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° शरी १००८ शरी सवामीजी म ` शरीपीतामबरा-पीठ, दतिया (म०पर०)
*राषटर-गर
परकाशक कलयाण मनदिर परकाशन अलोपीबाग माग, इलाहाबाद--२११००६
तीसरा ससकरण,
कारतिक परणिमा २०५१ वि०, १८-११-६४
शरी दवितरससता-पजा-यनतर
मदरक परा वाणी परस अलोपीबाग मारग इलाहाबाद--२११००६
| ८जनरळमाणका पराककथन
परातः कतय
१ गर-समरण
२ परनदवता-समरणा
सनान और सनधयोपासना
१ सनान
२ सनधयोपासन
नितयाचन
१ दवार-पजा
२ पजा-गहादि-शोधन
३ भत-शदधि
४ पराण-परतिषठा
५ बहिरमातका-नयास
६ सलमनतर-पराणायाम
१-२६
२६-२८
२६
२८
२८-३१
२८
३०
३२-६६
३२
३३
३४
३६
३७
४०
७ मनतराचमन 008 0
८ वीज-नयास es
& इषट-पजा का परारमभ ४३५०००
१० षोडशोपचार-पजन ५२
११ आवरण-पजन 4710
१२ मनतर-जप आदि EY,
१३ विसरजन का त
परिशिषट ... ६७-द८
१ बरहम-कत छिननमसता-सतोतरम... ६७
२ तरलोकय-विजय कवचम हज)
३ भरषटोततर<शत-ताम सतरोतरम .. ७३
४ शरी छिननमसता-करम-मनतरा: ... ७५
५ शरी छिननमसता हदय सतोतरम... ७०
६ शरी खिननमसता सहसरनाम .... 5१
णय
पराकळथन
तामगनि-वरणा तपसा जवलनती वरोचनी करम-
फलष जषटाम । दरगा दवी शरणमह परपदय सतरा
नाशयत तमः ॥ (द० ४)
अगनि क समान रकत-वरण वाली, तप स सदव
परजवलित, कम-फल की इचछावाल साधको स सवित, वरोचनी दरगा दवी क शरणा जाता ह, जो कि शरजञा- नानधकार को अपन आप नाश कर दती ह, या जिसक
परभाव स अजञान सवयमव नषट हो जाता ह ।
शरी शराचारय कषमराज शकति-सतर 'पर तयभिजञा-हदय' म शकति-पदारथ का लकषण करत हय कहत ह-
चितिः सवतनतरा विशव-सिदधि-हतः (पर० ६)
जगत की उतपतति, रिथति और सहार की सिदधि 'चिति' महाशकति दवारा ही होती ह, और वह सवतनतर
ह । महाशकति क अनगरह गरौर तिरोधान य दो कतय
सनतरो म शरौर भी मान गय ह; इसलिय उस 'पशच- कतय-कारिणी' भी कहत ह । अनगरह, तिरोधान को
बनध और मोकष-पद स कहा जाता ह, समसत सिदधियो ,
का हत वह महाशकति ही ह, कयोकि योगी उसकी १
कपा स ही सिदधियो को पाता ह; यह दसरा अरथ भी सतर का किया जतता ह। सारा विशव उसी का परिणाम ह । सभी पदारथ उसी स विकसित हो रह ह । सबम उसी को सतता ह, और सब वही ह । यह शाकत-दरशन का अनतिम निरणय ह। इस तततव का साकषात करन क लिय साधना-पदधतियो का निरमाण महरषियो न किया ह । उनम भिनन-भिनन उसक रप और परकार
नियत किय गय ह, तथापि मखयतः साधक महापरषो
न दस रपो म उसकी पण विभति का अनभव करक कतकतयता लाभ किया ह; जिनह तिनतरसार' म इस परकार कहा गया ह-- तशात
काली तारा he सहाविदया भवनशवरी ।
भरवी छिननमसता च, विदया धमावती तथा ॥ बगला सिदध-विदया च, मातङगी कमलातमिका । एता विदया महशानि, महाविदया परकीतिताः ॥
य सभी रप एक ही क ह।
परसतत निबनध म शरी भगवती छिननमसता जी क विषय म यथा-जञान जिजञास साधको क लिय कछ
निवदन किया जा रहा ह । शरी जगदमबा क इस रप
का बहत ही रहसयमय सवरप ह। इनकी साधना- पदधति एव इनक साधक बहत ही दरलभ ह। अतः यत- २.]
किचित उपलबध शासतरीय वचनो क आधार पर ही
यह लख लिखा जा रहा ह; यदयपि शरी पणडित रमा?
दतत जी शकल का कथन विसतत रप म लिखन का
ह; तथापि उकत परिसथिति को दखत हए समास म
हवी वयास को समझना उचित होगा । शकति-साधना म मखय रप स दो करम मान जात
ह--सषठि एव सहार । सथिति-करम सषटि क ही अनत-
गत ह। उकत दसौ रपो का सषटि एव सहार म
अनतरभाव होन स दो ही पर कार साधना, क मान जात ह, जिनह! काली-कल एव शरी-कल कहत ह। शरी भगवती छिननमसता की गणना काली-कल म कीः जाती ह । यदयपि काली, तारा, षोडशी क भद स
तोन करम मान जात ह तथापि शरो तारा और काली
म भद न होन स ऐकय सथापन किया गया ह--
काली महाकालमल गरसनतीम । --भावोपहार की टोका ।
सहाकाल-रप गरहम । परतयय को भी अनत म गरस लनवाली काली ह ।
तारा क शिव को 'गरकषोभय'-नाम स कहत ह, कयोकि
'अहम' क गरास होन पर ही अकषोभयावसथा परापत
होती ह । अरहमाकार-समषटि-कषोभ स ऊपर यह [ ३
अवसथा द । अतः, शरी तारा क मसतक भ इनका पजन होता ह ।तारा-करपर म गरकषोभय को महाकाल ही कहा गया ह ।
महाकालनोदयतपलक-निचया समर-वदनाम (१६) * शरी तारा एव छिननमसता.जी का बीज ह ह ।
इन दोनो की पजा-पदधति--गराराधना-करम परकति- विकति-नयाय स एक ही ह। शरी तारा का परण करम होन स शरी छिननमसता जी का इनही म अनतरभाव माना जाता ह; शकतिसङगम म यह विषय सपषट ह । “बी भरव तनतर म इनक विषय म कहा ह-
परचणड-चणडिका वकषय, सरव-कास-फल-पर दाम । थसयाः ससरण-मातरण, सदाशिवो भवननरः ॥ झापतरो लभत पतरमधनो धनवान भवत । कवितव दीघ-पाणडितय, लभत नातर सशयः ॥ अरथात परचणड-चणडिका शरी छिननमसता का वरणन
किया जाता ह, जिनकी आराधना स साधक जीव- भाव स रहित होकर शिव हो जाता ह, तथा पतर, धन, कवितना, पाणडितय आदि ऐहिक विषय भी उस परापत हो जात ह; अरथात साधक इचछानसार जो चाहता ह, उस वही परापत होता ह ।
इनक शराविरभाव की कथा इस परकार कही जाती ह— ४]
एक समय परपनी सहचरी जया-विजया क साथ
शरी भवानी मनदाकिनी म सनान करन गई । वहा
सनान करन पर कामागनि स पीडित होकर वह जगदा-
-ननदकारिणी कषण-वण की हो गई। उस समय सह-
चरियो न उनस कछ भोजन करन को मागा कयोकि
च कषधात थी । दवी न उनह परतीकषा करन को कहा ।
पनः याचना करन पर भी परतीकषा करन को ही
कहा । तब उन सहचरियो न विनमर मधर सवर म
फिर कहा कि “माता परारथना करन पर अपन
शिशओ को अवशय ही मकषय-भोजय दती ह, कयोकि
बह दयामयी होती ह, इसलिय अवशय ही कछ भोजन
दना चाहिय ।” इस परकार उनक मधर वचन सन-
कर कपावती दवी न करागर स अपन शिर का छदन
कर दिया । खिनन-शिर शरी दवी क बाय हाथ पर गरा
गिरा और उनक कबनध स तीत धाराय बह निकली ।
दो घाराय उनकी सहचरी डाकिनी शरौर बाशनी क
मख म परवाहित होन लगी और तीसरो धारा कह.
हए अपन शिर स सवय पान करन लगो। तभी स
उस समय क सवरप की “छिननमसता'-सजञा हई । इसी
स मिलती-जलती और भी कथाय परचलित ह ।
(परा० तो०, प० ७२६)
[५
योग-सिदधि की चरम सीमा का निरदश इस कथा म किया गया ह । योग-शासतर म तीन गरनथिया बताई गई ह, जिनक भदन पर योगी को परणता लाभ होती ह, जिलह बरहम-गरनथि, विषण-गरनथि और रदर-परनथि क नास स कहा गया ह । मलाधार म बरहम-गरनथि, मणि- पर म विषण-गरनथि एव आजञा म रदर-गरनथि का सथान ह । इनक भदन पर ही अदवताननद का अनभव होकर परणाननद-रप मकति की परापति होती ह । बरहम, विषण गरनथियो क भद होन पर भी साधक क अनदर रह हए अहङकार का परण रप स शरभाव न होन स पनः ससार म उस आना पडता ह । कषदर हनता का विलय परा- हनता म रदर-गरनथि क भदन पर ही होता ह । महाशकति कणडलिनी चितरा, वजचा और बरहम-नाडी क साथ आजञा- चकर को भद कर वजरा नाडी म स परवाह करती ह, तब यह कारय समपनन होता ह; इस ही कपाल-भद भी कहत ह । इसक पशचात ही शिव की समसत सिदधिया योगी को परापत होती ह तथा सोम-सरयातमक समसत जगत का पोषण भी उसस होता ह । इस माग म काम सबस बडा शरवरोधक होता ह, जिसका सत उकत
कथा म किया गया ह । शरी भगवती क धयान म भी विपरीत रति-यकत काम का सवरप बताया गया ह-
९]
'अलथि-मालानधरा दवी, नाग-यजञोपसीतिनी ।..
रति-कामोपविषटा च,सदा धयायनति मनतरिण; ॥ “बिपरीत-रतासकतौ + धयायदरति-मतोभवो ।' योगियो का ऐसा अनभव ह कि मरिपर-चक क
नीच की नाडियो म ही काम एव रति का मल ह।. उसी पर. ठिनना-महाशकति गरारढ ह नीच क परवाह म ही रति एव काम अनरथ को उतपनन करत ह, जिनम सारा.ससार बहा जा. रहा ह। उसक वपरीतय
अरथात ऊधव परवाह होन पर ही रदर-गरनथि का भद होता ह। कलाचार क पञचम मकार का भी यही
रहसय ह ।. जितन सिदध योगी हए, ह, व सब .इसी बडी
घाटी क पार करन. पर . परण सिदध हए ह । इसीलिय योगी: गोरखनाभर न अपनी गोरकष-सहिता म कणडलिनी शकति. क. इसी घयाच: को. बताया हट
नाभौ शसरारदिनव तदपरि. विसल सणडल चणड-रशमः, 'ससारसमकर-रपा नि भवत-जननो धम-दातरो नरारणाम, । तसमिन सधय तरिसाग. तरितबततधरा छिननमसता परशसता, हा बनद जात-रपस सरणा-सय-हरा योगिनी योतमदराम ॥
(यो प० २-७६)
अरथात नाभिःपरदश म शभर-वण पदम शरौर उस पर निमनल सय-पणडल का चिनतन कर उसम ससार की सारभत तरिभवन-जननी, धरम-काम और प
|S
समपनन परशसता, जञान-हपा, जनम-मरण क भय को दर ` करनवाली योग-मठठा योगिनी छिननमसता दवी की म वनदना करता ह ।
इसी विषय म 'उमा सहसरम' नामक शरी भगवती क एक उतकषट कावय म ऐसा कददा गया ह-
तव चछिनन शीष विडरखिल-धातयागम-विदो । सनषयारामसत बहल-तपसा यद-विदलित ॥ सषमनाया नाडधा तन-करण-समपरक-रहिता बहिः। शकतया यकता विगत चिर-निदरा विलससि ॥
सपतम सतवक, २-२१ ह जगदधातरि, शरागम-वतता तानतरिक लोग आपको
छिननमसता-रप स जानत ह कयोकि दीरघकाल तक तप क अनषठान स विदलित दो भागो म विशीण मनषयो क भसतक-परदश म जयोतिरवाहिनी सषमना-
नाडी म दहनदरियादि-समबनध-वाजत अरथात निरलप
होती हई शरीर स बाहर बरहमाणड-गत महाशकति स यकत सदव जागरत रप म योगी क शरीर भ क णडलिनी- रप म विलास करती हो, मररथात योगियो म कणडलिनी क परबदध होन पर सषमना म परवाह कर शरीर क समबनध स रहित होकर शीरष-कपाल को भद कर बरहमाणड म वयापक महाशकति स एक होकर विलाप करती हो । ऽ]
इसक आग शलोक क टीकाकार विदवदवर शरी
कपाली शासतरी लिखत ह कि--जोत हो योगी का
शीरष-कपाल-भद अनभव-सिदध ह--
वयपोहय शीरष-कपाल १
इस तिततरीयारणयक शरति स परमाणित किया ह । किठोपनिषद” म--
विदयामता योग-विधि च कतसनम ।
बरहम-विदया और समपरण योग-विधि को नचिकता न यम स परापत किया । इस परसङग म योग-विधि- रप स यही तततव लिया गया ह-=
शत चकाहदसय नाडघसतासा भरधानमभि निः- सतका । तयोधदमापतमततवमति विषवङङनया उतकर- सण भवनति’
हदय की एक शत नाडियो म एक नाडी मरधा
को भदकर बरहम-लोक को गई ह । उसी स उतकरमण
होन पर मकति होती ह । शरनय नाडियो दवारा उतकरमण पनरावतति का हत ह । उकत तानतरिक छिननमसता- साधना का यह वदिक रप ह। यह बात परसिदध ह
कि शाकत-साधना मकति और भकति दोनो को ही समान रप स एक साधकावचछदन सवीकार करती
ह। इसी क अनसार उकत सनतर को वयाखया शरी [ &
गराचाय भगवतपाद न की ह- बरहम शा वा सह कालानतरण. मखयममतततवसति
भकतवा भोगाननपसान बरहम-लोक-गतान ॥।
(क० अ० २-१६) बनहम-लोक म गया हआ साधक बरहम-लोक क
अनपम भोगो को भोगकर अनत म मोकष को परापत करता ह । सकषिपत रप स यह यौगिक सिदधानत ही विसतार म शरीछिननमसता भगवती की आराधना का तनतर ह । महषि याजञवलकय, भगवान परशराम आदि दिवय महापरष इनक साधक थ । महि याजञवलकय न जनक को सभा म शाकलय का मरधा-पात इसी शकति दवारा किया था । शरी भगवान परशराम न अपन' पिता की आजञा स धरपनी माता का सिरशछदर किया था. उनकी माता शरी रणका क सती होन स शरी छिञन- मसता क तज न उनम परवश किया । अतः, रणका का भी साघन-पजन होता ह । बहदारणयक झ कही गई मध-विदया अशव-शिसवाल दधयडडयरबश ऋषि स जिसका उवबश दिया गयः ह, वह यही ह;। शरी भाग- वस म एव शरी ककी भागवत म हयडरीव-विया भी यही ह । पराचीनः वदिक ऋषिः इस इसी. रप म. मानत थः। शरी मतसयनवनाथ), शरी. गोरखनाथ शरादि महा-सिदध सक इसी महा-शकति क. आराघक. थ.। अथ, कामः
को लकषय करक दतय-राकषसो म भी यह साधन रहा
ह । हिरणयकशिप, वरोचन आदि भी इस शकति: क
एक-निषठ साधक थ, इसीलिए इनह “बपतर-वरोचनोया''
भी कहत ह । वासतव म वरोचन नाम अगनि का ह;
अगनि क सथान मणिपर म इसका धयान किया जाता:
, ह । वजरा-नाडी म परवाह होन स इनकी 'वजतर-वरोच-'
नीया” इस नाम स साधको म परसिदधि ह
बरोचनी करम-फलष जषटाम । इस मनतर म यही बात कही गई ह; कयोकि करम
फल अगनि दवारा ही परापत होता ह । गररवाचीन काल
म तथागत बदध इसी साधना स मार को जीत पाय थ, इसीलिय उनका एक नाम वरोचन बदध भी ह;
यषट वसतरयान क गरनथो म मिलता ह। गहा-समाज
तनतर म लिखा ह--
एव सया भत एकसमिन समय भगवात सरव-तथा- चतः काय-याक-चित-हदय-धपतर-योषिद सगष विजहार
| (प० १) . इसस सिदध ह कि बदध तानबिक साधक थ । ह”
बीज शरी तारा एव शरी छिननमसता का माना जाता ह, इसका निरपण उकत तनतर म किया ह । शरी
बलनधर-पीठ म बजन शवरी (शरी तारा) को पजा होती. [११
ह । कागडा का भवन इस नाम स परसिदध ह। शरी
'छिननमसता का पीठ “चिनतयपरणी” नाम स उकत पीठ म परखयात ह । शीत-काल म भरनक बौदध-मतानयायी
तिबबत स शरी भगवती क दरशनारथ वहा शरात ह । इनक आराधन का करम 'चीनाचार' एव 'दिवय चीना-
चार' क नाम स उन लोगो म परचलित ह । बराहमणो क आधनिक तनतरो क सगर ह-गरनथो म इनका भी नाम ह तथापि इसका आचरण वही लोग करत ह ।
बहत स आधनिक विचारक इस वात को नही मानत ह कि बदध तानतरिक थ और बौढो म तनतर-मनतर की मानयता थी । जस 'गङगा' क पराततव-विशषाक म शरी महापणडित राहल साकतयायन न अपन लखो स लिखा ह कि "बदध क निरवाण क १०० वरष पशचात मनतर-तनतर का परचार बोदधो म होन लगा ।' भरवी- चकरादि बहत पहल स ही परचलित थ, जिनह विदशो म भी लोग मानत थ, इतयादि यह मारग रहसय का ह । परतयक वयकति तथा सामानय जनता म इस परकट नही किया जाता ह; इस मारग क लोगो का जीवन सथा रहसय-मय ही होता ह, इसलिय बदध न अपन
कतिपय ही शिषयो को इस बताया हो । अनयथा
परधान समपरदाय महायान म वजरयान का विपल गर कर होना, यह कोई साधारण बात नही ह । आग १२
चलकर राहल जी न यहः माना ह. कि बदध क निरवाण
क ४०० वरष पशचात मनतर, हठ. और मथन बदध-धरम म परविषट हो गय, पर यह नही बताया कि य बात
कहा स आकर परविषट हई। य बात शाकत लोगो म परचलित थी , वही स बौदधो म गराई । बौदध धरम: तो
सवदा इन बातो का विरोधी ह । तथागत परहिसा क उपदषटा होत हए भी मासाहारी'थ । यह 'महा*परि- निववाण-सतत' म लिखा ह कि शकर का मास खान स उनका दहानत हआ था । चमतकार भी बतात थ, जस सखी नदी म पानी बहा दना भरादि शाकतःधरम की चीज ह । इसस सिदध हः कि बदध तानतरिक थ 8 कितन लोग यह भी मानत ह कि बौदध-तनतरो क
अनकरण पर ही' शाकतो क तनतर बन ह, तथापि यह; निराधार ह
शाकतो क तनतरो का आधारः पञच-बरहा-मनतर ह, जिनका उललख कषणा यजरवद की काषठा, तततरीय, ` पतरायणी आदि शाखाशरो म ह; जिनह सदयोजात, वाम- दव, अघोर, ततपरष गरौर ईशान कहत ह । भगवान शिव क य पाचो मनतर-मय मख कह जात ह । इनही स शवागम एव. शाकतागमो का विसतार हमा ह, जिस परशराम-करलपसननो म कहा ह । भगवान परमशिव
[ १२
'न ति भादि अरषटादश विदया सरव-दरशन लीला-नयाय स बनाकर सविनमयी शरी भगवती क पछन पर भरपन' 'पञचमख स पचचामनायो को कहा (परश २) । इनही 'पाचो मनतरो पर पचचाधयायातमक पाशपत सतरो की "रचना कर शव धरम का विसतार किया गया ह। य अनतर शवो एव शाकतो को समान रप स मानय ह। -झवो न अपन गरनथो म शाकतो को भो शव ही बताया
ह । वीर शवो न इनही पाचो मनतरो स भरपन पःचाचारयो
की कलपना की ह, जिनह रणक, दारक, चककण, चनकरण और विशवकरण कहत ह । बदधो की 'पतच-बदध” कलपना भी इसी का शरनकरणा ह--
जिनो बरोचनः खयातो रतन-ससभव एव च। अमिताभोऽमोघसिदधि रकषोभयशच 'परकोतितः ॥
जस सदयोजातादि का दिशा-करम ह, ऐसा ही बदधो
का भी ह । पव म 'वरोचन', दकषिण म 'परमिताभ', पशचिम म “रतनसमभव', उततर म 'शरमोघसिदधि' एव
ऊपर म 'अकषोभय” बदध मान जात ह । 'विरोचन बदध! एव 'गरकषोभय' बदध का समबनध वचरयान स ह, जिनह
छिनना एव तारा शकति क समबनध म बताया गया ह ।
विरोचन ही विकराल शिव का मामानतर ह । शरहिसा-
धरम क परचारक बदध-धम म वलिदान, शमशान-सव-
१४]
नादि करियाय शाकत-धरम स ही गई ह। जञान-सिदधि,
परजञोपाय विनिशचय गरनथ म इनका बरणन सपषट रप म किया गया ह । ऐसी भरवसथा म यह कहना कि
बौदध-तनतरो क अनकरण पर शाकत-तनतर बन, उप- हासासपद ही ह १
अनक शाकत-गरनथो म बौदध-जनादि तनतरो का उललख मिलता ह जस षडायतन पजन म । चारवाक- जन-बौदध-दरशन भी लिय मय ह। इसका कारण शाकत
तानतरिको की समनवयातमक दषटि ह, इसलिय यह भी ल लिया ह । जस पराणो म वहसपति, ऋषभ एव
बदध को भी भगवदवतार मान लिया ,ह, तथापि
उनका आचार कही भी नही लिया ह । यह बाद की
कलपना ह । बौदध -तनतर 'साधन-माला' म वसयोगिनी-
साधना म पषठ ४५३ पर कहा गया ह-
ओडियान-परणगिरि-कामाखया-सिरिहटटर इतयनन पजयत ॥
परोडियान, परणगिरि, कामाखया, शरीहद गरादि पीठो को बौदधो न मान लिया ह । य पोठ-सथान शाकत-मत क परमख साधना-सथल ह, बदध-धम स इनका कोई समबनध नही ह । बदध न अपन शिषयो को शाकत-अरचा
का निषध किया था, ऐसा भी परमाण मिलता ह। [१५
हथापि अयोगय और गरनधिकारियो को ही उनहोन
ऐसा किया था, कयोकि लोकोततर वसतओ को परदान करनवाली इस अरचा स दशययोग होकर अनरथ की भी परण समभावना ह, इस बदध जानत थ ।
गरहिसा-धम का समरथक जन-धम भी 'पशचणमो- कार“ मनतर को मानता ह । जन-दरशन नामक पसतक म पाच रपो म इसका भी समनवय किया गया ह, जिस मनिविदया विजय सरि न लिखा ह । परसिदध 'भरव-पदमावती कलप’ नामक जन-तनतर म शाकतो की सभी बातो को अङगीकार किया गया ह । सरसवती- साधत जन-तनतर का सिदधिःपरद गरधयाय ह । दवी-
सतोतर म शाकतो की सभी शकतियो का उललख ह। इस शकति-साधना स जन-शासन की सिदधि बताई गई ह। 'सयादवाद मञजरी' क टीकाकार शरी हमचनदरा- चाय न इस सवीकार किया ह । पदमावती-कलप म शाकतो को शकति-उपासना एव जन-मानयता एक-सी ही मानी गई ह। जस- 1
तोतला तवरिता नितया, तरिपरा काम-साधिनो । दवया नामानि पदमायासतथा तरिपरभरवी ॥
(प० क० ३) 'भकतामार सतोतर” एक सिदवि-परद जन सतोतर ह।
१६]
इसस मारण-उचचाटन आदि षट-करम की सिदधिया बताई गई ह। इन बातो को दखत हए यह परण निशचय हो जाता ह कि शाकत-धरम” का परभाव इन अहिसक धरमो पर भी पडा ह । जस पञच-बदध की कलपना बौदधो न की ह, इसी परकार वाय-पराण पञच- रातर क आधार पर वषणवो म भी पञच-वयह की कलपना की गई ह, जिनह नारायणा, कषण, सङषण, परदयमन और भरनिरदध कहत ह। इनकी इस कलपना का आधार वद नही ह, पराण ह; जिसका अवदिकतव
शरी शङकराचारय न वदानत-दरशन क दसर गरधयाय दसर पाद क अनतिम चार सतरो म दिखाया ह।यह भी
शवो की उकत कलपना क बाद की कलपना ह । इस
मत म भो उपासना क तनतर ह। व सबक सबर शाकत- तनतरो क अनकरण पर ही बन ह। शरी रामाननदीय समपर दाय म मखयोपदश राम-मनतर का होता ह । यह
मनतर तनतर का ह। शारदातिलक म इसका उपदश
दिया गया ह। शरीकषण की उपासना म गौपाल- मनतर की परधानता ह । इसका सविसतार निरपण करम-दीपिका' म किया गया ह । 'करम-दीपिका' विशद तनतर-गरनथ ह । इसक सगराहक शरी कशव काशमीरी भटट ह । शरी निमबारक-मत क साधको म इसका परचार ह ।
मल म गौतमी तनतर म इसका उपदण दिया Rr । १७
इसका आदि स अनत तक शाकत-तनतर ही गराघार ह।
चतनय-मत म भी तनतर मान जात ह । शरीनितया- ननद तथा शरी चतनय शरी विदया क उपासक थ । शरी रामानजाचारय का लिखा हआ “शरी भगवती नितया- राधन-परनथः' शदध तानतरिकी परणाली का गरनथ ह, जिसस शरी भगवान नारायण को आराधना इस मत म होती ह । शरीबललभ-मत म पञचरातर एव गोपाल मनतर की साधना होती ह । शरी गोसवामी हित हरिवश क मत म दयपि कोई ससकत गरनथ का गराधार नही ह, तथापि पजन-परकार तनतरो क अनकल ही ह । हयशीरष, काशयप सहिता, सातवत तनतर आदि गरनथ तानतरिक परणाली क पजन क निरदशक ह, जिनह शरी रामानजीय शरी वषणव मानत ह । इस परकार शव-शाकतागम ही हिनद अहिनद सभी समपरदायो म मान जा रह ह । शव- शाकत-करम वदिक ह, इसलिय इसकी पराचीनता एव पराथमय म कोई सनदह नही हो सकता ।
शराचारय भगवतपाद क सिदधानत भरदवत-वाद' को भी बहतो न परचछनन बौदध मत बताया ह, जिस माधयमिक मत क आचारय नागारजन क शनयवाद का रपानतर सिदध करन का परयतन करिया ह । शनयवाद का वरणन माधयमिक कारिका, महायान विशक आदि १८]
नयवाद क गरनथो म किया ह । बही शरी शङकर क
गरददतताद का आधार ह । शरी पणडित विधशखर भटटा-
चाय न माणडकयोपनिषद पर लिखी हई गराचाय गौड- पाद की कारिकाशरो की वयाखया इसी भावना स की
ह, तथापि यह बात यथारथ नही ह । शरी शङकराचाय
का मत वही ह, जिस कशमीर क शव एव शाकतो न माना ह तथा वसगपत एव सोमाननद रादि न जिसका
विसतार किया ह । शव-शाकत अदवतवाद म परिणाम- बाद पर जोर दिया गया ह । शरी गराचाय शङकर न
विवरतवाद मान कर कवल कारय-करारणावसथा म सतय ह, जगद अरवसथा म मिथया ह, इसका परधान रप म परचार किया ह । 'सौनदयलहरी' म आचार न परि- णामवाद को ही सवीकार किया ह । यह परतयभिजञा
शव सिदधानत ह । पाशपत सतरो की भमिका म शवो
क भदो का निरपण करत हय शरी आर० एस०
शासतरी न काशमीरी शवो क विषय म कहा ह--
“दि काशमीर शविजम आन दि अदर हणड गव मोर परामीनस ट उमा दन ट लारड शिव । वसगपत
. एणड सोमाननद वयर दि फाउणडर आफ दिस” ।
अरथात कशमीर क शव शरी भगवान शिव की
गरपकषा शरी भगवती उमा को ही परधानता दत ह, इस
[ [ १३
मत क ससथापक वसगपत एव सोमाननद ह । शाकत- दरशन का निरमाण यही हआ ह । परतयभिजञा-हदय', 'ततव-सनदोह', 'परा-परावशिका, काम-कला-विलास' आदि गरनथ इसी समपरदाय म लिख गय ह। इस मत - का विकसित रप ही शरी शङकराचारय का अदवतवाद हव । शरी शङकराचारय न इसका कही खणडन भी नही किया ह । शङकर-मत म “शरति? की परधानता ह । आगम-वचनो का परमाण छोड दिया गया ह । कशमीर क शव परागम को मखयला दत ह। कशमीर क शवो म विवरतताद भी माना ह । शरी सिदधनाथ न 'अभद- कारिका' म कहा ह--
वसतनो भाव-शनयसय. तवगराहमतय. निराकत: । कलपना-मातर वतत यचछिव-वयपदशनम ॥ नतथ विभोविवरतोऽसति परिणामशच न कवचित । अथवा हयमपयसत तथाषयसय न खणडना ॥
अरथात रगराहम, आकति-रहित भाव-शनय वसत को 'शिव'-पद स वयवहार करना भो एक कलपना मातर ह, इस परकार विवरत एव परिणाम वोनो ही नही हो
सकत शरथवा दोनो ही हो, इसका हम खणडन भी नही करत । इन दोनो क मतो का परतिपादन 'समवितपर- काश” म किया ह--
२० ]
इति निरमल-बरोधक-रप दह-परिगरहः । विवत-परिणामाभया दवाभयामपयपपदयत ॥ बिवरतऽतथा रपसतथा भासितवमचयत ।
परिणाम स एव तव सवरणमिव कणडल ॥ इस परकार निरमल जञानक-सवरप म विवत परौर
परिणाम दोनो परकार स सषटि-कारय बन सकता ह । ह शरचयत ! विवत-रप म तम शरतथा रप स-भासित
होत हो, जस रजज म सप, और परिणाम म तम वही हो, जस कणडल म सवरण । य दोनो बात 'माणड- कय-कारिका' म विसतार एव सपषट रप म गोडपाद न सवीकार की ह। नागारजन न अपन शनय का लकषणा भी ऐसा ही किया ह । शव-दरशन पराचीन होन स शरति-शरागम-सममत ह, नागाज न न कवल तक स ही
इस सिदध किया ह, तथापि यह शनय-वाद शवो का ही शरनकरण ह । शरीवातलनाथ-सनरो म भी शिव को शनयाकार म बतलाया गया ह । शनय का अरथ शरी शरमताननदनाथ योगी न 'योगिनी-हदय' (१-१०) की टीका म ऐसा किया ह--
शनयाकाराद विसरगानताद विनदोः परसपनद समविदः इस शलोक की वयाखया म कहा ह--
शनयतव पनरभ-निरसत-निखिल-परप-चतवात अतएव परम-शिवः ।
[ २१
समसत परपञच स रहित परम शिव ही शनयाकार-. वाल हन
परपञचोपशम शिव । इस माणडकयोपनिषद म भी शिव का सवरप
उकत परकार का ही बताया ह । यह उपनिषद भी “बह ह' सिदधानत का ही परतिपादन करती ह । इसम
सपषटतः कई बार 'शिव'-पद का नाम लिया गया ह ।
यह “शिव'-ततव भावाभाव-विलकषण ह; यही वाङ मनोऽगोचर शाङकर अदवत ह । आचारय भगवतपाद क मत म शिव-विषण का भद न होन स उनका मत एक परकार का समनवयी मत ह, तथापि शरति की परधानता की अङगीकार करत हय एक सवतनतर शवा- दवत ही उनका मत ह। शाङकर मत क अनयायी सनयासी, गहसथ, बरहमचारी. आदि मखय रप स शिव- शकति की ही उपासना करत ह, तथा उपासना क शव-शाकत चिललो को धारण करत ह । उनह नागारजन- मत का अनकरणकरता कहना किसी परकार स ठीक नही, परतयत नागारजन ही इसक शरनकरण करनवाल
ह । शवो क चौथ भद का निरपण करत हय शरी
आर० एस० शासतरी लिखत ह--
“दि फोरथ सवट हड शरोनली ए वरी फय लीडस, २३]
फार द वाणटड ट शरठन सिदधीज फार दमसलवज । शरोगोविनद भगवतपाद वाज वन ह फालोड दिस सकशन ''
अरथात चौथ परकार क शवो म बहत थोड आचारय हय ह। उस विभाग म कवल सिदध रोग ही हय ह, इनम गोविनद भगवतपाद मखय ह । यही गोविनद भगवतपाद शरी शङकराचारय क गर ह । पहल क परमाणो स यह सिदध ह कि शव-शकति मतो क सिदधानतो क शरनकरण पर बोदो क तानतरिक मत बन ह । इस परकार 'शव-ततव-जञान' क अनकरण पर ही नागारजन का शनय-मत ह ।
शाकत-दरशन एव उनकी पजा-पदधति किसी क अनकरण पर नही बनी ह, परतयत इनही का अनकरण सबम किया ह, यह एक सारवभौम सिदधानत ह। इसक इस समय भी सबस अधिक परचार-चिहन ससार म मिलत ह । शरी पाणिनि क सतरो म एक भी सतर बदध- मत पर नही ह, कयोकि बदध पाणिनि क पशचात हय ह-
'शिवादिभयो अण (अ० ४-१-११२)
इस सतर क दवारा. पाणिनि न यह परमाणित किया ह कि 'शिव'-शबद या शव धरम पहल का ह ।
[२३
नागारजन न अपनी माधयमिक-कारिका म भी 'शिव' शबद का परयोग किया ह--
यः परतोतय समतपाद परपःचोपशम शिवम । दशयासास समबदधसत वनद दविपदा वरम ॥ “परपञचोपशम शिव’ पद माणडकय-उपनिषद स
लिया गया ह । ऐसी अवसथा म शाङकर अदवत किस
परकार बदध-मत क अनकरण पर ह, इस विजञ पाठक सवय समझ सकत ह । यह गरवशय ह कि शनयवाद एव
शाङकर अदवतवाद म बहत-सौ यकतिया एक-सी परयकत हई ह । परत: बहत अशो म सामय ह, तथापि शाङकर
सिदधानत शरौत ह, इसलिय नागारजन का शरनकरण नही हो सकता, परतयत नागारजन का मत ही शव
सिदधानत क गरनकरण पर ह । उपरयकत बहिरङग बात लिखन का यही परयोजन
ह कि शाकत-साधना पर बहत-सी भरानत धारणाय लोगो म परचलित ह, तथा शरविचारक लोग इस समय
भी उनका परचार कर रह ह। उनका निराकरण
होना आवशयक ह, नही तो साधना-ततव क निरपण
क परसङग पर इन बातो की शरावशयकता ही कया
ह ! अतः, सकषप म कषो भगवती की साधन-विधि
को लिखकर अब इस विसतार स उपरत होना ही
ठीक ह ।
२४ ]
शरी भगवती छिननमसता जी की साधना इस
परकार करनी चाहिय--
सरव-परथस परातःकाल शयया स उठकर सहसरार.
म सथित शरीगर का धयान, मानसिक पजन एव गर-
पाडका मनतर का वागभव-वीज जपपरवक १०८ बार
जप करना चाहिय । गरननतर षोडशी मलमनतर अथवा
करच-बीज का १०८ बार जप धयानपरवक कर, तदन- नतर सनान-सनधया शरादि आवशयक कतय स निवतत
होकर पदधति क अनसार पजन कर ।
इनक दो परकार क पजन-यनतर ह--
१ गहसथो क लिय और २ यतियो क लिय ।
तरिकोण, इसक बाद तीन मणडल, इसक ऊपर योनि-चङर, तीन दवारो स यकत, बाहर अषटदल पदम, भपर की तीन रखाय, मधय म ह” बीज, तीनो कोणो म 'ह फट', इन वरणो को लिखना चाहिय । मधय म शरी छिननमसता जी का दीप-जयोति क सदश धयान करना चाहिय, यह यतियो का धयान ह ।
गहसथो को सव-शरीर क नाभि-मणडल म शभर कमल पर निरगण सवचछ चनदरमा की कानति-सदश कलातीत, गणातीत धयान करना चाहिय । इसक
बाद शङ-सथापन आदि करियाय तारा-विदया क तलय [२%
हो कर । षोढा-नयास, बञचनबीस इस साधना म अतयनत आवशयक ह । एकाकषर, तरयकषर, चपरकषर, पचाकषर, षडकषर, तरयोदश, चतरदश, पञचदश, षोडश तथा सपतदश कलातीत मनतरो का अभयास करम स करना चाहिय । अषटादशाकषरी, एकोनविश- तयकषरी विदया भी परणता दनवाली ह, तथापि इनह कोई-कोई ही जपत ह । इनक पजन म वश-वलिदान नितय ही आवशयक ह । यति शरनकलप स कर सकत ह । इनका रातरि-पजन वामाचार का ह, यही परधानतः सिदधि-परद ह । शरी तारा क मनतर एव दकषिणा-काली क मनतर भी परक खप म जप जात ह। इस परकार सततत शरदधा एव भकतिपरवक अनषठान करन स शरी भगवती सभी समीरिरो को परण करती ह ।
॥ ॐ शस ॥
२६ ]
शरी छिननमसता नितयारचन पहल वदिक करम कर ल, फिर तानतरिक विधि
कर । यह नियम सभी सथलो पर माननीय ह ।
परातः-कतय
१ गर-सहरण बराहम-महत म उठकर दोनो हाथो गरौर परो को
धोकर अपन शिर म सथित सहसर-दल-कमल म
विराजमान शरी गरदव क सवरप का निमन परकार
धयान कर र शवत-वण दविभज वराभय-कर शवत-सालयान-लपत, सव-परकाश-रप सव-वास-सथितया रकत-शकतया सहित गर ।
तब मानस पचचोपचारो स शरीगर का पजन कर
निमन मनतरो स उनह नमसकार कर--
ॐ अखणड-मणडलाकार वयापत यन चराचरम । ततपद दरशित यन तसम शरीगरव नमः ॥ 3 अजञान-तिमिरानधसथ जञानाञजन-शलाकया । चकषरनमीलित यन तसम शरीगरव नमः ॥
२ पर-दवता-समररा
इसक बाद अपन शरीर क मलाधार म पर- दवता का वयान निमन परकार कर--
C263
छिननससता सहाविदयासकषरातम-सवरपिणोम । विदयदगनि-समदभता परसपत-भजगी-तनम ॥ कणडली-रप-सयकता नाना-तततव-समनविताम ॥
तरिवलो-वलयोपता नाना-सथान-कता शभाम ॥
इस परकार धयान कर १००८ या ३०८ या १०७ बार मनतर का जप कर ।
सनान ोर सनथयोपासन
परातः-कतय कर साधक नितय-कतयो स निपट कर
सतानादि कर । १ सनान
पहल सनान कर । लाल चनदन और दरवा स
यकत तामर-पातर को लकर यह सदधलप कर-3 ततसत
FO शरीछिननमसता-दवयाः परीतय सनानमह करिषय ।
इस परकार सङकलप छोडकर पराणायाम और षडङग-यास कर । फिर सनानीय जल म- |
39 गङग च यमन चव, गोदावरि सरसवति । नमद सिनध कावरि,जलऽसमिन सननिधि कर ॥
इस मनतर स गरकश-मदरा दवारा सरय-मणडल स तीरथो
का आवाहन कर 'ब स धन-मदरा दवारा उसका अमती- करणा, 'ह' स उसका शरवगणठन और 'फट' स उसका सरकषण कर । फिर मल-मनतर स गयारह बार उस गरभि- मनतरित कर सरय को बारह अङजलिया दकर इषट- दवता क चरणो स उस जल को निकला हआ मान- कर उसम सनान कर । तब पन: दवता का धयान कर
मल-मनतर का यथा-शकति जप कर और तीन वार
[ २८६
मल-मनतर स अभिमनतरित जल को कलश-मदरा क दवारा अपन शिर पर छोड ।
२ सनधयोपासन
शरब सनधयोपासन कर । पहल तीन बार निमन मनतरो स आचमन कर-3% आतम-ततवाय सवाहा, 3ॐ विदया-तततवाय सवाहा, ॐ शिव-तततवाय सवाहा ।
तदननतर जल म '% गङग च०' स परववत तोरथो का आवाहन कर, मल-मनतर स कशागर-भाग दवारा तीन बार भमि पर जल छिडककर, उस जल स शराठ बार अपन मरधा का अभिसिचचन कर । तब षडङगनयास कर बाए हाथ म जल ल और उस दाए हाथ स ढक-
कर हय रलब' स तीन बार उस अभिमनतरित कर। फिर मल-मनतर का उचचारण करत हय टपकत - हय जल-विनदओ स तततव-मदरा दवारा अपन सिर पर सात
बार गरभयकषण कर। शप जल को दाहिन हाथ
म लकर तजोरप म धयान कर। फिर उस इडा स राकषट कर दह क भीतर सथित कषण-वरण क पाप
को उसस धोकर उस जल को पाप-रप धयान कर पिङगला स निकाल कर अपन सममख कलपित वपतर- शिला पर “फट' स उस पाप-रप जल को पटक द ।
इसक बाद हाथ-पर धोकर गराचमन कर और ३० ]
‘ॐ घणिः सरय आदितयाय इदमधय सवाहा' स सरय को रघय दकर सरय-मणडल म दवी का धयान कर उनह
नमसकार कर । यथा--३* सरय-परणडलसथाय शरीछिनन- मसताय नमः ।
फिर छिननमसता-गायतरी स! तीन बार जल छोड-
कर तरपण कर। इसक बाद “४ दवान तरपयामि नसः, 3 ऋषीन त०, ॐ पित न त०, 3 गर त०, ॐ परम-गर त०, ३ परापर-गर त०, ३» परमषठि-गर' त०, सल छिननमसता ददी त०' स इन सबका तीन- तीन बार तपण कर। तब “४ छिननमसतावरण-दवता-
सतपयामि नमः स परावरण दवताओ का तरपण कर । इसक बाद शदध सख वसतर पहनकर 'ॐ हा ह
सः मातणड-भरवाय परकाश-शकति-सहिताय इदमरघय सवाहा' स सरय को पनः अरधय दकर पहल सरय-मणडल म गायतरी का धयान कर । यथा-
शयाम-वरणा चतरभजा, शदभ-चकर-लसतकराम । गदा-पदम-धरा दवो, सरयासन-कताशरयाम ॥
धयान कर निमनलिखित छिननमसता-गायतरी का
१०८ बार जप कर-ॐ बरोचनय विदमह छिननमसताय धीमहि तननो दवी परचोदयात ।
फिर सरय-मणडल-सथित दवी को मानसिक परणाम कर वरणदव को नमसकार कर गह को परसथान कर ।
[३१
Cc
निठयारचन १ दवार-पजा
भल परकार शदध होकर तथा शदध वसतर पहनकर पजा-गह स दवार पर जाकर सामानयारघय की सथापना कर । यथा 'मल फट स सामानयारधय-पातर का सशोधन
कर उस वतत-यकत तरिकोण पर सथापित कर । फिर “मल व’ स शदध-जल स भर कर 'ॐ गङग च०' इतयादि स परववत सय-मणडल स - अकश-मदरा दवारा तीरथो का उस जल म गरावाहन कर । तब '३# स उस जल म पषपाकषत और चनदन छोडकर धन-मदरा स उसका अमतीकरण कर “39 का उसक ऊपर दस बार जप कर । फिर उस जल स 'फट' स पजा-गह क हार का अभिषिशचन कर दवार-पजा आरमभ कर । दवार क
ऊधव-भाग क मधय म “ॐ ग गणपतय नमः” स, दाहिनी ओर “शरी लकषमय नमः स, बाई ओर 'ए सरसवतय
नमः' स पजा कर दवार की दाहिनी शाखा म 'ग गण-
पतय नमः स, बाई शाखा म कष कषतरपालाय नमः स
तथा कषतरपाल क दोनो बगल म ॐ धातर नमः, और
‘३ विधातर नम? स पजाकर दवार की दहली म ३%
शङक-निधय नमः, ॐ पदम-निधय नमः स पजन कर । ३२
२ पजनगहादि-शोधन ह इस परकार दवार-पजा कर बाए अङग का सङघोचन
करत हय बाए पर को गराग बढाकर पजा-मणडप म परवश कर । वहा 'असतराण फट का उचचारण कर कषतर-
` पालो को मानसिक परणाम कर बरहमा, अननत, आधार- शकति, मणि-दी, सवरण-सहासन, अषट-शकति, आननद-
कनद, सविननाल, परकति-पातर, विकार-मप कशर, सक- ततवा-तमक-पतर, कमल, सतव, रज, तम, सरय-बिमब, चनदर-बिमब, पञचाशदवी ज-मय-कणिका, आतमा, परमातमा
और गरनतरातमा को परणाम कर । फिर जल दवारा ह” स अपन चारो ओर घरा करक अपन को वषठित कर । तब 'अशतराय फट' स तीन बार ताली बजाकर सभी विघनो को दर कर मणडप क निकर ति कोण म “39 बरहमण नमः, ३» वासत-परषाय. नमः स पजन कर आसन सथापित कर । फिर आसन पर आधार- शकतय नमः, मल-परकतय नमः, करमाय नमः, अननताय नमः, ॐ पथिवय नमः स पजा कर विनियोग पढ । यथा--शरासन-मनतरसय मर-पषठ ऋषिः, सतल छनदः, करमो दवता, आसनोपदशन विनियोगः ।
तदननतर "शिरसि मरपषठ-ऋषय नमः, मख सतल छनदस नमः, हदि करम-दवताय नसः स नयास कर ।
फिर हाथ जोडकर परारथना कर- [ ३३
३% पथवि तवया धता लोका, दवि तव विषणना धता । तवच धारय मा नितय, पवितर कर चासनम ॥
इस परकार रासन-पजन कर उस पर बठ । तब अपन बाए “गरव नमः, दाए 'गणशाय नमः', पीछ कषतरपालाय नमः और सामन 'रति-कामोपविषटा- 'छिननमसताय नमः” स परणाम कर 'ह फट' स गनध-पषप को ल उस मसलत हय अपन दोनो हाथो का सशोधन कर उस पषप को नाराच-मदरा स ईशान-दिशा म फक द । फिर ऊपर की ओर तीन बार ताली बजाकर छोटिका मदरा स अपन शिर क चारो ओर दस बार चटकी बजाता हआ दिगबनधन कर । तब *र' वीज का उचचारण कर अपन चारो ओर जल की धार गिरा- कर अगनिःपराकार की कलपना कर ।
अरब भतशदधि कर । यथा
। ३ भत-शदधि |
रपनो गोद म अपन दोनो हाथो को ऊरधव-मख रखकर सव-हदय-सथित परदोप-कलिकाकार 'हस'-सव- रप अपनी जीवातमा की मलाधार-सथित कणडलिनी क साथ सषमना-मारग स मलाधार-सवाधिषठान-मणि- परक-अरनाहत-विशदध-आजञा इन षट-चकरो का भदन करत हय शिर म सथित गरधोमख सहसर-दल कमल ३४ |
की कणिका म विदयमान परमातमा स सयकत कर यह भावना कर कि वही पर पथिवी, अप, तज, वाय, आकाश; रप, रस, गनध, सपरश, शबद; नासिका, जिहवा,
चकष, तवक, शरोतर; वाक, पाणि, पाद, पाय, उपसथ; परकति, मन, बदधि और गरहङकार--य चौबीसो तततव लीन हो गय । फिर अपन बाए नासा-पट म धसर- वरण वाय-बीज 'य' की कलपना कर उसका सोलह बार जप करत हय वाय स सव-दह को परण कर दोनो नासा-पटो को बनद कर 'य' का चौसठ बार जप करत हय कमभक कर अपनी बाई कोख म पाप-परष का धयान कर । यथा--
वाम-ककषि-सथित पाप-परष त कषण-वण । बरहम-हतया-शिरः-सकनध, सवण-सतय-भज-दवयम ॥
सरा-पान-हदा-यकत , गर-तलप-कटि-दवयम । ततससरग-पद-दनहम ङक-परतयङक-पातकम ॥ उप-पातक-रोमाण › रकत-शमशर -विलोचनम । खडग-चरम-धर करदध, पाप-रप-भयङकरम ॥
इस परकार पाप-परष-सहित अपनी दह का शोषण कर बततीस बार 'य' का जप करत हय दाए नापता-पट स वाय को निकाल द । तब दाए नासा-पट म रकत- वरण क वहनि-वीज “र का चिनतन कर उसका सोलह
[३५
बार जप करत हय बाय भर और दोनो नासा-पटो को बनद कर 'र' का चौसठ बार जप करत हय कमभक कर बाइ कोख म सथित पाप-परष क सहित अपनी
दह को दगध कर '₹' का बततीस बार जप करत हय बाई नासा स दगध पाप-परष . और दह की भसम क सहित वाय को निकाल द । इसक बाद शकल-वण क चनदर-वीज व का बाए नासा-पट म धयान कर उस सोलह बार जपता हआ परक-करिया स ललाट म चनदरमा को ल जाकर कमभक-करिया म वरण-वीज. “व' का चौसठ बार जप करत हय ललाट क चनदरमा स
गिरत हय मातका-वरणातमक भरमत स शरपनी सारी दह की रचना कर पथिवी-वीज 'ल' का बततीस बार जप कर गरपनी उकत दह को दढ समभता हआ दाए नासा-पट स वाय का रचन कर ।
४ पराण-परतिषठा
इस परकार दह का सशोधन कर अपन हदय पर
हाथ रखकर निमन मनतर स पराण-परतिषठा कर--3
आहलाकोयरजबशषस हो सोह मम पराणा इह पराणा । ॐ आ हो करो य र ल ब श ष स हौ सोह मम जीव इह सथितः । ॐ आ हली करो य र ल व श ष स हो सोह सम सरव नबरियाणि । ४४ आ ही करो य र ल ३६ |
व श ष स हौ सोह मम बाइ-मनसतवक-चकषः-करोतर- घराण-पराणा इहागतय सख चिर तिषठनत सवाहा । `
इस परकार पराण-परतिषठा करक “सोह मनतर स सषमणा-माग स गरपन जोव को, तततवो को शरौर कणडलिनी को अपन-अपन सथान म सथापित कर ।
५ बहिरमाठका-नयास अब बहिरमातका-नयास कर । पहल विनियोग
पढ । यथा-असय शरीबहिरमातका-मनतरसय बरहमा ऋषिः, गायतरी छनदः, शरोमातका-सरसवतो दवता, हलो बोजानि, सवराः शकतयोऽवयकत कोलक, दह-शदधि- सिदधयरथ विनियोग: ।
ऋषयादि-नयास-3% बरहमण ऋषय नमः शिरसि, ` ॐ गायतरी छनदस नमः मख, ॐ मातका-सरसवती-दद-
ताय नमः हदि, ॐ हलभयो वोजभयो नमः गहय, सवरभयो शकतिभयो नमः पादयोः । ३» अवयकत-कील- काय नमः सरवाङग ।
क र-नयास-ॐ अ क ख ग घ ङ' आ अगषठाभया नमः, ॐ इ च छ ज झ ज ई तजनोभया सवाहा, उटडडढणऊ मधयमाभया वषट, एतथद ध न ऐ अनामिकाभया ह, ॐ ओपफबभम ओ कनिषठिकाभया वौषट, ॐ अ यर ल वश ष स ह ळ कष अः करतल-करपषठाभया फट । १ [ks
इसी परकार हदयादि-नयास करक पहल गरनत- मतिका-तयास कर । यथा--
कणठ धमर-वरण षोडश-दल तरिशदध-3ॐ अ नमः । आ नमः इ नसः इ नमः उ नमः ।
ऊ नमः । ॐ ऋ नमः । ॐ ऋ' नमः । ॐ र नमः । ॐ ल नमः । २ ए नमः । ३४% ऐ नमः। अ ओ नमः । २ औ नमः । ॐ अ नमः। ३» अः नमः ।
हदय रकत-वरण दवादश-दल अनाहत-३% क नमः । ख नमः । ॐ ग नमः । ॐ घ नमः । ॐ ङ नमः। च नमः । ॐ छ नमः ज नसः । 3 झ नमः।
ज नमः । ॐ ट नमः । ॐ ठ नमः । नाभौ मघ-वरण दश-दल मरिपर-3ॐ ड नमः।
ढ नमः । ॐ ण नमः । ॐ त नमः । ॐ थ नमः ।
द नमः । ३३ ध नमः । ॐ न नमः । ॐ प नमः । फ नमः ।
लिङगमल विदयददरण षट-दल सवाधिषठान-3ॐ ब नमः । ॐ भ नमः । ॐ म नमः । ॐ य नमः । ॐ र नमः । ॐ ल नमः
सवण-वरण चतदल मलाधार-3ॐ व नमः । 3 श नमः । ॐ ष नमः। 3 स नमः।
भर-मधय शवत-वरण दवि-दल आजञा-चकर-ॐह नसः । ३६ ]
3%
3%
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४६७६
ॐ कष नमः ।
अब शरीर क बाहरी अङगो म मातका-वरणो का गयास कर । पहल बाहय-मातका-सरसवती का धयान कर । यथा—
पःचाशललिपिभिविभकति-मख-दोःपनमधय-वकष-सयलाभ । भासवनमौलि-निबदध-चनदर-श र लामापोन-त दभ-सतनीम ॥
मदरामकष-गण सधाढय-कलश विदया च हसतामबज- विशचाणा विशदःपरभा ` तरि-तयना वागदवतामाशरय ॥
इस परकार घयात कर नयास कर-
% अ नमः शिरसि । ॐ आ नमः मख-वतत । ॐ इ नमः दकष-नतर । ॐ ई नमः वाम-नवर। 3 उ
नमः दकष-करण । ॐ ऊ नमः वाम-कण । ३ॐ ऋ नमः
दकष-नासायाम । ॐ ऋ' नमः वाम-तासायाम । ॐ ल
नमः दकष-गणड । ॐ र नमः वाम-गणड । ३७ ए नमः
ऊधव-ओषठ । ॐ ए नमः अधो ओषठ । ॐ ओ नमः
-दनत-पकतो । ॐ औ नमः अधो दनत-पकतो। ॐ अ
नमः बरहम-रनधर । ॐ अः नमः मख ।
ॐ क नमः दकष बाहमल । ३ ख नमः दकष” करपर । ॐ ग नमः दकष-मणिबनध । ॐ घ नमः दकष- अगलि-पल । ॐ ङ नमः दकष-करागर । ॐ च नमः वाम-ाह-सल । ॐ छ नमः वाम-करपर। ज नमः
[ ३६
वाम-मणिबनध । झ नमः वाम-अगलि-झल ममः वाम-करागन । २ ट नमः दकषोसमल । ३? नसः दकष-जाननि । ॐ ड नमः गलफ । ३» ढ नमः
दकष-पाद-तल ण नमः दकष-पादागन । ॐ त नमः
बाभोर-शल । ॐ थ नमः वाम-जाननि । २ द नमः बास-गहक । 3ॐ ध नसः बाम-पाद-तल । ४ न नमः वाम-पादापर । ॐ प नमः दकष-पाशव । फ नसः बाम-पाशव । ३० ब नमः पषठ । ७ भ नमः नासो । 3» स नमः जठर । ॐ य तवगातमन नमः हदि । ३२ र नसः दकषाश । ॐ ल नमः ककदि । ॐ ब नमः
वामाश । ॐ श नमः हदादि दकष-करागलयनतम । ॐ ब नमः हदादि-वाम-करागलयनतस । 3३% स नमः नाभयादि-वाम-पादानतस । ॐ ळ नमः हदादि-ककषो ।
ॐ कष नमः हदादि-मख ।
६ पलमनतर-पराणायाम भलमनतर का एक बार जप करता हआा परक,
चार बार जप करता हआ कमभक और दो बार जप करता हआ रचन कर। इस परकार तीन बार उलट-
पलट कर तीनबार पराणायाम कर ।
७ सनतराचसन
“शरी हल ह' स तीन बार शराचमन कर ऐ स ४० 1 न
षठ शरौर शरधर का सपरश कर। ही ही स भो दो बार सपरश कर । ह' स दोनो हाथो को धोकर निमन परकार नयास कर--
८ वौज-नयास “शरी मख, हलो दकषनासापट, ह वामनासापट, ऐ
दकषनतर, कली वामनतर, शरी हो कलो दकषकरण, ऐ. वामकरण, इ नाभौ, क हदय, करो शिरसि ।
इस परकार नयास करन क बाद पजा की आरमभ कर ।
द इषट-पजा का परारमभ
अपन बाए जल-पातर, दाए पषपादिक पजा-सामगरी और सामन दीपादिक सथापित कर । फिर अपनी बाई शरोर 'ग गरभयो नमः स गररओ को, दाहिनी ओर “ग गणपतय नमः” स गणश को और सामन 'शरीछित-
मसताय नमः” स इषट-दवता को नमसकार कर । विनियोग--3 असय शरीछिनञमसता-मनतरसय करोध- `
भरव ऋषिः, समराट छनदः, शरीछिननमसता दवता, ह ह बीज & , सवाहा शकतिः, इषट-सिदध य विनियोगः ।
ऋषयादि-नयास-शिरसि करोध-भरवाय ऋषय नमः । मख समराट-छनदस नसः । हदि शरीछिननमसताय
` क मनतरमहोदधि म वीज 'ही ही' लिखा ह। [४६
दवताय नमः । गहय ह ह वोजाय नमः । पादयोः सवाहा शकतय नमः । . इषट-सिदधि-विनियोगाय नमः सरवाङग ।
कर-नयास--* आखडगाय सवाहा कनिषठिकाभया । 3& इ सखडगाय सवाहा अनामिकाभया । ॐ ॐ वजतराय सवाहा मधयमाभया । २ ए पाशाय सवाहा तरजनीभया । 3 ओ अकशाय सवाहा अगषठाभया । ॐ अः सरकषा रकष असरकषाय सवाहा कर-तल-करपषठाभया । भद
` पडङग-तयास-ॐ आ खडगाय हदयाय नमः सवाहा । ॐ ई सखडगाय शिरस सवाहा सवाहा । & ऊ वजराय शिखाय वषर सवाहा । ॐ ऐ पाशाय कव- चाय ह सवाहा । ॐ औ अकशाय नतन-तरयाय वौषट
` सवाहा । ॐ अः सरकषा रकष असरकषाय # अशतराय फट सवाहा ।
षोढा-नयास--(१) शरी एकली सो शरी हो कली ए हो।
(२) गरो को सतरी करो ।
ऋ मनतर-महोदधि म कर-नयास अगषठ स परारमभ किया गया ह।
& मनतर-महोदधि म“सरकष रकष ही हली असतराय फट” दिया ह। ४२ ]
(३) ई ह फट । (४) शरी कली ह ऐ बपतर-वरोचनीय
ह ह फट सवाहा । . (५) शरी हा ह ऐ वजतर-वरोचनीय
शरी ही ऐ फट सवाहा ।
(६) औ ए कली सो शरो हली कला ए हौ ओ शरो कली ह ऐ वपतर-वरोचनीय ह ह फट सवाहा ।
उपरयकत छः मनतर म स परतयक की मातका स शरनतरित कर मातका-वत सभी मातका-सथानो म नयास कर। यथा-शरी ऐ कली सौ शरी हवी कली ए
हौ 3% अ नमः शिरसि ४ इसी परकार छहो मनतरो स.
नयास कर ।
वयापक-नयास--मलमनतर स मसतक स पर तक और पर स मसतक तक नयास कर पनः परणव स तोन
बार वयापक नयास कर । अब शरनतरयजन कर । 'पहल इषट-दवता का धयान कर । यथा— भरनतर-सवशरीरसय , नाभि-नोरज-ससथिताम । निलपा तरिगणा सौमया, बाल-चनदर-सम-परभाम ॥ समाधि-मसातर-गमया च, गरा-तरय-समनविताम ।
कलातीता गणातीता, भकति-मकति-परदा समरत ॥ [४३
इस परकार धयान कर मानसोषचारो स पजन कर । यथा--
ल पथिवयातमक गनध शरीखिननमसता-पाढकाभया नमः अनकलपयामि-यह पढकर गरधोमख-कनिषठागषठ स गनध-मदरा दिखाव ।
ह आकाशातमक पषप शरीछिननमसता-पादकाभया नमः अनकलपयामि-यह पढकर शरधोमख-तरजनी-अगषठ
स पषप-मदरा दिखाव ।
य वायवातमक धष शरीछिननमसता-पाढकाभया नमः अनकलपयामि-यह पढकर ऊधव-मख तजनयगषठ स धप-मदरा दिखाव ।
र वनहयातमक दीप शरोिञनमसता-पादकाभया नमः अनकलपयामि=यह पढकर ऊधव-मख मधयमागषठ स धप-मदरा दिखाव ।
ब अमतातमक नवदय शरीछिननमसता-पादकाभया नमः अनकलपयामि-यह पढकर अनामागषठ स नवदय मदरा दिखाव ।
श शकतयातमक तामबल शरीछिननमसता-पादकाभया नमः शरनकलपयामि-यह पढकर सरवागलियो स तामबल-मदरा दिखाव । ४४]
अब सामानयाघय को सथापना कर । यथा--
साधक आसन स कछ हटकर शरपनी दाहिनी
ओर भमि पर रकत-चनदन स तरिकोण-वतत का एक मणडल बनाव । फिर उपतम वह 'ॐ हवी आधार- शकतय नमः स गनध, गरकषत, पषप चढाकर आधार- शकति का पजन कर । फिर वह शराधार लकर “फट मनतर स धोकर मणडल पर सथापित कर और उसकरी 'ॐ सामानयाधय-पातराधाराय नम? स गनधाकषत-पषप दवारा पजा कर । फिर एक पातर लकर “फट' मनतर स
धोकर उस गराधार पर सथापित कर। फिर गनधा- कषत-पषप छोडकर 'ॐ सामानथारघय-पातराय नमः स उसका पजन कर। फिर उसम 'हलॉ' मनतर पढता हमरा जल भर । फिर अकश मदरा दवारा उस जल म निमन मनतर पढता हमरा सरयमणडल स तीरथो का शरावाहन कर
३9 गङग च यमन चव, गोदावरि सरसवति । नमद सिनध कावरि , जलऽसमिन सननिधि कर ॥ फिर ॐ गनधाकषत-पषष समरषयामि' स उसम
गनध, शरकषत शरौर पषप छोड । फिर उस जल म धनः मदरा दिखाकर उस गरमत-मय कर। फिर उस पर ३% का दस बार जप कर ।
[४५
इसक बाद शङक-सथापन कर । अपनी बाई ओर सामानयारघय जल स चतरसर, उसक मधय म तरिकोण बनाकर उस पर तरिपद को रख । फिर “फद' स शड: को धोकर उस तरिपद पर सथापित कर । ॐ मदश- कलातमन वललि-मणडलाय नमः स शङख की पजा कर। नमः स उसम गनध-पषपाकषत-दरवा छोडकर “कष
ळ हसषशवलरयमभ बफपनध दथत
ओ ऐ ए ळ ल ऋ ऋ ऊ उ इ इ आ अ सल' का उचचारण करता हभरा उस शदध जल स भर द । फिर “३% सोम-मणडलाय षोडश-कलातमन नमः स उस जल म पजन कर उसम 'ॐ गडढ च०' मनतर स सरय-मणडल स तीरथो का आवाहन कर । तदननतर अपन हदय स
'शरीछिननमसत ! इहाबह इह तिषठ' स इषट-दवता का उस पातर म आवाहन कर वही ह स उसका गरव- |
गणठन कर उस गालिनी-मदरा दिखाव । फिर “वौषट” स उस जल का वीकषण कर, षडङग मनतरो स सकली- करण कर, “नमः स गनध-पषप दवारा वहा दवता का पजन कर मतसय-मदरा स उस आचछादित कर दस बार मल-मनतर का जप कर । तब “ब' स धन-मदरा दिखा- कर गरसतर स उसका सरकषण कर तब उस जल स भरपना और पजा-सामगरी का मलमनतर-उचचारणपरवक ४६]
तीन बार अभिषिञचन कर ।&
गरब यनतर-राज की. सथापना क लिए एक सनदर
चौकी अपन सामन रख । फिर एक अचछी सनदर
तशतरी म शरी भगवती छिननमसता क आवाहन-पजन क लिए अरषट-गनध या लाल चनदन स उनक यनतर की
रचना कर । यथा-- । पहल एक अरधोमख तरिकोण बनाव । उस तरिकोण
क मधय म तीन वतत बनाव । फिर सबस भीतर क वतत म तीन दवारो वाला एक गरधोमख तरिकोण
बनाव । इसक बाद परथम तरिकोण क बाहर एक यरषट-
कोण और उसक बाहर एक अरषट-दल की रचना
कर । शरषट-दल क बाहर तीन रखावाल चार दवारो स यकत भपर की रचना कर । सबस भीतर क तरिकोण क मधय म ह! और परथम तरिकोण क तीनो कोरो म “ह फट लिख ।
इस परकार यनतर बनाकर और उस तशतरी को
सामन की चौकी पर रखकर पोठो का पजन सबस e+
& शदध “सथापन क मरननतर वीर साधक कलश- सथापन तथा दवितीयादि का शोधन कर शरीपातरादि की सथापना करत ह। फिर विनद-सवोकार-परयनत करम कर यनतर-राज की रचना करत ह ।
[ ४७
भोतर क तरिकोण क मधय म कर । यथा-- 3३ आधार-शकतय नमः, ॐ करमाय नमः, 3
अननताय नमः, ॐ पथिवय नमः, 3३% कषीर-समदराय नमः, ॐ रतन-दीपाय नमः, 3५ कलप-वकषाय नमः, ३+ चिनतामणि-गहाय नमः, ॐ रतन-वदिकाय नमः ।
रतन-वदिका की आठो दिशाओ म-3% धरमाय
नमः परव म, ॐ जञानाय नमः दकषिण म, ३% बरागयाय नमः पशचिम म, २ ऐशवरयाय नमः उततर म, 3% अधरमाय नमः गरागनय-कोण म, ३% अजञानाय नमः नतर तय-कोण म, २ अवरागयाय नमः वायवय-कोणा म, ॐ अनशवरयाय नमः ईशान-कोण म ।
रतन-वदिका क मधय म-3% पदमाय नमः । , पदम क नीच-आननद-कनदाय नमः, समविननालाय
नमः, सरव-ततवातमक कमलाय नम: । म वललि-मणड- लाय नमः, अ अरक-मणडलाय नमः, उ सोम-मणडलाय नमः, स सतवाय नमः, र रजस नमः, त तमस नमः, आ आतमन नमः, अ अनतरातमन नमः, प परमातमन नमः, ही जञानातमन नमः ।
पदम क मधय म--रति-कामाभया नमः ।
गरब पदम क गराठ दलो म परवादि-करम स गराठ पीठ-शकतियो की पजा कर । यथा--
3% जयाय नमः, ॐ विजयाय नमः, ३» गरजिताय ४८ |
नमः, ॐ अपराजिताय नमः, ॐ नितयाय नमः, ३२ विलासिनय नमः, ॐ दोगकय नमः, ॐ गरघोराय नमः ।
फिर नवी पीठ-शकति का २ मङगलाय नमः” स पदम क मधय म पजन कर।
गरब भगवती छिननमसता का धयान अपन नाभि- मणडल म कर । यथा--
सव-नाभौ नीरज धयायदरध विकसित सित । ततपदम-कोष-मधय मणडल-चणड-रोचिषः ॥ जपा-कसम-सङकाश रकत-बनधक-सननिभ ।
रज.-सतव-तमो रखा-योनि-मणडल-मणडितम॥ पधय त ता महादवी सरय-कोटि-सम-परभाम । छिननमसता कर वाम धारयनती सव-मसतकम॥ परसारित-मखी भौमा ललिहानागर-जिहिका । पिबनती रोधरी धारा निज-कणठ-विनिगता ॥ विकोण-कश-पाशा*च नाना-पषप-समनविता ।
दकषिण च कर करी घणड-माला-विभषिता ॥ दिगमबरा महाघोरा परतयालीढ-पद-सथिताम । असथि-माला-धरा दवी नाग-यजञोपवीतिनीम ॥ रति-कामोपरिषठा च सदा धयायनति मनतरिणः । सदा षोडश-वरषीया पीनोननत-पयोधराम ॥
दवी क दाहिनी शरोर खडी वणिनी शकति का
धयान कर । यथा-
[४६
वरणिनी लोहिता सौमया मकत-कशी दिगमबरा । दवी-गलोचछलबरकत-धारा-पान परकवतीम ॥. नाग-यजञोपवीताङगी कतरि-खरपर-हसतकाम । जवलततजोमयी दवी परतयालीढ-पद-सथिताम' ॥ सदा दवादश-वरषीया मणड-माला-विभषिताम ।
दवी क बाई ओर खडी डाकिनी शकति का धयान
कर । यथा--
डाकिनी वाम-पाशव त कलपानत-दहनोपमाम ।
विदयचछटाभ-तयना दनत-पकति-वलाकिनीम ॥ दषटरा कराल-वदना पीनोननत-पयोधराम। महादवी महाघोरा मकत-कशो दिगमबराम ॥
ललिहान-महा-जिहवा मणड-माला-विभषिताम ।
कपाल-कतरिका-हसता सदा भीषरा-रपिणीम ॥ दवो-गलोचछलदरकत-धारा-पान परकरवतीम ।
इस परकार धयान करता हआ भगवती छिननमसता का यनतर-राज क भीतरी तरिकोण क मधय म धयान करता हआ उनको निमन मनतर स आसन परदान कर- वपतर-वरोचनीय एहि एहि इहासन गह गलह मम सिदधि दहि दहि मम शतरन मारय मारय ह ह फट सवाहा ।
यह मनतर पढकर पदम-मदरा स पषप का आसन परदान कर फिर उस पषपासन का पजनकर पषपाञजलि ५० ]
दकर दवी का निमन मनतर स आवाहन क र--सरव-
सिदधिपरद डाकिनीय वजञर-वरोचनीय एहि एहि इहावह
इह तिषठ ह ह फट सवाहा ।
इस परकार आवाहन कर धन और योनि मदराए दिखाकर पराण-परतिषठा कर । यथा--
मसतायाः पराणा इह पराणाः। आ हवी करो हसः
छिननमसतायाः जीव इह सथित: । आ हली करो हस छिननमसतायाः सरवनदरियाणि । आ हली करो” हसः छिननमसतायाः वाङ-मन शरकष:-शरोतर-घराण-पराण-पदानि इहागतय सख चिर तिषठनत सवाहा ।
पराण-परतिषठा कर चकन पर हाथ जोडकर परारथना क र--
दवश भकति-सलभ परिवार-समनवित । यावततवा पजधिषयामि तावत तव ससथिरा भव ॥ इस परकार परारथना कर दवता क शरो म यथा-
करम पडङको का नयास कर । यथा--
हा हदयाय नमः। ही शिरस सवाहा । ह
शिखाय वषट । ह कवचाय ह । हलौ नतर-तरयाय
वौषट । हः असतराय फट । अरब दवता का षोडशोपचार-पजन कर । यथा--
[५१
१० षोडशोपचार-पजन पादय- “मल शरीछिचनमसताय नमः पादयोः पादय
समपयामि' यह कहकर चरणो म पादय-पातर या शङख-पातर का जल अरपित कर । (अनामा-अगषठ स) ।
अधय--मल शरीछिननमसताय नमः इद अरधय सवधा स भगवती क शिर पर शङख-पातर का जल अपित कर (सब अगलियो की मदरा स) ।
आचमन--'मल शरोछिनतमसताय नमः आचमनीय सवधा' स पराचमनीय पातर या सामानयारघय का जल शरीमख म गराचमन क लिए परदान कर। (गरनामा- मधयमा-अगषठ स) ।
मधपक--सल शरीछिननमसताय नमः इद मधपरक सवधा' स मधपरक शरीमख म परदान कर । (अधोमखी अनामा-परगषठ स) ।
पनः आचमनोय--'सल शरीछिनन मसताय नमः इद शदध आचमनीय समरपयामि सवधा’ स गराचमनीय पातर या सामानय-भरधय का जल शरीमख म गराचमन क लिय पनः परदान कर। (नामा, मधयमा, तनी, अगषठ स) ।
सनान--अब साधक भगवती को 'मल शरीछिनन- मसताय नमः” यह पढकर जञान-मदरा स उन पर गनधा- कषत छोड कर उनह पथक सथान म कलपित सनान- ५२] ॥
मणडप म ल जान की भावना कर । वहा वह “मल शरीछिननमसताय नमः उदधतनारथ हरिदरा-तल समरपयामि’ यह पढकर उन पर गनधाकषत छोडकर हलदी-तल
लगान की भावना कर । फिर वह “मल शरीछिनन- ससताय नमः' यह पढकर कनिषठा-रहित दाहिन हाथ की मठ-मदरा उनह दिखाकर सामानयारघय का जल छोड- कर उनको सनान करान की भावना कर। फिर वह:
“भल शरीछिननभसताय नमः यह पढकर जञान-मदरा स उन पर अकषत छोडकर सख कपड स उनक अङग
पोछन की भावना कर । ! वसतर--मल शरीछिननमसताय नमः इद वसतर
उततरीयम च निवदयामि’ यह कहकर शदध रशमी लाल रङग का वसतर पहनान की परदान कर अथवा जञान-मदरा स उन पर अकषत छोडकर उस पहनान की भावना कर । (अगषठ, अनामा, मधयमा स) ।
गराभषण-'मल शरीछिननमसताय नमः इमानि भषणानि निवदयामि’ स आभषण परदान कर अथवा जञान-मदरा स शरकषत छोडकर भिनन-भिनन अङगो म उपरयकत रतन-जटित सोन क आभषण पहना चकन पर साधक “मल शरीछिननमसताय नमः यह कहकर जञान-मदरा स उन पर शरकषत छोडकर यह भावना कर कि भगवती सतान-मणडप स निकल मनद गति स चल-
[ ५३
कर शरीचकर म गरपन सथान पर परसनन मन सआ विराजी ह ।
गनध--'सल शरीछिननमसताय नमः इद गनध समरपयामि' यह कहकर भगवती क शरङगो म अषट- गनध परदान कर। (मधयमा, अनामा, अगषठ स) ।
पषप--'घल शरीछिननमसताय वौषट इमानि बिलव- पतर-सहित-पषपाणि समरपयामि’ यह कहकर भगवती को बिलव-पतर सहित पषप, पषप-हार आदि परदान कर | (अगषठ, तरजनी की मदरा स) ।
अकषत-'मल शरोछिननमसताय वौषट सवयमभ- कसमादिक अकषतानि च समरपयामि’ यह कहकर भग- वती को गरकषत तथा सवयमभ-कसमादि परदान कर । (सब अगलियो क सयोग स बनी मदरा स) ।
धप -सामाचयारथय क जल स धप-पातर का 'फट' मनतर स परोकषण कर उसम अगनि रखकर और धप छोडकर उसका 'नमः' मनतर स गनधाकषत-पषप स पजन कर । फिर उस भगवती क सामन सथापित कर बाई तरजनी स उसको सपरश कर । तब 'मल शरीछिनन मसताय नमः धप निवदयामि’ कह । फिर उस पर विशषारघय का दरवय छोडकर उस भगवती को परदान कर । तब ॐ गज-धवनि मनतर-मातः सवाहा! यह मनतर पढकर १४]
गनधाकषत-पषप स घणटा का पजन कर । फिर बाए
हाथ म घणटा लकर उस बजाता हगरा मधयमा, शरना-
मिका और अगठ की मदरा स धप-पातर उठाकर भगवती
को धप परदान करता हआ साधक दवता की गायतरी
तथा मल-मनतर का जपकर तीन वार धप-पातर घमाकर
धप परदान कर । (धप-पातर दवता क बाए रख) ।
दीप-सामानय ररघय क जल स दीपरपातर का
“फट? मनतर स परोकषण कर उसम बतती रखकर उस
जलाव । फिर 'नम? मनतर स गनधाकषत और पषप स
उसका पजन कर दवता क सामन रखकर बाई मधयमा स छकर “मल शरीछिननमसताय नमः दीप
निवदयामि’ कह । फिर विशषाधय का दरवय उस पर
छोडकर घणटा बाए हाथ म लकर उस बजाता हआ
मधय अनामिका क बीच म दीप-पातर पकड और उस
पर अगठा रखकर तीन बार घमाकर गारती करता
हआ और मलमनतर तथा गायतरी का जप करता हआ
दीप परदान कर । फिर उस दवता क दाहिन रख ।
नवदय »--इसक वाद नवदय क पदारथ सवरण आदि = RIDA > पयस
% वीराचारी साधक पहल एक पातर म कारण
लकर दवता क सममख आधार पर रख '#छिननमसत !
छिननमसत ! छिननमसत ! ह ह अमतमासब विधि- [५५
किसी सनदर पातर म लकर गरपन सामन तरिकोण क मणडल पर रख | फिर ह! मनतर स गरवगणठन-मदरा दवारा उसका अवगणठन कर । वाय-बीज 'य' का उसक ऊपर १६ बार जप कर उसक दोषो का शोषण कर।
` . फिर अगनि-वोज 'र' का १६ बार जप कर उन दोषो
को जला द । तब 'ब' वरण-बोज का १६ बार जप करता हआ धन-मदरा दिखाकर उस अरमतमय कर । फिर उसक ऊपर सात बार मलमनतर का जप कर। तब बाए अगठ स नवदय-पातर को सपरश किय हए-- *नवदय निवदयामि’ यह कहकर दाहिन हाथ को तततव- मदरा स उस पर सामानयाधय का जल छोडकर दवता को नवदय निवदित कर । इसक बाद एक पातर म जल
बत कर कर सवाहा'-इस मनतर को सात बार पढत हए पातर क ऊपर हाथ रखकर कारण को शरभिमनतरित
` कर । फिर गरासनमदरा स पातर को उठाकर दाहिन हाथ म शदधि-खणड आदि लकर दोनो हाथो को एक दसर स मिलाकर दोनो वसतए दवता को निमन मनतर पढकर निवदित कर--'मल शदधयादि-सहितमासव निवदयामि’ यह मनतर पढकर साधक यह भावना कर कि
' दवता न शदधि-हित शरासव का पान किया ह । फिर बह पातर और शदधि-खणड को गराधार पर रख द। ५६]
लकर “मल शरीछिनन मसताव नमः इद जल निवदयामि’ यह पढकर नवदय क पास उस आधार पर रख द।
“पराणाय सवाहा, अपानाय सवाहा, समानाय सवाहा, उदानाय सवाहा, वयानाय सवाहा गरादि मनतर पढता
शरा पाचो मदराए करम स दिखाता हशरा अनत म बाए हाथ स गरास-मदरा दिखाकर यह. भावना कर कि
दवता परसनन-मन होकर भोजन कर रही ह ।
जब साधक यह समभ ल कि दवता परण रप स
भोजन करक पानो पी चकी ह, तब वह उसको पनः |
गराचमन कराव ।
पनः आचमन--“मल शरीछिननमसताय सवधा आच-
मनीय समरपयामि’ यह पढ कर शराचमनीय-पातर या .
सामानयारघय का जल दवता क मख म आचमन क
लिय परदान कर ।
तामबल-दवता को शरब साधक तामबल परदान
कर । करपरादि सगनधित दरवय पड हए तामबल एक
पातर म रख उस बाए शरगठ स सपरश कर'तामबल '
निवदयामि’ यह कह सामानयारघय का जल छोडकर
निवदन कर और भावना दवारा दवता क मख म पान
खिला द ।%
ॐ यहा वोर साधक विशषाघय क दरवय स दवता
[ ५७
फिर योनि-मदरा दिखाकर नमसकार कर । इसक .बाद दवो को बलि परदान कर । एक पातर
म सकल पदारथ सजाकर दवी क सममख रख और निमन मनतर पढकर ततव- मदरा स बलि समपित कर
3५ सव-सिदधि-वरणनीय वजतर-वरोचनीय एहि एहि इम बलि गहह-गह मम सिदधि दहि-दहि मम शतरन मारय- मारय करालिक ह फट सवाहा ।
फिर दवो की दाहिनी ओर 3% वणिनय नमः स और बाई ओर ॐ डाकिनय नमः स दोनो शकतियो की पजा कर परववत दवी क षङङगो का पन पजन कर । तब दवो की दाहिनी ओर 'ॐ शङ- निधय नम? स और बाई ओर 'ॐ पदम-निधय नमः स पजन कर निमन परकार पजा कर--
पव ३२ लकषमय नमः । दकषिण ॐ लजजाय नमः । पशचिम ॐ मायाय नमः । उततर ॐ वाणय नमः । आगनय ॐ बरहमण नमः । नऋतय 3» विषणव नमः । वायवय ॐ रदराय नमः । ईशान ॐ ईशवराय नमः । मधय ॐ सदाशिवाय नमः।
का तीन बार तरपण कर । यथा--'मल सागा सपरि- करा शरीठिततमसताय शरीपादका पजयामि नमः तपयामि सवाहा । शद]
इसक बाद दवता को पाच पषपाञजलिया रपित
कर । तब आवरण-पजा क लिए दवता स शराजञा
माग । यथा--
ॐ सचचिनमयि पर दवि परामत-रस-परिय ।
अनजञा छिननक दहि परिवारारचनाय म ॥
११ आवरण-पजन
परथम आवरण-भपर क बाहर परवादि-करम स
परथम रखा म दस दिकयालो क असतरो का पजन
कर । यथा--
परव ॐ व वजतराय नमः वजतर-शरोपादका पजयामि
नमः तरपयामि नमः । आगसय श शकतय नमः
शकति-शरीपा० । दकषिण ॐ द दणडाय नमः दणड-शरी-
पा० । नऋतय ॐ ख खडगाय नमः खडग-शरीपा० ।
पशचिम ॐ पा पाशाय नमः पःश-शरीपः० । वायवय ॐ
अ अकशाय तमः अकश-शरीपा० । उततर ॐ ग गदाय
नमः गदा-शरीपा० । ईशान ॐ तरि तरिशलाय नमः
बरिशल-शरोपा० । पशचिम-निऋति-मधय ॐ प पदमाय
नमः पञच-शरीपा० । ईशान-परव-मधय ॐ च चकराय नमः
चकऋ-शरीपा० ।
अभोषट-सिदधि म दहि शरणागत-वतसल ।
सकतया समरपय तभय परथमावरणाचनम ॥ [५8
यह पढकर पषपाञजलि द और शङ-पातर का विनद छोडकर 'पजितासतपिताः सनत' कह ।%
दवितीय आवरण--भपर की मधय रखा म असतरो क पास करम स दस दिकपालो की परवादि-करम स परव- वत पजा कर । यथा--
3 ल इनदराय नमः इनदर-भीपा० । ॐ र अगनय नमः अगनि-शरीपा० । ॐ य यमाय नमः यम-शरीपा० । ३२ कष निकरातय नमः निञऋति-शरीपा० । २ व वरणाय नमः वरण-शरोपा० । ॐ य वायव नमः वाय-शरीपा० । ३ क कबराय नमः कबर-शरीपा० । ॐ ह ईशानाय नमः इशान-शरीपा० । ॐ आ बरहमण नमः बरहम-शरीपा० । 3 हवी अननताय नमः अननत-शरीपा० ।
३ अभीषट-सिदधि `" दवितोयावरणाचनम । यह पढकर परववत पषपाञजलि शरौर विनद छोड ।
ततीय आवरण-भपर क भीतर भीतरी रखा पर दवारो म परवादि-करम स चार दवारपालो का पजन परववत कर । यथा--
3 करालाय नमः कराल-शरीपा० । ॐ विकरालाय नमः विकराल-शरीपा० । ३ अतिकरालाय नमः अति-
# ावरण-पजन म वीर साक. तरपरयासि, नमः कहत ह और विनद छोडत ह । ६० ]
कराल-शरीपा० । ३» महाकालाय नमः सहाकाल-शषीपा । ३% अशभोषटररसिदधि " ततीयावरणारचनम ।
परववत पषपाळजलि और विनद छोड । चतरथ-आवरण--अषट-दलो म परवादि-करम स आठ
शकतियो की परववत पजा कर । यथा-- ३० एकलिडधाय नमः एकलिडभा-भीपा० । 3
योगिनय नमः योगिनी-शरीपा० । ॐ डाकिनय नमः डाकिनीशरीपा० । ॐ भरवय नमः भरवीशरीपा० । ३२ महाभरवय नमः महाभरवी-शरोपा० । ३२ इनदराकषय नमः इनदराकषी-शरीपा० । ३ असितागय नमः असिताडरी- शरीपा० । ॐ सहारिणय नमः सहारिणी-शरीपा० ।
3३% अभीषट-सिदधि'''चतरथावरणारचनम । पववत पषपाङजलि और विनद छोड । पशचसम-आवरण-षट-कोरा क कसरो म परवादि-
करम स परववत षडजभो का पजन कर । यथा-- शरागनय ॐ आ खडगाय हदयाय सवाहा हदय-
शकति शरोपाढका पजयामि नमः तपयामि नमः ईशान ३» ई सखडगाय शिरस सवाहा शिर-शकति शरीपा० । नऋतय ॐ ऊ वजञाय शिखाय सवाहा शिखा- शकति शरीपा० । वायवय ए पाशाय कवचाय
सवाहा कवच-शकति शरीपा० । सधय उ» औ अकशाय नतर-रयाय सवाहा नतर-शकति-शरीपा० । दिकष ॐ अः
[६१ ग
) ७.-०-+-३-७--७-७-+--७-७--७--+--७--७--७-+--+-+--+-+-+-७-७-७--७-७--+-.+-+--७-.७-.+-+-+-७+-+७+++ + ०.
सरकषा असरकषाय असतराय फट सवाहा शरसतर-शकति- शरीपा० ।/
अभीषट-सिदधि' पःचचमावरणाचनम । परववत पषपाञजलि और विनद छोड । षषठ आवरण-षट-कोण क भीतर और तरि-
वततो स बाहर क तरिकोण म पजन कर । यथा-- दवो क सममख क कोण म-3ॐ% ऐ छिननमसताय
नमः छिननमसता शरीपा०' स, दवी की दाहिनी ओर क कोण म-'ॐ ऐ डाकिनय. नसः डाकिनी शरीपा०' स शरौर बाई ओर क कोण म-'ॐ% ए वणिनय नमः णनो शरीपा०' स ।
3७ अभोषट-रसिदध'"' षषठावरणारचनम
पववत पषपाञजलि गरौर विनद छोड ES
यहा छिननमसता का पजा-यनतर मनतर-पहारणव क शरनसार दिया गया ह, जो पदधति और मनतर-महो- दघि स भिनन ह । मनतर-महोदधि म कवल तरिकोण, पटकोण, गरषट-दल और भपर ह । पदधति म तरि-दवार- यकत तरिकोण, तरिवतत, पनः तरिकोण, अषट-दल और तरि-रखातमक भपर ह ।
पदधति म शरावरणा-पजन का करम भिनन ह, जो इस परकार ह-- ६२]
इस परकार आवरण-पजन कर चकन पर धप,
दोप एव नवदय परववत पनः परदान कर दवता को
नमसकार कर और उनक शरीचरणो म पषपाजलि
(१) षडङगो का आगनय, ईशान, नन तय,वायवय, .
मधय और दिशाओ म पजन कर ।
(२) आठौ दलो म परवादि-करम स--< ही
कालय नमः, ॐ ही वणिनय नमः, ॐ हल डाकिनय नमः, ॐ हवी भरवय नमः, ॐ हली महाभरवय नमः, ३ॐ ह इनदराकषय नमः, ॐ हवी पिदभलाकषय नमः, ॐ हलौ सहारिणय नमः” स शराठ शकतियो का पजन कर ।
(३) पदम क मधय म अरथात भीतर क तरिकोण
म ह ह फट सवाहा नमः स भगवती छिननमसता का पजन कर । फिर दवी क सममख ॐ कोध-भरवाय नमः'
स, दबी की दकषिण ओर 'ॐ समराट छनदस नमः
स दवी की उततर ओर 'ॐ मनतर-वरणभयो नरम स,
पनः उततर ओर 'ॐ वीज-शकतिभया नम? स पजन कर ।
(४) पदम-दलो क गरगर-भाग म परवादि करम स “5 बराहमय नमः, ३२ माहशवरय नमः, ॐ कौसारय नमः, ३% वषणवय नमः, ॐ वाराह नमः, ॐ इनदराणय नमः, ३» चामणडाय नमः, ॐ महा-लकषमय नम” स पजन
[ ६३
परदान कर । &
१२ सनतर-जप आदि इसक बाद साधक कर-षडङग आदि का नयास
कर मलमनतर का जप कर । पहल वह 'वजतर-वरोचनीय ह' इस कललिका मनतर का अपन मरधा पर दस बार जप कर । फिर अपन सिर पर 'शी हवी ह' इस मालिनो- मनतर का सौ बार जप कर । इसक बाद (ए शरी कली
ही ऐ वसतर-वरोचनीय ह ह फट सवाहा ऐ सवाहा' इस दीपिनी मनतर का दस वार जप कर । तदननतर माला
~°
कर । (५) भपर क चारो दवारो म निमन परकार
पजन कर
परव ॐ करालाय नमः, दकषिण ॐ विकरालाय नमः, पशचिम ॐ शरतिकरालाय नमः, उततर ॐ महा- करालाय नमः
इस परकार पदधति म पाच आवरण दिय गय ह ।
कषीर साधक यहा मतसय-मासादि की बलि
निमन मनतर स परदान करता . ह-3% सरव-सिदधि-परद
वणिनीय सरव-सिदधि-परद डाकिनीय वजतर-वरोचनीय
एहयहि बाल गह गह मम सिदधि दहि ही फट सवाहा ।
६४]
लकर उसका पजन कर गरौर तब इषट-मनतर का १०८
या १००८ वार जप कर | भगवती छिननमसता का
मनतर यह ह--
शरी हल कलो ए बजतर-वरोचनोय ह ह फट
सवाहा ।
मनतर-जप कर चकन पर 'ॐ ही ॐ इस शापो-
दधार-मनतर का १०८ बार जप कर । तब निमन मनतरो
स दवी क हाथ म जल छोडत हय जप-फल स ममित
कर
३» गहयालि-गहय-गोपतरो तव गहाणासमतकत जपम । `
सिदधिभवत म दवि तवतपरसादानमहशवरि ॥
इसक बाद सतोतर, कवच आदि का यथा-शकति
पाठ कर एक बार परदकषिणा कर ।
१३ विसरजन
५ सनतरःमहोदधि म मनतर शरौर धयान इस परकार
दिय ह--$ ओ ह ही ऐ वजर-वरोचनीय ही हो
फट सवाहा । भासवनमणडल-मधयगा निजञ-शिराशछिनन विकीरणालक ।
सफरासय परपिबद गलातसवरधिर वाम कर विशवतीम ॥
घाभासकत-रति-धमरोपरि-गता सखयौ निज डाकिनी ।
बगिसयो परिदशय-नोद-कलिता शरोछिननससता भज ॥ [६५
oe
भगवती को सहार-मदरा दिखाव और उनह गरपनी | अञजलि म विराजमान भावित कर वाम-नासा-माग स अपन अनतर म निमन मनतर पढत हय विसजित कर- योनि-मदरा-समारढा परदीप-कलिकोजजबलाम । कषण-पकष विधमिव करमणा कषीणता गताम ॥ उततर शिखर दवि भमया परवत-वासिनि । बरहम-योनि-समतपनन गचछ दवि ममानतरम ॥
तदननतर 'ईशान-कोण म मणडल बनाकर निमन मनतर स पजन कर-3% उचछिषट-चाणडालिनय निरमालय- भोजिनय सवाहा ।
इसक बाद नवदय गरहण कर चनदन लगाकर चरणोदक का पान कर यथा-सख विहार कर ।
६६]
परिशिषट १-बअहम-कत छिनन मसता-सतोतरम
ईशवर उवाच
सतवराजमह वनद ई रोचनयाः शभ-परदम ।
नाभो शशरारविनद तदपरि विलसनमणडल चणड- रशमः । ससारसयकसारा तरिभवन-जननो धम-कामारथ- दातरीम ॥ तसमिनमधय तरि-मारग तरितय-तन-धरा छिनन- मसता परशसताम । ता वनद छिननमसता शमन-भय-हरा
योगिनी योग-मदराम ॥ १॥
नाभौ शदध-सरोज-वकतर-विलसद-बनधक-पषपा- रण । भासवद-भासकर-मणडल तददर तद-योनि-चकर महत ॥ तनमधय विपरीत-मथन-रत-परदयनन-सतकामिनी-
पषठसथा तरणारक-कोटि-विलसततजः-सवरपा भज ॥२॥ वाम छिनन-शिरोधरा तदितर पाणो महतकत का ।
परतयालीढ-पदा दिगनत-वसनामनमकत-कश-वरजाम ॥ छिननातमीय-शिरससमचछलदसगधारा पिबनती परा । बालादितय-सम-परकाश-विलसननतर-तरयोदभा- सिनीम ॥ ३ ॥|
६७
वामादनयत नाल बह-गहन-गलद-रकत-धारा- भिरचचः । गायनतीमसथि-भषा कर-कमल-लसतकत का-
मगर-पास ॥ रकतासारकत-कशीमपगत-वसना वणिनी- मातम-शाकति । परतयालीढोर-पादामरणित-नयना वो गिती पोग-सिदराम॥ ४॥
दिगवसतरा मकत-कशो परलय-घन-घटा-घोर-रपा
परचणडा । दषटरा दषपरकय बकतरोदर-विवर-लसललोल-
जिहवागर-भासाम ॥ विदयललोलाकषि-यगमा हदय-तट- लसद-भोगिनी भीम-शतिम । सदयशछिननातम-कणठ- परालित-रघिररडाकिनी वरदधयनतीम ॥ ५॥
बरहोशानाचयतादयः शिरसि विनिहता मनद-पादार-
बिनदरापतरयोगीनदर-मखयः परति-पदमलिश चिनतिता चिनतय-रपाम ॥ ससार सार-भता तरिभवन-जननो छिननमसता परशसतामिषटा तासिषट-दातरी कलि-
कलष-हरा चतसा चिनतयासि ॥ ६॥
उतपतति-सथिति-सहतीरघटमित धतत तरि-रपा
तन । तरगणयाजजगतो यदीय विकतिबरहमाचयतः
शल-भत ॥ तामादया परकति समरामि मनसा
सरवारथ-ससिदधय । यसयाः समर-पदारविनद-यगल लाभ भजनत नराः .॥ ७ ॥
अभिलषित-पर-सतरी-योग-पजञा-परोऽह । बह-विध-
६८]
जन-भावारमभ-समभावितोऽहम ॥ पश-जन-विरतो#ह
नरवी-ससथितोवह । गर-चरण-परोडह भरवो$ह
शिवोऽहम ॥ ८ ॥
इद सतोतर महा-पणय बरहमणा भाषित परा । सव-
' सिदधि-परद साकषानमहा-पातक-नाशनम ॥ द ॥
चः पठतपरातरतथाय दवयाः सननिहितोरशप वा!
तसय सिदधिभवहवि वाळछतारथ-परदायिजी ॥ ११ ॥
धत धानय सत जाया हय हसतिनमव च ।
बसनधरा महा-विदयामषटतरसिदध लभद धरवम ॥ ११ ॥
चवाघराजिन-रञजित-सव-जघनऽरणय परलमबोदर ।
खरवउनिरवचनीय-परव-सभग मणडावली-मणडित ॥ कतरी
कनद-राचि विचितर-वनिता जञान दधान पद । सातभकत-
ऊनानकसपिनि महामायऽसत तभय नसः ॥
॥इति बरहम-कत छितनमसता-तोतरम ।।
२--तरलोकय-विजय-कवचम
शरी दवयवाच ¬
कथिताशछिनतमसताया या या विदयाः सगोपिताः ।
तवया नाथन जीवश शरताशराधिगता मया ॥ १७
इदानी शरोतमिचछामि कवच परव-सचितम ।
बरलोकय-विजय नाम कवच कथयता परभो ॥ २॥ [६५
भरव उवाच- शण दकषयामि दवीशि सरव-दव-नमसकत । हवलोकय-विजय नाझ कवच विशव-सोहनम ॥ ३॥
सरव-विदया-सय साकषात सरासर-जय-परदम । धारणात पठनादीशसदलोकय-विजयी विभः॥ ४ ॥
` बरहमा नारायणो रदरो धारणात पठनादातः । करता पाता च सहरता भवनाना सरशवरि ॥ ५॥ न दय पर-शिषयभय अभकतभयो विशषतः ।
दय शिषयाय भकताय पराणभयोऽपयधिकाय च ॥ ६॥
दवयाशच छिननमसताथाः कवचसय च भरवः। ऋषिविराट च छनदशच दवता छिननमसतका ॥ ७ ॥ तरलोकय-बिजय मकतो विनियोगः परकीतितः । ॐ हकारो म शिरः पात छिननमसता बल-परदा ॥ ८ ॥ हली हौ ए तयकषरी पात भाल-वकतर-दिगमबरी । शरी हल ह ऐ दशो पात सणड कठ-धरापि सा ॥ 5 ॥ सा विदया परणवादयऱता शरति-यगम सदावत । चसतर-वरोचनीय ह फट सवाहा च भ वादिकम ॥ १० ॥ घराण पात छिननमसता मणड-कत -विधारिणी । शरी-माया-कच-वागवीजः. वजतर-वरोचनीय ह ॥ ११॥। ह फट सवाहा महाविदया षोडशी बरहमरपिणी ।
सव-पारशव बालिका चासगधारा पाययती मदा ॥ १२ ॥ वदन सरवदा पात छिननमसता सव-शकतिका । ७० ]
मणड-कत -घरा रकता साधकाभीषट-दायिनी ।। १३ ॥ वरणिनी-डाकिनी-यकता सापि माभभितोऽबल । रासादया पात जिहवाः लजजादया पात कणठक ॥ १४ ॥ करचचाद हदय पात बागादया सतम-यगमकस । रमया पटिता विदया पाशवौ पात सरशवरी ॥ १५॥
मायया पटिता विदया नाभि-दश दिगमबरी । करचन पटिता दवो पषठ-दश सदावत ॥ १६ ॥
वागवोज-पटिता तषा सधय पात सशकतिका । ईशवरी करच-वारबीज बजत-वरोचनीय ह ॥ १७॥ ह फट-सवाहा महाविदया सरय-कोटि-सभ-परभा ।
छिननमसता सदा पायाइर-णगम सशकतिका । १८ ॥
हवी ह वाणनी जान श ह हली छ च डाकिनी-पदम ।
सरव-विदया-सथिता नितया सरवाङग स सदाऽवत ॥ १८॥
पराचया पायादक-लिङभा योगिनी पावकशवत ।
डाकिनी दकषिण पात शरीमहाभरवी च साम ॥ २०॥
नऋरतया सतत पात भरवी पशचिमषवत ।
इनदराणी पात वायवयऽसिताङकी पात चोततर ॥ २१ ॥
सहारिणी सदा पात शिव-कोण सकत का । इतयषट-शकतयः पानत दिगबिदिकष सकत का: ॥ २२ ॥
क करो करी सा पात पव ह ह मा पातपावक । हली हवी मा दकषिण पात दकषिण कालिकाऽवत॥ २३॥
[७१
करो को की चव नऋतया ही ही मा पशचिमशवत । ही हली पात सरतकोण सवाहा पात सदोततर ॥ २४ ॥ महाकाली खडग हसत शिव-कोण सदाशवत । तारा माया-वध: करच फट-कारा मा महा-सनः ॥२५॥
खडग-कत- धरा तारा चोधव-दश सदावत । हवीसलीह फट च पाताल मापात चकजटा सतो ॥२६॥
तारा त सहिता खऽवयानमहा-नोल-सरसवली । इति त कथित दवयाः कवच सनतर-विगरहम ॥ २७ ॥
यदधतवा पठनाद भीमः करोधाखयो भरवः परभः ।
यरासर-मनीनदराणा करता हरता भवत सवयम ॥ २८ ॥ यसयाजञया मधमती याति सा साधकालयम । भतिनयादयाशच योगिनयो यकषिणयादयाशच खचराः ॥ २६।
आजञा गहहनति तासतसय कवचसय परसादतः । एतद परबरहम-कवच मनमखोदितम ॥ ३०॥
दवीमभयरचय गनधायरमलनब पठत सककत । समवतसर-कतायाशच पजायाः फलमापनयात ॥ ३१ ॥
भज विलिखित चव गटिका काञशचनी-सथिता । धारयद दकषिण बाहो कणठ वा यदि वानयतःः ॥३२॥
सबशवय-यतो भतवा तरलोकय वशमानयत । तसय गह वसललकषमी बाणी च वदनाशरम ॥ ३३ ॥
बरहमासतरादीनि शसतराणि तद-गातन यानति सौमयता ।
७२]
इद कवचमञजञातवा यो भजत छिचचमसतकास ॥
सोऽपि शसतर-परहारण मतयमापनोति सतवरम ॥ ३४ ॥
॥ इति शरी भरव-तनतर तरलोकय-विजय नाम छिननमसता-कव चम ॥
३-अषटोततर-शत-नाम-सतो तरम
शरीपावतयवाच--
नाजना सहसर परम छिननमसता-परिय शभम ।
कथित भवता शमभो सदयः शतर-निकनतनस ॥ १ ॥
पनः पचछामयह दव कपा कर भमोपरि।
सहसर-नाम-पाठ च अशकतो यः पमान भवत ॥ २७
तन कि पठयत नाथ तनम बरहि कपा-मय ।
शरी सदाशिव उवाच--
अषटोततर-शत नामना पठत तन सरवदा ॥ ३ ॥
सहलल-नाम-पाठसय फल परापनोति निशचितम ।
३% असय शरीछिननमसताषटोततर-शत-ताम-सतोतरसय
सदाशिव ऋषिरनषटप छनदः, शरौछिननससता दवता,
मम सकल-सिदधि-परापतय जप विनियोगः ॥
- ॐ छिननमसता महाविदया भहाभीमा महोदरी ।
चणडशवरी चणड-माता चणड-मणड-परभङिजनी ॥ ४ ॥
महाचणडा चणड-रपा चणडिका चणड-खणडिनी ।
करोधिनी करोध-जननी ऋोध-रपा कह कला॥ ५॥ [७३
'कोपातरा कोपयता कोप-सहार-कारिणी । 'वजतर-वरोचनी वसतरा वजञ-कलपा च डाकिनी ॥ ६॥
डाकिनी करमम-निरता डाकिनी करस-पजिता । डाकिनो सङभ-निरता डाकिनी परम-परिता॥ ७ ॥ खटवाङग-धारिणी खरवा खङग-खपपर-धारिणी ।
परतासना परत-यता . परत-सदग-विहारिणी ॥ ८ ॥ छिनन-घणड-धरा खिनन-चणड-विदया च चितरिणी ।
घोर-रपा घोर-दषटिरघोर-रावा घनोदरी ॥ द ॥ योगिनी योग-निरता जप-यजञ-परायणा । योनि-चकऋ-सयी योनिरयोनि-चकर-परवतिनी ॥ १०॥
योनि-मदरा योनि-गमया योनि-यनतर-निवासिनी ।
यनतर-रपा यनतर-मयी यनतरशी यनतर-पजिता ॥ ११॥ कोरतया करपादनी काली कङकाली कल-कारिणी । आरकता रकत-नयना रकत-पान-परायणा ॥ १२ ॥
भवानी भरतिदा भति ति-दातरी च भरवी । भरवाचार-निरता धत-भ रव-सविता ॥ १३॥ भीमा भीमशवरी दवी भोम-नाद-परायणा । भवाराधया भव-नता भव-सागर-तारिणो ॥ १४ ॥
भदर-काली भवर-तनरभवर-रपा च भदरिका । भदर-रपा महा-भदरा सभदरा भदरपालिनी ॥ १५॥
'सभवया भवय-वदना समखी सिदध-सविताः । ७४]
सिदधिदा सिदधि-निवहा सिदधासिदध-निषबिता ॥ १६ ॥
शभदा शभगा शदधा शदध-सतवा शभावहा । शरषठा दषटि-सयी दवी दषटि-सहार-कारिणी ॥ १७॥
शरवाणी सबगा सरवा सरव-मङगल-कारिणी । शिवा शानता शानति-रपा मडानी मदनातरा ॥ १८ ॥
इति त कथित दबि सतोतर परम-दरलभस ।
गहयाद-गहर-तर गोपय सोपनीय परयतनतः ॥ १८ ॥
किमतर बहनोकतन तवदगर पराण-वललभ ।
मारण मोहन दवि हयचचाटनभतः परम ॥ २० ॥ सतमभनादिक-करसमाणि ऋदधयः सिदधयोऽपि च । ललिकाल-पठनादसय सरव सिधयनतयसशयः ॥ २१॥
महोततम सतोतरमिद बरानन मयरित लितय मचनय-
बदधयः । पठनति य भकति-यता नरोततमा भवनन तषा
रिपभिः पराजयः ॥ २२ ॥
॥ इति शरी छिननमसता अषटोततर-शत-नाम-सतोतरम ॥
४-लिननमसता-करम-मनतनाः
विदया राजयासिधादीकषा छिननमसता-विधौसमता । चनदर-वहवि-रसारकत-शयामा च षोडशी तथा ॥ परा-घोढा सपतदशी तदा जाता परा भवत । दीपिनी मालिनी कलला कमाद विदयादि राजयदा ॥
इति छिनना-करमः (रकत शयामा)
[9५
शह २-ह सवाहा, ३-हला कलोशरी ए ह फट, ४-णवजतर-वरोचनीय ह ह फट सवाहा शरी, ५-शरी ही ह ऐ वपतरवरोचनीय ह ह फट सवाहा ।
छिनना-करमः
32 ऐ हल विकरालाय सवाहा (भरव), १-शरी छ कली सो शी हवी कली ऐ हौ, २-३ करी सकी को,
३-ई ह फट, ४-री बलो ह ऐ बचचन बरोचनीय ह ह फट
सवाहा, ५४--शी ही ह ऐ बजन वरोचनीय शरी हो ह
ऐ फट सवाहा,
इ¬ शरी ऐ कली सो शरी हवी कली ऐ हो ३% शरी बलो ह ऐ बपतरवरोचनीय ह ह फट सवाहा ।
७- शरौ हलौ हली ऐ बचतरबरोचनीय ही ही पट सवाहा (१७ अकषरी) ।'
वपतरवरोचनीय ह (कललका)
शरी हल ह (मालिनी)
दीपिनी छिनना ए शरी कली हली ऐ वजतरवरोचनीय ह ह फट
सवाहा ऐ सवाहा । परा-छिनना
ॐ शरी ह ह ऐ वतरवरोचनोय शरी ह ह फट सवाहा (१८) । १
3 शरी हो ह ऐ वसतरवरोचनीय शरी हली ह ए फट सवाहा (१८) ।
रणका
3 ए हरी शरो कलो नमो भगवति रकत पञचमि रणका दवि हन हन पच पच अखिल जगनमवश कर कर सवाहा कली ।
शावर-मनतरः 3 आदश गर को महाचीन दश तहा रह पषप
भदरा नदी कल बदशासतर-प राण-मल तहा बठ छिनन- मसता विपरीत-रति-काम-शसता ॐ हवी शरी ह ऐ वजतर बरोचनी ढःख-सङकट-मोचनी डाकिनी-वाणनी पसोर पसोर कोश-माथ चह ओर सोर कोश छिनना राख भकत को आप ही दख मरी भकति गर की शकति करो मनतर ईशवरो वाचा फट सवाहा । कच योनौ शवऽरणय कामिनी वन-मणडल ।
[७७
शययायासगन परानत वशयावास रतानतर ॥ छिनना-मन जपद रातरौ बाण-साहततिक शिव । सरव-सिदधीशवरो भतवा छिनना पशयति चकषषा ॥
शरीछिननमसता हदय सतोतरम
शरी पावतयवाच--
शरत पजादिक समयग भवद-ववतरानज-निसतम ।
हदय छिनतमसतायाः शरोतमिचछमि सामपरतम ॥ १॥ शरी महादव उवाच--
नादयावधि मया परोकत कसयापि पराण-वललभ ।
यत-तवया परिपषटोऽह वकषय परीतय तव परिय ॥ २॥
विनियोग:--
3 असय शरीछिननमसता-हदय-सतोतर-मनतरसय भरव ऋषिः, समराट छनदः, छिननमसता दवता, ह बीज,
३ शकतिः, हली कीलक, शतर-कषय-करणारथ पाठ विनियोगः ।
कर-षडञग-चयासः--
3% अगषठाभया नमः हदयाय नमः
ॐ ह तरजनीभया सवाहा शिरस सवाहा ३» हवी मधयमाभया वषट शिखाय घषट 3 कली अनामिकाभया ह कवचाय. ह
३% ए कनिषठिकाभया वौषट नतरतरयाय वौषट
७ डा —
३ ह करतल-कर-पषठाभया फट असतराय फट
धयान--
रकताभा रकत-कशी कर-कमल-लसत-कत का काल-काति ।
विचछिननातमीय-मणडासगरण-बहलादगर-धारा पिबनतीम ॥ वि घलाञरोघ-परचणड-शवसन-सम-निभा सविता सिदध-सङघः । पदमाकषो छिननमसता छल-कर-दितिजचछदिनी ससमरामि ॥
हदय-सतोतर-
वनदशट छिननमसता ता छिनन-मणड-धरा पराम । छिनन-परीवोचछटाचछनना कषोम-वसतर-परिचछदाम ॥ १॥
सरवदा सर-सङगोन सविताशरि-सरोरहाम । सव सकल-समपतय छिननमसता शभ-परदाम ॥ २॥ यजञाना योग-यजञाय या त जाता यग यग। दानवानतकरी दवी छिननमसता भजामि ताम ॥ ३ ॥
वरोचनी वरारोहा वामदव-विरवादताम । कोटि-सरय-परभा वनद विददवरणाकषि-मणडिताम ॥ ४ ॥
निजञ-कणठोचछलदरकत-धारया या महमहः । यो गिनीसत पयनतयगरा तसयाशचरणम(शचय ॥ ५॥ हमितयकाकषर मनतर यदीय यकत-मान?' । यो जपत तसय विदवषी भसमता याति ता भज ॥ ६ ॥ ह सवाहति मन समयग यः समरतयाति-मान नरः । छिनतति छिनतमसता या तसय बाधा नमामि ताम ॥ ७॥
[७६
यसयाः कटाकष-मातरण ऋ र-भतादयो दरतम । ` दरतः समपलायनत छिननमसता भजामि ताम ॥ ऽ ॥
कषिति-तल-परिरकषा कषानत-रोषा सदकषा, छल-यत-खल-ककषा छदन कषानति-लकषया ।
कषिति-दितिज-सपकषा कषोणिपाकषय-शिकषा,
जयत जयत चाकषा छिननमसतारि-भकषा ॥ ६ ॥ कलि-कलष-कलाना करतन कत -हसता,
सर-कवलय-काशा . मनद-भानःपरकाशा ।
असर-कल-कला-पतरासिका काल-मति-- जयत जयत काली छिननमसता कराली ॥ १० ॥
भवन-भरण-भरि-भराजमानानभावा,
भव-भव-विभवाना भारणोदधात-भतिः । हिज-कल-कमलाना भासिनी भान-मति-
भवत भवत वाणी छिननमसता भवानी ॥ ११॥
मम रिप-गणामाशचछततमगर कपाण, सपदि जननि तीकषण छिनन-मणड गहाण ।
भवत तव यशोल छिनधि शतरन खलान म,
मम च परिदिशषट छिननमसत कषमसव ॥ १२ ॥
छिनन-गरीवा छिनन-मसता छिनन-मणड-धराकषता । कषोद-कषम-करी सवकषा कषोणीकषाचछादन-कषमा ॥ १३ ॥
वरोचनी वरारोहा बलि-दान-परहषिता ।
८५०]
बलि-पजित-पादाबजा वासदव-परवजिता ॥ १५ ॥
इति दवादश-नामानि छितमसता-परियारि यः । समरत परातः समतथाय तसय नशयनति शतरवः ॥ १६ ॥ या समतवा सनति सदयः सकलसरगणाः सरवदा समपदाढयाः, शतरणा सदधमाहतय विशद-वदनाः सवसथ-चितताःशरयनति। तसयाः सदधलपवनतः सरसिज-चरण सनतत सशरयनति, सादया शरीशादिसवया सफलत सतरा छिननमसता परशसता॥ हदयमिदमजञातवा हनतमिचछति यो दविषम । कथ तसयाचिर तरराशमषयति पारवति ॥ १७ ॥
यदीचछननाशन शतरोः शीतरमतत पठननरः । छिननमसता परसनना हि ददाति फलमीपसितम ॥. १८ ॥ शद-परशसन पणय समोपसित-फल-परदम।
आयरारोगयद चव पठता पणय-साधनम ॥ १६ ॥ इति शरीननदयावत महादव-पारवती-समवाद शरीछिननमसता-हदय-सतो तर
शरो छिञनससता-सहसरनास शरी दवयवाच
दव-दव महादव सरव-शासतरःविदा वर । कपा कर जगननाथ कथयसव सम परभो ॥ परचणड-चणडिका दवी सरव-लोक-हितषिणी । तसयाशच करथित सरव सतव च कवचादिकम ॥
इदानी छिननमसताया नाजञा साहसरक शभम । स परकाशय दवश कपया भकत-वतसल त
द१
शरी शिव उवाच--
शयण दवि परवकषयामि छिननायाः समनोहरम ।
गोपनीय परयतनन यदीचछदातमनो हितम ॥ न वकतवय च कतरापि घराणः कणठ-गतरपि । तचछणषव महशानि सरव तत कथयामि त ॥
विना पजा विना धयान विना जापयन सिदधयति । विना धयान तथा दवि विना शतादि-शोधनम ॥
पठनादव सिदधिः सयात सतय सतय वरानन ।
परा कलास-शिखर सरव-दव-सभालय ॥ परिपपरचछ कथित यथा शटण वरानन ।
3३ असय शरी परचणड-चणडिका सहसरनाम-सतोतरसय भरव ऋषिः, समराट छनदः, परचणड-चणडिका दवता, धरमारथ-काम-मोकषारथ पाठ विनियोगः ।
„3% परचणड-चणडिका चणडा चणड-दवयविनाशिनी । चामणडा च सचणडा च चपला चार-दहिनी ॥ 'ललजजिहलवा चलदरकता चार-चनदर-निभानना ।
चकोराकषी चणड-नादा चचचला च मनोनमदा ॥
चतना चिति-ससथा च चितकला जञान-रपिरणी । महा-भयङकरी दवी वरदाभय-धारिणी ॥ भवाढया भव-रपा च भव-बनध-विमोचिनो । भवानी भवनशो च भव-ससार-तारिशी ॥ ८२]
अवाबधिरभव-मोकषा च भव-बनध-विघातिनी ।
भागीरथी भगसथा च भागय-भोगय-परदायिनी ॥
कमला कामदा दरगा दरग-बनध-विमोचिनी । ददशना दरग-रपा बजञया दरग-नाशिनी ॥ दीन-दःख-हरा नितयानितय-शोक-विनाशिनी । नितयाननद-मयी दवी नितय कलयाण-कारिणी ॥
सरवारथ-साधन-करी सरव-सिदधि-सवरपिणी ।
सरव-कषोभण-शकतिशर सरव-विदरावणौ परा ॥
सरव-रञजन-शकतिशच सरवोनमाद-सवरपिणी । सरवजञा सिदध-दातरी च सिदध-विदया-सवरपिणी ॥ सकला निषकला सिदधा कलातीता कला-मयी ।
कलजञा कल-खपा च चकषराननद-दाधिनी ॥
कलीना साम-रपा च काम-रपा मनोहरा । कमलसथा कञज-मखो कञजरशवर-गामिनी ॥ कल-रपा कोटराकषी कमलशवरय-दायिनी । कनती ककदमिनी कलला करकलला करालिका ॥ कामशवरी काम-माता काम-ताप-विमोचिनी । काम-रपा काम-सतवा काम-कोतक-कारिणी ॥ कारणय-हदया करी-करी मनतर-रपा च कोटरा । कौमोदकी कमदिनी कवलया कल-वासिनी ॥
कशवी कशवाराधया कशी-दतय-निष दिनी । कलशहा कलश-रहिता कलश-सङक-विनाशिनी ॥
८३
कराली च करालासया करालाघर-नाशिनी । कराल-चरमासि-घरा कराल-कल-नाशिनी ॥ कङझिनी कड-निरता कपाल-वर-धारिणी ।
खडग-हसता तरिनतरा च खणड-घणडासि-धारिणी ॥ खलहा खल-हनतरी च कषरनती खगता सदा ।
गङगा गौतम-पजया च गौरी गनधरव-वासिनी ॥ गनधरवा गगणाराधया गरा गनधव-सविता । गरणतकार-गरा दवी निरगणा च गणातमिका ॥ गणता गण-दातरी च गणा-गौरव-दाथिनी ।
गणश-माता गमभीरा गगणा जयोति-कारिणी ॥ गौराङगी च गया गमया गौतम-सथान-वासिनो । गदाधर-परिया जञया जञान-गसथा गहशवरी ॥ गायतरी च गरावती गणातीता गणशवरी ।
गणश-जननी दवी गणश-वर-दायिनी ॥ गरणाधयकष-नता नितया गराधयकष-परपजिता । गिरीश-रमरी दवी गिरीश-परिवनदिता ॥ गतिदा गतिहा गीता गौतमी गर-सविता । गर-पजया गरऱयता गर-सवन-ततपरा ॥ गनधटठारा च गनधाढया गनधातमा गनध-कारिणी । गीरवाण-पति-समपजया गोीरवाण-पति-तषटिदा ॥ गीरवाराधीश-रमरी गीरवाणाधीश-वनदिता । गीरवाशाधीश-ससवया गीरवाणाधीश-हरषदा ॥ जड. ]
गानशकतिरगान-गभया गान-शकति-परदायिनी । गान-विदया गान-सिदधा गान-सनतषट-मानसा ॥
गानातीता गान-गीता गान-हरष-परपरिता । गनधरव-पति-सहषटा गनधरव-गण-मणडिता ॥
गनधरव-गरा-ससवया गनधरव-गण-सधयगा ।
गनधरव-गणा-कशला गनधरव-गण-पजिता ॥
गनधरव-गण-निरता गनधरव-गण-भषिता ॥ घरघरा घोर-रपा च घोर-घरघर-तादिनी । घरम-विनद-समदभता घरम-विनद-सवरपिणी ॥
घणटा-रवा घन-रवा घन-रपा. घनोदरी ।
घोर-सतवा च घनदा घणटा-ताद-विनोदिनी ॥
घोर-चाणडालिनी घोरा घोर-चणड-विनाशिनी ।
घोर-दानव-दमनो घोर-दानव-नाशितो ॥
घोर-करमादि-रहिता घोर-कम-निषबिता ।
घोर-ततव-मयी दवी घोर-तततव-विमोतिनी ॥
घोर-करमादि-रहिता घोर-करमादि-परिता ।
घोर-करमादि-निरता धोर-करम-परवदधनी ॥ घोर-भत-परमथिनी घोर-वताल-नाशिनी । घोर-दावागनि-दमनी घोर-शतर-निषदिनी ॥ घोर-मनतर-यता चव घोर-मनतर-परपजिता । घोर-मनतर-मनो भिजञा घोर-मनतर-फल-परदरा ॥ .
[ द
घोर-मनतर-निधिशचव घोर-सनतर-कतासपदा । घोर-मनतरशवरी दवी घोर-मनतरारथ-मानसा ॥
घोर-मनतरारथ-तततवजञा घोर-मनतरारथ-पारगा ।
घोर-मनतरारथ-विभवा घोर-मनतरारथ-बोधिनी ॥
घोर-मनतरारथ-निचया घोर-मनतरारथ-जनमभः ॥ घोर-मनतर-जप-रता घोर-मनतर-जपोदयता ॥
ङकार-वरण-निलया ङकाराकषर-मणडिता ।
ङकारा पर-रपा च झङकाराकषर-छपिणी ॥ चितर-रपा चितर-ताडी चार-कशी चय-परभा । चनचचला चचलाकारा चार-रपा च चणडिका ॥
चतरवद-सयो चणडा चाणडाल-गण-मणडिता । चाणडाल-छदिनी चणड-ताप-निरमल-कारिणी ॥ चतरभजा चणड-रपा चणड-घणड-विनाशिनी । चनदरिका चनदर-को तिशच चनदर-कानतिसतथव च ॥ चनदरासया चनदर-रपा च चनदर-सौलि-सवलषिणी ।
चनदर-मौलि-परिया चनदर-सौलि-सनतषट-सानसा ॥ चकोर-बनध-रमणी चकोर-बनध-पजिता । चकररपा चकर-सयी चकराकार-सवरपिणो ॥ चक-पाणि-परिया चकत-पाणि-परीति-परवायिनो । चकक-पाणिऽरसाभिञञा चकक-पारि-बर-परदा ॥ चकर-पाणि-वरोनमतता चकर-पाणि-सवरपिणी । चकर-पाणीशवरी नितय चकर-पाणि-नमसकता ॥ ८६]
चकर-पाणि-समदभता चकर-पाणि-गणासपदा । चनदरावली चनदरवती चनदर-कोटि-सस-परभा ॥ चनदनाचित-पादाबजा चनदनानवित-मसतका । चार-कीतिशचार-नतरा चार-चनदर-निभषरणा ॥ चार-भषा चार-वषा चार-वष-परदायिनी । चार-भषा-भषिताडी चतरवकतर-वर-परदा ॥ चतरवकलन-समाराधया चतरवकतर-समाशचिताः । चतरवकतरा चतरबाहा चतरथौ च चतरदशो ॥ चितरा चरसणवती चतरी चनदरःभागा च चमपका । च तरदश-यसाकारा च तरदश-यमानगा ॥ चतरदश-यम-परीता चतदश-यस-परिया । _छलसथा छितरनहपा च छदयदा छदय-राजिका ।। छिननमसता तथा छिनना छिनन-घणड-विधारिसी ।
जयदा जय-रपा च जयनती जय-मोहिनी ॥ जया जीवन-लसथा च जालनधर-निवासिनी ।
जवालापी जवाल-वालरी जाउबलय-दहनोपमा ॥ जगहनया जगतपजया जगततराण-परायणा । जगती जगदाधार जनम-फतय-जरापहा ॥ जननो जनस-भमिशच जनमदा जअथय-शालिनी ।
जवर-रोग-हरा जवाला जवाला-माला-परपरिता ॥ जमभारातीशवरी जमभाराति-वभव-कारिणी । जनभाराति-सतता जमभाराति-शतर-निषदिनो ॥
[5७
जयदरगा जयाराधया जयकाली जयशवरी । जयतारा जयातीता जय-शङकर-वललभा ॥ जयदा जहन-तनया जलधि-बरास-कारिरी ।
जलघि-वयाधि-दमनी जलधि-जवर-नाशिनी ॥
जङग मशी जाडय-हरा जाडय-सदघ-निवारिणी । जाडय-गरसत-जनातीता जाडय-रोग-निवारिणी ॥
जनम-दातरी जनम-हरती जय-घोष-समनविता । जप-योग-समायकता . जप-योग-विनोदिनी ॥ जपऱ-योग-परिया जापया जपातोता जय-सवना । जाया-भाव-सथिता जाया जाया-भाव-परपरिणी ॥ जप-कसम-सङकाशा जपा-कसम-पजिता । जपा-कसम-समपरीता जपा-कसम-मणडिता ॥ जपा-कसम-व-दभधासा जपा-कसस-रपिणी । जमदगनि-सघरपा च जानकी जनकातमजा !! झञझावात-परमकताङगी झोर-झङकार“वासिनी । झङकार-कारिणी झञझावात-रपा च झङकरी ॥। जकाराण-सवलपा च टनटडगर-नादिनी । टङकारी टकबाशी च ठकाराकषर-रपिणी ॥ डिणडिमा च तथा डिमभा डिणड-डिणडिम-नादिनी । ढकका-मयी ढिल-मयी नतय-शबदा विलासिनी ॥
ढवका ढककशवरी ढकका-शबद-रपा तथव च । ढकका-नाद-परिया ढबका-नाद-सनतषट-मानसा ॥। दद]
णकारा णाकषर-मयी णाकषरादि-सवरपिणी । तरिपरा तरिपर-मयी तरिशकतिसलिगणातमिका ॥ तामसी च तरिलोकशी तरिपरा च तरयीशवरी । तरिविदया च तरिरपा च तरिनतरा च तरिरपिणी ॥ तारिणी तरला तारा तारकारि-परपजिता।
तारकारि-समाराधया तारकारि-वर-परदा ॥ तारकारि-भरससतनवी तरणी तरल-परभा ।
तरिलपा च तरिपर-गा तरिशल-वर-धारिणी ॥ तरिशलिनी तनतर-मयी तनतर-शासतर-विशारदा ।
तरदर-हपा तपोमरतिसतनतर-मरतन -सवरपिणी ॥ तडिततडिललताकारा ततव-जञान-परदायिनी । तततव-जञानशवरी दवी तततव-जञान-परमोदिनी ॥ तरयी-मयी तरयी-सवया तरयकषरी जयकषरशवरी । ताप-विधबसिनो ताप-सङध-निरमल-कारिणशी ॥. तरास-करतरी तरास-हरती तरास-दातरी च तरासहा । तिथीशा तिथि-रपा च तिथिसथा तिथि-पजिता ॥ तिलोततमा च तिलदा तिल-परीता तिलशवरी । तरिगणा तरिगणाकारा तरिपरी तरिपरातमिका ॥ तरिकटा ललिकटाकारा तनिकटाचल-मधयगा । तरिजटा च तरिनतरा च तरिनतर-वर-सनदरी ॥ ततीया च तरिवरषा च तरिविधा तरिमतशवरी । तरिकोणसथा तरिकोणशी तरिकोण-यनतर-मधयगा ॥
[रकषः
"तरिसनधया च बिसनधयारचया तरिपदा तिपदासपदा । -सथान-सथिता सथलसथा च धनय-सथल-निवासिती ॥ थकाराकषर-रपा च सथल-षरपा तथव च। -सथल-हसता तथा सथला सथय-रप-परकाशिनी ॥ ` दरगा दरगाति-हनतरी च दग-बनध-विमोचिनी । दची-दानव-सहनतरी दनजश-निषदिनी ॥
दारापतय-परदा नितया शडगरारदधाङग-धारिणो । दिवयाङकी दव-साता च दव-दषट-विनाशिनी ॥ दीन-दःख-हरा दीननताप-निरमल-कारिणी । दीन-माता दीन-सवया दीन-दसभ-विनाशिनी ॥
दनज-धवसिनी दवी दवकी दव-वललभा । -दानवारि-परिया दीरघा दानवारि-परपजिता ॥
-दोघ-सवरा दीघ-तनरदीघ-दरगति-वाशिती । 'दीरघ-नतरा दीघ-चकषरदोरघ-कशी दिगसबरी ॥ 'दिगमबर-परिया दानता दिगमबर-सवरपिणी । 'दःख-हीना ढःख-हरा दःख-सागर-तारिणी ॥ -डःख-दारिदरय-शसनी दःख-दारिदरथ-कारिणी । दःखदा दससहा दषट-खणडनक-सवरपिणी ॥ -दव-वामा . दव-सवया दव-शकति-परदायिनी । दासिनी दामिनी-परीता दामिनो-शत-सनदरी ॥ -दामिनी-शत-ससवया दामिनी-दाम-भषिता ।
८ Ca . दवता-शत-मधयगा ॥ जो
दयादरा च दयानहपा दया-दान-परायरा ।
इदया-शीला दया-सारा दया-सागर-ससथिता ॥
दश-विदयातमिका दबी दश-विदया-सवरपिणी ।
'धरणी धनदा धातरी धनया धनय-परा शिवा ॥
'धरम-रवा. धनिषठा च धया च धीर-गोचरा ।
धरम-राजशवरी धरम-करम-रपा धनशवरी ॥
धतविदया धनरगमया धनरधर-वर-परदा । धरम-शीला घरम-लीला धरम-करम-विरवाजता ॥ `
धरमा घरम-निरता धरम-पाखणड-खणडिनी । धरमशो धरम- खया च धरभराज-वर-परदा ॥ धमिणी धरम-गहसथा धरमाधम-सवरपिशो । धनदा धनद-परीता धन-धानय-समदधि दा ॥ धन-धानयःसमदधिसथा धन-धानय-विनाशितती । घरम-निषठा धरम-धोरा धरम-मारगटरता सदा ॥ धरम-बीज-कत-सथाना धरम-बीज-सरकषिणी ।
धम-बीजशवरी धरम-बीज-रपा च धरमगा॥ -घरम-बीज-समदशता धरम-बीज-समाशचिता । धराधर - पति - पराणा धरा - धर-पति-सतता ॥ धरा-धरनदर-तनजा धरा-धरनदर-वनदिता ।
. धरा-धरनदर-गहसथा धरा-धरनदर-पालिनी ॥ घरा-धरनदर-सरवाति-नाशिनी धरम-पालिनी । नवीना निरमला नितया नागराज-परपजिता ॥
|. 8१
नागशवरी नाग-माता नाग-कनया च नगनिका ।
निरलपा निविकलपा च निरलोमा निरपदरवा ॥
निराहारा निराकारा निरञजन-सवरपिणी । नागिनी नाग-विभवा नाग-राज-परिसतता ॥ नाग-राज-गणकषा च नाग-राज-सख-परदा । नाग-लोक-गता नितय नाग-लोक-निवासिनी ॥ नाग-लोकशदरी नाग-भागिनी नाग-पजिता ।
नाग-मधय-सथिता नाग-मोह-सकषोभ-दायिनी ॥ नतय-परिया नतय-वती नतय-गीत-परायणा ।
नतयशवरी नरतकी च नतय-रपा निराशरया ॥ नारायणी नरनदरसथा नर-मणडासथि-मालिनी । नर-मासःपरिया नितया नर-रकत-परिया सदा ॥
नर-राजशवरी नारी-रपा नारी-सवरपिणी ।
नारो-गणाचिता नारी-मधयगा नतनामबरा ॥
नमदा च नदी-छपा नदी-सङभम-ससथिता ।
नसदशवर-समपरोता नम दशवर-रपिणो ॥
पदमावती पदम-मखो पदम-किञजलक-वासिनी ।
पट-वसतर-परोधाना पदम-राग-चिभषिता ॥
परमा परीतिदा नितय परतासन-निवासिनी । परिपण-रसोनमतता परम-विहलल-वललभए ॥
पवितरासव-निषपता परयसी परमातमिका ।
परिय-तरत-परा नितय परमःपरम-दायिनो ॥ 8२]
FN
पषप-परिया पदम -कोशा पदम-धरम-निवासिनो । फतकारिणी-तनतर-रपा फर-फरव-नादिनी ॥ वशिनी वश-रपा च बगला वाम-रपिरगोी ।
वाङमयी वसधा धषया वागभवाखया वरा नरा ॥ बदधिदा बदधिरपाच विदया वाद-सवरपिणी । बाला वदध-मयी-रपा वाणी वाकय-निवासिनी ॥ वरणा वागवती वीरा वीर-भषण-भषिता । वीर-भदराचित-पदा ` वीर-भदर-परसरपि ॥ वद-मारग-रता वद-मनतर-रपा वषट-परिया । वोणा-वादय-समायकता वोणा-वादय-परायणा ॥ बीणा-रवा तथा वीणा-शबद-रपा च वषणवी ।
वषणवाचार-निरता वषणवाचार-ततपरा ॥ विषण-सवया विषण-पतनी विषण-रपा वरानना । विशवशवरी विशव-माता विशव-निरमाण-कारिणी ॥ विशव-रपा च विशवशो विशव-सहार-कारिणो । भरवी भरवाराधया भत-भरव-सविता ॥ भरवशो तथा भीमा भरवशवर-तषटिदा । भरवाधीश-र मणो भरवाधोश-पालिनी ॥ -भीमशवरी भोम-माता भीम-शबद-परायणा ।
भीम-रपा च भीमशी भीमा भीम-वर-परदा ॥ भोम-पजित-पा दाबजा भीम-भरव-पालिनी । „ भीमासर-धवस-करी भीम-दषट-विनाशिनी ॥
[8२
भवना भवनाराधया भवानी भतिदा सदा ।
भयदा भय-हनतरी च अभयाधभय-रपिणी ॥:
भीम-नादा विहवला च भय-भीति-विनाशिनी ।
मतता ` परमततःरपा च सदोनमतत-सवरपिणशी ॥
मानया मनोजञा माना च मङगला च सनोहरा ।
माननीया महा-पजया महा-महिष-मदिनो ॥.
महिषासर-हनतरी च मातङगी मय-वासिनी ।
माधवी मध-मयी मदरा सदरिका सनतर-रपिणो ॥
महा-विशवशवरी-दती मोलि-चनदर-परकाशिनी । यशः-सवहपिणी-दवी योग-साग-परदायिनी ॥ योगिनी योग-गसया च यासयशी योग-रपिणी । यजञाङगो च योग-मयी जप-रपा जपातमिका ॥ यगाखया च यगानता च योनि-मणडल-वासिनी ।
अयोनिजा योग-निदरा योगाननद-परदायिनी ॥
रसा रति-गरिया नितय रति-राग-विरचादवनो ।
रमणो रास-समभता रमया रास-परिया रसा ॥
रणोतकणठा रणासथा च वरा रङभ“परदायिनी ।
रवती रणा-जलरी च रसोदभता रणोतसवा ॥
लता लावणय-रपा च लबणाबधि-सदरपिणी ।
लवङग-दसमाराधया लोल-जिहवा च ललिहा ॥
बशिनी वन-ससथा च वन-पषप-परिया वरा ।
पराणशवरी बदधि-रपा बदधि-दातरी बधातमिका ॥
३४]
शमनी शवत-बरणा च शाङकरी. शिव-भाषिणी ।
शामय-रपा शकति-रपा शकति-विनद-निवासिनी ॥
` सरवशवरी सरव-दातरी सरव-माता च शरवरी ।
शामभवी सिदधिदा सिदधा सखसना सवर-भासिनी ॥ सहर-दल-मधयसथा सहर-दल-बतिनो ।
हरपरिया हर-धयया हङकार-बीज-छपिणी ॥ लङकशवरी च तरला लोम-मास-परपजिता । कषमया कषमकरी कषामा कषीर-विनद-सवरपिशशी ॥ कषिपत-चितत-परदा नितय कषौम-वसतर-विलासिनी । छिनना च छिनन-रपा च कषधा कषोतकार-रपिणी ॥ सब-वरण-सथी दवी सव-परसपतपरदायिनी । सरव-समपतपरदातरी च ` समपदापद-विभषिता ॥ सतव-रपा च सरवारथा सरव-दव-परपजिता ।
सरवशवरी सरव-भाता सरवजञा सरसातमिका ॥ सिनधमनदाकिनी गङगा-नदी सागर-रपिणी । सकशी मकत-कशो च डाकिनी वर-वाणनी ॥ जञानदा जञान-गगना सोम-मणडल-वासिनी । आकाश-निलया नितया परमाकाश-रपिणी ।!
अननपरणा महानितया महादव-रसो-दचा । मङगला कालिका चणडा चणड-नादाति-भीषणा ॥ चणडासरसय मथिनी चामणडा चपलातमिका । चणडी चामर-कशी थ चलतकणडल-धारिरणो ॥
[६५९
'झणड-माला-धरा नितया खणड-मणड-विलासिनी । “खडग-हसता मणड-हसता वर-हसता बर-परदा ॥ ऋसि-चम-धरा . नितया पाशाकश-धरा परा । शल-हसता शिव-हसता घणटा-नाद-विलासिनी ।।
धनरबार-ध रादितया नाग-हसता नगातमजा । .
'साहिषासर-हनती च रकत-बीज-विनाशिनी ॥ रकतपा रकत-गातरा रकत-हसता भय-परदा । असिता च धरम-धरा पाशाकश-धरा परा ॥ 'धनरवाण-धरा नितया धसर-लोचन-नाशिनी । परसथा दवता-छतिः शरवाणी शारदा परा ॥ चाना-वरण-विभषाङगी नाना-राग-समापिनो । घश-वसतर-परीधाना पषपायध-धरा परा ॥ खकत-रञजित-मालाढया मकता-हार-बिलासिनी ।
-वरण-कणडल-भषा च सवरण-सिहासन-सथिता ॥ सनदराङगी सवरणाभा शामभवी शकटातमिका । सरव-लोकश-विदया च मोह-सममोह-कारिणी ॥
शरयसी सषटि-रया च छिननचछम-मथी चछला । छिनन-मणड-धरा नितया नितयाननद-विधायिनी ॥ ननदा परणा च रिकता च तिथयः परण-घोडशी । कहः सकरानति-रपा च पञचःपरव-विलासिनी ॥
यरच-बाण-धरा नितया पशचम-परीतिदा परा ।
यञच-पतराभिलाषा च पञचामत-विलासिनी ॥
5६]
पञचाली पशचमी दवी पशच-रकत-परसारिणी ।
पचच-बाण-धरा नितया नितय-दातरी दया-परा ॥
पललादि-परिया नितयाऽपश-गमया परशिता । परा पर-रहसया च परस-परम-विहवला ॥ कलीना कशि-मारगसथा कल-माग-परकाशिनी । कलाकल-सवरपा च कलाणव-मयी कला ॥ रकसा च काल-रपा च काल-कमपन-कारिणो । विलास-रपिणी भदरा कलाकल-नमसकता ॥
कबर-वितत-धातरी च कमार-जननो परा । कमारो-रप-ससथा च कमारी-पजनामबिका ।। करजध-नयना दवी दिनशासयापराजिता । कणडली कदली-सना कमारग-रहिता वरा ॥ अननत-रपाननतसथा आननद-सिनध-वासिनी । इल।-सवरपिशी दवो इई-भद-भयङकरो ॥ इडा च पिङगला नाडी इकाराकषर-रपिणो ।
उमा चोतपतति-पा च उचच-भाव-विनाशिनी ॥
ऋगवदा च निराराधया यजरवद-परपजिता ।
साम-वदन सदभीता अथरव-वद-भाषिणो ॥। ऋकार-झरपिणी ऋकषा निरकषर-सवरपिणी । अहि-दरगा-ससाचारा इकाराण-सवरपिणो ॥। ओङकारा परणवसथा च ओडकारादि-सवरपिणी । अनलोम-विलोमसथा थकार-वरण-समभवा ॥
[ &७
पःजञाशद-वरण-बोजाढया पःडाशनमणड-पालिका ।
परतयका दश-सखया च षोडशी छिबचससतका ।!
षडङग-यवती-पजया षडङक-रप-रवाजिता । षड-वकतर-सशचिता नितया विशवशो षडगदालया ॥ 'माला-सनतरःसयो सनतर-जप-माता मदालसा ।
सरव-विशवशवरी शकतिः सरवाननद-परदाखिनो ॥ इति शरीछिननमसताया नाम-साहरसरमततमम । पजा-करमण कथित साधकाना सखादहम ॥
गोपनीय गोपनीय गोपनीय न सशयः । शरदधररातर मकत-कशो अकतिनयकतो भवननरः ॥ जपितवा पजयितवा च पठननाम-सहरकभम । विदया-सिदधिभवततसय षणमासाभयास-योगतः ॥ यन कन परकारण दवी-भकति-परो भवत ।
शरखिलान सतमभयललोकान राजञोऽपि मोहयत रदा ॥
आकरषथद दव-शकति मारयद दवि विदटिषम ।
शतरवो दासता यासति यासति पापानि सकषयम ॥ मतयशच कषयता याति पठनाद भाषणात परिय । परशसतायाः परसादन कि न सिदधयति श-तल ॥
इद रहसय परमस पर सवसतययन महत ।
धतवा बाहौ महासिदधिः परापयत नातर सशयः ॥ अनया सदशी विदया विदयत न महशवरि । वारमक त योऽधीत सब-सिदधीशवरो भवत ॥ 5८].
कल-तरार कलाषटसया कह-सकरानति-पब ।
यशचमा पठत विदया तसय समयक फल शयण ॥
` अषटोततर-शत. जपतवा पठननाम-सहललकमस ।
भकतया सततवा महादवी सरब-पापात परधचयत ॥ सरव-पापविनिरमकतः सरव-सिदधोशवरो भवत । अषटमया वा निशोथ च चतषयय-गतो नरः ॥
माव-भकत-बाल वतवा पढचचाम-सहररकम ।
सदश-बाम-बदया त मास-तरय-विधानतः ॥ दरजयः काम-रपशच मह।-बल-पराकरमः । कमारो-पजन नाम-मनतर-सातर पठनचरः ॥ एतनमनतरसय पठनात सरव-सिदधोशवरो भवत ।
इति त कथित दवि सरव-सिदधि-पर नरः ॥ जपतवा सततवा सहदवी सरव-पापः परमचयत ।
न परकाइशरमिद दवि सरव-दव-तमसकतस ॥
इद रहसय परम गीपतवय पश-सङकट । इति सकल-बिभतहत-भरत परशसत,
पठति य इह मरतयशछिननमसता-सतब च । धनद इब धनाढयो माननीयो नपाणा,
स भवति च जनानामाशरयः सिदधि-वकता ॥ ॥ इति शरी विशवसार-तनतर शिव-पारवती-समवा द
शरीिनञमसता-सहसननाम सतोतर समपरणम ॥
ss
18८
1 मलय ६५-०००
बिसतत जानकारी हत समपरक कर!