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हनǕमȡन जयȲǓि ǒिशȯष NON PROFIT PUBLICATION . गǕǽि कȡयȡालय ȡरȡ िǕि मȡǓिक ई-पǒिकȡ अȰल- 2012 Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com

हनुमान जयंति विशेषgk.yolasite.com/resources/GURUTVA JYOTISH APR-2012.pdf · अनुक्रम हनुमान जयंति विशेष

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  • हनुमान जयंति विशेष

    NON PROFIT PUBLICATION .

    गुरुत्ि कायाालय द्वारा प्रस्िुि मातिक ई-पविका अप्रैल- 2012 Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com

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  • अनुक्रम हनमुान जयतंि विशेष

    हनुमान िालीिा और बजरंग बाण का िमत्कार 6 हनुमान जी को तिंदरू क्यं अत्यातधक वप्रय हं? 20

    िरल उपायं िे कामना पूतिा 7 मंिजाप िे शास्त्रज्ञान 23

    पंिमुखी हनुमान का पूजन उत्तम फलदायी हं 8 हनुमान मंि िे भय तनिारण 42

    िरल वितध-विधान िे हनुमानजी की पूजा 9 जब हनुमान जी ने िोिा़ शतनदेि का घमंि 43

    हनुमानजी के पूजन िे कायातिवद्ध 13 ििा तिवद्धदायक हनुमान मडि 44

    हनुमान बाहुक क पाठ रोग ि कष्ट दरू करिा हं 15 हनुमान आराधना के प्रमुख तनयम 46

    मंि एिं स्िोि विशेष हनुमान िालीिा 11 श्री आज्ज्नेय अष्टोत्तरशि नामाितलः 38

    बजरंग बाण 12 मडदात्मकं मारुतिस्िोिम ् 39

    जब हनुमानजी ने िूया को फल िमझा! 21 श्री हनुमि ्स्ििन 39

    नटखट हनुमान बाललीला 22 िंकट मोिन हनुमानाष्टक 40

    श्री एक मुखी हनुमि ्किि 24 हनुमत्पञ्रि ् न स्िोिम ् 40

    श्री पच्िमुखी हनुमत्कििम ् 29 मारुतिस्िोिम ् 41

    श्री िप्तमुखी हनुमि ्कििम ् 31 श्रीहनुमडनमस्कारः 41

    एकादशमुखी हनुमान किि 34 हनुमान आरिी 42

    लाङ्गूलास्त्र शिजु्जय हनुमि ्स्िोि 35 स्ियंप्रभा ने की रामदिू हनुमान की िहायिा? 48

    हमारे उत्पाद दस्िणाितिा शंख 14 श्री हनुमान यंि 43 मंि तिद्ध रूद्राि 51 पढा़ई िंबंतधि िमस्या 67 शतन पीड़ा तनिारक यंि 21 कनकधारा यंि 47 निरत्न जफड़ि श्री यंि 52 ििा रोगनाशक यंि/ 72 भाग्य लक्ष्मी फदब्बी 23 स्फफटक गणेश 48 ििा काया तिवद्ध किि 53 मंि तिद्ध किि 74 मंगल यंि िे ऋणमुवि 27 मंि तिद्ध दैिी यंि िूति 49 जैन धमाके वितशष्ट यंि 54 YANTRA 75 मंितिद्ध स्फफटक श्रीयंि 32 मंितिद्ध लक्ष्मी यंििूति 49 अमोद्य महामतृ्युजंय किि 56 GEMS STONE 77 मंि तिद्ध मारुति यंि 37 रातश रत्न 50 राशी रत्न एिं उपरत्न 56 Book Consultation 78 द्वादश महा यंि 45 मंि तिद्ध दलुाभ िामग्री 51 शादी िंबंतधि िमस्या 22 घंटाकणा महािीर ििा तिवद्ध महायंि 55 मंि तिद्ध िामग्री- 65, 66, 67

    स्थायी और अडय लेख िंपादकीय 4 दैतनक शुभ एि ंअशुभ िमय ज्ञान िातलका 68 अप्रैल मातिक रातश फल 57 फदन-राि के िौघफिये 69 अप्रैल 2012 मातिक पंिांग 61 फदन-राि फक होरा - िूयोदय िे िूयाास्ि िक 70 अप्रैल 2012 मातिक व्रि-पिा-त्यौहार 63 ग्रह िलन अप्रैल-2012 71 अप्रैल 2012 -विशेष योग 68 हमारा उदेश्य 81

  • GURUTVA KARYALAY

    िंपादकीय वप्रय आस्त्मय

    बंध/ु बफहन जय गुरुदेि

    इि कलयुग मं ििाातधक देििा के रुप मं श्री रामभि हनुमानजी की ही पूजा की जािी हं क्यंफक हनुमानजी

    को कलयुग का जीिंि अथााि िािाि देििा माना गया हं। कतलयुग मं शीघ्र प्रिडन होने िाले एिं प्रभािशाली देििा मं हनुमान जी अपना विशेष स्थान रखिे है।

    हनुमान जी के जडम के विषय मं पुराणं एिं शास्त्रो मं मिभेद हं,

    स्कंद पुराण के अनुिार हनुमानजी का जडम ििै माि की पूस्णामा के फदन हुआ था। इि तििा निियुि पूस्णामा के फदन िूया देि अपनी उच्ि राशी मेष मं स्स्थि थे अथााि मेष िंक्रांति मं उनका जडम हुिा हं।

    आनंद रामायण मे उल्लेख फकया गया हं की हनुमान जी का जडम ििै शुक्ल एकादशी को अथााि श्रीराम जी के जडम के दो फदन पश्चाि मघा निि मं हुआ हं।

    िायु पुराण मे उल्लेख फकया गया हं की हनुमान जी का जडम अस्िन कृष्ण ििुदाशी को मंगलिार के फदन मेष लग्न ि स्िाति निि मं हुआ हं।

    इि प्रकार वितभडन पुराणं के मिं मं तभडनिा हं, लेफकन विद्वानो का कथन हं की हनुमानजी का जीिन ििृांि एिं वितभडन कथानुिार वििार करने िे ििै शुक्ल पूस्णामा को हनुमान जी का जडम होना ज्यादा उतिि प्रिीि होिा है, क्यंफक आस्िन माि के करीब के िमय मं के दौना िूया देि अपनी नीि रातश िूया मं स्स्थि होिे हं और हनुमानजी की कंुिली मं िूया नीि का हो नहीं िकिा! यफद िूया नीि का होिा िो, हनुमानजी इिने शवि िंपडन एिं प्रभािशाली देििा नहीं बन पािे। श्री हनुमान जी इिने प्रिापी एिं बल-बुवद्ध िंपडन हं, िो उनकी कंुिली मं िूया तनस्श्चि रुप िे उच्ि का होना िाफहए। उच्ि का िूया ही श्री हनुमानजी के िररि एिं काया शैली िे उतिि रुप िे मेल खािा हं।

    अडय एक मि िे भगिान श्रीराम के गभा प्रिेश के िमय ही श्री हनुमान जी का भी गभा प्रिेश हुआ था। इितलए ििै शुक्ला निमी के आि पाि के िमय मं ही हनुमान जी का जडम होना ज्यादा उपयुि लगिा है।

    इि तलये प्रतििषा ििै माि की पूस्णामा का पिा हनुमान जयंिी के रूप मं मनाया जािा है।

    हनुमान के वपिा िुमेरू पिाि के राजा केिरी थे िथा मािा अजंना थी। अप्िरा पुंस्जकस्थली (अजंनी नाम िे प्रतिद्ध) केिरी नामक िानर की पत्नी थी। िह अत्यंि िुंदरी थी िथा आभूषणं िे िुिस्ज्जि होकर एक पिाि तशखर पर खड़ी थी। उनके िंदया पर मुग्ध होकर िाय ुदेि ने उनका आतलंगन फकया। व्रिधाररणी अजंनी बहुि घबरा गयी फकंिु िायु देि के िरदान िे उिकी कोख िे हनुमान ने जडम तलया

  • हनुमान जी भगिान के परम भि हं। रामायण मं िबिे हनुमान जी की भूतमका महत्िपूणा व्यवियं मं िे एक हं। शास्त्रोि मि िे भगिान हनुमान जी भगिान तशिजी के 11िं रुद्र क अििार, हनुमान जी िबिे बलिान और बुवद्धमान माने जािे हं।

    हनुमान जी को बजरंगबली के रूप मं जाना जािा है क्यंफक इनका शरीर एक िज्र की िरह था। हनुमान पिन-पुि के रूप मं भीजाने जािे हं, क्योकी िायु देि ने हनुमान जी को पालने मे महत्िपूणा भूतमका तनभाई थी। िाल्मीफक रामायण मं हनुमान जी को एक िानर िीर बिाया गया हं। पौराणीक ग्रंथो मं उल्लेख हं की एक बार इडद्र के िज्र िे हनुमानजी की ठुड्िी (िसं्कृि मे हनु) टूट गई थी। इितलये उनको हनुमान का नाम फदया गया। इिके अलािा ये अनेक नामं िे प्रतिद है जैिे बजरंग बली, रामभि, मारुति, मारुि नंदन, अजंतन िुि, पुि िायु, पिनपुि, िंकटमोिन, केिरीनडदन, महािीर, कपीश, बालाजी महाराज आफद अनेक नामो िे जाना जािा हं।

    िैिे िो हनुमानजी की पजूा हेिु अनेको वितध-विधान प्रिलन मं हं लेफकन िाधारण व्यवि जो िंपूणा वितध-विधान िे हनुमानजी का पूजन नहीं कर िकिे िह व्यवि यफद हनुमान जी के पूजन का िरल वितध-विधान ज्ञाि करले िो िहँ तनस्श्चि रुप िे पूणा फल प्राप्त कर िकिे हं। इिी उदेश्य िे इि अकं मं पाठको के ज्ञान िवृद्ध के उदेश्य िे हनुमान जी के पूजन की अति िरल शीघ्र फलप्रद वितध, मंि, स्िोि इत्याफद िे आपको पररतिि कराने का प्रयाि फकया हं। जो लोग िरल वितध िे मंि जप पूजन इत्याफद करने मं भी अिमथा हं िहँ लोग श्री हनुमान जी के मंि-स्िोि इत्याफद का श्रिण कर के भी पूणा श्रद्धा एिं वििाि रख कर तनस्श्चि ही लाभ प्राप्त कर िकिे हं, यहँ अनुभूि उपाय हं जो तनस्श्चि फल प्रदान करने मं िमथा हं इि मं जरा भी िंिय नहीं हं।

    आजके आधतुनक युग मं हर व्यवि अपने जीिन मे िभी भौतिक िुख िाधनो की प्रातप्त के तलये भौतिकिा की दौि मे भागिे हुए फकिी न फकिी िमस्या िे ग्रस्ि है। एिं व्यवि उि िमस्या िे ग्रस्ि होकर जीिन मं हिाशा और तनराशा मं बंध जािा है। व्यवि उि िमस्या िे अति िरलिा एिं िहजिा िे मुवि िो िाहिा है पर यह िब केिे होगा? उि की उतिि जानकारी के अभाि मं मुि हो नहीं पािे। और उिे अपने जीिन मं आगे गतिशील होने के तलए मागा प्राप्त नहीं होिा। एिे मे िभी प्रकार के दखु एिं कष्टं को दरू करने के तलये अिकु और उत्तम उपाय है हनुमान िालीिा और बजरंग बाण का पाठ…

    हनुमान िालीिा और बजरंग बाण के पाठ के माध्यम िे िाधारण व्यवि भी वबना फकिी विशेष पूजा अिाना िे अपनी दैतनक फदनियाा िे थोिा िा िमय तनकाल ले िो उिकी िमस्ि परेशानी िे मुवि तमल जािी है। “यह नािो िुतन िुनाइ बाि है ना फकिी फकिाब मे तलखी बाि है, यह स्ियं हमारा तनजी एिं हमारे िाथ जुिे हजारो लोगो के अनुभि है।”

    आप िभी के मागादशान या ज्ञानिधान के तलए हनुमान िालीिा और बजरंग बाण के तनयतमि पाठ िे िे िंबंतधि उपयोगी जानकारी भी इि अकं मं िंकतलि की गई हं। िाधक एिं विद्वान पाठको िे अनुरोध हं, यफद दशााये गए मंि, स्िोि इत्यादी के िंकलन, प्रमाण पढ़ने, िंपादन मं, फिजाईन मं, टाईपींग मं, वपं्रफटंग मं, प्रकाशन मं कोई िफुट रह गई हो, िो उिे स्ियं िुधार लं या फकिी योग्य गुरु या विद्वान िे िलाह विमशा कर ले..

    तिंिन जोशी

  • 6 अपे्रल 2012

    हनुमान िालीिा और बजरंग बाण का िमत्कार तििंन जोशी

    आज हर व्यवि अपने जीिन मे िभी भौतिक िुख िाधनो की प्रातप्त के तलये भौतिकिा की दौि मे भागिे हुए फकिी न फकिी िमस्या िे ग्रस्ि है। एिं व्यवि उि िमस्या िे ग्रस्ि होकर जीिन मं हिाशा और तनराशा मं बंध जािा है।

    व्यवि उि िमस्या िे अति िरलिा एिं िहजिा िे मुवि िो िाहिा है पर यह िब केिे होगा? उि की उतिि जानकारी के अभाि मं मुि हो नही ं पािे। और उिे अपने जीिन मं आगे गतिशील होने के तलए मागा प्राप्त नहीं होिा। एिे मे िभी प्रकार के दखु एिं कष्टं को दरू करने के तलये अिकु और उत्तम उपाय है हनुमान िालीिा और बजरंग बाण का पाठ…

    हनमुान िालीिा और बजरंग बाण ही क्य ु? क्योफक ििामान युग मं श्री हनुमानजी तशिजी के

    एक एिे अििार है जो अति शीघ्र प्रिडन होिे है जो अपने भिो के िमस्ि दखुो को हरने मे िमथा है। श्री हनुमानजी का नाम स्मरण करने माि िे ही भिो के िारे िंकट दरू हो जािे हं। क्योफक इनकी पूजा-अिाना अति िरल है, इिी कारण श्री हनुमानजी जन िाधारण मे अत्यंि लोकवप्रय है। इनके मंफदर देश-विदेश ििि स्स्थि हं। अिः भिं को पहंुिने मं अत्यातधक कफठनाई भी नहीं आिी है। हनुमानजी को प्रिडन करना अति िरल है

    हनुमान िालीिा और बजरंग बाण के पाठ के माध्यम िे िाधारण व्यवि भी वबना फकिी विशेष पूजा अिाना िे अपनी दैतनक फदनियाा िे थोिा िा िमय तनकाल ले िो उिकी िमस्ि परेशानी िे मुवि तमल जािी है।

    “यह नािो िुतन िुनाइ बाि है ना फकिी फकिाब मे तलखी बाि है, यह स्ियं हमारा तनजी एिं हमारे िाथ जुिे लोगो के अनुभि है।”

    उपयोगी जानकारी हनुमान िालीिा और बजरंग बाण के तनयतमि पाठ िे हनुमान जी की कृपा प्राप्त करना िाहिे हं उनके तलए प्रस्िुि हं कुछ उपयोगी जानकारी ..

    तनयतमि रोज िुभह स्नान आफदिे तनििृ होकर स्िच्छ कपिे पहन कर ही पाठ का प्रारम्भ करे।

    तनयतमि पाठ मं शुद्धिा एि ंपविििा अतनिाया है। हनुमान िालीिा और बजरंग बाण के पाठ करिे िमय

    धपू-दीप अिश्य लगाये इस्िे िमत्कारी एिं शीघ्र प्रभाि प्राप्त होिा है।

    दीप िंभि न होिो केिल ३ अगरबत्ती जलाकर ही पाठ करे।

    कुछ विद्वानो के मि िे वबना धपू िे हनुमान िालीिा और बजरंग बाण के पाठ प्रभाि फहन होिा है।

    यफद िंभि हो िो प्रिाद केिल शुद्ध घी का िढाए अडय था न िढाए

    जहा िक िंभि हो हनुमान जी का तिर्ा तिि (फोटो) रखे। यफद घर मे अलग िे पूजा घर की व्यिस्था हो

    िो िास्िुशास्त्र के फहिाब िे मूतिा रखना शुभ होगा। नही िो हनुमान जी का तिर्ा तिि (फोटो) रखे।

    यफद मूतिा हो िो ज्यद बिी न हो एि ंतमट्टी फक बनी नही रखे।

    मूतिा रखना िाहे िो बेहिर है तिर्ा फकिी धािु या पत्थर की बनी मूतिा रखे।

    http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post.htmlhttp://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post.htmlhttp://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post.htmlhttp://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post.htmlhttp://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post.html

  • 7 अपे्रल 2012

    हनुमान जी का फोटो/ मूतिा पर िुखा तिंदरू लगाना िाफहए।

    तनयतमि पाठ पूणा आस्था, श्रद्धा और िेिा भाि िे की जानी िाफहए। उिमे फकिी भी िरह की िंका या िंदेह न रखे।

    तिर्ा देि शवि की आजमाइि के तलये यह पाठ न करे। या फकिी को हातन, नुक्िान या कष्ट देने के उदेश्य िे कोइ

    पूजा पाठ नकरे। एिा करने पर देि शवि या इिरीय शवि बुरा प्रभाि

    िालिी है या अपना कोइ प्रभाग नफह फदखािी! एिा हमने प्रत्यि देखा है।

    एिा प्रयोग करने िालो िे हमार विनम्र अनुरोध है कृप्या यह पाठ नकरे।

    िमस्ि देि शवि या इिरीय शवि का प्रयोग केिल शुभ काया उदेश्य की पूतिा के तलये या जन कल्याण हेिु करे।

    ज्यादािर देखा गया है की १ िे अतधक बार पाठ करने के उदेश्य िे िमय के अभाि मे जल्द िे जल्द पाठ कने मे लोग गलि उच्िारण करिे है। जो अन उतिि है।

    िमय के अभाि हो िो ज्यादा पाठ करने फक अपेिा एक ही पठ करे पर पूणा तनष्ठा और श्रद्धा िे करे।

    पाठ िे ग्रहं का अशुभत्ि पूणा रूप िे शांि हो जािा है। यफद जीिन मे परेशानीयां और शि ु घेरे हुए है एि ंआगे

    कोइ रास्िा या उपाय नहीं िुझ रहा िो िरे नही तनयतमि पाठ करे आपके िारे दखु-परेशानीयां दरू होजायेगी अपनी आस्था एिं वििाि बनाये रखे।

    िरल उपायं िे कामना पूतिा मनोकामना पतूिा के फकिी भी मंगलिार या शभुफदन का ियन कर हनमुानजी को प्रतिफदन पाँि

    लाल फूल अवपाि कर मनोकामना की प्राथाना करं। यफद प्रतिफदन िंभि न हो िो प्रत्यके मंगलिार को यह प्रयोग करं।

    कोटा किहरी अथााि मकुदमं मं विजय प्रातप्त के तलए मंगल िार के फदन हनमुानजी तिि या प्रतिमा के िमीप श्री हनमुा यंि को स्थावपि कर उिके िामन े बजरंग बाण के 51 पाठ करं।

    यफद धन स्स्थर नहीं रहिा हो, िो हनमुानजी के मंफदर मं िीन मंगलिार िक 7 बिाशे, 1 जनेऊ, 1 पान अवपाि करं बरकि बढने लगेगी।

    यफद दिा आफद िे रोग शांि न हो रहा हो िब शतनिार को ियूाास्ि के िमय हनमुानजी के मंफदर जाकर हनमुान जी को िाष्टांग दण्ििि ्प्रणाम करं उनके िरणं का तिंदरू घर ले आयं। घर लाकर इि मंि िे उि तिडदरू को अतभमंविि करं-

    “मनोजि ंमारुििुल्यिगंे, स्जिेस्डद्रयं बवुद्धमिां िररषं्ठ। िािात्मजं िानरयथूमखु्यं श्रीरामदिंू शरणं प्रपदे्य।।”

    अतभमंविि तिडदरू का रोगी के मस्िक तिलक लगा दं, रोगी की हालिम शीघ्र िधुार होन ेलगेगा। शतन-िाढे़िािी के शांति के तलए श्री हनमुान की पजूा-अिाना िथा िेल यिु तिंदरू अपाण कर

    भविपिूाक शतनिार का व्रि करना िाफहए।

    http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post.html

  • 8 अपे्रल 2012

    पंिमुखी हनुमान का पूजन उत्तम फलदायी हं तििंन जोशी

    शास्त्रो विधान िे हनमुानजी का पूजन और िाधना वितभडन रुप िे फकये जा िकिे हं।

    हनुमानजी का एकमुखी, पंिमुखीऔर एकादश मुखीस्िरूप के िाथ हनुमानजी का बाल हनमुान, भि हनुमान, िीर हनुमान, दाि हनुमान, योगी हनुमान आफद प्रतिद्ध है। फकंि ुशास्त्रं मं श्री हनुमान के ऐिे िमत्काररक स्िरूप और िररि की भवि का महत्ि बिाया गया है, स्जििे भि को बेजोड़ शवियां प्राप्त होिी है। श्री हनुमान का यह रूप है - पंिमुखी हनुमान।

    माडयिा के अनुशार पंिमुखीहनुमान का अििार भिं का कल्याण करने के तलए हुिा हं। हनुमान के पांि मुख क्रमश:पूिा, पस्श्चम, उत्तर, दस्िण और ऊ धध्ि फदशा मं प्रतिवष्ठि हं।

    पंिमुखीहनुमानजी का अििार मागाशीषा कृष्णाष्टमी को माना जािा हं। रुद्र के अििार हनुमान ऊजाा के प्रिीक माने जािे हं। इिकी आराधना िे बल, कीतिा, आरोग्य और तनभीकिा बढिी है।

    रामायण के अनुिार श्री हनुमान का विराट स्िरूप पांि मुख पांि फदशाओं मं हं। हर रूप एक मुख िाला, विनेिधारी यातन िीन आंखं और दो भुजाओं िाला है। यह पांि मुख नरतिंह, गरुि, अि, िानर और िराह रूप है। हनुमान के पांि मुख क्रमश:पूिा, पस्श्चम, उत्तर, दस्िण और ऊ धध्ि फदशा मं प्रतिवष्ठि माने गएं हं।

    पंिमुख हनुमान के पूिा की ओर का मुख िानर का हं। स्जिकी प्रभा करोिं िूयो के िेज िमान हं। पूिा मुख िाले हनुमान का पजून करने िे िमस्ि शिओुं का नाश हो जािा है।

    पस्श्चम फदशा िाला मुख गरुि का हं। जो भविप्रद, िंकट, विघ्न-बाधा तनिारक माने जािे हं। गरुि की िरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जािे हं।

    हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है। इनकी आराधना करने िे अपार धन-िम्पवत्त,ऐिया, यश, फदधाायु प्रदान करने िाल ि उत्तम स्िास््य देने मं िमथा हं। हनुमानजी का दस्िणमुखी स्िरूप भगिान नतृिंह का है। जो भिं के भय, तििंा, परेशानी को दरू करिा हं।

    श्री हनुमान का ऊ धध्िमुख घोिे के िमान हं। हनुमानजी का यह स्िरुप ब्रह्मा जी की प्राथाना पर प्रकट हुआ था। माडयिा है फक हयग्रीिदैत्य का िंहार करने के तलए िे अििररि हुए। कष्ट मं पिे भिं को िे शरण देिे हं। ऐिे पांि मुंह िाले रुद्र कहलाने िाले हनुमान बिे कृपालु और दयालु हं। हनुमिमहाकाव्य मं पंिमुखीहनुमान के बारे मं एक कथा हं। एक बार पांि मुंह िाला एक भयानक रािि प्रकट हुआ। उिने िपस्या करके ब्रह्माजीिे िरदान पाया फक मेरे रूप जैिा ही कोई व्यवि मुझे मार िके। ऐिा िरदान प्राप्त करके िह िमग्र लोक मं भयंकर उत्पाि मिाने लगा। िभी देििाओं ने भगिान िे इि कष्ट िे छुटकारा तमलने की प्राथाना की। िब प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने िानर, नरतिंह, गरुि, अि और शूकर का पंिमुख स्िरूप धारण फकया। इि तलये एिी माडयिा है फक पंिमुखीहनुमान की पूजा-अिाना िे िभी देििाओं की उपािना के िमान फल तमलिा है। हनुमान के पांिं मुखं मं िीन-िीन िुंदर आंखं आध्यास्त्मक, आतधदैविक िथा आतधभौतिक िीनं िापं को छुिाने िाली हं। ये मनुष्य के िभी विकारं को दरू करने िाले माने जािे हं। भि को शिओुं का नाश करने िाले हनुमानजी का हमेशा स्मरण करना िाफहए। विद्वानो के मि िे पंिमुखी हनुमानजी की उपािना िे जाने-अनजाने फकए गए िभी बुरे कमा एिं तििंन के दोषं िे मुवि प्रदान करने िाला हं। पािं मुख िाले हनुमानजी की प्रतिमा धातमाक और िंि शास्त्रं मं भी बहुि ही िमत्काररक फलदायी मानी गई है।

  • 9 अपे्रल 2012

    िरल वितध-विधान िे हनुमानजी की पूजा तििंन जोशी

    इि कलयुग मं ििाातधक देििा के रुप मं श्री रामभि हनुमानजी की ही पूजा की जािी हं क्यंफक हनमुानजी को कलयुग का जीिंि अथााि िािाि देििा माना गया हं। धमा शास्त्रं के अनुिार हनुमानजी का जडम ििै माि की पूस्णामा के फदन हुआ था। इि तलये प्रतििषा ििै माि की पूस्णामा का पिा हनुमान जयंिी के रूप मं मनाया जािा है। िषा 2012 मं हनुमान जयंिी 6 अप्रैल, शुक्रिार को हं।

    िैिे िो हनुमानजी की पूजा हेिु अनेको वितध-विधान प्रिलन मं हं पर यहा िाधारण व्यवि जो िंपूणा वितध-विधान िे हनुमानजी का पूजन नहीं कर िकिे िह व्यवि यफद इि वितध-विधान िे पूजन करे िो उडहं भी पूणा फल प्राप्त हो िकिा हं।

    श्रीहनमुान पजून वितध

    हनुमानजी का पूजन करिे िमय िबिे पहले ऊन के आिन पर पूिा फदशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। हनुमानजी की छोटी प्रतिमा अथिा तिि स्थावपि करं।

    इिके पश्चाि हाथ मं अिि (अथााि वबना टूटे िािल) एिं फूल लेकर इि मंि िे हनुमानजी का

    ध्यान:

    अिुतलिबलधामम ्हेमशैलाभदेहम ्दनुजिनकृशानुम ्ज्ञातननामग्रगण्यम।् िकलगुणतनधानम ्िानराणामधीशम ्रघुपतिवप्रयभिम ्िािजािम ्नमातम॥

    ॐ हनुमिे नम: ध्यानाथ ेपुष्पास्ण िमापयातम॥

    इिके पश्चयाि िािल और फूल हनुमानजी को अवपाि कर दं।

    आिाह्न: हाथ मं फूल लेकर इि मंि का उच्िारण करिे हुए श्री हनुमानजी का आिाह्न करं।

    उद्यत्कोट्यका िंकाशम ्जगत्प्रिोभकारकम।् श्रीरामस्ड्घ्रध्यानतनष्ठम ्िुग्रीिप्रमुखातिािम॥् विडनाियडिम ्नादेन राििान ्मारुतिम ्भजेि॥्

    ॐ हनुमिे नम: आिाहनाथ ेपुष्पास्ण िमपायातम॥ इिके पश्चयाि फूलं को हनुमानजी को अवपाि कर दं।

    आिन: इि मंि िे हनुमानजी का आिन अवपाि करं। आिन हेि ुकमल अथिा गुलाब का फूल अवपाि करं।

    िप्तकांिनिणााभम ्मुिामस्णविरास्जिम।् अमलम ्कमलम ्फदव्यमािनम ्प्रतिगहृ्यिाम॥्

    आिमनी: इिके पश्चयाि इन मंिं का उच्िारण करिे हुए हनुमानजी के िम्मुख भूतम पर अथिा फकिी बिान मं िीन बार जल छोड़ं।

    ॐ हनुमिे नम:, पाद्यम ्िमपायातम॥ अध्र्यम ्िमपायातम। आिमनीयम ्िमपायातम॥

    स्नान: इिके पश्चयाि हनुमानजी की मूतिा को गंगाजल अथिा शुद्ध जल िे स्नान करिाएं ित्पश्चाि पंिामिृ (घी, शहद,

  • 10 अपे्रल 2012

    शक्कर, दधू ि दही ) िे स्नान करिाएं। पुन: एक बार शुद्ध जल िे स्नान करिाएं।

    िस्त्र: इिके पश्चयाि अब इि मंि िे हनुमानजी को िस्त्र अवपाि करं ि िस्त्र के तनतमत्त मौली भी िढ़ाएं-

    शीििािोष्णिंिाणं लज्जाया रिणम ्परम।् देहालकरणम ्िस्त्रमि: शांति प्रयच्छ मे॥

    ॐ हनुमिे नम:, िस्त्रोपिस्त्रं िमपायातम॥

    पुष्प: इिके पश्चयाि हनुमानजी को अष्ट गंध, तिंदरू, कंुकुम, िािल, फूल ि हार अवपाि करं।

    धपु-फदप: इिके पश्चयाि इि मंि के िाथ हनुमानजी को धपू-दीप फदखाएं- िाज्यम ्ि ितिािंयुिम ्िफह्नना योस्जिम ्मया। दीपम ्गहृाण देिेश िलैोक्यतितमरापहम॥्

    भक्त्या दीपम ्प्रयच्छातम देिाय परमात्मने। िाफह माम ्तनरयाद् घोराद् दीपज्योतिनामोस्िु िे॥ ॐ हनुमिे नम:, दीपं दशायातम॥

    नैिेद्य (प्रिाद): इिके पश्चयाि केले के पते्त पर या फकिी कटोरी मं पान के पते्त पर प्रिाद रखं और हनुमानजी को अवपाि कर दं ित्पश्चाि ऋिुफल इत्याफद अवपाि करं। (प्रिाद मं िरूमा, बुंदी अथिा बेिन के लििू या गुड़ िढ़ाना उत्तम रहिा है।) इिके पश्चयाि मुखशुवद्ध हेिु लंग-इलाइिीयुि पान िढ़ाएं।

    दस्िणा: पूजा का पूणा फल प्राप्त करने के तलए इि मंि को बोलिे हुए हनुमानजी को दस्िणा अवपाि करं-

    ॐ फहरण्यगभागभास्थम ्देिबीजम ्विभाििं:। अनडिपुण्यफलदमि: शांति प्रयच्छ मे॥

    ॐ हनुमिे नम:, पूजा िाफल्याथ ं द्रव्य दस्िणां िमपायातम॥

    आरति: इिके बाद एक थाली मं कपूार एिं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरिी करं।

    इि प्रकार के पूजन करने िे भी हनुमानजी अति प्रिडन होिे हं। इि वितध-विधान िे फकये गये पूजन िे भी भिगण हनुमाजी की पूणा कृपा प्रप्त कर अपनी मनोकामना पूरी कर िकिे हं। इि मं लेि माि भी िंिय नहीं हं। िाधक की हर मनोकामना पूरी करिे हं।

    मंि तिद्ध हनुमान पूजन यिं हनुमान यंि िंकट मोिन यंि मारुति यंियंि के विषय मं अतधक जानकारी हेिु िंपका करं।

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  • 11 अपे्रल 2012

    || हनुमान िालीिा ||

    || दोहा || श्री गुरु िरन िरोज रज, तनज मनु मुकुरु िुधारर। बरनऊँ रघुबर वबमल जिु, जो दायकु फल िारर॥ बुवद्धहीन िनु जातनके, िुतमरं पिन-कुमार। बल बुवद्ध वबद्या देहु मोफहं, हरहु कलेि वबकार॥ || िौपाई || जय हनुमान ज्ञान गुन िागर। जय कपीि तिहँु लोक उजागर॥ ॥१॥ रामदिू अिुतलि बल धामा। अजंतन-पुि पिनिुि नामा॥ ॥२॥ महाबीर वबक्रम बजरंगी। कुमति तनिार िुमति के िंगी॥ ॥३॥ कंिन बरन वबराज िुबेिा। कानन कंुिल कंुतिि केिा॥ ॥४॥ हाथ बज्र औ ध्िजा वबराजै। काँधे मूँज जनेऊ िाजै।। ॥५॥ िंकर िुिन केिरीनंदन। िेज प्रिाप महा जग बडदन॥ ॥६॥ विद्यािान गुनी अति िािुर। राम काज कररबे को आिुर॥ ॥७॥ प्रभु िररि िुतनबे को रतिया। राम लखन िीिा मन बतिया॥ ॥८॥ िूक्ष्म रूप धरर तियफहं फदखािा। वबकट रूप धरर लंक जरािा॥ ॥९॥ भीम रूप धरर अिुर िँहारे। रामिदं्र के काज िँिारे॥ ॥१०॥ लाय िजीिन लखन स्जयाये। श्रीरघुबीर हरवष उर लाये॥ ॥११॥

    रघुपति कीडही बहुि बड़ाई। िुम मम वप्रय भरिफह िम भाई॥ ॥१२॥ िहि बदन िुम्हरो जि गािं। अि कफह श्रीपति कंठ लगािं॥ ॥१३॥ िनकाफदक ब्रह्माफद मुनीिा। नारद िारद िफहि अहीिा॥ ॥१४॥ जम कुबेर फदगपाल जहाँ िे। कवब कोवबद कफह िके कहाँ िे॥ ॥१५॥ िुम उपकार िुग्रीिफहं कीडहा। राम तमलाय राज पद दीडहा॥ ॥१६॥ िुम्हरो मंि वबभीषन माना। लंकेस्िर भए िब जग जाना॥ ॥१७॥ जुग िहस्र जोजन पर भानू। लील्यो िाफह मधरु फल जानू॥ ॥१८॥ प्रभु मुफद्रका मेतल मुख माहीं। जलतध लाँतघ गये अिरज नाहीं॥ ॥१९॥ दगुाम काज जगि के जेिे। िुगम अनुग्रह िुम्हरे िेिे॥ ॥२०॥ राम दआुरे िुम रखिारे। होि न आज्ञा वबनु पैिारे॥ ॥२१॥ िब िुख लहै िुम्हारी िरना। िुम रिक काहू को िर ना॥ ॥२२॥ आपन िेज िम्हारो आपै। िीनं लोक हाँक िं काँपै॥ ॥२३॥ भूि वपिाि तनकट नफहं आिै। महाबीर जब नाम िुनािै॥ ॥२४॥ नािै रोग हरै िब पीरा। जपि तनरंिर हनुमि बीरा॥ ॥२५॥ िंकट िं हनुमान छुड़ािै। मन क्रम बिन ध्यान जो लािै॥ ॥२६॥ िब पर राम िपस्िी राजा। तिन के काज िकल िुम िाजा॥ ॥२७॥

    और मनोरथ जो कोई लािै। िोइ अतमि जीिन फल पािै॥ ॥२८॥ िारं जुग परिाप िुम्हारा। है परतिद्ध जगि उस्जयारा॥ ॥२९॥ िाध ुिंि के िुम रखिारे। अिुर तनकंदन राम दलुारे॥ ॥३०॥ अष्ट तिवद्ध नौ तनतध के दािा। अि बर दीन जानकी मािा॥ ॥३१॥ राम रिायन िुम्हरे पािा। िदा रहो रघुपति के दािा॥ ॥३२॥ िुम्हरे भजन राम को पािै। जनम-जनम के दखु वबिरािै॥ ॥३३॥ अडिकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जडम हरर-भि कहाई॥ ॥३४॥ और देििा तित्त न धरई। हनुमि िेइ िबा िुख करई॥ ॥३५॥ िंकट कटै तमटै िब पीरा। जो िुतमरै हनुमि बलबीरा॥ ॥३६॥ जय जय जय हनुमान गोिाईं। कृपा करहु गुरुदेि की नाईं॥ ॥३७॥ जो िि बार पाठ कर कोई। छूटफह बंफद महा िुख होई॥ ॥३८॥ जो यह पढै़ हनुमान िालीिा। होय तिवद्ध िाखी गौरीिा॥ ॥३९॥ िुलिीदाि िदा हरर िेरा। कीजै नाथ हृदय मँह िेरा॥ ॥४०॥ || दोहा || पिनिनय िंकट हरन, मंगल मूरतिरूप। राम लखन िीिा िफहि, हृदय बिहु िुर भूप॥ || इति श्री हनुमान िालीिा िम्पूणा ||

  • 12 अपे्रल 2012

    ॥ बजरंग बाण ॥

    ॥ दोहा ॥ तनश्चय पे्रम प्रिीति िे, वबनय करं िनमान। िेफह के कारज िकल शुभ, तिद्ध करं हनुमान॥ ॥ िौपाई ॥ जय हनुमंि िंि फहिकारी । िुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥ जन के काज वबलंब न कीजै। आिुर दौरर महा िुख दीजै॥

    जैिे कूफद तिंध ुमफहपारा । िुरिा बदन पैफठ वबस्िारा॥ आगे जाय लंफकनी रोका । मारेहु लाि गई िुरलोका॥

    जाय वबभीषन को िुख दीडहा। िीिा तनरस्ख परमपद लीडहा॥ बाग उजारर तिंध ुमहँ बोरा । अति आिुर जमकािर िोरा॥

    अिय कुमार मारर िंहारा । लूम लपेफट लंक को जारा॥ लाह िमान लंक जरर गई । जय जय धतुन िुरपुर नभ भई॥

    अब वबलंब केफह कारन स्िामी। कृपा करहु उर अिंरयामी॥ जय जय लखन प्रान के दािा। आिुर है्व दखु करहु तनपािा॥

    जै हनुमान जयति बल-िागर। िुर-िमूह-िमरथ भट-नागर॥

    ॐ हनु हनु हनु हनुमंि हठीले। बैररफह मारु बज्र की कीले॥

    ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंि कपीिा। ॐ हंु हंु हंु हनु अरर उर िीिा॥ जय अजंतन कुमार बलिंिा । शंकरिुिन बीर हनुमंिा॥

    बदन कराल काल-कुल-घालक। राम िहाय िदा प्रतिपालक॥ भूि, पे्रि, वपिाि तनिािर । अतगन बेिाल काल मारी मर॥

    इडहं मारु, िोफह िपथ राम की। राख ुनाथ मरजाद नाम की॥ ित्य होहु हरर िपथ पाइ कै। राम दिू धरु मारु धाइ कै॥

    जय जय जय हनुमंि अगाधा। दखु पािि जन केफह अपराधा॥ पूजा जप िप नेम अिारा। नफहं जानि कछु दाि िुम्हारा॥

    बन उपबन मग तगरर गहृ माहीं। िुम्हरे बल हं िरपि नाहीं॥ जनकिुिा हरर दाि कहािौ। िाकी िपथ वबलंब न लािौ॥

    जै जै जै धतुन होि अकािा। िुतमरि होय दिुह दखु नािा॥ िरन पकरर, कर जोरर मनािं। यफह औिर अब केफह गोहरािं॥

    उठु, उठु, िलु, िोफह राम दहुाई।

    पायँ परं, कर जोरर मनाई॥ ॐ ि ंि ंि ंि ंिपल िलंिा। ॐ हनु हनु हनु हनु हनमुंिा॥

    ॐ हं हं हाँक देि कवप ििंल। ॐ िं िं िहतम पराने खल-दल॥ अपने जन को िुरि उबारौ। िुतमरि होय आनंद हमारौ॥

    यह बजरंग-बाण जेफह मारै। िाफह कहौ फफरर किन उबारै॥ पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमि रिा करै प्रान की॥

    यह बजरंग बाण जो जापं। िािं भूि-पे्रि िब कापं॥ धपू देय जो जपै हमेिा। िाके िन नफहं रहै कलेिा॥

    ॥ दोहा ॥ उर प्रिीति दृढ़, िरन है्व, पाठ करै धरर ध्यान। बाधा िब हर, करं िब काम िफल हनुमान॥

    कुछ िंस्करणं मं उपरोि दोहा "उर प्रिीति दृढ़, िरन है्व" के स्थान पर तनम्न प्रकार िे उल्लेस्खि फकया गया है।

    “पे्रम प्रिीतिफहं कवप भजै। िदा धरं उर ध्यान। िेफह के कारज िुरि ही, तिद्ध करं हनुमान॥

  • 13 अपे्रल 2012

    हनुमानजी के पूजन िे कायातिवद्ध तििंन जोशी, स्िस्स्िक.ऎन.जोशी

    फहडद ूधमा मं श्री हनुमानजी प्रमुख देिी-देििाओ मं िे एक प्रमुख देि हं। शास्त्रोि मि के अनुशार हनुमानजी को रूद्र (तशि) अििार हं। हनुमानजी का पूजन युगो-युगो िे अनंि काल िे होिा आया हं। हनुमानजी को कतलयुग मं प्रत्यि देि मानागया हं। जो थोिे िे पूजन-अिान िे अपने भि पर प्रिडन हो जािे हं और अपने भि की िभी प्रकार के दःुख, कष्ट, िंकटो इत्यादी का नाश हो कर उिकी रिा करिे हं।

    हनुमानजी का फदव्य िररि बल, बुवद्ध कमा, िमपाण, भवि, तनष्ठा, किाव्य शील जैिे आदशा गुणो िे युि हं। अिः श्री हनुमानजी के पूजन िे व्यवि मं भवि, धमा, गुण, शुद्ध वििार, मयाादा, बल , बुवद्ध, िाहि इत्यादी गुणो का भी विकाि हो जािा हं।

    विद्वानो के मिानुशार हनुमानजी के प्रति दढ आस्था और अटूट वििाि के िाथ पूणा भवि एिं िमपाण की भािना िे हनुमानजी के वितभडन स्िरूपका अपनी आिश्यकिा के अनुशार पूजन-अिान कर व्यवि अपनी िमस्याओं िे मुि होकर जीिन मं िभी प्रकार के िुख प्राप्त कर िकिा हं।

    मनोकामना की पूतिा हेिु कौन िी हनुमान प्रतिमा का पूजल करना लाभप्रद रहेगा। इि जानकारी िे आपको अिगि कराने का प्रयाि फकया जारहा हं। हनुमानजी के प्रमुख स्िरुप इि प्रकार हं।

    राम भि हनमुान स्िरुप: राम भवि मं मग्न हनमुानजी की उपािना करने िे जीिन के महत्ि पूणा कायो मं आ रहे िंकटो एि ंबाधाओं को दरू करिी हं एि ंअपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेिु आिश्यक एकाग्रिा ि अटूट लगन प्रदान करने िाली होिी है। िंजीिनी पहाड़ तलये हनमुान स्िरुप: िंजीिनी पहाड़

    उठाये हुए हनुमानजी की उपािना करने िे व्यवि को प्राणभय, िंकट, रोग इत्यादी हेिु लाभप्रद मानी

    गई हं। विद्वानो के मि िे स्जि प्रकार हनुमानजी ने लिमणजी के प्राण बिाये थे उिी प्रकार हनुमानजी अपने भिो के प्राण की रिा करिे हं एिं अपने भि के बिे िे बिे िंकटो को िंस्जिनी पहाड़ की िरह उठाने मं िमथा हं। ध्यान मग्न हनमुान स्िरुप: हनुमानजी का ध्यान मग्न स्िरुप व्यवि को िाधना मं िफलिा प्रदान करने िाला, योग तिवद्ध या प्रदान करने

    िाला मानागया हं। रामायणी हनमुान स्िरुप: रामायणी

    हनुमानजी का स्िरुप विद्याथीयो के तलये विशेष लाभ प्रद होिा हं। स्जि प्रकार रामायण एक

    आदशा ग्रंथ हं उिी प्रकार हनुमानजी के रामायणी स्िरुप का पूजन विद्या अध्यन िे जुिे लोगो के तलये लाभप्रद होिा हं।

    हनमुानजी का पिन पिु स्िरुप: हनुमानजी का पिन पुि स्िरुप के पूजन िे आकस्स्मक दघुाटना, िाहन इत्याफद की िुरिा हेिु उत्तम माना गया हं। हनुमानजी के उि स्िरुप का पूजन करने िे

  • 14 अपे्रल 2012

    िीरहनमुान स्िरुप: िीरहनुमान स्िरुप मं हनमुानजी योद्धा मुद्रामं होिे हं । उनकी पूंछ उस्त्थि (उपर उफठउई) रहिी है ि दाफहना हाथ मस्िककी ओर मुिा रहिा है । कभी-कभी उनके पैरं के नीिे राििकी मूतिा भी होिी है । िीरहनुमान का पूजन भूिा-पे्रि, जाद-ूटोना इत्याफद आिुरी शवियो िे प्राप्त होने िाले कष्टो को दरू करने िाला हं। राम िेिक हनमुान स्िरुप: हनुमानजी की श्री रामजी की िेिामं लीन हनुमानजी की उपािना करने िे व्यवि के तभिर िेिा और िमपाण के भाि की िवृद्ध होिी हं। व्यवि के तभिर धमा, कमा इत्याफद के प्रति िमपाण और िेिा की भािना तनमााण करने हेिु ि व्यवि के तभिर िे क्रोघ, इषाा अहंकार इत्याफद भाि के नाश हेिु राम िेिक हनुमान स्िरुप उत्तम माना गया हं। हनमुानजी का उत्तरामखुी स्िरुप: उत्तरामुखी हनुमानजी की उपािना करने िे िभी प्रकार के िुख प्राप्त होकर जीिन धन, िंपवत्त िे युि हो जािा हं। क्योफक शास्त्रो के अनुशार उत्तर फदशा मं देिी देििाओं का िाि होिा हं, अिः उत्तरमुखी

    देि प्रतिमा शुभ फलदायक ि मंगलमय, िकल िम्पवत्त प्राप्त होिी हं। िकल िम्पवत्त की प्रातप्त होिी है। हनमुानजी का दस्िणमखुी स्िरुप: दस्िणमुखी हनुमानजी की उपािना करने िे व्यवि को भय, िंकट, मानतिक तििंा इत्यादी का नाश होिा हं। क्योफक शास्त्रो के अनुशार दस्िण फदशा मं काल का तनिाि होिा हं। तशिजी काल को तनयंिण करने िाले देि हं हनुमानजी भगिान तशि के अििार हं अिः हनुमानजी की पूजा-अिाना करने िे लाभ प्राप्त होिा हं। जाद-ूटोना, मंि-िंि इत्याफद प्रयोग दस्िणमुखी हनुमान की प्रतिमा के िमुख करना विशेष लाभप्रद होिा हं। दस्िणमुखी हनुमान का तिि दस्िण मुखी भिन के मुख्य द्वार पर लगाने िे िास्िु दोष दरु होिे देखे गये हं। जाद-ूटोना, मंि-िंि इत्याफद प्रयोग प्रमुखि: ऐिी मूतिाके हनमुानजी का पिूामखुी स्िरुप: पूिामुखी हनुमानजी का पूजन करने िे व्यवि के िमस्ि भय, शोक, शिओुं का नाश हो जािा है।

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  • 15 अपे्रल 2012

    हनुमान बाहुक क पाठ रोग ि कष्ट दरू करिा हं तििंन जोशी,

    हनुमान बाहुक की रिना िंि गोस्िामी िुलिीदािजी ने अपीन दाफहनी बाहु मं हुई अिह्य पीड़ा के तनिारण के तलए की थी। हनुमान बाहुक मं िुलिीदािजी ने हनुमानजी की मफहमा का तििंन ि िुलिीदािजी के ििाअगंो मं हो रही पीड़ा की तनितृि की प्राथाना है। हनुमान बाहुक तिद्ध िंि गोस्िामी िुलिीदािजी के द्वारा विरतिि तिद्ध स्िोि है। हनुमान बाहुक का पाठ फकिी भी प्रकार की आतध–व्यातध जेिी पीड़ा, भूि, पेि, वपशाि, जेिी उपातध िथा फकिी भी प्रकार के शि ुद्वारा फकये हुए दषु्ट तभिार कमा की तनितृि के तलए हनुमान बाहुक का तनयतमि पाठ िथा अनुष्ठान श्रषे्ठ उपाय हं। अनुष्ठान के िमय एकाहार अथिा फलाहार करे। पूणा ब्रह्मिया आफद का पालन और भूतम शयन करं।

    हनुमानजी का पूजन और हनुमान बाहुक के पाठ का अनुष्ठान 40 फदन िक करने िे अभीष्ट फल की तिवद्ध अथिा रोग, कष्ट इत्याफद का तनिारण हो जािा है। नोट: जो व्यवि अनुष्ठान करने मं अिमथा हो िह प्रतिफदन हनुमान बाहुक का श्रद्धा अनुशार पाठ करके भी लाभ प्राप्त कर िकिे हं।

    हनुमान बाहुक छप्पय तिंध ु िरन, तिय-िोि हरन, रवब बाल बरन िन ु । भुज वबिाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु ॥ गहन-दहन-तनरदहन लंक तनःिंक, बंक-भुि । जािुधान-बलिान मान-मद-दिन पिनिुि ॥ कह िुलतिदाि िेिि िुलभ िेिक फहि िडिि तनकट । गुन गनि, नमि, िुतमरि जपि िमन िकल-िंकट-विकट ॥१॥

    स्िना-िैल-िंकाि कोफट-रवि िरुन िेज घन । उर वििाल भुज दण्ि िण्ि नख-िज्रिन ॥ वपंग नयन, भकुृटी कराल

    रिना दिनानन । कवपि केि करकि लंगूर, खल-दल-बल-भानन ॥ कह िुलतिदाि बि जािु उर मारुििुि मूरति विकट । िंिाप पाप िेफह पुरुष पफह िपनेहँु नफहं आिि तनकट ॥२॥ झूलना पञ्िमुख-छःमुख भगृु मुख्य भट अिुर िुर, ििा िरर िमर िमरत्थ िूरो । बांकुरो बीर वबरुदैि वबरुदािली, बेद बंदी बदि पैजपूरो ॥ जािु गुनगाथ रघुनाथ कह जािुबल, वबपुल जल भररि जग जलतध झूरो । दिुन दल दमन को कौन िुलिीि है, पिन को पूि रजपूि रुरो ॥३॥

    घनािरी भानुिं पढ़न हनुमान गए भानुमन, अनुमातन तििु केतल फकयो फेर फारिो । पातछले पगतन गम गगन मगन मन, क्रम को न भ्रम कवप बालक वबहार िो ॥ कौिुक वबलोफक लोकपाल हररहर वितध, लोिनतन िकािंधी तित्ततन खबार िो। बल कंधो बीर रि धीरज कै, िाहि कै, िुलिी िरीर धरे िबतन िार िो ॥४॥

    भारि मं पारथ के रथ केथ ू कवपराज, गाज्यो िुतन कुरुराज दल हल बल भो । कह्यो द्रोन भीषम िमीर िुि महाबीर, बीर-रि-बारर-तनतध जाको बल जल भो ॥ बानर िुभाय बाल केतल भूतम भानु लातग, फलँग फलाँग हूिं घाफट नभ िल भो । नाई-नाई-माथ जोरर-जोरर हाथ जोधा जो हं, हनुमान देखे जगजीिन को फल भो ॥५॥

    गो-पद पयोतध करर, होतलका ज्यं लाई लंक, तनपट तनःिंक पर पुर गल बल भो । द्रोन िो पहार तलयो ख्याल ही उखारर कर, कंदकु ज्यं कवप खेल बेल कैिो फल भो ॥ िंकट िमाज अिमंजि भो राम राज, काज जुग पूगतन

  • 16 अपे्रल 2012

    को करिल पल भो । िाहिी िमत्थ िुलिी को नाई जा की बाँह, लोक पाल पालन को फफर तथर थल भो ॥६॥

    कमठ की पीफठ जाके गोितन की गाड़ं मानो, नाप के भाजन भरर जल तनतध जल भो । जािुधान दािन परािन को दगुा भयो, महा मीन बाि तितम िोमतन को थल भो ॥ कुम्भकरन रािन पयोद नाद ईधन को, िुलिी प्रिाप जाको प्रबल अनल भो । भीषम कहि मेरे अनुमान हनुमान, िाररखो विकाल न विलोक महाबल भो ॥७॥

    दिू राम राय को िपूि पूि पौनको िू, अजंनी को नडदन प्रिाप भूरर भानु िो । िीय-िोि-िमन, दरुरि दोष दमन, िरन आये अिन लखन वप्रय प्राण िो ॥ दिमुख दिुह दररद्र दररबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक िुलिी तनधान िो । ज्ञान गुनिान बलिान िेिा िािधान, िाहेब िुजान उर आनु हनुमान िो ॥८॥

    दिन दिुन दल भुिन वबफदि बल, बेद जि गािि वबबुध बंदी छोर को । पाप िाप तितमर िुफहन तनघटन पटु, िेिक िरोरुह िुखद भानु भोर को ॥ लोक परलोक िं वबिोक िपने न िोक, िुलिी के फहये है भरोिो एक ओर को । राम को दलुारो दाि बामदेि को तनिाि। नाम कतल कामिरु केिरी फकिोर को ॥९॥

    महाबल िीम महा भीम महाबान इि, महाबीर वबफदि बरायो रघुबीर को । कुतलि कठोर िनु जोर परै रोर रन, करुना कतलि मन धारतमक धीर को ॥ दजुान को कालिो कराल पाल िज्जन को, िुतमरे हरन हार िुलिी की पीर को । िीय-िुख-दायक दलुारो रघुनायक को, िेिक िहायक है िाहिी िमीर को ॥१०॥

    रतिबे को वबतध जैिे, पातलबे को हरर हर, मीि माररबे को, ज्याईबे को िुधापान भो । धररबे को धरतन, िरतन िम दतलबे को, िोस्खबे कृिानु पोवषबे को फहम भानु भो ॥ खल दःुख दोवषबे को, जन पररिोवषबे को, माँतगबो मलीनिा को

    मोदक ददुान भो । आरि की आरति तनिाररबे को तिहँु पुर, िुलिी को िाहेब हठीलो हनुमान भो ॥११॥

    िेिक स्योकाई जातन जानकीि मानै कातन, िानुकूल िूलपातन निै नाथ नाँक को । देिी देि दानि दयािने है्व जोरं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ॥ जागि िोिि बैठे बागि वबनोद मोद, िाके जो अनथा िो िमथा एक आँक को । िब फदन रुरो परै पूरो जहाँ िहाँ िाफह, जाके है भरोिो फहये हनुमान हाँक को ॥१२॥

    िानुग िगौरर िानुकूल िूलपातन िाफह, लोकपाल िकल लखन राम जानकी । लोक परलोक को वबिोक िो तिलोक िाफह, िुलिी िमाइ कहा काहू बीर आनकी ॥ केिरी फकिोर बडदीछोर के नेिाजे िब, कीरति वबमल कवप करुनातनधान की । बालक ज्यं पातल हं कृपालु मुतन तिद्धिा को, जाके फहये हुलिति हाँक हनुमान की ॥१३॥

    करुनातनधान बलबुवद्ध के तनधान हौ, मफहमा तनधान गुनज्ञान के तनधान हौ । बाम देि रुप भूप राम के िनेही, नाम, लेि देि अथा धमा काम तनरबान हौ ॥ आपने प्रभाि िीिाराम के िुभाि िील, लोक बेद वबतध के वबदषू हनुमान हौ । मन की बिन की करम की तिहँू प्रकार, िुलिी तिहारो िुम िाहेब िुजान हौ ॥१४॥

    मन को अगम िन िुगम फकये कपीि, काज महाराज के िमाज िाज िाजे हं । देिबंदी छोर रनरोर केिरी फकिोर, जुग जुग जग िेरे वबरद वबराजे हं । बीर बरजोर घफट जोर िुलिी की ओर, िुतन िकुिाने िाध ुखल गन गाजे हं । वबगरी िँिार अजंनी कुमार कीजे मोफहं, जैिे होि आये हनुमान के तनिाजे हं ॥१५॥

    ििैया जान तिरोमतन हो हनुमान िदा जन के मन बाि तिहारो । ढ़ारो वबगारो मं काको कहा केफह कारन खीझि हं िो तिहारो ॥ िाहेब िेिक नािे िो हािो फकयो िो िहा ं

  • 17 अपे्रल 2012

    िुलिी को न िारो । दोष िुनाये िं आगेहँु को होतशयार हं्व हं मन िो फहय हारो ॥१६॥

    िेरे थपै उथपै न महेि, थपै तथर को कवप जे उर घाले । िेरे तनबाजे गरीब तनबाज वबराजि बैररन के उर िाले ॥ िंकट िोि िबै िुलिी तलये नाम फटै मकरी के िे जाले । बूढ भये बतल मेररफहं बार, फक हारर परे बहुिै नि पाले ॥१७॥

    तिंध ुिरे बड़े बीर दले खल, जारे हं लंक िे बंक मिािे । िं रतन केहरर केहरर के वबदले अरर कंुजर छैल छिािे ॥ िोिो िमत्थ िुिाहेब िेई िहै िुलिी दखु दोष दिा िे । बानरबाज ! बढे़ खल खेिर, लीजि क्यं न लपेफट लिािे ॥१८॥

    अच्छ विमदान कानन भातन दिानन आनन भा न तनहारो । बाररदनाद अकंपन कंुभकरन िे कुञ्जर केहरर िारो ॥ राम प्रिाप हुिािन, कच्छ, विपच्छ, िमीर िमीर दलुारो । पाप िे िाप िे िाप तिहँू िं िदा िुलिी कह िो रखिारो ॥१९॥

    घनािरी जानि जहान हनुमान को तनिाज्यो जन, मन अनमुातन बतल बोल न वबिाररये । िेिा जोग िुलिी कबहँु कहा िकू परी, िाहेब िुभाि कवप िाफहबी िंभाररये ॥ अपराधी जातन कीजै िािति िहि भास्डि, मोदक मरै जो िाफह माहुर न माररये । िाहिी िमीर के दलुारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेतग ही तनिाररये ॥२०॥

    बालक वबलोफक, बतल बारं िं आपनो फकयो, दीनबडध ुदया कीडहीं तनरुपातध डयाररये । रािरो भरोिो िलुिी के, रािरोई बल, आि रािरीयै दाि रािरो वििाररये ॥ बड़ो वबकराल कतल काको न वबहाल फकयो, माथे पगु बतल को तनहारर िो तनबाररये । केिरी फकिोर रनरोर बरजोर बीर, बाँह पीर राहु मािु ज्यं पछारर माररये ॥२१॥

    उथपे थपनतथर थपे उथपनहार, केिरी कुमार बल आपनो िंबाररये । राम के गुलामतन को काम िरु रामदिू, मोिे दीन दबूरे को िफकया तिहाररये ॥ िाहेब िमथा िो िं िलुिी के माथे पर, िोऊ अपराध वबनु बीर, बाँतध माररये । पोखरी वबिाल बाँहु, बतल, बाररिर पीर, मकरी ज्यं पकरर के बदन वबदाररये ॥२२॥

    राम को िनेह, राम िाहि लखन तिय, राम की भगति, िोि िंकट तनिाररये । मुद मरकट रोग बाररतनतध हेरर हारे, जीि जामिंि को भरोिो िेरो भाररये ॥ कूफदये कृपाल िुलिी िुपे्रम पब्बयिं, िुथल िुबेल भालू बैफठ कै वििाररये । महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह पीर क्यं न, लंफकनी ज्यं लाि घाि ही मरोरर माररये ॥२३॥

    लोक परलोकहँु तिलोक न विलोफकयि, िोिे िमरथ िष िाररहँू तनहाररये । कमा, काल, लोकपाल, अग जग जीिजाल, नाथ हाथ िब तनज मफहमा वबिाररये ॥ खाि दाि रािरो, तनिाि िेरो िािु उर, िुलिी िो, देि दखुी देस्खअि भाररये �