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SHRUTSAGAR RNI : GUJMUL/2014/66126...SHRUTSAGAR 3 December-2019 आचायर्ी कैलाससागरसूिर ज्ञानमंिदर का मुखपत्र

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  • 3SHRUTSAGAR December-2019

    आचायर् ी कैलाससागरसिूर ज्ञानमंिदर का मुखपत्र ISSN 2454-3705RNI : GUJMUL/2014/66126

    Year-6, Issue-7, Total Issue-67, December-2019

    वािषर्क सद यता शु क - . १५०/- Yearly Subscription - Rs.150/-अकं शु क - . १५/- Price per copy Rs. 15/-

    आशीवार्दरा ट्रसतं प. पू. आचायर् ी पद्मसागरसरूी रजी म. सा.

    संपादक सह संपादक संपादन सहयोगी िहरेन िकशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. ित्रवेदी

    एवंज्ञानमंिदर पिरवार

    १५ िदसम्बर, २०१९, िव. सं. २०७६, मागर्शीषर् कृष्ण पक्ष-४

    प्रकाशक

    आचायर् ी कैलाससागरसिूर ज्ञानमंिदर(जैन व प्रा यिवद्या शोध-सं थान एवं ग्र थालय)

    श्री महावीर जनै आराधना केन्द्र कोबा, गाधंीनगर-३८२००७फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉटस्-एप 7575001081Website : www.kobatirth.org Email : [email protected]

    श्रुतसागर ુતસાગરSHRUTSAGAR (Monthly)

    वषर्-६, अकं-७, कुल अकं-६७, िदस बर-२०१९

  • िदसम्बर-२०१९4श्रतुसागर

    प्रािप्त थान आचायर् ी कैलाससागरसिूर ज्ञानमंिदर

    तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीिनक के पास, पालडी

    अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५

    अनकु्रम

    ो चीटंी चावल ले चली अधिबच िमली दाल ।कबीर दौ दौ ना वणा इक रािख इक डाल ।।

    प्रत क्र. १३१३२८भावाथर्- संत कबीरदासजी कहते ह िक चींटी चावल लेकर जा रही थी और

    बीच म दाल िमल गई। दोन को उठाना संभव नहीं बना। ता पयर् यह ह ैिक अपनी क्षमता के अनसुार एक बार म एक ही कायर् कर, एक साथ दो कायर् करने से दोन ही हाथ से िनकल जाए।ँ

    १. संपादकीय रामप्रकाश झा ५२. गुरुवाणी आचायर् श्री बिुद्धसागरसूिरजी ६३. Awakening Acharya Padmasagarsuri ७४. भीमिवजय पंन्यासजी गुणवणर्न छंद गिण सुयशचंद्रिवजयजी ८५. भीमविजयगिण रास का सार भंवरलालजी नाहटा १९६. नवतत्त्विवचारगिर्भत महावीरिजन स्तवन सुकुमार जगताप २२७. गुजराती माटे देवनागरी िलिप के िहन्दी माटे गुजराती िलिप िहन्दवी २९८. प्राचीन पाणु्डिलिपयो ंकी संरक्षण िविध राहुल आर. ित्रवेदी ३१९. पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्तकुमार ३३१०. समाचार सार - ३४

  • 5SHRUTSAGAR December-2019

    संपादकीयरामप्रकाश झा

    श्रतुसागर का यह नूतन अकं आपके करकमलो ंमें समिर्पत करते हुए हमें अपार प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इसमें वाचक योगिनष्ठ आचायर् बिुद्धसागरसूरीश्वरजी की अमृतमयी वाणी के अितिरक्त दो अप्रकािशत कृितया ँतथा अन्य उपयोगी स्तम्भो ंका भी अध्ययन करेंगे।

    प्रस्ततु अकं में सवर्प्रथम “गुरुवाणी” शीषर्क के अन्तगर्त आत्मा के अनन्त वतुर्ल के िवषय में पूज्य आचायर् श्री बिुद्धसागरसूरीश्वरजी म. सा. के िवचार प्रस्ततु िकए गए हैं। िद्वतीय लेख राष्ट्रसंत आचायर् श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रवचनो ंकी पुस्तक ‘Awakening’ से संकिलत िकया गया है, िजसमें गुरु-िशष्य सम्बन्ध तथा िशष्य की योग्यता के ऊपर प्रकाश डाला गया है।

    अप्रकािशत कृित प्रकाशन के क्रम में सवर्प्रथम पूज्य गिणवयर् श्री सुयशचन्द्रिवजयजी म. सा. के द्वारा सम्पािदत “भीमिवजयगिण रास” का प्रकाशन िकया जा रहा है। इस कृित के कत्तार् मुिन लाल ने श्री हीरिवजयसूिर की परम्परा में हुए भीमिवजयगिण के व्यिक्तत्व और उनके जीवन की मुख्य घटनाओ ं का वणर्न िकया है। जैन सत्यप्रकाश िद.१५-३-१९४८ के अकं में प्रकािशत श्री भँवरलालजी नाहटा के द्वारा िलिखत इस कृित के सार का पुनःप्रकाशन िकया जा रहा है। िद्वतीय कृित के रूप में आचायर् श्री कैलाससागरसूिर ज्ञानमंिदर के पंिडत श्री सुकुमार जगताप के द्वारा सम्पािदत अपभं्रश भाषा में रिचत कृित “नवतत्त्विवचारगिर्भत महावीरिजन स्तवन” में उपाध्याय जयसागरजी ने नवतत्त्व की मिहमा का वणर्न करते हुए श्रमण भगवान महावीर की स्तवना की है।

    पुनःप्रकाशन शे्रणी के अन्तगर्त बिुद्धप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अकं-२ में प्रकािशत “गुजराती माटे देवनागरी िलिप के िहदंी माटे गुजराती िलिप” नामक लेख का अिन्तम अशं प्रकािशत िकया जा रहा है, इस लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी िलिप में अथवा िहन्दी भाषा को गुजराती िलिप में िलखे जाने की उपयोिगता और औिचत्य पर प्रकाश डाला गया ह।ै

    गताकं से जारी “पाणु्डिलिप संरक्षण िविध” शीषर्क के अन्तगर्त ज्ञानमंिदर के पं. श्री राहुलभाई ित्रवेदी द्वारा पाणु्डिलिपयो ंके सुरक्षात्मक संरक्षण के अन्तगर्त संग्रहण व्यवस्था के िवषय में महत्त्वपूणर् जानकारी प्रस्ततु की गई है।

    पुस्तक समीक्षा के अन्तगर्त श्री शािन्तसूिर द्वारा रिचत तथा आचायर् श्री योगितलकसूिर के द्वारा सम्पािदत “जीविवचार याने जैनशासननुं जीविवज्ञान” पुस्तक की समीक्षा प्रस्ततु की जा रही है। पूज्य आचायर्श्री ने जीविवचार से सम्बिन्धत िचत्रमय प्रकाशन के द्वारा बालजीवो ंको जीवतत्त्व के िवषय में सुन्दर जानकारी प्रस्ततु की है।

    हम यह आशा करते हैं िक इस अंक में संकिलत सामिग्रयो ंके द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभािन्वत होगें व अपने महत्त्वपूणर् सुझावो ंसे हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे।

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  • िदसम्बर-२०१९6श्रतुसागरगरुुवाणी

    आचायर् श्री बुिद्धसागरसूिरजीजनैदृिष्टए आ मानुं अन त वतुर्ल

    मनुष्य जेम जेम ज्ञान संप्राप्त करतो जाय छे, तेम तमे त ेसंकुिचत िवचार अने आचारना वतुर्लने अनुक्रमे महान ्करतो जाय छे। कोइ एक नयनी अपेक्षाए िवचार करीए तो मनुष्य पोताना िवचारो अने आचारो जवेडो छे। पोताना िवचारो अने आचारना वतुर्लमा ंप्रते्यक मनुष्य रहे छे, अने तनेाथी िभन्न िवचाराचार वतुर्लने ितरस्कारे छे वा असत्यािद वडे संबोध ेछे। मनुष्य जेम जेम आसपासना ंिवचार अने आचारना ंवतुर्लो देखीने तओेने सापेक्ष ज्ञाननयदृिष्टए आत्मामा ंसमावतो समावतो आगळ वध ेछे, तमे तमे त ेब्रह्मज्ञान दृिष्टए मित, श्रतु, अविध, मनःपयर्वज्ञान, अने छेवटे केवलज्ञानने प्राप्त करीने लोकालोकने पोताना केवलज्ञानमा ंसमावीने सवर्व्यापक वतुर्लत्वने प्राप्त करी शके छे। साराशं के-त ेकेवलज्ञानमा ंलोकालोक सवर् ज्ञये पदाथोर्ने पोतानामा ंसमावी शके छे। िमथ्यात्व-राग-दे्वषािदनो जमे जेम क्षय थतो जाय छे, तेम तमे आत्मामा ंज्ञाननो आिवभार्व थतो जाय छे, रागािदना उपशमािदभावे जेम जेम ज्ञानवतुर्ल महान ्थतुं जाय छे, तेम तमे त ेज्ञयेपदाथोर्नी सत्यिवचारणाओमा ंआगळ वधतो जाय छे, अने त ेपूवर्ना दृढ थएल घणा कदाग्रहोथी मुक्त थतो जाय छे। आवी िस्थितमा ंज्ञानी आत्मा अनुभव करीने कथ ेछे के, पूवर्ना करता ंहंु िवचारमा ंआगळ वध्यो छंु।आवी रीत ेज्ञानरूप वतुर्लमा ंआगळ वधनार आत्मा अन्य अनेक सापेक्ष नयवाळा िवचारोमा ंआगळ वधवाने अिधकारी थतो जाय छे, अने त े रागािदनी उपशमता आिदनी योग्यताए ज्ञानरूप वतुर्लमा ंआगळ वधतो जाय छे। आवी िस्थित प्राप्त करवाने माटे सत्समागम, सद्ग्रन्थवाचन अने अनुभवज्ञान ए त्रण असरकारक उपायो छे। आत्मा पर माया, प्रकृित याने कमार्वरण होवाथी ज ेजे अशें रागदे्वषािद क्षये आत्मज्ञान िवकसतंु जाय छे, त ेत ेअशें ज्ञानरूप वतुर्लनी अपेक्षाए आत्मा पण एवडो गणाय छे। अनन्त जीवो छे। सवर् जीवोने ज्ञानावरणीयािद कमार्वरणो लागेला ंछे। त ेजे जे अशें टळे छे त ेत ेअशें ज्ञानािद वतुर्लोनुं पृथतु्व सवर् जीवोमा ंषड्गुण हािनविृद्धरूपे पिरणमतुं जाय छे। सापेक्ष ज्ञान दृिष्टमान ्जीव आ प्रमाणे अवबोधीने त ेअनन्त ज्ञानरूप वतुर्लनो प्रकाश करवा प्रवतेर् छे।

    क्रमशःधािर्मक गद्य संग्रह भाग – १, पृष्ठ - ६८०

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  • 7SHRUTSAGAR December-2019

    (from past issue...)The Gurudev or the preceptor teaches the secrets of the

    shastras only to humble and obedient and disciples. He does not teach arrogant disciples. The arrogant disciples think that they are great scholars. This self-complacency checks their progress. Those arrogant disciples do not like to learn and no teacher likes to teach them.

    अज्ञः सखुमारा यः सखुतरमारा यते िवशेषज्ञः ।ज्ञानलवदुिवर्दग्धम ्ब्र ािप तं नरं न र जयित ॥

    Ajnah sukhamaradhyah Sukhataramaradhyate visheshajnah.Jnanalavadurvidagdham Brahmapi tam naram na ranjayati .

    It is easy to teach an ignorant person. It is easier to teach one who knows much. But even Brahma cannot teach those who have only a little knowledge but who profess to be great scholars.

    There is proverb, “Empty vessels make the most sound”. This idea has been well expressed by the composers of Suktis (epigrams).

    “अ पिवद्यो महागिवर्ः ॥”Alpavidyo MahagarvihIt means that one who has little knowledge or one who does

    not have full knowledge is arrogant.Briefl y, it can be said that, that man is a true Jain who has

    absolute devotion for the Lord; whose thinking is governed by Anekanta and whose actions are non-violent.

    The true Jain is one whose simple enjoyment is his own spiritual serenity, calm in its excess, with not a grief to cloud and not a ray of passion to oppress his peace, with no ambition to re-proach his ascetic temper and no rapture to disturb his supreme, sublime, serene bliss; and peace that posset understanding.

    (continue...)

    Awakening Acharya Padmasagarsuri

  • िदसम्बर-२०१९8श्रतुसागरलाल मुिन रिचत

    भीमिवजय पं यासजी गणुवणर्न छंदगिण सुयशचंद्रिवजयजी

    प्रस्ततु कृित िहदंी भाषानी छाटंवाळी मारुगजुर्र रचना छे। कृितनो पिरचय श्रीभंवरलालजी नाहटाए प्रकािशत कयोर् होई अम ेत ेअगें कशंु लख्युं नथी। िवशेषे एटलंु जणाववानुं के प्रस्ततु कृितनंु संपादन कोबा ज्ञानभंडारनी एकमात्र हस्तप्रत क्र. ६७०१९ना आधारे करायुं छे, जो के कृितनंु आलेखन लिहयानी असावधानीन ेकारण ेकेटलेक अशें अशदु्ध थयुं छे जे अमे अमारी समज मुजब सुधारवा प्रयत्न कयोर् छे। खास तो अही ंकृितनो शब्दकोश पण महत्वनो छे। अमारी भाषाकीय मयार्दाने कारण ेअमे घणा शब्दोना अथोर् आपी शक्या नथी, वाचको त ेअगें अमारंु ध्यान दोरे तवेी आशा छे। अन्य प्रत उपलब्ध न होवाने लीध ेकेटलाक पाठो पण स्पष्ट थई शक्या नथी।

    कतार् - कृितना अतं ेकतार्ए पोतानो ‘लाल मुिन’ तरीके उले्लख कयोर् छे। त ेिसवाय तमेना गुरु वगेरेनी कोई मािहती प्रस्ततु कृितमा ंउपलब्ध थती नथी। भीमिवजयजीनी िशष्यपरंपरामा ंथयेल पं. गंभीरिवजयजी द्वारा १९मी सदीमा ंलखायेल प्रत क्र. ६३१० आचायर् श्री कैलाससागरसूिर ज्ञानमंिदरमा ंउपलब्ध छे। तमेा ंिशष्य-परंपरा आ प्रामाण ेछे- श्री भीमिवजयजीना िशष्य मुिक्तिवजय, तमेना िशष्य पं. प्रमोदिवजय, तेमना िशष्य पं. प्रिसद्धिवजय, तेमना िशष्य पं.गंभीरिवजय। भीमिवजयजीनो कालधमर् समय कृितमा ंिव.सं. १७७१नो जोवा मळे छे। तथेी कृित रचनानो समय ते पछीनो होय त ेस्वाभािवक छे।

    ऋषभदवेाय नम: ।।सरसित माता वचन सभु, दीजै उकित उदार ।भीमिवजै गणु वणर्वुं, आणी हरख अपार ।।१।।तपग छनायक सरुत , िक्रयावंत िकरपाल१ ।हीरिवजैसरूी , भट्टारक-भपूाल ।।२।।तस ुिश य गणुिनिध सोभता, पाठकपदवीधार ।पंिडतराज प्रवीण अित, सोमिवजै िसरदार ।।३।।

    1. वाचक की सुिवधा हते ुभंवरलालजी नाहटा का लेख भी हमने इस अंक में पृष्ठ संख्या-१९ पर प्रकािशत िकया ह-ै संपादक.

  • 9SHRUTSAGAR December-2019

    तास ुिश य चािरत्रिवजय, उपा याय गणुजांण ।वखतावर२ मिुनवर हूआ, सकल-कला-सिुवहांण ।।४।।अतेंवासी जेहनो, धमर्िवजय प(ुपं) यास ।धमर् यांन धारी करी, ल ो वगर्परु वास ।।५।।तास पाट जग दीपता, पु यवंत परिसद्ध ।भीमिवजय पुं(पं) यास प्रभ,ु सकल गणुां की िसद्ध ।।६।।भाग्यवांन गंभीर-उदिध, दया-मयाभडंार ।मिणधारी मोटो मनुी(िन), गौतम को अवतार ।।७।।इण किलयगुमांह ेहु(हू)ओ, धरमधरंुधर धीर ।चावो३ जस चक्कां४ िचहु,ं वडवखती५ वड वीर ।।८।।यामवरन तन सोहतो, मघे समोविड(ड) प ।कंचन जल वठूो६ कहर७, अविनमांिह अनपू ।।९।।खलखडंण मडंणिरधू८, जती(ित) वडो जािल म ।रोर९-िवहडंण सखुकरण, पाित याहां मािल म१० ।।१०।।भीम पराक्रम भीमसो, वािम कांम समरथ ।दांण पराक्रम करणसो११, ह(ह)ेमु१२ पराक्रम हथ ।।११।।मन मोिटं मोटो मरद, हु(हू)ओ महा बलवांन ।ल मी को लाहो लीयो, दीध सपुात्रा दांन ।।१२।।बहु पिरवािर पजूतो, िसंघाडो सखुदाय ।मांहोमांिह िमलाप घण, िदन िदन वध सवाय ।।१३।।सगुु भीम खाट्यो सजुस, परगट पर उपगार ।कीधा कांम भला भला, सफल कीयो अवतार ।।१४।।

    ।। छंद-भुजंगी ।।

    कीयो आपणो स फलो अवतारं, भली भांित पाली िक्रयािदकधारं ।करी जात(त्र) शते्रुंज आब ूमग्गसी१३, वडा दांन दीधा मनांसुं ह वसी१४ ।।१५।।

  • िदसम्बर-२०१९10श्रतुसागरफलोधी िरषभ िगिरनार केरी, घणा भावसुं जात(त्र) कीधी भलेरी ।दया धािर(री)नै उषधदांन दीजै, कदहेी िकिणनै मखु ैना न कीजै ।।१६।।महा म वाला अन मी१५ नमाया, गमुानी िजको१६ आिंण(णी) पावै१७ लगाया ।तपैग छ साखा िवजैम ेरत नं, मिुन भीमसो को नही सदु्ध म नं ।।१७।।प्रतापीक दखेी वडो साध परंू, रजाबंध१८ हूओ िवजैर नसरंू ।समापी१९ भला व य(?) आदशे साध,े िलखी लेख मकैू पटा२० गांम वाध ै ।।१८।।अनंता जती(ित) भीमजी पास आवै, पडूर वडा गाम आदशे पावै ।इसी वेद ग छां िवजै भीम ओपै, कह ेजेहनी कार२१ कोइ न लौपै ।।१९।।करामातधारी कलौमांिह ंकेहो२२, जती(ित) जोगधारी िद(दी)पै हीर जेहो२३ ।भय पु यभडंार लीधी भलाइ, कह ैमांनवी ध य थारी कमाइ ।।२०।।धरमी वडो शील-स नाहधारी२४, भली वांिण मीठी वद ैमकु्ख भारी ।अधीतं२५ घणा सतू्र िसद्धांत अगंं, वडा वेद याकणर्ने का य चगंं२६ ।।२१।।महाजांण योितक्ख वैदकमांह,े क्षमावंत वाच ैवखाण ंउछाह ै।सणु ैदसेना होय राजी सकोइ२७, रजाबंध होवंत दीदार जोइ ।।२२।।िजसो सेस२८ कैलास चदं ंउजासं, ितसो उ(ऊ)जलो भीमचो जस-वासं ।िजतै सरू तेजं मरीचं२९ प्रकासं, िततै३० पवन वाजंत गाजै अवासं३१ ।।२३।।िततै जस फाबै३२ धराम ैतहुारो, वद ैलोक साचा िव दं्धस३३ वारो ।करा-कमला३४ कमला वास कीधो, मखु ैसारदा आयनै वास लीधो ।।२४।।िरद ैकमलै वास छै भगवानं, सही भीम प(ुपं) यास िसदं्ध समानं ।चवै वाच तै साच पालै सचुगंं, अनोपं िद(दी)पै गात प३ै५ अनंगं ।।२५।।तपै तेज भालं िवशालं उतंगं, मनंगोल उकसतो उ मगंं ।सलणूा दलं पंकजं नैण३६ सोह,े िसखा दीप नाशा िशवं मन मोह ै ।।२६।।बतीसी मखु ैउ(ऊ)जली जांिण िह(ही)रा, िझगा योितपंकित(िक्त) छै दतं३७ जीरा ।िरदा३८ बीचम ै व छ ीव छ राजै, िवशषे ेघणी सु थरी३९ छिब छाजै ।।२७।।उभ४ै० गोल कपोल आरीस४१ ओपै, कदही िकणीसुं४२ प्रभिुज(जी) न कोपै ।प्रलंबं भजुादडं दीपै द-ुपासै, र यो अगंकतार् सम ंचोसरासै४३ ।।२८।।

  • 11SHRUTSAGAR December-2019

    दहूा – र यो अगं िविधना सरस, मोपै४४ क ो न जाय ।प्रह ऊठीने पेखतां, पाितक दरू पलुाय ।।२९।।बहुत िमलापी४५ गणु-सबल, अडवडीयां४६ आधार ।आस धरी आवै िजके, पावै सखु अपार ।।३०।।असन वसन सवुचन अिधक, संतोषी जे सैण४७ ।क णािनिध दरसण कीयां, िनत सखु पावै नैण ।।३१।।पोरवाडवंसै प्रगट, जसवंत साह सजुांण ।जसरंगद-ेउरउदिधमै, प्रगट्यो र न प्रधांन ।।३२।।इण किलजगुमांह ेहु(हू)ओ, नरमिुख४८ चढतै नरू ।कोई न दीतो(ठो?) केत म, एओ पु ष पडूर४९ ।।३३।।संवत सतरास वरस, पेतीसै (१७३५) परिसद्ध ।हुकम पाय ीपू य को, किर(री) दिक्षणिदिस िसद्ध ।।३४।।उ(ओ)रंगावाद ैर ो, चोमासो िच लाय ।ावक सवर् रािज(जी) हूआ, आनंद अगं न माय ।।३५।।

    असतखांन ितण अवसरै, पात याही दीवांन ।ओरंगावाद ैहू(हू)तो, सपिरवार सभु(ुभ) थी(थां)न ।।३६।।ज(ज)ुलफकार(खांन?) अगंज भणी, उपनो जोर अचनै५० ।असतखांन द(िद)लगीर हुइ, कह ैइसी पर वैन५१ ।।३७।।कोइक यांणो समझणो, योितष वैदक जांण ।यावो वेगा सहरमै, िफिर किर(री) खबर सजुांण ।।३८।।जलुफकां(खां)न की तब ददा(धा?)५२, ले चाकर सखुपाल ।आई चािल(ली) उपािसरे, कहने लिग(गी) सवाल ।।३९।।तरुत बलुाए हतेम,े आप िनवाब हजरू ।चालो वेग सतावसुं५३, भीमिवजै गणुभरू ।।४०।।काती सिुद पिूनमिदने, जीतिवजै अ भीम ।जाय िमलै िनवाबसुं, बिुद्धबल वडा हकीम ।।४१।।

  • िदसम्बर-२०१९12श्रतुसागरअसतखांन कह ैइसो, जलुफकार(खांन?) आजार५४ ।दखेी नािड(डी) िवचािर(री)कै, करो कोइ उपचार ।।४२।।तब मनमांह ेसोिच(ची)कै, भीमिवजय मगंाय ।जनमपित्रका दखेी करी, कह ैवचन सखुदाय ।।४३।।दो पहरां५५ पीछै तरुत, सवा५६ उतरसी ताप ।दो युं भलेा बेसकै, खाणा खा यो आप ।।४४।।मास पांच को गभर् छै, कह ैइसी पिर वाच ।खोज५े७ पू यो जायकै, सबही जां यो साच ।।४५।।इसो वचन सणुी हषर् को, हूओ िनवाब खु याल ।भीमिवजय को हतेसुं, कर युं(चु)ं यो ततकाल ।।४६।।कीधी चरचा जगुतकर, हूओ वडो सबाब५८ ।जे जे उण५९ पू या सवे, ते ते दीया जवाब ।।४७।।

    ।। छंद-वदृ्धनाराच ।।

    जवाब साच भाखतं िनवाब आव रंजयं६०,ज(ुज)ूडे ए(अ)नपू प भपू ितहां िवच ैलही जयं ।अनंत मांन जोग जांन दीध हते जांिनके,जती(ित) प्रवीन ह ैअकीन६१ लोभहीन जांन(मांिन)के ।।४८।।विध(धी) प्रतीत प्रीत िच स व ही जना िवच,ैिमटी अनीित ईित६२ भीित संजती(ित) र ो िहच६ै३ ।गणु ैगहीर सरूवीर केवीयां६४ अगंजणो,िरध-ूनिरंद आसिुरंद राव राण रंजणो ।।४९।।मिुनं(नीं)दवृंद-मडंली मही िवचालमडंणो,िडगै नही अडोल बोल राखी दु दडंणो ।खरे सभुाय६५ आय पाय लागी प्रीत दखेए,लहतं िरिद्ध िसिद्ध जेह गैवकी६६ अलेखए ।।५०।।भणतं लोक वाह वाह ध य ध य भीमयं,महासजुस खाटणो६७ िद(दी)पै समदं सीमयं ।

  • 13SHRUTSAGAR December-2019

    रहतं आस गांव गांव मघे जेम मोर ए,करंत चाह चदं युं घणा भिव चकोर ए ।।५१।।जमाितदार६८ सच( च)धार पजूी जात ज छयं६९,सणु ेसभुाय ावकं िमले गरट्ठ७० स छयं७१ ।अनेक नािर गावती समिुख चािल(ली) आवयं,वडाप्रधान वांिणयान मिंड(डी) पिूज(जी) पावयं ।।५२।।गडैु७२ िनसांण घोर जोर मघे जेम गज( ज)यं,वडाल७३ भिेर(री) फेिर(री) फेिर(री) झांझ७४ ढोल वज( ज)यं ।वयंड याज७५ साज वाज साव(च?)ता िवराजयं,छ ीस पिुण दिेख वाव हतं वाट छाजयं७६ ।।५३।।घणसे ुघरे ऊछलंत घाघरां७७ गडुी७८ घणी, वजंत सख............. च गावता गणुी ।िबछावणा७९ करंत लाल खारवा८० पगांतलै८१,प्रधान सीस तािण पा[िण] पांभडी८२ पघ(े?) पलैु ।।५४।।प्रभावना करंत आिंण(णी) ीफला सपुािरयं८३,बहुािरनी८४ िपधौिलकै८५ उपािसरो सवािरयं८६ ।जरी िनलक८७ चदं्रवा८८ अनेक भांित छाजए,िजहांप िसिरपिूज८९ आप पािटयै िबराजए ।।५५।।सदा वखांण ावकांन जोिड पािण९० सांभलै,भिव अनंत सांित कांित ध्र म यांनसुं िमलै ।मही भवे िजहां िजहां हुवै अनंत मािनता,इिस परै करै खरै सभुाव लोक आिनता ।।५६।।दहूा – आिण(णी) भाव मांनै अिधक, दसे दसे दसेोत ।दरसण आवै िदलसधु,ै गरु छ ीसे गोत ।।५७।।सतरासै संव छरै, छ ीसै (१७३६) छत्रपित ।ऊपिड आयो दल सबल, अजमरैे अस( व?)पित ।।५८।।

  • िदसम्बर-२०१९14श्रतुसागरपाितसाह औरंग को, कुलकु ली९१ दीवांन ।सगला उमरावां िसरै, गाजी असतखांन ।।५९।।चीती आयो भीम िच , कठमौरे९२ सिुध पाय ।मलेी चाकर आपणां, लीधा तरुत बलुाय ।।६०।।आखं्यां दखेी आवता, आणी मन उ हास ।आदर द ेिहतसुं िम या, राख्या अपण ैपास ।।६१।।िच उपगार िवचारीकै, कीया घणां का कांम ।आटंा९३ काढ्या आगला, िद(दी)या न लागण दांम ।।६२।।बहुत प्रसंसा भीम की, सणुी िवजैप्रभ(ुभ)स(ुस)ूर ।जांणी अवसर जगुितसुं, कागल िलख्यो ज र ।।६३।।उपािसरो अजमरेगढ, सहर मडेते तेह ।सोिझत जैतारिण उभ,ै जोधांणाम ैजेह ।।६४।।एती ठोर९४ उपािसरा, औ बीजा ठािहं९५ ।हूआ खालसै९६ बंधम९७, अजहू९८ छूटा नािह ं ।।६५।।तेह छूटाव यो तमु,े चकूो मती िलगार ।जिग होसी तमुचो सजुस, िजनसासन जयकार ।।६६।।संघ मडेता को कह,ै की यो ए शभु काम ।तमु परसाद ैछूटसी, सकल धरम का धाम ।।६७।।चुपं९९ धारी िच म ैचतरु, असतखांन पै१०० जाय ।अरज करी ध्रमसाल की, द्यौ मझु वेिग छूटाय ।।६८।।असतखांन किह बात सब, समझायो सरुतांण ।छोड्या सरव उपासरा, किर(री) दीधो फुरमांण ।।६९।।

    ।। छंद- मोतीदाम ।।

    िद(दी)यो फुरमाण करी िचहु ंदसे, िलखतंह ढील न की लवलेस ।कढाय ज खरे-वखरे१०१ कुसंग, ब ीसह प(ूप)ुिण हूऔ उछरंग ।।७०।।

  • 15SHRUTSAGAR December-2019

    िजगािमग योित जय-जयकार, उदो१०२ िजनध्र म तणो अणपार ।िचहु ंिदिस मांनव होत अचभं१०३, थयो जस ुबोल ( ) यो जस-थंभ ।।७१।।सगुंिधय सकुिडनै१०४ घर(न)सार, चढावय दवेल दवेल चार ।जपै प्रभनुांम वडो भजनीक, जागित जगुित करै िनरभीक१०५ ।।७२।धरै िनस दीह िजनेसर यांन, नरां दिुखयां िनित(त) दीजय(जै) दान ।िहव मनमांिह िवचािरय हाम१०६, धरा िफिर(री) कीजय(जै) तीरथधाम ।।७३।।कह ैकिव रांणपरुो वरकांण, जहुािर अरबदु गोिडय जाण ।पलेु१०७ पिथ कीध संखसेर पास, िकता इम तीरथ कीध प्रकास ।।७४।।चलै िहव आिवय पािवय चनै, अखी िथरवास हरीगढ ऐन१०८ ।महामिुन भीमिवजै चत्रमास१०९, र ा िसरदार वडा पिुन(न)रािस(स) ।।७५।।दले िलय िद ल उदार सदीव, जडे जन बंिद छु(छू)डावय जीव ।मिुन लघ ुजािणय आय ुप्रमांन, भगौितयसतू्र११० सू यौ शभु यांन ।।७६।।सणु ेविल रायणसेिण(णी) संत, धरी मिन उ रा ययन िसद्धां(दं्ध)त ।दसिवकािलक धािरय िद ल, इग्यारह अगं सनंु(ण)ंत अव ल ।।७७।।व(वं)चािवय१११ आगमगं्रथ िवसेष, सकोमल िच सु या सिवशषे ।जती(ित) सब गं्रथ सणुावत जास, ततिखण लि छ समािपत११२ तास ।।७८।।अनोपम हमे चढािवय अित, भली पिर कीधह यानह भगित ।दया किर(री) गं्रथ िकताईक दीध, िकता व पात्र िकता पिुन(न) कीध ।।७९।।

    किव छ पै ।

    कीध पु य िकरपाल पु यभडंार भली पिर,भरे सबल भरपरू यांन िजनराज तणो धिर ।संबल११३ लीधो सािथ सरुग-मग्ग परभव संच,ैप(ूप)ुहिव धरम यापार िवध ैकिर(री) िकमही न वंच ै।पूंजी समान पिुभ(ि न) पािछलो सहसगणुो किर(री) सामठो११४,करत य-जोग क माय११५ किर(री) कीयो अगाऊ एकठो ।।८०।।दहूा- सतरासे इकहतरै(१७७१), िकसनगढ चोमास ।वरषा िरत सब िरत िसरै, मनहुर भाद्रवमास ।।८१।।

  • िदसम्बर-२०१९16श्रतुसागरकिर अणसण आराधना, राका११६ ितिथ रिववार ।िसखसा खास वही भणी, सीखामिण द ेसार ।।८२।।आधी रातै यांन धिर, भाव घण ैभगवंत ।शकुल यांन शभु यावतां, दवेलोक प(ूप)ुहचतं ।।८३।।

    ।। छंद-त्रोटक ।।

    पहुच ेपरलोक सरगपरंु, घण दवेह दुदं(द)ुिभ-न ११७ घरंु११८ ।धिर(री) हते सहू प्रणमतं धरुा, सरुपित सवे हरखतं सरुा ।।८४।।मिण मािणकजोित िवमान वरं, उपजंत ितहां प्रभ ुभीमगरंु ।कर जोिड(डी) सरु िनित(त) गान करै, बिज ताल मदृगं सरैु मधरैु ।।८५।।ततकार अहोिनिस नाचतयं११९, तब राग छ ीसह बाजतयं ।लि छ दवे तणी िरिद्ध िसिद्ध लही, िकणही प्रित तेह न जात कही ।।८६।।अजरं अमरं पद पाय अखी१२०, सरुलोक रह ैइण भांित सखुी ।परभात हुवै िमिल लोक पहू१२१, सिुण बात सरावग१२२ आय सहू ।।८७।।ततकाल सतुार बलुाय तदी, जिड(डी) काठ िसताब१२३ कराय जदी ।सत राखण रािख(खी) मढी१२४ िवरची, पट-छांय(?) िवमान समान रची ।।८८।।पिहरीय पटंबर अबंरयं, पद्धराय िवच ैगरु सद्धरयं१२५ ।कलसं धिर ऊपिर कंध करे, उिठ(ठी) लेर१२६ चले जल नैण भरे ।।८९।।घण ढोल िनसांण अनेक धरैु, बरधू१२७ करनाल१२८ कुहक्क१२९ करै ।िविच ताल कंसाल१३० मदृगं वजै, गहरी धिुन मघे समांन व(ग)जै ।।९०।।गज चालत सुंिड उलालतयं१३१, भिूर मू(ंम)ूिठय१३२ दाम उछालतयं१३३ ।नतृकािलय१३४ गावत गीत गनुी, नर नारी खलक्क१३५ जहांन१३६ दनुी ।।९१।।सब दखेत ट(?)त-महो छवयं१३७, धिन(न) भीमिवजै सबही चवयं१३८ ।परू बािहर आय उतािर(री) िप्रिथ१३९, रच चदंन-काठ चणुाइ१४० रची ।।९२।।िदन यांम१४१ चडंतह दाग१४२ िद(दी)यो, मजलै१४३ पहुचा परकांम िक(की)यो ।किर(री) लोक सनान पिवत्र भए, अपण ैअपण ैसब गेह गए ।।९३।।

  • 17SHRUTSAGAR December-2019

    तस ुपािट मकुित(िक्त)िवजै प्रतपै, जगमांिह घणो जस लोक जपै ।िसरदार सपतू सिुश य वडो, अवनी िविच कोइ नही इवडो ।।९४।।गणुजांण गणुी सब तै सगुरो, गरुदवे तणो भगता अजरो ।िदन द्वादस गाइ दहुाइ सलै१४४, गु -फूल चलािवय१४५ गंग िभलै ।।९५।।तस ऊपिर कीध वडी छतरी, िचत्रकार भली िविधसुं िचतरी ।करवाय िचहू ंिदिस कोट खरो, िविच रािख अतीतह१४६ कीध वरो ।।९६।।विल कूप अणायर१४७ वािव करै, नर नािर िजंहा िकण नीर भरै ।लिग बाग वडो फु(फू)लवािद(डी) फली, मिच१४८ होइ रह ैिजम कंुज-कली ।।९७।।नर छैल-छबील कीता िनरख,ै िहत धारी िहयै सबही हरख ै।घनसार घसे शभु लोक घणा, पगला चरच ैप्रभ ुभीम तणा ।।९८।।िकिण परूव पाप िवसेष करी, उप यो अिड१४९ आय कमर् अरी ।भरी कांम(न?) भखाय१५० िनवाब भणी, िकिण दोिषय१५१ फोज चढाय घणी ।।९९।।किर(री) बंधक सालह१५२ जोिर(र) िक(की)यो, लिख(ख) माल लणु१५३ चिूण१५४ लिूट(ट) िल(ली)यो ।अजमरेगढै फू(फु)िन१५५ मिुक्तिवजै, िमिल जाइ िनवाब जवाब सजै ।।१००।।सिुण(णी) वात िनवाबह रंिज बहू, िदवराय िद(दी)यो धन माल सहू ।उलटी कुछ भिेट करी अवरं, पिुन मिुक्तिवजै प्रगट्यो प्रवरं ।।१०१।।

    कलस- किवत ।। छापै ।।

    प्रवर पु य परताप सकल संपि पाई,वाला हु(हू)औ सबुोल अिधक नव िनिद्ध िसिद्ध आई ।पहुकर चतेन पे(पे्र?)म िस य साखा िचरंजीवो,िवजै साख मिध िवमल िद(दी)पै माधव-कुलदीवो ।भपूती(ित) राव मांनै भला ग छनायक िगणती िगण,ैमिुन लाल कह ैगु भीम को पिण राख्यो मांिटपण ै ।।१०२।।

    ।। इित ीभीमिवजै पु(पं) यासजी गुणवणर्ण(न) छंद सपूंणर्म ्।।

    संवत ्१८४७ का िमित प्रथम आषाढ विद ७ िदने िलख्यतं आगरामध्येo O o

  • िदसम्बर-२०१९18श्रतुसागरश दकोष

    १. कृपाळु, २. भाग्यवाळा, ३.प्रिसद्ध, ४.?, ५. भाग्यशाळी, ६. वरस्यो, ७. कहर-सूकी जमीन पर (?), ८.चंद्र, ९. दिरद्रता, १०. जाणवंु, ११. कणर् जेवो, १२. (पराक्रममा)ं हमुे जेवो (?), १३. मक्षी, १४. हवासी=गुणचचार्, १५. अणनम, १६. जे कोइ, १७. पगे, १८. खुश थवुं (?), १९. आपे, समिर्पत करे, २०. परवानो (?), २१. शाख=आबरु, २२. केवो, २३. जवेो, २४. शीलरूपी बक्खतरवाळो, २५. भण्या, २६. मनोहर, २७. सहु कोई=बधा, २८. शेषनाग (?), २९. िकरण, ३०. त्या ं(?), ३१. आवास-घर, ३२. शोभे, ३३. िवरुद्ध अथार्त ्जूठनो त्याग करे छे ?, ३४. कर कमलमा,ं ३५. शरीररूपे, ३६. नयन=आखं, ३७. दातं, ३८. हृदयनी, ३९. स्वच्छ, ४०. बने्न, ४१. अरीसो, ४२. कोईनी साथ,े ४३. चारेबाजथुी (?), ४४. माराथी, ४५. मळतावळो (?), ४६. लथडताना, ४७. सयन-स्वजन, ४८. नरमुख-मनुष्यमा ंमुख्य (?), ४९. खूब=प्रचूर(?), ५०. बचेेनी, ५१. वयण-वचन, ५२. पीडा, ५३. झडपथी उतावळे, ५४. ज्वर सिहतनो-ताववाळो, ५५. प्रहर, ५६. संपूणर्पण=ेबधो (?), ५७. अतंःपुरनो रक्षक, ५८. सत्यासत्यनी तपास, मोभो(?), ५९. तमेण,े ६०. आनंद पाम्यो, ६१. अिकंचन, ६२. धान्यािदकने हािन पहोचंाडनार उंदरािदकनो उपद्रव, ६३. आनंद?, ६४. ?, ६५. सोहाय, शोभे, स्वभाव?, ६६. ?, ६७. खाटवुं -फायदो मेळववो, ६८. जमादार?, ६९. यथाशिक्त?, ७०, गिरष्ठ, ७१. स्वचे्छाथी?, ७२. हाथीनो साज, ७३. ?, ७४. एक प्रकारनंु वाद्य, ७५. ?, ७६. पािटया ंके वासंनंु आच्छादन, ७७. ?, ७८. धजा?, ७९. पाथरणुं , ८०. खास एक जातनंु कापड, ८१. आकाशनी नीचे, ८२. वस्त्र िवशेषनंु नाम, ८३. सोपारी, ८४. साफ करी, ८५. ?, ८६. सजाववो, ८७. वस्त्र िवशेष, ८८. चंदरवा, ८९. श्रीपूज्य, ९०. हाथ, ९१. गाम नाम, ९२. ?, ९३. गंुच, ९४. जग्याए, ९५. स्थाने, ९६. ताब,े ९७. बंधनथी, ९८. आजे पण, ९९. चीवट, १००. पासे, १०१. खेर-िवखेर- वेरण छेरण ?, १०२. उग्यो, १०३. आश्चर्यचिकत, १०४. सुखड, १०५. बीक वगरनो, १०६. िहम्मत, १०७. जाय, १०८. खरेखर, १०९. चातमुार्स, ११०. भगवतीसूत्र, १११. वंचावी, ११२. प्रािप्त(?), ११३. भात,ु ११४. एक साथ,े ११५. कमर्- कायर्, ११६. पूिर्णमा, ११७. दुंदभुीनो नाद, ११८. वागवुं , ११९. नाचता, १२०. अखंड(?), १२१. मोटी संख्यामा?ं, १२२. श्रावक, १२३. एक वनस्पितनुं लाकडंु, पालखी, िसिबका(?), १२४. िचतारूपी घर, १२५. सलामती पूवर्क, १२६. लहेर(?), १२७. रणिशगंुं, १२८. तोप, १२९. “कुहु कुहु” अवाज(?), १३०. कासंीजोडा प्रकारनंु एक वाद्य, १३१. उलाळतो, १३२. मुट्ठी, १३३. उछाळतो, १३४. नृत्य समयनंु?, १३५. खलके-रणके, १३६. दिुनया, १३७. महोत्सव, १३८. बोले छे, १३९. पालखी?, १४०. चणावी, बनावी ?, १४१. प्रहर(?), १४२. अिग्नदाह, १४३, रस्त,े १४४. ?, १४५. चलावी, १४६. ?, १४७. अणी(?), १४८. मत्त थाय, १४९. नडे, १५०. बोले, १५१. दोष माटे, १५२. पीडा?, १५३. चोरे?, १५४. वीणी-वीणी?, १५५. फरी.

  • 19SHRUTSAGAR December-2019

    भीमिवजयगिण रास का सार

    श्रीयतु भंवरलालजी नाहटा जनै ऐितहािसक राससािहत्य अत्यन्त िवशाल है और आए िदन िनत्य नये-नये

    ऐितहािसक रास उपलब्ध होते हैं। कुछ वषर् पूवर् उनके प्रकाशन का प्रयत्न हुआ, पर उसका यथोिचत आदर एवं प्रचार न होने से वह कायर् आगे नही ंबढ़ सका। वास्तव में जनै समाज की इितहास की ओर बहुत ही कम अिभरुिच प्रतीत होती है।

    इितहास की उपयोिगता िनिर्ववाद है। हमारा जीवन, प्राचीन संसृ्कित और इितहास से अनुमािनत होता रहता है। प्राचीन के आधार से नवीनता की सृिष्ट होती रहती है। प्राचीन गौरव मानव को उन्नत बनाने में बहुत कुछ प्ररेणा देता है। जैन समाज की वतर्मान िस्थित बहुत ही सोचनीय है, पर वह अपने उज्ज्वल अतीत का आज भी अिभमान कर सकता है।

    जनै मुिनयो ंने समय-समय पर राज्यािधकािरयो ंसे िमलकर उन पर प्रभाव डालकर जनै समाज एवं संघ की िवपित्तयो ंको दूर िकया ह,ै उन्हें अनेक प्रकार की सुिवधाएँ शासको ंकी ओर से िमलती रही हैं। १८वी ंशदी के तपागच्छीय यित भीमिवजय भी एक प्रभावशाली व्यिक्त थ,े िजन्होनें औरंगाबाद के नवाब असतखान को ज्योितष-वदै्यकािद के चमत्कारो ंसे प्रभािवत िकया था, िजसके फलस्वरूप अनके स्थानो ंके जैन उपाश्रयािद जनसंपित्त को पुनः जैनसंघ को अिधकृत करवाया था। इनके िशष्य मुिक्तिवजय ने भी नवाब से इसी प्रकार के काम िनकाले थ।े इस रास की ३ प्रितया ँकलकत्ता के स्वगीर्य बाब ूपूरणचन्द्रजी नाहर की गुलाबकुमारी लायब्ररेी में संग्रिहत है, िजसके आधार से रास का संिक्षप्त सार िदया जाता है । इसकी रचना लालचंद्रगिण ने १०२ पद्यो ंमें की है।रासका सार

    तपागच्छनायक सुप्रिसद्ध जैनाचायर् हीरिवजयसूिरजी की परम्परा में भीमिवजयगिण बड़े प्रतापी हुए। उ० सोमिवजय, उ० चािरत्रिवजय, पं० धमर्िवजय के िशष्य पंन्यास भीमिवजय थ।े आप िक्रयाशील, िवद्वान और प्रभावशाली पुरुष थ।े आपने शत्रुंजय, िगरनार, आबू, ऋषभदेव, मगसी, फलौधी आिद प्रमुख तीथोर्ं की यात्रा की थी। आप ज्योितष, वैद्यकािद में िनष्णात होने के साथ-साथ आपका शरीर का गठन बडा मजबूत और संुदर था, आपके हृदय पर श्रीवत्स िचह्न अिंकत था। श्रीपूज्य श्री िवजयरत्नसूिर आपका बडा आदर करते और यितयो ंको चातमुार्स के आदेश का भार भी उन्होनें आपको सौपं िदया।

  • िदसम्बर-२०१९20श्रतुसागरभीमिवजय गिण पोरवाड वंशीय जसवंतसाह की भायार् जसरंगदेवी के पुत्र थ।े आपने

    सं.१७३५में श्रीपूज्यजी की आज्ञा पाकर दिक्षण देश की ओर िवहार िकया। औरंगाबाद में आपने चातमुार्स िकया उस समय वहा ँबादशाह की ओर से दीवान असतखान शासक था। एक बार उसका पुत्र जलुफकार बीमार हो गया। िचिन्तत होकर लोगो ंको िकसी सयाने ज्योितष व आयवुेर्दिवद ्पिण्डत को लाने की आज्ञा दी। शाही पुरुष सुखपाल उपाश्रय आये और गुरुश्री से नवाब के पास चलने को प्राथर्ना की। भीमिवजय और िजतिवजय दोनो ंकािर्तक सुिद १५के िदन नवाब से िमले। नवाब असतखान ने कहा-जलुफकार को नाड़ी देखकर उपचार कीिजये! भीमिवजयजी ने उसकी जन्मपित्रका मंगाकर देखी और मधरु शब्दो ंमें कहने लगे - आज दोपहर के पश्चात ्ज्वर साफ हो जायगा और जुलफकार आपके साथ बठै कर खाना खाएगा एवं उसकी स्त्री के ५ मास का गभर् है। जब नवाव ने खोज ेको भेजकर मालूम िकया तो पंन्यासजी के कथन पर अत्यन्त िवश्वास हो गया। और उनके हस्तकमल को चूमकर बड़ी देर तक वातार्लाप िकया एवं नवाब से उनकी घिनष्ठता हो गई, मान महत्त्व बढा और लोगो ंमें बड़ी प्रितष्ठा हुई।

    सं. १७३६में बादशाह औरंगजेब सदलबल अजमेर पर चढकर आया। बादशाह का दीवान कुलकुली और उमराव शे्रष्ठ गाजी असतखान भी साथ था। असतखान ने भीमिवजयजी गिण को याद िकया और कटमोर से आदरपूवर्क शाही पुरुष भेजकर अपने पास बलुाया। पूवर् उपकारो ं को स्मरण कर इनके कथन से बहुतो ं के काम िनकलवाये। जब श्रीपूज्य श्री िवजयप्रभसूिर ने भीमिवजय की प्रशंसा सुनी तो उन्होनें अवसर देखकर भीमिवजय को पत्र िलखा िक अजमेर, मेडता, सोजत, जयतारण, जोधपुर आिद स्थानो ंके उपाश्रय खालसे हो गये थ ेवे अब तक छूटे नही,ं अतः तुम अवश्य यह पुण्य कायर् कर सुयश के भागी बनो ! मेडता के संघ ने भी यही प्राथर्ना की तब भीमिवजयगिण असतखान के पास गये और उनसे धमर्शालािद के िवषय में वातार्लाप िकया। नवाब साहब ने बादशाह को समझा बुझाकर सब उपाश्रय मुक्त करवा के फरमानपत्र जारी करवा िदये, समस्त संघ में हषर् उत्साह छा गया।

    भीमिवजयगिण ने राणपुर, वरकाणा, आब ूसे गौडी, संखेश्वर प्रमुख तीथोर्ं की यात्रा की और िस्थरवास करने के िलए कृष्णगढ आए, इस चातुमार्स में रायपसेणी, उत्तराध्ययन, दशवैकािलक, भगवती आिद आगमो ंका श्रवण कर यित लोगो ंको वस्त्र पात्रािद से संतषु्ट िकये। सं.१७७१ भाद्रवा विद १५ रिववार के िदन िशष्यो ंको िहतिशक्षा देकर अनशन आराधनापूवर्क अद्धर्राित्र के समय भीमिवजयगिण स्वगर्वासी हुए। बड़े ही उत्सव व समारोह के साथ सबने पंन्यासजी की अन्त्यिेष्ट िक्रया की। १२ िदन हो जाने पर फूलो ंको गंगा में प्रवािहत कर छतरी स्तपू िनवेश बनवाया

  • 21SHRUTSAGAR December-2019

    गया एवं चारो ंओर कोट बनाकर बगीचा लगाया गया। कूप-वापी िनिर्मत कर जनता के जल भरने की सुिवधा प्रस्ततु कर दी। नवाब के िकसी चुगलखोर ने कान भर िदये। उसने चढाई करके सब माल लूट िलया तब इनके पट्टधर मुिक्तिवजयगिण ने नवाब से िमलकर सन्मानपूवर्क सबको मुक्त करवा िदये।

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    पु तक समीक्षा(अनसंुधान पृष्ठ-३३ से)

    जीव िवचार के िवषय में श्री यशोिवजय संसृ्कत पाठशाला महसेाणा, पदाथर् प्रकाश जैसे अनके प्रकाशन लम्ब ेसमय से उपलब्ध ह ैतथा लम्ब ेसमय से उनका ही प्रधानता से अभ्यास िकया जा रहा है तो प्रश्न है िफर इस प्रकाशन की आवश्यकता क्यो ंहुई? तो इसका उत्तर यह ह ैिक पूवर् के सारे प्रकाशन अपनी-अपनी खासीयत के िहसाब से आज भी उतने ही उपयोगी हैं। इस प्रकाशन की मुख्य खासीयत है इसका िचत्र प्रधान होना। सौ शब्द जो काम नही ंकर सकत ेहैं, वह एक िचत्र कर देता ह।ै इस सच्चाई को ध्यान में रखत ेहुए जीविवचार का सवार्ंग संपूणर् बोध हो इस हेत ुसे यह िचत्र प्रधान संकलन तयैार िकया गया ह।ै

    इस प्रकाशन की िवशेषता यह है िक इसके प्रते्यक शब्द, प्रते्यक गाथा के साथ ही प्रते्यक गाथा में िवद्यमान तत्त्वो ंका सरल िववेचन िकया गया ह,ै गं्रथ में िस्थत सूचनाएँ लम्ब ेसमय तक मिस्तष्क में याद रहे इस हेत ुसे उन सूचनाओ ंसे संबंिधत िचत्र तयैार िकए गए हैं तथा िचत्र के माध्यम से जीवतत्त्व की िवशेषता को समझाया गया है। िजससे यह प्रकाशन बाल जीवो ंके साथ-साथ जीवतत्त्व को समझने की िजज्ञासा रखने वालो ंके िलए बहुत उपयोगी हो गया है। इसी िवशेषता के कारण यह प्रकाशन जीविवचार संबंधी अन्य प्रकाशनो ंसे िवशेष उपयोगी प्रकाशन के रूप में स्थािपत हो गया है।

    पुस्तक की छपाई बहुत संुदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृित के अनुरूप बहुत ही आकषर्क बनाया गया है। श्रीसंघ, िवद्वद्वगर् व िजज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनो ंकी प्रतीक्षा में हैं। भिवष्य में भी िजनशासन की उन्नित एवं उपयोगी ग्रन्थो ं के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्राथर्ना करत ेहैं।

    इन िदनो ंपूज्यश्री एवं उनका िशष्य पिरवार सािहत्य जगत को िनरन्तर अनेक उच्च दजेर् के सुसंशोिधत प्रकाशनो ंको िजनशासन के चरणो ंमें समिर्पत कर अध्यतेाओ ंएवं आराधको ंके िलए ज्ञानाराधना का मागर् प्रशस्त कर रहे हैं।

    आचायर् श्री कैलाससागरसूिर ज्ञानमंिदर, कोबा पिरवार का यह सौभाग्य ह ैिक पूज्य आचायर् श्री योगितलकसूिरजी महाराज साहब एवं िनिश्रत अभ्यासरत पिरवार ज्ञानमंिदर में संकिलत गं्रथो ंका सबसे अिधक उपयोग करने वालो ंमें से एक हैं।

    पूज्यश्री के इस कायर् की सादर अनुमोदना के साथ कोिटशः वंदन ।o O o

  • िदसम्बर-२०१९22श्रतुसागरउपाध्याय जयसागरजी कृत

    नवत विवचारगिभर्त महावीरिजन तवन

    सुकुमार जगतापजीवाइ नव पय थे, जो जाणइ त स होइ स म ं ।भावेण स हंतो, अयाणमाणो िव स म ं ॥५१॥ (नवत व प्रकरण)

    मुिक्त के मागर् में सम्यक्त्व के िबना प्रवेश की प्रािप्त नही ंहोती है। इसिलए सम्यक्त्व को मुिक्त का द्वार भी कहा जाता हैं। वह उसे प्राप्त होता है जो िजनेश्वर दिर्शत नवतत्त्वो ंको जानता है और भाव से मानता है। वतर्मान में इस िवषय के अध्ययन हते ुनवतत्त्व प्रकरण प्रिसद्ध है। इसी िवषय को दशार्ने वाली प्रायः अप्रगट अपभं्रश भाषा िनबद्ध कृित का यहा ँप्रकाशन िकया जा रहा है।९ त व की सिंक्ष याख्या-

    १. जीवतत्त्व- जो प्राण को धारण करता है वह है जीवतत्त्व। इसमें भी द्रव्यप्राण और भावप्राण ऐसे दो प्रकार के प्राण होते हैं। िसद्ध जीव केवल भाव प्राण को ही धारण करत ेहैं, अन्यत्र संसारी जीव दोनो ंप्राणो ंको धारण करत ेहैं। २. अजीवतत्त्व- जीवतत्त्व से िवपरीत जो जड़ स्वभाव वाला ह,ै वह है अजीवतत्त्व। ३. पुण्यतत्त्व- शुभ एवं सत ्कमोर्ं के पिरणामस्वरूप िजसके उदय से सुख का अनुभव होता है, वह ह ैपुण्यतत्त्व। ४. पापतत्त्व- अशुभ वा असत ्कमोर्ं के पिरणामस्वरूप िजसके उदय से दःुख का अनुभव होता है, वह है पापतत्त्व। ५. आश्रवतत्त्व- िमथ्यात्व आिद हेत ुसे कमोर्ं का आत्मा में जो आगमन होता है, वह है आश्रवतत्त्व। ६. संवरतत्त्व- आने वाले कमोर्ं को रोकना ही संवरतत्त्व है। ७. िनजर्रातत्त्व- आत्मप्रदेश में आये हुए कमोर्ं का शनैः-शनैः क्षय करना यह िनजर्रातत्त्व है। ८. बंधतत्त्व- नए कमर् परमाणओु ंका आत्मप्रदेश के साथ क्षीर-नीर के भािँत िमल जाना ही बंधतत्त्व ह।ै ९. मोक्षतत्त्व- सवर्था कमोर्ं का क्षय होना ही मोक्षतत्त्व है।

    नवतत्त्व की मिहमा के साथ इस कृित में जैन धमर् के २४वें तीथर्ंकर श्रमण भगवान महावीर का स्तवन िकया गया ह,ै िजसमें वह नवतत्त्वो ंका संक्षपे में बोध कराकर इस भवसागर से जीव की मुिक्त हेत ुिजन परमात्मा से याचना करता है।

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    प्रितलेखक द्वारा क्षित से दबुारा िदये गए गाथाकं १२ को हमने सुधारकर १३ िकया ह।ै संभिवत शुद्धपाठ को हमने दबुारा कोष्टक में रखा ह।ै कई स्थानो ं पर िवराम िचह्नो ंकी प्रिविष्ट के िसवाय ही बड़े-बड़े छंद िलखे गए हैं, िजन्हें छन्दानुरूप करना प्रायःकिठन था। कही-ंकही ं अस्पष्ट लेखन के साथ ही भाषा की मयार्दा आिद कारणो ंसे भी कई स्थानो ंपर क्षित रह गई हो तो िवद्वज्जन सुधारकर पढ़ें यही प्राथर्ना। कृित पिरचय

    कृित की भाषा अपभं्रश है। भास व घात नामक छंदो ंमें रिचत इस कृित का गाथा पिरमाण २५ ह।ै सवोर्तृ्कष्ट पुण्य के धनी, जग उद्योतकर, वािंछत वस्त ुकी पूिर्त्त में कल्पवकृ्ष के समान व िजनका शासन दसु्तर भवसागर को पार कराने में समथर् है, ऐसे महावीर भगवान को नमस्कार करते हुए किव ने कृित का प्रारंभ िकया ह।ै िजनोपिदष्ट नवतत्त्ववाणी को किव ने सुधारस की उपमा दी ह,ै जो िमथ्यात्वरूपी िवष का पान करने वाले को अच्छी नही ंलगती है। नवतत्त्वज्ञान को किव ने नविनधान के साथ जोडा है और केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी व तीनो ंलोक में आनंद देने वाला कहा ह।ै किव ने परमात्मा के प्रित िवनती करते हुए कहा है िक- ह ेित्रभुवन नाथ ! आपके द्वारा उपिदष्ट नवतत्त्व को मैं संक्षपे में कहना चाहता हँू। ऐसा कहकर िववेच्य िवषय को आगे बढ़ाया ह।ै

    जीवाजीवापु नं पावासवसवंरिन जरणा भावा ।बंधो मुक्खो इइ नवत ा नाय वा िनि मय समं ा ॥६॥इस कृित की गाथा क्र.६ में सम्यक्त्व को देने वाले जीव, अजीव, पुण्य, पाप,

    आश्रव, संवर, िनजर्रा, बंध एवं मोक्ष इन नवतत्वो ंका नाम िनदेर्श िकया गया है। उसके बाद प्रते्यक तत्त्व के स्थलू व सूक्ष्म भेद दशार्ये गए हैं। अतं में फलश्रिुत में किव ने दशार्या ह ैिक-

    एयह त ह स िणहु इिण िम छ न( ) िवणास ।लहइ जीव समिकतरयण अणुवम मिह िनवास ॥२१॥यह नवतत्त्व स्वीकारने योग्य ह,ै इससे िमथ्यात्व का नाश होता है, समिकतरत्न

    की प्रािप्त होती है, शाश्वत तेज उल्लिसत होता है, ज्ञानरूपी मिण के दीपक िजसके प्रकाश में जीव-अजीवािद तत्त्वो ंकी जानकारी प्राप्त होती है, दशर्न-ज्ञान के संयोग से चािरत्र के पिरणाम होत ेहैं , िजसके द्वारा मोह-लोभ-मद-कामािद शत्रओु ंको जीता

  • िदसम्बर-२०१९24श्रतुसागरजा सकता है। इस ज्ञान-दशर्न-चािरत्ररूप रत्नत्रयी के द्वारा समस्त दःुखो ंका अतं कर अखंड सुख की प्रािप्त होती है।कतार् पिरचय

    कृित की अिंतम गाथा में कतार् के द्वारा स्वयं का िनम्निलिखत रूप से पिरचय िदया गया है, वह इस प्रकार है :

    िसिर वीर िजणवर ित ‘जयसायर’ सोमसम सहुकारणो ।मह िदसउ िन मलवयिणरस जगतारणो ॥२५॥ ‘आचायर् श्री कैलाससागरसूिर ज्ञानमंिदर, कोबा’ के संशोधको ंएवं पिण्डतो ं

    के द्वारा प्रस्ततु कतार् एवं िवद्वानो ंकी सूिच में कुल ५८ जयसागरजी का नामोले्लख प्राप्त होता है, िकन्त ुइस कृित की प्रशिस्त में कतार् के द्वारा स्वयं के िलए िवशेष रूप से कुछ भी स्पष्टीकरण प्राप्त नही ंहोता है। कृित की रचना शैली एवं भाषा वैिशष्ट्य के कारण जयसागरजी अनुमानतः िव.सं. १५वी ंशताब्दी के हो सकते हैं। अन्यत्र कतार् से संबंिधत कुछ भी िवशेष मािहती उपलब्ध न होने के कारण इसकी िसद्धता वतर्मान समय में िवद्वज्जनो ंके िलए संशोधन का िवषय ह।ैह तप्रत पिरचय

    प्रस्ततु कृित का संपादन आचायर् श्री कैलाससागरसूिर ज्ञानमंिदर, कोबा िस्थत ज्ञानभंडार की एकमात्र हस्तप्रत क्र.९४६०७ के आधार पर िकया गया ह।ै इस प्रत में कुल पत्र संख्या ३६ हैं, िकंत ुउपलब्ध पत्र संख्या ३२ हैं (पत्राकं-२२ और ३० से ३२ कुल-४ पत्र अनुपलब्ध हैं), साथ ही २५ पेटा-कृितयो ंसे यकु्त इस हस्तप्रत में प्रस्ततु कृित २३वे अनुक्रम पर िस्थत पत्र क्र.३४आ-३५अ पर प्राप्त होती है।

    पेटाकं-प्रारूप के अतंगर्त इस कृित का प्रत में नामकरण ‘नवतत्त्विवचारमय स्तोत्र’ के साथ उिल्लिखत है। िलिपिवन्यास, लेखनकला तथा कागज आिद के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है िक यह हस्तप्रत िव.सं. १६वी ंशताब्दी में िलखी गई होनी चािहए, प्रितलेखक एवं लेखनस्थल अनुपलब्ध ह।ै पंिक्तयो ंकी संख्या १४-१६ तक और प्रितपंिक्त अक्षरो ंकी संख्या ५२-५८ तक प्राप्त होती हैं। जलाद्रर्ता के कारण हस्तप्रत में कई पत्रो ंके अक्षर आमने-सामने छप गए हैं, कई स्थानो ंपर स्याही फैली हुई है, िजससे कही-ंकही ंअक्षर पढ़ने में किठनाईं होती है। कही-ंकही ंफफंुदग्रस्त पत्र भी प्राप्त होते हैं और मूषकभिक्षत होने के कारण कुछ पत्रो ंकी

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    िकनारी खंिडत है। कही-ंकही ंजीवातकृत िछद्र यकु्त पत्र भी प्राप्त होत ेहैं साथ ही प्रत के अतंगर्त कृितयो ंका मूल पाठ भी अल्प मात्रा में खंिडत है। इस हस्तप्रत की िवशेषता यह है िक ताडपत्र के परंपरानुसार बीच में वापी, वापी के मध्य व दोनो ंपाश्वर्õरेखाओ ंके बाहर चंद्रक िदये गए हैं। इस प्रत में पत्राकं दो जगह िदये गए हैं। कोने में िदये गए पत्राकं १ से प्रारंभ होते हैं और पाश्वर्õरेखा बाहर चंद्रक के बीच बड़े अक्षरो ंमें ९८ से पत्राकं नजर आते हैं। संभव ह ैिक इस प्रत का अन्य भाग कही ंऔर हो। इस हस्तप्रत का सन्दभर् ‘आचायर् श्री कैलाससागरसूिर ज्ञानमंिदर, कोबा तीथर्’ से प्रकािशत हस्तिलिखत जैन सािहत्य ‘कैलास श्रतुसागर गं्रथसूची’ के खंड -१.१.२२, पृ.क्र.४६९ पर प्राप्त होता है।

    नवतत्त्विवचारगिर्भत महावीरिजन स्तवन

    सािमय सोहगसार जग उ जोयकर ।जउ िजणसेर वीर ितहुयण वंिछय य क पतर ॥१॥जे जगनायक जीव भवसागर दतूसतररइ ं(दु तर तरइ)।ते सव िव सासण तु ह पदहणनी पिर अणसुरइ ॥२॥तां िजण जण िम छ िवस लहिरिह ंथािरउ भमइ जींनवत िवचा वयण सहुारस न हु गमइ ॥३॥अहवा पहु नवत नविनहाण िज लहइ ं।केवल लि छ पसाइ ते नर ितहुयिण गहगहइ ं ॥३(४)॥तउ हउं ितहुयणनाह तु ह वयण नवत मय ।वक्खािणस ुसंखिेव वयणतेर तह ..णतय(सासणतय?) ॥५॥

    ॥ भास ॥

    जीवाजीवापु नं पावासवसंवरिन जरणा भावा ।बंधो मकु्खो इइ नवत ा नाय वा िनि मय संम ा ॥६॥चउदस चउदस बाय�