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मुनजी-ए-कामल · 2 बार अÔवल munajjī-e-kāmil.ehsānullāhaurrahmatullāh kīhairankunsar-guzasht byBarkatullāh (Aneditedextractfrom: klīsiya-e-panjābkādānāmemār

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  • मुन जी-ए-का मलए सान-उललाह और र त-उ लाह

    क हैरानकुन सर-गुज़ त

    बरकत-उ लाह

    च मा मी डया

  • 2

    बार अ वल

    munajjī-e-kāmil. ehsānullāh aur rahmatullāhkī hairankun sar-guzasht

    by Barkatullāh

    (An edited extract from:klīsiya-e-panjāb kā dānā memār.

    ārch ḍīkan ehsānullāh)

    © 2018 Chashma Media. This work is licensedunder a Creative Commons Attribution-NoDerivatives 4.0 International License.

    Bible quotations are from UGV.Editing, design and layout (2018) by

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  • फ़ह र त-ए-मज़ामीन

    1 शेख़ ए सान अली क हैरानकुन कहानी 4वाजगान क क़ौम . . . . . . . . . . . . . . . . . . 5इक़ तसाद हालत . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 5मसीह के पहले पैरोकार . . . . . . . . . . . . . . . . 6मशन कूल का असर . . . . . . . . . . . . . . . . 8शेख़ ए सान अली . . . . . . . . . . . . . . . . . . 11

    2 बटाला के अ याम 29कूल म बारा दा ख़ला . . . . . . . . . . . . . . . . 30गुनाह से नजात का एहसास . . . . . . . . . . . . . . 31बटाला म उ ताद . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 33ख़ा दम बनने क वा हश . . . . . . . . . . . . . . . 37

    3 नारोवाल को वापसी 394 भाई र त अली का पुर-ख़ार रा ता 42

    र त अली को शक आता है . . . . . . . . . . . . . . 42ज़लज़ला और वबा . . . . . . . . . . . . . . . . . . 53अपने ईमान का अला नया इ ार . . . . . . . . . . . . 55बप त मा और यगान का दबाओ . . . . . . . . . . . . 67बेटे बरकत-उ लाह क ईमान तक राह . . . . . . . . . . 69ज़ दगी क गवाही . . . . . . . . . . . . . . . . . . 76र त-उ लाह क मुह बत का ग़ बा . . . . . . . . . . . 78

  • 1शेख़ ए सान अली कहैरानकुन कहानी

    उ ीसव सद के वु त म नारोवाल एक छोटा सा क़ बा था जो त सीलरइ या ज़ला यालकोट म वाक़े था। यह क़ बा दरया-ए-रावी के शमालक जा नब च द मील पर वाक़े है। उस ज़माने म न कोई रेल थी और नप क सड़क थी।कहते ह क साढे़ पाँच सौ साल ए ज़ला मु तान के च द अरोड़े ह

    ख़ानदान स यद जनीब-उ लाह के ज़रीए मुसलमान हो कर मश रक़क जा नब चल पड़े और इस जगह रहाइश-पज़ीर हो गए। एक जाटनार सह नाम भी उन के साथ हो लया जस क वजह से इस मक़ामका नाम नारोवाल पड़ गया। स यद जनीब-उ लाह क ख़ानक़ाह शहरके बाहर मौजूद है।

  • 5वाजगान क क़ौम

    यह मुसलमान ता जर थे। वह वाजगान कहलाते थे और ज मू के रा-जा के ज़ेर-ए- कूमत थे। वह म हब के शया थे और इस म हबके दल-दादा। वह नमाज़, रोज़ा और द गर सूम के स त पाब दथे। अ याम-ए-मुहरम म ता ज़या नकालना, मातम करना और मर सएपढ़ना उन का मामूल था।जस ज़माने का हम ज़ करते ह नारोवाल क आबाद दो तीन

    हज़ार से ज़ाइद न थी। क़ बे का बड़ा बाज़ार उस को दो ह स मत सीम करता था। एक ह से म क़ौम-ए- वाजगान आबाद थी औरसरे ह से म ह , स ख और अहल-ए-सु त ब ते थे। ले कन दोनह स म कसी क़ म क मनी या अदावत न थी। इस के बर-अ सह , स ख और शय म बरादराना ता लुक़ात थे, यूँ क शयातव म-पर ती और क़ -पर ती म मु तला थे और ह शया एकसरे के म हब म गोया शरीक थे। शया दे वय को पूजते, चुटया रखते,तीथ को जाते थे जब क ह शया मल कर पीर -फ़क़ र को मानते,जनीब-उ लाह शाह क ख़ानक़ाह क पर तश करते, ता ज़या-पर तीम ह सा लेते और ता ज़य के सामने म त मानते थे। दोन मज़हबके छोटे ब चे बड़ को वाह वह ह ह या मुसलमान “चचा” और“ताया” कहते थे। ह म जद म जा कर मुसलमान क म रत मशा मल होते थे। शाद याह के मौक़े पर या बीमारी और मौत के मौक़ेपर ह मुसलमान बराबर के शरीक होते थे।

    इक़ तसाद हालतउस ज़माने म क़ बे म पए-पैसे के स के आम नह थे। लोग अनाजही से तजारत करते थे। धोबी क धुलाई, दज़ क सलाई, जूलाहे क

  • 6उजरत वग़ैरा अनाज ही से अदा क जाती थी। सराफ क कान परको ढ़य का ढेर लगा रहता था, और एक आने म 24 कौ ड़याँ मलतीथ । बाज़ औक़ात इन को ड़य से माल मोल लया जाता था।

    वाजगान क क़ौम तजारत-पेशा थी, और सब पार थे—कोईछोटा, कोई बड़ा। नारोवाल एक र-उ तादा क़ बा था। वहाँ तक जानेक सब सड़क क ची थ , और वह हर तरफ़ से नद -नाल और रावीद रया से घरा आ था। लहाज़ा उन दन म सफ़र करना अज़ाब था।लोग क़ बे के बाहर जाना नह चाहते थे, और र ता र ता क़ौम काअ सर ह सा ग़रीब और नादार हो गया। ले कन कसी ने इस क़ौमम कभी कसी को भीक माँगते नह देखा। बाज़ ख़ानदान तंग आ करलाहौर, अमृतसर, बटाला वग़ैरा शहर म जा बसे जहाँ वह मालदार होगए। बाज़ ख़ानदान ने इद गद के गाँव म डेरा जमा लया और पारकरकेख़ुश-हाल हो गए। कफ़ायत- शआरी उसक़ौमक ख़ुसू सयत थीजसका क़दरती नतीजा यह आ क उस के अफ़राद उमूमनख़ुश-हालरहे।

    मसीह के पहले पैरोकारएक दन क़ौम-ए- वाजगान का चौधरी शेख़ सैन ब श कूमत केलालच से तंग आ कर यालकोट गया। वहाँ उस क मुलाक़ात एकपरदेसी बनाम फ़ट्सपै क1 से ई जस ने उसे इंजील जलील कख़ुश-ख़बरी सुनाई। इस नजात-ब श पैग़ाम म कुछ ऐसा जा था कउस ने अल-मसीह के क़दम मआने का फ़ैसला कर लयाऔरअमृतसरजा कर 1854 म बप त मा पा लया। जब वह नारोवाल वापस आयातो उस के अपने अजनबी हो गए। उसे तरह-तरह क त लीफ़ कासामना करना पड़ा, पर वह ज़रा न घबराया ब क मदानावार तमाम1T.H. Fitzpatrick

  • 7मुश कलात पर ग़ा लब आया। उस क रात दन यही आ थी क उसके तीन बेटे भी अल-मसीह के फ़मा-बरदार हो जाएँ। उस का मसीहीनाम पौलुस रखा गया था, और ग़ैरत के लहाज़ से यह नाम मौज़ूँ था।ख़ुदा ने उस क आ सुन ली और उस क वफ़ात (1870) से पहलेउस का सरा बेटा सा दक़ मसीह फ़रवरी 1859 म और पहला बेटानुसरत-उ लाह उसी साल के दसंबर म अपनी बी वय समेत ख़ुदाव दमसीह के क़दम म आ गए।तीसरा बेटा 1876 म अल-मसीह का पैरोकार हो गया। उस का नाम

    अली मुह मद था। उस क आदत लड़ाई-झगड़े क थी जस क वजहसे लोग उसे “कुप ा” बुलाया करते थे। मसीह का पैरोकार हो कर उसक तबीअत ऐसी बदल गई क उस का नाम “सुप ा” पड़ गया। मयाँपौलुस का चौथा बेटा न कू शाह सब के बाद ईमान लाया।नारोवाल म पहले-पहल दो परदे सय 1 को इंजील जलील का पैग़ाम

    सुनाने का शरफ़ हा सल आ। जस मक़ाम पर आजकल इबादत-गाहखड़ी है उस के सामने बड़ का एक बड़ा दर त होता था। इन मुनाद नेइस के साय म नारोवाल के बा श द कोआराम-ए-जान क ख़ुश-ख़बरीसुनाई।1870 म बेटमन2 पहली दफ़ा और फर 1872 म नारोवाल आया।

    बेटमन बड़ा ज़बरद त मुब शर था। वह नारोवाल क ह का यासाथा। उसे दन रात एक ही धुन लगी थी क कस तरह उन हज़ार हको उन के नजात-द ह दे के क़दम म लाए। उस ने वाजगान के मुह लेम रहाइश इख़ तयार कर ली और अं ेज़ी लबास को ख़ैरबाद कह करकुरता पाजामा पहन लया। जस मकान म वह रहता था वह क चा था।उस के घर का यह हाल था क

    1 फ़ट्सपै क और ॉ ज (Strawbridge)2Rowland Bateman

  • 8

    و ا و اہ در در ں در و و دار و

    जो भी बात करना चाहे अपनी मज़ से आए और अपनीमज़ से जाए।हा कम, ोढ़ का मुहा फ़ज़ या दरबान इस दरगाह मनह है।

    उस क बाज़ारी मुनाद और अनथक को शश का नतीजा यह आ कमशन कूल के तुलबा यके-बाद-द गरे अल-मसीह के क़दम म आनेलगे। यूँ मु सफ़ शेर सह बाजवा, र त मसीह वाइज़ और उन के भाईअ द मसीह, हमीद उद-द न सा लक, द ना नाथ, वधावा मल, वा रसउद-द न, सु त शाह, डा टर मीरान ब श अ ा , डा टर द ना नाथेतू द ा जैसे लोग नयाऔर अपने र तेदार क मुह बत से मुँह मोड़कर आ ख़रत को नया पर तरजीह दे कर अल-मसीह के पैरोकार होगए।हर तरफ़ शोर मच गया। ले कन फ़साद और ग़ौग़ा के बावुजूद ख़ुदा-

    व द का यह जोशीला मुब लग़ नहायत दलेराना काम करता गया औरजवान ह , मुसलमान और स ख को नारोवाल और इद गद केइलाक़े म इंजील का नजात-ब श पैग़ाम सुनाता रहा।

    मशन कूल का असरख़ुदा का करना ऐसा आ क बेटमन क आमद से पहले ही मशनकूल के हेड-मा टर भोला नाथ घोष थे जो ख़ुदाव द मसीह के इ क़म डूबे ए थे। वह सलीब के जाँ- नसार सपाही और इंजील के पैग़ामको हर अदना-ओ-आला तक प ँचाने म हर व त कोशाँ रहते थे। उनक मसीही ज़ दगी का असर नारोवाल पर उमूमन और मशन कूल के

  • 9तुलबा पर ख़ूसूसन ब त गहरा था। ता लबान-ए-हक़ के लए उन के घरके दरवाज़े चौबीस घंटे खुले रहते थे। और उन क भोली-भाली मुह बतभरी ज़ दगी ने छोट और बड़ सब को मोह लया था।इधर परदेसी मुब लग़ जोश से भरपूर, उधर कूल का बंगाली हेड-

    मा टर इ क़-ए-मसीह म सरशार तो जमाअत यूँ न सरस ज़-ओ-शादाब होती? इंजील क तालीम सोसाइट के म के मुता बक़ तमाममशन कूल म ला ज़मी क़रार द गई थी। हेड-मा टर सा हब द नीगु तगू करने का मौक़ा हर व त ढँूडते थे। उन का एक शा गद रशीदलखता है,

    सब से पहले घंटे म वह हम को अं ेज़ी पढ़ाते थे। जब कभी सबक़ यादन होता—मार कौन खाए, यूँ क वह बुरी तरह मारते थे—बस जाते हीद न का कोई मसला छेड़ देना, इंजील पर कोई ए तराज़ कर देना। फरगया एक घंटा, दो घंटे, तीन घंटे, लगातार जमाअत क त द ली के बग़ैरमुबाहसा होता रहता। ह ते म एक दो दफ़ा ज़ र ऐसा हो जाता, मगरहमारे बुजग बाबू सा हब हमारी शरारत को मुतलक़ न समझते। वह अपनेद नी मसाइल म ही ग़क़ रहते थे। जस का नतीजा यह आ क अं ेज़ीतो हम को ख़ाक न आई, ले कन ईसाई तालीम और इ लाम और हम हब क हम को ब त अ छ वाक़ फ़यत हा सल हो गई।

    तुलबा कूल के बाहर अपने वा लदैन से क़रआन, हज़रत मुह मद,पुराण और वेद क तालीमऔर कृ ण महाराज क ज़ दगी क न बतपूछते थे। हेड-मा टर के तरीक-ए-कार का असर कूल के असा तज़ापर क़दरती तौर पर होना था और आ। चुनाँचे फ़ास के उ ताद मौलवीअ द ब श जो तबीअत के लहाज़ से सूफ़ थे उ ह ने कसी कोइंजील पढ़ने से या मसीह का पैरोकार हो जाने से कभी न रोका। और नउ ह ने इंजील के ख़लाफ़ कभी कोई क लमा मुँह से नकाला। बेटमन20 नवंबर 1873 के रोज़-नामचे म लखते ह,

  • 10म शहर म सा दक़ के घर था। कूल म पढ़ाया। बाज़ार म मुनाद क ।लड़क कोफ़टबॉलखेलने के लए इक ा कया। वा रसआयाऔर उस नेसाफ़ तौर पर इ ार कया क म मसीह पर ईमान लाया ँ और बप त मापाने को त यार ँ। र ता र ता ब त लड़के जमा हो गए। जब मीराँ ब शने अपने ईमान क पु तगी का इ ार कया तो मेरी ख़ुशी क इ तहा नरही। उस का बाप अ द ब श कुछ तो इंजील क तालीम से, कुछ भोलानाथ घोष के मसीही अ लाक़ और बे रया ज़ दगी से और कुछ अपनेबेटे के ख़यालात से मुतअ सर हो गया है।

    ग़रज़ कूल के लड़क का हर व त जमघटा लगा रहता। इन लड़कम मुसलमान थे, ह थे और स ख भी थे। ले कन सफ़ च द एकको ही यह तौफ़ क़ ई क वह जुरअत करके अला नया अपने नजात-द ह दे मसीह का इ ार करके बप त मा पाएँ। ईसा मसीह ने सच कहाक बुलाए ए तो ब त ह, ले कन चुने ए कम।1 इन चुने ने अपनेनजात-द ह दे क दावत को क़बूल कयाऔर उस का वादा स चा पायाक नया के ताक़तवर

    लेले से जंग करगे, ले कन लेला अपने बुलाए गए, चुने एऔर वफ़ादार पैरोकार के साथ उन पर ग़ा लब आएगा,यूँ क वह र ब का रब और बादशाह का बादशाह है।(मुकाशफ़ा 17:13-14)

    जन लोग ने नजात क दावत क़बूल करने क सआदत पाई उ ह नेख़ुदा को पा लया और जो “रोज़मरा क परेशा नय और दौलत केफ़रेब”2 म आ कर रह गए वह ज़ दगी भर द त-ए-तअ सूफ़ मलतेरहे।यह वह इब तदाई ज़माना था जब नारोवाल म कोई इबादत-गाह न

    थी। इबादत कूल म होती थी, और लोग को बप त मा भी कूल म1म ी 22:142म ी 13:22

  • 11ही दया जाता था। मशन कूल हानी ज़ दगी का मकज़ था जहाँसे आ ताब-ए-सदाक़त क शुआएँ चार तरफ़ फैली ई थ । जब कोईबप त मा पाता तो कूल म तुलबा क तादाद फ़क़त पाँच दस रह जाती,ले कन चूँ क उ ताद अपने मज़ामीन जाँ- फ़शानी से पढ़ाते थे और लड़-क से ख़ूब मेहनतकरवाते थे यह हालत सफ़च द रोज़ा होतीऔर र तार ता तुलबा वापस कूल म बाक़ाइदा हा ज़र हो जाते थे।

    शेख़ ए सान अलीघर क क र शया हालतहम ने क़दरे तवालत के साथ नारोवाल म जमाअत के आग़ाज़-ओ-क़याम का ज़ कया है ता क नाज़रीन को उस ज़माने के माहौलका पता लग जाए जब क़ौम-ए- वाजगान म से मुतअ द ख़ुश-हालऔर आसूदा ख़ानदान और अफ़राद अपने म हब और र तेदार कोख़ैरबाद कह कर मसीह के फ़मा-बरदार हो गए थे। शेख़ ए सान अलीभी इस क़ौम के एक ऐसे फ़द थे।शेख़ ए सान अली के वा लद शेख़ ब नया थे जो चमड़े का कारोबार

    करते थे। वह बड़े ज़ा हद, मु क़ और पासा थे। इन ही वुजूहात के बाइसवह वाजगान क बरादरी म मु ताज़ और वा जब-उल-इ ज़त समझेजाते थे। बमुश कलकोई श स था जो उन का नाम ले कर उ ह पुकारताथा ब क ख़ताब करते व त लोग उ ह “जनाब” कहते और जब उनका ज़ करना होता तो “जनाब ब नया” या सफ़ “जनाब” कहते।उन का व त बेशतर म जद म कटता। जब लोग उ ह कान पर न पातेतो सीधे म जद म मलने को चले जाते थे। न-ए-इ फ़ाक़ से उनक शाद भी एक ऐसी शरीफ़-उल-न स बीबी से ई जो उन क तरहनमाज़, रोज़ा और श रयत क स त पाब द थ । उन का घर इ लामी

  • 12शरअ का आइनादार था। ख़ुदा ने उ ह तीन बेटे अता कए। पहलौठे कानाम ए सान अली रखा गया जो 1858 म पैदा आ। मँझला बेटा र तअली 1860 म पैदा आ, और सब से छोटा बेटा मुह सन अली था।शेख़ ब नया का घर “बड़ी म जद” से कोई बीस गज़ के फ़ा सले पर

    था। जब उन के बेटे चार एक साल के ए तो उ ह म जद के म बम डाल दया गया जहाँ अरबी, फ़ास और उ ज़बान सखाई जातीथ । क़रआन का दस दया जाता था और शया म हब के उसूल कतालीम द जाती थी। उ ताद भी उ ह ऐसे मले जो पढ़ाने म मा हर थेऔर ताद ब-ओ-सरज़ नश म भी कमी नह करते थे। चुनाँचे मुझे यादहै क जब म ने एक दफ़ा अपने वा लद र त अली से एक उ ताद केबुरी तरह मारने क शकायत क तो उ ह ने एक न सुनी। उ ह ने तोशेख़ साद क गु ल तान ह ज़ कर रखी थी और शेख़ का मक़ूला यादथा क अ छे उ ताद क स ती बाप क मुह बत है। फ़रमाने लगे, “तुमसज़ा को या जानो? हमारे मयाँ जी हम को सुनने का म दे करहमारी पीठ पर आग क अँगीठ रख दया करते थे!”इस क़ म के उ ताद क तालीम-ओ-त क़ न का यह नतीजा आक “जनाब ब नया” के बेटे जब सयाने ए तो क़रआन के हा फ़ज़और शया म हब म प के हो गए। इधर माँ-बाप दोन सौम-ओ-सलातके पाब द, शया म हब के उसूल-ओ- सूम के दलदादा, घर म द नीमसाइल का हमेशा ज़ रहता। आस-पास क औरत बीबी मयम(ए सान अली क माँ) से क़रआन सीखने आत और द नी उमूर सेवाक़ फ़यत हा सल करत , उधर म जद-ओ-म ब क तालीम ने सोनेपर सुहागे का काम दे दया। क़बला र त मसीह वाइज़ इस ख़ानदानक न बत लखते ह,

    ए सान मुसलमान के घर म पैदा आ। मुसलमान भी शया, और शयाभी मुतअ सब। उन के ख़ानदान को असू लए कहा जाता था। गोयाअपनी क़ौम म म हब के लहाज़ से द नदारी का नमूना था। यह लोग

  • 13अपने सवा कसी को भी ख़ुदा का ब दा नह समझते थे। ह के हाथका खाना उन के वा ते नापाक-ओ-हराम था। तबरा-बाज़ी1 तो उन काम हबी उसूल था। इसी वजह से यह उसू लए भी कहलाते थे। अगरचेअपने म हब के पैरोकार के सवा सब उन क नज़र म म द थे, ले कनसब से यादा नफ़रत उ ह ईसाइय से थी। जहाँ कोई ईसाई उन के सामनेआया उ ह ने अपने उसूल पर फ़ौरन अमल कया और थूक दया। यहीहाल शया ए सान अली का था।2

    कूल म ईसाई म हब का मनए सान अली को इ म हा सल करने का अज़-हद शौक़ था। न-ए-इ फ़ाक़ से नारोवाल म मशन कूल मौजूद था जस म नारोवाल केह , मुसलमान, सु ी, शया और स ख लड़के पढ़ते थे। इद गद केगाँव के लड़के भी पैदल चल कर कूल आया करते थे। ए सान अलीको पढ़ने का शौक़ था, ले कन कूल ईसाइय का था जस म इंजील कतालीम ला ज़मी थी। पहले तो वह हच कचाया, ले कन चूँ क वह क रशया था उस ने दा ख़ल होने म कोई हज न समझा।ए सान कूल के औक़ात म अपने हम-जमाअत के साथ पढ़ता और

    इस के बाद अपने वा लद बुजु़गवार के कारोबार म मदद देता था।हम बता चुके ह क कूल के तुलबा को इंजील क तालीम ला ज़मीतौर पर द जाती थी और साथ साथ ह म हब और इ लाम के उसूलपर भी ब स आ करती थी। ए सान अली ने इंजील का मुतालआकरके ए तराज़ात त यार कए। मयाँ नुसरत-उ लाह कताब-ए-मुक़ सपढ़ाया करता था। ए सानअली नहायत गु ताख़ी से स त दल-आज़ादअ फ़ाज़ म अपने ए तराज़ात को पेश करता। डा टर द ना नाथ ेतूद ा जो उन के हम-जमाअत थे लखते ह,1 कसी गुनाह से बरअत यानी छुटकारा चाहना2मसीही बाबत नोवंबर 1929

  • 14ए सान इंजील का जानी मन था, यूँ क वह क र शया था। वह अपनेए तराज़ से मयाँ नुसरत-उ लाह का नाक म दम कर देता, ले कनमयाँ सा हब उस के गु ताख़ाना रव ये का ख़याल मुतलक़ न करते औरनहायत ख़ दा-पेशानी से उसे जवाब देते थे।

    ए सान अली बेटमन तक कसी को नह छोड़ता था। कूल के अ दरऔर बाहर बाज़ारी मुनाद के मौक़े पर वह उन पर ए तराज़ातक बौछाड़कर देता था। उन अ याम म एक म टर यूटल1 नारोवाल के बाज़ारम मुनाद करने के काम पर मामूर आ। वह जहाँ कह जाता ए सानअली उस का पीछा करता और पंजे झाड़कर उस के पीछे पड़ जाता।क़बला वाइज़ लखते ह,

    बाज़ार म मुनाद के व त तो वह इस तरह मसीही मुनाद क जान केपीछे पड़ जाता था क अब उसे क चा ही नगल जाएगा। ले कन वाहवाह—जहाँ ऐसे मुख़ा लफ़ थे वहाँ सा बर भी मौजूद थे। बेटमन सा हबही ऐसे थे जो इस सौलुस को बदा त करते थे। यह गु ताख़ी करता था,स त-ज़बानी करता था, मगर आगे जवाब नम और मुह बत से मलताथा। जब हम लोग ईमान लाए और वा रस जमाअत म दा ख़ल आ, उसव त ए सान का दाँत का पीसना क़ा बल-ए-द द था मगर उस का बसन चलता था।

    बेटमन भी अपने रोज़-नामचे म लखता है,ए सान अली ईसाई ईमान का स ततरीन मुख़ा लफ़ है। ह ा क उस नेद नी तआ सुब क वजह से कूल को भी छोड़ दया है ता क उस कनजासत से बचा रहे।

    1Beutel

  • 15बेटमन के साथ सफ़रअवाइल उ म ही ए सान अली क बीनाई म कमी वाक़े हो गई थी,और वह क़दरतन इस का इलाज करना चाहता था। तबीब के इलाजसे कुछ फ़ाइदा न आ। उन दन म नारोवाल म कोई ह पताल न था,और लोग ने “डा टर” का नाम भी न सुना था। चुनाँचे जब चच मशनने मदाना ह पताल और ज़नाना मशन ने ज़नाना ह पताल खोला औरडा टर आए तो नारोवाल के बा श दे ल ज़ डा टर क वजह से उनह पताल को “मदाना डाकख़ाना” और “ मस का डाकख़ाना” कहतेथे।बेटमन अपने पास च द अं ेज़ी दवाइयाँ रखता था जन से वह मामूली

    अमराज़ का इलाज कया करता था। इस वजह से ए सान अली कभीकभी आँख के इलाज के लए उस के पास जाया करता था। एक रोज़बेटमन ने उसे कहा, “म डा टर नह ँ, ले कन अगर तुम मेरे साथलाहौर चलो तो वहाँ तु हारा इलाज ख़ा तर- वाह तौर पर हो सकताहै। चुनाँचे लाहौर को रवानगी का दन मुक़रर करके वह चला गया।मुक़ररा रोज़ से एक रात पहले वह अपने एक न द क र तेदार

    बनाम क़बान को साथ ले कर बेटमन के पास प ँच गया। उन अ यामम बेटमन एक छोटे से ख़ैमे म रहा करता था। जब उस ने देखा क एकक बजाए दो आ गए ह तो उस ने पूछा क यह सरा लड़का कौन है?ए सान ने जवाब दया, “यह मेरी बरादरी का एक लड़का है और

    चूँ क यह सच बोलने का आद है म उसे अपने साथ ले आया ँ ता कलोग म गवाही दे क म आप के साथ सफ़ आँख के इलाज के लएजा रहा ँ और ईसाई होना नह चाहता।”बेटमन अपने रोज़-नामचे म लखते ह,1

    110 दसंबर 1873

  • 16म ने हैरान हो कर कहा, “ या तुम जैसे जोशीले मुसलमान के लए भीगवाही क कोई ज़ रत है?” बहर हाल म दोन लड़क को अपने छोटेसे ख़ैमे म ले गया, और वह मेरी चारपाई के नीचे ज़मीन पर सो गए।आधी रात के क़रीब ए सान ने क़बान को झनजोड़ कर जगाया और

    कहा, “उठ क़बान! उठ! नमाज़ पढ़ना न द से हज़ार दजा बेहतर है। मुग़ने बाँग दे द है।” ले कन न द का ग़ बा दोन पर तारी था और वह दोनसो गए। जब सु ह-ए-का ज़ब नमूदार ई और मुग़ चार तरफ़ बाँग देनेलगे तो ए सान ने क़बान को फर झनजोड़ा और कहा, “क़बान, अब तोउठ। अब तो सूरज नेज़ा भर ऊँचा हो गया है।”वह दोन तो नमाज़ पढ़ने चले गए ले कन म सोता रहा। जब सु ह-ए-

    सा दक़ नमूदार ई तो म भी उठ खड़ा आ। बाहर जा कर देखा क दोनलड़के कुएँ पर बैठे ह। सलाम आ के बाद म ने उन से पूछा, “ या तुमने नमाज़ पढ़ ली है?”ए सान ने जवाब दया, “हाँ, हम ने तो पढ़ ली है” और ल ज़ “हम”

    पुर-ज़ोर दया ता क इ लामी व त-ए-नमाज़और ईसाइय क इबादत केव त क तमीज़ ज़ा हर हो जाए और इ लामी व त क बरतरी सा बतहो जाए।म ने पूछा, “ या तुम ने ख़ुदा से उस झूट के लए जो तुम ने सु ह-सवेरे

    क़बान से बोला था मुआफ़ माँगी है?”उस ने कहा, “म ने कब झूट बोला है?”म ने जवाब दया, “ या तुम ने नह कहा था क अब तो सूरज एक

    नेज़ा ऊँचा हो गया है हालाँ क अभी मुग़ ने बाँग द थी?”उसका इस से कोई जवाब न बनआया। क़बान मुझे नहीफ़और बीमार

    नज़र आता था। चुनाँचे जब चलने का व त आया तो म ने ए सान कोकहा, “तु हारी आँख कमज़ोर ह, ले कन तु हारी टाँग मज़बूत ह। बेहतरहै क क़बान मेरे पीछे ऊँट पर सवार हो जाए और तुम पैदल चलो।” हमतीन अमृतसर के रा ते लाहौर क जा नब चल पड़े। म और क़बान ऊँट

  • 17पर सवार हो करआगे नकल गएऔर ए सान ल बी छलाँग मारता पैदलचला आया।

    दसंबर का वु त था। सद बड़ी श त क थी। राह म एक नद थी जसको पार करते व त बेटमन और क़बान दोन पानी म जा पड़े। बेटमन नेपहले क़बान को पानी म से नकाल कर उस के कपड़े रेत पर सुखाए।फर ही उस ने अपने कपड़ को उतार कर उ ह सुखाया। इस मामूलीसी मसीही ईसार-ए-न सी का असर ए सानऔर क़बान दोन पर ब तगहरा आ। जब बेटमन और क़बान के कपड़े सूख गए तो वह बाराऊँट पर सवार हो कर अमृतसर क जा नब चल पड़े। बेटमन लखते ह,

    हम दोन ऊँट पर ए सान से ब त आगे चले गए थे। और यूँ हम दोदन तक इक े ऊँट पर रहे। क़बान बेचारा बीमार था, और मुझे उस परब त तरसआता था। म ने उस से हमदद ज़ा हर क , और फर म ने उसेख़ुदाव द मसीह का नजात-ब श पैग़ाम सुनाया जो उस के लए बलकुलनया था। म ने उसे बताया क ख़ुदाव द मौत पर ग़ा लब आया है और यूँउस ने मौत का डंक तोड़ दया है। जब तक हम लाहौर प ँचे क़बान हक़का मुतलाशी बन चुका था। हम दोन ने ए सान को कुछ न बताया, यूँ कहम दोन जानते थे क अगर उसे इन बात का कह इ म हो गया तो वहक़बान को ज़बरद ती अपने हमराह वापस नारोवाल ले जाएगा।जब हम लाहौर प ँचे तो म इन दोन को अपने एक दो त के हाँ ले गया

    जो बड़ा क़ा बल डा टर था। ए सान क आँख को दखाने के बाद म नेउस से क़बान के लए दवा माँगी। उस ने दवा तो दे द ले कन साथ हीयह कह दया क वह इस मूज़ी मज़ से नह बचेगा।जब हम वापसअमृतसर प ँचे तो म एक दो त के हाँ ठहरा जस ने एक

    कमरा मुझे दया जब क सरे कमरे म उस ने दोन लड़क को उतारा।म चाहता था क अमृतसर म च द दन रह कर मौक़ा पा कर क़बान कोइंजील जलील का जाँ फ़ज़ा पैग़ाम सुनाऊँ और ए सान को इस बात कापता तक न लगे। इस म सद के तहत म ए सान को कसी न कसी बहाने

  • 18से बाहर भेजता रहता था। बद- क़ मती से मुझे सरे रोज़ ही नारोवालसे पैग़ाम मला क मेरा फ़ौरन वहाँ जाना ला ज़मी है। मेरे और नारोवालके दर मयान तीस मील का फ़ा सला और दो द रया हाइल थे, और मुझेवापस फ़ौरन चल पड़ना था। म ने ए सान को कसी काम पर बाहर भेजदया और फर क़बान को कहा, “म दो दन के बाद वापस आ जाऊँगा।तुम यह रहना।”उस ने मुझ से पहला सवाल यह कया क अगर आप चले गए तो मुझे

    कौन तालीम देगा?म ने उसे पढ़ने के लए कताब-ए-मुक़ स क एक ज द द । उस

    ने कताब को ख़ुशी से ले कर अपने त कया के नीचे रख लया। ले कनकहने लगा, “यह कताब तो बड़ी है, और भाई ए सान इस को देख लेगा।फर म या क ँ गा?”इस पर म ने उसे ज़बूर शरीफ़ क एक ज द द । इस को पा कर वह

    कहने लगा, “यह कताब त कए के अ दर तो छुप सकती है, ले कन याइस म हज़रत मसीह ह-उ लाह का भी ज़ है?” कताब दे कर मनारोवाल चला गया।क़बान ज़बूर को पढ़ रहा था क उसे लेटे लेटे न दआगई,और कताब

    खुली क खुली रह गई। जब ए सान वापस कमरे म आया तो उस कनज़र कताब पर पड़ी। उस ने क़बान को जगा कर ती से पूछा, “यहया है? तुम को यह कताब कहाँ से मली और तुम ने इस को यूँलया?”उस ने जवाब दया, “बेटमन ने मुझे द है, यूँ क म ने उस से माँगी

    थी, और म मसीही होना चाहता ँ।”उस का यह कहना था क ए सान ने उसे ब तर म से नकाल घसीटा

    और अपने हमराह नारोवाल ले गया। इस वा क़ए के तक़रीबन एक माहबाद म शय के क़ तान म से जा रहा था क म ने देखा क लोग क़बानका जनाज़ा लए आ रहे थे।

  • 19स चाई क तलाशए सान अली न सफ़ क र शया था जस को इ म हा सल करने काशौक़ था ब क वह एक ह सास दल और रोशन ज़मीर रखने वालाइ सान भी था। यह ना-मुम कन अ था क मयाँ नुसरत-उ लाह केमुलाइम और बेटमन के मुह बत भरे जवाबात जो वह उस के तुरशए तराज़ातऔर स त कलाम के व त देते थे उस के ज़मीर को मलामतन करते और तरफ़ैन के रव ये का फ़क़ उस के ह सास दल पर चोटन लगाता। जहाँ उस का रव या गु ताख़ी और बदज़बानी क जा नबमाइल था वहाँ उन का रव या नम , स और मुह बत-आमेज़ अ फ़ाज़का था। वह अपने दल को ब तेरा समझाता, ले कन उस का ज़मीरउसे हमेशा क़ाइल कर देता था।जब बेटमन ने क़बान को नद से नकाल कर उस क ख़बरगीरी कोयादा ज़ री तस वुर कया तो वह च क पड़ा और सोचने लगा कएक अं ेज़ ने यूँ क़बान क जान को स त सद के मौसम म अपनेआराम-ओ-आसाइश पर तज ह द और ख़ुद त लीफ़़ उठा कर एकमुसलमान बीमार लड़के का पहले ख़याल कया, हालाँ क उस ने क़बानको पहले कभी देखा भी न था। उस का ह सास दल उसे क़बान कमौत का भी कसी हद तक ज़ मेदार क़रार देता था क अगर वह उसेअमृतसर से घसीट कर ज़बरद ती नारोवाल न ले जाता तो वह शायदन मरता। फर वह अपने दल को समझाता क उस ने अपने तज़-ए-अमल से क़बान को जह ुम जाने से बचा लया। ले कन उस का दलइस क़ म क तफ़लाना तस लय को न मानता और उसे क़बान कमौत का ज़ मेदार ठहराता। फर वह यह सोचता क बेटमन ने सफ़उस क आँख दखाने के लए नारोवाल से राह-ए-अमृतसर लाहौर तकस त स दय के दन म यूँ साठ-स र मील आने और साठ-स रमील जाने क मुसीबत उठाई हालाँ क वह हमेशा उस से स त-कलामीऔर गु ताख़ी से पेश आता रहा था। ग़रज़ उस के दल म हानी कश-

  • 20म-कश और ज़हनी को तगी शु हो गई जो उसे कसी हालत म भीचैन न लेने देती थी। सौलुस क तरह वह “आँकुस के ख़लाफ़ पाँओ”मारता था।ए सान अली ने कूल छोड़ दया था और अब वह अपने वा लद के

    कारोबार म मदद देता था और साथ ही अ नास-ए-ख़ुदनी चावल औरगे ँ वग़ैरा क थोक- तजारत करता था। नारोवाल से क़रीब तीन मीलके फ़ा सले पर मंदराँ वाला गाँव आला क़ म के चावल के लए म रथा। चुनाँचे वहाँ से और सरे देहात से वह अ नास-ए-ख़ुदनी ख़रीदकर लाता और मुना सब नफ़ा पर फ़रो त करता था। नतीजे म उस काख़ानदान पहले से भी यादा ख़ुश-हाल हो गया।गाँवआते जाते व त यह 17, 18 साला नौजवान राह म द नी मसाइल

    पर ग़ौर कया करता था। उसे यह तालीम द गई थी क हज़रत मसीहपर जो इंजील ना ज़ल ई थी वह मुहरफ़ हो गई है। इसी वजह सेउस म त लीस, उलू हयत-ए-मसीह, क फ़ारा और इ न-अ लाह जैसीतालीम मौजूद हो गई है और इस के मु त लफ़ मक़ामात म तज़ाद-ओ-तनाक़स पाया जाता है, हालाँ क कलाम-ए-ख़ुदा म कसी क़ मका तनाक़स जाइज़ नह । फर उसे रह-रह कर कताब-ए-मुक़ स केउ ताद नुसरत-उ लाहऔर बेटमन क नम , तह मुल, स और मुह बतका रव या याद आता, और यह सवाल उस के दल म पैदा होता क इसक़ म क तालीम से ऐसे औसाफ़ कस तरह पैदा हो सकते ह? ख़ुद-फ़रामोशी, ईसार और यार जैसी ने कयाँ यूँकर ईसाइय का शेवा होजाती ह? अगर उन क तालीम बगड़ी ई है और अगर यह सच है कग म से ग म और जै से जौ नकलता है तो इस क़ म के औसाफ़उन म कहाँ से आ गए? चुनाँचे उस ने मुस मम इरादा कर लया कवह क़रआन-ओ-इंजील और शया म हब के उसूल और ईसाई द नक तालीम का अज़़-सर-ए-नौ मुवाज़ना करके सरात-ए-मु तक़ म कपैरवी करेगा।

  • 21मसीह क तरफ़ जू1876 के मौसम-ए-गमा का ज़ है क ए सान अली ऐन दोपहर केव त मशन कूल के हेड-मा टर भोला नाथ घोष के घर गया। उन केबेटे ऐस.ए.सी. घोष लखते ह,

    मेरी उ क़रीबन 6 साल क थी। म अपने बाप के पास कमरे के अ दरबैठा आ था। बाहर स त धूप थी। कड़कती गम के दन थे। म ने देखाक एक अठारह साला जवान कमरे के दरवाज़े क चक उठा कर शीशम से अ दर झांक रहा है। म ने अपने बाप को जगाया और उठ कर लड़केके लए दरवाज़ा खोला। लड़का अ दर आया और मेरे बाप के पास बैठगया। दोन एक सरे से बात करने लगे। र ता र ता लड़के क आवाज़ऊँची और त होती गई। ले कन मेरे बाप क आवाज़ नम और धीमीरही। ऐसा मालूम होता था क वह लड़के को मुलाइमत से कुछ समझारहे ह। उन क आँख से मुह बत टपक रही थी, ले कन लड़के क आँखसे ग़ से के शरारे नकल रहे थे। यह गु तगु कोई चार-पाँच घंटे जारी रहीजस के बाद लड़का चला गया।उस के जाने के बाद म ने अपने बाप से पूछा, “यह कौन था और या

    कहता था?”मेरे वा लद ने मुझे बताया, “यह लड़का ए सान है जो ईसाई म हब

    का स ततरीन मन था ले कन ना-मालूम यूँ। अब वह हक़ का ता लबहो गया है और इ लामी और मसीही मसाइल का मुक़ाबला करने के लएमुझ से मदद लेने आया था।”मेरी उ छोट थी और नासमझ क हालत थी। मुझे उन क आपस क

    बात का ख़ाक पता न लगा। बस इतना समझ गया क यह मुसलमानलड़का अब ईसाई हो जाएगा।

    ए सान अली बेटमन और मयाँ नुसरत-उ लाह के पास और अपनेमौलवी स यद सैन अली शाह के पास अ सर जाने लगा। वह द नीमसाइल छेड़ देता था ता क राह-ए-हक़ को इख़ तयार करे। कभी कभी

  • 22वह हच कचा कर अपने बाप और माँ से भी द नी मसाइल क न बतसवाल करता, यूँ क उस के दल म उन क बड़ी इ ज़त थी।इधर उस का हम-जमाअत द ना नाथ ेतू द ा मसीह का पैरोकार

    हो चुका था। मयाँ सुप ा और उस के बेटे र त और अ द मसीह परईमान लाए थे। वा रस-उद-द न को भी बप त मा मला था। उस के हम-म ब हमीद-उद-द न, वधावा मलऔर सु त शाह भी ख़ुदाव द मसीहके क़दम मआ चुके थे। ए सान अली इन लड़क से भी म हबी गु तगुकरता था। सब से बड़ा मसला जो उस के दरपेश था वह तहरीफ़-ए-इंजील का मसला था जो बु याद मसला था। अगर इंजील मुहरफ़ औरम सूख़ नह ई और इस क सेहत पर कोई ए तराज़ नह हो सकता तोइ नयत-ए-मसीह, उलू हयत-ए-मसीह, क फ़ारा और त लीस वग़ैराके मसले ईमान क से मानने ह गे, वाह इ सानी अक़ल इन उक़दको हल कर सके या न कर सके। यूँ क ज़ात-ए-बारी तआला इ सानीइ ाक से बुल द-ओ-बाला है।इस के पेश-ए-नज़र ए सान अली क तमामतर को शश इसी जु तजू

    म लगी रही क या मौजूदा इंजील वही है जो हज़रत मसीह लाए थे।उन दन म फ़डर क कताब मीज़ान-उल-हक़ का उ म तजुमा होगया था जस के मुतालए से उस पर यह ज़ा हर हो गया क जस इंजीलक क़रआन बार बार और जा-बह-जा त द क़ करता है वह वही इंजीलहै जो ज़माना-ए-रसूल म ईसाई अरब के हाथ म थी और जस कहज़ार नक़ल ज़माना-ए-मसीह से ज़माना-ए-मुह मद तक मु त लफ़ममा लक-ए-मश रक़-ओ-मग़ रब म मौजूद थ और जस के तजुमे इनछः स दय के दौरान बी सय ज़बान म हर मु क म मुर वज थे। चुनाँचेज़माना-ए-रसूल से पहले इंजील क सेहत म फ़तूर का वाक़े होना एकना-मुम कन अ था और ज़माना-ए-मुह मद के बाद तो यह अ मुहालथा। यूँ र ता र ता उस पर मु क शफ़ हो गया क इंजील क न बतमौल वय के ख़यालात बेबु याद ह।

  • 23अब उस ने अज़़-सर-ए-नौ इंजील-ओ-क़रआन का गहरा मुतालआ

    शु कर दया। वह ख़ुदा से स चे दल से आ करता था क ऐ ख़ुदा,मुझे अपनी राह दखा और सरात-ए-मु तक़ म पर चलने क तौफ़ क़अता कर। उस ने शया कुतुब-ए-त सीर-ओ- सयर का बग़ौर मुतालआकया, यूँ क अहल-ए-सु त क अहाद स उसे क़ा बल-ए-ए तराज़नज़र आती थ जन पर ईसाइय के ए तराज़ात मबनी होते थे।क़रआन क आयात से उसे यह इ म हो गया क ख़ुदा रसूल-ए-

    अरबी को कई मक़ामात पर म देता है क वह अपने गुनाह के लएमग़ फ़रत के ता लब ह और क क़यामत के दन आँहज़रत गुनाहगारक शफ़ाअत करा नह दगे। इस के बर-अ स हज़रत मसीह क इ मतपर क़रआन-ओ-इंजील दोन गवाह ह, और मसीह क न बत सब नबीगवाही देते ह क जो कोई उस पर ईमान लाएगा वह उस के नाम सेगुनाह क मुआफ़ पाएगा।घोष सा हब और बेटमन ने ए सान अली को त लीस क न बत

    बताया क इंजील तीन ख़ुदा पर ईमान रखने क तालीम नह देतीब क त लीस फ़ -त-तौहीद और तौहीद फ़ -त-त लीस पर ईमान लानेक त क़ न करती है। मसीह ख़ुदाव द ने नहायत वा ज़ह अ फ़ाज़ मफ़रमाया है क ईमानदार ख़ुदा-ए-वा हद और बर-हक़ को मान। औरपौलुस रसूल भी कहता है क एक के सवा कोई ख़ुदा नह । ख़ुदा एकही है यानी बाप जस क तरफ़ से सब चीज़ ह और एक ही ख़ुदाव द हैयानी ईसा मसीह जस के वसीले से सब चीज़ वुजूद म आ । इ नयत-ए-मसीह के बारे म उ ह ने बताया क इंजील क से बीबी मयम ख़ुदाक मआज़-उ लाह ज़ौजा न थ ब क इस ख़ताब से हानी र ते काज़ा हर करना मुराद है।क फ़ारे के मुता लक़ उ ह ने कहा क अगर गाय, बकरी, ऊँट वग़ैरा

    हैवानात गुनाह का क फ़ारा हो सकते ह तो मसीह जो “ख़ुदा का लेला”है नया के गुनाह यूँ नह उठा सकता?

  • 24ग़रज़, दोन ने मज़बूत दलाइल से ए सान अली क मु त लफ़ द नी

    मसाइल के मुता लक़ ह ा-ल-म र तस ली देने क को शश क ।जूँ-जूँ ए सान अली मसीहऔर इंजील-ए-मसीह के क़रीबआता गया

    उस का इज़ तराब बढ़ता गया, यूँ क मसीह पर ईमान लाने के नतीजेउस से छुपे न थे। वह अपने माँ-बाप का पहलौठा बेटा था जस से उनक उ मीद वाब ता थ । उस का ख़ानदान द नी उमूर म पेश पेश औरसब के लए नमूना था। ऐसे मु ताज़ ख़ानदान का वह चशम-ओ-चराग़था। अगर उस ने शया म हब को तक कर दया तो नया या कहेगी?उस के बाप क नाक कट जाएगी। उस क माँ जस को वह अज़-हदयार करता था मारे ग़म के मर जाएगी। दोन कसी को मुँह दखाने केक़ा बल न रहगे। उस के दोन भाइय और बहन का या हशर होगा?ख़ानदान के मु त लफ़ अफ़राद के दल जल जाएँगे।

    दल के फफूले जल उठे दल के ही दाग़ से।इस घर को आग लगी घर के चराग़ से।

    कभी वह अपने मुता लक़ सोचता क मेरा मु तक़ बल या होगा?बरादरी से ख़ा रज कर दया जाऊँगा। ख़ानदान और घर से नकालदया जाऊँगा। म सब क तरफ़ से मर जाऊँगा, और सब मेरी तरफ़से मर जाएँगे। कोई मेरे साथ कसी तरह का सरोकार न रखेगा। मेराकारोबार तबाह हो जाएगा, और म ख़ुद तबाह-हाल, ख़ाना-ख़राब औरज़मीन पर आवारा फ ँ गा। इस क़ म के ख़यालात उसे शहर के बाहरवीराने म ले जाते जहाँ वह बड़ीआ जज़ी के साथख़ुदा से आकरता कऐ ख़ुदा मुझ पर रहम कर! मुझे इस घटाटोप अंधेरे से नकाल कर अपनेनूर म ले चल। मेरी बेक़रारी और बेचैनी को र कर, और मुझे ताक़तऔर क़ वत अता कर ता क म राह-ए-रा त पर चलने क तौफ़ क़ पाऊँ,क म तान-ओ-त ी क तरफ़ से बेपवा हो कर ख़ा लस नीयत से तेरीपैरवी क ँ । मेरा दल हर तरफ़ से ख़ाइफ़ है, ले कन तू मेरे दल म से हर

  • 25क़ म का ख़ौफ़ और इज़ तराब नकाल दे, मुझे क़ बी इ मीनान औरआराम-ए-जान अता कर। ऐ मसीह, तू सब को जो बोझ से दबे ए हदावत देता है क मेरे पास आओ। म तुम को आराम ँगा और तु हारीजान आराम पाएँगी। अपना इ मीनान मुझे अता कर।ख़ुदा ने आ ख़रकार उस क दली आ सुन ली और यशूअ क तरह

    उसे फ़रमाया,म तुझे कभी नह छोडँगा, न तुझे तक क ँ गा …ले कनख़बरदार, मज़बूतऔर ब त दलेर हो …म फर कहता ँक मज़बूत और दलेर हो। न घबरा और न हौसला हार,यूँ क जहाँ भी तू जाएगा वहाँ रब तेरा ख़ुदा तेरे साथरहेगा। (यशूअ 1:5,7,9)

    आ ख़र लोग को पता लगा क ए सान अली इ लाम को तक करकेमसीह का पैरोकार होना चाहता है। हर तरफ़ शोर मच गया। क़यामत-ए-सुग़रा बरपा हो गई। हर तरफ़ से लानत और फटकार का बौछाड़शु हो गया। बेचारा ए सान उ ह ब तेरा कहता क मेरे साथ ब सकर लो। मेरी अक़ल मुझे कहती है क मसीही म हब ही अकेला स चादेन है। ले कन ऐसे श स से ब स कौन करे जो बाज़ारी मुनाद म हरईसाई वाइज़ का नाक म दम कर दया करता था। एक मन चले ने उसेजवाब म कहा,

    را ر ِ ذ ر ِ وसदहा लानत और फटकार ऐसे तेज़ ज़हन को।

    ए सान इस क़ म के पंजाबी-फ़ास अशआर पर हँस देता और जवाबम कहता,

  • 26

    دارم دارم ا دارم۔ دارم اमुझे ख़ुदा हा सल है, मुझे या ग़म?मुझे ख़ुदा हा सल है, मुझे या ग़म?

    जब उस के ख़ानदान को उस के ख़यालात क त द ली का इ म आतो बाप ने ब त समझाया। ले कन वह एक न माना। आ ख़र बाप नेकहा, “जा। गया गुज़रा आ। नामुराद।”माँ ने अपना सर पीट लया और कहा, “तू उस शैतान (बेटमन) के

    पास करने या जाता है जो तुझ को वरग़ला कर जह ुम क तरफ़ लेजा रहा है? मुह ले क औरत कहती ह क वह शैतान जो है सो है, परउस ने ए सान पर जा पढ़ दया है। तावीज़-गंडे से इलाज करो।मँझला भाई र त अली स त मु तइल आऔर तैश म आ कर लठ

    उठा कर चला क ऐसे भाई को जान से मार देना बेहतर है जो ख़ानदानक इ ज़त-ओ-आब का ख़याल नह करता। बरादरी के लोग उस सेकनारा करने लगे। बाप को कहा, “जनाब, उसे घर से नकाल द। वहउज़ू-ए-मुअ ल है। कसी ने यह हवाई उड़ा द क ए सान को कारोबारम घाटा पड़ा है और इसख़सारे क वजह से ईसाई होना चाहता है। कसीने कहा, “लालच बुरी बला है। अक़लम द को अंधा कर देता है।” कसीने कहा, “मेम से याह करना चाहता है।”ग़रज़ जतने मुँह इतनी बात। ले कन ए सान अब वह ए सान न था

    जो तैश म आ कर लोग को गा लयाँ दया करता था। वह हर श स सेतह मुल, स और मुलाइमत से बात करता और लान-तान का जवाबख़ुश मज़ाजी से दे कर हर एक के सामने इंजील क सदाक़त पेश करताथा। जो लोग उस से ब स करना चाहते वह उ ह खुला चैलज दे करकहता क अगर तुम दलाइल से मुझे क़ाइल कर लो तो म मसीह कापैरोकार नह र ँगा, ले कन अगर तुम मेरी दलील का जवाब न दे सकोतो तुम भी मेरे साथ मसीह पर ईमान लाओ। वाजगान क बरादरी उस

  • 27का हाल देख कर हैरान थी क या यही वह ए सान है जो बाज़ार औरकूल म कसी ईसाई को खड़ा नह होने देता था और हर जगह उ हपरेशान कर देता था।

    बरादरी का क़ता-ए-ता लुक़यह हालात देर तक नह रह सकते थे और न रहे। बरादरी के सरबराहए सान अली के बाप के पास गए और कहा, “जनाब, आप इस लड़केको समझाएँ। उस ने एक फ़ ना बरपा कर रखा है, और अब हालातहमारी बदा त से बाहर हो गए ह। आप क ख़ा तर हम को म ज़ूर थी,इस वा ते हम ने अभी तक उसे कुछ नह कहा। ले कन उस क ज़बानबढ़ती चली जा रही है। हर छोटे बड़े को चैलज देता फरता है। पहलेसैन ब श ईसाई हो गया, फर उस के बेटे-पोते ईसाई हो गए। वा रसईसाई हो गया। इद गद के गाँव के लड़के ईसाई हो गए ह और हो रहेह, और अब जनाब के लड़के ने हर जगह ऊधम मचा रखा है। आप हीबताएँ,

    यूँकर बुझेगी आग यह घर-घर लगी ई?

    अगर हम जनाब का लहाज़ न होता तो हम उसे दो दन म सीधा करलेते और फ़ौरन बरादरी से ख़ा रज कर देते। उसे भी होश आ जाती।”ए सान के बाप ने जवाब दया, “म ने उसे ब तेरा समझाया है, ले कन

    वह अपने इरादे का प का है। वह नह माना और न कभी मानेगा।”उ ह ने कहा, “ फर बेहतर है क आप उसे छोड़ द।”“जनाब” के सीने से एक आह नकली, और उ ह ने कहा, “म

    आ ख़रत को इस नया पर और अपने पहलौठे क मुह बत पर तज हदेता ँ।” उ ह ने ए सान को इन बात क ख़बर द ।उस ने जवाब म कहा, “जनाब, म भी आ ख़रत को इस नया पर

    तज ह देता ँ और इसी वा ते सब कुछ छोड़ कर और आप क , माँ

  • 28क और भाइय , र तेदार और अज़ीज़-ओ-अक़ा रब क मुह बत सेमुँह मोड़ कर मसीह का पैरोकार हो गया ँ। ले कन आप इस बात कायक़ न रख क म आप का वही ताबेदार बेटा ँ और ता-उ आप काऔर माँ का फ़मा-बरदार र ँगा।”बाप क आँख से आँसू जारी हो गए। माँ दहाड़ मार कर रोने लगी

    और ए सान से लपट गई। आह-ओ-नाला क आवाज़ बुल द । वहभी रोने लगा। बहन, र त अली और मुह सन अली सब के सब ज़ारज़ार रोने लगे। आ ख़र बाप ने कहा, “जब तू हमारी बात नह मानतातो जो तेरी मज़ है कर। ले कन ईसाई हो कर तू घर म नह रह सकता।बरादरी तुझ को ख़ा रज कर देगी और तू कह का न रहेगा।”ए सान ने एक आह भर कर कहा,

    ر در ا را و دار اहम ख़ुदा हा सल है, और हम नाख़ुदा दरकार नह

    वह घर से नकल कर सीधा बेटमन सा हब के पास गयाऔर उ ह तमामहालात बताए और कहा क अब म बप त मा पाने को त यार ँ। चुनाँचे21 अ ैल 1878 के रोज़ बेटमन ने ए सान अली को नारोवाल कइबादत-गाह म बप त मा दया। उस का मसीही नाम ए सान-उ लाहरखा गया।

  • 2बटाला के अ याम

    बप त मा पाने के बाद ए सान-उ लाह नारोवाल से बराह-ए-ज सड़,क केक , मयाद , डेरा बाबा नानक पैदल से बटाला को ख़ुदा का नामले कर चल पड़ा। उस क क़ौम ने क़ा-पानी ब द कर दया था। माँ-बाप, भाई-बहनऔर अज़ीज़ सब बेगाने हो गए थे, ले कन उस का दलइ मीनान से पुर और ख़ुशी से मामूर था। उस का मु तक़ बल तारीक था,ले कन उस के ईमान का नूर उस के पाँओ का चराग़ और उस क राहक रोशनी था। अब वह बीस-साला नौजवान था, और उसे ऐसा मालूमहोता था क जस तरह ख़ुदा ने हज़रत इबराहीम को कहा था,

    अपने वतन, अपने र तेदार और अपने बाप के घर कोछोड़ कर उस मु क म चला जा जो म तुझे दखाऊँगा। म…तुझे बरकत ँगा। (पैदाइश 12:1-12)

    इसी तरह ख़ुदा ने उसे भी अपने वतन और र तेदार और अपने बापके घर से नकाला है, और वह ज़ र बरकत पाएगा। बटाला प ँच करवह मसी हय के घर गया और उ ह बताया क ख़ुदा ने उसे ईमान लानेक तौफ़ क़ ब शी है। क़बला र त मसीह वाइज़ लखते ह,

  • 30जब ए सान ने नारोवाल को ख़ैरबाद कह कर बटाला म जा सर नकालातो उस ने गो त और ख़ून से सलाह लए बग़ैर ऐसा कया। ऐसे मुख़ा-लफ़ का इस तरह मसीह का इ ार करना न सफ़ हैरत-अंगेज़ था ब कक़ा बल-ए-यक़ न भी न था। लोग उसे शक क नगाह से देखते थे जैसापौलुस रसूल क न बत लखा है क भाइय ने उस के ईमान को शकक नगाह से देखा। मगर दखावे और असल ज द ज़ा हर हो जाते ह।ए सान-उ लाह ने ब त ज द वहाँ अपना ए तबार जमा लया।

    कूल म बारा दा ख़लाउन अ याम म बटाला क जमाअत म च द एक बगुज़ीदा ह तयाँ थ ।ऐफ़.एच. बै रग, एच.यू. वाइट े ट, मस टकर और बाबू ईशन चसघा वग़ैरा इस जमाअत के गौहर-ए-शाहवार थे। अ ैल 1878 मए सान-उ लाह का बप त मा आ था, और उसी अ ैल को बै रग नेअपना कूल खोला जस का पहला हेड-मा टर बाबू ईशन च सघामुक़रर ए।ए सान-उ लाह क उ बड़ी थी, यूँ क वह अब बीस साल का नौ-

    जवान था। तो भी उसे त सील-ए-इ म का बेहद शौक़ था, इस लएबै रग ने उसे अपने कूल म दा ख़ल कर लया। कूल म वह बड़ीमेहनत से काम करता और हमेशा जमाअत म अ वल रहने क को शशकया करता था। अगर कसी रोज़ वह कसी म मून म अ वल न रहतातो वह एक बेद ले कर कूल क बालाई म ज़ल पर चला जाता औरअपने आप को बेद से पीट कर ल -लुहान कर लया करता था। उस केसाथी द ना नाथ ेतू द ा और र त मसीह वग़ैरा इसी कूल म तालीमपाते थे। डा टर द ना नाथ ेतू द ा लखते ह,

    ए सान मेरे साथ नारोवाल मशन कूल म पढ़ता था और मेरा हम-जमाअत भी था। जब वह मसीही हो कर बटाला आया और कूल म

  • 31दा ख़ल आ तो हम दोन ने अपने पुराने ता लुक़ात को अज़़-सर-ए-नौताज़ा कया। उस का ईमान ईज़ा क आग म ताया गया था और ख़ा लससोने क मा न द चमकता था। म मॉनीटर था, और वह हर बात म मेरादहना हाथ था। हम दोन को यह एहसास था क कूल के हर लड़केक ज़ दगी के लए हम दोन खास तौर पर ख़ुदा के ज़ूर ज़ मेदार ह।हम समझते थे क हम तमाम तुलबा के बड़े भाई ह जन के सपुद ख़ुदाने यह ख़ास ख़दमत क है क उन क हानी ज़ दगी क नगहदाशतकर और उन के मुतालए वग़ैरा क तरफ़ तव जुह द। हर इतवार कोहम संडे- कूल क जमाअत के बाद लड़क को बाज़ार ले जाते थे औरअहा लयान-ए-बटाला को इंजील का जाँ फ़ज़ा पैग़ाम सुनाते थे।

    वाइज़ सा हब भी लखते ह,कूल म ए सान-उ लाह क मसीही ज़ दगी क तासीर अजीब कामकरती रही। एक तरफ़ बाबू सघा क ख़ामोश ज़ दगी, सरी तरफ़ए सान-उ लाह क पुर-जोश ज़ दगी ने तुलबा क ज़ द गय पर असरकर रखा था। एक दन का ज़ है क बाबू सघा सा हब क कोठपर संडे- कूल के वा ते आला लास के लड़के जमा ए। बाबू जी कहबाहर गए ए थे और अभी वापस घर नह लौटे थे। ए सान-उ लाह नेसंडे- कूल लेना शु कर दया। च द मनट म ही लड़क क हालतउलट-पुलट हो गई। उ ह ने रोना पीटना शु कर दया। कोई रोता है,कोई तौबा करता है। लड़के बलकुल हवास खो बैठे। यह हालत हो रहीथी क बाबू जी आ गए। आते ही वह अस लयत को समझ गए औरमुश कल से लड़क को ख़ामोश कया।

    गुनाह से नजात का एहसासजस वा क़ए का क़बला वाइज़ ने ऊपर ज़ कया है वह 1880 काहै जब ए सान-उ लाह मेहनत-मश क़त करके कोलकाता यूनीव सट

  • 32के एं ंस का इम तहान देने क त यारी म हमा-तन म ग़ूल था। यह सालउस क ज़ दगी म एक नहायत अहम साल था, यूँ क इस साल उसेइस बात का ज़ाती एहसास आ था क ख़ुदाव द मसीह उसे और कुलबनी-आदमको गुनाह क ताक़तऔर ग़लामी से नजात देता है। अब तकवह दलाइल-ओ-बुहान के ज़ोर से मसीही ईमान के उसूल का क़ाइल थाऔर हर एक को यही कहता था क मेरे साथ ब स कर लो और अक़लके ज़ोर से मुझे क़ाइल कर लो। अगर तुम मेरी दलील से आ जज़ होजाओ तो मेरी तरह इ लाम को तक करके मसीही ईमान के उसूल परईमान ले आओ। ले कन इस साल उसे यह एहसास आ क दलाइलऔर बुहान से कसी श स को गुनाह के पंजे से रहाई हा सल नह होसकती। ख़ुदाव द मसीह न सफ़ अक़ल का मा लक है ब क दलऔरज बात पर भी सफ़ वही क़ाबू कर सकता है। वही गुनाहगार को यहफ़ज़ल अता करता है क वह अपने गुनाह पर ग़ा लब आए।अब ख़ुद उस क जवानी का ज़माना था और कूल के जवान लड़के

    भी तरह-तरह क आज़माइश म गर रहे थे। बटाला शहर का माहौल हीऐसा था क यह जवान लड़के इद गद के हालात से मुतअ सर हो करआज़माइश म मु तला हो रहे थे। ए सान-उ लाह ख़ुद इन आज़माइशके ज़ोर और क़ वत से वा क़फ़ हो रहा था और साथ ही लड़क कहानी फ़लाह-ओ-बहबूद का ख़याल हमेशा उस के ज़ेर-ए-नज़र था।

    चुनाँचे उस पर अब यह हक़ क़त रोज़-ए-रोशन क तरह मु क शफ़ होगई क मेरा आक़ा जस पर म ईमान लाया ँ न सफ़ राह और हक़है ब क ज़ दगी और नजात भी है जस क सलीब पर से एक ऐसाचशमा नकलता है जस म नहा कर हर गुनाहगार पाक हो जाता है। यहएहसास ए सान-उ लाह क ज़ दगी म ज़ दगी भर कारफ़रमा रहा।चुनाँचे जब वह सी.ऐम.उस. क सद-साला बरसी पर 1899 म इंगलड

    गया तो उस ने कहा,

  • 33म शम के साथ इ ार करता ँ क बप त मे के व त म इंजील जलील केउसूल का सफ़अक़ली तौर पर ही क़ाइल आथा। मुझे इस हक़ क़तकाज़ाती तज रबा न था क मसीही द न क ताक़त हर इ सान क हानीज़ दगी को त द ल कर देती है। यह हक़ क़त जो मुझ पर दो साल बादखुली चराग़-ए-हक़क तरह रोशन है, और कोई इ तदलाल उसको बुझानह सकता। तब ख़ुदा ने मेरे दल को पकड़ा। उस का पाक नाम मुबारकहो जस ने मुझे अपना फ़ज़ द बना कर मुझे गुनाह से नजात ब शीऔरमेरे क़दम को अपने फ़ज़ द के हैरत-अंगेज़ नूर म चलाया। उस साल सेयह एहसास मुझ म रोज़-ब-रोज़ बढ़ता ही जा रहा है और म हर छोटे बड़ेइ सान को यही ख़ुश-ख़बरी सुनाता आया ँ और सुनाता र ँगा।

    बटाला म उ तादजब ए सान-उ लाह ने कालकोता यूनीव सट के मै यूलेशन का इम-तहान पास कर लया तो बै रग सा हब ने उस क फ़ास , उ क क़ा ब-लयत, जोश-ए-ईमान, बे रया ज़ दगी और इख़लास-ए-अक़ दत देखकर उसे कूल म उ ताद मुक़रर कर दया। वह बड़ी मेहनतऔर का वशसे पढ़ाने से पहले सबक़ त यार कया करता था। जहाँ वह लड़क कोब त यार करता था वहाँ वह उ ह सज़ा देने म भी दरेग़ न करता था।चुनाँचे ऐस.ए.सी. घोष लखते ह,

    जब मेरी उ दस साल के क़रीब ई तो मुझे नारोवाल से बै रग कूल भेजागया। वहाँ ए सान-उ लाह उ ताद था। वह लड़क को बड़ी अरकरेज़ीसे मेहनत करके पढ़ाता था और जो लड़का मेहनत करने से गुरेज़ करताया अपना सबक़ याद करके जमाअत म न आता वह उसे स त सज़ादेता था। ले कन तमाम ल�