता िकसी भी काय� को द8ता से करने का गणु भी दतेी ह।ै अत: उपयु�V सभी िवशेषताए ंकृितका न8) म1 पाई जाती हi। काम .धान यह न8) अ�यिधक इ@छाओ ंको ज�म भी दतेा ह ैतथा साथ ही उनको परूा करने का साहस भी।

  • 20

    4. रोिहणी

    रोिहणी न8) वषृभ रािश म1 पड़ता ह ैऔर इसके �वामी 9ह शRु हi। च� �मा और शRु का सिPमिलत .भाव िलए हTए यह न8) सजृना�मकता समिृH तथा संप�नता का .तीक ह।ै 9ह मिं)म�डल क> रानी के रा�योिचत गणु इस न8) म1 िव!मान हi। च��मा क> क"पनाशीलता व शRु का सजृन िमलकर अनपुम रचना करने क> 8मता भर दतेे हi। अत: िनत नया सजृन तथा दोन: ही शभु 9ह: (शRु व च��मा का) का .भाव इस न8) का िवशषे गणु होता ह।ै इसका .तीक िच~ बैलगाड़ी ह ैजो धा�य ले जाती ह,ै अत: ऐzय� व संप�नता भी इस न8) को यहW से .ाe होती ह।ै रोिहणी न8) के �वामी दवेता YZा हi, िज�ह:ने इस पlृवी का िनमा�ण या सजृन िकया ह ै अत: पणू�त: यह न8) सजृन का एक उ�कृC उदाहरण ह।ै पौरािणक मा�यता ह ै िक रोिहणी च��मा क> ि.य प�नी हi और इस न8) म1 आने पर च��मा अपन ेकh�bय: को भलूकर असामा�य bयवहार करते हi। इसी कारण इस न8) म1 कh�bय: के .ित सजगता का भाव दरे से उ�प�न होता ह।ै च��मा वषृभ रािश म1 ही उ@च के होते हi, यह हम 9ह: के प2रचय के अ�तग�त अ/ययन कर1ग।े

    5. मृगिशरा

    मगृिशरा न8) वषृभ तथा िमथुन रािश म1 पड़ता ह।ै इसके �वामी 9ह मगंल हi अत: शRु, मंगल तथा बधु का सिPमिलत .भाव िलए हTए यह न8) िशCता, कोमलता तथा सकुुमारता का सिPमण ह।ै मगृिशरा म1 अ�वषेी व खोजी बिुH के साथ ही तक� शिV भी िनिहत ह।ै शRु व बधु के .भाव के कारण एक ओर अ,ुत सजृन कला िव!मान ह ैतो दसूरी ओर मगंल के साहस के कारण िवचार: को मतू� Sप दनेे क> 8मता भी िनिहत ह।ै वाणी क> िवनता जहाँ शRु व बधु के .भाव को दशा�ती ह ैवहW इसम1 कायरता का पटु नहW िमलता। मगृ क> भाँित भटकना और खोज करना इसम1 शािमल ह।ै मगृिशरा के �वामी दवेता सोम अथा�त ्अमतृ हi इसिलए इस न8) के मा/यम से दवेताओ ंका आशीवा�द .ाe होता ह।ै

    6. आ उव�रा शिV और राहT के भोग क> इ@छा का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 होता ह।ै आ�ा� का अथ� नमी से ह,ै यह नमी भावना�मक शिV को समझने म1 सहायता करती ह।ै दसूरे क> भावनाओ ंको समझने क> अ,ुत 8मता यह न8) दतेा ह।ै आ�ा� न8) के �वामी दवेता o� हi। o� का अथ� िवनाश व उसके बाद का प2रवत�न ह।ै अत: इस न8) म1 िनरंतर .यास Bढ़ िन]य व कठोर प2रम दखेने को िमलता ह।ै

    7. पुनव�सु

    पनुव�स ुन8) िमथनु व कक� रािश म1 पड़ता ह ैऔर इसके �वामी 9ह बहृ�पित हi। इस .कार बधु, बहृ�पित व च��मा का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 होता ह।ै बधु क> बिुH, बहृ�पित का आ/या�म व च� �मा

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    क> क"पनाशिV इस न8) का मह� � वपणू� िबंद ुह।ै बधु क> वाक्-पटुता क"पना को यथाथ� म1 बदलने का गणु िलए होती ह।ै इस न8) के �वामी दवेता माता अिदित हi। अिदित दवेताओ ंक> माता हi इसिलए इसी .भाव के कारण पालन-पोषण व दया भाव इस न8) के मह� � वपणू� गणु हi।

    8. पु=य -

    प*ुय न8) कक� रािश म1 पड़ता ह ैऔर इसके �वामी 9ह शिन हi। अत: शिन व च� �मा का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 होता ह।ै कोमल च��मा के िवचार: क> िनम�लता तथा चुंबक>य शिV व शिनदवे का धैय�, एका9ता, ि�थरता व किठन म इस न8) म1 िवशेष Sप से सिPमिलत होते हi। प*ुय शIद का अथ� ही ह-ै पोषण या पालन हार, इसीिलए इस न8) म1 भी दया व पोषण क> भावना होती ह।ै प*ुय न8) के �वामी दवेता बहृ�पित हi। पौरािणक मा�यताओ ंके अनसुार भगवान िशव ने बहृ�पित दवे को अमतृ त"ुय 9ह का दजा� िदया था अत: बहृ�पित के गणु: का भी .भाव इस न8) म1 िमलता ह।ै

    िवशेष - प*ुय न8) को न8)राज कहा जाता ह ैतथा इस न8) म1 सभी शभु काय� िकए जा सकते हi परंत ुयह न8) िववाह के िलए विज�त माना गया ह।ै

    9. आ>ेषा

    आxेषा न8) कक� रािश म1 पड़ता ह ैऔर इसके �वामी 9ह बिुH के कारक बधु हi। इस .कार इस न8) पर बधु व च� �मा का सिPमिलत .भाव रहता ह।ै क"पनाशिV का बिुHमhापूण� .योग इस न8) म1 पाया जाता ह।ै बिुH और क"पना का यही .योग तक� व दश�न क> ओर झकुाव बढ़ाता ह।ै आxेषा के �वामी अिह (अथा�त ्नाग) हi। धम�9�थ: क> मा�यतानसुार नाग भगवान िव*ण ुके समीप रहकर उनक> सेवा करते हi। इस न8) के सप� शिV से जड़ुाव के कारण यह रह�य का प2रचायक ह ैअत: पवूा�भास क> शिV भी आxेषा न8) म1 होती ह।ै अत: आसानी ये िकसी के .ित िवzास क> भावना भी इस न8) म1 नहW होती अथा�त ्इसम1 संदहे क> .विृh अिधक दखेने को िमलती ह।ै

    10. मघा

    मघा न8) िसंह रािश म1 पड़ता ह ैतथा इसके �वामी 9ह केत ुहi। इस .कार सयू� व केत ुका संयVु .भाव इस न8) म1 होता ह।ै 9ह: म1 राजा माने जाने वाले सूय�दवे का .भाव सhा क> इ@छा .दान करता ह ैतथा मघा का अथ� भी अिधकार संप�नता ह ैअत: इस न8) म1 अिधकार पान ेक> इ@छा अिधक होती ह।ै आिथ�क उपलिIध से अिधक मान-सPमान पाने क> चाह इसम1 दखेी जा सकती ह।ै मघा न8) के �वामी दवेता िपतगृण हi। िपत ृ अथा�त ् हमारे व े पवू�ज जो शांत हो चकेु हi इसिलए इस न8) म1 परंपराओ ं व मा�यताओ ंके .ित अटूट िवzास िमलता ह।ै इसके साथ ही राजसी गणु: के कारण अिधकार व सhा का गव� भी इस न8) म1 िमलता ह।ै

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    11. पूवा�फा@गुनी

    पवूा�फा"गनुी न8) िसंह रािश म1 पड़ता ह ैतथा इसके �वामी 9ह शRु हi। शRु और सूय� का .भाव िलए हTए यह न8) रचना�मकता तथा .भ�ुव का सिPमण ह।ै यह सम�वय कायr के .ित िनर�तर सोच, खोज तथा सजृन को उजागर करता ह।ै शRु का .भाव bयिVय: को अपनी ओर आकिष�त करता ह ै तथा समाज म1 सौहा�� फैलाने का काय� सयू�दवे का .भाव करता ह।ै इि��य सुख-भोग तथा कला क> ओर oिच भी इस न8) म1 िमलती ह।ै

    पवूा�फा"गनुी न8) के दवेता 'भग’ हi िजसका अथ� आनंद से िलया जाता ह।ै 'भग’ दांप�य सखु दतेे हi। धम�शाm: के अनुसार भगवान शकंर का िववाह इसी न8) म1 हTआ था। इस न8) म1 सजृन क> अपार 8मता िछपी हTई होती ह ैतथा सोच-िवचार म1 िनरंतरता बनी रहती ह।ै अत: बड़ी खोज व िसHा�त: के .ितपादन क> 8मता भी इस न8) म1 िमलती ह।ै

    12. उ3राफा@गुनी

    उhराफा"गनुी न8) िसंह तथा क�या रािश म1 पड़ता ह।ै इसका .थम चरण िसंह रािश तथा अ�य तीन चरण क�या रािश म1 पड़ते हi। इस न8) के �वामी 9ह सयू� हi अत: सयू� व बधु का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 होता हi। सयू� आ�मा के कारक हi तथा बधु बिुH के। 4ान, दानशीलता व स�जनता के साथ ही साथ शासक बनने क> इ@छा इस न8) म1 िमलती ह।ै उ@च मह�वाकां8ा तथा बाधाओ ं को राजा के समान चनुौती मानने का गणु इस न8) म1 समािहत ह।ै

    उhराफा"गनुी न8) के �वामी दवेता आय�मान हi, जो सरं8ण के दवेता कह ेजाते हi अत: िपता के समान संर8ण दनेे का भाव भी इस न8) क> िवशेषता ह।ै

    13. हAत

    ह�त न8) क�या रािश म1 पड़ता ह ैतथा इसके �वामी 9ह च� �मा हi। क�या रािश के �वामी बधु हi। अत: बधु व च� �मा का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 दखेने को िमलता ह।ै बुिH व क"पनाशीलता, बिुH क> शHुता तथा प2रप_वता के साथ ही िवपरीत प2रि�थित म1 धयै� रखना इस न8) का मkुय गणु ह।ै ह�त न8) के �वामी दवेता सिवत ृ हi। सिव) अथा�त ् सूय� भगवान जो नैसिग�कता व मौिलकता से प2रपणू� सजृना�मकता को मतू� Sप म1 बदलने का काम करते हi। सूय�दवे आ�मा के कारक हi, अत: सिव) क> .बल आि�मक शिV का .भाव भी इस न8) म1 िमलता ह।ै

    14. िच�ा

    िच)ा न8) क�या तथा तलुा रािश म1 पड़ता ह।ै िच)ा के .थम दो चरण क�या रािश तथा अिंतम दो चरण तलुारािश म1 पड़ते हi। इसके �वामी 9ह मगंल हi। अत: मगंल, बधु व शRु का सिPमिलत .भाव इस न8)

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    म1 दखेने को िमलता ह।ै शRु क> रचना�मकता, बधु का बिुH कौशल तथा मगंल का असाधारण उ�साह, साधारण व�तओु ंक> भी असाधारण .�तिुत का .दश�न इस न8) को .दान करते हi। .ेरणा लेकर काय� करके आग ेबढ़ना इस न8) के दखेने को िमलता ह।ै

    इस न8) के �वामी दवेता �वCा अथा�त ्िवzकमा� हi, जो इस YZा�ड के �थपित (आधिुनक प2रपे8 म1 आिक� टे_ट) हi तथा सुंदर, भbय और क"पनातीत भवन: के िनमा�ता हi। अत: रचना�मकता इस न8) म1 दखेने को िमलती ह।ै

    15. A वाती

    � वाती न8) तलुा रािश म1 पड़ता ह ै तथा इसके �वामी 9ह राहT हi। � वाती न8) म1 शRु व राहT का सिPमिलत .भाव देखने को िमलता ह।ै शRु मीठा बोलने वाले तथा राहT कूटनीित4 हi। अत: भावनाओ ंक> .धानता व उिचत समय पर सही िRया-.ितRया दनेे क> िवशषेता इस न8) म1 दखेने को िमलती ह।ै राहT रह�य हi तथा शRु 4ानी, अत: खोजी .विृh, िज4ासाए ँतथा 4ान नवीन िवचार: को खलेु मन से �वीकार करना इस न8) म1 पाया जाता ह।ै

    � वाती के �वामी दवेता वायु हi, जो हवा के �वामी हi। कायr म1 वाय ु क> तरह साहस िदखाना तथा उ�साही बने रहना इस न8) म1 िवशेष Sप से पाया जाता ह।ै

    16. िवशाखा

    िवशाखा न8) तुला तथा विृ]क रािश म1 पड़ता ह ैतथा इसके �वामी 9ह बहृ�पित हi। इसके तीन चरण तलुा रािश म1 तथा अ�य एक चरण विृ]क रािश म1 पड़ता ह।ै अत: इस न8) पर शRु, मगंल तथा बहृ�पित का सिPमिलत .भाव पड़ता ह।ै न8) के �वामी 9ह बहृ�पित वा_कला, मगंल ऊजा� तथा शRु लyय .ािe के िलए .यास दते ेहi। योजनाबH काम करन ेका ढंग, Bढ़-िन]य तथा आशावादी BिCकोण इस न8) क> मkुय िवशषेताओ ंम1 सिPमिलत ह।ै

    िवशाखा न8) के �वामी दवेता अि;न व इ�� हi। अि;न व इ�� कभी लyय से भटकाते हi तो कभी लyय के .ित अ�यिधक समप�ण का भाव दतेे हi।

    17. अनुराधा

    अनरुाधा न8) विृ]क रािश म1 पड़ता ह ैतथा इसके �वामी 9ह शिनदवे हi इसिलए इस न8) म1 मगंल तथा शिनदवे का सिPमिलत .भाव रहता ह।ै इसम1 िज4ासा, भावनाओ ंव मम� को समझना, भिूम से .ेम करना शािमल हi। शिनदवे क> अपने िसHा�त: पर अटल रहन ेक> .विृh तथा मगंल का िन]य इस न8) म1 दखेने को िमलता ह।ै अनरुाधा न8) के �वामी दवेता िम) हi। इनका पणू� .भाव अनुराधा न8) म1

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    दखेने को िमलता ह।ै अत: इस न8) म1 सभी से िम) के समान bयवहार करने क> िवशेषता दखेने को िमलती ह।ै

    18. 0ये�ा

    �ये{ा न8) विृ]क रािश म1 पड़ता ह।ै इस न8) के �वामी 9ह बधु हi अत: बधु व मगंल का सिPमिलत .भाव इस न8) पर होता ह।ै बधु बिुHमान हi तथा मगंल उ�साही अत: बौिHक .खरता का उ�साह के साथ िमण व िRया�वयन इस न8) क> िवशेषता ह।ै �ये{ा का शािIदक अथ� ह ैबड़ा अत: इस न8) म1 उhरदािय�व संभालने क> भावना अिधक रहती ह ैतथा मानिसक प2रप_वता भी ज"दी ही आ जाती ह।ै �ये{ा न8) के �वामी दवेता दवे योHा इ�� हi। अत: योजनाबH रणनीित इस न8) क> .मखु िवशषेता बन जाती ह ैपौरािणक कथाओ ं के अनसुार �ये{ा च��मा क> सबसे बड़ी रणनीित और च��मा उनक> उपे8ा करके अत: इस न8) म1 उपे8ा का भाव अिधक रहता ह।ै

    19. मूल

    मलू न8) धन ुरािश म1 पड़ता ह ैतथा इस न8) के �वामी 9ह केत ुहi। गoु तथा केत ुका सिPमिलत .भाव इस न8) पर होता ह।ै मलू का शािIदक अथ� ह,ै जड़ के साथ। इसके साथ ही केत ुव गoु से संबंध होने के कारण आ/या�म भी इस न8) म◌ेे◌ं दखेने को िमलता ह।ै मलू व जड़ होने के कारण िवषय: क> गहराई भी इस न8) म1 दखेने को िमलती ह।ै इस न8) को सं�थापक न8) (अथा�त ्नWव डालने वाला) भी कहा जाता ह।ै केत ुका संबंध उ@चाटन से भी ह ैअत: इस न8) म1 उ@चाटन तथा स�यवािदता भी रहती ह।ै

    मलू न8) के �वामी दवेता नैऋित हi, जो िवनाश क> दवेी मानी जाती हi। उनके इस .भाव के कारण इस न8) म1 Rोध क> अिधकता रहती ह ैिजसक> वजह से िहसंा क> .विृh भी ज�म ले लेती ह।ै

    20. पूवा�षाढ़ा

    पवूा�षाढ़ा न8) धन ुरािश म1 पड़ता ह।ै इसके �वामी 9ह शRु हi। अत: बहृ�पित व शRु का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 िमलता ह।ै बहृ�पित दवेगoु हi तथा शRु द�ैय गoु हi अत: दो गoुओ ंके .भाव के कारण इसम1 4ान व बिुHमhा अिधक िमलती ह।ै मह� � वकां8ा व िजजीिवषा भी इसम1 अिधक िमलती ह।ै गoुओ ंके .भाव का एक अ�य उदाहरण यह होता ह ैिक इस न8) म1 बात: व तlय: के सार को 9हण करने क> 8मता होती ह।ै

    पवूा�षाढ़ा न8) के �वामी दवेता आप हi, जो जल के पया�य हi, अत: जल क> भाँित �व@छता व िनम�लता का भाव भी इस न8) म1 दखेने को िमलता ह।ै कभी-कभी अहकंार क> भावना भी जाती ह।ै

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    21. उ3राषाढ़ा

    उhराषाढ़ा न8) धन ुतथा मकर रािश म1 पड़ता ह।ै इसका अिंतम चरण धन ुरािश म1 तथा अ�य तीन चरण मकर रािश म1 पड़ते हi। उhराषाढ़ा न8) के �वामी 9ह सयू� हi अत: सयू�, बहृ�पित व शिन का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 दखेने को िमलता ह।ै सयू�दवे सकारा�मक सोच रखने वाले, शिनदवे दाश�िनक व प2रमी हi। दाश�िनकता के साथ सकारा�मक सोच से कायr का िRया�वयन करना इस न8) का िवशषे गणु होता ह।ै सयू� के .भाव के कारण bयिVगत .यास क> अपे8ा सामिूहक .यास क> भावना भी इस न8) क> िवशषेताओ ंम1 शािमल ह।ै िवषम प2रि�थितय: पर िवजय पाने क> कोिशश भी इसम1 भली-भाँित दखेी जा सकती ह।ै उhराषाढ़ा न8) के �वामी दवेता धम� के दस प)ु िवzेदवे हi तथा व ेइस न8) पर अपना पणू� आशीवा�द रखकर सखु .दान करते हi। सयू�दवे क> Bढ़ता व ि�थरता तथा शिनदवे क> आ/याि�मक एका9ता कभी-कभी िजद का Sप भी ले लेती ह।ै

    22. Cवण

    वण न8) मकर रािश म1 पड़ता ह ैतथा इसके �वामी 9ह च� �मा हi अत: इस न8) पर शिन व च� �मा का सिPमिलत .भाव होता ह।ै वण शIद का अथ� ह-ै सनुना। अत: सनुने के मह� � व क> समझ, गभंीरता व सनुकर सीखने क> लालसा इसम1 सदवै बनी रहती ह।ै इसके अित2रV इसम1 संगीत, कला क> ओर आकष�ण भी बना रहता ह।ै

    च��मा क> अिभbयिV व शिन क> एका9ता के कारण 4ान का अिधकािधक िव�तार भी इस न8) म1 िमलता ह।ै महुFत� शाm के अनुसार इस न8) म1 शoु िकया गया काय� अव य पणू� होता ह।ै

    वण के �वामी दवेता सिृC के पालनकता� िव*ण ुहi अत: इस न8) म1 िनयंि)त �वभाव तथा सजगता का गणु दखेने को िमलता ह।ै

    23. धिन�ा

    धिन{ा न8) मकर तथा कंुभ रािश म1 पड़ता ह।ै इसके दो चरण मकर तथा दो चरण कंुभ रािश म1 पड़ते हi। धिन{ा न8) के �वामी 9ह मगंल हi अत: शिन व मगंल का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 दखेने को िमलता ह।ै शिनदवे क> एका9ता व मगंल क> तीyणता इस न8) म1 दखेी जा सकती ह।ै

    .खर बिुH, संवदेनशीलता तथा आ�म िवzास इस न8) के मkुय गणु हi।

    धिन{ा न8) के �वामी दवेता अCवस ुहi जो सौरम�डल क> ऊजा� व .काश के देवता हi। वसओु ंक> ऊजा� व शिनदवे क> एका9ता िमलकर उ@च मह�वाकां8ाओ ंको सही राह पर चलकर परूा करने का साहस दतेे हi, अत: यह धिन{ा न8) क> .मखु िवशेषता बन जाता ह।ै

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    24. शतिभषा

    शतिभषा न8) कंुभ रािश म1 पड़ता ह ैतथा इसके �वामी 9ह राहT हi। शतिभषा न8) पर राहT व शिन का सिPमिलत .भाव रहता ह।ै शतिभषा का शािIदक अथ� ह-ै सौ िभषक अथा�त ्सौ शरीर िRया िव4ानी। अत: इस न8) का संबंध िनदान से ह।ै इसिलए न केवल शारी2रक बि"क हािद�क व आि�मक सम�याओ ंका िनदान भी इस न8) म1 मkुय Sप से पाया जाता ह।ै राहT के .भाव के कारण बात: को गeु रखना इस न8) म1 दखेा जा सकता ह,ै तथा शिन दवे के .भाव के कारण शकंाल ु.विृh भी देखने को िमलती ह।ै अत: सजगता व चौक�नापन दोन: ही बात1 इस न8) म1 दखेी जा सकती हi।

    इस न8) के �वामी दवेता सम�ु के �वामी वoण हi इस कारण गभंीरता, धैय� व गहन अ/ययन इस न8) क> िवशषेताओ ंम1 सिPमिलत हi।

    25. पूवा�भा एका9ता व प2रमी �वभाव के कारण िकसी का आय न लेना इस न8) क> िवशेषता होती ह।ै उव�र मि�त*क, 4ान व दाश�िनकता भी इसम1 दखेने को िमलती ह।ै नए माग� खोजकर उन पर चलना व कठोर प2रम से कायr का परूा करना भी इस न8) का गणु ह।ै

    इस न8) के �वामी दवेता अजकैपाद हi अथा�त ्एक पैर वाली बकरी इसी कारण िवषम प2रि�थितय: म1 भी सतत ्काय� करना इस न8) म1 दखेा जा सकता ह।ै

    26. उ3राभा

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    27. रेवती

    रेवती न8) मीन रािश म1 पड़ता ह ै तथा इसके �वामी 9ह बधु हi। इस कारण बधु व बहृ�पित का सिPमिलत .भाव इस न8) म1 दखेने को िमलता ह।ै बधु क> बौिHक .खरता तथा बहृ�पित के 4ान के कारण जीवन के उजले प8 क> ओर दखेना इस न8) का �वभाव ह।ै परोपकार क> भावना, सJयता, सं�कृित व आ/या�म क> ओर झकुाव इस न8) म1 दखेने को िमलता ह।ै

    रेवती न8) के �वामी दवेता पषूण हi, िजनक> .विृh .काश फैलाना ह ैअत: अ@छी सलाह दनेा तथा दसूर: क> सम�याओ ंको हल करना इस न8) क> िवशेषता ह।ै

    2.4 रािश िवचार

    3600 के भचR म1 12 रािशयाँ होती हi अत: .�येक रािश का मान 300 होता ह।ै रािशय: क> .कृित तथा �वभाव आिद के आधार पर इनका वगaकरण िकया गया ह।ै

    रािशय: को िनPन आधार: पर वगaकृत िकया गया ह ै- (1) �वभाव (2) त� � व (3) िलंग (4) .कृित (5) वण� (6) िदशा (7) उदय (8) बल (9) िच�ह।

    (1) Aवभाव - रािशय: का �वभाव तीन .कार का माना गया ह-ै चर, ि�थर व ि

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    (3) िलंग - रािशयाँ पिु"लंग तथा mीिलंग दो भाग: म1 बंटी हi। पिु"लंग रािशय: म1 पoुष के समान गणु

    पाए जाएगं ेतथा mीिलंग रािशय: म1 mी के समान गणु पाए ंजाएगं।े

    पिु"लंग रािशयाँ मेष, िमथनु, िसंह, तलुा, धन ुतथा कंुभ हi अथा�त ्सभी िवषम संkयक रािशयाँ पिु"लंग हi तथा सम संkयक रािशयाँ वषृभ, कक� , क�या, विृ]क, मकर तथा मीन mीिलंग हi। mीिलंग रािशय: म1 िmय: के समान गणु पाए जाते हi।

    (4) 2कृित- रािशय: को .कृित के आधार पर िपh, वायु, िमित और कफ चार वगr म1 बाँटा गया ह।ै

    िपh रािशय: म1 िपh का आिध_य होता ह ैतथा सभी अि;न त� � व रािशयाँ िपh .कृित क> होती हi अथा�त ्मषे, िसंह तथा धन।ु

    वाय ुत� � व रािशय: म1 वाय ुका आिध_य होता ह ैऔर सभी पlृवी त� � व रािशयाँ अथा�त ्वषृभ,