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Amarchand SinghviInternational School
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E-Learning Programme
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हरिआप हिो जन िी भीि।
द्रोपदी िी लाज िाखी , आप बढायो चीि।
भगत कािणरूप निहरि , धियोआप सिीि।
बूढतो गजिाज िाख्यो , काटी कुञ्जि पीि।
दासी मीिााँ लाल गगिधि , हिो म्हािी भीि।।
हरि - श्री कृष्ण
जन - भक्त
भीि - दुख- ददद
लाज - इज्जत
चीि - साडी , कपडा
निहरि - निगसिंह अवताि
सिीि –शिीि
गजिाज - हागियोिं का िाजा ऐिावत
कुञ्जि - हािी
काटी - मािना
लाल गगिधि - श्री कृष्ण
म्हािी - हमािी
हरिआप हिो जन िी भीि।
द्रोपदी िी लाज िाखी , आपबढायो चीि।
प्रसिंग -: प्रसिंग :- प्रसु्तत पाठ हमािी गहिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पशद ' से गलया गया है। इस पद की
कवगयत्री मीिा है। इसमें कवगयत्री भगवान श्री कृष्ण के भक्त - पे्रम को दशाद िही हैं औि स्वयिं की
िक्षा की गुहाि लगा िही है ।
व्याख्या -: इस पद में कवगयत्री मीिा भगवान श्री कृष्ण के भक्त - पे्रम का वणदन किते हुए कहती हैं गक
आप अपने भक्तोिं के सभी प्रकाि के दुखोिं को हिने वाले हैं अिादत दुखोिं का नाश किने वाले हैं। मीिा
उदाहिण देते हुए कहती हैं गक गजस तिहआपने द्रोपदी की इज्जतको बचाया औि साडी के कपडे को
बढाते चले गए ।
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भगतकािणरूप निहरि , धियोआपसिीि।
बूढतो गजिाज िाख्यो , काटी कुञ्जि पीि।
दासी मीिााँ लाल गगिधि , हिो म्हािी भीि।।
व्याख्या -: कवगयत्री मीिा कहती हैं गक गजस तिहआपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के गलए निगसिंह
का शिीि धािण कि गलयाऔि गजस तिहआपने हागियोिं के िाजा भगवान इिंद्र के वाहन ऐिावत हािी
को मगिमच्छ के चिंगुल से बचाया िा ,हे ! श्री कृष्ण उसी तिह अपनी इस दासी अिादत भक्त के भी सािे
दुुःख हि लो अिादत सभी दुखोिं का नाश कि दो।
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स्यामम्हाने चाकि िाखो जी,
गगिधािी लाला म्हााँने चाकि िाखोजी।
चाकि िहसू्याँ बाग लगासू्याँ गनत उठ दिसण पासू्याँ।
गबन्दिावन िी कुिं ज गली में , गोगवन्द लीला गासू्याँ।
चाकिी में दिसन पासू्याँ, सुमिन पासू्याँ खिची।
भाव भगती जागीिी पासू्याँ , तीनूिं बातााँ सिसी।
मोि मुगट पीताम्बि सौहे , गल वैजन्ती माला।
गबन्दिावन में धेनु चिावे , मोहन मुिली वाला।
ऊाँ चा ऊाँ चा महल बनावाँ गबच गबच िाखूाँ बािी।
सााँवरिया िा दिसण पासू्याँ ,पहि कुसुम्बी साडी।
आधी िात प्रभु दिसण ,दीज्यो जमनाजी िे तीिा।
मीिााँ िा प्रभु गगिधि नागि , गहवडो घणो अधीिा।ASISd{kk 10&ehjk ds in
प्रसिंग -: प्रसु्तत पद हमािी गहिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पशद ' से गलया गया है। इस पद की कवगयत्री मीिा
है। इस पद में कवगयत्री मीिा श्री कृष्ण के प्रगत अपने पे्रम का वणदन कि िही है औि श्री कृष्ण के
दशदन के गलए वह गकतनी व्याकुल है यह दशाद िही है।
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स्यामम्हाने चाकि िाखो जी,
गगिधािी लाला म्हााँने चाकि िाखोजी।
चाकि िहसू्याँ बाग लगासू्याँ गनत उठ दिसण पासू्याँ।
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स्याम - श्री कृष्ण
चाकि - नौकि
िहसू्याँ - िह कि
गनत - हमेशा
दिसण – दशदन होना
व्याख्या -: इस पद में कवगयत्री मीिा श्री कृष्ण के प्रगत अपनी भक्तक्तभावना
को उजागि किते हुए कहती हैं गक हे !श्री कृष्ण मुझे अपना नौकि बना कि
िखो अिादत मीिा गकसी भी तिह श्री कृष्ण के नजदीक िहना चाहती है गिि
चाहे नौकि बन कि ही क्ोिं न िहना पडे। मीिा कहती हैं गक नौकि बनकि
मैं बागीचा yxkÅ¡xh तागक सुबह उठकि िोजआपके दशदन पा सकूाँ ।
गबन्दिावन िी कुुं ज गली में , गोगवन्दलीला गासू्याँ।
चाकिी में दिसन पासू्याँ, सुमिन पासू्याँ खिची।
भाव भगती जागीिी पासू्याँ , तीनूुं बातााँ सिसी।
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व्याख्या -: मीिा कहती हैं गक वृन्दावन की सिंकिी गगलयोिं में मैं अपने स्वामी की लीलाओिं का बखान
कराँ गी। मीिा का मानना है गक नौकि बनकि उन्हें तीन िायदे होिंगे पहला - उन्हें हमेशा कृष्ण के दशदन
प्राप्त होिंगे , दूसिा- उन्हें अपने गप्रय की याद नही िं सताएगी औि तीसिा- उनकी भाव भक्तक्तका साम्राज्य
बढता ही जायेगा।
मोि मुगट पीताम्बि सौहे , गल वैजन्ती माला।
गबन्दिावन में धेनु चिावे , मोहन मुिली वाला।
ऊाँ चा ऊाँ चा महल बनावाँ गबच गबच िाखूाँ बािी।
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व्याख्या -: मीिा श्री कृष्ण केरूपका बखान किते हुए कहती हैं गक उन्होिंने पीले वस्त्र धािण गकये हुए
हैं ,सि पि मोि के पिंखोिं का मुकुट गविाजमान है औि गले में वैजन्ती िूल की माला को धािण गकया हुआ
है। वृन्दावन में गाय चिाते हुए जब वह मोहन मुिली बजाता है तो सबका मन मोह लेता है। मीिा कहती है
गक मैं बगीचोिं के chp ही ऊाँ चे ऊाँ चे महल बनाÅ¡xhऔि chp&chp esa f[kM-fd;kWa Hkh बनाÅ¡xh ।
सााँवरिया िा दिसण पासू्याँ ,पहि कुसुम्बी साडी।
आधी िात प्रभु दिसण, दीज्यो जमनाजी िे तीिा।
मीिााँ िा प्रभु गगिधि नागि , गहवडो घणो अधीिा।
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व्याख्या -: मीिा कहती है गक मैं बगीचोिं के बhच ही ऊाँ चे ऊाँ चे महल बनाÅ¡xhऔि कुसुम्बी साडी पहन
कि अपने गप्रय के दशदन कराँ गी अिादत श्री कृष्ण के दशदन के गलए साज शृ्रिंगाि कराँ गी। मीिा कहती हैं गक
हे ! मेिे प्रभु गगिधिस्वामी मेिा मनआपके दशदन के गलए इतना बेचैन है गक वह सुबह का इन्तजाि नही िं
कि सकता। मीिा चाहती है गक श्री कृष्णआधी िात को ही जमुना नदी के गकनािे उसे दशदन दे दें।
Note: This presentation is a part of the E-Learning Program of Amarchand
Singhvi International School and is created only for educational purpose.
Compilation & presentation : Ms. Anjali Singh
Web support & management : Mr. Deepak Chellani
Technical support : Mr. Shivam Gundecha
E-learning Programme Co-ordination
Mr. Prashant Chaturvedi
Produced by
Mr. Mridul Varma (Principal)
Amarchand Singhvi International School
Parekh Parisar, Ward 7A
Gandhidham – Kutch
Gujarat 370201 India