दो शÞद आज तक पूयौी के सपक म आकर असंÉय लोग ने अपने पतनोमुख जीवन को यौवन सुरा के योग Ʈारा ऊवगामी बनाया है। वीयनाश और ःवनदोष जैसी बीमािरय की चपेट म आकर हतबल ह ु ए कई युवक-युवितय के िलए अपने िनराशापूण जीवन म पूयौी की सतेज अनुभवयुƠ वाणी एवं उनका पिवऽ मागदशन डू बते को ितनके का ही नहीं , बिक नाव का सहारा बन जाता है। समाज की तेजिःवता का हरण करने वाला आज के िवलािसतापूण , कु िसत और वासनामय वातावरण म यौवन सुरा के िलए पूयौी जैसे महापुष के ओजःवी मागदशन की अयंत आवयकता है। उस आवयकता की पूित हेतु ही पूयौी ने जहाँ अपने वचन म Ôअमूय यौवन-धन की सुराÕ िवषय को छुआ है , उसे संकिलत करके पाठक के समुख रखने का यह अप यास है। इस पुःतक म Ƹी-पुष, गृहःथी-वानःथी, िवƭाथȸ एवं वृƨ सभी के िलए अनुपम साममी है। सामाय दैिनक जीवन को िकस कार जीने से यौवन का ओज बना रहता है और जीवन िदय बनता है , उसकी भी Ǿपरेखा इसम सिनिहत है और सबसे मुख बात िक योग की गूढ़ िबयाओं से ःवयं पिरिचत होने के कारण पूयौी की वाणी म तेज, अनुभव एवं माण का सामंजःय है जो अिधक भावोपादक िसƨ होता है।