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लहासा कीओर
नपाल-तिबबि मारग का पररचय -नपाल स तिबबिकीओर जान वाला मारग पराचीन समय स ही महतवपरग रहा ह |फरी-कतलडपोड मारगखलन स पहल नपालऔर भारि क साथ तिबबि म वयापार का यही मारग था |इसकासतनककायो म भी परयोर होिा था |इस मारग पर अनक परान तकलऔर चौतकयाासथथि ह |कभी इनम चीनी सतनक रहा करि थ | आज इनम स कछ तकलोो मतिबबिी तकसानोो की बसियाा ह |
'लहासा कीओर' पाठ म राहलसाोकतयायन दवारा सन 1930 ई. म की रईतिबबि यातरा का वरगन ह |
तिबबिी समाज-
तिबबिी समाज खला हआ ह |यहाा जाति-पााति,छआ-छिऔर परदानही ो ह |अपररतचि लोर भी घरोो म जाकर अपन तलए चाय बनवासकि ह या सवयो बनाकर ला सकि ह | यहाा चाय-मकखन,नमकऔरसोडा तमलाकर ियार की जािी ह और 'खोटी' नामक टोोटीदार बरिनम भरकर दी जािी ह |
ठहरन का परबोध -उजाड चीनी तकल स चलि समय लखक स राहदारी माारनएकवयसिआया |लखक न अपनी और अपन साथी साथीसमति की तचट उस सौोप दी ो| तभखमोरो जसी वश-भषा होनपर भी समति की जान-पहचान क कारर ठहरन क तलएएकअचछी जरह तमल रई |
नरदर तसोह,तशकषकप. ऊ. क. तव राविभाटा-2