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NON PROFIT PUBLICATION रव कामाारम ारा त... 21 अट फय से 27 अट फय 2018 Our Web Site: www.gurutvajyotish.com Shp Our Product Online www.gurutvakaryalay.com Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com शरद णाभका भहव कोजागयी ऩ णाभकयवा चौथ त कात ाक नान का आमाभक भहव कात ाक नान यन का अद त यहम धाभाक काम भारा चयन अॊक मर की विटता मॊर या वात दोष नवायण की अरौककक देन रा वन पर वचाय अॊक मोतष का यहम

NON PROFIT PUBLICATION JYOTISH OCT... · 2018-10-21 · वप्रम आत्त्भम, फ 2धु/ फहन जम गुद /व ह¡ 2दूऩ 2चा 2ग क / अनुाय

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  • NON PROFIT PUBLICATION .

    गुरुत्व कामाारम द्वारा प्रस्तुत... 21 अक्टूफय से 27 अक्टूफय 2018 Our Web Site: www.gurutvajyotish.com Shp Our Product Online www.gurutvakaryalay.com

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    शरद ऩूर्णाभा का भहत्व

    कोजागयी ऩूर्णाभा

    कयवा चौथ व्रत

    कार्ताक स्नान का आध्मात्त्भक भहत्व

    कार्ताक स्नान

    यत्नों का अद्भुत यहस्म

    धार्भाक कामों भें भारा चयन

    अॊक मन्त्रों की ववर्िष्टता

    मॊर द्वाया वास्तु दोष र्नवायण

    प्रकृर्त की अरौककक देन रुद्राऺ

    स्वप्न पर ववचाय

    अॊक ज्मोर्तष का यहस्म

  • FREE E CIRCULAR

    गरुुत्व ज्मोर्तष साप्ताहहक ई-ऩत्ररका भें रेखन हेतु

    फ्रीराॊस (स्वतॊर) रेखकों का

    स्वागत हैं...

    गरुुत्व ज्मोर्तष साप्ताहहक ई-ऩत्ररका भें आऩके द्वारा र्रखे गमे भॊर, मॊर, तॊर, ज्मोर्तष, अॊक ज्मोर्तष, वास्तु, पें गिुई, टैयों, येकी एवॊ अन्त्म आध्मात्त्भक ऻान वधाक रेख को प्रकार्ित कयने हेत ु बेज सकते हैं। अधधक जानकायी हेतु सॊऩका कयें।

    GURUTVA KARYALAY BHUBNESWAR-751018, (ODISHA) INDIA

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    गुरुत्व ज्मोर्तष साप्ताहहक ई-ऩत्ररका 21 अक्टूफय से

    27 अक्टूफय-2018 सॊऩादक धचॊतन जोिी सॊऩका गुरुत्व ज्मोर्तष ववबाग गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ODISHA) INDIA

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    ऩत्ररका प्रस्तुर्त धच ॊतन जोिी, गुरुत्व कामाारम पोटो ग्राकपक्स धच ॊतन जोिी, गुरुत्व कामाारम

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  • अनुक्रभ शरद 24- र-2018 6 र न र य ( य) 17 शरद 7 य ऱ चयन 19 र 24- र-2018 8 ऱ श 20 र च 27- र-2018 9 य श ऱ 22 ऱ ऱ न ! 11 य र द न र 24 न न य 13 ऱ द न 26 य 14 ऱ न श र न फऱ च र 28 द न य र च 16 य र य ( ऱ 1…) 30

    स्थामी औय अन्म रेख सॊऩादकीम 4 दैर्नक िबु एवॊ अिबु सभम ऻान तार्रका 52 21 अक्टूफय से 27 अक्टूफय 2018 साप्ताहहक ऩॊचाॊग

    46 हदन के चौघडडमे

    53

    21 अक्टूफय से 27 अक्टूफय 2018 साप्ताहहक व्रत-ऩवा-त्मौहाय

    46

    हदन कक होया - समूोदम से समूाास्त तक 54

    य य 52

    ई- जन्त्भ ऩत्ररका E HOROSCOPE अत्माधुर्नक ज्मोर्तष ऩद्धर्त द्वाया उत्कृष्ट बववष्मवाणी के साथ

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  • वप्रम आत्त्भम,

    फॊध/ु फहहन

    जम गुरुदेव हहॊद ूऩॊचाॊग के अनुसाय ऩूये वषा भें फायह ऩरू्णाभा आती हैं। ऩूर्णाभा के हदन चॊद्रभा अऩने ऩूणा आकाय भें होता है। ऩूर्णाभा ऩय चॊद्रभा का अतुल्म सौंदमा देखते ही फनता है। ववद्वानो के अनुसाय ऩूर्णाभा के हदन चॊद्रभा ऩूणा आकाय भें होने के कायण वषा भें आने वारी सबी ऩूर्णाभा ऩवा के सभान हैं। रेककन इन सबी ऩूर्णाभा भें आत्ववन भास कक ऩूर्णाभा सफसे शे्रष्ठ भानी गई है। मह ऩूर्णाभा ियद ऋतु भें आने के कायण इसे ियद ऩूर्णाभा बी कहते हैं। ियद ऋतु की इस ऩरू्णाभा को ऩूणा चॊद्र का अत्ववनी नऺर से सॊमोग होता है। अत्ववनी जो नऺर क्रभ भें प्रथभ नऺर हैं, त्जसके स्वाभी अत्ववनीकुभाय है य के अनुिाय च्मवन ऋवष को आयोग्म का ऩाठ औय औषधध का ऻान अत्ववनीकुभायों ने ही हदमा था। मही ऻान आज हजायों वषा फाद बी हभाये ऩास अनभोर धयोहय के रूऩ भें सॊधचत है। अत्ववनीकुभाय आयोग्म के स्वाभी हैं औय ऩूणा चॊद्रभा अभतृ का स्रोत। मही कायण है कक ऐसा भाना जाता है कक इस ऩूर्णाभा को ब्रहभाॊड से अभतृ की वषाा होती है।

    ियद ऩूर्णाभा की यात भें गाम के दधू से फनी खीय को चॊद्रभा कक चाॊदनी भें यखकय उसे प्रसाद-स्वरूऩ ग्रहण ककमा जाता है। ऩूर्णाभा की चाॊदनी भें 'अभतृ' का अॊि होता है, इस र्रमे भान्त्मता मह है कक ऐसा कयने से चॊद्रभा की अभतृ की फूॊदें बोजन भें आ जाती हैं त्जसका सेवन कयने से सबी प्रकाय की फीभारयमाॊ आहद दयू हो जाती हैं। आमुवेद के ग्रॊथों भें बी ियद ऩूर्णाभा की चाॊदनी भें औषधीम भहत्व का वणान र्भरता है। दधू से फनी खीय को चाॊदनी भें यखकय के असाध्म योगों की दवाएॊ र्खराई जाती है। द्वान न र शरद द ऱ र नश ऱ द न न य द द दन ऱ न दन नश य न र द र दन द य न न ऱ दन रन च य

    इस हदन व्मत्क्त ववधधऩूवाक स्नान कयके व्रत-उऩवास यखने का ववधान हैं। इस हदन श्रद्धा बाव स ेताॉफे मा र्भट्टी के करि ऩय वस्र से ढॉकी हुई स्वणाभमी रक्ष्भी की प्रर्तभा को स्थावऩत ककमा जाता हैं। कपय रक्ष्भी जी कक र्बन्त्न-र्बन्त्न उऩचायों से ऩूज-अचाना कयने का ववधान हैं। सामॊकार भें चन्त्द्रोदम होने ऩय सोने, चाॉदी अथवा र्भट्टी के घी से बये हुए दीऩक जराने कक ऩयॊऩया हैं।

    - न र य य द्वान न र य द दश य ऱ य न य य य न र ऱ य द ऱन न दन न शन र य र ऱ य य य य य द्वान ऱ श र ऱ य द्वान य न न न न ऱ य न य न रन द न र न न ऱ ऱ न न

    आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो ऩयभात्भा की कृऩा आऩके ऩरयवाय ऩय फनी यहे। ऩयभात्भा से मही प्राथना हैं…

    धचॊतन जोिी

  • 5 21 र 27 र-2018

    ***** साप्ताहहक ई-ऩत्ररका से सॊफॊधधत सूचना ***** - भें श ऱ गुरुत्व कामाारम के अधधकायों के साथ ही आयक्षऺत हैं। - ऱ न / य न झ - ऱ य न र र य श र र

    य य - श ऱ य य र

    र द र य ऱय य द न - श न र द र य ऱय य द

    न र न द र र न र द न य ऱय य द र य

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    य न य न नद , , न न नय ऱ फ य य द न य य रन न र ऱ र

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    र र य य न र -य य य न र य र य र र य य र य य च, -य य य र न च फऱ

    - य ऱय र श द ऱ न र दय य , य ऱय न द य रन र य न र न द य रन न र य ऱय र

    ( द ऱय ऱ न र य य ऱय य )

  • 6 21 र 27 र-2018

    ियद ऩूर्णाभा 24-अक्टूफय-2018 ऱन य ऱय

    हहॊद ूऩॊचाॊग के अनुसाय ऩूये वषा भें फायह ऩूर्णाभा आती हैं। ऩूर्णाभा के हदन चॊद्रभा अऩने ऩूणा आकाय भें होता है। ऩूर्णाभा ऩय चॊद्रभा का अतुल्म सौंदमा देखते ही फनता है। ववद्वानो के अनुसाय ऩूर्णाभा के हदन चॊद्रभा ऩूणा आकाय भें होने के कायण वषा भें आने वारी सबी ऩूर्णाभा ऩवा के सभान हैं। रेककन इन सबी ऩूर्णाभा भें आत्ववन भास कक ऩूर्णाभा सफसे शे्रष्ठ भानी गई है। मह ऩूर्णाभा ियद ऋतु भें आने के कायण इसे ियद ऩूर्णाभा बी कहते हैं। ियद ऋतु की इस ऩूर्णाभा को ऩूणा चॊद्र का अत्ववनी नऺर से सॊमोग होता है। अत्ववनी जो नऺर क्रभ भें प्रथभ नऺर हैं, त्जसके स्वाभी अत्ववनीकुभाय है।

    कथा के अनुिाय च्मवन ऋवष को आयोग्म का ऩाठ औय औषधध का ऻान अत्ववनीकुभायों ने ही हदमा था। मही ऻान आज हजायों वषा फाद बी हभाये ऩास अनभोर धयोहय के रूऩ भें सॊधचत है। अत्ववनीकुभाय आयोग्म के स्वाभी हैं औय ऩूणा चॊद्रभा अभतृ का स्रोत। मही कायण है कक ऐसा भाना जाता है कक इस ऩूर्णाभा को ब्रहभाॊड से अभतृ की वषाा होती है। खीय का बोग

    ियद ऩूर्णाभा की यात भें गाम के दधू से फनी खीय को चॊद्रभा कक चाॊदनी भें यखकय उसे प्रसाद-स्वरूऩ

    ग्रहण ककमा जाता है। ऩूर्णाभा की चाॊदनी भें 'अभतृ' का अॊि होता है, इस र्रमे भान्त्मता मह है कक ऐसा कयने स ेचॊद्रभा की अभतृ की फूॊदें बोजन भें आ जाती हैं त्जसका सेवन कयने से सबी प्रकाय की फीभारयमाॊ आहद दयू हो जाती हैं। आमुवेद के ग्रॊथों भें बी ियद ऩूर्णाभा की चाॊदनी भें औषधीम भहत्व का वणान र्भरता है। दधू से फनी खीय को चाॊदनी भें यखकय के असाध्म योगों की दवाएॊ र्खराई जाती है। शयद ऩूर्णिभा की कथा: एक साहुकाय के दो ऩुत्ररमाॉ थी। दोनो ऩुत्ररमाॉ ियद ऩुर्णाभा का व्रत यखती थी। ऩयन्त्तु फडी ऩुरी ऩूया व्रत कयती थी औय छोटी ऩुरी अधयुा व्रत कयती थी।

    ऩरयणाभ मह हुआ कक छोटी ऩुरी की सन्त्तान

    ऩैदा होते ही भय जाती थी। उसने ऩॊडडतो से इसका कायण ऩूछा तो उन्त्होन े फतामा की तुभ ऩूर्णाभा का अधयूा व्रत कयती थी त्जसके कायण तुम्हायी सन्त्तान ऩैदा होते ही भय जाती हैं। ऩरू्णाभा का ऩुया ववधधऩुवाक कयन ेसे तुम्हायी सन्त्तान जीववत यह सकती हैं। उसने ऩॊर्तडतो कक सराह ऩय ऩूर्णाभा का ऩूया व्रत ववधधऩूवाक ककमा। उसके रडका हुआ ऩयन्त्तु िीघ्र ही भय गमा । उसन ेरडके को रकडी के ऩटे्ट ऩय र्रटाकय ऊऩय से कऩडा ढक हदमा। कपय फडी फहन को फुराकय राई औय फैठने के र्रए वही ऩट्टा दे हदमा। फडी फहन जफ ऩीढे ऩय फैठन ेरगी जो उसका घाघया फच्च ेका छू गमा, फच्चा घाघया छुते ही योने रगा। फडी फहन फोरी तुभ भुझ े कॊ रक रगाना चाहती थी। भेये फैठने से मह भय जाता तफ छोटी फहन फोरी मह तो ऩहरे से भया हुआ था। तेये ही बाग्म से मह ऩुन् जीववत हो गमा हैं । तयेे ऩुण्म से ही मह अबी जीववत हुआ हैं। उसके फाद से ियद ऩुर्णाभा का ऩूया व्रत कयने का प्रचरन चर र्नकरा।

  • 7 21 र 27 र-2018

    ियद ऩूर्णाभा का भहत्व ऱन य ऱय

    शरद - र न श न शरद दन र शरद र न द च न ऱ य च द न य न य च र द्वान - नय न च न दय न न च र न श र श ऱ न य र र न ऱ च र न य ऱ र र र द्वान - नय न च ययन र र न र न ऱ श र ऱय

    द ऱ य च श न य द न - य च र र द्वान न र शरद र च न ऱ ऱ

    शरद दन च द न द शरद र फ श च न र य च न रय श न द्वान न र च न - न च श न र न य र द शरद दन च र शन र र रन च च दन द न र र र द य र

    र द्वान न दय ऱ य र ऱय द र शरद र च र च ऱ श र च र द र च ऱ न य न य श ऱ य न च

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  • 8 21 र 27 र-2018

    कोजागयी ऩूर्णाभा 24-अक्टूफय-2018 ऱन य ऱय

    आत्ववन भास की ऩूर्णाभा को 'कोजागय व्रत' यखा जाता हैं। इस र्रमे इस ऩूर्णाभा को कोजागयी ऩूर्णाभा बी कहा जाता है। इस हदन व्मत्क्त ववधधऩूवाक स्नान कयके व्रत-उऩवास यखने का ववधान हैं। इस हदन श्रद्धा बाव स ेताॉफे मा र्भट्टी के करि ऩय वस्र से ढॉकी हुई स्वणाभमी रक्ष्भी की प्रर्तभा को स्थावऩत ककमा जाता हैं। कपय रक्ष्भी जी कक र्बन्त्न-र्बन्त्न उऩचायों से ऩूज-अचाना कयने का ववधान हैं। सामॊकार भें चन्त्द्रोदम होने ऩय सोने, चाॉदी अथवा र्भट्टी के घी से बये हुए दीऩक जराने कक ऩयॊऩया हैं।

    इस हदन घी र्भधश्रत खीय को ऩारों भें डारकय उसे चन्त्द्रभा की चाॉदनी भें यखा जाता हैं। एक प्रहय (३ घॊटे) खीय को चाॉदनी भें यखनेके फाद भें उसे रक्ष्भीजी को सायी खीय अऩाण कक जाती हैं। तत्ऩवचात बत्क्तऩूवाक सात्त्वक ब्राहभणों को खीय का बोजन कयाएॉ औय उनके साथ ही भाॊगर्रक गीत गाकय तथा भॊगरभम कामा कयते हुए यात्रर जागयण ककमा जाता हैं।

    भान्त्मता हैं कक ऩूर्णाभा कक भध्मयात्रर भें देवी भहारक्ष्भी अऩने हाथो भें वय औय अबम वयदान र्रए बूरोक भें ववचयती हैं। इस हदन जो बक्तजन जाग यहा होता हैं उसे भाता रक्ष्भी धन-सॊऩत्त्त प्रदान कयती हैं।

    कनकधाया मॊर आज के बौर्तक मुग भें हय व्मत्क्त अर्तिीघ्र सभदृ्ध फनना चाहता हैं। कनकधाया मॊर कक ऩूजा अचाना कयने से व्मत्क्त के जन्त्भों जन्त्भ के ऋण औय दरयद्रता स ेिीघ्र भुत्क्त र्भरती हैं। मॊर के प्रबाव से व्माऩाय भें उन्त्नर्त होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। कनकधाया मॊर अत्मॊत दरुाब मॊरो भें स ेएक मॊर हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी कक प्रात्प्त हेतु अचकू प्रबावा िारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊर को ववद्वानो ने स्वमॊर्सद्ध तथा सबी प्रकाय के ऐववमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं। आज के मुग भें हय व्मत्क्त अर्तिीघ्र सभदृ्ध फनना चाहता हैं। धन प्रात्प्त हेतु प्राण-प्रर्तत्ष्ठत कनकधाया मॊर के साभने फैठकय कनकधाया स्तोर का ऩाठ कयने से वविषे राब प्राप्त होता हैं। इस कनकधाया मॊर कक ऩूजा अचाना कयने से ऋण औय दरयद्रता से िीघ्र भुत्क्त र्भरती हैं। व्माऩाय भें उन्त्नर्त होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। जैस ेश्री आहद िॊकयाचामा द्वारा कनकधाया स्तोर कक यचना कुछ इस प्रकाय की गई हैं, कक त्जसके श्रवण एवॊ ऩठन कयने से आस-ऩास के वामुभॊडर भें वविषे अरौककक हदव्म उजाा उत्ऩन्त्न होती हैं। हठक उसी प्रकाय से कनकधाया मॊर अत्मॊत दरुाब मॊरो भें स ेएक मॊर हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी कक प्रात्प्त हेत ुअचकू प्रबावा िारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊर को ववद्वानो ने स्वमॊर्सद्ध तथा सबी प्रकाय के ऐववमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं। जगद्गुरु िॊकयाचामा ने दरयद्र ब्राहभण के घय कनकधाया स्तोर के ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ िॊकय हदत्ग्वजम भें र्भरता हैं। कनकधाया भॊर:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्ीॊ-श्रीॊ क्रीॊ कनक धायमै स्वाहा' >> Order Now

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  • 9 21 र 27 र-2018

    कयवा चौथ व्रत 27-अक्टूफय-2018

    ऱन य ऱय

    कार्ताक भास कक चतुथॉ के हदन वववाहहत भहहराओॊ द्वाया कयवा चौथ का व्रत ककमा जाता है। कयवा का अथाात र्भट्टी के जर-ऩार कक ऩूजा कय चॊद्रभा को अध्मा देने का भहत्व हैं। इसीर्रए मह व्रत कयवा चौथ नाभ से जाना जाता हैं। इस हदन ऩत्नी अऩने ऩर्त की दीघाामु के र्रमे भॊगरकाभना औय स्वमॊ के अखॊड सौबाग्म यहन ेकक काभना कयती हैं। कयवा चौथ के ऩूये हदन ऩत्नी द्वाया उऩवास यखा जाता हैं। इस हदन यात्रर को जफ आकाि भें चॊद्रम उदम से ऩूवा सोरह सृॊगाय कय चॊद्र र्नकरने कक प्रर्तऺा कयती हैं। व्रत का सभाऩन चॊद्रभा को अध्मा देने के साथ ही उसे छरनी से देखा जाता हैं, उसके फाद ऩर्त के चयण स्ऩिा कय उनसे आिीवााद प्राप्त कयती हैं। ऐसी भान्त्मता है कक इस व्रत को कयने से भहहराएॊ अखॊड सौबाग्मवती होती हैं, उसका ऩर्त दीघाामु होता हैं।

    महद इस व्रत को ऩारन कयने वारी ऩत्नी अऩने ऩर्त के प्रर्त भमाादा से, ववनम्रता स,े सभऩाण के बाव स ेयहे औय ऩर्त बी अऩने सभस्त कताव्म एवॊ धभा का ऩारन सुचारु रुऩ से ऩारन कयें, तो एसे दॊऩत्त्त के जीवन भें सबी सुख-सभवृद्ध से बया जाता हैं।

    कथा : एसी भान्त्मता हैं, कक बगवान श्रीकृष्ण न ेद्रोऩदी को मह व्रत का भहत्व फतामा था। ऩाॊडवों के वनवास के दौयान अजुान तऩ कयने के र्रए इॊद्रनीर ऩवात ऩय चरे गए। फहुत हदन फीत जाने के फाद बी जफ अजुान नहीॊ रौटे तो द्रोऩदी को धचॊता होने रगी। जफ श्रीकृष्ण ने द्रोऩदी को धचॊर्तत देखा तो पौयन धचॊता का कायण सभझ गए। कपय बी श्रीकृष्ण ने द्रोऩदी स ेकायण ऩूछा तो उसने मह धचॊता का कायण श्रीकृष्ण के साभने प्रकट कय हदमा। तफ श्रीकृष्ण न ेद्रोऩदी को कयवाचौथ व्रत कयने का ववधान फतामा। द्रोऩदी ने श्रीकृष्ण से व्रत का ववधध-ववधान जान कय व्रत ककम औय उसे व्रत का पर र्भरा, अजुान सकुिर ऩवात ऩय तऩस्मा ऩूयी कय िीघ्र रौट आए।

    ऩूजन-विधध: कयवा चौथ के हदन ब्रहभ भुहूता भें उठ कय स्नान के स्वच्छ कऩड ेऩहन कय कयवा की ऩूजा-आयाधना कय उसके साथ र्िव-ऩावाती कक ऩूजा का ववधान हैं। क्मोकक भाता ऩावाती नें कहठन तऩस्मा कय के र्िवजी को प्राप्त कय अखॊड सौबाग्म प्राप्त ककमा था। इस र्रमे र्िव-ऩावाती कक ऩूजा कक जाती हैं।

    कयिा चौथ के ददन चॊद्रभा कक ऩूजा का धार्भिक औय ज्मोतिष दोनों ही द्रष्टट से भहत्ि है। छाॊदोग्म उऩर्नषद् के अनुिाय जो चॊद्रभा भें ऩुरुषरूऩी ब्रहभा कक उऩासना कयता है, उसके साये ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं, उसे जीवन भें ककसी प्रकाय का कष्ट नहीॊ होता। उस ेरॊफी औय ऩूणा आमु कक प्रात्प्त होती हैं।

    ज्मोर्तष दृत्ष्ट से चॊद्रभा भन का कायक देवता हैं। अत् चॊद्रभा चॊद्रभा कक ऩूजा कयने से भन की चॊचरता ऩय र्नमॊत्ररत यहता हैं। चॊद्रभा के िुब होने ऩय से भन प्रसन्त्नता यहता हैं औय भन से अिुद्ध ववचाय दयू होकय भन भें िुब ववचाय उत्ऩन्त्न होत ेहैं। क्मोकक िुब ववचाय ही भनुष्म को अच्छे कभा कयने हेत ुप्रेरयत कयते हैं। स्वमॊ के द्वाया ककमे गई गरती मा एवॊ अऩन ेदोषों का स्भयण कय ऩर्त, सास-ससुय औय फुजुगो के चयणस्ऩिा इसी बाव के साथ कयें कक इस सार मे गरर्तमाॊ कपय नहीॊ हों।

    गुरुत्ि कामािरम द्वाया यत्न-रुद्राऺ ऩयाभिा भात्र RS:- 910 325* >> Order Now | Email US | Customer Care: 91+ 9338213418, 91+ 9238328785

  • 10 21 र 27 र-2018

    सवा कामा र्सवद्ध कवच त्जस व्मत्क्त को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयन ेके फादबी उसे भनोवाॊर्छत सपरतामे एवॊ

    ककमे गमे कामा भें र्सवद्ध (राब) प्राप्त नहीॊ होती, उस व्मत्क्त को सवा कामा र्सवद्ध कवच अववम धायण कयना चाहहमे।

    किच के प्रभखु राब: सवा कामा र्सवद्ध कवच के द्वारा सखु सभवृद्ध औय नि ग्रहों के नकायात्भक प्रबाव को िाॊत कय धायण कयता व्मत्क्त के जीवन से सवा प्रकाय के द:ुख-दारयद्र का नाि हो कय सखु-सौबाग्म एवॊ उन्त्नर्त प्रात्प्त होकय जीवन भे सर्ब प्रकाय के िबु कामा र्सद्ध होत ेहैं। त्जसे धायण कयन ेसे व्मत्क्त महद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे ववृद्ध होर्त हैं औय महद नौकयी कयता होतो उसभे उन्त्नर्त होती हैं। सवा कामा र्सवद्ध कवच के साथ भें सििजन िशीकयण कवच के र्भरे होने की वजह से धायण

    कताा की फात का दसूये व्मत्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं। सवा कामा र्सवद्ध कवच के साथ भें अटट रक्ष्भी कवच के र्भरे होन ेकी वजह से व्मत्क्त ऩय

    सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आिीवााद फना यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अष्ट रुऩ (१)-आहद रक्ष्भी, (२)-धान्त्म रक्ष्भी, (३)- धमैा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अिीवााद प्राप्त होता हैं।

    सवा कामा र्सवद्ध कवच के साथ भें िॊत्र यऺा कवच के र्भरे होन ेकी वजह से ताॊत्ररक फाधाए दयू होती हैं, साथ ही नकायात्भक ित्क्तमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्क्त ऩय नहीॊ होता। इस कवच के प्रबाव से इषाा-द्वषे यखन ेवार ेव्मत्क्तओ द्वारा होन ेवार ेदषु्ट प्रबावो से यऺा होती हैं।

    सवा कामा र्सवद्ध कवच के साथ भें शत्र ु विजम कवच के र्भरे होन ेकी वजह से िर ु से सॊफॊधधत सभस्त ऩयेिार्नओ से स्वत् ही छुटकाया र्भर जाता हैं। कवच के प्रबाव से िरु धायण कताा व्मत्क्त का चाहकय कुछ नही त्रफगाड़ सकते। अन्त्म कवच के फाये भे अधधक जानकायी के र्रमे कामाारम भें सॊऩका कये: ककसी व्मत्क्त वविषे को सवा कामा र्सवद्ध कवच देने नही देना का अॊर्तभ र्नणाम हभाये ऩास सुयक्षऺत हैं।

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  • 11 21 र 27 र-2018

    जफ रक्ष्भीजी एक भारी की फेटी फनी ! ऱन य ऱय

    एक फाय बगवान ववष्णु धयती ऩय घूभने की मोजना फनाई, बगवान ववष्णु के मारा की मोजना की तैमायी देख भाता रक्ष्भी ने ऩूछा ! कहाॊ जाने कक तैमायी हो यही है? ववष्णु जी ने उत्तय हदमा हे रक्ष्भी भैं बूरोक ऩय जा यहा हुॊ। थोडा धचॊतन कय देवी रक्ष्भी न ेकहा ! क्मा भै बी आऩ के साथ चर सकती हुॊ?

    बगवान ववष्णु कहाॊ तुभ एक िता ऩय, भेये साथ चर सकती हो, तुभ धयती ऩय ऩहुॉच कय उत्तय हदिा की तयप भत देखना, इस के साथ ही भाता रक्ष्भी ने वचन देते हुवे हाॊ कहाॉ। कपय रक्ष्भी जी ओय बगवान ववष्णु धयती ऩय ऩहुच गमे, उनके आगभन के सभम समुा देवता का उदम हो यहा था, फीती यात फयसात हुई थी, त्जस्से धयती ऩय चायो ओय हरयमारी थी, धयती ऩय चायो ओय फहुत िात्न्त्त पैरी थी, ओय धयती अत्मॊत ही सुन्त्दय हदख यही थी।

    धयती का यभणीम दृवम देख कय भाता रक्ष्भी भन्त्र भुग्ध हो कय चायो ओय देख यही थी, ओय बरू गई कक ऩर्त को उत्तय हदिा की तयप न देख ने का वचन दे कय आई है? देखते-देखते कफ भाता रक्ष्भी उत्तय हदिा की ओय देखने रगी मह ऩता ही नही चरा। उत्तय

    हदिा भैं उन्त्हें एक अत्मॊत ही सुन्त्दय फगीचा नजय आमा, फगीच ेकी तयफ़ से बीनी-बीनी खिुफु आ यही थी, फगीच ेभें अत्मॊत ही सुन्त्दय-सुन्त्दय फू़र र्खरे थे, मह एक फू़रो का फगीचा था, ओय भाॊ रक्ष्भी त्रफना सोच ेसभझ ेउस फगीच ेभे गई ओय एक सुॊदय पूर तोड़ राई।

    रेककन जफ भाॊ रक्ष्भी पूर तोड़ बगवान ववष्णु के ऩास वावऩस आई तो बगवान ववष्णु की आॊखो भै आॊसू थे, ओय बगवान ववष्णु ने देवी रक्ष्भी को कहा कक कबी बी ककसी से त्रफना ऩूछे उस का कुछ बी नही रेना चाहहमे, ओय साथ ही देख ने वारा वचन बी माद हदरामा।

    भाॊ रक्ष्भी को अऩनी बूर का सभझ आगई तो उन्त्होने बगवान ववष्णु से इस बूर के र्रमे भाफ़ी भागी, तो बगवान ववष्णु ने कहा कक तुभ ने जो बूर की है उस की सजा तो तुम्हे र्भरेगी? त्जस भारी के फगीच ेस ेतुभने त्रफना ऩूछे फू़र तोडा है, मह एक प्रकाय की चोयी है, इस र्रमे अफ तुम्हें तीन सार तक भारी के घय नोकय फन कय यहना होगा, उस के फाद भै तुम्हे फैकुण्ठ भे ववऩस रे जाऊॊ गा, भाता रक्ष्भी ने चऩु-चाऩ सय झुका कय हाॊ कय, एक गयीफ ओयत का रुऩ धायण कयके भाता

    श्री भहारक्ष्भी मॊत्र धन कक देवी रक्ष्भी हैं जो भनुष्म को धन, सभवृद्ध एवॊ ऐववमा प्रदान कयती हैं। अथा(धन) के त्रफना भनुष्म जीवन दु् ख, दरयद्रता, योग, अबावों से ऩीडडत होता हैं, औय अथा(धन) स ेमुक्त भनुष्म जीवन भें सभस्त सुख-सुववधाएॊ बोगता हैं। श्री भहारक्ष्भी मॊर के ऩूजन से भनुष्म की जन्त्भों जन्त्भ की दरयद्रता का नाि होकय, धन प्रात्प्त के प्रफर मोग फनने रगत ेहैं, उस ेधन-धान्त्म औय रक्ष्भी की ववृद्ध होती हैं। श्री भहारक्ष्भी मॊर के र्नमर्भत ऩूजन एवॊ दिान से धन की प्रात्प्त होती है औय मॊर जी र्नमर्भत उऩासना स ेदेवी रक्ष्भी का स्थाई र्नवास होता है। श्री भहारक्ष्भी मॊर भनुष्म कक सबी बौर्तक काभनाओॊ को ऩूणा कय धन ऐववमा प्रदान कयन ेभें सभथा हैं। अऺम ततृीमा, धनतेयस, दीवावरी, गुरु ऩुष्माभतृ मोग यववऩुष्म इत्माहद िुब भुहूता भें मॊर की स्थाऩना एवॊ ऩूजन का वविषे भहत्व हैं।

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  • 12 21 र 27 र-2018

    रक्ष्भी उस फगीच ेके भार्रक के घय गई। भार्रक घय एक झोऩडा था, ओय भार्रक का नाभ भाधव था, भाधव की फीफी, दो फेटे ओय तीन फेहटमा थी, सबी उस छोटे से फगीच े भैं काभ कयके ककसी तयह स ेअऩना गजुाया कयते थे, भाता रक्ष्भी जफ एक साधायण व गयीफ ओयत फन कय जफ भाधव के झोऩड़ ेऩय गई तो भाधव ने ऩूछा फहहन आऩ कोन हो? ओय इस सभम आऩको क्मा चाहहमे?

    तफ भाता रक्ष्भी ने कहा, भै एक गयीफ ओयत हू, भेयी देख बार कयने वारा कोई नही है, भेने कई हदनो से खाना बी नही खामा भुझ ेकोई बी काभ दे दो, साथ भे, भैं तुम्हाये घय का काभ बी कय हदमा करुगी, फस भुझ ेअऩने घय भै एक कोने भै आसया दे दो?

    भाधव फहुत ही अच्छे स्वबाव का था, उसे दमा आ गई, रेककन उस न े कहा, फहहन भै तो फहुत ही गयीफ हुॊ, भेयी कभाई स ेभेये घय का खचा भुत्स्कर स ेचरता है, रेककन अगय भेयी तीन की जगह चाय फेहटमा होती तो बी भुझ ेगुजाया कयना था, अगय आऩ भेयी फेटी फन कय, जैसा हभ रुखा सुखा खाते है उस भें आऩ खिु यह सकती हो, तो भेयी फेटी फनकय अन्त्दय आ जाओ।

    भाधव ने भाता रक्ष्भी को अऩने झोऩड़ ेभें आश्रम दे हदमा, ओय भाता रक्ष्भी तीन सार तक उस भाधव के घय व फगीच ेऩय फेटी फन कय यही।

    त्जस हदन भाता उसके फाद उसके हदन फदर गमे, भाधव को अधधक आभदनी होने रगी जल्द ही उसने एक गाम खयीद री, कफ़य धीये-धीये भाधव ने दसूयी जभीने खयीद री अऩना घय बी फड़ा फना र्रमा, भाधव का घय सबी तयह से सॊऩन्त्नता से ऩरयऩूणा हो गमा। भाधव हभेिा मह स्भयण कयता था कक भेयी अच्छी

    ककस्भत ओय भेये घय भें मह सॊऩन्त्नता इस फेटी के आन ेके फाद ही र्भरी है।

    रक्ष्भीजी को भाधव के घय येहते हुए 3 सार फीत गमे थे, रेककन भाता रक्ष्भी अफ बी भाधव के घय भें यहती थी, एक हदन भाधव खेतो का काभ खत्भ कयके घय आमा तो उस ने द्वाय ऩय एक देवी स्री को गहनो को धायण ककमे देखा, गौय से देखने ऩय उस ने ऩामा मह तो वहीॊ स्री हैं त्जसे भेने भुहॊ फोरी फेटी फनामा है, ओय ऩहचान गमा कक मह तो साऺात भाता रक्ष्भी है, तफ तक भाधव के ऩरयवाय के अन्त्म सदस्म फाहय आ गमे, ओय सफ हेयान हो कय भाता रक्ष्भी को चककत होकय देखते यहे थे, भाधव फोरा हे भाॊ हभे भाफ़ कयना हभ ने अॊजाने भै आऩसे घय ओय खेत भे काभ कयवामे हैं, भेये से मह कैसा अऩयाध हो गमा, भाॊ हभ सफ को भाफ़ कय दो, तफ भाता रक्ष्भी ने भुस्कुयाते हुए फोरी, भाधव तुभने एक अच्छे ओय दमारू व्मत्क्त्त हो, तुभ ने भुझ ेअऩने ऩरयवाय के सदस्म की तयह अऩनी फेटी फना कय यखा, इस र्रए भै तुम्हे वयदान देती हुॊ कक तुम्हाये ऩास कबी बी खरु्िमों की एवॊ धन की कभी नहीॊ होगी, तुम्हे अऩनी जीवन भें सबी प्रकाय के सुख प्राप्त होगें। भाधव को आर्िवााद देकय भाता रक्ष्भी ववष्णुजी द्वाया बेजे यथ ऩय सवाय होकय फेकुण्ठ रोक भें चरी गई।

    अत् इस कथा के अनुसाय जैसे भाॊ रक्ष्भी अच्छे ओय दमारू व्मत्क्त के महाॊ र्नवाय कयती हैं, हभें बी अन्त्म रोगों के प्रर्त अऩना व्मवहाय अच्छा ओय दमारू यख कय अऩने साभर्थमा के अनुिाय दसूयों की सहामता अववम कयनी चाहहए।

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  • 13 21 र 27 र-2018

    कार्ताक स्नान का आध्मात्त्भक भहत्व ऱन य ऱय

    हेभाहद्र के अनुसाय

    ककसी बी िुबकभा मा धार्भाक कामा इत्माहद कयने से ऩूवा स्नान का वविषे भहत्व होता है । इसके अरावा आयोग्म को फढाने औय उसके यऺण के र्रमे बी र्नत्म स्नान कयना राबदामक र्सद्ध होता है । वविषे रूऩ से भाघ, वैिाख औय कार्ताक भाह का र्नत्म स्नान अधधक भहत्वऩूणा होता है ।

    भदन ऩारयजात के अनुसाय कार्ताकॊ सकरॊ भासॊ र्नत्मस्नामी त्जतेंहद्रम:।

    जऩन ्हववष्मबुक् छान्त्त: सवाऩाऩै: प्रभुच्मते॥

    अथाात ्: कार्ताक भास भें त्जतेत्न्त्द्रम यहकय र्नत्म स्नान कय एवॊ हववष्म ( जौ, गेहूॉ, भूॉग, तथा दधू-दही औय घी इत्माहद) का एकफाय बोजन कये तो सफ ऩाऩ दयू हो जाते हैं।

    इस व्रत को आत्ववन भास की ऩूर्णाभा से प्रायॊब कयके 31 वें हदन कार्ताक िुक्र ऩूर्णाभा के हदन सभाप्त कये। स्नान के र्रमे घयके फतानों भे यखे ऩानी की

    अऩेऺा कुॉ आ, फावरी मा ताराफ आहद उत्तभ होत ेहैं औय कुॉ ए आहद के ऩानी की अऩेऺा ऩववर तीथों का स्नान अर्त उत्तभ हैं ।

    ऩववर तीथा स्नान ऩय स्नान से ऩूवा ऩानी भें प्रवेि कयने से ऩूवा अऩन ेहाथ - ऩाॉव जरािम के फाहाय स्वच्छ कयरें। तत्ऩवचात र्िखा फॊधक कय जर एवॊ कुि से सॊकल्ऩ कयने के ऩवचात ही स्नान हेतु प्रवेि कयें। अॊधगया के अनुसाय सॊकल्ऩ हेतु कुि

    ववना दबेवच मत ्स्नानॊ मच्च दानॊ ववनोदकभ।्

    असॊख्मातॊ च मज्जप्तॊ तत ्सव ंर्नष्परॊ बवेत॥् अथाात ् : स्नानभें कुि, दानभें सॊकल्ऩ का औय जऩ भें सॊख्मा न हो तो मे सफ परदामक नहीॊ होते ।

    ऩुयातन कार से ही हहन्त्द ूधभा की ऩयॊऩया यही हैं की हभाये महाॉ प्रात् धार्भाक र्तथा की ऩववर नहद, ताराव इत्माहद के जर से स्नान ककमा जाता हैं। ववर्बन्त्न प्रकाय के व्रत-स्नान-दानाहद धार्भाक कामा ककमे जाते हैं। कार्ताक भास भें सॊध्मा कार दीऩक जरानें की ऩयॊऩया हैं।

    क्मा आऩके फच्चे कुसॊगती के र्िकाय हैं? क्मा आऩके फच्चे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हैं? क्मा आऩके फच्चे घय भें अिाॊर्त ऩैदा कय यहे हैं?

    घय ऩरयवाय भें िाॊर्त एवॊ फच्चे को कुसॊगती से छुडाने हेतु फच्चे के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्वाया िास्रोक्त ववधध-ववधान से भॊर र्सद्ध प्राण-प्रर्तत्ष्ठत ऩूणा चैतन्त्म मुक्त विीकयण कवच एवॊ एस.एन.डडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें स्थावऩत कय अल्ऩ ऩूजा, ववधध-ववधान से आऩ वविेष राब प्राप्त कय सकते हैं। महद आऩ तो आऩ भॊर र्सद्ध विीकयण कवच एवॊ एस.एन.डडब्फी फनवाना चाहते हैं, तो सॊऩका इस कय सकत ेहैं।

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  • 14 21 र 27 र-2018

    ज्मोर्तष भें ग्रहों की अवस्थाएॊ ऱन य ऱय

    य श न र न न य न र श य न र न न य सायावरी भें ऱ - दीप्त: स्वस्थो भुहदत: िाॊत िक्तो र्नऩीडडतो बीत:। ववकर् खरवच कधथतो नवप्रकायो ग्रहो हरयणा॥

    : १ दीप्त, २ स्वस्थ, ३ भुहदत, ४ िान्त्त, ५ िक्त, ६ र्नऩीडडत, ७ बीत, ८ ववकर, ९ खर मह ९ प्रकाय की ग्रहों की अवस्था हरय ने कहीॊ हैं। श: १ उच्च यार्ि भें त्स्थत ग्रह दीप्त, २ सऩनी यार्ि भें त्स्थत ग्रह स्वस्थ, ३ र्भर की यार्ि भें त्स्थत ग्रह भुहदत, ४ िुब वगों भें त्स्थत ग्रह िान्त्त, ५ स्पुहटत यत्वभ (प्रकार्ित ककयण) वारा ग्रह िक्त, ६ ग्रहार्बबूत (ग्रह मुद्ध भें ऩयात्जत) ऩीडडत, ७ नीच यार्ि भें त्स्थत ग्रह बीत, ८ अस्त ग्रह ववकर, ९ ऩाऩ वगों भें त्स्थत ग्रह खर की त्स्थती भें होते हैं। फहृत्ऩायािय भें ऱ - १ उच्च यार्ि भें त्स्थत ग्रह दीप्त, २ अऩनी यार्ि भें त्स्थत ग्रह स्वस्थ, ३ अऩने अधधर्भर की यार्ि भें त्स्थत ग्रह भुहदत, ४ र्भर की यार्ि भें त्स्थत ग्रह िान्त्त, ५ सभ ग्रह की यार्ि भें त्स्थत ग्रह दीन, ६ िर ुग्रह की यार्ि भें त्स्थत ग्रह द:ुर्खत, ७ ऩाऩ ग्रह स ेमुक्त होने से ववकर, ८ ऩाऩ ग्रह की यार्ि भें त्स्थत ग्रह खर, ९ सूमा के साथ (अथाात अस्त) होने से कोऩी होते हैं।

    स्वोच्च ेबवर्त च दीप्त: स्वस्थ: स्वगहेृ सुरृदगहेृ भुहदत:।

    िान्त्त: िुबवगास्थ: िक्त: स्पुटककयणजारवच॥ ववकरो यववरुप्तकयो ग्रहोर्बबूतो र्नऩीडडततवचवैभ।

    ऩाऩगणस्थवच खरो नीचे बीत: सभाख्मात्॥

    : ग्रह अऩनी उच्च यार्ि भें दीप्त, अऩनी यार्ि भें स्वस्थ, र्भर की यार्ि भें भुहदत, िुबग्रह के वगा भें िान्त्त, अनस्िॊगि शक्ि, सूमा की ककयणों से अस्त ग्रह ववकर, मुद्ध भें ऩयात्जत र्नऩीडडत, ऩाऩग्रह के वगा भें खर औय अऩनी नीच यार्ि भें ग्रह बीत अवस्था प्राप्त कयता हैं। ऱ न न य श न र न न न ऱ द न महद मह नौ ग्रह ऩीडड़त औय ववकर हो तो मह ग्रह र्नष्पर एवॊ प्रबावहीन हो जाते हैं। 1. दीप्त ग्रह जफ कोई ग्रह उच्च यार्ि भें त्स्थत होता है, तो वह ग्रह दीप्त अवस्था भें कहराता है। ऐसी अवस्था भें जातक को ऩूणा धन राब, वाहन सुख, भान-सम्भान, मि-प्रर्तष्ठा, सॊतान सुख र्भरता है औय जातक िरओुॊ ऩय ववजम प्राप्त कयता है। 2. स्वस्थ ग्रह जफ कोई ग्रह स्वयार्ि भें त्स्थत होता है, स्वस्थ होता

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  • 15 21 र 27 र-2018

    है। ऐसी त्स्थती भें जातक को धन राब साभात्जक प्रर्तष्ठा र्भरती है। वॊि की ववृद्ध होती है। 3. भुहदत ग्रह जफ कोई ग्रह र्भर यार्ि भें त्स्थत होता है, तो भुहदत कहराता है। िुब व राबकायी होता हैं। ऐसी त्स्थती भें जातक को जीवन भें आनन्त्द व सॊतोष र्भरता है औय िर ुववजमी व बोग ऩूणा जीवन व्मर्तत कयता है। 4. िान्त्त ग्रह जफ कोई ग्रह वगा वविषे कय (होया, दे्रष्काण, नवभाॊि, द्वादिाॊि, त्ररिाॊि आहद) भें िुब स्थान ऩय होता है, तो वह िान्त्त अवस्था भें भॊगरकायी होता है। मह त्स्थती जातक को कामा र्सद्ध दऱ है। जातक धभाात्भा, ववद्वान औय भॊरी फने सकता है। 5. िक्त ग्रह जफ कोई ग्रह वक्री त्स्थती भें होता है, तो वह िक्त कहराता है। अिुब बाव भें हो तो जातक को स्वास्र्थम हार्न व धनहार्न होती है। महद त्स्थती िुब बाव भें हो तो जातक रोकवप्रम, कीर्तावान एवॊ धनवान होता है। 6. ऩीडड़त ग्रह जैसे के ज्मोर्तष के अनिुाय हय यार्ि 30 अॊि की होती है। जफ कोई ग्रह यार्ि के प्रथभ 3 अॊि मा अॊर्तभ 3 अॊि तक अथाात ्0 अॊि से 3 अॊि औय 28 अॊि से 30 अॊि ऩय होता है, तो वह ग्रह ऩीडड़त होता है। एसी त्स्थती भें ग्रह र्नष्पर व प्रबावहीन होता है। जो िरऩुीड़ा, फन्त्ध ु ववमोग राता है। जातक को अत्माधधक घुभने वारा फनाता है।

    7. दीन ग्रह जफ कोई ग्रह िर ु यार्ि भें होता है, तो वह दीन कहराता है। ऐसा ग्रह धनहार्न कयाता है। जातक को ऩाऩ कभा कयने को प्रेरयत कयता है। भान-सम्भान व प्रर्तष्ठा को ठेस ऩहुॊचती है। 8. खर ग्रह जफ कोई ग्रह नीच यार्ि भें होता है, तो वह खर (दषु्ट) कहराता है। मह त्स्थती कष्टकायी होती है। मह त्स्थती रोगों से झगड़ा, भुकदभा, जेर, धनहार्न कयाता है जातक की धचन्त्ताओॊ भें ववृद्ध कयता है औय भानर्सक तनाव राता है। 9. ववकर ग्रह जफ कोई ग्रह जर जाता है अथाात ्अस्त हो जाता है, तो वह ववकर होता है। ऐसी त्स्थर्त ग्रह के सूमा के साथ त्स्थत होने ऩय आती है। सूमा की उष्णता से ग्रह जर जाते हैं। क्रभि: चन्त्द्र 12 अॊि, भॊगर 17 अॊि, फुध 13 अॊि, गुरु 11 अॊि, िुक्र 9 अॊि, िर्न 15 अॊि का अन्त्तय होने ऩय जर जाते हैं। साभान्त्मत: 3 अॊि अन्त्तय होने ऩय ग्रह प्रबावहीन व र्नष्पर हो जाते हैं। व्मत्क्त को आचयणहीन, दरयद्री व घुभक्कड़ फनाते है। 10. बमबीत ग्रह जफ कोई ग्रह तीव्र गर्त से चर यहा हो औय दसूयों स ेआगे र्नकरने की कोर्िि भें हो, तो मह बमबीत त्स्थर्त होती है। मह दषु्ऩरयणाभ राता हैं। मह त्स्थती व्मत्क्त को ऩयात्जत औय फरहीन कयती हैं। ऐसा ग्रह धनहार्न कयाता है औय ऩीड़ा दामक होता है।

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  • 16 21 र 27 र-2018

    द्रोऩदी ने बी ककमा था कयवा चौथ का व्रत ! ऱन य ऱय

    ऩौयार्णक कथा के अनुसाय जफ ऩाॊडव ऩुर अजुान नीरधगयी ऩवात ऩय तऩस्मा कयने गए। तफ ककसी कायणसे अजुान को वहीॊ रूकना ऩड़ा। उस सभम ऩाॊडवों ऩय अत्माधधक सॊकट आ ऩड़ा। तफ धचॊर्तत होकय द्रौऩदी ने बगवान श्रीकृष्ण का ध्मान ककमा। श्रीकृष्ण प्रकट होने ऩय द्रौऩदी न ेऩाॊडवों के कष्टों के र्नवायण का उऩाम ऩूछा।

    तफ कृष्ण ने द्रौऩदी को आववस्त कयते हुए कहा भैं तुम्हायी धचॊता एवॊ सॊकट का कायण जानता हूॊ। तुम्हें इन कष्टों के र्नवायण के र्रए एक उऩाम कयना होगा। िीघ्र ही कार्ताक भाह की कृष्ण चतुथॉ आने वारी है, उस हदन तुभ ऩूणा ववधध-ववधान से इस कयवा चतथुॉ का व्रत यखना। तुभ बगवान र्िव-ऩावाती एवॊ गणेिजी की उऩासना कयना, तुम्हाये साये कष्ट िीघ्र दयू हो जाएॊगे। श्रीकृष्ण से व्रत का ववधध-ववधान जानकय द्रोऩदी ने उसी प्रकाय ही कयवा चौथ का व्रत ककमा। त्जस के परस्वरुऩ िीघ्र ही द्रोऩदी को अजुान के दिान हुए औय द्रोऩदी की सायी धचॊताएॊ दयू हो गईं।

    भाता ऩावाती नें बगवान र्िव से ऩर्त की दीघाामु एवॊ सुख-सॊऩत्त्त की काभना की ववधध ऩूछी तफ र्िवजी ने भाॉ ऩावाती को कयवा चौथ व्रत की कथा सुनाई थी। जो कयवा चौथ व्रत की कथा बगवान श्रीकृष्ण ने दौऩदी को सुनाई थी वह इस प्रकाय हैं...

    कयवा नाभ की एक ऩर्तव्रता धोत्रफन अऩने ऩर्त के साथ तुॊग बद्रा नदी के ककनाये त्स्थत गाॊव भें यहती थी। उसका ऩर्त फूढा औय र्नफार था। एक हदन जफ धोफी नदी के ककनाये कऩड़ े धो यहा था तबी वहाॊ अचानक एक भगयभच्छ आमा, औय धोफी के ऩैय को अऩने दाॊतों भें दफाकय खीॊचने रगा। धोफी मह देख घफयामा औय जफ उसस े कुछ कहते नहीॊ फना तो वह अऩनी ऩत्नी को कयवा..! कयवा..! कहकय ऩुकायने रगा।

    ऩर्त की ऩुकाय सुनकय उसकी ऩत्नी कयवा वहाॊ ऩहुॊची, तो भगयभच्छ उसके ऩर्त को मभरोक ऩहुॊचान े

    ही वारा था। तफ कयवा ने भगय को एक धागे से फाॊध हदमा औय भगयभच्छ को रेकय मभयाज के द्वाय ऩहुॊची। वहाॉ कयवा ने मभयाज से अऩने ऩर्त की यऺा कयने की गुहाय रगाई औय साथ ही भगयभच्छ को उसके इस कामा के र्रए कहठन से कहठन दॊड देने का आग्रह कय फोरी- हे बगवन!् भगयभच्छ ने भेये ऩर्त के ऩैय ऩकड़ र्रए है। आऩ भगयभच्छ को इस अऩयाध का दॊड दें। कयवा की ववनती सुन मभयाज ने कहा अबी भगय की आमु िषे नहीॊ हुई है, भैं उसे अबी मभरोक नहीॊ बेज सकता। इस ऩय कयवा ने मभयाज से कहा महद आऩने भेये ऩर्त को फचाने भें भेयी सहामता नहीॊ कक तो भैं आऩको श्राऩ दे दूॊगी औय नष्ट कय दूॉगी।

    कयवा का साहस देख मभयाज डय गए औय भगय को मभरोक भें बेज हदमा। साथ ही कयवा के ऩर्त को दीघाामु होने का वयदान हदमा। तफ से कार्ताक कृष्ण की चतुथॉ को कयवा चौथ व्रत का प्रचर्रत हैं। मह कयवा चौथ का व्रत आज बी वववाहहत स्रीमाॊ ववधध-ववधान के साथ कयती है, औय बगवान से अऩने ऩर्त की रॊफी उम्र की काभना कयती हैं।

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  • 17 21 र 27 र-2018

    र न र य ऱन य ऱय

    भार्णक्म सूमा का यत्न भार्णक्म समूा ग्रह के िुब परों की

    प्रात्प्त हेतु धायण ककमा जाता हैं। भार्णक्म ववर्बन्त्न बाषाओ भे र्नम्न र्रर्खत नाभो स ेजाना जात है।

    दहन्दी भे :- चतु्न्त्न, भार्णक्म, रार भर्ण, सस्कृि भे :- ऩद्मयाग भर्ण, भार्णक्मभ, सोणभर, कुयववॊद, वसुयत्न, सोगोधक, स्रोण्रत्न, यत्ननामक, रक्ष्भी ऩुष्ऩ, फ़ायसी भे :- माकूत, अयफी भे :- रार फदऩिकर्न रेदटन भे :- रुफी, नसा,

    भार्णक्म भें रार यॊग की आबा होती हैं। भार्णक्म रार यॊग के अरावा अन्त्म यॊग गुराफी, कारा औय नीरे यॊग की आबा वारे बी ऩामे जात ेहैं। भार्णक्म खर्नज यत्नो भें स ेएक यत्न हैं।

    यक्त के सभान रार यॊग की आबा त्रफखेयने वारा भार्णक्म अर्त भूल्मवान एवॊ उत्तभ होता हैं। फाजाय भें फभाा भार्णक्म की भाॊग सफसे अधधक होती हैं। अरग-अरग स्थानों स े प्राप्त भार्णक्म के यॊगों भें र्बन्त्नता होती हैं।

    जानकायो के भत स ेफभाा भें भार्णक्म की खदानें सफसे ऩुयातन हैं। अबी तक प्राप्त भार्णक्म भें सफसे उत्तभ भार्णक्म फभाा से ही प्राप्त हुए हैं। महह कायण हैं की फभाा के भार्णक्म की कीभत औय भाॊग अॊतयात्ष्िम फाजायो भें सफसे अधधक होती है। भार्णक्म के राब: य र रन य न न र र

    न य न ऱ र न न य नर श र द न द र र य - द श

    दऱ य न न

    य य र रन र

    र न न य र रन य न-

    न नर र य र र

    र ऱ न र र फ द न ऱ

    च द श य य द र र , य र ऱ द र र

    य र रन य द द र र

    न न र च र न र एसा भाना जाता हैं की महद ककसी व्मत्क्त न े

    भार्णक्म धायण ककमा हो, तो उस ऩय ववऩत्त्त आन ेऩय, उसका यॊग फदर जाता हैं (पीका हो जाता हैं) अथाात भार्णक्म ववऩत्त्तमों के आने से ऩूवा सॊकेत देता हैं औय सॊकट टर जाने ऩय ऩुन: भार्णक्म की आबा ऩूवावत हो जाती हैं।

    भान्त्मता: जो भार्णक्म सूमा की ककयण ऩड़ने से रार यॊग

    त्रफखेयता है वह सवोत्तभ होता हैं।

  • 18 21 र 27 र-2018

    उच्च कोहट के भार्णक्म की ऩहचान है कक भार्णक्म को दधू भें फाय-फाय डुफोने से दधू भे भार्णक्म की आबा हदखने रगती हैं।

    अॊधेये कभये भें यखने ऩय मह सूमा के सभान प्रकािभान होता हैं।

    भार्णक्म को कभार की करी ऩय यखे तो करी तुयॊत ही र्खर उठती हैं।

    भार्णक्म को महद सफे़द भोर्तमों के फीच यखे तो भोती भार्णक्म के यॊग के हो जाते हैं।

    भार्णक्म औय आध्मात्भ: भार्णक्म ऩहन कय सूमा उऩासना कयने से सूमा ऩूजा

    का पर भें ववृद्ध हो जाती है। यॊग धचककत्सा का भूर आधाय हैं की यॊगों की यत्वभमाॊ

    घनीबूत होती हैं। रृदम औय यत्न: सूमा व्मम का प्रर्तर्नधध है। यत्नों भें वह भार्णक्म का प्रर्तर्नधध है। इसर्रए व्मत्क्त को सूमा को फर देने के र्रए भार्णक्म धायण कयना चाहहए। भार्णक्म रृदम के सबी प्रकाय के कष्टों अथवा योगों को दयू कयता हैं। भार्णक्म की वऩष्टी औय बस्भ दोनों औषधध के रूऩ भें उऩमोग भें आते हैं।

    भार्णक्म के दोष 1. त्जस भार्णक्म भें दो यॊगों आबा हो उस ेधायण कयन े

    से वऩता को कष्ट प्राप्त होता हैं। अत: दो यॊगों स ेमुक्त भार्णक्म धायण नहीॊ कयना चाहहए

    2. त्जस भार्णक्म भें भकड़ी के सभान जारे नजय आत ेहो इस प्रकाय के भार्णक्म को धायण कयने स ेधायणकताा कई प्रकाय के कष्टों से ऩीडड़त हो जाता है

    3. गाम के दधू के सभान यॊग वारे भार्णक्म को धायण कयने से धन का नाि होता हैं औय ह्दम भें उद्धववग्नता यहती है

    4. त्जस भार्णक्म का यॊग धऐुॊ के सभान हो ऐस ेभार्णक्म को धायण कयने से ववर्बन्त्न प्रकाय काष्ट

    औय सॊकटो का साभना कयना ऩड़ता हैं। 5. कारे यॊग का भार्णक्म धन नाि औय अऩमि देने

    वारा होता हैं। 6. त्जस भार्णक्म भें दोष हो ऐस ेभार्णक्म को धायण

    कयने स े ववर्बन्त्न प्रकाय के योग, व्माधध औय आकत्स्भक दघुाटनाओॊ की सम्बावना अधधक यहती हैं।

    अत: भार्णक्म धायण कयने से ऩहरे इसके दोषों को ऩयख रेना चाहहए।

    भार्णक्म के गणु: भार्णक्म यक्तवधाक, वामुनािक औय उदय योग भें

    राबकायी होता हैं। भार्णक्म नेर ज्मोर्त को फढाने वारा हैं तथा अत्ग्न,

    कप, वाम ुतथा वऩत्त दोष का िभन कयता है। भार्णक्म के बस्भ के सेवन से आमु की ववृद्ध होती हैं। भार्णक्म भें वात, व ऩत्त, कप जर्नत योग को िाॊत

    कयने की ित्क्त होती हैं। भार्णक्म ऺम योग, फदन ददा, उदय िूर, चऺु योग,

    कब्ज आहद योग को दयू कयता हैं। भार्णक्म की बस्भ ियीय भें उत्ऩन्त्न होने वारी

    उष्णता औय जरन को दयू कयती हैं। फहृत्सॊहहता के अरावा आमुवेद के प्रर्सद्ध ग्रॊथ बाव प्रकाि, आमुवेद प्रकाि एवॊ यस यत्न सभुच्चम के अनुसाय भार्णक्म कसैरे स्वाद का औय भीठा यस प्रधान

    यत्न हैं। >> क्रभि: अगरे अॊक भें ...Ruby (Old