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रवीन्द्रनाथ टैगोर और दुनिनया आइंस्टाइन जैसे महान वैज्ञानिनक, ‘‘ श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर को रब्बी
’’ ‘‘ ’’ टैगोर के नाम से पुकारते थे। निहब्रू भाषा में रब्बी का अथ& ‘‘ ’’ ‘‘ ’’ होता है मेरे गुरू । यहूदी धम& गुरू को भी रब्बी कहा जाता
है। आइंस्टाइन और गुरू रनिवन्द्रनाथ टैगोर के बीच हुए पत्र ‘‘ ’’ व्यवहार में रब्बी टैगोर का साक्ष्य मिमलता है। श्री रवीन्द्रनाथ
ठाकुर से अल्बट& आइंस्टाइन की मुलाकात सम्भवतः तीन बार हुई। यह तीनों मुलाकात अलग- अलग समय में बर्लिल>न में हुई थी।
सव&प्रथम टैगोर जी ने ही गाँधी जी को महात्मा कहकर पुकारा था। और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस रनिवन्द्रनाथ
टैगोर के कहने पर ही गाँधी जी से मिमले थे। 1919 में हुए जलिलयाँवाला काँड की रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने निन>दा करते
‘ ’ हुए निवरोध स्वरूप अपना सर का खिFताब वाइसराय को लौटा दिदया था। रबीन्द्रनाथ टैगोर का वैश्विJक मंच पर
मानवता का मूल्य निनधा&रण करने वाला साव&भौमिमक निवचार आज भी निवचारणीय है।
सम्मान उनकी काव्यरचना गीतांजलिल के लिलये उन्हे
सन् 1913 मेंसानिहत्य का नोबेल पुरस्कार मिमला।
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