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हमारे ऋषियों ने तत्व को सरल ढंग से समझाने के लिए आर्ष ग्रंथों का प्रणयन किया। साधक आत्म कल्याण के सूत्र पाकर चरम सत्य को समझ सकें, यही ऋषियों की दृष्टि है। इसके लिए मनीषियों ने अनेक भाष्य लिखे। वेदान्त ज्ञान के लिए दो चीजों की आवश्यकता होती है - प्रथम भाषा की उचित जानकारी द्वितीय अनन्य गुरुचरणाश्रय। संस्कृत का सम्यक ज्ञान न होने के कारण साधकों को कभी-कभी वेदान्त की पारिभाषिक शब्दावली क्लिष्ट लगती है। इसी समस्या के समाधान के लिए एक प्रयास किया गया है। "शौनक मञ्जूषा" के माध्यम से वेदान्त के कुछ गूढ़ बिन्दुओं को प्रकाशित किया जा रहा है। साधकों की जिज्ञासा का समाधान हो सके, यही इस प्रयास का अभीष्ट है। "तत्व जिज्ञासा" रखने वाले साधकों के लिए यह पत्रिका पथप्रदर्शक सिद्ध होगी ऐसा मेरा विश्वास है। इस कृति को स्पृहणीय बनाने में अपना योगदान देने वाले सभी लोगों को मेरा आशीर्वाद ! ----- स्वामी अभयानंद सरस्वती
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