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नया भूमि अधिग्रहण कानून लागूFriday, 03 January 2014 13:25 - Last Updated Friday, 03 January 2014 13:31
भूमि अधिग्रहण कानून के लागू होने से नक्सली समस्या में कमी आएगी. झारखंड, ओडि़शा,छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में एक साल में नतीजा दिखने लगेगा. नये कानूनके तहत आदिवासी इलाकों में ग्रामसभा की अनुमति जरूरी होगी...
राजीव
एक जनवरी 2014 से भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन एवं पुनव्र्यवस्थापन में पारदर्शिता अधिनियम, 2013 लागू हो गया. नये कानून के लागू होते ही120 वर्ष पुराना भूमि अधिग्रहण कानून 1894 निरस्त हो गया.
गौरतलब है पिछले साल 5 सितंबर 2013 को दोनों सदनों ने मानसून सत्र में यह विधेयक पारित किया था एवं 27 सितंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलजाने के बाद यह कानून बना। कानून बन जाने के बाद इस अधिनियम के लिए नियमों का प्रारूप तैयार करने का कार्य शुरू किया गया था.
विभिन्न स्टॉकहोल्डरों के साथ किए गए राष्ट्रव्यापी परामर्श के बाद नियमों का प्रारूप अनुमोदन के लिए विधि मंत्रालय को प्रस्तुत किया गया, जिसकेपश्चात विधि मंत्रालय द्वारा अंतिम रूप दिए जाने के बाद 1 जनवरी 2014 को यह कानून लागू कर दिया गया.
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नया भूमि अधिग्रहण कानून लागूFriday, 03 January 2014 13:25 - Last Updated Friday, 03 January 2014 13:31
इस नये कानून में कई ऐसे प्रावधानों को लाया गया है जिससे किसानों, आदिवासियों एवं दलितों को लाभ होने की संभावना है. नये कानून के तहत अब भूमिअधिग्रहण करने के लिए बिना ग्रामसभा की अनुमति लिए बगैर भूमि अधिग्रहण संभव नहीं है.
तुलनात्मक रूप से 120 वर्ष पहले लागू 1894 का भूमि अधिग्रहण कानून में अनुमति नहीं ‘मशविरा’ शब्द का प्रयोग किया गया था, जबकि इस नयेकानून में ‘एप्रूवल’ यानी अनुमति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ यह हुआ कि बिना ग्रामसभा के अनुमति के भूमि अधिग्रहण नहीं की जा सकेगी.
भूमि अधिग्रहण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्रों में बाजार मूल्य का दो गुना मुआवजा देय होगा. इसके अतिरिक्तएकमुश्त नकद भुगतानों के अलावा भूमि के बदले भूमि, आवास की व्यवस्था, रोजगार का विकल्प आदि प्रावधान भी इसमें शामिल किए गए हैं।
पुराने 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अगर भूमि अधिग्रहण प्राधिकारी द्वारा भूमि अधिग्रहण का मन बना लिया गया, तो अधिग्रहण कीप्रक्रिया प्रारंभ कर दी जाती थी। लेकिन नये कानून में ऐसे प्रावधान को हटा दिया गया है. नये कानून के तहत यदि भूमि अधिग्रहण के पांच साल तकअधिगृहित भूमि का उपयोग नहीं किया गया, तो इसे किसानों को लौटा दिए जाने या लैंड बैंक को दिए जाने का प्रावधान किया गया है.
लैंड बैंक राज्य सरकार के अधीन कार्यरत होगा. नये कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को विस्थापित करने से पहले उसके लिए पुनर्वास की वैकल्पिकव्यवस्था तथा मुआवजे का सही भुगतान के बाद ही अधिग्रहण करने की अनुमति दी गयी है. साथ ही आदिवासियों की भूमि हस्तांतरण यदि वर्तमान कानूनके नियमों की अनदेखी के तहत हुआ तो उसे रद्द माना जायेगा.
नये भूमि अधिग्रहण कानून में आदिवासियों के हितों की सुरक्षा की दृष्टि से अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण न करने केसाथ ही पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 तथा वन अधिनियम 2006 के प्रावधानों का भी पालन करने के प्रावधानों को रखागया है.
नये कानून के लागू होने से जो लाभ होगा उसे रेखंाकित करते हुए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि नये भूमि अधिग्रहण कानून केलागू होने से नक्सली समस्या में कमी आएगी. झारखंड, ओडि़शा, छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में एक साल में नतीजा दिखने लगेगा. नयेकानून के तहत आदिवासी इलाकों में ग्रामसभा की अनुमति जरूरी होगी.
उल्लेखनीय है कि यदि अधिग्रहण की प्रक्रिया पुराने कानून के तहत शुरू हुई हो, मगर अब तक मुआवजे की घोषणा नहीं हुई और न ही जमीन पर पांच सालगुजर जाने के बाद कब्जा ही लिया गया हो, तब भी नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू हो जाएगा. यदि पुराने कानून के तहत प्रक्रिया शुरू हुई हो, लेकिनबहुमत से प्रभावित भूस्वामियों ने मुआवजे का बहिष्कार कर दिया हो, ऐसी परिस्थिति में भूस्वामियों को नए कानून के तहत मुआवजा व अन्य लाभ दियाजाएगा.
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नया भूमि अधिग्रहण कानून लागूFriday, 03 January 2014 13:25 - Last Updated Friday, 03 January 2014 13:31
गौरतलब है कि पुराने भूमि अधिग्रहण कानून की जगह लाए गए नए कानून में फिलवक्त 13 वैसे कानूनों को जिसके तहत भूमि अधिग्रहण हो सकता है, कोशामिल नहीं किया गया है लेकिन सालभर के अंदर ही इन अलग-अलग कानूनों को नये भूमि अधिग्रहण कानून में शामिल कर लिया जाएगा. इसके लिए तीनमंत्रालयों कोयला मंत्रालय, खान मंत्रालय और परिवहन एवं एनएचआई मंत्रालय को पत्र लिखा गया है.
केन्द्र के इस भूमि अधिग्रहण कानून लागू होने के बाद प्रत्येक राज्य को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने का अधिकार है. भूमि अधिग्रहण के समवर्तीसूची में होने के कारण राज्य व केन्द्र के भूमि अधिग्रहण कानून में अंतर्विरोध होने पर केन्द्रीय कानून ही सर्वोपरि होगा.
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