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इस्लाम के सिद्धांत और उसके मूल ... · Web viewअल ल ह क प रश स और प ग बर صلى الله عليه وسلم

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Page 1: इस्लाम के सिद्धांत और उसके मूल ... · Web viewअल ल ह क प रश स और प ग बर صلى الله عليه وسلم

इस्लाम के सिद्धांत और उके मूल आधार

लेखकडॉ. मुहम्मद बि न अब्दुल्लाह बि न सालेह अस-सुहैम

अल्लाह के नाम से शुरू करता हँू, जो ड़ा मेहर ान और रहम करने वाला है।

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प्राक्कथन

सभी प्रशंसाएँ अल्लाह के लिलए हैं। हम उसकी प्रशंसा और गुणगान करते हैं, उसी से सहायता माँगते हैं और उसी से क्षमा याचना करते हैं। हम अपनी आत्मा की ुराइयों और अपने दुष्कम8 से अल्लाह की शरण में आते हैं। जिजसे अल्लाह माग;दश;न प्रदान कर दे,

उसे कोई पथभ्रष्ट नहीं कर सकता और जिजसे वह पथभ्रष्ट कर दे, उसे कोई माग; दशा;ने वाला नहीं। मैं गवाही देता हूँ बिक अल्लाह के लिसवा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है और उसका कोई साझी नहीं। तथा मैं गवाही देता हूँ बिक मुहम्मद उसके ंदे और रसूल हैं।

अल्लाह उनपर हुत अधिEक दया और शांबित अवतरिरत करे। अल्लाह की प्रशंसा और पैगं र وسلم عليه الله पर صلى दरूद के ाद यह कहना ह ै बिक अल्लाह सव;शलिGमान न े अपने

संदेशवाहकों को संसार की ओर भेजा, ताबिक संदेशवाहकों के आने के ाद अल्लाह के बिवरुद्ध लोगों के पास कोई तक; और प्रमाण न रह जाए। इसी तरह उसने माग;दश;न, दया, प्रकाश और उपचार के लिलए पुस्तकें उतारीं। याद रहे बिक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व

सल्लम से पहले संदेष्टा बिवशेष रूप से अपनी जाबित के लोगों की ओर भेजे जाते थे और अपनी जाबित के लोगों से ही अपनी बिकता ें सुरक्षिक्षत रखने को कहते थे। यही कारण है बिक उनकी पुस्तकें धिमट गईं और उनकी शरीयतों (Eम;शास्त्र) में हेरफेर, परिरवत;न व दलाव कर दिदया गया; क्योंबिक वे एक सीधिमत अवधिE में एक बिवलिशष्ट समुदाय के लिलए अवतरिरत हुई थीं।

बिफर अल्लाह तआला ने अपने न ी मुहम्मद وسلم عليه الله को صلى चुनकर उन्हें सभी रसूलों और संदेशवाहकों की अंबितम कड़ी ना दिदया। अल्लाह तआला ने फरमाया : "(लोगो!) मुहम्मद ( وسلم عليه الله तुम्हारे (صلى आदधिमयों में से बिकसी के ाप नहीं,

लेबिकन आप अल्लाह के पैगम् र और सारे नबि यों की अंबितम कड़ी हैं।" 1 आपको स से अच्छी बिकता यानी कु़रआन से सम्माबिनत बिकया और उसके संरक्षण का काम लोगों के हवाले करने के जाय यह जिXम्मेवारी स्वयं लिलया। उसका फ़रमान है : " ेशक हमने ही

कुरआन को उतारा है और हम ही उसकी बिहफ़ाXत करने वाले हैं।" 2 आपकी शरीयत (Eम;शास्त्र) को क़यामत आने तक ाकी रखा और यह स्पष्ट कर दिदया बिक आपकी शरीयत के ाकी रहने के आवश्यक तत्वों में उसपर ईमान लाना, उसकी ओर दूसरों को

आमंबित्रत करना और उसपर संयम के साथ जमे रहना शामलिल हैं। अत: मुहम्मद وسلم عليه الله और صلى आपके ाद आपके अनुयाधिययों का तरीका यह रहा है बिक वे ज्ञान और समझ- ूझ के साथ अल्लाह की ओर लोगों को ुलाते रहते हैं। अल्लाह तआला ने

इस तरीके़ को स्पष्ट करते हुए फ़रमाया है : " आप कह दीजिजए बिक मेरा माग; यही है। मैं और मेरे मानने वाले बिवश्वास और भरोसे के साथ अल्लाह की ओर ुला रहे हैं तथा अल्लाह पाक है और मैं मुक्षि_कों में से नहीं हँू।" 3 आपको अल्लाह के माग; में पहँुचने वाले कष्ट पर Eैय; करने का आदेश दिदया गया है। चुनाँचे अल्लाह का फरमान है : “ आप उसी तरह सब्र करें, जिजस तरह बिक दृढ़ संकल्प वाले संदेशवाहकों ने Eैय; रखा है।" 4 एक अन्य स्थान में कहा है : “ ऐ ईमान वालो! Eैय; रखो, सहनशीलता से काम लो, जमे रहो और

अल्लाह से डरते रहो, ताबिक तुम्हें सफलता प्राप्त हो।" 5 इस ईश्वरीय तरीके का पालन करते हुए, मैंने पैगं र وسلم عليه الله صلى की सुन्नत से माग;दश;न प्राप्त करते हुए और अल्लाह की बिकता से ज्ञान हालिसल करते हुए अल्लाह के रास्ते की तरफ लोगों को

आमंबित्रत करने के लिलए यह पुस्तक लिलखी है, जिजसमें संके्षप के साथ मैंने ब्रह्माण्ड की रचना, मनुष्य की रचना और उसके सम्मान, उसकी तरफ संदेष्टाओं के भेजे जाने और बिपछले Eम8 की स्थिस्थबितयों को स्पष्ट बिकया है। बिफर मैंने इस्लाम का अथ; और उसके स्तंभों

का परिरचय प्रस्तुत बिकया है। अत: जो व्यलिG माग;दश;न चाहता है, तो ये उसके प्रमाण उसके सामने हैं, और जो व्यलिG मुलिG प्राप्त करना चाहता है तो मैंने उसके माग; को उसके लिलए स्पष्ट कर दिदया है। जो व्यलिG ईशदूतों, संदेष्टाओं और सुEारकों का पग पालन करना चाहता है, तो यह उनका रास्ता है। परन्तु जो व्यलिG उनसे बिवमुखता प्रकट करता है, तो उसने अपने आपको ेवकूफ नाया

और गुमराही के रास्ते पर चल पड़ा। प्रत्येक Eम; के अनुयायी, लोगों को अपने Eम; की ओर ुलाते और यह Eारणा रखते हैं बिक सच्चा Eम; केवल उनका ही Eम; है, कोई

और Eम; नहीं। इसी तरह प्रत्येक आस्था के अनुयायी, लोगों को अपने अक़ीदा व लिसद्धांत के प्रस्तुतकता; का पालन करने और अपने माग; के नेता का सम्मान करने का अह्वान करते हैं। परन्तु मुसलमान अपने पंथ का पालन करने का आमंत्रण नहीं देता ; क्योंबिक उसका कोई बिवलिशष्ट पंथ नहीं है, ल्किल्क वास्तव में उसका Eम; अल्लाह का वह Eम; है, जिजसे उसने अपने लिलए पसंद कर रखा है। अल्लाह तआला का फरमान है : "बिन: सन्देह अल्लाह

के बिनकट Eम; इस्लाम ही है।" 6 वह बिकसी मनुष्य के सम्मान की ात नहीं करता, क्योंबिक अल्लाह के Eम; में सभी मनुष्य समान और रा र हैं। उनके ीच यदिद कोई अंतर है, तो महX तक़वा यानी Eम;परायणता के आEार पर। एक मुसलमान लोगों को इस ात के

लिलए आमंबित्रत करता है बिक वे अपने पालनहार के रास्ते पर चलें, उसके पैगं रों पर ईमान लाएँ और उसकी उस शरीयत यानी Eम;

1 सूरा अल- अहXा : 40) । यह अल्लाह की बिकता पबिवत्र कु़रआन का, जिजसे उसने अपने न ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पर उतारा था, उद्धरण है। मेरी इस बिकता में पबिवत्र कु़रआन के हुत- से उद्धरण नक़ल बिकए गए हैं, जिजन्हें महान अल्लाह ने

कहा है या सव;शलिGमान अल्लाह ने कहा है आदिद वाक्यों के ाद लाया गया है। इस बिकता के पृष्ठ संख्या 95-100 तथा 114-117 में कु़रआन का संक्षिक्षप्त बिववरण दे दिदया गया है।

2 सूरा अल-बिहज्र, आयत संख्या : 9

3 सूरा यूसुफ़, आयत संख्या : 108

4 सूरा अल-अहक़ाफ़, आयत संख्या : 35

5 सूरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 200

6 सूरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 19

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बिवEान का पालन करें जिजसे उसने अपने अंबितम पैगम् र मुहम्मद وسلم عليه الله पर صلى अवतरिरत बिकया है और आपको सभी

लोगों में उसका प्रचार करने का आदेश दिदया है। इसी ात को ध्यान में रखते हुए मैंने इस पुस्तक को अल्लाह के उस Eम; की ओर आमंत्रण देने के लिलए लिलखा है, जिजसे उसने अपने लिलए पसंद कर रखा है और जिजसके साथ अपने अंबितम संदेष्टा को अवतरिरत बिकया है। साथ ही मेरा उदे्दश्य उस व्यलिG का माग;दश;न

है, जो सत्य का माग; प्राप्त करना चाहता है तथा उस व्यलिG को राह दिदखाना है, जो सौभाग्य का अक्षिभलाषी है। क्योंबिक अल्लाह की कसम, कोई भी व्यलिG इस Eम; के अलावा कहीं भी वास्तबिवक खुशी नहीं पा सकता तथा कोई भी व्यलिG चैन व शांबित उस समय तक

प्राप्त नहीं कर सकता, ज तक अल्लाह को अपना पालनहार, मुहम्मद وسلم عليه الله को صلى अपना रसूल और इस्लाम को अपना Eम; न मान ले। चुनाँचे - प्राचीन और वत;मान काल में- इस्लाम स्वीकार करने वाले हXारों लोगों ने इस ात की गवाही दी है

बिक उन्हें वास्तबिवक जीवन की पहचान इस्लाम स्वीकारने के ाद हुई और उन्होंने खुशी व सौभाग्य का स्वाद इस्लाम की छाया मेंही चखा . . . । चूँबिक हर मनुष्य सौभाग्य का अक्षिभलाषी है, चैन व शांबित की खोज में रहता है और सच्चाई को ढँूढता है, इसलिलए मैंने इस

पुस्तक का संकलन बिकया है। मैं अल्लाह से प्राथ;ना करता हूँ बिक वह इस काय; को बिवशुद्ध रूप से अपने लिलए तथा अपने रास्ते की तरफ ुलाने वाला नाए, उसे स्वीकृबित प्रदान करे और ऐसे सत्कम; में शुमार करे, जो उसके करने वाले को लोक एवं परलोक में लाभ देता है।

मैं इस पुस्तक को बिकसी भी भाषा में प्रकालिशत करने या बिकसी भी भाषा में इसका अनुवाद करने की अनुमबित देता हँू , इस शत; के साथ बिक अनुवाद करने वाला इसके अनुवाद में ईमानदारी का प्रबित द्ध रहे। इसी तरह मैं हर उस व्यलिG से, जो अर ी भाषा में मूल पुस्तक या इसके बिकसी अनुवादिदत संस्करण के ारे में कोई परामश; देना

चाहता है, अनुरोE करता हँू बिक कृपया नीचे लिलखे पते पर मुझे सूलिचत करे। सभी प्रशंसाएँ शुरू और अंत में, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से, साव;जबिनक और गुप्त रूप से, लोक तथा परलोक में उसी की हैं। उसी

की प्रशंसा है आसमान भर, जमीन भर और हमारा पालनहार जो भी चाहे, उसके रा र। अल्लाह तआला हमारे न ी मुहम्मद, उनके सालिथयों और प्रलय के दिदन तक उनके माग; पर चलने वाले सभी लोगों पर अत्यधिEक दया एवं शांबित अवतरिरत करे ।

लेखकडॉ. मुहम्मद बि न अब्दुल्लाह बि न सालेह अस-सुहैम

रिरयाद , 13/10/1420 बिहज्री, पोस्ट ाक्स : 1032 , रिरयाद 1332

एवं पोस्ट ाक्स : 6259 रिरयाद 11442

मार्ग� कहाँ है? ज मनुष्य ड़ा हो जाता है और समझदार न जाता है, तो उसके मन में हुत- से प्रश्न उभरने लगते हैं। जैसे- मैं कहाँ से आया, क्यों

आया और मुझे कहाँ जाना है? मुझे बिकसने मुझे पैदा बिकया और मेरे चारों ओर इस ब्रह्माण्ड की रचना बिकसने की है? इस ब्रह्माण्ड का मालिलक कौन है और इसे कौन बिनयंबित्रत करता है? आदिद।

मनुष्य स्वत: इन प्रश्नों का उत्तर देने में असमथ; है तथा आEुबिनक बिवज्ञान भी इनका उत्तर देने में सक्षम नहीं है। क्योंबिक ये ातें Eम; की परिरधिE के अंतग;त आती हैं। इसीलिलए इन मुद्दों के सं ंE में अनेक कथन, बिवक्षिभन्न धिमथ्याए,ँ अंEबिवश्वास और कहाबिनयाँ पायी जाती हैं

जो मनुष्य की व्याकुलता और चिचंता को और ढ़ा देती हैं। मनुष्य के लिलए इन प्रश्नों का पया;प्त और संतोषजनक उत्तर प्राप्त करना संभव नहीं है, लिसवाय इसके बिक अल्लाह तआला उसे सत्य Eम; का माग;दश;न प्रदान कर दे, जो इन और इन जैसे अन्य मुद्दों के ारे

में बिनणा;यक वGव्य प्रस्तुत करता है। क्योंबिक ये मुदे्द परोक्ष ( अनदेखी चीXों) में से हैं और केवल सच्चा Eम; ही इनके मामले में सत्य और ठीक ात कह सकता है। इसलिलए बिक केवल सच्चा Eम; ही है जिजसकी वह्य (प्रकाशना) अल्लाह ने अपने नबि यों और सन्देष्टाओं

की ओर की है। अत: मनुष्य के लिलए आवश्यक है बिक वह सत्य Eम; की ओर आए, उसका ज्ञान हालिसल करे और उसपर ईमान लाए, ताबिक उसकी ेचैनी समाप्त हो, उसके संदहों का बिनवारण हो और उसे सीEा माग; प्राप्त हो सके। अगले पन्नों में मैं आपको अल्लाह के सीEे माग; का अनुसरण करने के लिलए आमंबित्रत करँूगा और आपके सामने उसके कुछ प्रमाण ,

तक; और स ूत प्रस्तुत करँूगा, ताबिक आप बिनष्पक्षता, ध्यान और Eैय; के साथ इनके ारे में बिवचार करें।

अल्लाह र्व�शसि�मान का अस्तिस्तत्र्व, उका एकमात्र पालनहार होना, उकी एकत्र्व और उका एकमात्र पूजा

योग्य होना [7] : काबिफ़र लोग बिनर्मिमंत और रलिचत देवताओं, जैसे पेड़, पत्थर और मानव आदिद की पूजा करते हैं। इसीलिलए ज यहूदिदयों और मुक्षि_कों

( हुदेववादिदयों) ने अल्लाह के पैगं र मुहम्मद وسلم عليه الله से صلى अल्लाह के गुण- बिवशेषण के ारे में प्रश्न बिकया और यह बिक वह बिकस चीX से है, तो अल्लाह ने कु़रआन की यह सूरा उतारी : " आप कह दीजिजए अल्लाह एक है। अल्लाह ेबिनयाज है। न

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उसने ( बिकसी को) जना है और न ( बिकसी ने) उसको जना है। और न कोई उसका समकक्ष है।" 7 साथ ही उसने अपने न्दों से अपना

परिरचय कराते हुए फ़रमाया है : " ेशक तुम्हारा र वह अल्लाह है, जिजसने आसमानों और जमीन को छ : दिदन में नाया, बिफर वह अश; (चिसंहासन) पर मुस्तवी हो गया। वह ढाँपता है रात से दिदन को बिक रात दिदन को तेX चाल से आ लेती है , और उसी ने पैदा बिकए

सूय;, चंद्रमा और लिसतारों को, इस हाल में बिक वे उसके हुक्म के अEीन हैं। सुनो ! उसी का काम है पैदा करना और हुक्म देना। सव;संसार का पालनहार अल्लाह हुत रकत वाला है।'' 8 एक अन्य स्थान में उसने कहा है : " अल्लाह वह है जिजसने आसमानों को

ऐस खंभों के बि ना ऊँचा कर रखा है जिजन्हें तुम देख सको, बिफर अश; पर मुस्तवी हो गया, और उसी ने सूय; एवं चाँद को अEीन कर रखा है, हर एक बिनयधिमत अवधिE तक चल रहा है। वही काम की तद ीर करता है, तथा बिवस्तार के साथ बिनशाबिनयाँ यान करता है, ताबिक तुम अपने र से धिमलने का यकीन कर लो। और वही है जिजसने Xमीन को फैलाकर बि छा दिदया, और उसमें पहाड़ और नदिदयाँ नाईं और प्रत्येक फलों के दो प्रकार नाए, वह रात से दिदन को लिछपाता है।" इस क्रम को जारी रखते हुए अंत में कहा : " हर मादा अपने पेट में जो कुछ रखती है, अल्लाह उसको अच्छी तरह जानता है, और पेट का घटना- ढ़ना भी, और हर चीX उसके पास एक अंदाXे से है। वह लिछपी और खुली ातों का इल्म रखने वाला है, स से ड़ा स से ऊँचा और स से अच्छा है।" 9 एक अन्य स्थान में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " आप पूलिछए बिक आकाशों और Eरती का र कौन है? कह दीजिजए अल्लाह। कह दीजिजए, क्यों तुम

बिफर भी इसके लिसवाय दूसरों को मददगार ना रहे हो, जो खुद अपनी जान के भी भले- ुरे का हक नहीं रखते? कह दीजिजए क्या अंEा और आँखों वाला रा र हो सकता है? या क्या अंEेरा और उजाला रा र हो सकता है? क्या जिजन्हें ये अल्लाह का साझीदार ना रहे हैं उन्होंने भी अल्लाह की तरह पैदा की है बिक उनके देखने में पैदाइश संदिदग्E (मुतशाबि ह) हो गई? कह दीजिजए बिक केवल

अल्लाह ही सभी चीजों का पैदा करने वाला है। वह अकेला है और X रदस्त ग़ालिल है।" 10

अल्लाह सव;शलिGमान ने लोगों के लिलए अपनी बिनशाबिनयों को गवाह तथा स ूत के रूप में पेश करते हुए कहा है : " और रात व दिदन, सूरज और चाँद उसकी बिनशाबिनयों में से हैं। तुम सूरज को सजदा न करो और न ही चाँद को। ल्किल्क तुम केवल उस अल्लाह के को सजदा करो, जिजसने इन स को पैदा बिकया है, अगर तुमको उसी की इ ादत करनी है। ... और उसकी बिनशाबिनयों में से यह भी है बिक

आप Xमीन को द ी हुई देखते हैं, बिफर ज हम उसपर पानी रसाते हैं तो वह ताXा होकर उभरने लगती है। ेशक जिजसने इसको ज़िXंदा बिकया है, वही मुद� को ज़िXंदा करने वाला है। बिन: संदेह वह हर चीX पर क़ादिदर (सक्षम) है।" 11 एक अन्य स्थान में वह कहता है

: “ और उसकी बिनशाबिनयों में से आसमानों और Xमीन को पैदा करना और तुम्हारी भाषाओं और रंगों का अलग- अलग होना भी है। बिन: संदेह इसमें जानने वालों के लिलए बिनशाबिनयाँ हैं। और उसकी बिनशाबिनयों में से रात और दिदन को तुम्हारा सोना और तुम्हारा उसके

फ़ज़्ल (रोXी) को तलाश करना भी है।" 12

इसी तरह उसने सौन्दय; और पूण;ता की बिवशेषताओं के साथ अपना वण;न करते हुए फ़रमाया है : " अल्लाह तआला ही सच्चा पूज्य है, जिजसके लिसवा कोई पूजा के योग्य नहीं। वह ज़िXंदा और स को थामने वाला है। न उसे झपकी आती है और न ही नींद। आसमानों

और Xमीन की समस्त चीजें उसी की हैं। कौन है जो उसकी आज्ञा के बि ना उसके सामने लिसफारिरश कर सके? वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है। और वह उसके ज्ञान में से बिकसी चीज का इहाता नहीं कर सकते , मगर जिजतना वह चाहे।" 13

और एक दूसरे स्थान पर फ़रमाया है : " वह पाप को माफ़ करने वाला और तौ ा क ूल करने वाला, कड़ी सXा देने वाला और इनाम देने वाला है। उसके लिसवा कोई सच्चा पूज्य नहीं और उसी की तरफ वापस जाना है।" 14 एक और स्थान में फ़रमाया ह ै : “वही

अल्लाह है, जिजसके लिसवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है। वह ादशाह, हुत पाक, सभी दोषों से साफ, सुरक्षा व शांबित प्रदान करने वाला, रक्षक, ग़ालिल , ताक़तवर और ड़ाई वाला है। अल्लाह पाक है उन चीजों से जिजनको ये उसका साझी नाते हैं।" 15

यह सव;शलिGमान, तत्वदश�, सच्चा पूज्य, पालनहार जिजसने अपने न्दों से अपना परिरचय कराया है और अपनी बिनशाबिनयों को उनके लिलए साक्ष्य और स ूत के तौर पर पेश बिकया है और अपना वण;न पूण;ता के गुण- बिवशेषण के साथ बिकया है, उसके अल्किस्तत्व, उसकी

रु ूबि यत और उसकी उलूबिहयत पर नबि यों के Eम;-बिवEान, इनसानी बिववेक और प्रकृबित तक; स्थाबिपत करती है तथा इसपर सभी समुदायों की सव;सहमबित है। इस ारे में कुछ ातों का मैं अगले पन्नों में उल्लेख करँूगा। रही ात उसके अल्किस्तत्व और रु ूबि यत के

प्रमाणों की तो वे बिनम्नलिलखिखत हैं :

1. इ ब्रह्माण्ड की रचना और इके अंदर विर्वद्यमान अद्भतु र्व उत्कृष्ट कारीर्गरी :

7 सूरा अल-इख़लास।8 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 54।9 सूरा अर-राद, आयत संख्या : 2, 3, 7, 8।10 सूरा अर-राद, आयत संख्या : 16।11 सूरा फु़स्थिस्सलत, आयत संख्या : 37, 39।12 सूरा अर-रूम, आयत संख्या : 22, 23।13 सूरा अल- क़रा, आयत संख्या : 255।14 सूरा ग़ाबिफ़र, आयत संख्या : 3।15 सूरा अल-ह_, आयत संख्या : 23।

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ऐ मनुष्य! यह महान ब्रह्माण्ड जो आपको चारों ओर से घेरे हुए है और जो बिक आकाश, लिसतारों, आकाश गंगाओं तथा बि छी हुई

Xमीन से धिमलकर ना है और जिजसमें एक- दूसरे से धिमले हुए Eरती के टुकड़े हैं, जिजनमें उगने वाली चीजें उनकी क्षिभन्नता के आEार क्षिभन्न- क्षिभन्न होती हैं, जिजनमें हर प्रकार के फल हैं और जिजनमें सभी प्राक्षिणयों के आप जोड़े पाएगँे . . . . । इस ब्रह्माण्ड ने अपनी रचना

स्वयं नहीं की है और बिनक्षि�त रूप से इसका एक स्रष्टा और नाने वाला होना चाबिहए; क्योंबिक यह संभव नहीं है बिक वह स्वयं अपनी रचना कर सके। ऐसे में प्रश्न उठता है बिक बिफर वह कौन है, जिजसने इस अद्भतु तरीके़ से उसकी रचना की है, उसे इस प्रकार उत्तम ढंग

से पूरा बिकया है और देखने वालों के लिलए बिनशानी ना दिदया है? दरअसल वह एकमात्र सव;शलिGमान अल्लाह ही है, जिजसके लिसवाय कोई पालनहार नहीं है और उसके अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " क्या यह लोग बि ना बिकसी पैदा करने वाले के स्वयं पैदा हो गए हैं या यह स्वयं उत्पक्षित्तकता; ( पैदा करने वाले) हैं? क्या इन्होंने आकाशों और Eरती को पैदा बिकया है? ल्किल्क यह बिवश्वास न करने वाले लोग हैं।" 16 ये दोनों आयतें बिनम्नलिलखिखत तीन भूधिमकाओं पर आEारिरत हैं :

1. क्या ये लोग अनल्किस्तत्व से अल्किस्तत्व में लाए गए हैं?2. क्या उन्होंने अपने आपको स्वयं पैदा बिकया है?

3. क्या उन्होंने आकाश और Eरती को पैदा बिकया है?

तो ज वे अनल्किस्तत्व से अल्किस्तत्व में लाए नहीं गए हैं और उन्होंने अपने आपको भी पैदा नहीं बिकया है और न ही उन्होंने आकाश और पृथ्वी को पैदा बिकया है, तो यह बिनक्षि�त हो गया बिक एक पैदा करने वाले के अल्किस्तत्व को मानना Xरूरी है, जिजसने इन्हें पैदा बिकया है

और आकाश व Eरती को भी पैदा बिकया है।

2. प्रकृवित : स्वभाबिवक रूप से सभी प्राक्षिणयों की प्रकृबित में यह ात दाखिख़ल है बिक वह उत्पक्षित्तकार का इक़रार करे और इस ात पर बिवश्वास रखे

बिक वह हर चीX से महान, स सेसे ड़ा और स से अधिEक मबिहमा वाला और स से परिरपूण; है। यह ात गक्षिणत बिवज्ञान के लिसद्धान्तों से भी अधिEक और अच्छी तरह प्रकृबित में ैठी हुई है और इसके लिलए तक; स्थाबिपत करने की कोई आवश्यकता नहीं है, लिसवाय उस

व्यलिG के जिजसकी प्रकृबित दल गई हो और वह ऐसी परिरस्थिस्थबितयों से दो चार हुआ हो जिजन्होंने उसे उसकी मान्यताओं से फेर दिदया हो। 17 अल्लाह तआला ने फरमाया है : " अल्लाह तआला की वह बिफ़तरत (प्रकृबित) जिजसपर उसने लोगों को पैदा बिकया है। अल्लाह

के ब्रह्माण्ड को दलना नहीं है। यही सच्चा Eम; है, बिकन्तु अधिEक लोग नहीं जानते।" 18 और न ी وسلم عليه الله ने صلى फ़रमाया है : “ प्रत्येक पैदा होने वाला च्चा (इस्लाम) की बिफ़तरत (प्रकृबित) पर जन्म लेता है। बिफर उसके माता- बिपता उसे यहूदी ना

देते हैं या ईसाई ना देते हैं या मजूसी ( अखिग्न पूजक) ना देते हैं। जिजस प्रकार बिक जानवर पूरे जानवर को जन्म देते हैं। क्या तुम उनमें कोई नाककटा जानवर पाते हो?" बिफर अ ू हुरैरा عنه ) الله फ़रमाते ( رضي थे : अगर तुम चाहो तो यह आयत पढ़ सकते

हो : " अल्लाह की वह बिफतरत जिजसपर उसने लोगों को पैदा बिकया है। अल्लाह के ब्रह्माण्ड को दलना नहीं है।" 19 न ी الله صلىوسلم की عليه एक और हदीस में है : "सुनो, बिन: संदेह मेरे पालनहार ने मुझे यह आदेश दिदया है बिक मैं तुम्हें उन ातों की लिशक्षा दँू जिजनसे तुम अनक्षिभज्ञ हो, जिजनकी उसने मुझे आज के दिदन लिशक्षा दी है। हर वह माल जो मैंने बिकसी न्दे को प्रदान बिकया है, हलाल है

और मैंने अपने सभी न्दों को सच्चे Eम; का पालन करने वाला नाकर पैदा बिकया, परन्तु उनके पास शयातीन आए और उनको उनके Eम; से फेर दिदया और उनपर उन चीजों को हराम कर दिदया, जो मैंने उनके लिलए हलाल बिकया था और उन्हें हुक्म दिदया बिक वे

मेरे साथ उस चीX को साझी ठहराएँ जिजसके ारे में मैंने कोई दलील नहीं उतारी।" 20

3. मुदायों की र्व�हमवित : सभी - प्राचीन और आEुबिनक- समुदायों की इस ात पर सव;सहमबित है बिक इस ब्रह्माण्ड का एक स्रष्टा है और वह सव;संसार का

पालनहार अल्लाह है और वही आकाशों तथा Eरती का पैदा करने वाला है। न तो उसकी रचना में उसका कोई साझी है और न उसके राज्य में उसका कोई शरीक व साझी है। बिपछले सुमदायों में से बिकसी समुदाय के ारे में यह ात वर्णिणंत नहीं है बिक वह यह आस्था रखती थी बिक उसके देवता आसमानों और Xमीन के पैदा करने में अल्लाह के साझेदार रहे हैं, ल्किल्क स लोग यह आस्था रखते थे बिक अल्लाह ही उनका और उनके पूज्यों का

पैदा करने वाला है। चुनांचे उसके अलावा कोई स्रष्टा नहीं है और न ही उसके अलावा कोई जीबिवका (रोजी) प्रदान करने वाला है, तथा लाभ और हाबिन केवल उसी सव;शलिGमान के हाथ में है। 21 अल्लाह तआला ने मुक्षि_कों के अल्लाह की रु ूबि यत (एकमात्र

पालनहार होने) को स्वीकारने के ारे में सूचना देते हुए फरमाया है : " और अगर आप उनसे प्रश्न करें बिक आसमानों और Xमीन को 16 सूरा अत-तूर, आयत संख्या :35, 36।17 देखिखए : मजमू फतावा शैखुल इस्लाम इब्ने तैधिमया 1/49, 47-73।18 सूरा अर-रूम, आयत संख्या : 30।19 सहीह ुख़ारी, बिकता ुल कद्र, अध्याय-3 तथा सहीह मुस्थिस्लम, बिकता ुल क़द्र, हदीस संख्या : 2658 । शब्द सहीह मुस्थिस्लम के हैं।20 इसे इमाम अहमद ने अपनी मुसनद 4/162 में तथा मुस्थिस्लम ने अध्याय बिकता अल- जन्नह व लिसफ़तु नईधिमहा व अहलिलहा ( हदीस

संख्या : 2865) में रिरवायत बिकया है। शब्द सहीह मुस्थिस्लम के हैं।21 देखिखए : मजमू फ़तावा शैखुल इस्लाम इब्ने तैधिमया, 14/380-383, व 7/75।

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बिकसने पैदा बिकया और सूय; तथा चाँद को बिकसने आदेश- अEीन बिकया? तो वे यही उत्तर देंगे बिक अल्लाह ने! तो बिफर ये बिकEर बिफरे

जा रहे हैं? अल्लाह तआला अपने न्दों में से जिजसे चाहे ढ़ाकर रोXी देता है और जिजसे चाहे कम। ेशक अल्लाह तआला हर चीX जानने वाला है। और अगर आप उनसे पूछें बिक आसमान से पानी रसाकर जमीन को उसकी मृत्यु के ाद बिकसने जिजन्दा बिकया, तो

वे यही उत्तर देंगे बिक अल्लाह ने। आप कह दें बिक सभी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिलए हैं। ल्किल्क उनमें से अधिEकतर लोग नासमझ हैं। " 22 एक अन्य स्थान में उसका फ़रमान है : " यदिद आप उनसे प्रश्न करें बिक आकाशों और Eरती की रचना बिकस ने की है? तो बिन:सन्देह

उनका यही उत्तर होगा बिक उन्हें सव;शलिGमान और सव;ज्ञानी अल्लाह ही ने पैदा बिकया है।" 23

4. बौद्धिद्धक अविनर्वाय�ता : इंसानी बिववेक के लिलए इस ात को स्वीकार बिकए बि ना कोई चारा नहीं बिक इस ब्रह्माण्ड का एक महान स्रष्टा है , क्योंबिक बिववेक देखता

है बिक ब्रह्माण्ड एक आबिवष्कृत और पैदा की गई चीX है और यह बिक उसने अपने आपको स्वयं पैदा नहीं बिकया है। ज बिक आबिवष्कृत चीX के लिलए एक आबिवष्कारक ( पैदा करने वाले का होना) का होना आवश्यक है। मनुष्य इस ात को जानता है बिक उसका सामना संकटों और आपदाओं से होता रहता है और ज मनुष्य उन्हें दूर करने पर सक्षम

नहीं होता, तो वह अपने दिदल के साथ आसमान की ओर ध्यान करता है और अपने पालनहार से फ़रिरयाद करता है बिक वह उसकी परेशानी को दूर कर दे और उसकी चिचंता को दूर कर दे, भले ही वह अन्य दिदनों में अपने पालनहार को नकारता रहा हो और मूर्तितं की

पूजा करता रहा हो। चुनाँचे यह एक ऐसी अबिनवाय;ता है, जिजसे नकारा नहीं जा सकता और उसको स्वीकारने के लिसवा कोई चारा नहीं है। ल्किल्क ज जानवर पर भी कोई बिवपक्षित्त आती है, तो वह भी अपने लिसर को उठाता है और अपनी दृधिष्ट को आसमान की ओर

करता है। अल्लाह तआला ने मनुष्य के ारे में सूचना दी है बिक ज उसे कोई हाबिन पहँुचती है, तो वह अपने पालनहार की ओर भागता है और उससे अपने संकट को दूर करने के लिलए प्राथ;ना करता है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया : " और मनुष्य को ज कभी

कोई बिवपदा पहँुचती है तो खू तवज्जोह से अपने र को पुकारता है। बिफर ज अल्लाह उसे अपने पास से नेमत प्रदान कर देता है, तो वह इससे पहले जो दुआ करता था, उसे बि ल्कुल भूल जाता है और अल्लाह के लिलए शरीक नाने लगता है।" 24 इसी तरह

अल्लाह तआला ने मुशरिरकों की हालत के ारे में सूचना देते हुए फ़रमाया : “ वही (अल्लाह) तुमको सूखे में और समुद्र में चलाता है, यहाँ तक बिक ज तुम नाव में होते हो, और नाव लोगों को उलिचत हवा के साथ लेकर चलती हैं और लोग उनसे खुश होते हैं, उनपर एक झोंका तेX हवा का आता है और हर ओर से उनपर मौजें उठती चली आती हैं और वे समझते हैं बिक वह धिघर गए हैं, तो वे दीन

को अल्लाह ही के लिलए खालिलस करते हुए उसे पुकारते हैं ( और कहते हैं) बिक अगर तू हमको इससे चा ले तो हम अवश्य शुक्र करने वाले न जाएगेँ। बिफर ज वह उनको चा लेता है, तो वे तुरंत ही Xमीन में नाहक़ बिवद्रोह करने लगते हैं। ऐ लोगो! ये तुम्हारा बिवद्रोह

तुम्हारे लिलए व ाल होने वाला है। (यह) दुबिनया की जिXदंगी के कुछ फायदे हैं, बिफर हमारे पास ही तुमको आना है, तो हम तुम्हारा सारा बिकया हुआ तुमको तला देंगे।" 25 एक अन्य स्थान में सव;शलिGमान अल्लाह ने फ़रमाया ह ै : " और ज उनपर मौजें साय ानों की

तरह छा जाती हैं, तो वे दीन को अल्लाह ही के लिलए खालिलस करके उसे पुकारने लगते हैं। बिफर ज वह उन्हें चाकर थल की ओर लाता है, तो उनमें से कुछ संतुलन पर रहते हैं और हमारी आयतों का इनकार वही करते हैं, जो बिवश्वासघाती और नाशुके्र हैं।" 26

यह पूज्य, जिजसने ब्रह्माण्ड को अनल्किस्तत्व से अल्किस्तत्व में लाया, मनुष्य को ेहतरीन रूप में पैदा बिकया, उसकी बिफ़तरत ( प्रकृबित व स्वभाव) में अपनी उपासना और अपने प्रबित समप;ण को बि ठा दिदया, इन्सानी बिववेक उसकी रु ूबि यत और उसकी उलूबिहयत की

गवाही देता है और सभी समुदाय उसकी रु ूबि यत को मानने पर सहमत ह ैं . . . उस पूज्य का अपनी रु ूबि यत व उलूबिहयत में अकेला होना Xरूरी है। चुनांचे जिजस प्रकार पैदा करने में कोई उसका शरीक नहीं है, उसी तरह उसकी इ ादत में भी कोई उसका साझेदार नहीं है। इस ात के प्रमाण ड़ी संख्या में मौजूद हैं :

1- इस ब्रह्माण्ड में केवल एक ही पूज्य है, वही पैदा करने वाला और रोXी देने वाला है तथा वही लाभ पहँुचाता है और हाबिन से चाता है। अगर इस ब्रह्माण्ड में कोई दूसरा भी पूज्य होता तो उसका भी कोई काम, रचना तथा आदेश होता और दोनों में से कोई

भी दूसरे पूज्य की साझेदारी को पसंद न करता। 27 साथा ही Xरूर ही दोनों में से एक को दूसरे पर अधिEपत्य प्राप्त होता, ज बिक मग़लू का पूज्य होना संभव नहीं है, ल्किल्क गालिल ही सच्चा पूज्य है और उसकी इ ादत में कोई उसका शरीक नहीं है, जिजस तरह

बिक उसकी रु ूबि यत में उसका कोई साझेदार नहीं है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया ह ै : “ अल्लाह ने अपने लिलए कोई संतान नहीं नाया और न ही उसके साथ कोई और पूज्य है, वना; हर पूज्य अपनी मखलूक को लिलए- लिलए बिफरता और हर एक दूसरे पर ऊँचा

होने की कोलिशश करता, जो गुण यह ताते हैं बिक अल्लाह उन से पाक है।" 28

22 सूरा अल-अंक ूत, आयत संख्या : 61-63।23 सूरा अल-ज�ख़रुफ़, आयत संख्या : 9।24 * अधिEक जानकारी के लिलए इमाम मुहम्मद बि न अब्दुल वह्हा की पुस्तक बिकता अत- तौहीद देखी जा सकती है। [25] सूराअX-ज�मर, आयत संख्या : 8।25 सूरा यूनुस, आयत संख्या : 22, 23।26 सूरा लुक़मान, आयत संख्या : 32।27 देखिखए : शरहुल अक़ीदा अत्तहाबिवया, पृष्ठ : 39।28 सूरा अल-मोधिमनून, आयत संख्या : 92।

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2- इ ादत का हकदार केवल अल्लाह है, जो आसमानों और Xमीन का मालिलक है। क्योंबिक मनुष्य केवल उसी पूज्य की बिनकटता

प्राप्त करता है, जो उसे लाभ दे सके और उसकी हाबिन को दूर कर सके और उससे ुराई और बिफत्नों को हटा सके। याद रहे बिक इन कामों को केवल वही कर सकता है, जो आसमानों और Xमीन और उनके ीच की चीXों का मालिलक हो। अगर उसके साथ दूसरे पूज्य भी होते, जैसा बिक मुक्षि_कों का कहना है तो न्दे अवश्य वह रास्ते अपनाते जो सच्चे ादशाह अल्लाह की उपासना की तरफ

पहँुचाने वाले हैं ; क्योंबिक अल्लाह के अलावा पूजे जाने वाले ये सभी लोग (स्वयं) अल्लाह की इ ादत करते थे और उसकी बिनकटता प्राप्त करते थे। अत : जो भी व्यलिG उस अल्किस्तत्व की बिनकटता चाहता है जिजसके हाथ में लाभ व हाबिन है, तो उसके लिलए शोक्षिभत है

बिक वह उस सच्चे पूज्य की इ ादत करे जिजसकी इ ादत आसमानों और Xमीन और उसके अंदर की सभी चीजें करती हैं, जिजनमें अल्लाह को छोड़कर पूजे जाने वाले ये पूज्य भी हैं। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : “ आप कह दीजिजए, अगर उसके साथ हुत-से

पूजा पात्र होते, जैसा बिक ये कहते हैं, तो अवश्य वह अ तक अश; के मालिलक का रास्ता तलाश कर लेते।" 29 सच्चाई तलाश करने वाले को अल्लाह तआला का यह फरमान पढ़ना चाबिहए : " आप कह दीजिजए! अल्लाह के अबितरिरG जिजन- जिजन का तुम्हें भ्रम है

स को पुकार लो, न उनमें से बिकसी को आकाशों तथा Eरती में से एक कण का अधिEकार है न उनका उन में कोई भाग है और न उनमें से कोई अल्लाह का सहायक है। और लिसफारिरश भी उसके पास कुछ लाभ नहीं देती लिसवाय उनके जिजनके लिलए वह आज्ञा दे

दे।" 30 कुरआन की ये आयतें चार ातों के द्वारा अल्लाह के अलावा से दिदल के सं ंE को काट देती हैं : पहली ात : ये साझेदार अल्लाह के साथ एक कण के भी मालिलक नहीं हैं और जो कण भर चीX का भी मालिलक न हो वह न तो

लाभ दे सकता है न हाबिन पहँुचा सकता है, तथा वह इस ात का भी अधिEकारी नहीं बिक वह पूज्य ने या अल्लाह का साझेदार हो। ल्किल्क स्वयं अल्लाह ही उनका मालिलक है और वह अकेला ही उनपर बिनयंत्रण रखता है। दूसरी ात : वे आसमानों और जमीन में से बिकसी भी चीज के मालिलक नहीं हैं और उनकी उनमें कण रा र भी साझेदारी नहीं है। तीसरी ात : अल्लाह का उसकी मखलूक में से कोई मददगार नहीं है, ल्किल्क अल्लाह ही उनकी ऐसी चीXों पर मदद करता है, जो उनको लाभ पहँुचाती हैं और हाबिनकारक चीजों को उनसे दूर करता है। क्योंबिक वह उनसे पूरे तौर पर ेबिनयाज है, ज बिक लोगों को अपने पालनहार की जरूरत है। चौथी ात : ये साझेदार अल्लाह के पास अपने मानने वालों के लिलए लिसफारिरश करने के मालिलक नहीं हैं और न ही उन्हें इसकी आज्ञा

दी जाएगी। अल्लाह तआला केवल अपने औलिलया (दोस्तों) को ही लिसफारिरश करने की आज्ञा देगा और ये औलिलया केवल उन्हीं के लिलए लिसफारिरश करेंगे जिजनके कथन, कम; और आस्था (अकीदे) से अल्लाह खुश होगा। 31

3- सव;संसार के मामले का व्यवस्थिस्थत होना और उसका अपने मामले को मX ूत व सुदृढ़ रखना इस ात का स से ड़ा प्रमाण है बिक इसका प्र ंEक व बिनयंत्रक एक ही पूज्य, एक ही शासक और एक ही पालनहार (र ) है, जिजसके अलावा मखलूक (सृधिष्ट) का कोई अन्य पूज्य नहीं है और उसके अलावा उनका कोई पालनहार नहीं है। जिजस प्रकार इस ब्रह्माण्ड का दो खालिलक (स्रष्टा) होना

असंभव है, उसी प्रकार दो पूज्यों का होना भी असंभव है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " अगर इन दोनों में अल्लाह के अलावा कई पूज्य होते तो वे दोनों नष्ट हो जाते।" 32 अगर मान लिलया जाए बिक आसमान और जमीन में अल्लाह के अलावा कोई दूसरा भी पूज्य है, तो वह दोनों नष्ट हो जाते और बिवनाश का कारण यह है बिक अगर अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य भी होता , तो आवश्यक

रूप से उनमें से हर एक बिनरंकुश होने और बिनयंत्रण करने पर सक्षम होता और उस समय दोनों में बिववाद, लड़ाई व झगड़ा होता और इस कारण बि गाड़ पैदा होता। 33 ज शरीर के लिलए असंभव है बिक उसका प्र ंEक दो रा र की आत्माएँ हों, और यदिद ऐसा होता तो वह नष्ट- भ्रष्ट हो जाता, और यह असंभव है, तो बिफर इस ब्रह्माण्ड के ारे में इसकी कल्पना कैसे की जा सकती है, ज बिक वह इससे ड़ा है? 34

4- पैग़म् रों और सन्देशवाहकों की इस सं ंE में सव;सहमबित :

सार े समुदाय इस ात पर सहमत हैं बिक न ी और संदेशवाहक, लोगों में स से अधिEक ुजिद्धमान, स से पबिवत्र आत्मा वाले, नैबितकता में स से अचे्छ, अपनी प्रजा के लिलए स से अधिEक शुभचिचंतक, अल्लाह के उदे्दश्य को स से अधिEक जानने वाले और सीEे

माग; और सच्चे रास्ते की ओर स से अधिEक माग;दश;न करने वाले थे। क्योंबिक वे लोग अल्लाह से वह्य (प्रकाशना) प्राप्त करते थे, बिफर उसे लोगों तक पहँुचाते थे। सव;प्रथम न ी आदम अलैबिहस्सलाम से लेकर अंबितम न ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम तक सभी न ी और संदेशवाहक अपनी कौमों को अल्लाह पर ईमान लाने और उसके अलावा की इ ादत का परिरत्याग करने का आमंत्रण

देने पर सहमत हैं तथा इस ात पर एकमत हैं बिक वही सच्चा पूज्य है। अल्लाह तआला ने फरमाया है : " और हमने आपसे पहले जिजतने भी रसूल भेजे, स की तरफ यही वह्य की बिक मेरे अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं, ” तो तुम स मेरी ही इ ादत करो। 35 इसी

29 सूरा अल-इसरा, आयत संख्या : 42।30 सूरा स ा, आयत संख्या : 23, 24।31 देखिखए : कुर;तु ऊयून अल-मुवह्हिह्हदीन, लेखक : शैख अब्दुर;हमान बि न हसन रबिहमहुल्लाह पृष्ठ : 100।32 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 22।33 देखिखए : फतहुल क़दीर 3/403।34 देखिखए : धिमफ्ताहु दार अस- सआदह 1/260।35 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 25।

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तरह अल्लाह तआला ने नूह़ अलैबिहस्सलाम के ारे में फ़रमाया बिक उन्होंने अपनी क़ौम से कहा : "सुनो, तुम स केवल अल्लाह ही

की इ ादत करो, मुझे तो तुमपर दद;नाक दिदन के अXा का डर है।" 36 इसी तरह अल्लाह तआला ने अंबितम न ी मुहम्मद الله صلىوسلم के عليه ारे में फ़रमाया है बिक उन्होंने अपनी क़ौम से कहा : " आप कह दीजिजए बिक बिन: संदेह मेरी तरफ़ इस ात की वह्य की

गई है बिक तुम स का पूज्य केवल एक ही पूज्य है, तो क्या तुम भी उसकी आज्ञा का पालन करने वाले हो?" 37

यही पूज्य जिजसने ब्रह्माण्ड को अनल्किस्तत्व से अल्किस्तत्व प्रदान बिकया और उसको खू शानदार और उत्कृष्ट नाया, मनुष्य को ेहतरीन रूप में पैदा बिकया और उसको सम्मान दिदया, उसकी प्रकृबित में अल्लाह की रु ूबि यत और उसकी उलूबिहयत की स्वीकृबित को बि ठा

दिदया, उसके मन को ऐसा नाया बिक उसे अपने उत्पक्षित्तकता; के प्रबित समर्तिपंत हुए और उसके माग; का अनुसरण बिकए बि ना स्थिस्थरता नहीं धिमलती, उसकी आत्मा पर यह अबिनवाय; कर दिदया बिक उसे उसी समय शांबित धिमलती है, ज वह अपने पैदा करने वाले से लगाव रखे और अपने स्रष्टा के साथ संपक; में रहे और उसका संपक; उसके उसी सीEे माग; के माध्यम से ही हो सकता है , जिजसका उसके

सम्माबिनत सन्देष्टाओं ने प्रसार व प्रचार बिकया है, तथा उसने मानव को ऐसी ुजिद्ध प्रदान की है जिजसका मामला उसी समय ठीक-ठाक रह सकता और वह संपूण; रूप व सुचारू ढंग से अपना काम कर सकती है, ज वह अपने स्वामी व पालनहार पर ईमान ले आए।

अत: ज प्रकबित बिवशुद्ध होगी, आत्मा शांत होगी, मन स्थिस्थर होगा और ुजिद्ध अपने पालनहार में बिवश्वास रखने वाली होगी, तो उसे लोक व परलोक में खुशी (सौभाग्य), सुरक्षा और शांबित प्राप्त होगी . . . । और अगर इन्सान ने इसका इंकार कर दूसरी चीX तलाश

की, तो वह बिवचलिलत और परेशान हाल होकर जीवन बि ताएगा, दुबिनया की घादिटयों में भटकता रहेगा और उसके देवताओं के ीच बिवतरिरत और बिवभाजिजत रहेगा, उसे यह समझ न आएगी बिक कौन उसको लाभ पहँुचा सकता है और कौन उससे हाबिन को दूर कर

सकता है। तथा इस उदे्दश्य से बिक बिवश्वास हृदय में स्थाबिपत हो जाए और कुफ़ (अबिवश्वास) की कुरूपता स्पष्ट व उजागर हो जाए, अल्लाह ने इसका एक उदाहरण यान बिकया है। क्योंबिक उदाहरण से ात जल्दी समझ में आती है। अल्लाह ने इस सं ंE में दो आदधिमयों के ीच तुलना की है। एक आदमी वह है जिजसका मामला हुत- से देवताओं के ीच बिवभाजिजत है और दूसरा आदमी वह है

जो केवल अपने एक पालनहार की इ ादत करता है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया : " अल्लाह तआला उदाहरण दे रहा है बिक एक वह आदमी जिजसमें हुत- से आपस में झगड़ा रखने वाले साझेदार हैं, और दूसरा वह आदमी जो केवल एक ही का सेवक है। क्या ये दोनों रा र हैं? सभी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिलए हैं, ल्किल्क उनमें से अधिEकतर लोग समझते नहीं।" 38 अल्लाह तआला एक मुवह्हिह्हद

(एकेश्वरवादी) न्दे और एक मुक्षि_क (अनेकेश्वरवादी) न्दे का उदाहरण दो गुलामों (दासों) के माध्यम से यान कर रहा हँू। वह ता रहा है बिक एक गुलाम ऐसा है, जिजसके मालिलक हुत- से साझेदार हैं, जो आपस में उसके ारे में लड़ते रहते हैं तथा उनमें से हर एक का उसके लिलए एक बिनद�श है और उनमें से हर एक की तरफ़ से उसके लिलए एक काम है। वह उनके ीच उलझन में पड़ा रहता है और बिकसी एक तरीके पर स्थिस्थर नहीं रह पाता और न ही एक माग; पर कायम रह पाता है। वह उनकी क्षिभन्न- क्षिभन्न और अंतर्तिवरंोEी

इच्छाओं को पूरा करने पर भी सक्षम नहीं है, जिजसने उसकी वृक्षित्तयों और उसकी शलिGयों को तोड़कर रख दिदया है। ज बिक एक गुलाम वह है, जिजसका केवल एक ही मालिलक है और वह अच्छी तरह जानता बिक वह उससे क्या चाहता है और उसे बिकस चीX की

जिXम्मेदारी सौंपेगा। अत: वह आराम से एक स्पष्ट माग; पर स्थिस्थर है। Xाबिहर सी ात है बिक ये दोनों रा र नहीं हो सकते। क्योंबिक दूसरा दास एक ही मालिलक के अEीन है और स्थिस्थरता, ज्ञान और बिवश्वास से लाभान्विन्वत हो रहा है, ज बिक दूसरा कई झगड़ालू

मालिलकों का गुलाम (दास) है। इसलिलए वह परेशान और चिचंबितत है, बिकसी भी हाल में उसे चैन व शांबित नहीं धिमलती और वह उनमें से एक को भी खुश नहीं रख पाता, स को खुश करना तो दूर की ात है । अ ज बिक मैंने अल्लाह के अल्किस्तत्व, उसकी रु ूबि यत और उसकी उलूबिहयत को इंबिगत करने वाले प्रमाणों को स्पष्ट कर दिदया है,

अच्छा होगा बिक हम उसके इस ब्रह्माण्ड और मनुष्य की रचना करने की जानकारी प्राप्त करें और उसके अंदर उसकी बिहक्मत (तत्वदर्शिशंता) व रहस्य को तलाश करें ।

ब्रह्माण्ड की रचना अल्लाह सव;शलिGमान ने इस ब्रह्माण्ड को उसके आसमानों, जमीनों, तारों, आकाश-गंगाओं, समुद्रों, पेड़ों और अन्य सभी जीवों

समेत अनल्किस्तत्व से अल्किस्तत्व प्रदान बिकया है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया ह ै : " आप कह दीजिजए बिक क्या तुम उस अल्लाह का इन्कार करते हो और उसके लिलए साझेदार नाते हो, जिजसने दो दिदनों में Xमीन पैदा कर दी? वह सारे संसार का र है। और उसने Xमीन में उसके ऊपर से पहाड़ गाड़ दिदए और उसमें रकत रख दी और उसमें उनके आहार का प्र ंE भी कर दिदया, केवल चार दिदनों

में, पूरा- पूरा जवा है प्रश्न करने वालों के लिलए। बिफर वह आसमान का इरादा बिकया, और वह Eुआँ था, तो उसने उनसे और Xमीन से कहा बिक तुम दोनों आओ, खुशी से या नाखुशी से। दोनों ने कहा हम खुशी से उपस्थिस्थत हैं। तो उसने दो दिदनों में सात आसमान ना दिदए और हर आसमान में उसके उलिचत (ही) हुक्म भेज दिदए और हमने दुबिनयावी आसमान को लिचराग़ों से सजा दिदया और देख-भाल

बिकया। यह तद ीर अल्लाह की है जो ग़ालिल जानने वाला है।" 39

एक अन्य स्थान में उसने कहा है : " क्या अबिवश्वासी लोगों ने नहीं देखा बिक आसमान और Xमीन एक साथ धिमले हुए थे, बिफर हम ने उनको अलग बिकया और हर जीबिवत चीX को हमने पानी से पैदा बिकया? क्या ये लोग बिफर भी ईमान नहीं लाते? और हमने Xमीन में

36 सूरा हूद, आयत संख्या : 2।37 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 108।38 सूरा अX-ज�मर, आयत संख्या : 29।39 सूरा फु़स्थिस्सलत, आयत संख्या : 9-12।

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पहाड़ ना दिदए ताबिक वह उनको बिहला न सके और हमने उनमें चौड़े रास्ते ना दिदए, ताबिक लोग राह पा सकें । और आसमान को

सुरक्षिक्षत छत भी हमने ही नाया है, लेबिकन लोग उसकी बिनशाबिनयों से मुँह मोडे़ हुए हैं।" 40

अल्लाह ने इस ब्रह्माण्ड की रचना महान उदे्दश्यों के तहत की है, जिजन्हें बिगनना आपके लिलए संभव नहीं है। चुनाँचे उसके हर भाग में महान बिहक्मतें और खुली बिनशाबिनयाँ हैं। अगर आप उसकी बिकसी एक बिनशानी पर भी बिवचार करें तो आप उसमें आ�य;जनक तथ्य पाएगेँ। आप पौEे में अल्लाह की आ�य;जनक कारीगरी को देखें, जिजसका एक पत्ता, एक तना या एक फल भी लाभ से खाली नहीं

होता, जिजसका इहाता करने में मानव ुजिद्ध असमथ; है। आप उन कमXोर पतले और हल्के तनों में जल Eाराओं को देखें बिक जिजन्हें बिनगाहें बिनहारने और घूरकर देखने के प�ात ही देख सकती हैं, भला वे बिकस तरह नीचे से ऊपर की ओर पानी को ले जाने में सक्षम

होते हैं! बिफर जल उन नालिलयों में उनकी स्वीकृबित और क्षमता के अनुसार चलता रहता है। बिफर ये नालिलयाँ अनेक भागों और शाखों में बिवतरिरत हो जाती हैं और वहाँ तक पहँुच जाती हैं बिक दिदखाई भी नहीं देतीं। बिफर आप पेड़ के गर्णिभंत होने और उसके उसी प्रकार एक

दशा से दूसरी दशा की ओर दलने पर बिवचार करें, जिजस प्रकार बिक दृधिष्ट से ओझल भू्रण की हालत दलती है। चुनाँचे आप उसे एक नग्न लकड़ी देखते हैं, जिजसपर कोई वस्त्र नहीं होता। बिफर उसका पालनहार व स्रष्टा उसे पक्षित्तयों का संुदर वस्त्र पहना देता है। बिफर उसमें उसके कमXोर गभ; को प्रकट करता है, ज बिक उसकी सुरक्षा के लिलए और उस कमXोर फल के लिलए वस्त्र के तौर पर उसकी

पत्ती को बिनकाल चुका होता है, ताबिक वह उसके द्वारा सद¡, गम� और आपदाओं से रक्षा और चाव हालिसल करे। बिफर अल्लाह उन फलों तक उनकी जीबिवका और उनका आहार उनके तनों और नालिलयों के माध्यम से पहँुचाता है, तो वे उससे अपना आहार लेते हैं, जिजस प्रकार बिक च्चा अपनी माँ के दूE से अपना आहार लेता है। बिफर वह उसका पालन- पोषण करता है, यहाँ तक बिक वे पूरी तरह

से परिरपक्व हो जाते हैं। बिफर वह उस ेजान लकड़ी से स्वादिदष्ट तथा नम; फल बिनकालता है। तथा यदिद आप पृथ्वी को देखें और इस ात पर ध्यान दें बिक वह कैसे पैदा की गई है; तो आप उसे उसके पैदा करने वाले और उसकी रचना करने वाले की स से ड़ी बिनशाबिनयों में से पाएगेँ। अल्लाह तआला ने उसे बि छौना तथा रहने की जगह नाया है, उसे अपने न्दों के अEीन कर दिदया है, उसमें उनके लिलए जीबिवकाए,ँ आहार और जीवनयापन के साEन पैदा कर दिदए हैं और उसमें रास्ते ना

दिदए हैं, ताबिक वे अपनी आवश्यकताओं और जरूरतों के लिलए उसमें एक जगह से दूसरी जगह जाते रहें। साथ ही उसे पहाड़ों द्वारा मज ूत व ठोस कर दिदया है और उन्हें कील के समान ना दिदया है, ताबिक बिहलने से उसकी सुरक्षा हो सके। अल्लाह ने उसके बिकनारों

को बिवस्तृत कर उसे रा र कर दिदया है और उसे फैलाया और बि छा दिदया। उसने पृथ्वी को जिXन्दों के समेटने वाली नाया , जिजन्हें वह अपनी पीठ पर समेटे रहती है। साथ ही उसे मुद8 को भी समेटने वाली नाया, जिजन्हें वह उनके मर जाने पर अपने पेट में समेट लेती

है। इस तरह उसकी पीठ जिXन्दों का आवास और मुद8 का बिनवास है। बिफर इस खगोल को देखिखए जो अपने सूय;, चाँद, तारों और ुज8 समेत चक्कर लगा रहा है। वह बिकस तरह सुव्यवस्थिस्थत अंदाX में लगातार इस ब्रह्माण्ड का चक्कर लगा रहा है और कैसे रात और दिदन, मौसम और गम� व सद¡ का दलना बिनरंतर जारी ह ै . . . तथा इसके अंदर पृथ्वी पर पाए जाने वाले अनेक प्रकार के

जानवरों और पौEों के बिकतने बिहत और लाभ बिनबिहत हैं। बिफर आप आकाश की रचना पर बिवचार करें और ार- ार उसपर अपनी बिनगाह दौड़ाए।ँ आप उसे उसकी ऊँचाई, व्यापकता और

स्थिस्थरता में स से ड़ी बिनशाबिनयों में से पाएगँे। चुनाँचे उसके नीचे न तो कोई स्तंभ है, न उसके ऊपर कोई ंEन है। ल्किल्क वह उस अल्लाह की शलिG से दिटका हुआ है, जो आकाश और पृथ्वी को टलने से थामे हुए है . . . .

अगर आप इस ब्रह्माण्ड, उसके बिवक्षिभन्न भागों के गठन और उसकी ेहतरीन व्यवस्था, जो बिक उसकी रचना करने वाले की संपूण; क्षमता, पूण; ज्ञान, संपूण; बिहक्मत और संपूण; दया को इंबिगत करती है, को देखें, तो आप उसे उस ने हुए घर की तरह पाएगँे जिजसमें

उसके सभी उपकरण, साEन तथा Xरूरत की सभी चीजें तैयार रखी गई हैं। चुनाँच आकाश उसका छत है जो उसके ऊपर ुलंद है, जमीन बि छौना, रहने की जगह, फ़श; और रहने वालों के लिलए दिठकाना है। सूय; व चाँद दो दीपक हैं जो उसमें रौशन रहते हैं। लिसतारे उसके लिचराग और अलंकरण हैं, जो इस दुबिनया के बिवक्षिभन्न रास्तों में चलने वालों के लिलए माग;दश;क हैं। पृथ्वी में लिछपे हुए जवाहरात व खबिनज तैयार खXाने की तरह हैं, जिजनमें से हर चीX उसके उस काम के लिलए है, जिजसके लिलए वह उपयुG है, अनेक प्रकार के पौEे उसकी Xरूरतों के लिलए तैयार हैं। क्षिभन्न- क्षिभन्न प्रकार के जानवर उसके बिहतों की सुरक्षा में लगे हुए हैं। उनमें से कुछ सवारी के लिलए,

कुछ दूE के लिलए, कुछ आहार के लिलए, कुछ वस्त्र के लिलए और कुछ पहरेदारी के लिलए हैं. . . बिफर, मनुष्य को उसमें अधिEकृत राजा की तरह ना दिदया गया है, जो अपने काय; व आदेश के द्वारा उसका बिनयंत्रण करता है।

अगर आप इस समू्पण; ब्रह्माण्ड या इसके बिकसी भाग पर चिचंतन- मनन करें तो आप आ�य;जनक तथ्य पाएगेँ। अगर आप इसके ारे में पूरी गहराई से सोचें, अपने प्रबित न्याय और ईमानदारी से काम लें और तक़लीद के ंEन से मुG होकर देखें, तो आपको पूरी तरह से बिवश्वास हो जाएगा बिक यह ब्रह्माण्ड मख़लूक़ है, जिजसे एक सव; ुजिद्धमान, सव;शलिGमान सव;ज्ञानी ने पैदा बिकया है। उसने इसे

ेहतरीन अनुमान के साथ आयोजिजत बिकया है और स से अचे्छ ढंग से व्यवस्थिस्थत बिकया है। साथ ही यह भी बिवश्वास हो जाएगा बिक दो स्रष्टाओं का होना असंभव है; ल्किल्क वास्तबिवक पूज्य मात्र एक है, जिजसके लिसवा कोई पूज्य नहीं है। अगर आकाश तथा पृथ्वी पर

अल्लाह के लिसवाय कोई दूसरा भी मा ूद होता, तो उसकी व्यवसथा चौपट हो जाती और उसके उसके बिहत ाधिEत हो जाते। अगर आप इस ब्रह्माण्ड को पैदा करने का _ेय उसके रचधियता के अलावा बिकसी और को देने पर अड़े हुए हैं, तो आप एक नदी पर

लगे हुए रहट के ारे में क्या कहेंगे, जिजसमें मX ूत यंत्र लगे हुए हैं, उसके सारे पुX8 को मX ूती से जोड़ा गया और उसके उपकरणों को इतने अचे्छ अंदाX से सेट बिकया गया है बिक देखने वाले को उसकी नावट और सेटिटंग में कोई कमी नXर नहीं आती। बिफर उसे उसे एक डे़ गीचे में सेट बिकया गया है, जिजसमें हर प्रकार के फल हैं और जिजसे वह उसकी आवश्यकता के अनुसार सींचने का काम

करता है। उस गीचे में एक व्यलिG बिनयुG है जो उसकी काट- छाँट करता है, अच्छी तरह देखभाल और रखवाली करता है और उसके तमाम बिहतों की रक्षा करता है। न उसमें कोई कमी रहने पाती है और न उसके फल र ाद हो पाते हैं। बिफर तोड़ने के समय

40 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 30,32 । सूरा अर- राद के आरंक्षिभक भाग को भी देखें।

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लोगों को उनकी आवश्यकताओं और Xरूरतों के अनुसार ाँटकर देता है। हर वग; को उसकी Xरूरत के मुताबि क़ देता है। यह

लिसललिससा हमेशा जारी रहता है। क्या आप यह समझते हैं बिक ये स अपने आप बि ना बिकसी बिनमा;ता, बि ना बिकसी अधिEकृत व्यलिG और बि ना बिकसी व्यवस्थापक के

हो गया है? क्या उस रहट और गीचे का अल्किस्तत्व अपने आप ही हो गया है? यह स बिकन बिकसी करने वाले और प्र ंEक के इते्तफ़ाक़ी तौर पर हो गया है? भला तलाइए! अगर ऐसा हो जाए तो आपका बिववेक इसके ारे में क्या कहेगा और बिकस चीज की

ओर आपका माग;दश;न करेगा? 41

ब्रह्माण्ड की रचना की तत्र्वदर्शिश<ता ब्रह्माण्ड की रचना पर इस चिचंतन- मनन के ाद, हमारे लिलए अच्छा होगा बिक हम कुछ उन बिहकमतों (तत्वदर्शिशंताओं) का उल्लेख करें,

जिजनके कारण अल्लाह तआला ने इन महान सृधिष्टयों और स्पष्ट बिनशाबिनयों को पैदा बिकया है । कुछ बिहकमतें बिनम्नलिलखिखत हैं :1. कायनात को मनुष्य के अEीन करना : ज अल्लाह तआला ने यह बिनण;य बिकया बिक इस Eरती पर एक खलीफा (उत्तराधिEकारी) नाए, जो इसमें उसकी इ ादत करे और इस Eरती को आ ाद करे; तो इसी कारण उसने इन सारी चीXों को पैदा बिकया, ताबिक

उसकी ज़िजंदगी ेहतर अंदाX में व्यतीत हो और उसकी दुबिनया व आखिखरत का मामला अच्छा रहे। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " और उसने आसमानों और Xमीन की तमाम चीजों को अपनी ओर से तुम्हारे वश में कर दिदया।" 42 एक अन्य स्थान में अल्लाह

तआला ने फ़रमाया है : “ अल्लाह वह है, जिजसने आसमानों और जमीन को पैदा बिकया है और आसमान से पानी रसाकर, उसके माध्यम से तुम्हारे आहार के लिलए फल बिनकाले हैं। और नावों को तुम्हारे वश में कर दिदया है बिक वे समुद्र में उसके हुक्म से चलें बिफरें ,

और उसी नेे नदिदयाँ तुम्हारे वश में कर दी हैं। और उसी ने सूय; तथा चंद्रमा को तुम्हारे अEीन कर दिदया है बिक वे लगातार चल रहे हैं। और रात व दिदन को भी तुम्हारे काम में लगा रखा है। और उसी ने तुम्हें तुम्हारी मुँह माँगी सभी चीXों में से दे रखा है। अगर तुम

अल्लाह की नेमतों की बिगनती करना चाहो तो उन्हें बिगन भी नहीं सकते। ेशक मनुष्य ड़ा Xालिलम और नाशुक्रा है।" 43

2. आसमान और Xमीन और ब्रह्माण्ड की दूसरी सभी चीजें अल्लाह की रू ूबि यत ( एकमात्र पालनहार होने) के साक्ष्य और उसके एकत्व की बिनशाबिनयाँ साबि त हों : क्योंबिक इस ब्रह्माण्ड में स से महान चीX उसकी रु ूबि यत को स्वीकारना और उसकी वहदाबिनयत

(एकत्व) में बिवश्वास रखना है। बिफर, चँूबिक यह स से ड़ी चीज है; इसलिलए अल्लाह तआला ने इसपर स से मज ूत प्रमाण स्थाबिपत बिकए हैं और इसके लिलए स से ड़ी बिनशाबिनयाँ खड़ी की हैं तथा इसके लिलए स से सशG तक; दिदए हैं। चुनाँचे अल्लाह सव;शलिGमान

ने आकाश व Eरती और शेष मौजूद चीXों को स्थाबिपत बिकया है, ताबिक वे इसके साक्षी न जाए।ँ इसीलिलए कुरआन में अधिEकतर यह वण;न धिमलता है : “ और उसकी बिनशाबिनयों में से है।" जैसा बिक अल्लाह के इस फरमान में है : " और उसकी बिनशाबिनयों में से आसमानों

और Xमीन को पैदा करना है।" “ और उसकी बिनशाबिनयों में से तुम्हारा रात व दिदन को सोना भी है।" " और उसकी बिनशाबिनयों में से है बिक वह तुम्हें डराने और उम्मीदवार नाने के लिलए बि जलिलयाँ दिदखाता है।" " और उसकी बिनशाबिनयों में से है बिक आसमान और जमीन

उसके आदेश से कायम हैं।" 44

3. यह सारी चीXें पुनज;न्म ( मरने के ाद दु ारा ज़िजंदा होने) का साक्ष्य न सकें : ज जीवन के दो भेद हैं, एक जीवन दुबिनया में है और दूसरा जीवन आखिखरत में और बिफर आखिखरत का जीवन ही वास्तबिवक और असली जीवन है, जैसा बिक अल्लाह तआला ने

फ़रमाया है : " यह दुबिनया का जीवन तो केवल खेल- कूद है और आखिखरत का घर ही असली जिजदंगी है, अगर ये जानते।" 45 क्योंबिक वही दले और बिहसा का स्थान है तथा इसलिलए बिक वहाँ पर स्वग;वासी अनन्तकाल तक आनंद व परम सुख में रहेंगे और नरकवासी

हमेशा यातना में रहेंगे।बिफर, चँूबिक मनुष्य इस घर में उसी समय पहुँच सकता है, ज वह मर जाए और मरने के ाद पुन: जीबिवत बिकया जाए; इसलिलए उन

सभी लोगों ने इसका इन्कार कर दिदया, जिजनका सं ंE अपने र से कटा हुआ है, जिजनकी प्रकृबित भ्रष्ट हो गई है और जिजनकी ुजिद्ध का क्षय हो गया है। इन्हीं सारी ातों के मद्दनXर अल्लाह तआला ने इसके हुत- से तक; स्थाबिपत कर दिदए हैं और अनबिगनत प्रमाण

प्रस्तुत बिकए हैं, ताबिक आत्माएँ दो ारा ज़िजंदा होने में बिवश्वास कर सकें और दिदलों को उसपर यक़ीनन हो जाए; क्योंबिक बिकसी चीX की पुन: रचना करना, उसे पहली ार रचना करने से अधिEक सरल है, ल्किल्क आसमानों और Xमीन को पैदा करना मनुष्य को दो ारा

पैदा करने से कहीं अधिEक ड़ी ात है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " और वही वह अल्लाह है, जो पहली ार पैदा करता है, बिफर उसे वह दो ारा (पैदा) करेगा और यह उसके लिलए अधिEक आसान है।" 46 एक अन्य स्थान में उसने कहा है : " आसमानों और

Xमीन को पैदा करना लोगों को पैदा करने से ज्यादा ड़ी ात है।" 47 एक और जगह फरमाया : " अल्लाह वह है जिजसने आसमानों

41 ये पैराग्राफ़ " धिमफ्ताहु दार अस-सआदा" 1/251-269 से बिवक्षिभन्न जगहों से लिलया गया है।42 सूरा अल-जालिसया, आयत संख्या : 13।43 सूरा इ राहीम, आयत संख्या : 32-34।44 सूरा अर-रूम, आयत संख्या : 22-25।45 सूरा अल-अंक ूत, आयत संख्या : 64

46 सूरा अर-रूम, आयत संख्या : 27।47 सूरा ग़ाबिफ़र, आयत संख्या : 57।

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को ग़ैर ऐसे स्तंभों के ुलंद कर रखा है बिक तुम जिजन्हें देख सको, बिफर वह अश; पर मुस्तवी हो गया, और उसी ने सूय; तथा चाँद को

अEीन कर रखा है। हर एक बिनक्षि�त काल तक के लिलए चल रहा है। वही काम की व्यवस्था करता है। वह अपनी बिनशाबिनयाँ साफ - ” साफ यान कर रहा है बिक तुम अपने र से धिमलने पर बिवश्वास कर सको। 48

इन ब के बाद, हे मनुष्य! ज इस समू्पण; ब्रह्माण्ड को तुम्हारे अEीन कर दिदया गया है और ज उसकी बिनशाबिनयाँ और लक्षण तुम्हारी नXरों के सामने प्रमाण

व साक्ष्य नाकर खडे़ कर दिदए गए हैं, जो इस ात की गवाही दे रहे हैं बिक अल्लाह के अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझेदार नहीं और ज तुम्हें पता चल गया बिक तुम्हारा दो ारा जीबिवत होना और और मरने के ाद बिफर से जीबिवत

करके उठाया जाना, आसमानों और Xमीन के पैदा करने से ज्यादा आसान है, और तुम अपने र से धिमलने वाले हो, जिजसके ाद वह तुमसे तुम्हारे कम8 का बिहसा लेगा, साथ ही ज तुमने जान लिलया बिक यह सम्पूण; ब्रह्माण्ड अपने पालनहार की उपासना कर रहा

है और अल्लाह की पैदा की हुई हर चीX अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पाकी यान कर रही है , जैसा बिक अल्लाह तआला ने फ़रमाया ह ै : " आसमानों और जमीन की सभी चीजें अल्लाह की पाकी यान करती हैं।" 49 और उसकी महानता व

प्रबितष्ठा को सजदा करती है, जैसा बिक सव;शलिGमान अल्लाह ने फरमाया है : " क्या तुम नहीं देख रहे हो बिक अल्लाह के सामने सजदे में हैं स आसमानों वाले और स Xमीनों वाले, तथा सूय; और चंद्रमा, तारे और पहाड़, पेड़ और जानवर, और हुत- से मनुष्य भी? हाँ हुत- से वे भी हैं जिजनपर अXा की ात पक्की हो चुकी है।" 50 ल्किल्क ये ब्रह्माण्ड भी अपने बिहसा से अपने पालनहार की

प्राथ;ना कर रही है, जैसा बिक अल्लाह तआला ने फ़रमाया ह ै : " क्या आपने नहीं देखा बिक अल्लाह की पाकी यान करती हैं आसमानों और Xमीन की तमाम चीजें और लिचबिड़याँ भी कतार लगाकर। हर एक को अपनी प्राथ;ना (नमाX) और तस ीह़ मालूम

है।" 51

बिफर, ज तुम्हारा शरीर अपनी व्यवस्था में अल्लाह की नाई तक़दीर (अनुमान) और उसकी तद ीर (प्र ंE) के अनुसार चलता है। चुनाँचे दिदल, फेफडे़, जिजगर और अन्य सभी अंग अपने पालनहार के लिलए समर्तिपंत हैं और अपने नेतृत्व को अपने पालनहार को सौंपे

हुए हैं . . . ऐसे में क्या तुम्हारा वैकस्थिल्पक बिनण;य, जिजसमें तुम्हें अपने पालनहार पर ईमान लाने और उसके साथ कुफ़्र करने में से बिकसी एक को चुनने का अस्थि¦तयार दिदया गया है, उस शुभ रास्ते से अलग और बिवचलिलत होना होना चाबिहए, जिजसपर तुम्हारे चारों

ओर का ब्रह्माण्ड ल्किल्क तुम्हारा शरीर भी कायम है।बिन: संदेह पूरी तरह समझ- ूझ रखने वाला इन्सान इस ात को पसंद नहीं करेगा बिक इस बिवशाल और महान ब्रह्माण्ड में एकमात्र वही

बिवचलिलत हो और स से अलग राह अस्थि¦तयार करे।

मनुष्य की रचना और उे म्मान प्रदान विकया जाना अल्लाह ने इस ब्रह्माण्ड में बिनवास करने योग्य एक मख़लूक़ पैदा करने का फैसला बिकया। वह मख़लूक़ इन्सान था। बिफर अल्लाह

पाक की बिह़कमत का तक़ाXा यह हुआ बिक वह पदाथ; जिजससे मनुष्य को पैदा करना था Xमीन हो। चुनाँचे उसने धिमट्टी से उसकी रचना की शुरूआत की । बिफर उसने उसका यह खू सूरत रूप नाया, जो मनुष्य को प्रदान बिकया गया है, बिफर ज वह सुंदर रंग-

रूप वाला न गया, तो उसमें अपनी ओर से रूह़ फँूक दी यानी प्राण डाल दिदया, जिजसके ाद वह एक ेहतरीन आकार वाला इन्सान न गया, जो सुनता और देखता है, चलता- बिफरता और ोलता है। बिफर, उसके पालनहार ने उसे अपने स्वग; में रखा और उसे वह

तमाम ातें लिसखाईं, जिजनकी उसे आवश्यकता थी, साथ ही उसके लिलए उस स्वग; की तमाम चीजों को जायX कर दिदया। अल त्ता, उसकी परीक्षा लेने के उदे्दश्य से उसे एक पेड़ से रोक दिदया। बिफर अल्लाह ने उसके पद और प्रबितष्ठा को उजागर करना चाहा और

अपने फ़रिरश्तों को उसके आगे सजदा करने का आदेश दिदया, तो सारे फ़रिरश्तों ने उसको सजदा बिकया। मगर इ लीस ने घमण्ड और हठ में आकर सजदा करने से इन्कार कर दिदया। जिजसके नतीजे में उसका र , अपने हुक्म को न मानने के कारण, उसपर नाराX हो गया और उसे अपनी रहमत से Eुतकार दिदया, क्योंबिक उसने उसके सामने घमण्ड दिदखलाया था। बिफर इ लीस ने अपने र से अपनी आयु को ढ़ाने का सवाल बिकया और यह बिक उसे क़यामत के दिदन तक छूट दे दी जाए, तो उसके र ने उसे छूट दे दी और क़यामत

के दिदन तक उसकी आयु ढ़ा दी। शैतान आदम से जलने लगा, क्योंबिक अल्लाह ने आदम अलैबिहस्सलाम और उनकी संतान को उसपर वरीयता दी थी। बिफर उसने अपने र की कसम खाकर कहा बिक वह आदम की सभी औलाद (संतान) को भटकाएगा और

वह उनके आगे से, पीछे से, उनके दाएँ से और ाएँ से उनके पास आएगा, लिसवाय अल्लाह के सच्चे ईशभय रखने वाले Eम;बिनष्ठ न्दों के, जो उससे सुरक्षिक्षत रहेंगे, क्योंबिक अल्लाह ने उनको शैतान के छल और चाल से चा लिलया है। अल्लाह ने आदम को शैतान

की चाल से चौकन्ना कर दिदया है। शैतान ने आदम और उनकी पत्नी ह़व्वा को हकाया, ताबिक उन दोनों को स्वग; से बिनकलवा दे और उनकी लिछपे हुए अंगों को जाबिहर कर दे। उसने उन दोनों से कसम खाकर कहा बिक मैं तुम्हारा शुभचिचंतक हूँ और अल्लाह ने तुम दोनों

को उस पेड़ से केवल इसलिलए रोका है बिक तुम दोनों फरिरश्ते या हमेशा रहने वाले न न जाओ।

48 सूरा अर-राद, आयत संख्या : 2।49 सूरा अल-जुमुआ, आयत संख्या : 1।50 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 18।51 सूरा अन-नूर, आयत संख्या 41।

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चुनाँचे उन दोनों ने उस पेड़ से खा लिलया, जिजससे अल्लाह ने रोका था। अल्लाह के हुक्म को न मानने पर जो स से पहली सजा उनको धिमली, वह यह थी बिक उनके अंग खुल गए। बिफर, उनके र ने उनको शैतान की चाल से सचेत करने की ात याद दिदलाई, तो आदम अलैबिहस्सलाम ने अपने र से ग़लती की क्षमा माँगी। चुनाँचे उसने उनको क्षमा कर दिदया, उनकी तौ ा क ूल कर ली, उनको

चुन लिलया, उनका माग;दश;न बिकया और आदेश दिदया बिक वह उस स्वग; से, जिजसमें वह रह रहे थे, Xमीन पर उतर जाए;ँ क्योंबिक वही उनका दिठकाना है और उसी में एक समय तक के लिलए उनके रहने- सहने की व्यवस्था है। उनको ताया बिक वह उसी से पैदा बिकए गए

हैं, उसी पर जिXदंगी बि ताएगेँ, उसी पर मरेंगे और बिफर उसी से उनको दो ारा ज़िजंदा कर उठाया जाएगा। चुनाँचे आदम और उनकी पत्नी हव्वा Xमीन पर उतर आए। बिफर उनकी नस्ल ढ़ने लगी। वे सभी अल्लाह की, उसके हुक्म के

अनुसार, इ ादत करते थे। क्योंबिक आदम अलैबिहस्सलाम अल्लाह के न ी थे। अल्लाह तआला ने हमें इस पूरी घटना से कुछ इस प्रकार अवगत बिकया है : " और हमने तुमको पैदा बिकया, बिफर हमने तुम्हारी शक्ल

नाई। बिफर हमने फ़रिरश्तों से कहा बिक आदम को सजदा करो, तो सभी ने सजदा बिकया। लिसवाय इ लीस के, वह सजदा करने वालों में शाधिमल नही हुआ। ( अल्लाह ने) कहा : बिकस चीX ने तुझे सजदा करने से रोका, ज बिक मैंने तुझे इसका हुक्म दिदया था? कहने

लगा : मैं इससे ेहतर हँू। तूने मुझको आग से पैदा बिकया है और इसको तूने धिमट्टी से पैदा बिकया है। अल्लाह ने कहा : तू यहाँ से उतर जा। तुझे कोई अधिEकार नहीं बिक तू यहाँ रहकर घमंड करे। तू बिनकल जा। ेशक तू Xलील लोगों में से है। उसने कहा : मुझको प्रलय

(क़यामत) के दिदन तक की छूट दीजिजए। अल्लाह ने कहा : तूझे छूट दे दी गई। उसने कहा : इस कारण बिक तूने मुझको धिEक्कार दिदया है, मैं उनके लिलए तेरे सीEे माग; पर ैठँूगा। बिफर उनपर हमला करँूगा उनके आगे से भी , पीछे से भी, दाएँ से भी और उनके ाएँ से

भी। और आप उनमें से अधिEकतर को शुक्र करने वाला न पाएगँे। अल्लाह तआला ने फ़रमाया बिक तू यहाँ से Xलील व रुस्वा होकर बिनकल जा। जो भी उनमें से तेरा कहा मानेगा, मैं अवश्य तुम स से नरक को भर दँूगा। और हमने हुक्म दिदया बिक ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी स्वग; में रहो। बिफर जहा ँ से चाहो, दोनों खाओ और इस पेड़ के पास कभी न जाना, वरना तुम Xालिलमों में से हो

जाओगे। बिफर शैतान ने उनके दिदलों में वसवसा डाला ताबिक उनकी लिछपी हुई जननांग को जाबिहर कर दे और उसने कहा : तुम्हारे र ने तुम दोनों को इस पेड़ से इसी लिलए रोका है बिक तुम कहीं फ़रिरश्ते हो जाओगे या हमेशा जीबिवत रहने वालों में से न जाओगे। और

उसने उन दोनों के सामने क़सम खाई बिक ेशक मैं तुम दोनों का शुभचिचंतक हँू। तो उसने उन दोनों को Eोखा देकर ( अपनी ातों में) उतार लिलया। तो जैसे ही उन दोनों ने पेड़ को चखा, दोनों की शम;गाह उनके लिलए Xाबिहर हो गईं। और दोनों अपने ऊपर स्वग; के पते्त

जोड़- जोड़ कर रखने लगे, और उनके र ने उनको पुकारा, क्या मैंने तुम दोनों को इस पेड़ से रोका नहीं था, और तुमसे यह नहीं कहा था बिक शैतान तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है? दोनों ने कहा : ऐ हमारे र , हमने अपने ऊपर ड़ा जुल्म बिकया है। अगर तू हमें क्षमा न देगा और हमपर दया न करेगा, तो सचमुच हम नुकसान उठाने वालो में से हो जाएगेँ। अल्लाह ने फ़रमाया बिक तुम नीचे

उतरो, तुम एक- दूसरे के दुश्मन हो और तुम्हारे लिलए Xमीन में रहने की जगह है और एक समय तक के लिलए फायदे का सामान है। फ़रमाया बिक तुमको वहीं जिXदंगी बि तानी है और वहीं पर मरना है और उसी में से बिफर बिनकाले जाओगे।" 52

आप इस मनुष्य के प्रबित अल्लाह की महान कारीगरी पर बिवचार करें बिक उसने इसे ेहतरीन रूप में पैदा बिकया और उसे सम्मान के सभी जोड़े पहनाए, जैसे- अक्ल, ज्ञान, यान, ोलने की शलिG, रूप, संुदर शक्ल, सज्जन वेशभूँषा, संतलुिलत शरीर, सोच-बिवचार और ग़ैर व बिफ़क्र के द्वारा जानकारी ग्रहण करने की क्षमता, और प्रबितधिष्ठत और उच्च नैबितकता, जैसे- नेकी, आज्ञाकारिरता और

आज्ञापालन ग्रहण करने की योग्यता आदिद प्रदान की। चुनाँचे आप बिवचार करें बिक उसकी उस हालत के ीच ज बिक वह माँ के पेट में वीय; के रूप में था और उसकी उस हालत के ीच ज बिक सदा रहने वाली जन्नतों में फरिरश्ते उसके सामने उपस्थिस्थबित दज; कराएगेँ,

बिकतना अंतर है? " सचमुच स से अच्छा पैदा करने वाले अल्लाह की Xात ड़ी रकत वाली है।" 53

अतः, दुबिनया एक गाँव है और मनुष्य उसका बिनवासी है। ज बिक सारी चीXें उसकी सेवा में व्यस्त और उसके बिहतों की रक्षा के लिलए प्रयासरत हैं। सभी चीजें उसकी सेवा और उसकी Xरूरतों की पूर्तितं में लगा दी गई हैं। चुनाँचे फ़रिरश्ते उसी के काम पर लगाए गए हैं

और वे रातदिदन उसकी बिहफ़ाXत करते हैं। वषा; और पौEों पर बिनयुG फ़रिरश्ते उसकी जीबिवका उपलब्ध कराने के लिलए प्रयासरत हैं और उसी के लिलए काम करते हैं। सारे ग्रह उसी के बिहतों की रक्षा के लिलए घूम रहे हैं। सूरज, चाँद और तारे उसके समय की गणना और उसके भोजन की व्यवस्था के लिलए चल रहे हैं। वायुमंडल भी अपनी हवा, ादल, पक्षिक्षयों और उसके अंदर मौजूद सभी चीXों

के साथ उसी के अEीन है। पृथ्वी की सतह पूरी की पूरी उसके अEीन है और उसकी बिहतों के लिलए पैदा की गई है। उसकी Xमीन और उसके पहाड़, उसके समुद्र और उसकी नदिदयाँ, उसके पेड़ और उसके फल, उसके पौEे और उसके जानवर और उसके अंदर

मौजूद सभी चीजें उसी के लिलए पैदा की गई हैं। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " अल्लाह वह है, जिजसने आसमानों और Xमीन को पैदा बिकया है और आसमान से पानी रसाकर उससे तुम्हारी रोXी के लिलए फल पैदा बिकए और नावों को तुम्हारे वश में कर दिदया है, ताबिक वे समुद्र में उसके आदेश से चलें बिफरें। उसी ने नदिदयाँ और नहरें तुम्हारे वश में कर दी हैं। और उसी ने सूय; तथा चंद्रमा को तुम्हारे अEीन कर दिदया है बिक वे लगातार चल रहे हैं। और रात व दिदन को भी तुम्हारे काम में लगा रखा है। और उसी ने तुम्हें तुम्हारी

मुँह माँगी सभी चीजों में से दे रखा है, और अगर तुम अल्लाह की नेमतें बिगनना चाहो तो तुम उन्हें पूरा बिगन भी नहीं सकते। ेशक इन्सान ड़ा Xालिलम और नाशुक्रा है।" 54 अल्लाह तआला ने इन्सान को जो सम्मान दिदया है, उसका एक पक्ष यह भी है बिक उसने

उसके लिलए उन सभी चीजों को पैदा बिकया जिजनकी उसे अपने सांसारिरक जीवन में आवश्यकता होती है, तथा उन साEनों को पैदा बिकया जिजनकी उसे आखिख़रत में सव�च्च पदों तक पहँुचने के लिलए आवश्यकता होती है। चुनाँचे उसकी तरफ अपनी बिकता ें उतारीं

और उसके पास अपने सन्देष्टा भेजे, जो उसके लिलए अल्लाह की शरीयत (Eम;बिवEान) को यान करते हैं और उसे उसकी ओर ुलाते हैं।

52 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 11, 25।53 सूरा अल-मोधिमनून, आयत संख्या : 14।54 धिमफ्ताहु दार अस- सआदह 1/327,328 । आयतें सूरा इ राहीम ( आयत संख्या : 32, 34) की हैं।

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बिफर अल्लाह ने उसके लिलए स्वयं उसी के शरीर स े - अथा;त आदम के शरीर से- एक पत्नी नाई, जिजससे वह सुकून और आराम

हालिसल करे। दरअसल यह उसकी प्राकृबितक -मानलिसक, ौजिद्धक और शरीरिरक- Xरूरतों की पूर्तितं के लिलए बिकया गया है, ताबिक वह उसके पास आराम, शांबित और स्थिस्थरता प्राप्त कर सके। क्योंबिक दोनों की शारीरिरक और मानलिसक संरचना में एक- दूसरे की चाहतों

तथा इच्छाओं का ख़याल रखा गया है, दोनों के धिमलाप से एक नई पीढ़ी की तैयारी को ध्यान में रखा गया है, दोनों के अंदर इस तरह की भावनाएँ रख दी गई हैं, इस रिरश्ते में आत्मा की शांबित, शरीर और दिदल की राहत, जीवन और जीवनयापन के लिलए स्थिस्थरता,

आत्माओं और अंतरात्माओं का प्रेम तथा समान रूप से पुरुष और नारी के लिलए संतुधिष्ट रखी गई है। अल्लाह तआला ने मानव जाबित के ीच ईमान वालों को चुन लिलया है, उन्हें अपनी दोस्ती का पात्र नाया ह ै और उन्हें अपनी

आज्ञाकारिरता के कामों में लगाया है तथा वे उसकी शरीयत (Eम;बिवEान) के अनुसार काम करते हैं, ताबिक स्वग; में अपने र के पास रहने के योग्य न सकें । बिफर उनमें से सदाचारिरयों, शहीदों, नबि यों और रसूलों को चुन लिलया है और उनको इस दुबिनया में स से ड़ी नेमत प्रदान की है, जिजससे दिदलों को आनंद धिमलता है। यह नेमत है, अल्लाह की उपासना, उसकी आज्ञाकारिरता और उससे प्राथ;ना

की नेमत। उन्हें बिवशेष रूप से कई ड़ी- ड़ी नेमतें जैसे शांबित, इतधिमनान तथा सौभाग्य आदिद प्रदान की हैं, जिजन्हें उनके अलावा दूसरे लोग नहीं पा सकते। ल्किल्क इन स से ड़ी चीX यह है बिक वे उस हक़ ( सत्य Eम;) को पहचानते और उसपर ईमान रखते हैं जिजसे

संदेष्टागण लेकर आए हैं। अल्लाह ने उनके लिलए - आखिखरत के घर में- ऐसी लिचरस्थायी नेमत और महान सफलता तैयार कर रखी है जो उस सव;शलिGमान की उदारता को शोक्षिभत है। वह उन्हें अपने ऊपर ईमान लाने और उसके प्रबित बिनष्ठावान रहने के कारण पुरस्कृत भी करेगा।

स्त्री का स्थान इसलाम ने स्त्री को इतना ऊँचा स्थान प्रदान बिकया बिक न तो बिकसी बिपछले Eम; ने उसे वह स्थान दिदया था और न बिकसी ाद के समुदाय ने दिदया है। क्योंबिक इस्लाम ने मनुष्य को जो सम्मान दिदया है, उसमें पुरुष व स्त्री दोनों रा री के साथ शाधिमल हैं। वे इस

दुबिनया में अल्लाह के अहकाम (आदेशों) के सामने रा र हैं और आखिख़रत में भी उसके सवा (पुण्य) तथा दले के सामने एक समान और रा र होंगे। अल्लाह तआला ने फरमाया ह ै : “ वास्तव में हमने नी आदम (मनुष्य) को सम्माबिनत बिकया है।" 55 एक

अन्य स्थान में कहा है : " पुरुषों के लिलए उस माल में बिहस्सा है, जो माता- बिपता और रिरश्तेदार छोड़ जाएँ और मबिहलाओं के लिलए भी उस माल में बिहस्सा है, जो माता- बिपता और रिरश्तेदार छोड़ जाए।ँ 56 एक और जगह कहा है : " और उन (मबिहलाओं) के लिलए भी उसी

प्रकार (अधिEकार) है, जैसे बिक उनके ऊपर है, भलाई के साथ।" 57 एक और जगह कहा है : " और मोधिमन मद; और मोधिमन औरतें एक- दूसरे के दोस्त हैं।" 58 एक और जगह कहा है : “ और तुम्हारे र ने फैसला कर दिदया बिक तुम मात्र उसी की इ ादत करना, और माता- बिपता के साथ अच्छा व्यवहार करना। अगर तुम्हारे सामने उनमें से कोई एक या दोनों ुढ़ापे को पहँुच जाएँ, तो उनसे उफ़ तक

न कहना, और न उन्हें जिझड़कना, और उनसे नरम ढंग से ात करना। और उन दोनों के लिलए बिवनम्रता का ाXू मेहर ानी से झुकाए रखना, और कहना बिक ऐ मेरे र , दया कर उन दोनों पर, जिजस तरह उन दोनों ने मेरे चपन में मुझे पाला है।" 59 एक अन्य स्थान में

कहा है : " तो उनके र ने उनकी दुआ क ूल कर ली। ( और कहा ) मैं तुममें से बिकसी अमल करने वाले के अमल को चाहे पुरुष हो या मबिहला, ा;द नहीं करँूगा।" 60 एक और जगह कहा है : “ जो कोई भी अच्छा काम करेगा, मद; हो या औरत, ज बिक वह मोधिमन

हो, तो हम उसे पाकीXा जिXदंगी प्रदान करेंगे। और हम उनको ेहतरीन दला देंगे उनके उन अचे्छ कम8 की वजह से जो वे बिकया करते थे।" 61 एक और जगह कहा है : " और जो भी नेक काम करे, पुरुष हो या मबिहला, ज बिक वह मोधिमन हो, तो ऐसे लोग स्वग; में

दाखिखल होंगे और उनपर रत्ती भर ज�ल्म नहीं बिकया जाएगा।" 62

यह सम्मान जो मबिहला को इस्लाम में प्राप्त है, उसका बिकसी भी Eम;, धिमल्लत (सम्प्रदाय) या क़ानून में उदाहरण नहीं धिमलता। चुनाँचे रोमन सभ्यता ने यह पारिरत बिकया था बिक मबिहला पुरुष के अEीन (मातहत) एक दासी है, उसे बि ल्कुल कोई अधिEकार प्राप्त नहीं है।

रोम में एक ड़ा सम्मेलन हुआ था, जिजसमें औरतों के मामले पर चचा; बिकया बिगया था और यह बिनण;य लिलया गया था बिक वह एक ेजान प्राणी है और इसलिलए आखिखरत की जिXदंगी में उसका कोई बिहस्सा नहीं है और यह बिक वह नापाक है। एथेंस (Athens) में स्त्री एक बिगरी- पड़ी चीX समझी जाती थी, उसे खरीदा और ेचा जाता था और वह नापाक शैतानी अमल समझी जाती थी।

55 सूरा अल- इसरा , आयत संख्या : 70।56 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 7।57 सूरा अल- क़रा, आयत संख्या : 228।58 सूरा अत-तौ ा, आयत संख्या : 71।59 सूरा अल-इसरा, आयत संख्या : 23,24।60 सूरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 195।61 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 97।62 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 124।

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प्राचीन भारतीय Eम; गं्रथों के अनुसार महामारी, मृत्यु, नरक, साँपों का जहर और आग मबिहला की तुलना में ेहतर हैं और उसके जीवन का अधिEकार उसके पबित - जो बिक उसका स्वामी है- की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है। अत: ज वह अपने पबित के शव

को देखे बिक उसे जलाया जा रहा है, तो उसकी लिचता में अपने आप को डाल दे, नहीं तो शाप उसका पीछा नहीं छोडे़गी। जहाँ तक यहूदी Eम; में औरत के स्थान की ात है, तो " ओल्ड टेस्टामेंट'' में उसके ारे में कहा गया है : “ मैंने और मेरे दिदल ने बिहकमत तथा ुजिद्ध का ज्ञान प्राप्त करने और उसकी छान ीन तथा उसकी तलाश में चक्कर लगाया और यह जानने का प्रयास बिकया बिक ुराई मूख;ता है और ेवकू़फ़ी पागलपन है। मैं मृत्यु से अधिEक कड़वी हक़ीक़त से रू रू हुआ बिक स्त्री जाल है, उसका दिदल फंदा है

और उसके हाथ Xंजीर हैं।" 63

यह थी प्राचीनकाल में मबिहला की स्थिस्थबित। रही ात मध्यकालीन और आEुबिनक युग में मबिहला की स्थिस्थबित की, तो इसे बिनम्नलिलखिखत घटनाएँ स्पष्ट करती हैं : डेनमाक; के लेखक Wieth Kordsten ने मबिहलाओं के प्रबित कैथोलिलक चच; के रुझान की व्याख्या अपने इस कथन के द्वारा की है :

" मध्यकालीन युग में कैथोलिलक पंथ के दृधिष्टकोण के चलते, जो बिक मबिहलाओं को दूसरे दज� का इन्सान समझता था, यूरोपीय मबिहला की परवाह हुत कम की जाती थी।" वष; 586 ईस्वी में फ्रांस के अंदर एक सम्मेलन आयोजिजत बिकया गया था, जिजसमें मबिहला के

बिवषय पर बिवचार- बिवमश; बिकया गया था और इस ात पर गौ़र बिकया गया था बिक क्या उसे इन्सान समझा जाएगा या उसकी बिगनती इन्सान में नहीं होगी? बिवचार- बिवमश; के ाद सम्मेलन के सदस्यों ने यह फैसला बिकया था बिक मबिहला को इन्सान समझा जाएगा, लेबिकन वह पुरुष की सेवा के लिलए पैदा की गई है। फ्रांसीसी कानून का अनुचे्छद 217 कहता है बिक : " शादीशुदा मबिहला के लिलए -

चाहे उसका बिववाह उसके स्वाधिमत्व और उसके पबित के स्वाधिमत्व के ीच अलगाव पर ही आEारिरत क्यों न हो- यह जायX नहीं है बिक वह ( अपनी संपक्षित्त) बिकसी को भेंट करे, उसके स्वाधिमत्व को स्थानांतरिरत करे या उसे बिगरवी रखे, और न ही वह बिकसी मुआवजे के साथ या बि ना मुआवजे के अपने पबित की भागीदारी के बि ना या उसकी लिलखिखत सहमबित के बि ना बिकसी चीX का मालिलक हो सकती

है।" इंग्लैंड में, हेनरी अष्टम ने अंगे्रXी मबिहला पर ाइबि ल पढ़ना बिनबिषद्ध ठहरा रखा था। वष; 1950 ईस्वी तक मबिहलाएँ नागरिरकों में नहीं

बिगनी जाती थीं, और वष; 1882 ईस्वी तक उन्हें व्यलिGगत अधिEकार हालिसल नहीं थे। 64

जहाँ तक यूरोप, अमेरिरका और अन्य औद्योबिगक देशों में समकालीन मबिहला की हालत का सं ंE है, तो वह वाक्षिणस्थिज्यक प्रयोजनों में उपयोग की जाने वाली एक तुच्छ प्राणी है। क्योंबिक वह व्यावसाधियक बिवज्ञापन का एक बिहस्सा है। ल्किल्क उसकी स्थिस्थबित यहाँ तक

पहँुच चुकी है बिक उसे वस्त्रहीन कर दिदया जाता है ताबिक वाक्षिणस्थिज्यक अक्षिभयानों के इंटरफेस में उसपर वस्तुओं को बिवज्ञाबिपत बिकया जाए। आज पुरुषों द्वारा बिनEा;रिरत बिनयमों के आEार पर उसके शरीर और सतीत्व को जायX ठहरा लिलया गया है, ताबिक वह हर जगह उनके लिलए मात्र मनोरंजन और भोग की वस्तु न जाए।

वह उस समय तक ध्यान का केन्द्र नी रहती है ज तक वह अपने हाथ, अपने बिवचार या अपने शरीर के द्वारा देने और खच; करने में सक्षम रहती है। बिफर जैसे ही वह ूढ़ी होती है और देने की योग्यता खो देती है, तो पूरा समाज, उसके व्यलिGयों और उसकी

संस्थाओं सबिहत, उससे पीछे हट जाता है और वह अकेले अपने घर में या बिफर मनोरोग लिचबिकत्सालयों में जीने पर मज ूर होती है। आप इसकी तुलना - हालाँबिक यहा ँ कोई रा री नहीं है- पबिवत्र कुरआन में वर्णिणंत अल्लाह सव;शलिGमान के इस कथन से करें।

अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : “ और मोधिमन मद; और मोधिमन औरतें एक- दूसरे के दोस्त हैं।" 65 एक अन्य स्थान में अल्लाह तआला ने कहा है : " और उन (मबिहलाओं) के लिलए भी उसी प्रकार (अधिEकार) है, जैसे बिक उनके ऊपर है, भलाई के साथ।" 66 एक अन्य

स्थान में कहा है : “ और तुम्हारे र ने फैसला कर दिदया बिक तुम मात्र उसी की इ ादत करना, और माता- बिपता के साथ अच्छा व्यवहार करना। अगर तुम्हारे सामने उनमें से कोई एक या दोनों ुढ़ापे को पहँुच जाए,ँ तो उनसे उफ़ तक न कहना, और न उन्हें जिझड़कना,

और उनसे नरम ढंग से ात करना। और उन दोनों के लिलए बिवनम्रता का ाXू मेहर ानी से झुकाए रखना , और कहना बिक ऐ मेरे र , दया कर उन दोनों पर जिजस तरह उन दोनों ने मेरे चपन में मुझे पाला है।" 67

उसके पालनहार ने उसे यह सम्मान देते हुए सभी मानव जाबित के लिलए यह स्पष्ट कर दिदया है बिक उसने मबिहला को एक माँ, एक पत्नी, एक ेटी और एक हन नने के लिलए पैदा बिकया है। और इन भूधिमकाओं के लिलए उसने बिवशेष बिनयम बिनEा;रिरत बिकए हैं, जो

पुरुषों के जाय केवल औरत बिक लिलए बिवलिशष्ट हैं।

मनुष्य की पैदाइश की विहकमत

63 सभोपदेशक, अध्याय 7 : 25-26 । यह ात सव;ज्ञात है बिक " पुराना बिनयम" को यहूदी और ईसाई दोनों ही पबिवत्र मानते हैं और उसपर ईमान रखते हैं।

64 लिसललिसलह मुक़ारनह अल-अदयान, लेखक : अहमद लिशल् ी 3/210,213।65 सूरा अत-तौ ा, आयत संख्या : 71।66 सूरा अल- क़रा, आयत संख्या : 228।67 सूरा अल-इसरा, आयत संख्या : 23, 24।

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मानव रचना में अल्लाह पाक की ऐसी बिहकमतें हैं, जिजनके जानने में ुजिद्ध असमथ; और जिजनका वण;न करने में X ानें अक्षम हैं।

बिनम्न पंलिGयों में, हम इनमें से कुछ बिहकमतों पर समीक्षा करेंगे। वे इस प्रकार है :

1- अल्लाह तआला के हुत- से अचे्छ- अचे्छ नाम हैं, जैसे- अल- गफू़र ( क्षमा करने वाला), अर- रह़ीम (दयालु), अल- अफु़व्व (माफ़ करने वाला), अल- ह़लीम (सहनशील) आदिद। चँूबिक इन नामों के असर का जाबिहर होना Xरूरी है, इसलिलए अल्लाह पाक की बिहकमत

का तक़ाXा हुआ बिक वह आदम और उनकी संतान को एक ऐसे घर में उतारे , जहाँ उनपर उसके अचे्छ नामों का असर Xाबिहर हो और वह जिजसे चाहे क्षमा कर दे, जिजसपर चाहे दया करे, जिजसे चाहे माफ़ कर दे तथा जिजससे चाहे सहनशीलता से काम ले। अल्लाह

चाहता था बिक इसके अलावा उसके अन्य नामों और गुणों (बिवशेषताओं) का असर जाबिहर हो।2- अल्लाह तआला सच्चा और खोलकर यान करने वाला ादशाह है। ादशाह वह होता है जो आदेश और बिनषेE जारी करता है,

पुरस्कृत और दंबिडत करता है, अपमान करता है और सम्मान देता है तथा इज़्Xत और जिXल्लत देता है। अत: उसकी ादशाहत ने चाहा बिक वह आदम और उनकी संतान को ऐसे घर में उतारे, जहाँ उनपर ादशाहत के अहकाम जारी हों, बिफर उनको ऐसे घर में

हस्तांतरिरत करे जहाँ उनके कम8 का दला दिदया जाए।3- अल्लाह तआला ने चाहा बिक कुछ लोगों को न ी, रसूल, औलिलया और शहीद नाए, जिजनसे वह मुहब् त करे और वे उससे

मुहब् त करें। चुनाँचे उसने उन्हें और अपने दुश्मनों को आपस में क्षिभड़ने दिदया और उनकी इनके Xरिरए परीक्षा ली। ज उन्होंने उसको प्राथधिमकता दी और उसकी खुशी और मुहब् त के रास्ते में अपनी जानों और मालों को न्योछावर कर दिदया; तो उन्हें उसकी मुहब् त,

प्रसन्नता और बिनकटता प्राप्त हो गई, जो इसके बि ना हालिसल नहीं हो सकती थी। अतः, रिरसालत व न ूवत और शहादत का पद अल्लाह के बिनकट सव;_ेष्ठ पदों में से ह ै और इसे इंसान उसी तरीके से हालिसल कर सकता था, जिजसका बिनण;य अल्लाह पाक ने

आदम और उनकी संतान को पृथ्वी पर उतारकर लिलया है।4- अल्लाह तआला ने आदम और उनकी संतान की संरचना कुछ ऐसी नाई है बिक उसके अंदर अच्छाई व ुराई को स्वीकार करने

की योग्यता है और वासना तथा बिफ़तना एवं बिववेक तथा ज्ञान के तक़ाXे मौजूद हैं। चुनाँचे अल्लाह तआला ने उसके अंदर बिववेक तथा वासना को रख दिदया है और उन दोनों को अपने- अपने तक़ाXों की ओर आह्वान करने वाला भी नाया है बिक उसका उदे्दश्य पूरा हो सके और वह अपने ंदों के लिलए अपनी बिहकमत (तत्वदर्शिशंता) तथा शलिG में बिनबिहत अपने मान- सम्मान को तथा अपनी सत्ता और राज्य में बिनबिहत अपनी दयालुता एवं कृपालुता का प्रदश;न कर सके। सो उसकी बिहकमत का तकक़ाXा यह हुआ बिक वह आदम और उनकी संतान को जमीन पर उतारे, ताबिक परीक्षण पूरा हो और मनुष्य के इन कारणों के प्रबित तत्परता और उन्हें स्वीकारने और बिफर उसी के अनुसार उसके सम्माबिनत या अपमाबिनत बिकए जाने के प्रभाव प्रकट हों।

5- अल्लाह तआला ने मख़लूक़ को अपनी इ ादत के लिलए पैदा बिकया है और यही उनकी पैदाईश का उदे्दश्य है। अल्लाह का फ़रमान है : " मैंने जिजन्नात और इन्सानों को मात्र इसी लिलए पैदा बिकया है बिक वे केवल मेरी इ ादत करें।" 68 और यह ात सव;ज्ञात है बिक संपूण;

इ ादत जिजसकी अपेक्षा की गई है, वह नेमतों और हमेशा रहने वाले घर में पूरी नहीं हो सकती, ल्किल्क वह केवल परीक्षा और आXमाइश के घर में ही पूरी हो सकती है। ाकी रहने वाला घर तो आनंद और नेमत का घर है। वह परीक्षा और Eार्मिमंक पा ंदिदयों

का घर नहीं है।6- बि ना देखे ईमान लाना ही लाभदायक ईमान है। रही ात देखने के ाद ईमान लाने की, तो हर कोई प्रलय के दिदन ईमान ले

आएगा। अत: अगर वे नेमतों के घर में पैदा बिकए जाते, तो वे बि ना देखे ईमान लाने का दजा; हालिसल नहीं कर पाते, जिजसके ाद वह आनंद और सम्मान हालिसल होता है जो अनदेखी चीXों पर ईमान लाने की वजह से धिमलता है। इसीलिलए अल्लाह ने उन्हें एक ऐसे घर

में उतारा जहाँ बि ना देखे ईमान लाने का मौका हो।7- अल्लाह ने आदम السلام को عليه पूरी Xमीन की एक मुट्ठी धिमट्टी से पैदा बिकया और Xमीन में अच्छी और ुरी, स¦त और नम;

दोनों तरह की धिमट्टी है। अत: अल्लाह तआला को मालूम था बिक आदम की संतान में कुछ ऐसे भी होंगे जो इस योग्य नहीं होंगे बिक वह उन्हे अपने घर में बिनवास कराए; इसलिलए उसने उन्हें ऐसे घर में उतारा, जहाँ से अचे्छ और ुरे को छाँटकर अलग कर दे और बिफर उन्हें दो अलग- अलग घरों में रखे। अचे्छ लोगों को अपने पड़ोस वाले घर में रहने का अवसर दे ुरे लोगों को दुभा;ग्य के घर और

दुष्ट लोगों के घर का बिनवासी नाए।8- अल्लाह तआला ने चाहा बिक इसके द्वारा वह अपने उन न्दों को, जिजनपर उसने इनाम बिकया है, अपनी संपूण; नेमत और उसकी

महानता की पहचान कराए; ताबिक वे स से ज्यादा मुहब् त करने वाले और स से अधिEक शुक्र करने वाले ंदे न जाएँ और उसकी दी हुई नेमतों का अधिEक आनंद ले सकें । इसलिलए अल्लाह ने उनको दिदखाया बिक वह अपने शतु्रओं के साथ क्या कुछ करता है और

उनके लिलए कैसा अXा तैयार कर रखा है। उसने उन्हें इस चीX पर गवाह भी नाया है बिक उसने उनको बिवशेष रूप से ड़ी- ड़ी नेमतें प्रदान की हैं; ताबिक उनकी खुशी ढ़ जाए, उनका उल्लास चरम पर पहँुच जाए और उनकी प्रसन्नता दो ाला हो जाए। यह स उनके ऊपर अल्लाह के इनाम और मुहब् त की संपूण;ता का एक पहलू है। बिफर, इसके लिलए Xरूरी था बिक वह उन्हें Xमीन पर

उतारे, उनकी आXमाइश करे, उनमें से जिजसको चाहे अपनी दया और कृपा के तौर पर सामथ्य; प्रदान करे और अपनी बिहकमत और न्याय के तौर पर जिजसे चाहे असहाय छोड़ दे और वह स कुछ जानने वाला तथा बिहकमत वाला है।

9- अल्लाह तआला ने चाहा बिक आदम और उनकी संतान उस (स्वग;) की ओर इस हालत में वापस आएँ बिक वे अपनी स से अच्छी हालत में हों। अत: उसने इससे पहले उन्हें दुबिनया के दुःख- दद; और शोक व चिचंता का मXा चखा दिदया, जिजससे परलोक के घर में

68 सूरा अX-Xारिरयात, आयत संख्या : 56।

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उनके स्वग; में जाने का महत्व उनके बिनकट ढ़ जाए; क्योंबिक बिकसी चीX की खू सूरती को उसकी बिवपरीत चीX स्पष्ट और बिवदिदत करती है। 69

मानव जाबित की शुरूआत को स्पष्ट करने के ाद, अच्छा होगा बिक हम मानव की सच्चे Eम; की आवश्यकता को यान कर दें।

मनुष्य को धम� की आर्वश्यकता मनुष्य को Eम; की आवश्यकता, उसके लिसवाय जीवन की अन्य सभी Xरूरतों से कहीं अधिEक है, क्योंबिक मनुष्य के लिलए अल्लाह तआला की खुशी के स्थानों और उसकी नाराXगी के स्थानों की जानकारी Xरूरी है। साथ ही उसके लिलए ऐसी गबितबिवधिE भी

आवश्यक है, जिजसके द्वारा वह अपने लाभ को प्राप्त कर सके और ऐसी गबितबिवधिE भी, जिजसके द्वारा वह अपने नुकसान को दूर कर सके। ज बिक शरीयत (Eम;बिवEान) ही वह एक मात्र वस्तु है, जो लाभदायक और हाबिनकारक कामों के ीच अंतर कर सकती है। वही सृधिष्टयों के लिलए अल्लाह का न्याय और ंदों के ीच अल्लाह का प्रकाश है। इसलिलए लोगों के लिलए एक ऐसी शरीयत के बि ना जीवन बि ताना संभव नहीं है, जिजसके द्वारा वे यह अंतर कर सकें बिक उन्हें क्या करना चाबिहए और क्या नहीं करना चाबिहए।

अगर मनुष्य के पास इच्छा है, तो उसके लिलए यह जानना Xरूरी है बिक वह बिकसी चीX की इच्छा कर रहा है? क्या वह उसके लिलए लाभदायक है या हाबिनकारक? क्या वह उसका सुEार करेगी या उसे भ्रष्ट कर देगी? कुछ लोग इसे स्वाभाबिवक रूप से जान लेते हैं,

ज बिक कुछ लोग अपने बिववेक के द्वारा तक; माध्यम से इसका पता लगाते हैं और कुछ लोग उसी समय जान पाते हैं, ज अल्लाह के सन्देष्टा उन्हें परिरलिचत कराए,ँ उनके सामने स्पष्ट रूप से ात रखें और उनका माग;दश;न करें। 70

नाल्किस्तक तथा भौबितकवादी बिवचारEाराएँ चाहे जिजस क़दर शोर मचाएँ एवं सुंदर से संुदर नारे लगाएँ, तथा चाहे जिजस क़दर अलग- अलह बिवचारEाराँ और दृधिष्टकोण सामने आ जाएँ, वे व्यलिGयों और समुदायों को सच्चे Eम; से ेबिनयाX नहीं कर सकते कथा आत्मा

एवं शरीर के तक़ाजों को कदाबिप पूरा नहीं कर सकते। ल्किल्क व्यलिG इनके अंदर जिजतना घुसता जाएगा, उसे पूरा बिवश्वास हो जाएगा बिक ये उसे सुरक्षा नहीं दे सकते और उसकी प्यास को ुझा नहीं सकते साथ ही यह ात भी खुलकर उसके सामने आ जाएगी बिक इन स से छुटकारा केवल सच्चे Eम; के Xरिरए ही धिमल सकता है। अन�स्ट रीनान कहते हैं : " यह संभव है बिक हर चीX जिजसे हम पसंद

करते हैं लुप्त हो जाए, और ुजिद्ध, ज्ञान और उद्योग के प्रयोग की आXादी ख़त्म हो जाए, लेबिकन यह असंभव है बिक Eम;परायणता धिमट जाए, ल्किल्क वह भौबितकवादी बिवचारEारा की बिनरथ;कता पर एक मुँह ोलते स ूत के रूप में ाक़ी रहेगा, जो मनुष्य को

सांसारिरक जीवन की घृक्षिणत तंबिगयों में सीधिमत करना चाहता है।" 71

तथा मुहम्मद फरीद वजदी कहते ह ैं : " यह असंभव है बिक Eार्मिमंकता की सोच धिमट जाए; क्योंबिक यह मन की उच्चतम प्रवृक्षित्त और स से प्रबितधिष्ठत भावना है। ऐसी प्रवृक्षित्त का क्या कहना, जो मनुष्य के लिसर को ऊँचा करती है, ल्किल्क यह प्रवृक्षित्त ढ़ती ही चली

जाएगी। चुनाँचे Eार्मिमकंता की प्रकृबित उस समय तक मनुष्य के साथ लगी रहती है, ज तक बिक उसके पास इतनी ुजिद्ध है, जिजससे वह सौन्दय; और कुरुपता का ोE कर सकता है। उसके अंदर यह प्रवृक्षित्त उसके बिवचारों की ुलंदी और उसके ज्ञान के बिवकास के

अनुपात में ढ़ती रहेगी।" 72

चुनाँचे ज मनुष्य अपने र से दूर हो जाता है, तो अपनी Eारणा शलिG की ुलंदी और अपने ज्ञान के लिछबितज के बिवस्तार की मात्रा में, उसे अपने पालनहार और उसके लिलए अबिनवाय; चीजों के ारे में अज्ञानता, तथा स्वयं अपनी आत्मा और उसका सुEार करने

वाली और उसको भ्रष्ट करने वाली चीXों, उसे सौभाग्य प्रदान करने वाली और दुभा;ग्य से दोचार करने वाली चीजों के ार े में अज्ञानता, तथा बिवज्ञान के बिववरण और उसकी शब्दावलिलयों, जैसे खगोल बिवज्ञान, आकाश गंगाओं से सं ंधिEत बिवज्ञान, कंप्यूटर

बिवज्ञान और परमाणु बिवज्ञान आदिद के ारे में अपनी महान अज्ञानता का ोE होता ह ै . . . उस समय एक बिवज्ञानी घमण्ड और अहंकार को छोड़कर नम्रता और आत्म- समप;ण को अपनाता है। वह यह बिवश्वास रखता है बिक बिवज्ञानों के पीछे एक सव;ज्ञानी,

सव; ुजिद्धमान और प्रकृबित के पीछे एक सव;शलिGमान स्रष्टा है। यह वास्तबिवकता एक इन्साफ़पसंद शोEकता; को गै़ ( अनदेखी चीजों) पर ईमान लाने, सच्चे Eम; के प्रबित समप;ण और प्रकृबित तथा स्वाभाबिवक वृक्षित्त की पुकार का जवा देने पर मज ूर कर देती है . . .

लेबिकन मनुष्य अगर इससे अलग हो जाए, तो उसका स्वभाव उलट जाता है और वह मूक जानवर के स्तर तक बिगर जाता है। इससे हम इस बिनष्कष; पर पहँुचते हैं बिक सच्ची Eम;बिनष्ठता - जो अल्लाह को उसकी तौहीद के साथ एक मानने और उसकी शरीयत के

अनुसार उसकी उपासना करने पर आEारिरत होती है- जीवन का एक आवश्यक तत्व है। ताबिक उसके द्वारा मनुष्य सारे संसार के पालनहार अल्लाह के लिलए अपनी दासता और उपासना को पूरा कर सके, और ताबिक दुबिनया व आखिख़रत में सुख तथा बिवनाश, कष्ट

और दुख से सुरक्षा हालिसल कर सके। यह इसलिलए भी आवश्यक है, ताबिक मनुष्य के अंदर सैद्धांबितक शलिG परिरपूण; हो सके, क्योंबिक केवल इसी के द्वारा ुजिद्ध अपनी भूख धिमटा सकती है। इसके बि ना वह अपनी उच्च आकांक्षाओं को प्राप्त नहीं कर सकता।

यह आत्मा को शुद्ध करने और बिववेक की शलिG को परिरष्कृत करने के लिलए एक आवश्यक तत्व है। क्योंबिक महान भावनाओं को Eम; के अंदर एक व्यापक के्षत्र और न सूखने वाला सोता धिमल जाता है, जिजसमें वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं।

69 देखिखए : धिमफ्ताहु दार अस- सआदह 1/8-11।70 देखिखए; अत-ददम्मुरिरया, शैखुल इस्लाम इब्ने तैधिमया, पृष्ठ : 213,214 और धिमफ्ताहु दार अस- सआदह : 2/383

71 देखिखए : "अद-दीन", लेखक : मुहम्मद अब्दुल्लाह दरा;ज, पृष्ठ : 87।72 देखिखए : "अद-दीन", लेखक : मुहम्मद अब्दुल्लाह दरा;ज, पृष्ठ : 88।

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इसी तरह यह इच्छा की शलिG की पूण;ता के लिलए एक जरूरी तत्व है, जो महान प्रेरकों के द्वारा उसका समथ;न करता है और उसे

बिनराशा व मायूसी के कारणों का मुका ला करने के प्रमुख साEनों से सशस्त्र (हलिथयार ंद) करता है। इस आEार पर, “ यदिद कुछ लोग यह कहते हैं बिक मनुष्य अपनी प्रकृबित से नागरिरक है।" तो हमारे लिलए यह कहना उलिचत है बिक "मनुष्य

अपनी प्रकृबित से Eार्मिमकं है 73 । क्योंबिक मनुष्य के पास दो प्रकार की शलिGयाँ हैं; एक वैज्ञाबिनक सैद्धांबितक शलिG और दूसरी वैज्ञाबिनक इच्छा शलिG, और उसकी पूरी खुशी उसकी दोनों वैज्ञाबिनक और इच्छा शलिG की पूण;ता पर लंबि त है। वैज्ञाबिनक शलिG की पूण;ता

बिनम्नलिलखिखत ातों की जानकारी के माध्यम से ही संभव है :

1. उस सत्य पूज्य, खालिलक़ और राजिजक़ की पहचान, जिजसने मनुष्य को अनल्किस्तत्व से अल्किस्तत्व प्रदान बिकया और उसे भरपूर नेमतों से सम्माबिनत बिकया।

2. अल्लाह के नामों और उसके गुणों की जानकारी, तथा अल्लाह पाक की, उसके लिलए अबिनवाय; चीजों की और इन नामों के उसके न्दों पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी।

3. अल्लाह तआला तक पहुँचाने वाले माग; की जानकारी।4. उन रुकावटों और आपदाओं की जानकारी, जो मनुष्य और इस रास्ते की पहचान के ीच में ाEक न जाती हैं और उन ड़ी

नेमतों की जानकरी जहाँ तक यह रास्ता पहँुचाता है।5. अपनी आत्मा की वास्तबिवक पहचान, उसकी आवश्यकताओं तथा उसका सुEार करने वाली या उसे खरा करने वाली चीXों की

जानकारी और उन दोषों और गुणों की जानकारी जो उसके अंदर पाई जाती हैं। इन पाँच ातों की जानकारी के द्वारा मनुष्य अपनी वैज्ञाबिनक शलिG को पूरा कर सकता है। तथा वैज्ञाबिनक शलिG और इच्छा शलिG उसी समय पूरी हो सकती है, ज न्दों पर अल्लाह तआला के जो अधिEकार हैं, उनका ध्यान रखा जाए, और इख़लास, सच्चाई,

शुभचिचंतन और अनुसरण के साथ उनकी अदायगी की जाए। बिफर, ये दोनों शलिGयाँ उसकी मदद के गैर पूरी नहीं हो सकतीं। अत:, मनुष्य इस ात पर मज ूर है बिक अल्लाह उसको वह सीEा रास्ता दिदखाए, जिजसकी ओर उसने अपने औलिलया का माग;दश;न बिकया

है। 74

हमारे यह जान लेने के ाद बिक सच्चा Eम; ही आत्मा की बिवक्षिभन्न शलिGयों के लिलए ईश्वरीय मदद है , यह भी जानना चाबिहए बिक Eम; समाज के लिलए सुरक्षा कवच भी है। क्योंबिक मानव जीवन, उसके सभी अंगों के ीच आपसी सहयोग के बि ना क़ायम नहीं रह

सकता, और यह सहयोग एक ऐसी व्यवस्था के द्वारा ही पूरा हो सकता है, जो उनके सम् न्धों को बिनयंबित्रत करती हो, उनके कत;व्यों को बिनEा;रिरत करती हो और उनके अधिEकारों की जमानत देती हो। यह व्यवस्था एक ऐसी सत्ता से ेबिनयाX नहीं हो सकती, जिजसके

अंदर लेने और रोकने की क्षमता हो, जो आत्मा को उस व्यवस्था का उल्लंघन करने से रोकती हो और उसे उसकी रक्षा करने की रुलिच दिदलाती हो। दिदलों में उसके डर को सुबिनक्षि�त करती हो और उसे उसकी हुम;तों (वज;नाओं) के उल्लंघन से रोकती हो। अ प्रश्न उठता है बिक वह सत्ता क्या है? तो मैं कहता हूँ : इस Eरती के ऊपर कोई ऐसी शलिG नहीं है, जो व्यवस्था के सम्मान की रक्षा तथा

सामाजिजक एकता, उसके व्यवस्था की स्थिस्थरता और उसके अंदर आराम एवं शांबित के साEनों के तालमेल को सुबिनक्षि�त करने में Eार्मिमंकता या Eम;बिनष्ठता की शलिG की रा री कर सके।

इसका रहस्य यह है बिक मनुष्य अन्य सारे जीवों से इस प्रकार उत्कृष्ट है बिक उसकी स्वैस्थिच्छक हरकतों और काय8 का बिनयंत्रण एक ऐसी चीX के द्वारा हो रहा है, जिजसपर कोई कान या आँख नहीं पड़ सकती। ल्किल्क यह बिवश्वास सं ंEी एक आस्था है, जो आत्मा को पबिवत्र और अंगों को पाक नाती है। अत:, मनुष्य हमेशा सही या ग़लत अक़ीदा के द्वारा बिनयंबित्रत बिकया जाता है। अ अगर उसका

अक़ीदा सही है तो उसकी सारी चीजें सही रहेंगी और अगर वह भ्रष्ट हो गया तो स कुछ भ्रष्ट हो जाएगा। बिवश्वास और आस्था ही इन्सान के लिलए बिनरीक्षक हैं और वे - जैसा बिक समान्य मानव में देखा जाता है- दो प्रकार के हैं :

- प्रबितष्ठा, मानव गरिरमा और इसी तरह की अन्य नैबितक मूल्य में बिवश्वास, जिजसके कारणों का उल्लंघन करने से उच्च आत्माओं वाले शम; महसूस करते हैं, भले ही उन्हें ाहरी परिरणामों और शारीरिरक दण्डों से मुG कर दिदया गया हो।

- अल्लाह सव;शलिGमान पर ईमान और यह बिक वह भेदों से अवगत है, वह ढकी और लिछपी चीजों को जानता है, शरीयत उसके आदेश और बिनषेE से सत्ता और शलिG प्राप्त करती है, भावनाएँ उससे प्यार या भय के तौर पर, या एक साथ दोनों के कारण, उसके

शम; से भड़कती हैं . . . इसमें कोई शक नहीं है बिक ईमान की यह बिकस्म दोनों बिकस्मों में इन्सानी नफ्स ( मानव आत्मा) पर स से मX ूत अधिEकार रखती है, इच्छाओं के तूफ़ान और भावनाओं के उतार- चढ़ाव का स से सख्त मुका ला करने वाली और हर आम

व खास के दिदलों पर स से तेX असर करने वाली है। इसी वजह से Eम;, न्याय और इन्साफ़ के बिनयमों पर लोगों के ीच व्यवहार कायम करने के लिलए स से अच्छी गारंटी है, और

इसीलिलए इसकी एक सामाजिजक आवश्यकता है। अत: इसमें कोई आ�य; की ात नहीं बिक Eम; को उम्मत में वही स्थान प्राप्त है, जो मानव शरीर में दिदल को प्राप्त है 75।

73 देखिखए : "अद-दीन", लेखक : मुहम्मद अब्दुल्लाह दरा;ज, पृष्ठ : 84,98।74 देखिखए : "अल-फवाइद", पृष्ठ : 18,19।75 देखिखए : "अद-दीन", लेखक : मुहम्मद अब्दुल्लाह दरा;ज, पृष्ठ : 98,102।

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चँूबिक आम तौर पर Eम; को यह स्थान प्राप्त है, इसलिलए आज की दुबिनया में Eम8 की हुलता का मुशाहदा बिकया जाता है, तथा आप

प्रत्येक कौम को अपने Eम; पर खुश, और उसपर मX ूती के साथ काय;रत पाते हैं। लेबिकन प्रश्न यह है बिक वह सच्चा Eम; क्या है, जो मानवता के लिलए उसकी आकांक्षाओं को परिरपूण; कर सकता है? तथा सत्य Eम; का मापदंड एवं कसौटी क्या है?

चे्च धम� का मापदंड हर धिमल्लत का अनुयायी यही अक़ीदा रखता है बिक उसकी धिमल्लत ही सच्ची है और हर Eम; के मानने वाले यही आस्था रखते हैं बिक

उनका Eम; ही स से आदश; Eम; और स से सीEा रास्ता है। ज आप परिरवर्तितंत Eम8 के मानने वालों या मानव द्वारा ना लिलए गए Eम8 के मानने वालों से उनकी आस्था का स ूत माँगते हैं, तो वे यह तक; देते हैं बिक उन्होंने अपने ाप- दादा को एक रास्ते पर पाया है और वे उसी रास्ते का अनुसरण कर रहे हैं। बिफर वे ऐसी कहाबिनयाँ और ातें सुनाएगँे जिजनकी कोई सही सनद नहीं और स्वयं वह

कहाबिनयाँ और ातें भी माननेयोग्य नहीं हैं। वे बिवरासत में धिमली पुस्तकों पर भरोसा करते हैं, जिजनका कहने वाला और उनका लिलखने वाला अज्ञात है। न यह पता है बिक वह पहली ार बिकस भाषा में लिलखी गई और न यह मालूम बिक बिकस देश में पाई गई? वह तो केवल धिमक्षि_त और मनगढंत ातें हैं, जिजन्हें इकट्ठा कर दिदया गया और उनका सम्मान बिकया जाने लगा। बिफर एक पीढ़ी के ाद दूसरी

पीढ़ी में उनकी बिवरासत चलने लगी और उनकी कोई वैज्ञाबिनक जाँच नहीं की गई, जो सनद और मतन को परखकर उन्हें खाधिमयों और तु्रदिटयों से पाक कर दे।

ये अज्ञात पुस्तकें , कहाबिनयाँ और अंEी तक़लीद, Eम8 और मान्यताओं के अध्याय में स ूत और प्रमाण नहीं न सकतीं, तो क्या ये सभी दले हुए Eम; और मानव बिनर्मिमंत पंथ सही हैं या गलत?

यह असंभव है बिक सारे Eम; हक़ पर हों, क्योंबिक हक़ केवल एक है, वह अनेक नहीं हो सकता। यह भी असंभव है बिक ये सारे परिरवर्तितंत Eम; और मानव द्वारा ना लिलए गए पंथ अल्लाह की ओर से हों और सच्चे हों। ज ये अनेक हैं और सच्चा Eम; केवल एक

है, तो प्रश्न उठता है बिक इनमें से सच्चा Eम; कौन- सा है? इसलिलए ऐसे मापदंडों और कसौदिटयों का होना आवश्यक है, जिजनके द्वारा हम सच्चे Eम; को झूठे Eम; से पहचान सकें । अगर हमने इन मापदंडों को बिकसी Eम; पर बिफट पाया, तो हमें पता चल जाएगा बिक वह

सच्चा Eम; है और अगर ये मापदंड या इनमें से कोई एक बिकसी Eम; में नहीं पाया गया, तो हम जान लेंगे बिक वह Eम; झूठा है। वह मापदंड और कसौदिटयाँ, जिजनके द्वारा हम सच्चे Eम; और झूठे Eम; के ीच अन्तर कर सकते हैं, बिनम्नलिलखिखत हैं :

पहला मापदंड : वह Eम; अल्लाह की ओर से हो, जिजसे उसने अपने फ़रिरश्तों में से बिकसी फ़रिरश्ते के माध्यम से अपने रसूलों में से बिकसी रसूल पर उतारा हो, ताबिक वह उसे उसके न्दों तक पहँुचा दे। क्योंबिक सच्चा Eम; ही अल्लाह का Eम; है और अल्लाह तआला

ही प्रलय के दिदन लोगों का उस Eम; पर बिहसा लेगा, जिजसे उसने उनकी ओर उतारा है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : बिनःसन्देह हमने आपकी ओर उसी प्रकार वह्य की है, जैसे बिक नूह और उनके ाद के नबि यों की ओर वह्य की और इब्राहीम, इस्माईल,

इसहाक़, याकू़ , और उनकी औलादों पर, तथा ईसा, अय्यू , यूनुस, हारून और सुलैमान की तरफ ( वह्य की) और हमने दाऊद को X ूर प्रदान बिकया।" 76 एक अन्य स्थान पर फ़रमाया : " और हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजे उनकी ओर वह्य भेजी बिक मेरे

अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं, तो तुम स मेरी ही इ ादत करो।" 77 इस आEार पर, कोई भी Eम;, जिजसे कोई व्यलिG लेकर आए और उसको खुद से जोडे़, अल्लाह से नहीं, तो वह अवश्य ही झूठा Eम; है। दूसरा मापदंड : वह Eम; केवल अल्लाह की इ ादत करने, लिशक; को हराम ठहराने और लिशक; तक पहँुचाने वाले साEनों और रास्तों

को हराम ठहराने का आह्वान करता हो। क्योंबिक तौहीद (एकेश्वरवाद) की ओर ुलाना ही सभी नबि यों और रसूलों की दावत की ुबिनयाद है, और हर न ी ने अपनी कौम से कहा है : " तुम स अल्लाह की इ ादत करो। तुम्हारा उसके अलावा कोई सच्चा पूज्य

नहीं है।" 78 इस ुबिनयाद पर कोई भी Eम; जो लिशक; पर आEारिरत है और अल्लाह के साथ उसके अलावा बिकसी दूसरे को, चाहे वह न ी, फ़रिरश्ता या कोई वली ही को क्यों न हो, साझेदार नाता है, वह असत्य Eम; है । भले ही उसके अनुयायी बिकसी न ी की ओर

बिनस त क्यों न रखते हों। तीसरा मापदंड : वह उन उसूलों के साथ सहमत हो, जिजनकी ओर पैगं रों ने ुलाया है। जैसे- केवल एक अल्लाह की इ ादत करना, उसके माग; की ओर ुलाना, लिशक; तथा माता- बिपता की नाफ़रमानी और बि ना अधिEकार के बिकसी की हत्या को हराम ठहराना तथा खुली व लिछपी हर प्रकार की ेहयाई को हराम करना आदिद। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " और हमने आपसे पहले जो भी रसूल

भेजे, उनकी ओर यही वह्य भेजी बिक मेरे अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं है। अतः, तो तुम स मेरी ही इ ादत करो।" 79 एक दूसरे स्थान पर फ़रमाया : " आप कह दीजिजए आओ, मैं तुमको ताता हूँ जो तुम्हारे र ने तुमपर हराम कर रखा है बिक तुम उसके साथ बिकसी को साझेदार न नाओ। अपने माता- बिपता के साथ अच्छा व्यवहार करो तथा अपने च्चों को गरी ी के डर से कत्ल न करो। तुमको और उनको भी हम ही रोXी देते हैं। और खुली या लिछपी ेहयाई के पास भी न जाओ। और गैर हक़ के उस जान को न

कत्ल करो, जिजसको अल्लाह ने हराम कर दिदया है। इन ातों की वह तुम्हें वसीयत कर रहा है, ताबिक तुम समझ सको।" 80 एक अन्य

76 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 163।77 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 25।78 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 73।79 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 25।80 सूरा अल-अन्आम, आयत संख्या : 151।

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स्थान में उसने कहा है : " और आप प्रश्न कीजिजए उन रसूलों से, जिजन्हें हमने आपसे पूव; भेजा है बिक क्या हमने रहमान के अलावा भी

हुत- से पूज्य नाए थे, जिजनकी वे इ ादत करते थे?" 81

चौथा मापदंड : उसका एक बिहस्सा दूसरे बिहस्से के बिवपरीत और बिवरुद्ध न हो । चुनाँचे ऐसा न हो बिक एक जगह बिकसी ात का हुक्म दे बिफर एक दूसरे आदेश के द्वारा उसके बिवपरीत हुक्म दे । न ऐसा हो बिक बिकसी चीX को हराम ठहरा दे बिफर उसी तरह की चीX को

बि ना बिकसी कारण के जायेX कर दे , तथा ऐसा भी न हो बिक बिकसी चीX को एक समूह के लिलए हराम या जायेX कर दे बिफर दूसरे समूह पर उसे हराम कर दे । अल्लाह तआला ने फ़रमाया : " क्या वे कु़रआन पर बिवचार नहीं करते? यदिद कु़रआन अल्लाह के

अबितरिरG बिकसी और की ओर से होता, तो वे उसमें हुत अधिEक मतभेद और बिवरोEाभास पाते।" 82

पाँचवा मापदंड : वह Eम; लोगों के लिलए उनके Eम;, सम्मान, Eन, जान और संतान की रक्षा को सुबिनक्षि�त करने वाला हो। इस प्रकार बिक वह ऐसे आदेश व बिनषेE, मनाही और नैबितकता बिनEा;रिरत करे, जो इन पाँच व्यापक तत्वों की बिहफ़ाXत कर सकें । छठा मापदंड : वह Eम; लोगों के लिलए उनके स्वयं अपने ऊपर अत्याचार तथा उनके एक- दूसरे पर अत्याचार से रोकने का काम करता

हो, चाहे यह अत्याचार अधिEकारों का उल्लंघन करके हो या लाभ और सुबिवEाओं पर X रदस्ती क़ब्Xा के द्वारा हो या ड़ों के छोटों को गुमराह करके। अल्लाह तआला ने उस दया व रहमत के ारे में ख र देते हुए, जिजसे मूसा السلام पर عليه अवतरिरत तौरात ने

सुबिनक्षि�त बिकया था, फ़रमाया : " और ज मूसा का गुस्सा ठंडा हुआ, तो तस्थिख्तयों को उठा लिलया और उनके लिलखे आदेशों में माग;दश;न तथा दया थी उन लोगों के लिलए जो अपने पालनहार ही से डरते हैं।" 83 तथा ईसा अलैबिहस्सलाम को संदेष्टा नाकर भेजे

जाने के ारे में सूचना देते हुए फ़रमाया है : " और ताबिक हम उसे लोगों के लिलए बिनशानी ना दें और रहमत भी।" 84 ज बिक सालेह وسلم के عليه ारे में फ़रमाया ह ै : “ उन्होंने कहा : ऐ मेरी कौम, Xरा ताओं तो अगर मैं अपने र की ओर से बिकसी मX ूत

दलील पर हुआ और उसने मुझे अपने पास की रहमत अता की हो?" 85 इसी तरह कु़रआन के ारे में फ़रमाया है : “ यह कुरआन जो हम उतार रहे हैं, मोधिमनों के लिलए तो सरासर लिशफ़ा और रहमत है।" 86

सातवाँ मापदंड : वह Eम; अल्लाह की शरीयत की तरफ माग;दश;न करने, मनुष्य को इस ात से अवगत कराने बिक अल्लाह उससे क्या चाहता है और उसे इस ात से सूलिचत करने पर आEारिरत हो बिक वह कहाँ से आया है और उसे कहाँ जाना है? तौरात के ारे में

सूचना देते हुए फ़रमाया है : " ेशक हमने तौरात उतारी, जिजसमें बिहदायत और रौशनी है . . . ।" 87 इंजील के ारे में फ़रमाया है : " और हमने उनको इंजील दी, जिजसमें बिहदायत और नूर है।" 88 इसी तरह कुरआन करीम के ारे में फ़रमाया है : " वही अल्लाह है,

जिजसने अपने रसूल को बिहदायत और सच्चा Eम; देकर भेजा।" 89 सच्चा Eम; वही है, जो अल्लाह की शरीयत की ओर माग;दश;न पर आEारिरत हो और मन को सुरक्षा व शांबित प्रदान करता हो। इस प्रकार बिक वह उससे हर ुरे ख़याल को दूर करे, उसके हर प्रश्न का

उत्तर दे और हर समस्या का बिनराकरण करे। आठवाँ मापदंड : वह अचे्छ चरिरत्र व नैबितकता और अचे्छ कृत्यों जैसे- सच्चाई, न्याय, ईमानदारी, हया, पबिवत्रता और उदारता की

ओर आमंबित्रत करे तथा अनैबितकता और ुरे कृत्यों जैसे- माता- बिपता की नाफरमानी और हत्या से मनाही करे तथा व्यक्षिभचार, झूठ, अत्याचार, आक्रमकता, कंजूसी और पाप को हराम ठहराए।

नौवा ँ मापदंड : वह उसमें बिवश्वास रखने वालों को खुशी व सौभाग्य प्रदान करे। अल्लाह तआला ने फ़रमाया ह ै : " ता हा, हमने आपपर कुरआन इसलिलए नहीं उतारा बिक आप मुसी त में पड़ जाए।ँ" 90 इसी तरह वह शुद्ध प्रकृबित के अनुरूप हो। कु़रआन कहता है

: " यह अल्लाह की बिफतरत है, जिजसपर उसने लोगों को पैदा बिकया है।" 91 साथ ही सही मानव बिववेक से सहमबित रखता हो, क्योंबिक सच्चा Eम; अल्लाह का बिनयम है और सही बिववेक अल्लाह की रचना है, और यह असंभव है बिक अल्लाह के बिनयम और उसकी रचना

के ीच बिवरोEाभास पाया जाए। दसवाँ मापदंड : वह सच्चाई की राह ताए और झूठ से सावEान करे, बिहदायत की ओर ले जाए और गुमराही से घृणा पैदा करे और लोगों को ऐसे सीEे माग; की ओर ुलाए जिजसमें कोई टेढ़ापन न हो। अल्लाह तआला ने जिजन्नों के ारे में ख र देते हुए फ़रमाया है बिक

81 सूरा अX-ज�ख़रुफ़, आयत संख्या : 45।82 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 82।83 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 154।84 सूरा मरयम, आयत संख्या : 21।85 सूरा हूद, आयत संख्या : 63।86 सूरा अल-इसरा, आयत संख्या : 82।87 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 44।88 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 46।89 सूरा अत-तौ ा, आयत संख्या : 33।90 सूरा ताहा, आयत संख्या : 1,2।91 सूरा अर-रूम, आयत संख्या : 30।

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ज उन्होंने कुरआन को सुना, तो उन्होंने आपस में एक- दूसरे से कहा : " उन्होंने कहा : ऐ हमारी कौम के लोगो! हमने एक ऐसी

बिकता सुनी, जो मूसा के ाद उतारी गई है, जो अपने से पहले की बिकता ों की तसदीक़ (पुधिष्ट) करती है, सत्य और सीEे माग; की ओर रहनुमाई करती है।" 92 वह ऐसी चीX की ओर न ुलाए, जिजसमें उनका दुभा;ग्य हो। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " ता हा, हमने आपपर कुरआन इसलिलए नहीं उतारा बिक आप मुसी त में पड़ जाए।ँ" 93 और न ही वह लोगों को ऐसी ातों का आदेश दे,

जिजसमें उनकी ा;दी और बिवनाश हो। अल्लाह तआला ने फ़रमाया ह ै : “ और तुम अपने आप को क़त्ल न करो, ेशक अल्लाह तुमपर दया करने वाला है।" 94 वह अपने मानने वालों के ीच चिलंग, रंग या गोत्र के आEार पर भेदभाव ने करतो हो। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " ऐ लोगो, ेशक हमने तुम स को एक पुरुष और एक मबिहला से पैदा बिकया, और तुमको कई खानदान और क ीलों में ाँट दिदया, ताबिक तुम एक- दूसरे को पहचान सको। बिन: संदेह अल्लाह के पास तुममें से स से सम्माबिनत वह है, जो तुममें

स से अधिEक अल्लाह से डरने वाला (परहेXगार) है। ेशक अल्लाह जानने वाला ख़ र रखने वाला है।" 95 इससे पता चला बिक सच्चे Eम; (इस्लाम) में एक- दूसरे पर फजीलत और प्रबितष्ठा का मापदंड केवल अल्लाह का तक़वा (ईशभय) है।

ज हमने उन कसौदिटयों का अध्ययन कर लिलया, जिजनके द्वारा हम सत्य एवं असत्य Eम8 के ीच अंतर कर सकते हैं और इसके लिलए हमने कुरआन करीम की उन आयतों को प्रमाण के तौर पर प्रस्तुत बिकया, जो यह ताती हैं बिक ये कसौदिटयाँ उन सारे सच्चे रसूलों के ीच सव;मान्य रही हैं, जो अल्लाह की ओर से भेजे गए थे, तो अ हमारे लिलए उपयुG होगा बिक हम Eम8 की बिक़स्मों का अध्ययन

करें।

धमB के प्रकार मानव जाबित के उसके Eम8 के बिहसा से दो प्रकार हैं :

एक प्रकार के लोग वह हैं, जिजनके ओर अल्लाह की ओर से बिकता उतारी गई, जैसे- यहूदी, ईसाई और मुसलमान। यहूदिदयों और ईसाइयों के पास जो बिकता ें उतारी गई थीं, उनके उसपर अमल न करने के कारण तथा अल्लाह को छोड़कर मानव को अपना र

ना लेने के कारण, और एक लं ी अवधिE गुXर जाने के कारण . . . उनकी वह बिकता ें नष्ट हो गईं, जिजन्हें अल्लाह ने उनके पैगं रों पर उतारा था। ऐसे में उनके Eार्मिमंक बिवद्वानों ने उनके लिलए कुछ बिकता ें लिलख डालीं, जिजनके ारे में उन्होंने दावा बिकया बिक वे अल्लाह की ओर से उतारी गई बिकता ें हैं। हालाँबिक वे अल्लाह की बिकता ें नहीं, ल्किल्क वे तो केवल झूठे लोगों की मनगढंत ातें और

अबितवादिदयों के द्वारा Eार्मिमंक बिकता ों के साथ की गई छेड़छाड़ का नतीजा हैं। लेबिकन जहाँ तक मुसलमानों की बिकता ( पबिवत्र कुरआन) की ात है, तो वह अल्लाह की अंबितम और स से सुरक्षिक्षत बिकता है, जिजसकी सुरक्षा की जिXम्मेदारी स्वयं अल्लाह ने ली है और उसने इस काय; को मनुष्य के हवाले नहीं बिकया है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " ेशक हमने ही कुरआन को उतारा है और हम ही उसकी बिहफ़ाXत करने वाले हैं।" 96 अत: वह सीनों में और पुस्तकों में सुरक्षिक्षत है। क्योंबिक वह अन्विन्तम बिकता है, जिजसमें अल्लाह ने इस मानवता के लिलए माग;दश;न बिनबिहत बिकया है, उसे प्रलय के दिदन तक

लोगों के ऊपर हुज्जत (तक; ) नाया है, उसे सदैव रहने वाली बिकता नाया है तथा उसके लिलए हर जमाने में ऐसे लोग मुहैया कर दिदए हैं, जो उसके आदेशों तथा फ़रमानों को लागू करते हैं, उसकी शरीयत (Eम;बिवEान) पर अमल करते हैं और उसपर ईमान रखते

हैं। इस महान बिकता के ारे में अधिEक बिवस्तार अगले अनुभाग में आएगा97। मानव समाज का दूसरा वग; ऐसे लोगों का वग; है, जिजनके पास अल्लाह की ओर से कोई अवतरिरत बिकता नहीं है, भले ही उनके

पास बिवरासत में चली आ रही कोई बिकता हो, जो उनके Eम; के संस्थापक की तरफ मंसू हो। जैसे- बिहन्दू, पारसी, ुद्ध Eम; के मानने वाले और कन्फयूशी लोग और जैसे बिक मुहम्मद وسلم عليه الله के صلى न ी नाए जाने से पहले के अर लोग।

हर समुदाय के पास कुछ न कुछ ज्ञान और काय; होता है, जिजसके बिहसा से उसके दुबिनया के बिहत कायम रहते हैं। यही वह सामान्य माग;दश;न है, जो अल्लाह ने हर इन्सान, ल्किल्क हर जानवर को प्रदान बिकया है। जैसे बिक अल्लाह तआला जानवर को यह माग;दश;न

करता है बिक वह उस खाने और पानी को प्राप्त करे, जो उसके लिलए लाभदायक है और उस चीX से दूर रहे, जो उसके लिलए हाबिनकारक हो। अल्लाह ने उसके अंदर लाभदायक चीX से प्यार और हाबिनकारक चीX से घृणा पैदा कर दी है। अल्लाह तआला का

फ़रमान है : " अपने सव�च्च र के नाम की पाकी यान कर। जिजसने पैदा बिकया और सही व स्वस्थ नाया। और जिजसने अनुमान लगाकर बिनEा;रिरत बिकया, बिफर माग; दिदखाया।" 98 और मूसा السلام ने عليه बिफ़रऔन से कहा : " हमारा र वह है, जिजसने हर एक

को उसका बिवशेष रूप दिदया, बिफर माग;दश;न बिकया।" 99 ज बिक इब्राहीम السلام ने عليه कहा : “ जिजसने मुझे पैदा बिकया और वही 92 सूरा अल-अहक़ाफ़, आयत संख्या : 30।93 सूरा ताहा, आयत संख्या : 1,2।94 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 29।95 सूरा अल-हुजुरात, आयत संख्या : 13।96 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 9।97 देखिखए इस बिक ात की पृष्ठ संख्या : 59-100 तथा 114-117।98 सूरा अल-आला, आयत संख्या : 1-3।99 सूरा ताहा, आयत संख्या : 50।

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मेरा माग;दश;न करता है।" 100 हर ुजिद्धमान - जो थोड़ी- सी भी समझ और सोच रखता है- इस ात को अच्छी तरह जानता है बिक Eम8

के मानने वाले अचे्छ कम8 और लाभदायक ज्ञान में उन लोगों से अधिEक सम्पूण; हैं, जो Eम8 के अनुयायी नहीं हैं। इसी तरह Eम8 वालों में से गैर- मुस्थिस्लमों के पास जो भी अच्छाई पाई जाती है, वह मुसलमानों के पास उससे अधिEक संपूण; रूप पाई जाती है। साथ

ही जो चीX Eम8 वालों के पास है वह दूसरों के पास नहीं है। क्योंबिक काय; और ज्ञान दो प्रकार के होते हैं : पहला प्रकार : वह ज्ञान, जो ुजिद्ध के द्वारा प्राप्त होता है। जैसे- गक्षिणत और लिचबिकत्सा तथा उद्योग बिवज्ञान। ये सारी चीजें बिवक्षिभन्न Eम8

को मानने वालों के पास वैसे ही हैं, जैसे दूसरों के पास हैं, ल्किल्क वे लोग इन चीजों का स से मुकम्मल ज्ञान रखते हैं। लेबिकन जिजन चीXों का ज्ञान लिसफ; ुजिद्ध के द्वारा प्राप्त नहीं होता, जैसे अल्लाह के ारे में ज्ञान और Eम8 का ज्ञान, तो इन सारी चीजों का ज्ञान बिवशेष रूप से केवल Eम; वालों के पास होता है और इनमें से कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जिजनपर अक्ली दलीलें कायम की जा सकती हैं। पैगं रों ने उनपर ुजिद्धयों के तक; की ओर लोगों की रहनुमाई की है। इस प्रकार यह अक्ली और शरई ज्ञान है।

दूसरा प्रकार : वह ज्ञान जो केवल पैगं रों की सूचना के द्वारा ही प्राप्त बिकया जा सकता है। इसे अक्ल ( ुजिद्ध) के माध्यम से प्राप्त करने का कोई रास्ता नहीं है। जैसे बिक अल्लाह, उसके नामों और गुणों के ारे में तथा अल्लाह की आज्ञा का पालन करने वालों के लिलए आखिख़रत में जो इनाम और उसकी नाफरमानी करने वालों के लिलए जो सXा है, उसके ारे में सूचना, अल्लाह की शरीयत का

वण;न, बिपछले रसूलों का उनके समुदायों के साथ मामला वगैरह के ारे में सूचना। 101

र्वत�मान धमB की स्थिस्थवित दुबिनया के ड़े Eम;, उनकी प्राचीन बिकता ें और Eम;बिवEान उनके साथ खिखलवाड़ करने वाले लोगों का लिशकार हो गए, छेड़छाड़ करने

वालों और पाखंबिडयों के हाथ का खिखलौना न गए तथा रGमय घटनाओं एवं ड़ी- ड़ी आपदाओं का लिशकार हो गए, जिजससे उनकी मूल आत्मा और असल रंग रूप इस तरह ग़ाय हो गए बिक अगर उन बिकता ों के पहले अनुयाधिययों और उन्हें लाने वाले रसूलों को

दो ारा जिजन्दा कर दिदया जाए, तो वे इन्हें पहचानने से इनकार कर देंगे। चुनाँचे यहूदी Eम;102 परम्पराओं और रीबित- रिरवाजों का एक ऐसा संग्रह नकर रह गया है, जिजसके अंदर न तो आत्मा है और न जान। इसके अलावा, वह एक नस्लीय Eम; है, जो एक बिवशेष जाबित और बिनEा;रिरत वग; के लिलए ही है। उसके पास न तो संसार के लिलए कोई संदेश है, न बिवक्षिभन्न समुदायों के लिलए कोई ुलावा और न ही मानव जाबित के लिलए कोई दया।

इस Eम; का असल अक़ीदा ही नष्ट हो गया, जो बिवक्षिभन्न Eम8 तथा समुदायों की ीच उसकी अलग पहचान नाता था और जो उसकी प्रबितष्ठा का राX हुआ करता था। यानी वह तौहीद का अक़ीदा, जिजसकी वसीयत इ राहीम तथा याकू़ अलैबिहमस्सलाम ने

अपने ेटों को की थी। यहूदिदयों ने उन भ्रष्ट समुदायों के हुत सारे अक़ीदे अपना लिलए, जो उनके आस- पास आ ाद थे या जिजनके सत्ता अEीन वे रह चुके थे। उन्होंने उनके हुत सारे मूर्तितंपूजा और मूख;ता पर आEारिरत रस्मों और परंपराओं को भी अपना लिलया।

“ न्यायबिप्रय यहूदी इबितहासकारों ने इस तथ्य को स्वीकार बिकया है। यहूदी बिवश्वकोष" में इस सं ंE में जो कुछ लिलखा गया है, अथ; है :

" मूर्तितंयों की पूजा पर नबि यों का क्रोE इस ात को इंबिगत करता है बिक बिक मूर्तितंयों और देवताओं की पूजा इस्राइलिलयों के दिदलों में सरायत कर चकी थी और उन्होंने हुदेववादी और अंEबिवश्वासी बिवश्वासों को स्वीकार कर लिलया था। तल्मूद भी इस ात की गवाही

देता है बिक ुतपरस्ती में यहूदिदयों का बिवशेष आकष;ण था103। ाबि ली तल्मूद104 - जिजसका यहूदी लोग ड़ा सम्मान करते हैं, ल्किल्क कभी- कभी तो उसे तौरात पर भी तरजीह देते हैं और जो छठी शताब्दी में यहूदिदयों के ीच प्रचलिलत था तथा जिजसमें कम- अक्ली तथा ेवकूफों वाली ातों, अल्लाह तआला पर दुस्साहस, तथ्यों के

साथ छेड़छाड़ और Eम; तथा ुजिद्ध के साथ खिखलवाड़ के अनोखे उदाहरण भरे पडे़ हैं- इस ात को इंबिगत करता है बिक इस शताब्दी में यहूदी समाज मानलिसक पतन तथा Eार्मिमंक बि गाड़ के बिकस स्तर तक पहँुच गया था। 105

100 सूरा अश-शुअरा, आयत संख्या 78 । देखिखए : "अल- जवा अस- सहीह फी- मन द्दला दीन अल-मसीह" 4/97।101 देखिखए : मजमू फतावा शैखुल इस्लाम इब्ने तैधिमय्या 4/210-211।102 अधिEक जानकारी के लिलए देखें : “ इफ़हाम अल-यहूद" लेखक : सैमुएल बि न यह्या अल - मगरिर ी। वह पहले यहूदी थे और ाद

में मुसलमान हो गए।103 Jewish Encyclopedia Vol. XII page 568 - 69, XII, page 7।104 तल्मद शब्द का अथ; है यहूदी Eम; और उसके संस्कार लिसखाने वाली बिकता । दरअसल यह बिवक्षिभन्न काल खंडों में यहूदी बिवद्वानों

के द्वारा लिलए गए "धिमशनाह" नामी बिकता की टीकाओं का संग्रह है।105 बिवस्तार से पढ़ें : "अल- यहूदी अला हस् अत-तल्मूद" लेखक ड़ॉ. “रोहलन्ज। फ्रांसीसी से अर ी अनुवाद अल- कन्X अल- मरसूद

फ़ी क़वायद अत-तलमूद" के नाम से डॉ. यूसुफ़ हना नसरुल्लाह ने बिकया है।

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जहा ँ तक ईसाई Eम; 106 की ात है, तो वह अपने प्रारंक्षिभक युग स े ही अबितशयोलिG करन े वालों की छेड़छाड़, अज्ञाबिनयों की

कुव्याख्या और ईसाई Eम; अपनाने वाले रूमाबिनयों107 की ुतपरस्ती से पीबिड़त रही है। इन ख़ुराफ़ातों का इतना ड़ा ढेर एकत्र हो गया बिक उसके नीचे ईसा की महान लिशक्षाएँ दफन हो गईं और तौहीद तथा एकमात्र अल्लाह की पूजा की रौशनी इन घने ादलों के पीछे लिछपकर रह गई। एक ईसाई लेखक चौथी शताब्दी ईसवी के अन्विन्तम दिदनों से ही ईसाई समाज में बित्रदेव के अकीदे के प्रवेश करने के ारे में चचा; करते हुए कहता है :

“ चौथी शताब्दी के अंबितम चौथाई भाग से ईसाई दुबिनया के जीवन और उसके बिवचारों में यह अक़ीदा प्रवेश कर गया था बिक एक पूज्य तीन व्यलिGयों से धिमलकर ना है। यह ईसाई जगत के सभी भागों में एक मान्यता प्राप्त सरकारी अकीदा ना रहा। तथा दि·बिनटी

(बित्रदेव) के लिसद्धांत के बिवकास और उसके भेद से उन्नीसवीं शताब्दी के अन्विन्तम आEे भाग में ही पदा; उठा। 108

एक समकालीन ईसाई इबितहासकार ( आEुबिनक बिवज्ञान की रौशनी में ईसाई Eम; का इबितहास) नामी बिकता में ईसाई समाज में बिवक्षिभन्न शक्लों और रंगों में मूर्तितपंूजा के उदय तथा अंEे अनुसरण या Xाती पसंद या अज्ञानता के कारण लिशक; में डू े Eम8 और समुदायों के ुतपरस्त नायकों, त्योहारों, रस्मों और प्रतीकों को अपनाने में ईसाइयों की बिवबिवEता की चचा; करते हुए कहता ह ै : ुतपरस्ती ख़त्म हो गई, लेबिकन वह समू्पण; तरीके से ख़त्म नहीं हुई। ल्किल्क यह दिदलों में ैठ गई और उसमें हर चीज ईसाईयत के

नाम पर और उसके पद� के पीछे चलती रही। तो जिजन लोगों ने अपने पूज्यों और नायकों को छोड़ दिदया था और उनसे आXाद हो गए थे, उन्होंने अपने शहीदों में से एक शहीद को ले लिलया और उसको देवताओं के गुणों पर आEारिरत उपाधिEयाँ दे दीं, बिफर उसकी एक

मूर्तितं ना ली। इस प्रकार यह लिशक; और मूर्तितंयों की पूजा इन स्थानीय शहीदों में स्थानांतरिरत हो गई। इस शताब्दी का अंत भी नहीं हुआ बिक उनके ीच शहीदों और संतों की पूजा आम हो गई और एक नई मान्यता का गठन हुआ बिक संतो के पास दिदव्य गुण हैं , और

ये संत और पबिवत्र पुरुष अल्लाह और मानव के ीच के मध्यस्थ न गए। ुतपरस्त त्योहारों के नाम दलकर नया नाम रख लिलए गए, यहाँ तक बिक सन 400 ईस्वी में पुराने सूय; त्योहार को ईसा मसीह के जन्म दिदन के त्योहार (बिक्रसमस) में दल दिदया गया। 109

पारसी लोग पुराने Xमाने से ही प्राकृबितक चीजों की पूजा करने से जाने जाते हैं, जिजनमें स से ड़ी चीज आग है। अंत में वे आग ही की पूजा करने लगे, जिजसके लिलए वे ढाँचे और पूजा स्थल नाते हैं। इस प्रकार आग के घर पूरे देश में फैल गए, और सूरज का

सम्मान तथा आग की पूजा के अलावा सारे Eम; और अकीदे धिमट गए। उनके यहाँ Eम; कुछ परम्पराओं और रस्मों का नाम होकर रह गया, जिजन्हें वे बिवशेष जगहों पर अंजाम देते हैं।'' 110

" ईरान फ़ी अह्द अस-सासाबिनय्यीन" का डेनमाक¹ लेखक " आथ;र बिक्रस्तन सेन" Eार्मिमंक नेताओं के वग; और उनके काय8 का वण;न करते हुए कहता है :

" इन पदाधिEकारिरयों पर दिदन में चार ार सूरज की पूजा करना Xरूरी था। इसके अलावा, उनके लिलए चन्द्रमा, आग और पानी की पूजा भी करना जरूरी था। उन्हें आदेश दिदया गया था बिक वे आग को ुझने न दें , पानी और आग को एक- दूसरे से धिमलने न दें तथा Eातु को जंग न लगने दें, क्योंबिक Eातु उनके यहाँ पबिवत्र माना जाता है। 111

वे हर युग में दो खुदा मानते थे और यही उनकी पहचान न गई। वे दो पूज्यों पर ईमान रखते थे। उनमें से एक रोशनी या अच्छाई का देवता था, “ जिजसका जिजसे वे अहुरा मज्दा'' “या यXदान'' कहते थे और दूसरा पूज्य अंEेरा या ुराई का देवता था, जिजसे "अहरमन''

का नाम देते थे। इन दोनों खुदाओं के ीच लगातार युद्ध और संघष; जारी है। ौद्ध Eम; - जो बिक भारत और मध्य ऐलिशया में प्रचलिलत Eम; है- एक ुतपरस्त Eम; है, जो जहाँ भी जाता है अपने साथ मूर्तितंयाँ लेकर “जाता है और जहाँ भी उतरता और पड़ाव डालता है मंदिदरों का बिनमा;ण करता और ुद्ध'' की मूर्तितंयाँ लगाता है। 112

106 अधिEक बिवस्तार के लिलए देखें : "अल- जवा अस- सहीह लिलमन द्दला दीन अल-मसीह" लेखक : शैखुल इस्लाम इब्ने तैधिमया, " इXहार अल-हक़्क़", लेखक : रहमतुल्लाह बि न खलील अल- बिहन्दी तथा " तोहफा अल- अरी फ़ी अर- रद्द अला उब् ाद अस-सली ", लेखक : अब्दुल्लाह अत- तरजुमान। अल्लाह अत- तरजुमान पहले नसरानी थे और ाद में मुसलमान हो गए।107 देखिखए : "अस- लिसराउ ैना अद- दीन व अल-इल्म", लेखक : प्रख्यात यूरोपीय लेखक डरापर, पृष्ठ : 40-41।108 नई कैथोलिलक बिवश्वकोष के अन्दर जो कुछ वण;न हुआ है, उसका सारांश। लेख : पबिवत्र बित्रदेव 14/295।109 Rev. Jamecs Houstoin Baxter in the History of Christionity in the Light of Modern Knowledge. Glasgow, 1929 p 407

110 पदिढ़ए : " ईरान फ़ी अह्द अस-सासाबिनय्यीन" लेखक : प्रोफेसर आथ;र बिक्रस्तन सेन, जो डेनमाक; के " कोपेन हागेन" बिवश्वबिवद्यालय में पूव� भाषाओं के प्रोफेसर और ईरान के इबितहास के बिवशेषज्ञ हैं। इसी तरह " ईरान का इबितहास'', लेखक : पारसी शाहीन

मकारिरयोस।111 " ईरान फ़ी अह्द अस-सासाबिनय्यीन" पृष्ठ : 155

112 “देखिखए बिकता अल- बिहन्द अल-कदीमह'' ( प्राचीन भारत), लेखक : ऐशूरा तो ा, प्रोफेसर भारतीय संस्कृबित, हैदरा ादबिवश्वबिवद्यालय, भारत, “ तथा इकबितशाफ अल-बिहन्द'' (The Discovery of India) लेखक : जवाहर लाल नेहरू, पूव; भारतीयप्रEानमंत्री, पृष्ठ : 201-202

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ब्राह्मणवाद - एक भारतीय Eम;- एक ऐसा Eम; है, जो देवताओं की अधिEकता के लिलए प्रलिसद्ध है। छठी शताब्दी ईस्वी में मूर्तितं पूजा

अपनी चरम सीमा पर थी। चुनाँचे इस शताब्दी में देवताओं की संख्या 330 धिमलिलयन तक पहँुच गई थी। 113 हर अच्छी चीज, हर भयानक चीX तथा हर लाभदायक चीX पूजा के योग्य देवता न गई थी। इस युग में मूर्तितंकला का उद्योग हुत ढ़ गया था, जिजसमें कलाकार अपनी कलाकारी दिदखाते थे।

बिहन्दू लेखक सी. वी. वेद अपनी बिकता " मध्यकालीन भारत का इबितहास'' में राजा हष;वE;न के शासनकाल (606-648 ई.) के ारे में, जो बिक अर प्रायद्वीप में इस्लाम के उदय के ाद का युग है, ात करते हुए कहता है :

बिहन्दू Eम; और ौद्ध Eम; दोनों एक ही समान ुतपरस्त Eम; थे, ल्किल्क ौद्ध Eम; ुतों की पूजा में लिलप्त होने में बिहन्दू Eम; से आगे . ढ़ गया था। शुरू- शुरू में ौद्ध Eम; पूज्य का इन्कार करता था। लेबिकन Eीरे- “Eीरे उसने ुद्ध'' को स से ड़ा पूज्य ना लिलया। बिफर उसने उसके साथ (Budhistavas) जैसे दूसरे पूज्यों को भी धिमला लिलया। भारत में मूर्तितंपूजा चरम पर पहँुच गई थी। यहाँ तक बिक

“ ुद्ध'' (Buddha) “का शब्द कुछ पूव� भाषाओं में ुत'' “या मूर्तितं'' के शब्द का पया;यवाची न गया था। इसमें कोई शक नहीं बिक ुतपरस्ती सारी समकालीन दुबिनया में फैली हुई थी। चुनाँचे अटलांदिटक समुद्र से प्रशांत महासागर तक पूरी दुबिनया मूर्तितंपूजा में डू ी हुई थी। ऐसा लग रहा था बिक ईसाई Eम;, सामी Eम; तथा ौद्ध Eम; मूर्तितंयों का सम्मान करने में एक- दूसरे से

आगे ढ़ने की कोलिशश कर रहे थे तथा वे दौड़ के घोड़ों के समान थे, जो एक ही मैदाने में दौड़ रहे थे। 114

एक दूसरा भारतीय लेखक अपनी बिकता में, “जिजसका नाम उसने अल- बिहन्दुकीया अस-साइदा'' ( प्रचलिलत बिहन्दू Eम;) रखा है, कहता ह ै : “ देवताओं को नाने की प्रबिक्रया इसपर समाप्त नहीं हुई। ल्किल्क लगातार बिवक्षिभन्न ऐबितहालिसक युगों में छोटे- छोट देवता भारी

“ संख्या में इस दिदव्य समूह'' मे शाधिमल हो रहे, यहाँ तक उनकी एक असंख्य और ेशुमार भीड़ न गई। 115

यह रही ात Eम8 की स्थिस्थबित की। लेबिकन, जहाँ तक सभ्य देशों का सं ंE है, जहाँ बिवशाल साम्राज्य स्थाबिपत हुए, ज्ञान- बिवज्ञान का प्रचार- प्रसार हुआ और जो संस्कृबित, उद्योग तथा कला का कें द्र भी ने, तो ये ऐसे देश थे, जिजनमें Eम8 का रूप बि गाड़ दिदया गया था।

वहाँ Eम; ने अपनी मौलिलकता और शुद्धता खो दी थी, सुEारक नहीं रह गए थे तथा लिशक्षक लुप्त हो चुके थे। अतः, वहाँ खुलेआम नाल्किस्तकता का प्रदश;न होता था और भ्रष्टाचार ढ़ गया था, मानकों (कसौदिटयों) को दल दिदया गया था और इन्सान स्वयं अपने

आपपर हीन न गया था। इसी कारण आत्महत्या ढ़ गई थी, पारिरवारिरक सम् न्ध बि खर गए थे, सामाजिजक सम् न्ध टूट चुके थे, मनोलिचबिकत्सकों की क्लीबिनक रोबिगयों से भर गई थी, उनके अन्दर शो दा ाXों का ाXार गरम हो गया था, उनमें इन्सान ने हर

प्रकार के मनोरंजन का स्वाद लिलया और हर नई रीबित का अनुसरण बिकया . . . यह स कुछ अपनी आत्मा की प्यास ुझाने, अपने मन को खुशी और अपने दिदल को शांबित पहुँचाने के लिलए बिकया गया था। लेबिकन ये मनोरंजन व आनंद, पंथ और दृधिष्टकोण उसके

लक्ष्यों को पूरा करने में नाकाम रहे। सच्चाई यह है बिक वह उस समय तक इस मानलिसक दुद;शा एवं आध्याह्हित्मक यातना का लिशकार रहेगा, ज तक अपने स्रष्टा से सं ंE न जोड़ ले और उसकी उस तरीके के अनुसार पूजा न करे, जिजसे उसने अपने लिलए पसंद कर

लिलया है और जिजसका उसने अपने रसूलों को आदेश दिदया है। अल्लाह ने उस व्यलिG की हालत को स्पष्ट करते हुए , जिजसने अपने पालनहार से से मुँह फेर लिलया और उसके अलावा से माग;दश;न तल बिकया, फ़रमाया है : " और (हाँ) जो मेरी याद से मुँह फेरेगा,

उसकी जिXन्दगी तंगी में रहेगी और हम उसको क़यामत (प्रलय) के दिदन अंEा करके उठाएगँें।" 116 तथा उसने इस जीवन में मोधिमनों की शांबित और सुख के ारे में ताते हुए ने फ़रमाया है : " जो लोग ईमान रखते हैं और अपने ईमान को लिशक; से धिमलाते नहीं, ऐसे ही

लोगों के लिलए शान्विन्त है और वही सीEे रास्ते पर चल रहे हैं।" 117 एक अन्य स्थान में फ़रमाया है : " और जो लोग सौभाग्यशाली नाए गए, वे जन्नत में होंगे, जहाँ वे हमेशा रहेंगे ज तक आसमान व Xमीन ाकी रहेंगे, मगर जो तुम्हारा र चाहे, यह न खत्म होने वाली

स्थि»श है।" 118

अगर हम - इस्लाम को छोड़कर- इन Eम8 पर Eम; की उन कसौदिटयों को लागू करें, जिजनका पीछे उल्लेख हो चुका है, तो हम पाएगँे बिक उन तत्वों में से अक्सर चीजें नहीं पाई जाती हैं, जैसा बिक उनके ारे में इस संक्षिक्षप्त प्रस्तुबित से जाबिहर है।

स से ड़ी कमी जो इन Eम8 में पाई जाती है, वह इनका तौहीद यानी एकेश्वरवाद से वंलिचत हो जाना है। इनके मानने वालों ने अल्लाह के साथ दूसरे पूज्यों को साझीदार ना लिलया। इसी तरह ये परिरवर्तितंत Eम; लोगों के लिलए कोई ऐसा Eम;शास्त्र प्रस्तुत नहीं

करते, जो हर समय और स्थान के लिलए उलिचत हो; लोगों के Eम;, सम्मान, संतान, और जान व माल की रक्षा कर सके; उन्हें अल्लाह की उस शरीयत की ओर माग;दश;न कर सकें जिजसका अल्लाह ने आदेश दिदया है और अपने अनुयाधिययों को मन की शान्विन्त और खुशी

प्रदान कर सकें , क्योंबिक स्वयं उनके अन्दर हुत- से टकराव और बिवरोEाभास पाए जाते हैं।

113 देखिखए : "अल- बिहन्द अल-कदीमा" ( प्राचीन भारत), लेखक : आर. दत्त 3/276 “ और बिहन्दुकीया अस-साइदा'' लेखक : L. S. S. O. Malley, पृष्ठ : 6-7

114 C. V. Vidya : History of Mediavel Hindu India Vol. I ( Poone 1921 )

115 देखिखए : "अस- सीरह अन-न बिवय्यह", लेखक अ ुल हसन अली नदवी, पृष्ठ : 19-28

116 सूरा ताहा, आयत संख्या : 124

117 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 82

118 सूरा हूद, आयत संख्या : 108

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जहाँ तक इस्लाम Eम; का सं ंE है, तो आने वाले अध्यायों में वह ातें आएगँी, जो यह स्पष्ट करेंगी बिक वही अल्लाह का सदैव रहने वाला सच्चा Eम; है, जिजसे अल्लाह ने अपने लिलए पसंद बिकया है और मानव जाबित लिलए चुन लिलया है।

इस वाक्य योजना के अन्त में मुनालिस मालूम होता है बिक हम न ूवत की हकीकत, उसकी बिनशाबिनयों और मानवता को उसकी आवश्यकता से सूलिचत कर दें तथा रसूलों के आह्वान के लिसद्धांतों और अनंत एवं अंबितम संदेश की वास्तबिवकता को स्पष्ट कर दें।

नबूर्वत की र्वास्तविर्वकता इस जीवन में स से ड़ी चीX, जिजसको जानने की मनुष्य को Xरूरत है, वह अपने उस र की जानकारी है, जिजसने उसे अनल्किस्तत्व

से अल्किस्तत्व प्रदान बिकया और उसपर अपनी व्यापक नेमतें उतारीं। स से महान उदे्दश्य जिजसके लिलए अल्लाह तआला ने मनुष्य को पैदा बिकया, वह एकमात्र उसी सव;शलिGमान की उपासना व आराEना है।

लेबिकन प्रश्न यह उठता है बिक मनुष्य बिकस प्रकार अपने र की सही तौर से जानकारी प्राप्त कर सकता है? साथ ही उसके अधिEकार और जिXम्मेदारिरयाँ क्या हैं और वह अपने पालनहार की इ ादत (आराEना) कैसे करे? वास्तव में मनुष्य को ऐसे लोग धिमल जाते हैं,

जो उसकी कदिठनाइयों के समय उसकी सहायता करते हैं और उसके बिहतों का ध्यान रखते हैं। जैसे, ीमारी का इलाज करवाना, उसके लिलए दवा का इंबितXाम करना, घर का बिनमा;ण करने में उसका सहयोग करना और इसी प्रकार की अन्य चीजें . . . लेबिकन उसे

ऐसे लोग नहीं धिमलते, जो उससे उसके र का परिरचय कराएँ और यह ताएँ बिक वह अपने पालनहार की उपासना कैसे करे? क्योंबिक इनसानी बिववेक स्वतः यह जान नहीं सकता बिक अल्लाह उससे क्या चाहता है। क्योंबिक मानव बिववेक अपने ही समान एक मनुष्य की

इच्छा को जानने से भी बिववश है, ज तक वह खुद न ता दे। ऐसे में भला वह अल्लाह की इच्छा को कैसे जान सकता है? दरअसल यह काय; उन पैगं रों और नबि यों का है, जिजनको अल्लाह तआला अपना संदेश लोगों तक पहँुचाने के लिलए चुन लेता है।

बिफर पैग़म् रों के ाद यह जिजम्मेदारी उनके प�ात माग;दश;न का काय; करने वाले लोगों और नबि यों के उत्तराधिEकारिरयों की होती है , जो उनके तरीके को सीने से लगाए रहते हैं, उसका अनुसरण करते हैं और उनका संदेश पहँुचाने का काम करते हैं। क्योंबिक मनुष्य के लिलए संभव नहीं है बिक वे सीEे अल्लाह तआला से संदेश प्राप्त कर सकें और वे इसकी शलिG भी नहीं रखते। अल्लाह तआला का

फ़रमान है : “ और नामुह्हिम्कन है बिक बिकसी ंदे से अल्लाह (तआला) कलाम करे, लेबिकन वह्य के रूप में या पद� के पीछे से या बिकसी फ़रिरश्ते को भेजे, और वह अल्लाह के हुक्म से जो वह चाहे वह्य करे। ेशक वह स से ड़ा और बिहकमत वाला है।" 119 अत: एक

संदेशवाहक और दूत का होना आवश्यक है, जो अल्लाह की ओर से उसकी शरीयत को उसके ंदों तक पहँुचाए। इन्हीं संदेशवाहकों और दूतों को रसूल और न ी कहा जाता है। चुनाँचे फ़रिरश्ता अल्लाह का पैगाम न ी (ईशदूत) तक पहँुचाता है, बिफर ईशदूत उसे लोगों तक पहँुचाता है। स्वयं फ़रिरश्ता ही संदेशों को सीEे लोगों तक नहीं पहँुचा देता। क्योंबिक फ़रिरश्तों की दुबिनया अपनी प्रकृबित में मुनष्य की दुबिनया से बिवक्षिभन्न है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " फरिरश्तों में से और इन्सानों में से संदेशवाहकों को अल्लाह ही चुन

लेता है।" 120

अल्लाह तआला की बिहकमत इस ात की अपेक्षा करती है बिक पैगं र उन लोगों की जाबित से हो जिजनकी ओर उसे भेजा गया है, ताबिक लोग उन रसूलों की ातें समझ सकें , क्योंबिक लोग उनसे ात- चीत और वाता;लाप कर सकते हैं। अगर अल्लाह तआला

फ़रिरश्तों को रसूल नाकर भेज देता, तो लोग उनका सामना न कर पाते और न ही उनके संदेश को प्राप्त करने में सक्षम होते 121। अल्लाह का फ़रमान है : " और उन्होंने कहा बिक आपपर कोई फ़रिरश्ता क्यों नही उतारा गया? और अगर हम फ़रिरश्ता उतार देते, तो

बिवषय का फैसला कर दिदया जाता, बिफर उन्हें मौका नहीं दिदया जाता। और अगर हम रसूल को फ़रिरश्ता नाते, तो उसे मद; नाते और उनपर वही शक पैदा कर देते जो शक ये कर रहे हैं।" 122 एक अन्य स्थान में वह कहता है : " और हमने आपसे पहले जिजतने भी रसूल

भेजे, स के स खाना भी खाते थे और ाजारों में भी चलते बिफरते थे।" आगे फ़रमाया : " और जिजन्हें हमसे धिमलने की उम्मीद नहीं, उन्होंने कहा बिक हमपर फ़रिरश्ते क्यों नहीं उतारे जाते या हम ( अपनी आँखों से) अपने र को देख लेते? उन लोगों ने खुद अपने को

ही हुत ड़ा समझ रखा है और हुत नाफ़रमानी कर ली है।" 123

एक अन्य स्थान में फ़रमाया है : " और आपसे पहले भी हम मद8 को ही भेजते रहे, जिजनकी ओर वह्य (प्रकाशना) उतारा करते थे, अगर तुम नहीं जानते तो बिवद्वानों से पूछ लो।" 124 एक और जगह कहता है : " और हमने हर न ी (संदेशवाहक) को उसकी कौम

(राष्ट्र) की भाषा में ही भेजा है, ताबिक उनके सामने स्पष्ट तौर से यान कर दे।" 125 ये सारे रसूल और न ी ुजिद्धमान थे, अचे्छ एवं नेक प्रकृबित एवं स्वभाव वाले थे, कम; एवं वचन के सच्चे, जिजस चीX की उन्हें जिXम्मेदारी दी गई थी उसके पहँुचाने में ईमानदार थे,

मनुष्य के चरिरत्र और स्वभाव को Eूधिमल करने वाली चीजों से सुरक्षिक्षत थे और उनके शरीर उस चीX से पबिवत्र थे जिजससे बिनगाहें

119 सूरा अश-शूरा, आयत संख्या : 51

120 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 75

121 तफ़सीर अल- कुरआन अल-अजीम, लेखक : अ ू अल- बिफदा इस्माईल बि न कसीर अल कुरशी 3/64।122 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 8,9

123 सूरा अल-फु़रक़ान, आयत संख्या : 20,21

124 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 43

125 सूरा इब्राहीम, आयत संख्या : 4

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नफ़रत करती हैं और जिजससे शुद्ध अक्षिभरुलिच घृणा करती है। 126 अल्लाह तआला ने उनके व्यलिGत्व और आचरण को पबिवत्र और

शुद्ध नाया है। चुनाँचे वे लोगों में स से संपूण; आचरण वाले, स से पाक व साफ आत्मा वाले और स से ज़्यादा दानशील थे। अल्लाह तआला ने उनके अन्दर उत्तम आचरण और अचे्छ संस्कार जमा कर दिदए थे। इसी तरह उनके अन्दर सहनशीलता, ज्ञान,

दानशीलता, उदारता, वीरता, न्याय . . . . जैसे गुणों को इकट्ठा कर दिदया था, यहाँ तक बिक वे इन गुणों और आचरणों में अपनी कौम के अन्य लोगों से काफ़ी आगे थे। यह सालेह अलैबिहस्सलाम की कौम के लोग हैं, जो उनसे कहते हैं, जैसाबिक अल्लाह तआला ने

उनके ारे में ताया है : " उन्होंने कहा : ऐ सालेह! इससे पहले हम तुमसे हुत ही उम्मीदें लगाए हुए थे। क्या तू हमें उनकी इ ादत से रोकता है, जिजनकी पूजा (इ ादत) हमारे ाप- दादा करते चले आए।'' 127 इसी तरह शुऐ अलैबिहस्सलाम की कौम ने उनसे कहा :

" क्या तेरी नमाX तुझे यही हुक्म देती है बिक हम अपने ुजुग8 के देवताओं को छोड़ दें और हम अपने माल में जो कुछ करना चाहें उसका करना भी छोड़ दें, तू तो ड़ा समझदार और नेक चलन है।" 128 मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम संदेष्टा नाए जाने से

“पहले ही अपनी कौम में अमीन' (बिवश्वसनीय) की उपाधिE से प्रलिसद्ध थे और आपके पालनहार ने आपका जिXक्र इन शब्दों में बिकया है : " और ेशक आप हुत अचे्छ स्वभाव के मालिलक हैं।" 129

इस तरह, ये लोग अल्लाह की मखलूक में स से अचे्छ और चुनिनंदा लोग थे। अल्लाह तआला ने इन लोगों को अपने संदेश का भार उठाने और अपनी अमानत का प्रसार करने के लिलए चुन लिलया था। अल्लाह का फ़रमान है : " अल्लाह अच्छी तरह जानता है बिक वह अपनी रिरसालत कहाँ रखे।" 130 एक और जगह कहता है : " ेशक अल्लाह (तआला) ने सभी लोगों में से आदम को और नूह को

और इब्राहीम के परिरवार और इमरान के परिरवार को चुन लिलया।" 131

यह रसूल और न ीगण, ावजूद इसके बिक अल्लाह ने उनका वण;न सव�च्च गुणों के साथ बिकया है, और ावजूद इसके बिक वे ुलंद गुणों के साथ प्रलिसद्ध थे, परन्तु वे मनुष्य ही थे, उन्हें भी उन सारी चीXों का सामना होता था जो अन्य सभी लोगों को पेश आती हैं। चुनाँचे उन लोगों को भूख लगती थी, वे ीमार होते थे। वे सोते, खाते, शादी- बिववाह करते थे और उनको मौत का सामना भी करना पड़ता था। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " ेशक खुद आपको भी मौत आएगी और यह स मरने वाले हैं।'' 132 एक और जगह कहता है : " और हम आपसे पहले भी हुत- से रसूल भेज चुके हैं और हमने उन स को ीवी और औलाद वाला नाया था।" 133 ल्किल्क कभी- कभी तो उत्पीड़न के भी लिशकार हुए, मारे से भी तथा घरों से बिनकाले भी गए। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "और

आप उस घटना का भी जिजक्र कीजिजए, ज बिक काबिफर लोग आपके ारे में साजिXश कर रहे थे बिक आपको ंदी ना लें या आपको कत्ल कर दें। वे अपनी साजिXश कर रहे थे और अल्लाह भी योजना ना रहा था। तथा अल्लाह स से ेहतर योजना नाने वाला है।"

134 परन्तु दुबिनया व आखिखरत में अंततः सुपरिरणाम, सहायता और शलिG उन्हीं का बिहस्सा है। जैसा बिक अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ और जो अल्लाह की मदद करेगा, अल्लाह भी उसकी Xरूर मदद करेगा।" 135 एक अन्य स्थान में उसका फ़रमान है : "अल्लाह

लिलख चुका है बिक ेशक मैं और मेरे रसूल गालिल (बिवजयी) रहेंगे। ेशक अल्लाह ताक़तवर और ग़ालिल (शलिGशाली) है।" 136

नबूर्वत की विनशाविनयाँ चँूबिक न ूवत सव�च्च ज्ञान को प्राप्त करने और सव;_ेष्ठ काय8 को अनजाम देने का एक वसीला और साEन है ; इसलिलए पबिवत्र एवं महान अल्लाह ने अपनी कृपा से अपने नबि यों को कुछ बिनशाबिनयाँ प्रदान की हैं, जो उनके न ी होने का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं और उनके Xरिरए लोग उनका पता लगाते और उनकी सच्चाई जानते हैं। यह और ात है बिक बिकसी भी धिमशन का दावा करने वाले के

साथ कुछ ऐसे लक्षण, संकेत और स्थिस्थबितयाँ लगी होती हैं, जो अगर वह सच्चा है तो उसकी सच्चाई को स्पष्ट कर देती हैं और यदिद झूठा है तो उसके झूठ को उजागर कर देती हैं। नबि यों को प्राप्त होने वाली बिनशाबिनयाँ हुत सारी हैं , जिजनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार

हैं :1- रसूल मात्र एक अल्लाह की इ ादत करने और उसके अलावा बिकसी और की इ ादत छोड़ देने की दावत दे। क्योंबिक यही वह

उदे्दश्य है, जिजसके कारण अल्लाह ने मनुष्य को पैदा बिकया है।

126 देखिखए ! " लवाधिमउ अनवार अल- बिहय्या" 2/265-305, तथा "अल-इस्लाम", लेखक : अहमद लिशल् ी पृष्ठ : 114

127 सूरा हूद, आयत संख्या : 62

128 सूरा हूद, आयत संख्या : 87

129 सूरा अल-क़लम, आयत संख्या : 4

130 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 124

131 सूरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 33

132 सूरा अX-ज�मर, आयत संख्या : 30

133 सूरा अर-राद, आयत संख्या : 38

134 सूरा अल-अंफाल, आयत संख्या : 30

135 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 40

136 सूरा अल-मुजादिदला, आयत संख्या : 21

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2- रसूल लोगों को अपने ऊपर ईमान लाने, उसकी पुधिष्ट करने और उसकी रिरसालत (संदेश) पर अमल करने का आमंत्रण दे।

अल्लाह ने अपने न ी मुहम्मद وسلم عليه الله को صلى आदेश दिदया बिक वह कह दें : " ऐ लोगो ! मैं तुम सभी की तरफ़ अल्लाह का भेजा हुआ हँू।" 137

3- अल्लाह तआला उसे बिवक्षिभन्न प्रकार की ऐसे दलीलें प्रदान करे, जो उसके न ी होने का लिसद्ध करें। इन प्रमाणों में वह चमत्कार भी शाधिमल हैं, जो नबि यों के द्वारा प्रस्तुत बिकए जाते हैं और उनकी कौमें उनको रद्द करने या उसके समान कोई दूसरा चमत्कार लाने की

शलिG नहीं रखतीं। जैसे मूसा अलैबिहस्सलाम को यह बिनशानी दी गई थी बिक उनकी लाठी साँप न गई। ईसा السلام को عليه यह चमत्कार दिदया गया था बिक वह अल्लाह की अनुमबित से अंEे और कोढ़ी को ठीक कर देते थे । ज बिक मुहम्मद عليه الله صلى

का وسلم चमत्कार महान कुरआन है। लिलखना- पढ़ना न जानने के ावजूद इस तरह का गं्रथ प्रस्तुत करना बिनस्संदेह एक करिरश्मा है। तक़री न सारे नबि यों को इस प्रकार के चमत्कार प्रदान बिकए गए थे। इन प्रमाणों में से एक प्रमाण वह स्पष्ट व प्रत्यक्ष सत्य भी है, जो न ी तथा रसूलगण लेकर आते हैं और उनके बिवरोEी उनका खण्डन या इनकार कर नहीं पाते, ल्किल्क वे अच्छी तरह जानते हैं बिक संदेष्टा जो कुछ लेकर आए हैं, वही सत्य है, जिजसका इनकार नहीं बिकया जा सकता। इन दलीलों में वह संपूण; स्थिस्थबितयाँ, संुदर आचरण तथा उत्तम व्यवहार भी शाधिमल हैं, जो अल्लाह अपने नबि यों को बिवशेष रूप से

प्रदान करता है। तथा इनके अंदर अल्लाह तआला का अपने नबि यों तथा रसूलों का बिवरोधिEयों के खिखलाफ मदद करना और उनके आह्वान को ग़ल ा प्रदान करना शाधिमल है।

4- उसका आह्वान सैद्धांबितक रूप से अन्य रसूलों एवं नबि यों के आह्वान से मेल खाता हो।138

5- वह स्वयं अपनी पूजा करने या बिकसी भी तरह की इ ादत को अपनी तरफ फेरने की ओर न ुलाए। इसी प्रकार वह अपने क ीले या अपने बिगरोह का सम्मान करने की दावत न दे। अल्लाह ने अपने न ी मुहममद وسلم عليه الله को صلى आदेश दिदया बिक आप

लोगों से कह दें : " कह दीजिजए बिक न तो मैं तुमसे यह कहता हूँ बिक मेरे पास अल्लाह का ख़Xाना है और न मैं गै़ जानता हूँ, और न मैं यह कहता हँू बिक मैं फ़रिरश्ता हँू। मैं तो लिसफ; जो कुछ मेरे पास वह्य आती है, उसकी पैरवी करता हँू।" 139

6- वह लोगों से अपने दावत देने दले में दुबिनया की कोई चीX न माँगे। अल्लाह तआला अपने नबि यों नूह, हूद, सालेह, लूत और शुऐ के ारे में ख़ र देते हुए फ़रमाता है बिक उन्होंने अपनी क़ौम के लोगों से कहा : “ और मैं तुमसे उसका कोई दला नहीं माँगता,

मेरा दला तो केवल सारी दुबिनया के र पर है।'' 140 इसी तरह मुहम्मद وسلم عليه الله ने صلى अपनी क़ौम से फ़रमाया : “कह दीजिजए बिक मैं इसपर तुमसे कोई दला नहीं माँगता और न मैं नावट करने वालों में से हूँ।'' 141

ये रसूल और न ीगण - जिजनके कुछ गुणों और उनकी न ूवत की बिनशाबिनयों की आपसे चचा; की गई है- हुत ज़्यादा हैं । अल्लाह का फ़रमान है : “ और हमने हर उम्मत में रसूल भेजे बिक (लोगो!) केवल अल्लाह की इ ादत ( उपासना ) करो, और तागूत ( अल्लाह के लिसवाय सभी झूठे मा ूद) से चो।" 142 मानव जाबित को इनकी वजह से सौभाग्य प्राप्त हुआ, इबितहास ने इनकी घटनाओं को अपने

सीने में समेटकर रखा और इनके लाए हुए Eम; बिवEान नस्ल दर नस्ल नक़ल होते रहे। इसी तरह , अल्लाह के द्वारा उनकी मदद बिकए जाने और उनके दुश्मनों को त ाह बिकए जाने की घटनाएँ भी नक़ल होती रही हैं। जैसे- नूह की कौम का तूफ़ान, बिफ़रऔन का पानी

में डु ो दिदया जाना, लूत की कौम का अजा , मुहम्मद وسلم عليه الله का صلى अपने दुश्मनों पर बिवजय और आपके Eम; का बिवस्तार आदिद। अत: जो भी मनुष्य इन ातों से अवगत होगा; उसे बिनक्षि�त रूप से इस ात का पता चल जाएगा बिक रसूलगण खैर

एवं भलाई और माग;दश;न के साथ, लोगों को उनके लाभ की चीजों से अवगत करने और उनको नुकसान पहँुचाने वाली चीजों से सावEान तथा सचेत करने के लिलए आए थे। स से पहले रसूल नूह अलैबिहस्सलाम और उनकी अंबितम कड़ी मुहम्मद عليه الله صلى

हैं। وسلم

मानर्व जावित को रूलों की ज़रूरत न ीगण अल्लाह तआला की ओर से उसके ंदों की ओर आने वाले संदेशवाहक हैं, जो उन्हें अल्लाह के आदेश पहँुचाते और

आज्ञापालन की परिरस्थिस्थबित में उनके लिलए अल्लाह की ओर से तैयार की हुई नेमतों का सुसमाचार सुनाते एवं अवज्ञा की अवस्था में अनंत यातना से सावEान करते तथा बिपछली जाबितयों की घठनाओं एवं अल्लाह के आदेश के उल्लंघन के कारण उनपर उतरने वाले अXा से अवगत करते हैं।

137 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 158

138 देखिखए : मजमू फतावा शैखुल इस्लाम इब्ने तैधिमय्या 4/212-213

139 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 50

140 सूरा अश-शुअरा, आयत संख्या : 164, 145, 127, 109, 180।141 सूरा अस-साद, आयत संख्या : 86

142 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 36

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याद रहे बिक अल्लाह के इन आदेशों और बिनषेEों को मानव बिववेक स्वतः नहीं जान सकता। इसलिलए अल्लाह तआला ने मानव जाबित

के आदर, सम्मान, प्रबितष्ठा और उसके बिहतों की रक्षा के लिलए Eम;बिवEान नाए और आदेश तथा बिनषेE जारी बिकए। क्योंबिक कभी- कभी इन्सान अपनी इच्छाओं के पीछे भागते हुए वर्जिजंत चीXों का उल्लंघन करने लगता है और लोगों पर अत्याचार करते हुए उनके

अधिEकारों को छीन लेता है, इसलिलए अल्लाह की बिहकमत का तक़ाXा यह था बिक समय- समय पर उनके ीच सन्देष्टाओं को भेजता रहे, जो उन्हें अल्लाह के आदेशों को याद दिदलाते रहें, उसकी नाफ़रमानी में पड़ने से डराते रहें, Eम�पदेश देते रहें और बिपछले लोगों

की घटनाएँ सुनाते रहें। क्योंबिक अद्भतु घटनाएँ ज कानों में पड़ती हैं और अनोखी ातें ज Xेहन को जगाती हैं, तो इससे मानव बिववेक लाभांबिवत होता है और उसे सही समझ प्राप्त होती है। चुनांचे लोगों में स से ज्यादा सुनने वाला व्यलिG, स से ज़्यादा चिचंतन-

मनन करने वाला, स से ज़्यादा चिचंतन- मनन करने वाला, स से अधिEक ज्ञान वाला और स से ज़्यादा ज्ञान वाला स से अधिEक अमल करने वाला होता है। अत: सत्य की स्थापना के लिलए संदेष्टाओं के भेजे जाने से अलग कोई रास्ता नहीं है और इस सं ंE में उनका कोई बिवकल्प भी नहीं है। 143

शैखुल इस्लाम इब्ने तैधिमया 144 कहते हैं बिक ंदे की दुबिनया व आखिख़रत के कल्याण के लिलए रिरसालत ( ईश्वरीय संदेश) का होना Xरूरी है। स्मरण रहे बिक जिजस तरह रिरसालत ( ईश्वरीय संदेश) की पैरवी के बि ना मनुष्य की आखिख़रत में कामया ी संभव नहीं है, उसी प्रकार

रिरसालत के अनुसरण के बि ना उसकी दुबिनया की कामया ी संभव नहीं है। अत: मनुष्य शरीयत का मोहताज है, क्योंबिक वह दो तरह की गबितबिवधिEयाँ करता है। एक गबितबिवधिE के द्वारा वह अपने लिलए लाभदायक चीX को प्राप्त करता है और दूसरी गबितबिवधिE के द्वारा वह अपने आप से हाबिनकारक चीX को दूर करता है। ज बिक शरीयत (Eम;शास्त्र) ही वह प्रकाश है, जो यह स्पष्ट करती है बिक कौन- सी चीX उसके लिलए लाभदायक है और कौन- सी चीX उसके लिलए हाबिनकारक है। वह Eरती पर अल्लाह की रोशनी, उसके ंदों के

दरधिमयान उसका न्याय और वह बिक़ला है, जिजसमें प्रवेश करने वाला सुरक्षिक्षत हो जाता है। शरीयत से मुराद चेतना के द्वारा लाभादायक और हाबिनकारक चीजों के ीच अन्तर करना नहीं है, क्योंबिक यह खुसूलिसयत तो जानवरों

को भी प्राप्त है। चुनाँचे गEे और ऊँट भी जौ और रेत के ीच अन्तर कर सकते हैं। ल्किल्क , यहाँ शरीयत से मुराद उन काय8 के ीच अन्तर करना है, जो उसके करने वाले को दुबिनया और आखिख़रत में नुकसान पहँुचाते हैं तथा उन काय8 के ीच, जो उसे दुबिनया और

आखिख़रत में लाभ पहँुचाते हैं। जैसे- ईमान, तौहीद, न्याय, नेकी, एहसान, ईमानदारी, पबिवत्रता, वीरता, ज्ञान, सब्र, भलाई का आदेश देना और ुराई से रोकना, रिरश्तेदारों के साथ अच्छा सं ंE रखना, माता- बिपता के साथ सद्व्यवहार, पड़ोलिसयों के साथ भलाई करना,

हकू़क़ की अदायगी करना, ख़ालिलस अल्लाह के लिलए काय; करना, अल्लाह पर भरोसा रखना, उससे सहायता माँगना, उसकी तक़दीर पर सन्तुष्ट होना, उसके फैसले को स्वीकारना, उसकी पुधिष्ट करना और उसके रसूलों की उन सारी ातों की पुधिष्ट करना जिजनकी

उन्होंने सूचना दी है, ये तथा इनके अलावा अन्य ऐसी चीजों के लाभ, जो न्दे के लिलए उसकी दुबिनया और आखिख़रत में लाभदायक और कल्याणकारी हैं और जिजनकी बिवपरीत चीXों में उसके लिलए दुबिनया व आखिख़रत का दुभा;ग्य और एवं नुकसान है। अगर नबि यों का संदेश न होता, तो इंसानी ुजिद्ध के लिलए संभव ही न था बिक दुबिनया की हाबिन एवं लाभ के बिववरण से अवगत हो पाती। अल्लाह का स से महत्वपूण; उपकार यह है बिक उसने रसूल भेजे, उनपर अपनी बिकता ें उतारीं तथा सीEे माग; का स्पष्ट रूप

से वण;न कर दिदया। अगर अल्लाह की यह कृपा न होती, तो मनुष्य चौपायों के दरजे में होता या उनसे भी दतर होता। ऐसे में, जिजन लोगों ने अल्लाह के संदेश को स्वीकार कर लिलया और उसपर दृढ़ता से जमे रहे, वे मख़लूक़ में स से अचे्छ लोग हैं और जिजन लोगों ने उसको मानने से इनकार बिकया, वे स से ुरे मख़लूक़ हैं और उनकी दशा कुत्तों और सूअरों से भी ुरी है और वे स से घदिटया लोग

हैं। Eरती पर सने वाले लोगों की स्थिस्थरता इसी में है बिक वे नबि यों के संदेश को दृढ़ता से पकड़े रहें, क्योंबिक ज Eरती से रसूलों की पैरवी खत्म हो जाएगी, तो अल्लाह तआला Eरती एवं आकाश दोनों को त ाह कर देगा और उसके ाद क़यामत आ जाएगी। Eरती पर सने वालों को रसूल की Xरूरत उस प्रकार की नहीं है, जिजस प्रकार सूय;, चाँद, हवा और वषा; की Xरूरत है। न ही यह

Xरूरत उस प्रकार की है, जैसी इंसान को जीवन की, आँख को उसके प्रकाश की और शरीर को खाने- पीने की होती है। सच्चाई यह है बिक यह Xरूरत इन तमाम Xरूरतों से अधिEक महत्व वाली और उन तमाम चीXों से अधिEक आवश्यक है, जिजसका ख़याल इंसान के दिदल में आ सकता है। क्योंबिक रसूलगण, मध्यस्थ नकर इंसानों को अल्लाह का आदेश तथा बिनषेE पहँुचाते हैं और अल्लाह तथा

ंदों के ीच में दूत की हैलिसयत से काय; करते हैं। रसूलों की _ृंखला की अंबितम कड़ी तथा अल्लाह के बिनकट स से सम्मानीय न ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम हैं। सभी रसूलों पर शांबित की Eारा रसे। अल्लाह तआला ने आपको सारे संसार के लिलए कृपा,

सभी पलिथकों के लिलए प्रमाण और सारी सृधिष्टयों पर हुज्जत नाकर भेजा तथा आपके आज्ञापालन, आपसे प्रेम, आपके सम्मान एवं सहयोग और आपके अधिEकारों की अदायगी को तमाम ंदों पर फ़X; बिकया। इसी तरह, तमाम नबि यों और रसूलों से आपपर ईमान

लाने और आपका अनुसरण करने का वादा लिलया और उन्हें आदेश दिदया बिक अपने अनुसरणकारी ईमान वालों से भी इस ात का वादा लें। अल्लाह ने आपको क़यामत से पहले सुसमाचार सुनाने वाला, सावEान करने वाला, अपनी अनुमबित से अल्लाह की ओर ुलाने वाला एवं रौशन चराग़ नाकर भेजा। उसने आपके Xरिरए न ूवत के लिसललिसले को समाप्त कर दिदया, आपके द्वारा पथभ्रष्टता

के समय माग;दश;न प्रदान बिकया, अज्ञानता के माहौल में ज्ञान की जोत जगाई, आपके संदेश के Xरिरए अंEी आँखों को देखने की शलिG प्रदान की, हरे इंसानों को सुनने वाला ना दिदया और ंद दिदलों के परदे हटा दिदए। चुनांचे आपके संदेश के प्रकाश से पूरा जग

आलोबिकत हो गया, बि खरे हुए दिदल आपस में धिमल गए, भटका हुआ समाज सीEे रास्ते पर आ गया और सत्य का माग; रोशन हो गया। अल्लाह ने अपने न ी के दिदल को अपने प्रबित संतुष्ट रखा, आपको पाप से दूर रखा, हर ओर आपकी चचा; को आम कर दिदया

और आपका बिवरोE करने वालों के भाग्य में असलफता तथा अपमान लिलख दिदया। अल्लाह ने आपको उस समय रसूल ना कर भेजा, ज रसूलों के आने का लिसललिसला ंद था, आकाशीय ग्रंथ धिमटते हुए दिदखाई दे रहे थे, उनमें फेर- दल कर दिदए गए थे, Eम;

143 " आलाम अन-नु ूवह", लेखक : अली बि न मुहम्मद मावरदी, पृष्ठ : 33

144 अहमद बि न अब्दुल हलीम बि न अब्दुस सलाम जो इब्न-ए- तैधिमया की कुबिनयत से प्रलिसद्ध हैं, 661 बिहजरी में पैदा हुए और 728 बिहजरी में परलोग को सुEारे। वह एक महान इस्लामी बिवद्वान थे और हुत- सी उत्कृष्ठ बिकता ें लिलखी हैं।

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बिवEनों को दल दिदया गया थे, हर कौम और बिगरोह के अपने अलग- अलग बिवचार थे और वे अल्लाह और ंदों के ीच अपने असत्य

मतों एवं आकांक्षाओं के अनुसार फैसला करने लगे थे। ऐसे हालात में अल्लाह तआला ने आपके द्वारा सृधिष्टयों का माग;दश;न बिकया, उनके लिलए सच्चाई के माग8 को स्पष्ट बिकया, लोगों को अंEेरों से बिनकाल कर रोशनी की दुबिनया में पहुँचाया तथा कामया और नाकाम लोगों के ीच पृथक रेखा खीची। लिलहाXा जिजसने बिहदायत प्राप्त करना चाहा, उसे आपके रास्ते पर चलकर बिहदायत धिमल

गई, और जो आपके रास्ते से हट गया, वह सीEे माग; से भटक गया और उसने अपने ऊपर अत्याचार बिकया। आपपर और सारे नबि यों एवं रसूलों पर दरूद एवं सलाम हो। 145

हम मनुष्य के लिलए नबि यों के संदेश की Xरूरत को बिनम्मनांबिकत नि ंदुओं में रेखांबिकत कर सकते हैं :1- मनुष्य एक मख़लूक़ है, जिजसका एक पालनहार है। इसलिलए आवश्यक है बिक वह यह जाने बिक उसे बिकसने पैदा क्या , उसे पैदा

करने वाला उससे क्या चाहता है और उसने उसे क्यों पैदा क्या है? मनुष्य इन ातों की जानकारी स्वयं प्राप्त नहीं कर सकता। इन ातों की जानकारी केवल नबि यों तथा रसूलों और उनके लाए हुए माग;दश;न एवं प्रकाश के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।

2- मनुष्य आत्मा और शरीर से धिमलकर ना है। शरीर का पोषक तत्व खाना और पानी है, ज बिक आत्मा का पोषक तत्व अल्लाह का दिदया हुआ सही Eम; और सत्कम; है। इस सही Eम; एवं सत्कम; के माग;दश;न का काम न ी तथा रसूलगणों ने ही बिकया है।

3- मनुष्य स्वभाबिवक तौर पर Eम; को पसंद करता है और उसकी प्रकृबित चाहती है बिक उसका कोई न कोई Eम; हो, जिजसका वह पालन करे। लेबिकन यह भी Xरूरी है बिक यह Eम; सही हो। ज बिक सही Eम; को प्राप्त करने का एकमात्र माग; नबि यों एवं रसूलों पर ईमान तथा उनकी लाई हुई ातों पर बिवश्वास है।

4- मनुष्य को उस माग; की जानकारी होनी चाबिहए, जिजसपर चलकर वह दुबिनया में अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त कर सके एवं आखिख़रत में उसकी जन्नत एवं नेमतें प्राप्त कर सके। ज बिक इस माग; को दिदखाने का काम केवल न ी एवं रसूलगणों ने ही बिकया है।

5- मनुष्य स्वयं दु ;ल है और अनेकों शत्रु उसकी घात में हैं। शैतान उसको गुमराह करना चाहता है , ुरे लोगों की संगत उसके लिलए ुराई को सुशोक्षिभत नाकर प्रस्तुत करती है और ुराई की ओर प्रेरिरत करने वाली आत्मा उसे ुराई का आदेश देती है। इसलिलए उसे

एक ऐसी चीX की Xरूरत है, जिजसके Xरिरए वह दुश्मनों के षड्यंत्र से अपनी सुरक्षा कर सके। इसी चीX की रहनुमाई नबि यों तथा रसूलों ने की है और उसे स्पष्ट रूप से यान बिकया है।

8- मनुष्य प्राकृबितक रूप से सभ्य है और आम समाज के साथ धिमलजुल कर रहने के लिलए Xरूरी है बिक उसके पास एक जीवन बिवEान हो, जो लोगों के ीच इंसाफ को कायम रखे, वरना उनका जीवन जंगल के जीवन के समान हो जाएगा। बिफर Eम; भी ऐसा

होना चाबिहए बिक प्रत्येक व्यलिG के अधिEकारों को संपूण; सुरक्षा प्रदान करे और ऐसा संपूण; Eम;- बिवEान नबि यों एवं रसूलों ने ही प्रस्तुत बिकया है।

7- इसी प्रकार मनुष्य ऐसी चीX को जानने का मोहताज है, जो उसे सुकून एवं आंतरिरक शांबित प्रदान करे और उसे वास्तबिवक सौभाग्य का माग;दश;न करे। ज बिक यही वह चीX है, जिजसका माग;दश;न नबि यों एवं रसूलों ने बिकया है।

नबि यों और रसूलों को भेजने की आवश्यकता को जान लेने के ाद हमारे लिलए आवश्यक है बिक हम आखिखरत के ारे में भी कुछ ातें ताते चलें और उसपर प्रमाक्षिणत करने वाले प्रमाणों तथा स ूतों को स्पष्ट कर दें।

आख़िGरत प्रत्येक मनुष्य अच्छी तरह जानता है बिक उसे एक दिदन मरना है। लेबिकन मौत के ाद क्या अंजाम होगा? क्या वह सौभाग्यशाली होगा

या दुभा;ग्यशाली? हुत- सी कौमें एवं समुदाय यह अकीदा रखते हैं बिक उनको मरने के ाद बिफर से जीबिवत बिकया जाएगा और उनके काय; का बिहसा

लिलया जाएगा। अगर उनके कम; अचे्छ होंगे तो उनके साथ अच्छा व्यवहार बिकया जाएगा, लेबिकन अगर उनके कम; ुरे रहे होंगे, तो उनके साथ ुरा व्यवहार बिकया जाएगा 146 मरने के ाद जीबिवत बिकया जाना एवं बिहसा - बिकता होना, एक ऐसी ात है, जिजसे शुद्ध मानव बिववेक भी स्वाकीर करता है और अल्लाह की उतारी हुई शरीयतें में इसका समथ;न करती हैं। दरअसल इसकी ुबिनयाद तीन

लिसद्धाँतों पर स्थाबिपत है :

1- पबिवत्र अल्लाह के संपूण; ज्ञान को लिसद्ध करना।2- पबिवत्र अल्लाह की संपूण; शलिG को लिसद्ध करना।3- पबिवत्र अल्लाह की संपूण; बिहकमत को लिसद्ध करना।

इस बिवषय की लिसजिद्ध एवं समथ;न में हुत सारे अक़ली ( जिजसका सं ंE ुजिद्ध से हो) एवं कु़रआन तथा सुन्नत से प्राप्त प्रमाण मौजूद हैं। कुछ दलीलें बिनम्न में प्रस्तुत हैं :

145 " क़ाइदह फ़ी वुजू अल- ऐबितसाम बि अर-रिरसालह" लेखक : शैख़ुल इस्लाम इब्न-ए- तधैिमया 19/99-102 देखिखए : " लवाधिमउअल- अनवार अल- बिहय्यह" लेखक : सफ़ारीनी 2/261-263।146 देखिखए : "अल- जवा अस-सहीह" 4/96।

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1- Eरती एवं आकाश की रचना को मुद8 को दो ारा जीबिवत करने का प्रमाण नाना। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " क्या वह

नहीं देखते बिक जिजस अल्लाह ने आकाशों और Eरती को पैदा बिकया और उनके पैदा करने से वह न थका , वह ेशक मुद8 को जिजन्दा करने की कुदरत एवं शलिG रखता है। क्यों न हो? वह ेशक हर चीX पर कु़दरत रखता है।" 147 एक अन्य स्थान में उसने कहा है :

" जिजसने आकाशों और Eरती को पैदा बिकया है, क्या वह इन जैसों के पैदा करने पर कादिदर नहीं है? यकीनन है और वही तो पैदा करने वाला जानने वाला है।" 148

2- इस संसार को बिकसी पूव; धिमसाल एवं नमूने के गैर रचना करने की कुदरत एवं शलिG को इस ात की दलील नाना बिक वह इस संसार को दो ारा पैदा करने की शलिG एवं कुदरत रखता है। क्योंबिक जो आरम्भ में बिकसी भी चीX को पैदा करने की शलिG एवं कुदरत रखता हो, वह दो ारा उस चीX को पैदा और रचना करने पर ज्यादा समथ; होगा। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "और

वही है, जो पहली ार सृधिष्ट (मखलूक) को पैदा करता है, वही बिफर से दो ारा पैदा करेगा, और यह तो उसपर हुत आसान है। उसी की अच्छी और उच्च बिवशषेता है।" 149 एक अन्य स्थान में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " और उसने हमारे लिलए धिमसाल यान की और अपनी (मूल) पैदाईश को भूल गया, कहने लगा बिक इन सड़ी- गली हबिÂयों को कौन जिXन्दा कर सकता है? कह दीजिजए बिक उन्हें

वह जिXन्दा करेगा, जिजसने उन्हें पहली ार पैदा बिकया, जो स प्रकार (तरह) की पैदाF श को अच्छी तरह जानने वाला है।'' 150

3- अल्लाह ने मनुष्य को ेहतरीन ढाँचे एवं शक्ल- सूरत में जन्म दिदया है। उसके शरीर के सुंदर एवं संपूण; अंग, उसके अंदर मौजूद बिवक्षिभन्न प्रकार की शलिGयाँ, बिवशेषताएँ और उसके शरीर की अलग- अलग चीXें जैसे उसका मांस, हबिÂयाँ, रगें, पटे्ठ, अंदर की चीXें

ाहर आने और ाहर की चीXें अंदर जाने के रास्ते, उसके बिवक्षिभन्न प्रकार के ज्ञान, इरादे एवं कुशलताए,ँ यह सारी चीXें इस ात का स से ड़ा प्रमाण हैं बिक अल्ला मुद8 की जीबिवत कर सकता है।

4- दुबिनया के जीवन में मुद8 को जिXन्दा करने को आखिख़रत के दिदन मुद8 को जीबिवत करने की क्षमता का दलील नाकर प्रस्तुत करना। रसूलों पर अल्लाह की उतारी हुई बिकता ों में इस तरह की कई घटनाएँ यान की गई हैं। उदाहरण के तौर पर इब्राहीम तथा

ईसा अलैबिहमस्सलाम के हाथों अल्लाह की अनुमबित से मुद8 को जीबिवत बिकया जाना। इस तरह की हुत- सी धिमसालें मौजूद हैं।5- अल्लाह तआला का ऐसे कामों की क्षमता को, जो दो ारा जीबिवत करने तथा एकत्र करने के जैसे ही हैं, मरे हुए लोगों को दो ारा

जीबिवत करने का प्रमाण नाना। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :क. अल्लाह तआला ने मनुष्य को वीय; की एक ंूद से पैदा बिकया, जो बिक जिजस्म के सारे बिहस्सों में बि खरी हुई थी। इसी कारण शरीर

के सारे अंग संभोग के समय आनंद लेने में रा र शरीक होते हैं। अल्लाह तआला इस नुतफे़ को जिजस्म के बिवक्षिभन्न बिहस्सों से इकट्ठा करता है, बिफर उसे औरत के गभा;शय में जमा रखता है, बिफर वहाँ से मनुष्य को जन्म देता है। ज अल्लाह पूरे शरीर में बि खरी हुई

एक ँूद को जमा कर सकता है और उससे इन्सान की रचना कर सकता है, तो मौत के प�ात उसके बि खर जाने के ाद उसे क्यों एकत्र नहीं कर सकता? सव;शलिGमान एवं महान अल्लाह ने कहा है : "अच्छा, बिफर यह तो ताओ बिक जो वीय; तुम टपकाते हो, क्या उससे (इंसान) तुम नाते हो या नाने वाले हम ही हैं?'' 151

ख. बिवक्षिभन्न प्रकार के ीज ज नमीयुG खेत में पड़ते हैं और पानी तथा धिमट्टी की कोख में चले जाते हैं , तो मानव बिववेक यही कहता है बिक उसे सड़- गलकर ख़रा हो जाना चाबिहए, क्योंबिक दोनों तो दूर, दोनों में से एक भी उसे सड़ा- गला देने के लिलए काफ़ी है। लेबिकन

ऐसा नहीं होता। वह सुरक्षिक्षत रहता है। बिफर ज नमी ढ़ती है, तो ीज फट जाता है और उससे पौEा बिनकल आता है। क्या यह अल्लाह की अपार शलिG और अनंत बिहकमत का प्रमाण नहीं है? Xरा सोलिचए बिक ऐसा बिहकमत वाला और शकलिGशाली अल्लाह मरे

हुए व्यलिG के बिवक्षिभन्न अंगों को एकत्र कर और उन्हें जोड़कर उसे जीबिवत क्यों नहीं कर सकता? अल्लाह तआला का फ़रमान है : " अच्छा बिफर यह भी ताओ बिक तुम जो कुछ ोते हो, उसे तुम ही उसे उगाते हो या उसे उगाने वाले हम हैं। '' 152 इसी तरह अल्लाह

तआला ने एक और स्थान में कहा है : " और तुम देखते थे बिक Eरती ंजर और सूखी है, बिफर ज हम उसपर वषा; करते हैं, तो वह उभरती है और लहलहा उठती है और हर तरह की सुन्दर वनस्पबित उगाती है।'' 153

6- ेशक सामथ्य;वान, ज्ञानवान और बिहकमत वाला सृधिष्टकता; इस ात से पबिवत्र है बिक वह बिकसी चीX को बि ना बिकसी उदे्दश्य के पैदा करे और अपनी सृधिष्टयों को ेकार छोड़ दे। अल्लाह तआला का फरमान है : " और हमने आकाश और Eरती और उनके ीच

की चीXों को ेकार ( और बि ला वजह) पैदा नहीं बिकया। यह शक तो काबिफरों का है। तो काबिफ़रों के लिलए आग का बिवनाश है। '' सच्चाई यह है बिक उसने अपनी सृधिष्ट की रचना एक ड़े उदे्दश्य के तहत की है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ मैंने जिजन्नात और इंसानों को लिसफ; इसी लिलए पैदा बिकया है बिक वे केवल मेरी इ ादत करें। '' 154 लिलहाXा हम इस बिहकमत वाले अल्लाह के ारे में यह

147 सूरा अल-अह़काफ़, आयत संख्या : 33

148 सूरा यासीन, आयत संख्या : 81

149 सूरा अर-रंूम, आयत संख्या : 27

150 सूरा यासीन, आयत संख्या : 78-79

151 सूरा अल-वाबिक़आ, आयत संख्या : 58

152 सूरा अल- वाबिक़आ आयत संख्या : 63,64

153 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 5

154 सूरा साद, आयत संख्या : 27

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नहीं मान सकते बिक उसके बिनकट अज्ञाकारी तथा अवज्ञाकारी दोनों रा र हों। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " क्या हम उन लोगों

को, जो ईमान लाए और नेक काम बिकए, उन्हीं के रा र कर देंगे, जो Eरती पर फ़साद मचाते रहे या परहेXगारों को दकारों जैसा कर देंगे?'' 155 अतः उसकी संपूण; बिहकमत एवं ेपनाह सामथ्य; का तक़ाXा यह है बिक वह क़यामत के दिदन सारी सृधिष्टयों को दो ारा

जीबिवत करे, ताबिक प्रत्येक व्यलिG को उसके कम; का दला दिदया जा सके और अच्छा काम करने वाले को अच्छा दला और ुरा काम करने वाले को ुरा दला प्रदान करे। अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " तुम स को अल्लाह के पास जाना है। अल्लाह ने सच्चा वादा कर रखा है। ेशक वही पहली ार पैदा करता है, बिफर वही दो ारा पैदा करेगा, ताबिक ऐसे लोगों को, जो बिक ईमान लाए

और उन्होंने नेकी के काम बिकए, इंसाफ के साथ दला दे और जिजन लोगों ने कुफ्र बिकया उनके पीने के लिलए खौलता हुआ पानी और दुखदायी अXा होगा, उनके कुफ्र के स ।'' 156157

आखिखरत के दिदन यानी दो ारा जीबिवत होकर उठने और बिहसा - बिकता के लिलए उपस्थिस्थत होने के दिदन पर ईमान के व्यलिG तथा समाज पर कई प्रभाव पड़ते हैं। कुछ प्रभाव इस प्रकार हैं :

1- मनुष्य के अन्दर आखिख़रत के दिदन के सवा की चाहत में अल्लाह के आज्ञापलन और उस दिदन की सXा के भय से उसकी अवज्ञा से चने की भावना जागृत होती है।

2- आखिख़रत के दिदन पर ईमान एक मोधिमन को दुबिनया की नेमतों एवं साEनों से वंलिचत रहने एहसास होने नहीं देता, क्योंबिक उसे आखिख़रत की नेमतों और वहाँ के प्रबितफल की आशा रहती है।

3- आखिख़रत के दिदन पर ईमान से ंदा यह जान लेता है बिक उसे मौत के ाद कहाँ जाना है। उसे पता होता है बिक उसे उसके कम8 का प्रबितफल धिमलना है। अगर कम; अच्छा होगा, तो प्रबितफल अच्छा धिमलेगा और अगर कम; ुरा होगा, तो प्रबितफल ुरा धिमलेगा। उसे

मालूम रहता है बिक उसे बिहसा - बिकता के लिलए अपने र के सामने खड़े होना है और उसपर अत्याचार करने वालों से उसे बिक़सास दिदलाया जाएगा और यदिद उसने बिकसी पर अत्याचार बिकया या बिकसी का हक़ मारा, तो उससे भी लोगों का अधिEकार दिदलवाया

जाएगा।4- आखिख़रत पर ईमान मुनष्य को दूसरे लोगों पर अत्याचार करने और उनका हक़ मारने से रोकता है। अतः , ज लोग आखिख़रत के

दिदन पर ईमान ले आते हैं, तो एक- दूसरे पर अत्याचार करने से च जाते हैं और उनके अधिEकार सुरक्षिक्षत हो जाते हैं।5- आखिखरत के दिदन पर ईमान के ाद इंसना सांसारिरक जीवन को जीवन का एक मह;ला समझता है, संपूण; जीवन नहीं।

इस परिरचे्छद के अंत में मैं अमेरीकी ईसाई " वैन बि ट" के एक उद्धरण को प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत करना चाहता हँू। ध्यान रहे बिक यह व्यलिG पहले एक चच; में काम करता था, बिफर ाद में मुसलमान हो गया और आखिख़रत के दिदन पर ईमान का फल प्राप्त बिकया। वह कहता है : " अ मैं उन चार प्रश्नों का उत्तर जानता हँू, जिजनकी तलाश में मेरे जीवन का ड़ा भाग व्यतीत हुआ। अ मुझे मालूम हो

गया है बिक मैं कौन हँू, क्या चाहता हूँ, कहाँ से आया हँू और मुझे कहाँ जाना है?" 158

रूलों के आह्वान के प्रमुख सिद्धांत सारे न ी और रसूल कुछ व्यापक लिसद्धांतों159 के आह्वान में एकमत रहे हैं। जैसे- अल्लाह, उसके फ़रिरश्तों, उसकी पुस्तकों, उसके

रसूलों, अंबितम दिदन और अचे्छ- ुरे भाग्य पर ईमान की ओर ुलाना। इसी प्रकार एक अल्लाह, जिजसका कोई साझी एवं शरीक नहीं है, की उपासना और उसके माग; का अनुसरण करने तथा उसके बिवपरीत माग8 के अनुसरण से चने का आदेश देना। इसी तरह चार

वग; की वस्तुओं यानी खुली तथा छुपी ेहयाइयों, गुनाह, अत्याचार और अल्लाह का साझी नाने एवं ुतों की पूजा को हराम घोबिषत करना। इसी तरह अल्लाह को पत्नी, संतान, साझी, समान, समकक्ष एवं उसके ारे में कोई असत्य ात कहने से पबिवत्र क़रार देना।

साथ ही संतान के वE एवं बिकसी व्यलिG के नाहक़ वE को हराम ठहराना, सूद एवं अनाथ का माल खाने से रोकना, वादा बिनभाने, सही नापकर देने और लेने, माता- बिपता का आज्ञापालन करने, लोगों के ीच न्याय करने, सच्ची ात कहने और सच्चा कम; करने का

आदेश देना, फ़Xूलखच� और ग़लत तरीके़ से लोगों का माल खाने की मनाही आदिद।इब्न-ए- क़ह्हिय्यम 160 कहते हैं : “ सभी शरीयतें, गरचे वे अलग- अलग हों, सैEांबितक रूप से समान हैं और जनमानस में उनकी सुंदरता

सव;मान्य है। अगर यह उससे अलग रंग- रूप में आतीं, जिजस रंग- रूप में आई हैं, तो बिहकमत, मसलहत एवं कृपालुता से परे होतीं। 155 सूरा अX-Xारिरयात, आयत संख्या : 56

156 सूरा साद, आयत संख्या : 28

157 सूरा यूनुस, आयत संख्या : 4 । उस्थिल्लखिखत ातों के लिलए इब्न अल- क़ह्हिय्यम की बिकता "अल-फ़वाइद", पृष्ठ : 6-9 तथा तफ़सीर-ए- राXी 2/113-116 देखें।158 पबित्रका "अद- दावह अस-सऊदिदयह" अंक: 1722 दिदनांक: 19/9/1420, पृष्ठ : 37।159 इन व्यापक लिसद्धांतों की ओर सूरा अल- क़रा आय संख्या : 285, 286, सूरा अल- अंआम आयत संख्या : 151, 153, सूराअल- आराफ़ आयत संख्या : 33 तथा सूरा अल- इसरा आयत संख्या : 23, 37 में इशारा बिकया गया है।160 मुहम्मद बि न अ ू क्र बि न अय्यू अX- ज�रई। सन 691 बिहजरी को पैदा हुए तथा सन 751 बिहजरी में उनकी मृत्यु हुई। इस्लाम

के एक महान बिवद्वान तथा हुत- सी उपयोगी पुस्तकों के लेखक।

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अतः यह जिजस रंग- रूप में हमारे पास आई हैं, उससे अलग रंग- रूप में आना संभव नहीं था। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “अगर

हक़ ही उनकी इच्छाओं का अनुयायी (पैरोकार) हो जाए,ँ तो Eरती और आकाश और उनके ीच की जिजतनी चीजें हैं, स तहस- नहस हो जाए।ँ" 161 कोई भी बिववेकशील व्यलिG इस ात की कल्पना कैसे कर सकता है बिक स से ड़े शासनकता; का नाया हुआ बिवEान उससे क्षिभन्न होता, जो मानव जाबित को प्राप्त हुआ है?162

यही कारण है बिक सारे नबि यों का Eम; एक था। जैसे बिक अल्लाह का फ़रमान है : " ऐ पैगम् रो! हलाल चीजें खाओ और नेकी के काम करो। तुम जो कुछ कर रहे हो, उसको मैं अच्छी तरह जानता हँू। और ेशक तुम्हारा यह दीन एक ही दीन है और मैं ही तुम स का

र हँू। अतः, तुम मुझसे डरते रहो।" 163 दूसरी जगह अल्लाह तआला ने फ़रमाया : “ अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिलए वही दीन मुक़र;र कर दिदया है, जिजसको कायम करने का उसने नूह को हुक्म दिदया था, जो ( वह्य के द्वारा) हमने तेरी तरफ़ भेज दिदया है और जिजसका

बिवशेष हुक्म हमने इब्राहीम और मूसा और ईसा (अलैबिहमुस्सलाम) को दिदया था बिक इस दीन को कायम रखना और इसमें फूट न डालना।" 164

सच्चाई यह है बिक Eम; का उदे्दश्य ंदों को उनके पालनहार, जिजसका कोई साझी नहीं है, की इ ादत का माग; ताना है, जिजसके लिलए उन्हें पैदा बिकया गया है165 । यही कारण है Eम; उनके कुछ कत;व्यों का बिनEा;रण करता है, उनके कुछ अधिEकारों को संरक्षिक्षत करता है और उन्हें कुछ साEन प्रदान करता है, जो उनकी इस उदे्दश्य तक पहँुच को आसान नाए, जिजससे उन्हें अल्लाह की प्रसन्नता तथा लोक एवं परलोक का सौभाग्य प्राप्त हो। बिफर, यह स कुछ एक ऐसे ईश्वरीय बिवEान के अनुसार हो, जो इंसान को अशांबित का

लिशकार नहीं नाता और न उसे बिकसी ऐसी लाइलाज ीमारी में मु तला करता है बिक वह अपनी प्रकृबित, आत्मा और आसपास की दुबिनया से मुसलसल लड़ता ही चला जाए। चुनांचे सारे रसूलों ने उस दीन-ए- इलाही की ओर लोगों को ुलाया है, जो मानव जाबित के आगे वह ुबिनयादी अक़ीदा पेश करता है

जिजसपर वह ईमान लाए और वह Eम; बिवEान प्रस्तुत करता है जिजसपर चलकर वह जीवन व्यतीत करे। अतः तौरात आस्था एवं शरीयत थी और उसके मानने वालों को उसके अनुसार बिनण;य करने का आदेश दिदया गया था। अल्लाह तआला का फरमान ह ै :

" हमन े तौरात उतारी है, जिजसम ें बिहदायत और नूर है। यहूदिदयों म ें इसी तौरात के Xरिरय े अल्लाह के मानन े वाल े अंबि या (अलैबिहमुस्सलाम) और अल्लाह वाले और आलिलम फैसला बिकया करते थे।'' 166 बिफर ईसा अलैबिहस्सलाम आए, जो अपने साथ

इंजील लाए, जिजसमें माग;दश;न एवं प्रकाश था और जो पहले आने वाले गं्रथ तौरात की पुधिष्ट करती थी। अल्लाह तआला का फरमान है : " और हमने उनके पीछे ईसा बि न मरिरयम को भेजा, जो अपने से पहले की बिकता यानी तौरात की पुधिष्ठ करने वाले थे और हम ने

उन्हें इंजील प्रदान की, जिजसमें प्रकाश एवं माग;दश;न था।" 167 बिफर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पEारे, जिजनके साथ एक संपूण; Eम; और अंबितम शरीयत थी, जो अपने से पहले की सारी शरीयतों को बिनयंत्रण में रखने वाली और पहले आने वाली सारी

बिकता ों की पुधिष्ट करने वाली थी। अल्लाह तआला का फरमान है : " और हमने आपकी तरफ सच्चाई से भरी बिकता उतार दी, जो अपने पूव; की पुस्तकों को सच ताने वाली तथा संरक्षक है। अतः आप लोगों का बिनण;य उसी से करें जो अल्लाह ने उतारा है , तथा लोगों की मनमानी पर उस सत्य से बिवमुख होकर न चलें जो आपके पास आया है।" 168 अल्लाह तआला ने ताया है बिक मुहम्मद

सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम और उनके साथ रहने वाले ईमान वाले उसपर ईमान रखते हैं। इसी तरह उनसे पहले के सारे रसूल एवं न ी भी उसपर ईमान रखते थे। अल्लाह तआला फरमाता है : “ रसूल उस चीX पर ईमान लाए जो उसकी तरफ़ अल्लाह की ओर से

उतारी गई है और मुसलमान भी ईमान लाए। यह स अल्लाह, उसके फरिरश्तों, उसकी बिकता ों और उसके रसूलों पर ईमान लाए। उसके रसूलों में से बिकसी के ीच हम फक; नहीं करते। उन्होंने कहा बिक हमने सुना और अनुसरण बिकया। हम तुझसे क्षमा माँगते हैं हे हमारे र ! और हमें तेरी ही तरफ़ लौटना है।" 169

सदा ाक़ी रहने वाला सन्देश 170

पीछे यहूदी, नसरानी, मजूसी, जदु;शती और मूत� पूजा पर आEारिरत Eम8 का जो हाल यान हुआ, उससे छठी सदी ईसवी में मनुष्य 171 का हाल खुलकर सामने आ जाता है। ज Eम; बि गड़ जाए, तो बिफर राजनीबितक, सामाजिजक और आर्शिथंक परिरस्थिस्थबितयाँ भी बि गड़

जाती हैं। बिफर भीषण युद्ध फैल जाता है, अत्याचार होने लगता है और इंसाबिनयत घंघोर अंEकार में जीने लगती है। फलस्वरूप, 161 सूरा अल-मोधिमनून, आयत संख्या : 71

162 " धिमफ्ताहु दार अस-सआदह" 2/383 । देखिखए : "अल- जवा अस- सहीह लिलमन द्दला दीन अल-मसीह" 4/322 तथा " लवाधिमउअल-अनवार" लेखक : अस- सफारीनी 2/263।163 सूरा अल-मोधिमनून, आयत संख्या : 51,52

164 सूरा अश-शूरा, आयत संख्या : 13

165 मजमू फ़तावा इब्न-ए- तैधिमया 2/6।166 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 44।167 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 46।168 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 48।169 सूरा अल- करा, आयत संख्या : 285।170 अधिEक जानकारी के लिलए देखिखए : "अर- रहीक़ अल-मख़तूम" सफ़ीउर;हमान मु ारकपुरी।

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नाल्किस्तकता और अत्याचार की वजह से हृदय भी काले होने लगते हैं, चरिरत्र बि गड़ जाते हैं, इज्जत पामाल होने लगती है, अधिEकार

धिमटने लगते हैं और बिफर जल एवं थल में हर ओर अत्याचार फैल जाता है। उस समय हाल यह था बिक अगर आज कोई ुजिद्धजीवी बिवचार करे, तो पाएगा बिक यदिद उस समय अल्लाह बिकसी महान सुEारक को भेजकर इंसाबिनयत का हाथ थाम न लेता, जो न ूवत की मशाल एवं माग;दश;न का चराग लेकर उसको राह दिदखाने का काम करता, तो उस समय मानवता मरणासन्न अवस्था में थी और क्षय

के बिनकट पहँुच चुकी थी। ऐसे हालात में अल्लाह ने चाहा बिक वह हमेशा ाकी रहने वाली न ूवत के नूर को मक्का मुकर;मा से रौशन करे बिक जहाँ पर महान घर का ा है और वहाँ की परस्थिस्थबितयाँ भी लिशक; , जिजहालत, जुल्म और अत्याचार में दूसरी तमाम इंसानी समाजों की तरह ही थीं। हाँ,

हुत- सी बिवशेषताओं में वह अलग भी था। जैसे :

1. वहाँ का वातावरण साफ था, जो यूनानी, रोमीय और भारतीय बिवचारों की गंदगी से आलूदा नहीं हुआ था और वहाँ के लोग मX ूत भाषा शैली, तेX दिदमाग और आ�य;जनक ुजिद्ध के मालिलक थे।

2. वह दुबिनया के ीच में स्थिस्थत था। वह यूरोप, एलिशया और अफ्रीका के ीच में होने के कारण, हुत कम समय में अल्लाह का यह हमेशा ाकी रहने वाला पैगाम दुबिनया के इन बिहस्सों में ड़ी तेजी के साथ फैल सकता था।

3. वह सुरक्षिक्षत स्थान था, क्योंबिक ज अ रहा ने उसपर हमला करना चाहा था तो अल्लाह ने उसकी बिहफ़ाXत की थी। इसी तरह उसके पड़ोस में कायम रोमन एवं फ़ारसी साम्राज्यों से भी उसे सुरक्षिक्षत रखा था। इतना ही नहीं उसे उत्तर एवं दक्षिक्षण की दिदशाओं में व्यापार के लिलए भी शांबितमय वातावरण प्रदान कर रखा था। यही ातें मक्का में न ी सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम को न ी नाकर

भेजे जाने का कारण नीं। अल्लाह ने मक्का वालों को इस नेमत का स्मरण कराते हुए कहा है : “ क्या हमने भयरबिहत हरम को उनके लिलए बिनवास स्थान नहीं नाया, जिजसकी ओर प्रत्येक प्रकार के फल खिखंचे चले आते हैं?"

4. वहाँ का वातावरण मरुस्थलीय है, जिजसने अपने आचरण में दानशीलता, पड़ोसी का संरक्षण, इसमत की गै़रत आदिद हुत-सी प्रशंसनीय ातों को सुरक्षिक्षत रखा था, जिजनके कारण वह हमेशा ाक़ी रहने वाले संदेश को संभालने का गौरव प्राप्त करने वाला

स्थान न सका। इसी महत्वपूण; स्थान से और उसके कुरैश क ीले से, जो अपनी उच्च कोदिट की भाषा शैली, उत्तम आचरण, शराफ़त एवं सरदारी के लिलए जाना जाता था, अल्लाह ने अपने न ी मुहम्मद وسلم عليه الله का صلى चयन अंबितम न ी एवं रसूल के तौर पर बिकया। आप छठी सदी ईसवी में लगभग 570 ईसवी में पैदा हुए। यतीमी की हालत में पले- ढे़, क्योंबिक बिपता का देहांत उसी समय हो चुका

था ज आप माँ के पेट में थे। बिफर आप छह साल के थे बिक माता एवं दादा का देहांत हो गया। त आपके चचा अ ू तालिल ने आपको पाला- पोसा। इस प्रकार आप यतीमी की हालत में ड़े हुए। इस दौरान आपके प्रबितभाशाली होने की बिनशाबिनयाँ जाबिहर होने

लगीं। आपकी आदतें, चरिरत्र एवं स्वभाव अपनी कौम की आदतों से क्षिभन्न था। आप ात करते समय झूठ नहीं ोलते और बिकसी को कष्ट नहीं देते थे। सच्चाई, पाकदामनी एवं अमानतदारी के मामले में इतने मशहूर हो गए बिक आपकी क़ौम के हुत- से लोग आपके पास अमानत के तौर पर अपने हुमूल्य Eन छोड़ जाते थे और आप उनका अपने Eन की तरह सुरक्षा करते थे, जिजसके कारणं आप

"अमीन" यानी अमानतदार के नाम से बिवख्यात हो गए। आप हुत शम�ले थे। ज से वयस्क हुए, कभी बिकसी के सामने बिनव;स्त्र नहीं हुए। ड़े पाक- साफ़ और परहेXगार थे। लोगों को ुतों की पूजा करते, शरा पीते और रGपात करते देख ड़े दुखी होते थे। लोगों

के जिजन कामों को पसंद करते, उनमें उनका साथ देते और जिजन कामों को नापसंद करते, उनमें उनसे अलग रहते थे। बिनE;नों तथा ेवाओं की सहायता करते और भूखों को खाना खिखलाते थे। इस तरह ज लगभग चालीस साल के हुए, तो अपने चारों ओर के बि गाड़ को देख ड़े दुःखी हुए। अतः, अपने र की इ ादत के लिलए अलग- थलग रहने लगे और उससे सवाल करने लगे बिक वह आपको सीEा माग; दिदखा दे। यह लिसललिसला जारी रहा, यहाँ तक बिक आपके र की ओर से एक फ़रिरश्ता वह्य लेकर आपके पास

उतरा और आपको हुक्म दिदया बिक आप इस Eम; को लोगों तक पहँुचा दें। लोगों को अपने र की इ ादत करने और उसके अलावा अन्य चीXों की इ ादत से दूर रहने की दावत दें। बिफर दिदन- - दिदन और साल- - साल आपपर शरीयत व अहकाम के साथ वह्य का

उतरना जारी रहा, यहाँ तक बिक अल्लाह ने मनुष्य के लिलए इस Eम; को पूरा कर दिदया और इन्साबिनयत पर अपनी नेमत संपूण; कर दी। ज आपका धिमशन पूरा हो गया, तो अल्लाह तआला ने आपको मौत दे दी। मृत्यु के समय आपकी आयु 63 साल थी, जिजस में

से 40 साल न ी होने से पूव; के और 23 साल न ी व रसूल नने के ाद के हैं। जो व्यलिG नबि यों के हालात पर बिवचार करेगा और उनका इबितहास पढे़गा, वह यक़ीनी तौर पर जान लेगा बिक जिजन तरीकों से बिकसी न ी की न ूवत साबि त की जा सकती है, उन सभी तरीक़ों से आपकी न ूवत को ड़ी आसानी से साबि त बिकया जा सकता है। ज आप बिवचार करेंगे बिक मूसा और ईसा अलैबिहमस्सलाम की न ूवत हम तक कैसे पहँुची है, तो आप पाएगँे बिक वह तवातुर के साथ यानी नस्ल-दर- नस्ल ड़ी संख्या में लोगों के माध्यम से हस्तांतरिरत होती हुई हमारे पास आई है और वह तवातुर जिजसके साथ अंबितम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम की न ूवत हमारे पास आई है, कहीं अधिEक ड़ा, मX ूत तरीन तथा बिनकटवत� Xमाने

का है। इसी प्रकार वह तवातुर जिजसके माध्यम से रसूलों के चमत्कार और बिनशाबिनयाँ नक़ल की गई हैं, एक- दूसरे से धिमलता- जुलता है।

ल्किल्क मुहम्मद وسلم عليه الله के صلى हक़ में वह कहीं अधिEक प्र ल है, क्योंबिक आपकी बिनशाबिनयों की संख्या हुत ज़्यादा है। बिफर आपकी स से ड़ी बिनशानी और चमत्कार यह कु़रआन है, जो शुरू से अ तक लगातार ध्वबिन एवं लिलखिखत रूप में तवातुर के साथ हस्तांतरिरत होता आया है। 172

171 इसी लेख का अनुचे्छद " मौजूदा Eम8 के हालात" पृष्ठ 52 पर देखिखए।

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जो मूसा एवं ईसा अलैबिहमस्सलाम के लाए हुए और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम के लाए हुए सही अक़ीदा, ठोस Eम;-

बिवEान और लाभकारी ज्ञान- बिवज्ञान का तुल्नात्मक दृधिष्ट से अध्ययन करेगा, वह पाएगा बिक यह सारी चीXें एक ही स्रोत यानी न ूवत के स्रोत से बिनकलकर आई हैं।

इसी तरह जो अन्य नबि यों के अनुसरणकारिरयों और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम के अनुसरणकारिरयों की तुलना करेगा, उसे मालूम होगा बिक वे लोगों के हक़ में स से अचे्छ लोग ही नहीं, ल्किल्क सभी नबि यों के अनुसरणकारिरयों में ाद के लोगों पर स से अधिEक प्रभाव डालने वाले लोग थे, जिजन्होंने एकेश्वरवाद का प्रचार बिकया, न्याय को फैलाया तथा बिन ;ल एवं बिनE;न लोगों के हक़ में

कृपा थे। 173

अगर आप मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम की न ूवत को प्रमाक्षिणत करने के लिलए अधिEक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं , तो मैं आपके लिलए उन प्रमाणों एवं बिनशाबिनयों को नक़ल कर देता हँू, जिजन्हें अली बि न रब् न अल- त री ने उन दिदनों पाया, ज वह ईसाई थे और उन्हीं के कारण मुसलमान हो गए। ये प्रमाण कुछ इस तरह हैं :

1. आपने केवल एक अल्लाह की इ ादत करने और उसके अलावा तमाम चीXों की इ ादत से दूर रहने की ओर ुलाया। आप इस मामले में सारे नबि यों से सहमत थे।

2. आपने ऐसी खुली बिनशाबिनयाँ दिदखाईं, जिजन्हें केवल अल्लाह के न ी ही प्रस्तुत कर सकते हैं।3. आपने भबिवष्य में होने वाली कई घटनाओं की सूचना दी, जो ाद में हू- - हू घदिटत हुईं।4. आपने दुबिनया और उसके बिवक्षिभन्न देशों की हुत- सी घटनाओं के ारे में सूचना दी और वह उसी तरह घदिटत हुईं, जिजस तरह

आपने ताया था।5. मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम की लाई हुई बिकता यानी पबिवत्र कु़रआन आपकी न ूवत की एक महत्वपूण; बिनशानी है।

क्योंबिक यह एक ड़ी प्रभावशाली बिकता है, जिजसे अल्लाह ने एक ऐसे व्यलिG पर उतारा था, जो पढ़ना लिलखना नहीं जानता था। बिफर उसने डे़- डे़ भाषाबिवदों को चैलेंज कर रखा है बिक वे उस जैसी एक बिकता या उसकी बिकसी सूरा जैसी एक सूरा प्रस्तुत करके

दिदखाए।ँ इस बिकता की सुरक्षा की जिXम्मेवारी अल्लाह ने ली है, उसके Xरिरए सही अक़ीदे को सुरक्षा प्रदान की है, उसके अंदर स से संपूण; Eम;- बिवEान को समाबिहत रखा है और उसके द्वारा स से उत्तम समुदाय को गदिठत बिकया है।

6. आप स से अंबितम न ी हैं। यदिद आप न ी न नाए जाते, तो उन नबि यों की न ूवतें ेमानी होकर रह जातीं, जिजन्होंने आपके न ी नाए जाने की भबिवष्यवाणी की थी।

7. बिपछले नबि यों ने आपके प्रकट होने से हुत पहले ही आपके ारे में सूचना दी थी और आपके भेजे जाने के स्थान तथा नगर और बिवक्षिभन्न समुदायों एवं ादशाहों के आपके अEीन होने और आपके Eम; के चारों दिदशाओं में फैलने की सूचना दी थी।

8. आपका उन तमाम उम्मतों पर गालिल आना, जिजन्होंने आपसे युद्ध बिकया, आपकी न ूवत की बिनशाबिनयों में से एक बिनशानी है, क्योंबिक यह असंभव है बिक कोई व्यलिG यह दावा करे बिक वह अल्लाह की ओर से भेजा हुआ रसूल है और वह झूठा भी हो , बिफर भी अल्लाह उसकी सहायता करे, उसको गल ा प्रदान करे, उसे दुश्मनों पर जीत प्रदान करे, उसके आह्वान को फैलाए, उसके मानने

वालों की संख्या ढ़ाता जाए, क्योंबिक यह चीजें एक सच्चे न ी के हाथ पर ही पूरी हो सकती हैं।9. आपका व्यवहार, पाकदामनी, सच्चाई, प्रशंसायोग्य आचरण औप आपके द्वारा दिदए गए आदेश- बिनद�श आदिद भी आपकी न ूवत

की बिनशानी हैं। क्योंबिक यह सारी ातें एक न ी के अंदर ही एकत्र हो सकती हैं। इस बिहदायत पाने वाले व्यलिG ने इन प्रमाणों को यान करने के ाद कहा : " ये स्पष्ट ातें एवं पया;प्त प्रमाण हैं। जिजसके अन्दर ये पाई

जाएगँी, वह बिनक्षि�त रूप से न ी होगा, सफलताएँ उसके क़दम चूमेंगी, उसकी पुधिष्ट करना Xरूरी होगा और जो उसे ठुकराएगा उसके बिहस्से में असफलता आएगी और वह दुबिनया एवं आखिख़रत में नाकाम व नामुराद होगा।" 174

इस अनुभाग के अन्त में, मैं आपके सामने दो साक्ष्य प्रस्तुत कर रहा हँू। एक तो रोम के भूतपूव; राजा की गवाही, जो मुहम्मद صلىوسلم عليه का الله समकालीन था और दूसरी गवाही समकालीन अंगे्रX ईसाई Eम; प्रचारक जॉन सेंट की है। बिहरक़्ल की गवाही : इमाम ुखारी रबिहमहुल्लाह ने अ ू सुबिफ़यान के उस घटना का उल्लेख बिकया है, ज रोम के ादशाह ने उन्हें

अपने दर ार में ुलाया था। इमाम ुख़ारी कहते ह ैं : " मुझसे अ ुल यमान अल- हकम बि न नाफे़ ने वण;न बिकया, वह कहते हैं बिक हमसे शुऐ ने Xोहरी के माध्यम से यान बिकया, वह कहते हैं बिक मुझे उ ैदुल्लाह बि न अब्दुल्लाह बि न उत् ा बि न मसऊद ने सूचना

दी बिक अब्दुल्लाह बि न अब् ास ने उन्हें तलाया बिक उन्हें अ ू सुबिफ़यान बि न ह ; ने ताया है बिक वह कुरैश के कुछ लोगों के साथ व्यापार के उदे्दश्य से शाम गए हुए थे। यह उस समय की ात है ज अल्लाह के पैग़म् र और कुफ्फ़ार-ए- कुरैश के ीच संधिE हो

172 इसी बिकता में कुरआन के ारे में बिवशेष अनुचे्छद पृष्ठ संख्या 95, 100, 114-117 में देखें।173 देखिखए ; " मजमू अल-फतावा", शैख अल- इस्लाम इब्न-ए- तैधिमया 4/201, 211 और " इफ़हाम अल-यहूद", लेखक : अल-

समौअल अल-मगरिर ी, जो कभी यहूदी थे, बिफर इस्लाम ले आए। पृष्ठ संख्या : 58, 59।174 "अल- दीन वल- दौलह फ़ी इस ात नु ुव्वह नबि ह्हिय्यना मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम", लेखक : अली बि न रब् न अल-त री, पृष्ठ : 47, और देखिखए : "अल-ऐलाम", कुतु; ी, पृष्ठ : 263।

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चुकी थी175 । अ ू सुबिफ़यान का कहना है बिक रोम के ादशाह (Heraclius) ने उनको ुला भेजा, तो वे उससे धिमलने ईलिलया 176 ( ैत

अल-मक़दिदस) गए। ज वे उसके पास पहँुचे, तो उसने उनको अपनी सभा में ुलाया, जहाँ उसके चारों तरफ रोम के डे़- ड़े लोग उपस्थिस्थत थे। उसने अपने अनुवादक को ुलाया और उसके माध्यम से पूछा : यह आदमी जो अपने आपको पैगम् र समझता है,

इससे तुममें से बिकसका रिरश्ता स से बिनकट का है? अ ू सुबिफ़यान का कहना है बिक मैंने कहा : मेरा रिरश्ता उससे स से बिनकट का है। अ उसने कहा : इसे मेरे करी कर दो और इसके सालिथयों को भी बिनकट लाकर इसके ठीक पीछे रहने दो। बिफर अपने अनुवादक से कहा : इसके सालिथयों को ता दो बिक मैं इस आदमी से उस व्यलिG के ारे में प्रश्न करँूगा, जो अपने आपको पैग़म् र समझता है, अगर यह झूठ ोले तो तुम लोग इसे झुठला देना। अ ू सुबिफ़यान कहते हैं : अल्लाह की कसम, अगर मुझे इस ात की शम; महसूस

न होती बिक मेरे साथी मेरे झूठे होने की चचा; करेंगे, तो मैं मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम) के ारे में झूठ ोलने से गुरेX न करता। उसका स से पहला प्रश्न था : तुम लोगों में उसका नस कैसा है? मैंने कहा : वह हमारे ीच ऊँचे नस वाला है। उसने कहा

: क्या यह ात उससे पहले भी तुममें से बिकसी ने कही है? मैंने कहा : नहीं। उसने कहा : क्या उसके पूव;जों में से कोई ादशाह हुआ है? मैंने कहा : नहीं। उसने कहा : अच्छा, तो सम्माबिनत लोगों ने उसकी ात मानी है या कमजोर लोगों ने? मैंने कहा : कमXोर लोगों

ने। उसने कहा : क्या यह लोग ढ़ रहे हैं या घट रहे हैं? मैंने कहा : ढ़ रहे हैं। उसने कहा : क्या उसके Eम; में प्रवेश करने के ाद कोई आदमी उसके Eम; से नाराX होकर पलट भी जाता है? मैंने कहा : नहीं। उसने कहा : क्या उसने अभी जो दावा बिकया है, इससे पहले कभी तुमने उसपर झूठ ोलने का आरोप लगाया है? मैंने कहा : नहीं। उसने कहा : क्या वह Eोखा देता है? मेंने कहा : नहीं, बिकन्तु इस समय हम उसके साथ एक संधिE की अवधिE में हैं और हमें नहीं पता बिक वह क्या करेगा। अ ू सुबिफ़यान कहते हैं बिक इसके लिसवा मैं कोई एक ात भी घुसेड़ नहीं सका। उसने कहा : क्या तुम लोगों ने उससे या उसने तुम लोगों से लड़ाई की है? मैंने कहा :

हाँ। उसने कहा : तो उसकी और तुम्हारी लड़ाई कैसी रही? मैंने कहा : हमारी लड़ाई रा र की रही। कभी वह जीता, तो कभी हम जीते। उसने कहा : वह तुम्ह ें क्या आदेश देता है? मैंन े कहा : वह हमें यह आदेश देता ह ै बिक हम केवल अल्लाह की इ ादत

(उपासना) करें, उसके साथ बिकसी को भी साझी न ठहराएँ और हमारे ाप- दादा जो कुछ पूजते आए हैं, हम उसे छोड़ दें। वह हमें नमाX, सच्चाई, पाकदामनी और रिरश्ते- नाते का ख़याल रखने का आदेश देता है। यह सुन उसने अपने अनुवादक से कहा : इस

आदमी ( अ ू सुबिफ़यान) से कह दो बिक मैंने तुमसे तुम्हारे ीच उस आदमी (पैग़म् र) के नस के ारे में पूछा, तो तुमने ताया बिक वह ऊँचे नस वाला है। इस संदभ; में याद रखो बिक इसी तरह पैगम् र अपनी कौम के ऊँचे कुल में पैदा हुआ करते हैं। बिफर मैंने तुमसे पूछा बिक क्या यह ात उससे पहले भी तुममें से बिकसी ने कही है, तो तुमने तलाया बिक नहीं। अतः, मैं कहता हूँ बिक अगर यह ात उससे पहले तुममें से बिकसी ने कही होती, तो मैं सोचता बिक वह एक ऐसी ात कह रहा है, जो उससे पहले कही जा चुकी है। बिफर

मैंने तुमसे पूछा बिक क्या उसके पूव;जों में से कोई ादशाह हुआ है, तो तुमने जवा दिदया बिक नहीं। मैं कहता हँू बिक अगर उसके पूव;जों में से कोई ादशाह गुXरा होता, तो मैं कहता बिक वह अपने पूव;जों की ादशाहत प्राप्त करना चाहता है। बिफर मैंने तुमसे पूछा बिक

क्या उसने अभी जो दावा बिकया है, उसे कहने से पहले तुमने कभी उसपर झूठ ोलने का आरोप लगाया है, तो तुमने कहा बिक नहीं। इससे मैं समझ गया बिक ऐसा नहीं हो सकता बिक वह लोगों के ारे में तो झूठ न ोले और अल्लाह पर झूठ ाँEे। उसके ाद मैंने तुमसे पूछा बिक उसकी ात की पैरवी _ेष्ठ लोगों ने की है या कमजोर लोगों ने, तो तुमने कहा बिक कमजोर लोगों ने उसकी पैरवी की

है। ऐसे में जान लो वास्तव में पैग़म् रों के मानने वाले इसी तरह के लोग हुआ करते हैं। बिफर मैंने तुमसे पूछा बिक क्या उसके मानने वाले ढ़ रहे हैं या घट रहे हैं, तो तुमने कहा बिक वे ढ़ रहे हैं। दरअसल ईमान की यार इसी तरह ढ़ती जाती है, यहाँ तक बिक वह चारों ओर फैल जाता है। बिफर मैंने तुमसे पूछा बिक क्या उसके Eम; में प्रवेश करने के ाद कोई आदमी उसके Eम; से नाराX होकर पलट भी जाता है, तो तुमने कहा बिक नहीं। वास्तबिवकता यह है बिक ज ईमान का आनन्द दिदलों के अंदर प्रवेश कर जाता है, तो ाहर

बिनकलने का नाम नहीं लेता। बिफर मैंने तुमसे पूछा बिक क्या वह Eोखा देता है, तो तुमने उत्तर दिदया बिक नहीं। दरअसल पैग़म् र ऐसे ही हुआ करते हैं। वे Eोखा नहीं देते। बिफर मैंने तुमसे पूछा बिक वह तुम्हें बिकन ातों का हुक्म देता है, तो तुमने तलाया बिक वह तुम्हें

अल्लाह की इ ादत करने और उसके साथ बिकसी को साझी न ठहराने का आदेश देता है, तुम्हें ुतों की पूजा से मना करता है तथा नमाX पढ़ने, सच ोलने और पाक ाX रहने का आदेश देता है। ऐसे में यदिद तुम्हारी ात सही है, तो वह एक दिदन मेरे क़दमों के

स्थान पर भी अधिEकार कर लेगा। मुझे पता था बिक वह आने वाला है, बिकन्तु मेरा गुमान यह नहीं था बिक वह तुममें से होगा। अगर मुझे आशा होती बिक मैं उसके पास पहँुच सकँूगा, तो मैं उससे धिमलने के लिलए हर कष्ट सहता और अगर मैं उसके पास होता तो उसके दोनों पाँव Eोता। बिफर उसने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम का वह पत्र मँगवाया, जो आपने देहया कल् ी के मारफ़त ुसरा के राजा के नाम लिलखा था। ज पत्र "Heraclius" को दिदया गया, तो उसने उसे पढ़ा। उसमें लिलखा हुआ था : " शुरू अल्लाह

के नाम से जो ड़ा दयालु तथा अबित दयावान है। यह पत्र अल्लाह के ंदे तथा उसके रसूल मुहम्मद की ओर से रूम के ादशाह "Heraclius" के नाम लिलखा गया है। सत्य के माग; का अनुसरण करने वालों पर शांबित की Eारा रसे। इसके ाद, मैं तुम्हें इस्लाम

का आमंत्रण देता हँू। इस्लाम ग्रहण कर लो, सुरक्षिक्षत रहोगे। इस्लाम ग्रहण कर लो, अल्लाह तुम्हें तुम्हारा प्रबितफल दो ार देगा। अगर तुमने मुँह फेरा तो तुमपर अरीलिसयों 177 यानी तुम्हारी प्रजा का भी गुनाह होगा। " ऐ अहे्ल-बिकता ! एक ऐसी ात की ओर आओ, जो हमारे और तुम्हारे ीच समान है बिक हम केवल अल्लाह ही की पूजा करें और बिकसी को उसका साझी न नाएँ और अल्लाह को

छोड़कर हम एक- दूसरे को र (पालनहार) न नाए।ँ अगर लोग मुँह फेरें, तो कह दो बिक तुम लोग गवाह रहो बिक हम मुसलमान हैं।" 178

175 यानी सुलह हुदैबि या की अवधिE में। यह अवधिE दस साल की थी। यह सुलह 6 बिहजरी में हुई थी। देखिखए : " फ़त्ह अल- ारी" 1/34।176 शाम राज्य।177 सहीह ुख़ारी, बिकता अल- जिजहाद "अरीलिसय्यीन" का शब्द आया है।178 इसे इमाम ुख़ारी ने बिकता दउल वह्य, अध्याय :1 में रिरवायत बिकया है।

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समकालीन अंग्रेX ईसाई Eम; प्रचारक जॉन सेंट की गवाही : वह कहता है : " व्यलिG और समूह की सेवा में इस्लाम के लिसद्धान्तों और

उसके बिववरण, तथा रा री और एकता के आEार पर समाज को स्थाबिपत करने में उसके न्याय से लगातार अवगत होने के ाद मैं अपने आपको अपने समुलिचत मन और आत्मा के साथ तेXी से इस्लाम की ओर खिखंचता हुआ पाता हँू और उसी दिदन से मैंने अल्लाह

से वादा बिकया है बिक मैं इस्लाम का प्रचारक नँूगा और सारी दुबिनया में उसके संदेश को आम करने का काम करँूगा।" दरअसल उसे यह बिवश्वास ईसाई मत के गहरे अध्ययन के ाद प्राप्त हुआ था। उसने महसूस बिकया था बिक ईसाई मत हुत- से ऐसे

प्रश्नों का उत्तर नहीं देता, जो लोगों के जीवन में अकसर पेश आया करते हैं। यहीं से वह संदेहों का लिशकार होने लगा, जिजसके ाद उसने साम्यवाद एवं ौद्ध Eम; का अध्ययन बिकया, लेबिकन उसकी प्यास न ुझ सकी। बिफर उसने इस्लाम का गहरा अध्ययन बिकया

और उसे गले लगाकर लोगों को उसकी ओर ुलाने लगा। 179

Gत्म-ए-नबूर्वत बिपछली ातों से आपके सामने न ूवत की हक़ीक़त, उसकी बिनशाबिनयाँ और हमारे न ी मुहम्मद وسلم عليه الله की صلى न ूवत

के प्रमाण स्पष्ट रूप से आ चुके हैं। ऐसे में खत्म-ए- न ूवत पर ात करने से पहले आपके लिलए यह जानना आवश्यक है बिक पबिवत्र अल्लाह बिकसी भी रसूल को बिनम्न कारणों में से बिकसी एक कारण के तहत ही भेजता है :

1- रसूल की रिरसालत बिकसी एक कौम के साथ ख़ास हो और उसे अपना संदेश आसपास के समुदायों को पहँुचाने का आदेश न दिदया गया हो, ल्किल्क अल्लाह दूसरे समुदाय की ओर एक बिवशेष संदेश के साथ एक अन्य रसूल को भेजे।

2- पहले न ी का संदेश लुप्त हो चुका हो। अतः अल्लाह Eम; की पुनः स्थापना के लिलए बिकसी न ी हो भेजे।3- पहले न ी की शरीयत उसके समय के लिलए तो उलिचत रही हो, लेबिकन ाद के दौर के लिलए उलिचत न हो, इसलिलए ऐसे संदेश एवं

शरीयत के साथ एक न ी भेजे, जो उस समय एवं स्थान के अनुरूप हो। वैसे, पबिवत्र अल्लाह ने मुहम्मद وسلم عليه الله को صلى ऐसे संदेश के साथ भेजा है, जो सारे Xमीन वालों के लिलए है और हर समय व स्थान के लिलए उलिचत है। बिफर हर प्रकार के दलाव और परिरवत;न से उसकी बिहफाXत फ़रमा दी, ताबिक आपका संदेश हमेशा जीबिवत रहे, जिजससे लोगों को जिXन्दगी धिमलती रहे और हर प्रकार के छेड़छाड़ और परिरवत;न के दाग से पाक- साफ़ रहे। इन्हीं ातों के मदे्दनXर अल्लाह ने उसे अंबितम संदेश नाया। 180

अल्लाह ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम को एक बिवशेषता यह प्रदान की है बिक आप अंबितम न ी हैं और आपके ाद कोई न ी नहीं होगा। क्योंबिक अल्लाह ने आपके द्वारा संदेशों की समान्विप्त कर दी है, Eम;- बिवEानों के लिसललिसले का अंत कर दिदया है और भवन को पूण; रूप प्रदान कर दिदया है। आपको न ी ना दिदए जाने के ाद ईसा अलैबिहस्सलाम की उस भबिवष्यवाणी ने भी मूत; रूप

ले लिलया है, जिजसमें उन्होंने कहा था : “ क्या तुमने कभी बिकता ों में नही पढ़ा बिक वह पत्थर जिजसे नाने वालों ने ठुकरा दिदया था, वही एक कोने के लिलए सरदार न गया।" 181 पादरी इब्राहीम खलील - जिजसने ाद में इस्लाम क ूल कर लिलया था- ने इस ात को मुहम्मद

सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम की अपने ारे में कही हुई इस हदीस के अनुसार माना है : “ ेशक मेरी धिमसाल और मुझसे पहले के नबि यों की धिमसाल उस व्यलिG की तरह है, जिजसने एक घर नाया। ड़ा अच्छा और हुत संुदर घर नाया। मगर एक कोने में एक

ईंट की जगह खाली छोड़ दी। चुनांचे लोग उसके चारों ओर चक्कर लगाते और उसपर आ�य; करते तथा कहते : तुमने यह ईंट भला क्यों नहीं लगाई?" आपने आगे फरमाया : " तो मैं ही वह ईंट हूँ और मैं नबि यों के लिसललिसले की अंबितम कड़ी हँू।'' 182

यही कारण है बिक अल्लाह ने पाक मुहम्मद وسلم عليه الله के صلى द्वारा लाई हुई बिकता को बिपछली सारी बिकता ों का बिनरीक्षक और उनका नालिसख़ क़रार दिदया। इसी तरह आपकी शरीयत को बिपछली तमाम शरीयतों के लिलए नालिसख ना दिदया। अल्लाह ने

आपकी शरीयत की बिहफाXत की जिXम्मेदारी भी स्वयं ले ली। चुनांचे वह भी उसी तरह तवातुर के साथ एक नस्ल से दूसरी नस्ल को हस्तांतरिरत हुई है, जिजस तरह कु़रआन ध्वबिन एवं लिलखिखत रूप से तवातुर के साथ नक़ल हुआ है। साथ ही इस Eम; के बिवEानों,

आदेशों, बिनषेEों, इ ादतों एवं सुन्नतों पर अमल करने का तरीक़ा भी तवातुर के साथ नक़ल हुआ है। हदीस की बिकता ों से अवगत हर व्यलिG यह जानता है बिक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम के सालिथयों ने मानव जाबित

के लिलए आपके जीवनचरिरत्र, आपकी ातों, कम8, अल्लाह की इ ादत, उसके रास्ते में जिजहाद, उसके जिXक्र और उससे क्षमा याचना, आपकी दानशीलता, वीरता, अपने सालिथयों तथा ाहर से आने वालों के साथ व्यवहार, आपकी ख़ुशी, गम, यात्रा, घर में रहने का

तौर तरीक़ा, खाने तथा पीने एवं वस्त्र Eारण करने का तौर तरीक़ा और सोने- जाने से सं ंधिEत ातें पूरी ारीकी से वण;न की हैं। ज आपको यह एहसास होगा, तो बिवश्वास हो जाएगा बिक इस Eम; को अल्लाह ने सुरक्षिक्षत रखा है और जिजसके कारण यह आज तक सुरक्षिक्षत है। त यह बिवश्वास अपने आप प्राप्त हो जाएगा बिक आप नबि यों तथा रसूलों के लिसललिसले की अंबितम कड़ी हैं। क्योंबिक

179 "अद- दीन अल- बिफ़तरी अल-अ दी" लेखक : मु स्थिश्शर अत- तराXी अल- हुसैनी 2/319।180 उस्थिल्लखिखत ातों के लिलए देखिखए : अल- अकीद अत-तहाबिवय्यह, पृष्ठ : 156, " लवाधिमउ अल- अनवार अल- बिहय्यह" 2/269,277

एवं " म ादिद अल-इस्लाम" पृष्ठ : 64।181 इन्जील मत्ता पृष्ठ : 21-42

182 देखिखए : " मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम फ़ी अत- तौरात व अल- इन्जील व अल- कुरआन" लेखक : मुहतदी इब्राहीम खलील अहमद, पृष्ठ : 73 । वर्णिणंत हदीस को इमाम ुख़ारी ने " बिकता अल मनाबिक ", अध्याय : 18 में रिरवायत बिकया है और शब्द

उन्हीं के हैं। ज बिक इसे मुस्थिस्लम ने भी " बिकता अल-फ़Xाइल" ( हदीस संख्या : 2286) में अ ू हुरैरा रजिXयल्लाहु अन्हु से मरफूअन रिरवायत रिरवायत बिकया है। यह हदीस मुसनद अहमद 2/256,312 में भी है।

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अल्लाह तआला ने हमें ताया है बिक आप नबि यों के लिसललिसले की अंबितम कड़ी हैं। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : “ मुहम्मद तुममें

से बिकसी पुरुष के बिपता नहीं हैं, ”लेबिकन वे अल्लाह के रसूल और अंबितम न ी हैं। 183 और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम ने खुद अपने बिवषय में फ़रमाया ह ै : “ मैं पूरी मखलूक की ओर रसूल नाकर भेजा गया हू ँ और मेर े द्वारा नबि यों का

लिसललिसला ख़त्म कर दिदया गया।" 184

अ इस्लाम की परिरभाषा, उसकी वास्तबिवकता, उसके स्रोतों, स्तंभों और उसके दज8 को यान करने का समय है।"इस्लाम" शब्द का अथ; :

ज आप अर ी भाषा के शब्दकोषों का अध्ययन करेंगे, “तो आपको मालूम होगा बिक इस्लाम'' शब्द का अथ; ह ै : मान लेना, झुक जाना, फ़रमाँ रदार होना, लिसर झुका देना और आदेश देने वाले के आदेश और उसकी मनाही को बि ना बिकसी आपक्षित्त के मान लेना।

“अल्लाह पाक ने सच्चे Eम; को इस्लाम'' का नाम दिदया है, क्योंबिक इस्लाम नाम है बि ना बिकसी आपक्षित्त के अल्लाह का आज्ञापालन करने, उसके आदेश को पूरा करने, बिवशुद्ध रूप से अल्लाह की इ ादत करने, उसकी ताई हुई ातों को सच जानने और उनपर

ईमान लाने का। बिफर इस्लाम बिवशेष रूप से उस Eम; का नाम हो गया, जो मुहम्मद وسلم عليه الله के صلى द्वारा लाया गया है। इस्लाम की परिरभाषा 185 :

इस Eम; का नाम इस्लाम क्यों रखा गया? ेशक Xमीन पर पाए जाने वाले अनेक प्रकार के Eम8 के उनके अपने- अपने नाम हैं। Eम8 “का नामकरण कभी तो बिकसी बिवशेष व्यलिG या बिफर बिवशेष समुदाय के नाम पर हुआ है। चुनांचे नसराबिनयत को नसारा '' से लिलया गया है, ौद्ध Eम; को उसके संस्थापक ुद्ध के नाम से जाना जाता है और Xरदुश्ती Eम; ( पारसी Eम;) को उसकी ुबिनयाद रखने वाले

“Xरदुश्त के नाम से पहचाना जाता है। इसी प्रकार यहूदी Eम; का उदय एक ऐसे क ीले के ीच हुआ जो यहूXा '' के नाम से प्रलिसद्ध था, इसीलिलए उसे यहूदी का नाम दिदया गया। इसी से अन्य Eम8 का हाल जाना जा सकता है। मगर इस्लाम के साथ ऐसा नहीं है।

उसका नामकरण न तो बिकसी बिवशेष व्यलिG के नाम पर हुआ है और न बिकसी बिवशेष समुदाय के नाम पर है। ल्किल्क उसका नाम एक ऐसी बिवशेषता को तलाता है, जो इस्लाम शब्द के अंदर पाया जाता है। इस नाम से जो ातें Xाबिहर होती हैं, उनमें से एक यह है बिक

इस Eम; को वजूद में लाने वाला और इसकी स्थापना करने वाला कोई मनुष्य नहीं है, और न ही यह Eम; बिकसी बिवशेष समुदाय के लिलए है बिक दूसरे समुदायों का उसपर कोई अधिEकार न हो। इसका लक्ष्य यह है बिक जमीन में रहने वाले सार े लोग इस्लाम की

बिवशेषता को अपने अंदर समाबिहत कर लें। जो भी व्यलिG इस बिवशेषता को अपना लेगा, चाहे उसका सं ंE भूतकाल से रहा हो, वत;मान काल से या आने वाले समय से हो, वह मुसलमान कहलाएगा।

इस्लाम की र्वास्तविर्वकता : यह ात मालूम है बिक इस सृधिष्ट की हर चीX एक बिवशेष आदेश और साबि त माग; का पालन करती है। सूय; , चाँद, Xमीन और लिसतारे एक समान्य शासन के अEीन काम कर रहे हैं। वे न तो ाल रा र उससे बिहल सकते हैं और न ही उससे बिनकल सकते हैं। यहाँ तक बिक मनुष्य भी, ज वह अपनी अवस्था पर बिवचार करेगा, उसके लिलए साफ हो जाएगा बिक वह अल्लाह के माग8 का पूण; रूप से

पालन कर रहा है। न तो वह साँस लेता है, न उसे पानी, आहार, रोशनी और गम� की आवश्यकता होती है, मगर उसी समय ज अल्लाह की नाई हुई तक़दीर चाहती है, जो जीवन को चलाता है और उसके सारे अंग उसी तक़दीर के अनुसार काम करते हैं।

जिजतने भी काम ये अंग करते हैं, वह अल्लाह की नाई हुई तक़दीर के अनुसार ही करते हैं। यह व्यापक तक़दीर, जिजसका सृधिष्ट की सारी चीजें अनुपालन करती हैं और आसमान के स से बिवशाल ग्रह से लेकर, Xमीन की रेत

के स से छोटे कण तक, इस ब्राह्मांड की कोई भी चीX उसके अनुपालन से जुदा नहीं है, स कुछ उस एक सामथ्य;वान एवं वैभवशाली ादशाह और पूज्य की तकदीर के अEीन है। अतः, ज आसमान व Xमीन और उनके ीच की सारी चीजें उसी तक़दीर

के अEीन हैं, तो यह सारा ब्राह्मांड उसी सामथ्वा;न ादशाह के आदेश अनुसार चलता है, जिजसने उसे पैदा बिकया है। इस बिववरण से यह ात साफ हो जाती है बिक इस्लाम ही सारी सृधिष्ट का Eम; है। क्योंबिक इस्लाम का मतल ही होता है, ात मानना और बि ना बिकसी

आपक्षित्त के आदेशकता; के आदेशों एवं बिनषेEों का पालन करना, जैसा बिक अभी- अभी आपने जाना है। इस तरह, सूय;, चाँद और Xमीन उसी के आदेश के अEीन हैं तथा हवा, पानी, रोशनी, अंEेरा और गम� उसी के आदेश के अEीन है। इसी प्रकार पेड़, पत्थर

और चौपाये भी उसी के आदेश के अEीन हैं। ल्किल्क वह मनुष्य भी जो अपने र को नहीं पहचानता, उसके अल्किस्तत्व को नकारता और उसकी बिनशाबिनयों का इंकार करता है, या उसके अलावा बिकसी और की इ ादत करता और उसके साथ बिकसी और को साझेदार

नाता है, वह भी अपनी उस बिफ़तरत के अनुसार जिजसपर अल्लाह ने उसे पैदा बिकया है, उसके आदेश के अEीन है। ज आपने यह स जान लिलया, तो आइए हम मनुष्य के अंदर बिवचार करें। आप पाएगँे बिक इंसान को दो चीXों अपनी- अपनी ओर

खींचने में लगी हुई :

183 सूरा अल-अहXा , आयत संख्या : 40

184 इसे इमाम अहमद ने अपनी मुसनद (2/411,412) तथा इमाम मुस्थिस्लम ने " बिकता अल-मसाजिजद" ( हदीस संख्या : 523) में रिरवायत बिक है और शब्द मुस्थिस्लम के हैं।

185 अधिEक जानकारी के लिलए देखिखए : " म ादिद अल-इस्लाम" लेखक : शैख़ हमूद बि न मुहम्मद अल- “ लाबिहम तथा दलील मुख्तसरलिल- फह्म अल- ” इस्लाम लेखक : इब्राहीम ह ;।

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1. मनुष्य की बिफ़तरत, जिजसपर अल्लाह ने उसे पैदा बिकया है। उदाहरण के तौर अल्लाह के आगे झुकना, उससे मुहब् त करना,

उसकी इ ादत करना, उसकी बिनकटता प्राप्त करना, सत्य, भलाई तथा सच्चाई आदिद जिजन चीXों से अल्लाह मुहब् त करता है उनसे मुहब् त करना और असत्य, ुराई, अत्यार एवं ज�ल्म आदिद जिजन चीXों से वह नफ़रत करता है उनसे नफरत करना। साथ ही इसके अबितरिरG बिफ़तरत के अन्य तक़ाXे जैसे Eन, परिरवार एवं संतान का मोह, खाने, पीने एवं बिनकाह की चाहत इन ातों के तक़ाXे के

तौर पर होने वाले अन्य काम, जैसे शरीर के अंगों का उनका आवश्यक काम करना।2. मनुष्य की चाहत और उसकी इच्छा। अल्लाह ने मनुष्य की ओर रसूलों को भेजा और बिकता ें उतारीं, ताबिक वह सत्य एवं असत्य,

बिहदायत और गुमराही तथा अच्छाई एवं ुराई के ीच अंतर कर सके। इसी तरह उसे अक्ल व समझ प्रदान, ताबिक चयन के समय समझ- ूझ से काम ले। अगर वह चाहे, तो अच्छाई के माग; पर चले, जो उसको सत्य एवं बिहदायत की ओर ले जाएगा और अगर चाहे, तो ुराई के माग8 पर चले, जो उसे पाप और बिवनाश की ओर ले जाएगा।

अगर आप मनुष्य की बिफ़तरत के एत ार से उसके ारे में बिवचार करेंगे, तो आप उसे पैदाइशी तौर पर आज्ञाकारी, आज्ञापालन के माग; पर चलने वाला और अन्य सृधिष्टयों की तरह ही इससे अलग न होने वाला पाएगेँ।

लेबिकन मानव इच्छा के एत ारे से उसपर बिवचार करेंगे, तो आप उसे स्वयं अपनी इच्छी का मालिलक पाएगेँ, जो जो रास्ता चाहे चुन “ सकता है। चाहे तो आज्ञापालन का माग; चुने और चाहे तो अवज्ञा की राह पर चले। या शुक्र करने वाला या कुफ़ करने वाला।'' 186

इसीलिलए आपको दो तरह के लोग धिमलेंगे :

एक वह इंसान, जो अपने पैदा करने वाले को पहचानता और उसके र , मालिलक और मा ूद होने पर बिवश्वास रखता है। वह केवल उसी की इ ादत करता है और अपने ऐस्थिच्छक जीवन में उसी की शरीयत पर चलता है। जैसा बिक उसकी रचना के समय ही उसकी

बिफ़तरत में अपने पालनहार को मानने, उसका अनुसरण करने और उसके बिनयोजन के अनुसार जीवन व्यतीत करने की ात रख दी गई थी। इसी प्रकार का इंसान संपूण; मुसलमान। इसका ज्ञान सही माना जाएगा। क्योंबिक उसने अल्लाह को पहचाना, जो उसका

ख़ालिलक़ एवं रचनाकार है और जिजसने उसकी ओर रसूलों को भेजा तथा जानने और सीखने की क्षमता प्रदान की। उसका बिववेक भी सही माना जाएगा। क्योंबिक उसने सोच- बिवचार से काम लिलया और उसके ाद यह बिनण;य लिलया बिक वह केवल उसी अल्लाह की

इ ादत करेगा, जिजसने उसको सारी ातों पर बिवचार करने और उनको समझने की योग्यता दी है। उसकी X ान भी सही और सत्य ोलने वाली हो गई। क्योंबिक अ वह केवल उसी एक र का इक़रार करती है, जिजसने उसे ोलने और अपनी ात कहने की शलिG

दी है।अ गोया उसके जीवन में सच ही सच है, क्योंबिक वह अपने उन कामों में, जिजनमें उसकी इच्छा का दख़ल है, अल्लाह की शरीयत का पालन कर रहा है तथा उसके और अन्य सारी सृधिष्टयों के ीच परिरचय और प्रेम का रिरश्ता कायम हो चुका है। क्योंबिक वह

केवल उसी ज्ञानवान एवं बिहकमत वाले अल्लाह की इ ादत करता है, जिजसके आदेश का अनुपालन सारी सृधिष्टया ँ करती हैं और जिजसकी बिनEा;रिरत तक़दीर के अनुसार सारी मख़लूक़ात चलती हैं, जिजन्हें उसने तुम्हारे काम में लगा रखा है।

कुफ्र की र्वास्तविर्वकता : उसके बिवपरीत एक दूसरा मनुष्य है, जो मानने वाला नकर पैदा हुआ और अपना पूरा जीवन मानने वाला नकर ही बि ताया, मगर अपने मानने वाले होने का एहसास न कर सका और अपने र को पहचान न सका। चुनांचे उसकी शरीयत पर ईमान नहीं लाया, उसके रसूलों की ात नहीं मानी और उसे अल्लाह ने जो ज्ञान और बिववेक दे रखा था उसका इस्तेमाल नहीं बिकया बिक उस हस्ती को

पहचान सके, जिजसने उसे पैदा बिकया है और उसके कान और आँख नाए हैं। परिरणामस्वरूप उसने उसके अल्किस्तत्व का इंकार कर दिदया, उसकी इ ादत से मुँह मोड़ लिलया और इस ात पर आमादा नहीं हुआ बिक अपने जीवन के एस्थि¦तयार वाले कामों में अल्लाह

की शरीयत का पालन करे या बिफर उसने अन्य वस्तुओं को अल्लाह का साझी ना डाला। उसने अल्लाह की उन बिनशाबिनयों पर भी ईमान लाने से इंकार कर दिदया, जो उसकी वहदाबिनयत ( अकेला होने) को प्रमाक्षिणत करती हैं। इसी प्रकार के व्यलिG को काबिफ़र

(अबिवश्वासी) कहते हैं। क्योंबिक कुफ्र का अथ; छुपाना और ढाँपना है। कहा जाता है : " بثوبه درعه यानी "كفر उसने अपने कवच को अपने कपड़े को छुपा दिदया। बिफर, इस तरह के व्यलिG को खाबिफ़र इसलिलए कहा जाता है, क्योंबिक उसने अपनी प्रकृबित को अज्ञानता

और मूख;ता के परदे में छुपा दिदया है। आपको अच्छी तरह मालूम है बिक इंसान इस्लाम की प्रकृबित पर पैदा होता है और उसके शरीर “के सारे अंग इस्लाम की प्रकृबित के अनुसार ही काम करते हैं। मनुष्य के चारों ओर की सारी सृधिष्ट भी मानने'' के माग; पर चल रही है।

लेबिकन उसने उसे अपनी अज्ञानता और मूख;ता के पद� में डाल दिदया है तथा उसके बिववेक से इस ब्राह्मांड की प्रकृबित और स्वयं उसकी प्रकृबित छुप गई है। इसलिलए आप देखेंगे बिक वह अपनी ुजिद्ध एवं बिववेक से सं ंधिEत शलिGयों को प्रकृबित बिवरोEी काय8 में ही इस्तेमाल

कर रहा है। उसे उसके बिवपरीत चीजें ही दिदखाई देती हैं और प्रकृबित को नष्ट करने वाली चीXों के पीछे ही उसकी सारी दौड़ -भाग होती है।

अ आप खुद ही बिवचार करें बिक काबिफ़र बिकतनी दूर की गुमराही और खुले अंEकार में डू ा हुआ होता है। 187

यह इस्लाम, जो आपसे यह अपेक्षा करता है बिक आप उसका अनुसरण करें, इसका पालन करना मुल्किश्कल काम नहीं, ल्किल्क अल्लाह आसान कर दे तो ड़ा आसान है। इसी इस्लाम पर सारी सृधिष्ट चल रही है : " और तमाम आसमानों वाले और Xमीन वाले सभी उसी

की ात मानने वाले हैं, चाहे खुशी से या नाखुशी से।" 188 यही अल्लाह का Eम; है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया : "बिन: सन्देह अल्लाह 186 सूरा अल-इंसान, आयत संख्या : 3

187 म ादी अल-इस्लाम, पृष्ठ : 2, 4।188 सूरा आले इमरान, आयत संख्या : 83

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के बिनकट Eम; इस्लाम ही है।" 189 उसका अथ; है, अपने लिसर को अल्लाह के आगे झुका देना। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "अगर ये आपसे झगड़ें, तो आप कह दें बिक मैंने और मेरी ात मानने वालों ने अल्लाह के लिलए लिसर को झुका दिदया है।" 190 न ी सल्लल्लाहु

अलैबिह व सल्लम ने इस्लाम का अथ; ताते हुए फ़रमाया है : “ तुम अपने हृदय अल्लाह के हवाले कर दो, अपने चेहरे को उसी की ओर मोड़ दो और फX; Xकात अदा करो।" 191 एक व्यलिG ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम से पूछा बिक इस्लाम क्या

है? तो आपने उत्तर दिदया : " तुम्हारा हृदय अल्लाह के आगे झुक जाए और तुम्हारी X ान और हाथ से मुसलमान महफूX रहें।" उसने पूछा : इस्लाम की कौन- सी ात स से उत्तम है? फ़रमाया : "ईमान।" पूछा : ईमान क्या है? फ़रमाया : " यह बिक तुम ईमान लाओ

अल्लाह पर, उसके फ़रिरश्तों पर, उसकी बिकता ों पर, उसके रसूलों पर और मृत्यु के ाद दो ारा जिXन्दा बिकए जाने पर।" 192 इसी तरह अल्लाह के रसूल ने फरमाया है : “ इस्लाम यह है बिक तुम इस ात की गवाही दो बिक अल्लाह के लिसवा कोई सच्चा मा ूद नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, नमाX क़ायम करो, Xकात अदा करो, रमXान के रोXे रखो और यदिद सामथ्य; हो तो अल्लाह के

घर का ा का हज करो।" 193 इसी तरह आपका फ़रमान है : " असल मुसलमान वह है, जिजसकी X ान और हाथ से दूसरे मुसलमान सुरक्षिक्षत रहें।" 194

यही Eम; इस्लाम Eम; है, जिजसे छोड़कर बिकसी Eम; को अल्लाह ग्रहण नहीं करेगा। न पहले के लोगों से, न ाद के लोगों से। क्योंबिक तमाम न ी इसी Eम; के प्रचारक थे। अल्लाह तआला ने नूह अलैबिहस्सलाम के ारे में कहा है : " ऐ मेरी कौम, अगर तुमको मेरा रहना

और अल्लाह की आयतों की नसीहत करना भारी लगता है, तो मैं तो केवल अल्लाह ही पर भरोसा करता हूँ ... यहाँ से इन शब्दों तक : और मुझे हुक्म दिदया गया है बिक मैं मुसलमानों में से रहँू।" 195 इसी तरह इब्राहीम अलैबिहस्सलाम के ारे में कहा है : " ज उनके

र ने उनसे कहा : तू मेरा अज्ञाकारी हो जा। उन्होंने कहा : मैं सारे जहान के र का आज्ञाकारी हो गया।'' 196 इसी तरह मूसा عليهके السلام ारे में फरमाया है : और मूसा ने कहा : “ ऐ मेरी क़ौम के लोगो, अगर तुम अल्लाह पर ईमान लाए हो, तो उसीपर भरोसा करो, अगर तुम मुसलमान हो।'' 197 इसी ईसा अलैबिहस्सलाम की घटना में कहा है : " और ज बिक मैंने हवारिरयों को आदेश दिदया बिक

मुझपर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ, तो उन्होंने कहा बिक हम ईमान लाए और आप गवाह रबिहए बिक हम मुसलमान हैं।'' 198

यह इस्लाम Eम; अपना बिवEान, Eारणाएँ और आदेश तथा बिनषेE अल्लाह की प्रकाशना यानी कु़रआन थता सुन्नत से प्राप्त करता है। अ हम संक्षिक्षप्त में कु़रआन एवं सुन्नत के ारे में कुछ ातें यान करते हैं।

इस्लाम के स्रोत असत्य Eम8 एवं तथाकलिथत पंथों के मानने ऐसी पुस्तकों का सम्मान करते आए हैं, जो उन्हें नस्ल-दर- नस्ल हस्तांतरिरत होती आई हैं।

जो लिलखी तो पुराने समयों में गई हैं, लेबिकन अकसर न उनके लिलखने वाले का पता होता और न अनुवाद करने वाले का और न यह मालूम होता है बिक क लिलखी गई हैं। दरअसल उन्हें ऐसे मनुष्यों ने लिलखा है, जो दूसरे मनुष्यों की तरह ही हुत सी कधिमयों,

कोताबिहयों और भूलचूक के लिशकार हुए होंगे। लेबिकन ज ाँ तक इस्लाम की ात है, तो उसे दूसरे Eम8 की तुलना में यह बिवलिशष्टता प्राप्त है बिक वह अल्लाह की वह्य पर आEारिरत

सच्चे स्रोत यानी कु़रआन एवं सुन्नत पर दिटका हुआ है।अ आइए संक्षिक्षप्त में इन दोनों से परिरलिचत हो जाएँ :

क- पविर्वत्र कुरआन : अ तक जो कुछ यान हो चुका है, उससे आप अवगत हो गए हैं बिक इस्लाम अल्लाह का Eम; है। इसी Eम; की स्थापना के लिलए

अल्लाह ने कुरआन को मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पर उतारा, जो लोगों का माग;दश;न, मुसलमानों का संबिवEान, जिजन लोगों को अल्लाह लिशफ़ा देना चाहे उनके दिदलों के लिलए लिशफ़ा और जिजनको सफलता एवं रोशनी प्रदान करना चाहे, उनके लिलए दीपक

189 सूरा आले इमरान, आयत संख्या : 19

190 सूरा आले इमरान, आयत संख्या : 20

191 इसे इमाम अहमद (5/3) और इब्ने बिहब् ान (1/377) में रिरवायत बिकया है।192 इसे इमाम अहमद ने अपनी मुस्नद 4/114 में रिरवायत बिकया है, और इमाम हैसमी ने "अल-मजमा'' 1/59 में कहा है बिक इसे

अहमद और त रानी ने अल- क ीर में इसी तरह रिरवायत बिकया है तथा इसके वण;नकता; बिवश्वासयोग्य हैं। देखिखए : " रिरसाला फ़ज़्लअल-इस्माम", लेखक : इमाम मुहम्मद बि न अब्दुल वह्हा , पृष्ठ : 8

193 इसे मुस्थिस्लम ने " बिकता अल-ईमान", हदीस संख्या : 8 में रिरवायत बिकया है।194 इसे ुख़ारी ने " बिकता अल-ईमान" में रिरवायत बिकया है और शब्द उन्ही के हैं। ज बिक मुस्थिस्लम ने अपनी सहीह " बिकता अल-ईमान", हदीस संख्या : 39, अध्याय : "अल- मुस्थिस्लम मन सलिलम अल- मुस्थिस्लमून धिमन लिलसाबिनह व यदिदह" में रिरवायत की है।195 सूरा यूनुस, आयत संख्या : 71, 72

196 सूरा अल- क़रा, आयत संख्या : 131

197 सूरा यूनुस, आयत संख्या : 84

198 "अत-तदम्मुरिरय्यह" पृष्ठ : 109,110 । ज बिक आयत सूरा अल- माइदह आयत संख्या : 111 से ली गई है।

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है। कुरआन उस लिसद्धांतों पर सह्हिम्मलिलत है, जिजनके लिलए अल्लाह ने रसूलों 199 को भेजा। कुरआन कोई नई बिकता नहीं है, जैसे बिक

मुहम्मद وسلم عليه الله कोई صلى नए न ी नहीं थे। अल्लाह ने इब्राहीम अलैबिहस्सलाम पर सहीफे़ उतारे थे, मूसा السلام عليه पर तौरात उतारी थी, दाऊद अलैबिहस्सलाम को X ूर प्रदान बिकया था और ईसा अलैबिहस्सलाम इंजील लाए थे। यह सारी बिकता ें

अल्लाह की ओर से वह्य हैं, जिजनको अल्लाह ने नबि यों और रसूलों पर उतारा था। लेबिकन इनमें से अधिEकतर गुम हो चुकी हैं, उनके अधिEकतर भाग धिमट चुके हैं और उनके साथ छेड़छाड़ की गई है।

लेबिकन कुरआन की रक्षा की जिXम्मेदारी स्वयं अल्लाह ने ली है और उसे बिपछली बिकता ों का संरक्षक और उनका नालिसख़ (बिनरस्त करने वाला) नाया है। अल्लाह तआला का फरमान है : " और हमने आपकी ओर हक के साथ यह बिकता उतारी है, जो अपने से अगली बिकता ों की पुधिष्ट करने वाली है और उनकी संरक्षक है।'' 200 अल्लाह ने उसे हर चीX को यान करने वाली बिकता कहा है । अल्लाह का फ़रमान है : " और हमने तुझपर यह बिकता उतारी है, जिजसमें हर चीX का संतोषजनक यान है।'' 201 उसे माग;दश;न एवं कृपालुता भी कहा है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया : “ अ तुम्हारे पास तुम्हारे र की ओर से एक खुला तक; और माग;दश;न तथा दया

आ गई है।'' 202 यह भी कहा है बिक कुरआन सीEा रास्ता दिदखाता है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " सत्य में यह कुरआन वह रास्ता दिदखाता है, जो हुत ही सीEा है।" 203 वह इन्सानों को जिXन्दगी के हर मोड़ पर स से सीEा रास्ता दिदखाता है।

यह मुहम्मद وسلم عليه الله की صلى उन बिनशाबिनयों में से एक है, जो क़यामत के दिदन तक ाक़ी रहेंगी। बिपछले नबि यों के चमत्कार उनके जीवन की समान्विप्त के साथ ही समाप्त हो जाया करते थे, लेबिकन कु़रआन एक ाक़ी रहने वाला चमत्कार है। कु़रआन एक प्रभावशाली चमत्कार और रौशन बिनशानी भी है। अल्लाह ने मानव जाबित को चैलेंज कर रखा है बिक वह उसके जैसी

कोई पुस्तक या उसकी जैसी दस सूरतें या बिफर कम से कम एक सूरा ही लाकर दिदखाए। लेबिकन वह इस चुनौती को स्वीकार न कर सका। ज बिक वह अक्षरों एवं शब्दों ही से ना है और जिजस समुदाय पर कु़रआन उतरा था, उसे अपनी साबिहन्वित्यक संपदा पर ड़ा

नाX था। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " क्या यह लोग यह कहते हैं बिक आपने उसको घड़ लिलया है? आप कह दीजिजए बिक तो बिफर तुम उसकी तरह एक ही सूरा लाओ और अल्लाह के अबितरिरG जिजनको भी ुला सको ुला लो, अगर तुम सच्चे हो।'' 204

कुरआन अल्लाह की वह्य है, इसका एक प्रमाण यह है बिक इसके अन्दर बिपछली उम्मतों की हुत- सी कहाबिनयाँ मौजूद हैं। उसने आने वाले समय से सं ंधिEत कई भबिवष्यवाक्षिणयाँ कीं, जो बि ल्कुल उसी तरह घदिटत हुईं। उसने हुत- से ऐसे वैज्ञाबिनक तथ्य भी यान बिकए,

जिजनमें से कुछ के ारे में वैज्ञाबिनक इस आEुबिनक काल ही में पता लगा सके। कुरआन के अल्लाह की वाणी होने का एक प्रमाण यह भी है बिक अल्लाह के न ी ने, जिजनपर यह कु़रआन उतरा था, कु़रआन के अवतरण से पहले न इस तरह की वाणी प्रस्तुत की है और

न ही इससे धिमलती- जुलती कोई वाणी। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ आप कह दीजिजए बिक अगर अल्लाह को मंXूर होता, तो न मैं तुमको पढ़कर सुनाता और न अल्लाह तआला तुमको इसकी ख़ र देता, क्योंबिक मैं इससे पहले तो एक ड़ी आयु तक तुममें रह

चुका हँू, बिफर क्या तुम अक्ल नहीं रखते।'' 205 वह पढ़ाई- लिलखाई से वंलिचत व्यलिG थे, न पढ़ सकते थे और न लिलख सकते थे। न बिकसी गुरू के पास कभी गए, न बिकसी लिशक्षक के पास ैठे। न तो पढ़ सकते थे और न ही लिलखना जानते थे। लेबिकन इसके ावजूद

भाषाबिवदों को चुनौती देते थे बिक कु़रआन के जैसी कोई पुस्तक लाकर दिदखाए।ँ अल्लाह तआला का फ़रमान है : " इससे पहले तो आप कोई बिकता पढ़ते न थे और न बिकसी बिकता को अपने हाथ से लिलखते थे बिक यह ाबितल की पूजा करने वाले लोग शक में

पड़ते।'' 206 यह पढ़ने- लिलखने से वंलिचत व्यलिG, जिजसके ारे में तौरात और इंजील भी में लिलखा है बिक वह अनपढ़ होगा और पढ़-लिलख नहीं सकेगा, उसके पास यहूदी एवं ईसाई Eम8 के Eम; गुरू - जिजनके पास तौरात एवं इंजील के चे हुए भाग मौजूद थे- आते थे और उन मामलों में उससे पूछते थे, जिजनमें उनका मतभेजा हो जाया करता था। अल्लाह तआला ने तौरात एवं इंजील में मौजूद अल्लाह

के अंबितम न ी की सूचना को स्पष्ट करते हुए कहा है : “ जो लोग ऐसे रसूल अनपढ़ न ी का आज्ञापालन करते हैं, जिजनको वह लोग अपने पास तौरात व इंजील में लिलखा हुआ पाते हैं, वह उनको नेक ातों का आदेश देते हैं और ुरी ातों से रोकते हैं और पाकीXा चीXों को हलाल ताते हैं और गंदी चीXों को उनपर हराम फ़रमाते हैं।'' 207 यूदिदयों एवं ईसाइयों द्वारा मुहम्मद عليه الله صلى

से وسلم पूछे गए प्रश्न का बिववरण देते हुए कहा है : “ अहे्ल बिकता आपसे अनुरोE करते हैं बिक आप उनके पास कोई आसमानी बिकता लाए।ँ'' 208 इसी तरह फ़रमाया है : " और यह लोग आपसे रूह के ारे में प्रश्न करते हैं।" 209 एक अन्य स्थान में कहा है : “और

199 "अस- सुन्नह व मकानतुहा फी अत- तशरी अल-इस्लामी", लेखक : मुस्तफा अल-लिस ाई, पृष्ठ : 376

200 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 48

201 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 89

202 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 157

203 सूरा असरा, आयत संख्या : 9

204 सूरा यूनुस, आयत संख्या : 38

205 सूरा यूनुस, आयत संख्या : 16

206 सूरा अव-अंक ूत, आयत संख्या : 48

207 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 157

208 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 153

209 सूरा अल-इसरा, आयत संख्या : 85

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यह लोग आपसे ज�ल- क़रनैन के ारे में पूछ रहे हैं।" 210 एक और स्थान में फ़रमाया है : " ेशक यह कुरआन नी इसराईल के सामने उन अधिEकतर चीXों का यान कर रहा है, जिजनमें यह बिववाद रखते हैं।" 211

पादरी इब्राहीम बिफलिलप्स ने अपने पी.एच.डी. के शोEपत्र में कुरआन के अंदर कमी बिनकालने का प्रयत्न बिकया था, लेबिकन सफल नहीं हुआ। कुरआन ने अपने मज ूत तक8 से उसे ऐसा करने से असमथ; कर दिदया। अंततः उसने अपने असमथ; होने की घोषणा कर दी

और अपने र के सामने नतमस्तक होते हुए इस्लाम स्वीकार कर लिलया। 212

ज एक मुसलमान ने अमरीकी डॉक्टर जेफ़री लैंग (Jaffrey Lang) को एक अनूदिदत कुरआन भेंट बिकया, तो उसने पाया बिक कुरआन उसकी आत्मा को संभोधिEत करता है और उसके प्रश्नों का उत्तर देता है तथा इंसान एवं उसकी आत्मा के ीच की रुकावट

को दूर करता है। उसने यहाँ तक कह दिदया : “ ऐसा लगता है बिक जिजसने कुरआन उतारा है, वह मेरे ारे में स्वयं मुझसे भी अधिEक जानता है।" 213 ऐसा हो भी क्यों ना? जिजसने कु़रआन उतारा है, उसी ने इंसान को पैदा बिकया है। वह पबिवत्र अल्लाह की हस्ती है। उसका फ़रमान है : " क्या वही न जाने जिजसने पैदा बिकया? बिफर वह ारीक ीं और जानता भी हो।" 214 उसका अनूदिदत कु़रआन का

अध्ययन उसके इस्लाम ग्रहण करने और इस बिकता को लिलखने का कारण न गया, जिजससे मैंने यह उद्धरण लिलया है। महान कुरआन हर उस चीX को सह्हिम्मलिलत है, जिजसकी मनुष्य को Xरूरत पड़ती है। उसके अंदर ुबिनयादी लिसद्धांत, आस्थाए,ँ आदेश

एवं बिनषेE, मामलात और आदा आदिद, स कुछ मौजूद है। अल्लाह तआला को फ़रमान ह ै : " हमने पुस्तक में कोई चीX नहीं छोड़ी।'' 215 उसके अंदर अल्लाह को एक मानने की ओर ुलाया गया है। उसके नाम, काम तथा बिवशेषताओं का वण;न है। वह

नबि यों और रसूलों की लाई हुई लिशक्षाओं को सत्य ताता है। आखिख़रत, प्रबितफल और बिहसा की ताकीद करता है और इसके तक; भी देता है। बिपछली उम्मतों की घटनाओं का वण;न करता है, उनको जो कठोर दंड धिमले उनको यान करता है और आखिखरत में

उनको जो दंड धिमलेगा, उसका भी उल्लेख करता है। उसके अंदर हुत सी ऐसी दलीलें, बिनशाबिनयाँ और तक; मौजूद हैं, जो बिवद्वानों को चबिकत कर देते हैं। यह हर युग के लिलए उपयुG है । इसके अंदर वैज्ञाबिनक तथा खोज करने वाले अपनी खोई हुई कामना पाते हैं। आपके समक्ष केवल तीन उदाहरण प्रस्तुत , जो मेरे इस

दावे को बिकसी हद तक स्पष्ट कर देंगे। ये उदाहरण कुछ इस प्रकार हैं :1- अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और वही है जिजसने धिमला दिदया दो सागरों को, यह मीठा रुलिचकर है और वह नमकीन खारा,

और उसने ना दिदया दोनों के ीच एक पदा; एवं रोक।'' 216 एक दूसरी जगह अल्लाह तआला ने फ़रमाया : " या बिफर जैसे एक गहरे समुद्र में अंEेरे, लहर के ऊपर लहर छा रही है, उसके ऊपर ादल है, अंEेरे हैं एक पर एक। ज वह अपना हाथ बिनकाले तो उसे वह सुझाई देता प्रतीत न हो। जिजसे अल्लाह ही प्रकाश न दे, उसके लिलए कोई प्रकाश नहीं।'' 217

सव;बिवदिदत है बिक अल्लाह के अंबितम न ी وسلم عليه الله ने صلى समुद्र की यात्रा नहीं की थी और न ही उनके युग में ऐसे साEन थे, जो समुद्र की गहराई का पता लगाने में सहायक होते। ऐसे में अल्लाह के अबितरिरG भला बिकसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व

सल्लम को यह जानकारिरयाँ प्रदान कीं?2- अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और ेशक हमने इंसान को खनखनाती धिमट्टी के सार (खुलासा) से पैदा बिकया। बिफर उसे वीय;

नाकर एक सुरक्षिक्षत जगह में रख दिदया। बिफर वीय; को हमने जमा हुआ खून ना दिदया, बिफर उस खून के लोथडे़ को गोश्त का टुकड़ा ना दिदया, बिफर गोश्त के टुकड़े में हबिÂयाँ नाईं, बिफर हबिÂयों को गोश्त पहना दिदया, बिफर एक दूसरी शक्ल में उसे पैदा कर दिदया।

ा रकत है वह अल्लाह, जो स से अच्छी पैदाइश करने वाला है।" 218 ज बिक सच्चाई यह है बिक वैज्ञाबिनकों ने भू्रण रचना के बिवक्षिभन्न चरणों के ये सूक्ष्म बिववरण आज के इस दौर में आकर ही प्राप्त बिकए।

3- अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और उसी (अल्लाह) के पास गै की कंुजिजयाँ हैं, जिजनको लिसफ; वही जानता है, और जो थल और जल में है उन सभी को वह जानता है और जो भी पत्ता बिगरता है उसे भी वह जानता है और जमीन के अंEेरों में जो भी दाना है और जो भी तर तथा खु़श्क है, स कुछ एक खुली बिकता में है।" 219 मानव समाज इतनी व्यापक जानकारी एकत्र कर पाना तो दूर,

210 सूरा अल-कह्फ़, आयत संख्या : 83

211 सूरा अन-नम्ल, आयत संख्या : 76

212 देखिखए : "अल- मुसतशरिरकून व अल- मु स्थिश्शरून फ़ी अल- आलम अल- अर ी व अल-इस्लामी" लेखक : इब्राहीम खलील अहमद।213 "अल- लिसराअ धिमन अज्ल अल-ईमान", लेखक : डॉ. जैफ़री लैंग, अनुवाद : मुनजिजर अल-अ सी, प्रकाशण : दार अल-बिफक्र, पृष्ठ : 34।214 सूरा अल-मुल्क, आयत संख्या : 14

215 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 38

216 सूरा अल-फुरक़ान, आयत संख्या : 53

217 सूरा अन-नूर, आयत संख्या : 40

218 सूरा अल-मोधिमनून, आयत संख्या : 12-14

219 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 59

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अभी तक इसके ारे में सोच भी नहीं सका है। ल्किल्क ज कुछ वैज्ञाबिनकों ने बिकसी पौEे या बिकसी कीट का अध्ययन बिकया और उसके ारे म ें प्रयाप्त जानकारिरयों को एकत्र बिकया, तो हम उन्हें जानकर आ�य;चबिकत रह गए। हालाँबिक उनके द्वारा जुटाई गई

जानकारिरयों के मुक़ा ले में उनकी पहँुच से ाहर रह जाने वाली जानकारिरयाँ कहीं अधिEक हैं। फ्रांसीसी बिवद्वान मोरेस ोकाय ने कुरआन, इंजील, तौरात और उन आEुबिनक खोजों तथा आबिवष्कारों के ीच तुलना की, जिजनका

सं ंE Eरती, आकाश तथा मनुष्य की रचना से ह ै , तो उसने पाया बिक आEुबिनक खोजें कु़रआन के वण;न के अनुरूप हैं। ज बिक उसने पाया बिक इस समय मौजूद तौरात तथा इंजील के अंदर जानवरों, इन्सानों, आकाशों एवं Eरती की रचना से सं ंधिEत हुत सारी

ातें ग़लत हैं।220

ख- नबी की ुन्नत : अल्लाह तआला ने मुहम्मद पर कुरआन करीम को उतारा और आपकी ओर उसी के समान एक अन्य चीX की वह्य की। वह है,

आप की सुन्नत, जो कुरआन की व्याख्या करती है और उसके आदेशों को स्पष्ट करती है। आप وسلم عليه الله का صلى फ़रमान है : "सुनो! मुझे कुरआन और उसके समान एक और चीX दी गई है।" 221 अल्लाह तआला ने आपको यह अनुमबित प्रदान की थी बिक

आप कुरआन में जो साEारण, बिवशेष या संक्षिक्षप्त ातें हैं उनको स्पष्ट कर दें। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ यह जिजक्र (बिकता ) हमने आपकी ओर उतारी है बिक लोगों की तरफ़ जो उतारा गया है, आप उसे स्पष्ट रूप से यान कर दें, शायद बिक वे सोच-बिवचार

करें।" 222

हदीस इस्लाम का दूसरा स्रोत है। इससे मुराद आपके वह सारे कथन, काय;, सहमबितयाँ एवं बिवशेषताएँ हैं, जो वण;नकता;ओं की सहीह एवं अखंड _ृंखला के माध्यम से आपसे वर्णिणंत हैं। यह अल्लाह की ओर से उसके रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पर अवतरिरत होने वाली वह्य है। क्योंबिक न ी الله صلى

وسلم अपनी عليه इच्छा से कुछ नहीं ोलते। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ वह तो केवल वह्य है, जो उतारी जाती है। उसे पूरी ताक़त वाले फ़रिरश्ते ने लिसखाया है।'' 223 आप, लोगों को वही कुछ पहँुचा दिदया करते थे, जिजसका आदेश अल्लाह की ओर से प्राप्त

होता था। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " मैं तो लिसफ; उसी की पैरवी करता हँू, जो मेरी तरफ़ वह्य की जाती है और मैं तो केवल स्पष्ट रूप से सावEान कर देने वाला हँू।'' 224

दरअसल पबिवत्र सुन्नत इस्लाम के आदेशों एवं बिनषेEों, Eारणाओं, इ ादतों, मामलात और लिशष्टाचारों का अमली रूप है। क्योंबिक अल्लाह के न ी सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम अपने र के आदेशों का पालन करते, उनकी व्याख्या करते और लोगों को आप ही

की तरह उनका पालन करने का आदेश देते थे। अल्लाह के रसूल وسلم عليه الله ने صلى फ़रमाया है : " तुम लोग तरह नमाX पढ़ो, जिजस तरह तुमने मुझे नमाX पढ़ते हुए देखा है।" 225 अल्लाह ने मोधिमनों को आदेश दिदया है बिक वे आपके द्वारा बिकए गए कामों

एवं कही गई ातों का अनुसरण करें, ताबिक उन्हें संपूण; ईमान प्राप्त हो सके। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ यकीनन तुम्हारे लिलए रसूलुल्लाह में अच्छा नमूना है, हर इंसान के लिलए जो अल्लाह की और क़यामत के दिदन की उम्मीद रखता है, और हुत ज़्यादा

अल्लाह का जिजक्र करता है।" 226 सहा ा عنهم الله ने رضي अल्लाह के न ी وسلم عليه الله की صلى हदीसों को अपने ाद वालों के लिलए नक़ल बिकया और उन लोगों ने भी उनको अपने ाद आने वाल लोगों के लिलए नकल बिकया। बिफर हदीसों को बिकता ों में एकत्र करने का काम हुआ। हदीस नक़ल करने वाले लोग बिकसी से हदीस नक़ल करते समय ड़ी छान- फटक से काम लेते थे और

इस ात पर Xोर देत े थ े बिक जिजससे व े हदीस नक़ल कर रह े हैं, उसने उस े बिकसी ऐसे व्यलिG से नक़ल बिकया हो, जो उसका समकालीन रहा हो। ताबिक स स े बिनचल े वण;नकता; स े लेकर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्मल तक हदीस के

वण;नकता;ओं की _ृंख्ला में कहीं कोई टूट न पाई जाए227 । इसी तरह वण;नकता;ओं की _ृंख्ला के सारे लोग बिवश्वसनीय, सदाचारी, सत्यवादी और अमानतदार हों।

220 देखिखए : "अल- तौरात व अल- इन्जील व अल- कुरआन फी Xौइ अल- मआरिरफ़ अल-हदीसह", पृष्ठ : 133-283, लेखक : मोरेस ोकाय। मोरेस ोकाय एक फ्रांसीसी ईसाई डाक्टर थे जो ाद में मुसलमान हो गए।

221 “इस हदीस को इमाम अहमद ने अपनी मुसनद'' 4/131 “ और अ ू दाऊद ने अपनी सुनन बिकता अस-सुन्नह'' " अध्याय : लुXूमअस-सुन्नह" 4/200, हदीस संख्या : 4604 में रिरवायत बिकया है।222 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 44

223 सूरा अन-नज्म, आयत संख्या : 4,5

224 सूरा अल-अहकाफ, आयत संख्या : 9

225 “ इस हदीस को इमाम ुखारी ने बिकता अल-अXान'', अध्याय : 18 (1/155) में रिरवायत बिकया है।226 सूरा अल-अहXा , आयत संख्या : 21।227 इस अनूठी वैज्ञाबिनक पद्धबित एवं सुन्नत-ए- न वी को नक़ल करने के सं ंE में इस छान ीन के कारण मुसलामनों ने "अल- जह; वअल-तादील" एवं " मुसतलह अल-हदीस" के नामों से दो स्वतंत्र बिवषयों की स्थानपना की, जो मुस्थिस्लम समुदाय की बिवशेषता माने जाते हैं और इससे पहले इन बिवषयों का वजूद नहीं था।

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सुन्नत इस्लाम का व्यवहारिरक नमूना होने के साथ- साथ कु़रआन का वण;न करती है, उसकी आयतों की व्याख्या करती है और उसके

संक्षिक्षप्त आदेशों की तफ़सील यान करती है। क्योंबिक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पर जो कुछ उतारा जाता था, उसकी कभी तो अपने कथन द्वारा, कभी अपने काय; द्वारा और कभी दोनों के द्वारा व्याख्या करते थे। लेबिकन कभी कभी सुन्नत

अलग से कुछ आदेश एवं बिनषेE तथा कुछ बिवधिEयाँ भी यान करता है। कुरआन एवं सुन्नत दोनों के ारे में इस ात का बिवश्वास रखना Xरूरी है बिक यह दोनों इस्लाम Eम; के मूल स्रोत हैं, जिजनका अनुसरण

करना, हर मामले में उनकी ओर लौटना, उनके आदेशों का पालन करना, उनके बिनषेEों से दूर रहना, उनके द्वारा प्रदान की गई सूचनाओं की पुधिष्ट करना, उनके अंदर मौजूद अल्लाह के नामों, गुणों, काय8, अल्लाह की ओर उसके इमान वाले धिमत्रों के लिलए तैयार

रखी गई नेमतों और काबिफ़रों को दी गई Eमबिकयों को पर बिवश्वास रखना अबिनवाय; है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " तो कसम है तेरे र की! वे त तक ईमान वाले नहीं हो सकते, ज तक बिक सभी आपस के बिववादों में आपको फैसला करने वाला न स्वीकार कर लें, बिफर जो फैसला आप कर दें, उससे अपने दिदलों में Xरा भी तंगी और नाखुशी न पाएँ, और पूण;तः स्वीकार कर लें।" 228 एक अन्य स्थान में उसका फ़रमान है : “ और तुम्हें जो कुछ रसूल दें, उसे ले लो और जिजससे रोंके उससे रुक जाओ।" 229

इस्लाम Eम; के मूल स्रोतों का परिरचय देने के ाद, उलिचत मालूम होता है बिक हम इस Eम; की _ेक्षिणयों यानी इस्लाम, ईमान और एहसान का उल्लेख कर दें। आइए संके्षप में इन _ेक्षिणयों के स्तंभों के ारे में जानते चलें।

पहली श्रेणी [234] इस्लाम : इस्लाम के पाँच स्तंभ हैं : दोनों गवाबिहयाँ, नमाX, Xकात, रोXा और हज।

पहला स्तंभ : इस ात की गवाही देना बिक अल्लाह के लिसवा कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं।

" अल्लाह के लिसवा कोई पूज्य न होने की गवाही देने" का अथ; यह है बिक Eरती एवं आकाश में अल्लाह के लिसवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। केवल वही अकेले सत्य पूज्य है और उसके अबितरिरG अन्य सारे पूज्य असत्य हैं। 230 इसका तक़ाXा यह है बिक बिवशुद्ध रूप से

केवल उसी की उपासना की जाए और उसके लिसवा बिकसी और की पूजा न की जाए। यह गवाही बिकसी व्यलिG को उस समय तक लाभ नहीं दे सकती, ज तक उसके अंदर दो ातें न पाई जाएँ : पहली ात : यह गवाही पूरे बिवश्वास, ज्ञान, यक़ीन, पुधिष्ट एवं प्रेम के साथ दी जाए। दूसरी ातः अल्लाह के अबितरिरG पूजी जाने वाली तमाम चीXों का इनकार बिकया जाए। अतः, जिजसने यह गवाही दी और अल्लाह के

अबितरिरG पूजी जाने वाली अन्य वस्तुओं का इनकार नहीं बिकया, उसे इस गवाही का कोई लाभ नहीं होगा। 231

मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम के अल्लाह के रसूल होने की गवाही देने का अथ; है, आपके आदेशों का पालन करना, आपकी ताई हुई ातों की पुधिष्ट करना, आपके द्वारा मना की गई ातों से दूर रहना, आपके ताए हुए तरीके़ के अनुसार ही अल्लाह की इ ादत करना और इस ात को जानना तथा बिवश्वास रखना बिक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पूरे मानव समाज की ओर

रसूल नाकर भेजे गए हैं, आप चूँबिक अल्लाह के ंदे हैं इसलिलए आपकी इ ादत नहीं की जा सकती, अल्लाह के रसूल हैं इसलिलए आपको झुठलाना घोर अन्याय होगा, आपका अनुसरण बिकया जाएगा तथा यह बिक आपका अनुसरण करने वाला जन्नत जाएगा,

ज बिक आपकी अवज्ञा करने वाला जहन्नम में प्रवेश करेगा। साथ ही यह जानना और बिवश्वास रखना आवश्यक है बिक बिवEान नाने का काय;, चाहे अक़ीदे के सं ंE में हो, अल्लाह के द्वारा आदेलिशत इ ादतों के सं ंE में हो, आचरण के सं ंE में हो, परिरवार के घठन के सं ंE में हो या हलाल तथा हराम क़रार देने के सं ंE में, यह काम अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम के द्वारा ही होगा, क्योंबिक आप अल्लाह के संदेष्टा हैं, जो अल्लाह की शरीयत पहँुचाने के लिलए आए थे। 232

दूसरा स्तंभ : नमाX 233 : यह इस्लाम का दूसरा रुकन और इस्लाम रूपी इमारत का दूसरा खंभा है। क्योंबिक यह ंदा और उसके र के ीच सं ंE स्थाबिपत करने वाली चीX है। ंदा ज इसे दिदन में पाँच ार अदा करता है, तो इसके दावारा अपने ईमान को ताXा

करता है और अपने नफ़्स को गुनाहों की गंदबिगयों से पबिवत्र करता है। नमाX इंसान को ेहयाइयों और गुनाहों से रोकने का भी काम करती है। ज ंदा सु ह नींद से जागता है, तो दुबिनया के कामों में व्यस्त होने से पहले पाक- साफ़ होकर अपने र के समाने खड़ा

हो जाता है। बिफर अपने र की ड़ाई यान करता है, उसकी ंदगी का इक़रार करता है, उससे सहायता माँगता है, माग;दश;न तल करता है तथा सजदे की अवस्था में, खड़े होकर और रुकू की हालत में अपने तथा अपने र के ीच मौजूद अनुसरण एवं ंदगी के

228 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 65

229 सूरा अल-ह_, आयत संख्या : 7

230 " दीन अल-हक़्क" पृष्ठ : 38।231 " कुर;तु उयून अल-मुवदह्हिह्हदीन" पृष्ठ : 60।232 " दीन अल-हक़्क़" पृष्ठ : 51-52।233 अधिEक जानकारी के लिलए देखें : " कैबिफ़य्यह सलात अल न ी सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्म" लेखक : शैख़ अब्दुल अXीज बि न ाX।

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अनु ंE का नवीनीकरण करता है। बिफर ऐसा एक- दो ार नहीं, ल्किल्क दिदन में पाँच ार करता है। नमाX अदा करने के लिलए Xरूरी है

बिक ंदे का दिदल, शरीर, कपड़ा और नमाX का स्थान पाक हो। इसी तरह यह भी Xरूरी है बिक ंदा इसे अपने मुसलमान भाइयों के साथ अदा करे और उसका चेहरा अल्लाह के पबिवत्र घर का ा की ओर हो। नमाX अल्लाह की इ ादत का स से संपूण; और स से संुदर तरीक़ा है। उसमें शरीर के बिवक्षिभन्न अंगों द्वारा अल्लाह के प्रबित सम्मान व्यG बिकया जाता है। ज� ान, दोनों हाथ, दोनों पाँव, सर, इंद्रयाँ और शरीर के सारे अंग इसमें व्यस्त होकर इस इ ादत का आनंद प्राप्त करते हैं। मनुष्य की इंदिद्रयाँ और उसके शरीर के अंग भी उसमें सह्हिम्मलिलत रहते हैं और उसका दिदल भी उसमें व्यस्त रहता है। उसके अंदर अल्लाह की प्रशंसा है, स्तुबित है, उसकी महानता, पबिवत्रता और ड़ाई का यान है, सत्य की गवाही है, पबिवत्र कु़रआन की बिकराअत

है और ंदे का अपने महान प्र ंEक र के सामने एक बिवनयशील दास की तरह खड़े होने का दृश्य है। इस अवस्था में उसके सामने अनुनय का इXहार और उसकी बिनकटता प्राप्त करने का प्रयास है। बिफर रुकू, सजदा और ैठक है, जिजसमें अल्लाह की महानता के

सामने अपनी बिवनम्रता और बिववशता तथा उसके प्रताप के सामने अपनी लाचारी का इXहार है। वह अल्लाह के सामने एक ऐसे ंदे के रूप में उपस्थिस्थत होता है, जिजसका दिदल टूटा हुआ हो, शरीर से बिवनम्रता टपक रही हो और उसके सारे अंग सहमे हुए हों। बिफर

अल्लाह की प्रशंसा और उसके न ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पर दरूद एवं सलाम के साथ नमाX की समान्विप्त होगी और उसके ाद ंदा अपने पालनहार से दुबिनया एवं आखिख़रत की भलाइयाँ माँगेगा। 234

तीसरा स्तंभ : Xकात 235 : Xकात इस्लाम का तीसरा रुक्न है। Eनवान मुसलमान पर अपने Eन की Xकात बिनकालना आवश्यक है। Xकात के रूप में Eन का एक छोटा- सा भाग बिनकालना होता है, जिजसे फ़क़ीरों एवं धिमसकीनों आदिद ऐसे लोगों को देना होता है, जो Xकात का Eन लेने के अधिEकारी हैं।

मुसलमान को Xकात का Eन उसके हक़दारों को खुले मन से देना चाबिहए। वह Xकात लेने वाले पर एहसान जतला नहीं कर सकता और Xकात देने के ाद उसे बिकसी तरह से प्रताबिड़त नहीं कर सकता। Xकात अदा करने का उदे्दश्य केवल अल्लाह की प्रसन्नता की प्रान्विप्त होनी चाबिहए। इसके पीछे बिकसी तरह का कोई स्वाथ; या लोगों की प्रशंसा की चाहत नहीं होनी चाबिहए। रिरयाकारी और दिदखावा

की धिमलावट की कोई गंुजाइश नहीं है। Xकात बिनकालने से माल एवं Eन में रकत तथा वृजिद्ध होती है। यह जरूरतमंदो, माँगने वालों और गरी ों के दिदलों को प्रसन्न का अवसर देता है, उनको बिकसी के सामने हाथ फैलाने से चाता है और उन्हें नष्ट होने से भी चाता है। जकात बिनकालने का एक लाभ

यह है बिक यह मनुष्य को दयालुता, दानशीलता, त्याग, खच; करने की आदत और कृपालुता जैसे गुणों से सुशोक्षिभत करता है और लालच, कंजूसी एवं बिनल;ज्जापन जैसे ुरे गुणों से दूर करता है। Xकात के द्वारा मुसलमान एक- दूसरे का सहयोग करते हैं और उनके

Eनवान लोग अपने गरी ों भाइयों पर दया करते हैं। यदिद इस व्यवस्था को सही से लागू बिकया गया, तो समाज में कोई संपूण; बिनE;न, क़X; में डू ा हुआ व्यलिG और अपने घर- ार से दूर यात्री असहाय अवस्था में नXर नहीं आएगा। चौथा स्तंभ : रोXा : इससे मुराद रमXान महीने के दिदनों में फ़ज्र प्रकट होने से लेकर सूरज डू ने तक रोXा रखना है। इस अवधिE में रोXा रखने वाला अल्लाह की इ ादत की नीयत से खाने, पीन े और सहवास से रुका रहता ह ै और नफ़्स को आकांक्षाओं के

अनुसरण से दूर रखता है। अल्लाह तआला ने रमXान के रोXे के मामले में ीमार, मुसाबिफ़र, गभ;वती स्त्री, दूE बिपलाने वाली स्त्री, माहवारी के दिदनों से गुXरने वाली स्त्री तथा प्रसव के ाद आने वाले रG के दिदनों से गुXरने वाली स्त्री को कुछ छूट दे रखी है और

इनमें से हर एक के लिलए उसकी अवस्था के अनुरूप अलग- अलग आदेश तथा बिनद�श हैं। इस माह में मुसलमान अपने नफ़्स को आकांक्षाओं के अनुसरण से चाता है और इस इ ादत के Xरिरए अपने आपको जानवरों की

मुशा हत से बिनकालकर अल्लाह के बिनकटवत� फ़रिरश्तों की मुशा हत में पहँुचा देता है। यहाँ तक बिक रोXेदार एक ऐसी सृधिष्ट का रूप Eारण कर लेता है, जिजसकी संसार में अल्लाह की प्रसन्नता की प्रान्विप्त के लिसवा कोई दूसरी आवश्यकता न हो।

रोXा हृदय को जीवन प्रदान करता है, इंसान को दुबिनया के मोह से ाहर बिनकालता है, अल्लाह के यहाँ धिमलने वाली नेमतों को प्राप्त करने की प्रेरणा देता है, Eनवानों को बिनE;नों एवं उनकी अवस्था का स्मरण कराता है, जिजसके नतीजे में अमीरों को ग़री ों पर दया आती है और वे अल्लाह की दी हुई नेमतों को स्मरण करते हुए अधिEक से अधिEक शुक्र अदा करने को प्रेरिरत होते हैं। रोXा आत्मा को शुद्ध नाता है, उसे अल्लाह से भय के डगर पर चलाता है, व्यलिG एवं समाज को गुप्त एवं साव;जबिनक रूप से तथा अच्छी एवं ुरी अवस्थाओं में अल्लाह की बिनगरानी में होने का एहसास दिदलाता है। इस तरह, पूरा समाज एक पूरा महीना इस इ ादत की पा ंदी करते हुए और अपने र को ध्यान में रखते हुए गुXारता है और उसे इसकी प्रेरणा अल्लाह के भय, उसपर ईमान, क़यामत के दिदन पर ईमान तथा इस यक़ीन बिक अल्लाह गुप्त ातों को भी जानता है और बिवश्वास से धिमलता है बिक एक दिदन ऐसा

Xरूर आएगा, ज ंदा अपने र के सामने खड़ा होगा और उसका पानहार उसके छोटे- डे़ सारे कम8 का बिहसा लेगा। 236

पाँचवाँ स्तंभ : मक्का में स्थिस्थत अल्लाह के पबिवत्र घर का ा का हज 237 : हज हर वयस्क, होश व हवास वाले और सामथ्य; रखने वाले मुसलमान पर फ़X; है, जो का ा तक जाने का साEन या बिकराये के लिलए Eन और जाने तथा आने के लिलए पया;प्त खच; रखता हो,

234 " धिमफ्ताहु दार अस-सआदह" 2/384।235 अधिEक जानकारी के लिलए देखें : " रिरसालतान फ़ी अल- Xकात व अल-लिसयाम" लेखक : शैख़ अब्दुल अXीX बि न ाX।236 देखिखए : " धिमफ्ताहु दार अस-सआदह" 2/384।237 अधिEक जानकारी के लिलए देखें : " दलील अल- हाज्ज व अल-मोतधिमर" लेखक : उलेमा का एक समूह तथा "अल- तहक़ीक़ वअल- ईXाह लिल- कसीर धिमन मसाइल अल- हज्ज व अल-उमरह" लेखक : शैख़ अब्दुल अXीX बि न ाX।

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जो बिक उसकी बिकफ़ालत में मौजूद लोगों के खच; से अबितरिरG हो। साथ ही उसे रास्ते में कोई भय न हो और अपनी अनुपस्थिस्थबित के

दिदनों में अपने ाल- च्चों के नष्ट होने का भय न हो। हज सामथ्य; रखने वाले व्यलिG पर जीवन में एक ार ही फ़X; है। जो हज का इरादा रखे, उसे अल्लाह के आगे तौ ा करना चाबिहए, ताबिक मुनाहों के मैल- कुचैल से साफ़- सुथरा हो जाए। बिफर ज

मक्का और अन्य पबिवत्र स्थानों तक पहँुचे, तो अल्लाह की ंदगी का इXहार करते हुए और उसका सम्मान करते हुए हज के सारे काय; करे। साथ ही इस ात को ध्यान में रखे बिक का ा तथा अन्य स्थानों की अल्लाह के स्थान पर इ ादत नहीं की जाएगी। ये न बिकसी का भला कर सकते हैं, न ुरा। यदिद अल्लाह ने उनका हज करने का आदेश न दिदया होता, तो बिकसी मुसलमान के लिलए उनका

हज करना सही न होता। हज करते समय हाजी एक सफेद रंग का तह ंद और एक सफेद चादर पहनता है। इस तरह Eरती के कोने- कोने से मुसलमान एक

स्थान पर एकत्र होते हैं, एक तरह का वस्त्र पहनते हैं और एक ही पालनहार की इ ादत करते हैं। न राजा और प्रजा का अंतर, न Eनी तथा बिनE;न का फ़क़; और काले एवं गोरे का भेदे। सारे लोग अल्लाह की सृधिष्ट और उसके ंदे हैं। बिकसी मुसलमान को दूसरे

मुसलमान पर कोई _ेष्ठता प्राप्त नहीं है। यदिद है तो तक़वा एवं सत्कम; के आEार पर। इस अवसर सारे मुसलमान एक- दूसरे की सहायता करते हैं, एक- दूसरे से परिरलिचत होते हैं और उस दिदन को याद करते हैं, जिजस दिदन

अल्लाह स को जीबिवत करके एक ही मैदान में एकत्र करेगा। लिलहाXा मृत्यु के ाद के जीवन के लिलए अल्लाह की इ ादत के Xरिरए तैयारी करते हैं।238

इस्लाम में इबादत का अर्थ� [244] इ ादत नाम है अथ; एवं वास्तबिवकता दोनों एत ार से अल्लाह की ंदगी का। क्योंबिक अल्लाह ही पैदा करने वाला है और हम लोग मखलूक़ हैं, हम उसके न्दें हैं वह हम स का पूज्य है। ज मामला ऐसा ही है, तो हमारे लिलए Xरूरी है बिक इस जीवन में हम अल्लाह तआला के सरल एवं सीEे रास्ते की ओर चलें, उसकी शरीयत का पालन करते हुए और उसके रसूलों के पदल्िचह्नों पर चलते

हुए। अल्लाह तआला ने अपने न्दों को कई ड़ी- ड़ी इ ादतें करने को कहा है। जैसे सारे संसार के पालनहार अल्लाह को एक जानना और मानना, नमाX पढ़ना, Xकात देना, रोXा रखना और Xकात देना। लेबिकन यही चंद ातें इस्लाम की संपूण; इ ादतें नहीं हैं। इस्लाम में इ ादतों का दायरा हुत ही व्यापक है। इस्लाम में इ ादत हर उस

गुप्त तथा व्यG कम; एवं कथन को कहते हैं, जिजससे अल्लाह प्रसन्न होता है और जिजसे वह पसन्द करता है। चुनांचे हर वह काय; जिजसे इंसान करता है या हर वह कथन जिजसे वह करता है और वह अल्लाह को पसंद एवं बिप्रय है, वह इ ादत है। ल्किल्क हर अच्छी आदत,

जिजसको वह अल्लाह की बिनकटता प्राप्त करने के उदे्दश्य से अपनाता है, तो वह भी इ ादत है। इस प्रकार, माता-बिपता, घर वालों, ीवी- च्चों और पड़ोलिसयों के साथ अच्छा व्यवहार, यदिद अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के उदे्दश्य से हो, तो इ ादत है। इसी तरह घर, ाXार और काया;लय में अचे्छ आचरण के साथ काम भी यदिद अल्लाह को प्रसन्न करने के उदे्दश्य से हो, तो इ ादत है। अमानत

अदा करना, सच्चाई एवं न्याय का पालन करना, बिकसी को दुःख हीगक बिनकालना, कमXोर की मदद करना, हलाल रोXी कमाना, परिरवार और च्चों पर खच; करना, गरी ों के साथ सहानुभूबित जताना, ीमार का हाल जानने के लिलए जाना, भूखे को खाना खिखलाना और पीबिड़त की मदद करना, ये सारे काम भी यदिद अल्लाह के लिलए बिकए जाएँ, तो इ ादत हैं। सारांश यह है बिक जो भी

काम आप अपने लिलए, अपने परिरवार के लिलए, अपने समाज के लिलए या अपने देश के करें और उसका उदे्दश्य अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करना हो, वह इ ादत है। ल्किल्क अल्लाह की बिनEा;रिरत सीमाओं के अंदर रहकर अपनी आकांक्षाओं की पूर्तितं करना भी, यदिद सही नीयत के साथ हो, तो इ ादत है। अल्लाह के रसूल وسلم عليه الله ने صلى फ़रमाया है : " ज तुममें से कोई सहवास करता

है, तो वह भी उसके लिलए सदक़ा है।" सहा ा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यदिद हममें से कोई अपनी काम इच्छा की पूर्तितं करता है, तो उसे उसका भी सवा धिमलेगा? आपने फ़रमाया : " तुम क्या समझते हो, अगर वह काम इच्छा की पूर्तितं हराम तरीके़ से करता, तो उसे गुनाह होता या नहीं? इसी प्रकार, अगर वह जायX तरीके से यह इच्छा पूरी करता है, तो उसे सवा धिमलना चाबिहए।" 239

एक और हदीस में है : " हर मुसलमान पर सदका करना अबिनवाय; है।" कहा गया : अगर बिकसी के पास न हो तो क्या करे? आपने कहा : " वह अपने हाथ से काय; करे, उससे जो प्राप्त हो, उसमें से खुद खाए और सदका भी करे।" सहा ा ने कहा : अगर वह काय;

की शलिG न रखता हो तो क्या करे? आपने कहा : " बिकसी सख्त Xरूरतमन्द की सहायता एवं सहयोग करे।" कहा गया : अगर यह भी न कर सके तो? आपने कहा : " अच्छी और नेक ातों का आदेश दे।" सहा ा ने कहा : अगर यह भी न कर सके तो? आपने कहा

: " अपने आप को ुरी चीXों से रोक ले, क्योंबिक यह उसके लिलए सदक़ा हैं।" 240

दूरी श्रेणी [247] दूसरा दजा; ईमान का है। ईमान के छह अरकान ह ैं : अल्लाह पर ईमान, अल्लाह के फ़रिरश्तों पर ईमान, अल्लाह की पुस्तकों पर ईमान लाना, अल्लाह के रसूलों पर ईमान लाना, अंबितम दिदन (आखिख़रत) पर ईमान और भाग्य पर ईमान।

238 " धिमफ्ताहु दार अस-सआदह" 2/384 तथा " दीन अल-हक़्क़" पृष्ठ : 67।239 “ इस हदीस को इमाम मुस्थिस्लम ने अपनी सहीह बिकता अX-Xकात'' ( हदीस संख्या : 1006) में रिरवायत की है।240 “ इस हदीस को ुख़ारी ने बिकता अX-Xकात'' अध्याय : 29 “ तथा इमाम मुस्थिस्लम ने बिकता अX-Xकात'' ( हदीस संख्या : 1008) में रिरवायत बिकया है और शब्द इमाम मुस्थिस्लम के हैं।

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पहला स्तंभ : अल्लाह पर ईमान : इसका अथ; है, अल्लाह के पालनहार, सृधिष्टकता;, स्वामी तथा सभी कामों का प्र ंEक होने पर बिवश्वास रखना, उसके सत्य पूज्य होने और उसके अबितरिरG सारे पूज्यों के असत्य होने पर बिवश्वास रखना और इस ात का यक़ीन

रखना बिक अल्लाह के हुत- से अचे्छ- अचे्छ नाम और ऊँचे एवं संपूण; गुण हैं। साथ ही इन सारी ातों में अल्लाह के एक होने पर बिवश्वास रखना और यह मानना बिक अल्लाह के पालनहार और पूज्य होने में

उसका कोई साझी नहीं है और इसी तरह उसके नामों और गुणों में भी कोई उसका शरीक नहीं है। " आकाशों का और Eरती का और जो कुछ उनके ीच है, स का र वही है। अतः, तू उसी की इ ादत कर और उसकी इ ादत पर मX ूती से कायम रहो। तो क्या तेरे

इल्म में उसका हमनाम और रा र कोई दूसरा भी है?'' 241

इसी तरह, इस ात पर ईमान लाना बिक उसको न तो नींद आती है और न ही ऊँघ , वह गुप्त तथा व्यलिG चीXों को जानता है और वही आकाशों और Eरती का ादशाह है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और उसी (अल्लाह) के पास गै की कंुजिजयाँ हैं। उन्हें

केवल वही जानता है। तथा जो कुछ थल और जल में है वह उन सभी को जानता है। और कोई पत्ता नहीं बिगरता, परन्तु उसे वह जानता है। और न कोई अन्न जो Eरती के अंEेरों में हो, और न कोई भीगा और सूखा है परन्तु वह एक खुली बिकता में है।'' 242

इसी तरह इस ात पर यकीन रखना बिक अल्लाह अपने अश; पर अपनी सृधिष्टयों से ऊपर है। लेबिकन इसके ावजूद वह अपनी सृधिष्टयों के साथ है, उनके हर हाल से अवगत है, उनकी ातें सुनता है, उनके स्थान को देखता है, उनसे सं ंधिEत कामों का प्र ंE करता है,

बिनE;न को रोXी देता है, टूटे हुए को सहारा देता है, जिजसे चाहता है ादशाहत प्रदान करता है, जिजससे चाहता है ादशाहत छीन लेता है और वह हर काम का सामथ्य; रखता है। 243

अल्लाह पर ईमान के बिनम्नलिलखिखत लाभ प्राप्त होते हैं :1- ईमान ंदे को अल्लाह का प्रेम और उसका सम्मान प्रदान करता है, जिजसके नतीजे में उसके आदेश के पालन और उसकी मनाही

से दूर रहने का जज़् ा पैदा होता है। बिफर ज ंदा इतना कर लेता है, तो इसके फलस्वरूप उसे दुबिनया एवं आखिख़रत की सफलता हाथ आ जाती है।

2. अल्लाह पर ईमान एवं बिवश्वास इंसान को आत्म सम्मान एवं प्रबितष्ठा प्रदान करता है। क्योंबिक इसके ाद मनुष्य के दिदल में यह ात ैठ जाती है बिक इस कायनात की सारी वस्तुओं का असल मालिलक अल्लाह है और उसके लिसवा कोई न कुछ ना सकता है और न

बि गाड़ सकता है। यह बिवश्वास इंसान को अल्लाह के अबितरिरG अन्य चीXों से ेबिनयाX कर देता है और उसके दिदल दूसरों का भय बिनकाल देता है। लिलहाXा वह आशा रखता है तो केवल अल्लाह से और भय रखता है तो केवल उसी का।

3. अल्लाह पर ईमान इंसान को बिवनम्र नाता है। क्योंबिक वह जानता है बिक उसे प्राप्त सारी नेमतें अल्लाह की दी हुई हैं। लिलहाXा वह शैतान के Eोखे में आकर घमंड का लिशकार नहीं होता और अपने Eन- ल के अक्षिभमान में मुब्तला नहीं होता।

4. अल्लाह पर ईमान एवं बिवश्वास रखने वाला अच्छी तरह जानता है बिक नजात एवं कामया ी का माग; मात्र वह अचे्छ एवं नेक काय; हैं, जिजनको अल्लाह पसंद करता एवं जिजनसे वह खुश होता है। ज बिक दूसरे लोग गलत एवं असत्य Eारणाओं में फँसे होते हैं, जैसे

यह बिवश्वास बिक अल्लाह के पुत्र के फाँसी पर लटक जाने के कारण उसके मानने वालों के गुनाह माफ़ हो गए हैं। या बिफर कोई हुत- से देवी- देवताओं को माने और उनके ारे में यह बिवश्वास रखे बिक वे उसकी मुरादें पूरी कर देंगे, ज बिक सच्चाई यह है बिक वे न बिकसी का कुछ ना सकते हैं और न बि गाड़ सकते हैं। या बिफर कोई नाल्किस्तक हो और बिकसी सृधिष्टकता; के अल्किस्तत्व को ही न मानता हो। यह

सारी असत्य Eारणाए ँ हैं। इन Eरणाओं को मानने वाले लोग ज क़यामत के दिदन अपने र के सामने उपस्थिस्थत होंगे और सारी सच्चाइयों को अपनी आँखों से देख लेंगे, तो जान जाएगँे बिक वे खुली गुमराही में थे।

5. अल्लाह पर ईमान इंसान को इच्छा शलिG, साहस, Eैय;, स्थिस्थरता और अल्लाह पर भरोसा की बिवशाल संपदा प्रदान करता है, ज वह दुबिनया में कोई ड़े से ड़ा काम करने का इरादा करता है। उसे पूरा बिवश्वास रहता है बिक उसका भरोसा आकाशों एवं Eरती के

स्वामी पर है, जो Xरूर उसकी सहायता करेगा। इस तरह, वह पहाड़ की तरह स्थिस्थर और डटा हुआ रहता है। 244

दूसरा स्तंभ : फ़रिरश्तों पर ईमान : फरिरश्तों को अल्लाह ने अपने आज्ञापालन के लिलए पैदा बिकया है। अल्लाह ने उनके ारे में ताया है बिक वे : “(फ़रिरश्ते) ाइज़्Xत ंदे हैं। वे अल्लाह के सामने ढ़कर नहीं ोलते और उसके आदेश पर अमल करते हैं। वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनसे ओझल है। वह बिकसी की लिसफ़ारिरश नहीं करेंगे उसके लिसवा जिजससे अल्लाह प्रसन्न हो तथा वह

उसके भय से सहमे रहते हैं।'' 245 साथ ही ताया है बिक व े : " वे अल्लाह की इ ादत से न सरकशी करते हैं और न थकते हैं। वे दिदनरात उसकी पाकीXगी यान करते हैं और Xरा भी सुस्ती नहीं करते।" 246 अल्लाह तआला ने हमसे उनको छुपा रखा है। अतः

हम उनको देख नहीं सकते। अल त्ता, कभी- कभार कुछ फ़रिरश्तों को अपने कुछ नबि यों और रसूलों के सामने प्रकट कर देता है।241 सूरा मरिरयम, आयत संख्या : 65।242 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 69।243 देखिखए : " अक़ीदह अह्ल अस- सुन्नह व अल-जमाअह" पृष्ठ : 7,11।244 देखिखए : " अक़ीदह अह्ल अस- सुन्नह व अल-जमाअह", पृष्ठ : 44 तथा " अ ादी अल-इस्लाम" पृष्ठ : 80-81।245 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 26, 28।246 सूरा अल-अह्हिम् या, आयत संख्या : 19, 20।

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फ़रिरश्तों के हुत- से काय; हैं, जिजनका उनको मुकल्लफ़ नाया गया है। जैसे- उनमें से एक फ़रिरश्ता जिजब्रील السلام को عليه वह्य

उतारने का काय; सोंपा गया है। वह अल्लाह के पास से वह्य लेकर उसके रसूलों में से जिजसके पास वह चाहता है, आसमान से उतरते हैं। उनमें से एक फ़रिरश्ते को इंसान की रूह बिनकालने का काय; दिदया गया है। कुछ फ़रिरश्तों को माँ के गभ; में च्चों की रक्षा का काय;

सोंपा गया है, कुछ को न्दों के आमाल के लिलखने और नोट करने की जिXम्मेदारी दी गई है। हर मनुष्य के साथ दो फ़रिरश्ते लगे हुए हैं। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " एक दायें तरफ़ और दूसरा ायें तरफ़ ैठा हुआ है। वह ज भी कोई शब्द ोलता है, उसे लिलखने

के लिलए उसके पास एक बिनरीक्षक तैयार रहता है।'' 247

फरिरश्तों पर ईमान के कुछ फ़ायदे इस प्रकार हैं :1. मुसलमान का अकीदा लिशक; की धिमलावट से पबिवत्र हो जाता है। क्योंबिक मुसलमान ज उन फ़रिरश्तों के अल्किस्तत्व पर ईमान लाता है, जिजनको अल्लाह ने ऊपर उस्थिल्लखिखत महत्वपूण; जिXम्मेवारिरयाँ सौंप रखी हैं, तो वह ऐसी काल्पबिनक सृधिष्टयों के अल्किस्तत्व की Eारणा

से मुलिG पा लेता है, जो कायनात को चलाने में भाग लेते हों।2. मुसलमान अच्छी तरह से यह जान लेता है बिक फ़रिरश्ते कोई लाभ या हाबिन नहीं पहँुचा सकते। वे अल्लाह के सम्माबिनत ंदे हैं, जो

अपने र के आदेश की अवज्ञा नहीं करते और वही करते हैं जिजसका आदेश धिमला होता है। अतः न उनकी इ ादत की जा सकती है , न उनसे फ़रिरयाद की जा सकती है और न उनसे लिचमटा जा सकता है।

तीसरा स्तंभ : बिकता ों पर ईमान : यानी इस ात पर ईमान लाना बिक अल्लाह तआला ने अपने नबि यों और रसूलों पर बिकता ें उतारी हैं, ताबिक सत्य को स्पष्ट बिकया जा सके और उसकी ओर ुलाया जा सके। अल्लाह का फ़रमान है : " ेशक हमने अपने संदेष्टाओं (रसूलों) को खुली बिनशाबिनयाँ देकर भेजा और उनके साथ बिकता और न्याय (तराXू) उतारा, ताबिक लोग न्याय पर क़ायम रहें।'' 248

इस प्रकार की बिकता ें हुत- सी हैं। जैसे इब्राही अलैबिहस्सलाम के सहीफे़, तौरात जो मूसा अलैबिहस्सलाम पर उतरी थी, X ूर जो दाऊद अलैबिहस्सलाम को दी गई थी और इंजील जो ईसा अलैबिहस्सलाम लाए थे।

यह सारी बिकता ें जिजनके ारे में अल्लाह तआला ने हमें ताया है, नष्ट हो चुकी हैं। चुनांचे इब्राहीम अलैबिहस्सलाम के सहीफ़ों का अल्किस्तत्व ही नहीं रहा। जहाँ तक तौरात, इंजील और X ूर की ात है, तो इन नामों की बिकता ें यहूदिदयों एवं ईसाइयों के पास मौजूद

तो हैं, लेबिकन वे छेड़छाड़ और परिरवत;न की लिशकार हो चुकी हैं और उनका अधिEकतर भाग नष्ट हो चुका है और उसके स्थान पर ऐसी ातें दाखिख़ल कर दी गई हैं, जो उनका बिहस्सा नहीं थीं। ल्किल्क उनकी बिनस त उन्हें लाने वालों के अलावा बिकसी और की ओर कर दी

गई हैं। " ओल्ड टेस्टामेंट" के चालीस से अधिEक भाग हैं, जिजनमें से केवल पाँट भागों की बिनस त मूसा अलैबिहस्सलाम की ओर की जाती है। ज बिक आज जो इंजीलें मौजूद हैं, उनमें से बिकसी की बिनस त ईसा अलैबिहस्सलाम की ओर नहीं की जाती।

अतः, इन बिपछली बिकता ों पर हम इस प्रकार से ईमान रखेगें बिक अल्लाह ने इन बिकता ों को अपने रसूलों पर उतारा था और उनके अंदर वह वह Eम; बिवEान यान बिकए गए थे, जो अल्लाह उस समय के लोगों को पहँुचाना चाहता था। जहाँ तक रही ात अंबितम बिकता की, जो स से अंत में अल्लाह की ओर से नाजिXल की गई है, तो वह कुरआन करीम है, जो बिक

अंबितम पैग़म् र मुहम्मद وسلم عليه الله पर صلى उतारा गया है और क़यामत तक जिजसकी सुरक्षा अल्लाह इस तरह करेगा बिक उसके अक्षरों, शब्दों, मात्राओं और अथ; में कोई परिरवत;न नहीं होगा। पबिवत्र कुरआन और बिपछली बिकता ों के ीच हुत- से अंतर हैं। जैसे :

1. बिपछली सारी बिकता ें नष्ट हो गई हैं, उनके अंदर लोगों ने हुत- से परिरवत;न कर दिदए हैं, उन्हें उनके लाने वाले नबि यों के जाय अन्य लोगों की ओर मनसू बिकया गया है और उनपर ऐसी हुत- सी टीकाएँ लिलखी गई हैं और उनकी ऐसी व्याख्याएँ की गई हैं, जो

वह्य, बिववेक और प्रकृबित के बिवपरीत हैं। लेबिकन जहाँ तक कु़रआन की ात है, तो वह अल्लाह के उतारे हुए अक्षरों एवं शब्दों के साथ हमेशा इस तरह सुरक्षिक्षत रहेगा बिक न

उसमें कोई परिरवत;न होगा और न उसमें कुछ ढ़ाया जा सकेगा। सुरक्षा की यह जिXम्मेवारी खुद अल्लाह ने उठा रखी है। सारे मुसलमानों की इच्छा रहती है बिक कुरआन करीम हर प्रकार की धिमलावट से सुरक्षिक्षत रहे। यही कारण है बिक उन्होंने कुरआन के साथ

रसूल की सीरत, सहा ा की जीवनी, कु़रआन की तफ़सीर या इ ादतों तथा मामलात से सं ंधिEत आदेशों एवं बिनद�शों को धिमक्स नहीं होने दिदया।

2. पुरानी आसमानी बिकता ों की आज के युग में कोई ऐबितहालिसक प्रमाक्षिणकता नहीं है। ल्किल्क उनमें से कुछ बिकता ें ऐसी भी हैं , जिजनके ारे में नहीं पता बिक वह बिकस पर नाजिXल हुई थीं और बिकस भाषा में लिलखी गई थीं। उनमें से कुछ बिकता ें तो उन्हें लाने वाले नबि यों के जाय बिकसी और की तरफ़ मनसू हैं। ज बिक कु़रआन को मुसलमानों ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम से मौखिखक एवं लिलखिखत रूप से नक़ल बिकया है

और हर Xमाने में और दुबिनया के हर भाग में मXारों मुसलमान उसे अपने सीनों में सुरक्षिक्षत रखते आए हैं और उसकी हXारों लिलखिखत प्रबितयाँ हर जगह पाई जाती रही हैं। ज तक उसकी X ानी प्रबितयाँ लिलखिखत प्रबितयों से मेल न खाएँ, त तक उनपर बिवश्वास नहीं

बिकया जा सकता। इस प्रकार, सीनों में सुरक्षिक्षत कु़रआन का लिलखिखत कु़रआन से मेल खाना Xरूरी है।

247 सूरा क़ाफ, आयत संख्या : 17, 18 । तथा देखिखए : " अक़ीदह अह्ह अस- सुन्नह व अल-जमाअह" पृष्ठ : 19।248 सूरा अल-हदीद, आयत संख्या : 25।

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इससे भी ड़ी ात यह है बिक कुरआन मौखिखक रूप से कुछ इस प्रकार नक़ल हुआ है बिक यह सौभाग्य दुबिनया की बिकसी और पुस्तक

को प्राप्त न हो सका। बिकसी बिकता को नक़ल करने का यह तरीक़ा केवल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम की उम्मत में ही पाया जाता है। यह तरीक़ा कुछ इस प्रकार है बिक छात्र कुरआन को अपने गुरू से ज ानी याद करे और उसके गुरू ने उसे अपने गुरू

से X ानी याद बिकया हो, बिफर गुरू अपने छात्र को एक प्रमाण पत्र प्रदान करे, जिजसे " अनुमबित पत्र" कहा जाता है, जिजसमें गुरू यह गवाही दे बिक उसने अपने लिशष्य को वही कुछ पढ़ाया है जो उसने अपने गुरुओं से मह;ला दर मह;ला लिसललिसलेवार पढ़ा है। इस शृंख्ला

का हर व्यलिG अपने गुरू को नाम यान करता है, यहाँ तक बिक यह लिसललिसला बि ना बिकसी टूट के अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम तक पहँुच जाता है। कुरआन करीम की हर सूरा और आयत के ारे में इस ात के प्र ल प्रमाण और ऐबितहालिसक साक्ष्य ड़ी संख्या में मौजूद हैं बिक वह

कहाँ उतरी थी और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पर क उतरी थी।3. वह भाषाएँ जिजनमें बिपछली बिकता ें उतारी गई थीं, वह हुत समय पहले लोगों के ीच से ख़त्म हो चुकी हैं। उन भाषाओं को

ोलने वाले मौजूद नहीं हैं और आज उनके समझने वाले भी हुत ही कम पाए जाते हैं। लेबिकन जहाँ तक उस भाषा की ात है, जिजसमें कु़रआन उतरा है, तो वह एक जीबिवत भाषा है और आज भी उसे करोड़ों ोलते हैं। दुबिनया के हर भाग में उसका पठन-पाठन

होता है और जो उसे समझ नहीं सकता, हर जगह उसे कु़रआन समझाने वाले धिमल जाते हैं।4. पुरानी बिकता ें एक बिवशेष समय के लिलए थीं और एक ख़ास उम्मत के लिलए उतारी गई थीं, न की सारे मानव जाबित के लिलए । यही

कारण है बिक उनके अंदर जो बिवधिE- बिवEान ताए गए हैं, वह उन समुदायों और उस Xमाने के साथ खास थे। ज बिक इस प्रकार की बिकता तमाम लोगों के लिलए नहीं हो सकती। लेबिकन जहाँ तक ात कु़रआन की है, तो यह हर Xमाने और हर स्थान के लिलए उपयुG बिकता ा और इसके अंदर ऐसे बिवधिE-बिवEान,

मामलात और आचरण ताए गए हैं, जो हर समुदाय और हर युग के लिलए उपयुG हैं। क्योंबिक उसमें सं ोEन सारी उम्मत के लिलए है। इन ातों के द्वारा यह स्पष्ट हो गया बिक यह संभव ही नहीं है बिक मनुष्य के बिवरुद्ध अल्लाह का प्रमाण ऐसी बिकता ें न सकें , जिजनकी

असल प्रबितयाँ मौजूद नहीं हैं और न ही पूरी Eरती पर ऐसा कोई व्यलिG है, जो उन बिकता ों की भाषा को ोलना जानता हो, जिजनमें उन्हें परिरवत;न के ाद लिलखा गया था। मनुष्य के बिवरुद्ध अल्लाह का प्रमाण कोई ऐसी बिकता ही न सकती है, जो सुरक्षिक्षत है,

कमी- ेशी और छेड़छाड़ से महफू़X है, उसकी प्रबितयाँ हर जगह फैली हुई हैं और एक जीबिवत भाषा में लिलखी हुई हैं, जिजसे हXारों लोग पढ़ते हैं और उसमें उस्थिल्लखिखत अल्लाह का संदेश लोगों को पहँुचाते हैं। यह बिकता महान कु़रआन है, जो अल्लाह ने अपने न ी

मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम पर उतारा है। वह बिपछली सारी बिकता ों की संरक्षक है, उनकी पुधिष्ट करती है और उनके सं ंE में गवाही देती है। वह ऐसी बिकता है जिजसका अनुसरण करना सारे मानव जाबित के लिलए आवश्यक है, ताबिक वह उन केलिलए प्रकाश,

लिशफ़ा, माग;दश;न और दया न सके। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और यह ( पाक कुरआन) एक मु ारक बिकता है, जिजसे हमने उतारा। इसलिलए तुम इसका अनुसरण करो, ताबिक तुमपर दया की जाए।'' 249 दूसरी जगह अल्लाह तआला ने फ़रमाया ह ै : "आप

कह दीजिजए बिक हे लोगो! तुम सभी की तरफ़ अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हँू।'' 250

चौथा स्तंभ : रसूलों पर ईमान :

अल्लाह ने अपनी सृधिष्ट की ओर रसूलों को भेजा, ताबिक वे ईमान लाने वालों और रसूलों को मानने वालों को नेमतों का सुसमाचार सुनाएँ और अवज्ञा करने वालों को यातना से सावEान करें। अल्लाह का फ़रमान है : " और हमने हर उम्मत में रसूल भेजे बिक (लोगों!) केवल अल्लाह की इ ादत (उपासना) करो, और ताग़ूत ( उसके लिसवाय सभी झूठे मा ूद) से चो।'' 251 एक अन्य स्थान पर उसने

कहा ह ै : "( हमने इन्हें) खुशख री और आगाह करने वाला रसूल नाया, ताबिक लोगों को कोई हाना रसूलों को भेजने के ाद ” अल्लाह पर न रह जाए। 252

रसूलों की संख्या हुत ज़्यादा है। स से पहले रसूल नूह अलैबिहस्सलाम और अंबितम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम हैं। कुछ नबि यों के ारे में अल्लाह ने हमें ताया है, जैसे- इब्राहीम, मूसा, ईसा, दाऊद, यहया, Xकरिरया और सालेह आदिद और कुछ के ारे में कुछ नहीं ताया है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और आपसे पहले के हुत- से रसूलों की घटनाएँ हमने आपसे यान की हैं और हुत- से रसूलों की नहीं भी की हैं।'' 253

सार े रसूल अल्लाह के पैदा बिकए हुऐ इंसान हैं। उन्हें पालनहार एवं पूज्य होने जैसी कोई बिवशेषता प्राप्त नहीं है। अतः निकंलिचत परिरमाण भी उनकी इ ादत नहीं हो सकती। सच्चाई यह है बिक वे न खुद अपने बिकसी लाभ के मालिलक हैं और न हाबिन के। अल्लाह ने

नूह अलैबिहस्सलाम के ारे में, जो पहले न ी थे, ताया है : " और मैं तुमसे नहीं कहता बिक मेरे पास अल्लाह के खजाने हैं। (सुनो) मैं

249 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 257।250 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 158 । देखिखए : "अल- अक़ीदह अस- सहीहह व मा युXाद्दहुा" पृष्ठ : 17 तथा " अक़ीदह अह्लअस- सुन्नह व अल-जमाअह" पृष्ठ : 22 एवं " म ादी अल-इस्लाम" पृष्ठ : 89।251 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 36।252 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 165।253 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 164।

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गै का इल्म भी नहीं रखता, न मैं यह कहता हूँ बिक मैं फ़रिरश्ता हँू।'' 254 इसी तरह अल्लाह तआला ने अंबितम न ी को आदेश दिदया है बिक वह कह दें : "(आप) कह दीजिजए बिक न तो मैं तुमसे यह कहता हूँ बिक मेरे पास अल्लाह का खXाना है और न मैं गै जानता हूँ और न मैं यह कहता हूँ बिक मैं फ़रिरश्ता हँू।'' 255 इसी तरह कह दें : " आप कह दें बिक मैं स्वयं अपने लाभ और हाबिन का मालिलक नहीं

हू। होता वही है, जो अल्लाह चाहे।" 256

लिलहाXा सारे न ी अल्लाह के सम्माबिनत ंदे हैं। अल्लाह ने उनको चुन लिलया है और उन्हें पैगम् री के पद से सम्माबिनत बिकया है। अल्लाह ने उनके ंदे होने की ात कही है। सारे नबि यों का Eम; इस्लाम है, जिजसे छोड़ कर कोई अन्य Eम; अल्लाह के यहाँ मान्य नहीं

है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " ेशक अल्लाह के पास Eम; इस्लाम ही है।" 257 सारे रसूलों का संदेश सैद्धांबितक रूप से एक है और उनके Eम;- बिवEान अलग- अलग हैं। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " तुममें से हर एक के लिलए हमने एक शरीयत और रास्ता

बिनEा;रिरत कर दिदया है।'' 258 इन सारे Eम; बिवEानों की अंबितम कड़ी हमारे न ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम का लाया हुआ Eम; बिवEान है। इसने बिपछले तमाम Eम; बिवEानों को बिनरस्त कर दिदया है। इसी तरह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम अल्लाह के

अंबितम संदेष्टा हैं और आपके ाद कोई संदेष्टा नहीं आने वाला। अगर कोई मनुष्य बिकसी न ी पर ईमान लाया है, तो उसके लिलए Xरूरी है बिक वह सारे रसूलों पर ईमान लाए और जिजसने बिकसी न ी

का इंकार बिकया तो गोया उसने सारे नबि यों को झुठलाया, क्योंबिक सारे नबि यों एवं रसूलों ने अल्लाह पर ईमान लाने, उसके फ़रिरश्तों पर ईमान लाने, उस के रसूलों और अंबितम दिदन पर ईमान लाने का आह्वान बिकया है, क्योंबिक उन सारे नबि यों एवं रसूलों का Eम; एक था। लिलहाXा जो उनके ीच अंतर करता है, बिकसी पर तो ईमान रखता है और बिकसी का इंकार करता है, दरअसल वह तमाम लोगों का इंकार करता है। क्योंबिक हर न ी और रसूल ने सारे नबि यों एवं रसूलों पर ईमान लाने की दावत दी थी259 । अल्लाह का फरमान है

: “ रसूल उस चीX पर ईमान लाए जो उसकी ओर अल्लाह की तरफ़ से उतारी गई और मुसलमान भी ईमान लाए। यह स अल्लाह और उसके फ़रिरश्ते पर और उसकी बिकता ों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए। '' 260 इसी प्रकार अल्लाह तआला का फ़रमान है :

" जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान नहीं रखते हैं और चाहते हैं बिक अल्लाह और उसके रसूलों के ीच अलगाव करें और कहते हैं बिक हम कुछ को मानते हैं और कुछ को नहीं मानते हैं और इसके ीच रास्ता नाना चाहते हैं।" 261

पाँचवा स्तंभ : अंबितम दिदन (आखिखरत) पर ईमान : इस संसार एवं Eरती पर सने वाले सारे मनुष्यों का अन्त मौत है। लेबिकन तो मौत के ाद इंसान का परिरणाम एवं दिठकाना क्या होगा? उन अत्याचारिरयों का अंजाम क्या होगा, जो दुबिनया में यातना से च गए? क्या वे अपने अत्याचार के व ाल से च जाएगेँ? इसी प्रकार उन सदाचारिरयों का क्या होगा, जो दुबिनया में अपने सदाचार के प्रबितफल से

वंलिचत रह गए? क्या वे प्रबितफल से वंलिचत ही रह जाएगेँ?

लोग नस्ल दर नस्ल मरते जा रहे हैं और यह लिसललिसला जारी रहेगा, यहाँ तक बिक ज अल्लाह की अनुमबित से यह दुबिनया फना हो जाएगी और उसके ऊपर सने वाली सारी सृधिष्टयाँ हलाक हो जाएगँी, तो अल्लाह सारे लोगों को जीबिवत करके उठाएगा और उन्हें

एक दिदन एकत्र करेगा तथा उनके द्वारा दुबिनया में बिकए गए भले- ुरे कामों का बिहसा लेगा। उसके ाद ईमान वालों को जन्नत की ओर ले जाया जाएगा और फ़ाबिफरों को जन्नत में Eकेल दिदया जाएगा। जन्नत से मुराद वह नेमतों का स्थान है, जिजसे अल्लाह ने अपने मोधिमन बिप्रयजनों के लिलए तैयार कर रखा है। उसमें इतनी तरह की नेमतें हैं बिक कोई उनका खान नहीं कर सकता।उसकी एक सौ _ेक्षिणयाँ हैं। हर _ेणी के, ईमान एवं इ ादत के अनुसार अलग-अलग

बिनवासी होंगे। स से कम रुत े वाले जन्नती को भी इतनी नेमतें दी जाएगँी बिक दुबिनया के बिकसी ादशाह की ादशाहत से दस गुना अधिEक होंगी। ज बिक जहन्नम से मुराद अल्लाह की वह यातना है, जिजसे अबिवश्वालिसयों के लिलए तैयार कर रखा है। उसमें इतनी तरह की यातनाए ँ

होंगी बिक उनके जिXक्र मात्र से रूह काँप उठती है। यदिद अल्लाह आखिख़रत में बिकसी को मृत्यु की अनुमबित दे, तो जहन्नमी उसे देखने मात्र से मर जाए।ँ

अल्लाह तआला हर मनुष्य के ारे में अच्छी तरह जानता था बिक वह अच्छी ात करेगा या ुरी और अच्छा काम करेगा या ुरा, चाहे छुपकर हो या दिदखाकर। इसके ावजूद उसने हर इंसान के साथ दो फ़रिरश्ते बिनयुG कर रखे हैं। एक नेबिकयाँ लिलखता है और दूसरा ुराइयाँ। कोई भी चीX उनसे छूट नहीं पाती। अल्लाह का फ़रमान है : " वह ज भी कोई ात ोलता है, उसे लिलखने के लिलए उसके

पास एक बिनरीक्षक तैयार होता है।'' 262 दोनों फ़रिरश्ते ंदों के काय8 को एक बिकता में संकलिलत करते रहते हैं, जिजसे क़यामत के दिदन इंसानों को दिदया जाएगा। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और कम;पत्र सामने रख दिदए जाएगेँ, तो आप अपराधिEयों को देखेंगे बिक

254 सूरा हूद, आयत संख्या : 31।255 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 50।256 सूरा अल-आराफ, आयत संख्या : 188।257 सूरा आले इमरान, आयत संख्या : 19।258 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 48।259 देखिखए : "अल- अक़ीदह अल- सहीहा व मा युXाद्दहुा" पृष्ठ : 17 तथा " अक़ीदह अह्ल अल- सुन्नह व अल-जमाअह" पृष्ठ : 25।260 सूरा अल- क़रा, आयत संखअया : 285।261 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 150।

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उससे डर रहे हैं, जो कुछ उसमें अंबिकत हैं तथा कहेंगे बिक हाय हमारा बिवनाश! यह कैसी पुस्तक है जिजसने बिकसी छोटे और ड़े कम;

को नहीं छोड़ा है, परन्तु उसे अंबिकत कर रखा है। और जो कम; उन्होंने बिकए हैं, उन्हें वह सामने पाएगँ े और आपका पालनहार अत्याचार नहीं करेगा।" 263 हर व्यलिG अपना कम;पत्र पढे़गा और उसमें लिलखी बिकसी ात का इंकार नहीं करेगा। कोई यदिद इंकार

करेगा भी, तो अल्लाह उसके कान, आँख, हाथों, पैरों और चमड़ी को ोलने की शलिG प्रदान कर देगा और ये उसके सारे कम8 का बिववरण प्रस्तुत कर देंगे। अल्लाह तआला फ़रमाता है : “ और जिजस दिदन अल्लाह के दुश्मन नरक की तरफ़ लाए जाएगँे और उन (स )

को जमा कर दिदया जाएगा। यहाँ तक बिक ज नरक के हुत करी आ जाएगेँ, उनपर उनके कान और उनकी आंखें और उनकी खालें उनके अमल की गवाही देंगे। और वे अपनी खालों से कहेंगे बिक तुमने हमारे खिख़लाफ़ गवाही क्यों दी? वह जवा देंगे बिक हमें

उस अल्लाह ने ोलने की शलिG दी, जिजसने हर चीX को ोलने की शलिG प्रदान की है। उसी ने पहली ार तुम्हें पैदा बिकया और उसी की तरफ़ तुम स लौटाए जाओगे। तथा तुम पाप करते समय छुपते नहीं थे बिक कहीं साक्ष्य न दें तुमपर तुम्हारे कान तथा तुम्हारी

आँखें एवं तुम्हारी खालें। परन्तु तुम समझते रहे बिक अल्लाह उनमें से अधिEकतर ातों को नहीं जानता, जो तुम करते हो।" 264

अंबितम दिदन यानी क़यामत तके दिदन, जिजस दिदन सारे लोगों को जीबिवत करके उठाया जाएगा और एक स्थान में जमा बिकया जाएगा, की ात सारे नबि यों एवं रसूलों ने कही है। अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " और अल्लाह की बिनशाबिनयों में से यह भी है बिक तू

Eरती को द ी- द ायी (शुष्क) देखता है, बिफर ज हम उसपर वषा; करते हैं, तो वह तर-व- ताXा होकर उभरने लगती है। जिजसने उसे जिXन्दा कर दिदया, वही बिनक्षि�त रूप से मुदा; को भी जिXन्दा करने वाला है। ेशक वह हर चीX पर क़ादिदर है।'' 265 इसी प्रकार अल्लाह तआला का फ़रमान है : " क्या वह नहीं देखते बिक जिजस अल्लाह ने आकाशों और Eरती को पैदा बिकया और उनके पैदा करने से वह न

थका, वह ेशक मुद� को ज़िजंदा करने की कुदरत रखता है?'' 266 अल्लाह तआला की बिहकमत का तक़ाXा भी यही है। क्योंबिक अल्लाह ने अपनी सृधिष्ट को बि ना बिकसी अथ; के पैदा नहीं बिकया है और उन्हें मनमानी करने के लिलए खुला छोड़ नहीं दिदया है। क्योंबिक

दुबिनया का स से बिववेकहीन व्यलिG भी बि ना बिकसी उदे्दश्य के कोई अहम काम नहीं करता। तो बिफर भला इंसान के ारे में कैसे सोचा जा सकता है बिक उसने इंसना को बि ना बिकसी उदे्दश्य के पैदा बिकया होगा और उन्हें यूँ ही छोड़ देगा। अल्लाह इस तरह की ातों से

ऊँचा एवं महान है। उसका फ़रमान है : " क्या तुम यह समझ ैठे हो बिक हमने तुम्हें ेकार ही पैदा बिकया है और यह बिक तुम हमारी ओर लौटाए ही नहीं जाओगे।" 267 इसी उसका फ़रमान है : “ और हमने आकाश और Eरती और उनके ीच की चीजों को ेकार

( और बि ला वजह) पैदा नहीं बिकया। यह शक तो काबिफ़रों का है। अतः, काबिफ़रों के लिलए आग की यातना है।" 268

उसपर ईमान की गवाही सारे ुजिद्धमान लोगों ने दी है और मानव- बिववेक का तक़ाXा भी यही है और सीEे माग; पर क़ायम बिफ़तरत भी उसे ग्रहण करती है। क्योंबिक ज इंसान क़यामत के दिदन पर बिवश्वास रखता है, तो उसे शऊर हो जाता है बिक इंसान बिकसी काम को क्यों छोडे़ और बिकसी काम को क्यों करे? उसे इस ात का भी शऊर हो जाता है बिक जो बिकसी पर अत्याचार करेगा, उसे उसका पाप Xरूर उठाना होगा और लोग क़यामत के दिदन उससे बिक़सास Xरूर लेंगे। साथ ही यह बिक हर इंसान को उसके कम8 का

प्रबितफल Xरूर धिमलेगा। यदिद अच्छा तो अच्छा और ुरा तो ुरा। ताबिक हर व्यलिG को उसके बिकए का दला दिदया जा सके और अल्लाह का न्याय सामने आए। अल्लाह तआला फ़रमाता है : " तो जिजसने कण के रा र भी पुण्य बिकया होगा, वह उसे देख लेगा।

और जिजसने कण के रा र भी पाप बिकया होगा, वह उसे देख लेगा।'' 269

लेबिकन बिकसी को यह पात नहीं बिक क़यामत क आएगी। उस दिदन की ख़ र न बिकसी अल्लाह के न ी को है न बिकसी बिनकटवत� फ़रिरश्ते को। इसकी जानकारी केवल अल्लाह को है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ यह लोग आपसे क़यामत के ारे में सवाल

करते हैं बिक वह क आएगी? आप कह दीजिजए बिक इसका इल्म लिसफ; मेरे र के पास ही है। इसको इसके समय पर लिसवाय अल्लाह के कोई दूसरा Xाबिहर न करेगा।'' 270 एक अन्य स्थान में उसने कहा है : " ेशक अल्लाह ही के पास क़यामत का इल्म है।'' 271

छठा स्तंभ : तक़दीर पर ईमान :

तक़दीर नाम है इस बिवश्वास का बिक अल्लाह को जो कुछ हो चुका है और जो कुछ होने वाला है, स का ज्ञान है। वह ंदों के हालात, उनके कम8, आयु और रोXी की भी जानकारी रखता है। अल्ल तआला का फ़रमान है : " ेशक अल्लाह हर चीX का जानने वाला

है।" 272 एक अन्य स्थान में उसका फ़रमान है : " और अल्लाह ही के पास गै की कंुजिजयाँ हैं, जिजनको लिसफ; वही जानता है। तथा जो कुछ थल और जल में है वह स का ज्ञान रखता है। कोई पत्ता नहीं बिगरता, परन्तु वह उसे जानता है।तथा जो कुछ थल और जल में

262 सूरा क़ाफ़, आयत संख्या : 18।263 सूरा अल-कह्फ़, आयत संख्या : 49।264 सूरा फु़स्थिस्सलत, आयत संख्या : 20,22।265 सूरा फुस्थिस्सलत, आयत संख्या : 39

266 सूरा अल-अहक़ाफ़, आयत संख्या : 33

267 सूरा अल-मोधिमनून, आयत संख्या : 115

268 सूरा साद, आयत संखअया : 27

269 सूरा अX-XलXला, आयत संख्या : 7,8 । देखिखए : " दीन अल-हक़्क़", पृष्ठ : 19।270 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 187।271 सूरा लुक़मान, आयत संख्या : 34।

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है, वह स का ज्ञान रखता है। और कोई पत्ता नहीं बिगरता, परन्तु उसे वह जानता है। और न कोई दाना जो Eरती के अंEेरे में हो और

न कोई तर और सूखा है, परन्तु वह एक खुली पुस्तक में है।'' 273 अल्लाह के पास सारी चीXें एक बिकता में लिलखी हुई हैं। अल्लाह का फ़रमान है : “ और हर ात को हमने एक खुली बिकता में संकलन कर रखा है। '' 274 एक अन्य स्थान में उसका फ़रमान है : "क्या

आपने नहीं जाना बिक आकाश और Eरती की हर चीज अल्लाह के ज्ञान में है। यह स लिलखी हुई बिकता में है। अल्लाह के लिलए यह काम ड़ा आसान है।'' 275 ज वह बिकसी चीX के करने का इरादा करता है, तो कहता है बिक हो जा और वह हो जाती है। अल्लाह

तआला का फ़रमान है : " ज वह बिकसी चीX का इरादा करता है, उसे इतना कह देता है बिक हो जा, चुनांचे वह फौरन हो जाती है।'' 276 अल्लाह ने सारी चीXों का तक़दीर लिलखने के साथ- साथ उन्हें पैदा भी बिकया है। उसका फ़रमान है : " ेशक हमने हर चीX को

एक (बिनEा;रिरत) अंदाजा पर पैदा बिकया है।'' 277 एक अन्य स्थान में कहा ह ै : " अल्लाह सभी चीजों का पैदा करने वाला है।'' 278 अल्लाह ने ंदों को अपने आज्ञापालन के लिलए पैदा बिकया है और उनको स्पष्ट रूप से आज्ञापालन का तरीक़ा ताया है। इसी तरह

अपनी अवज्ञा से मना बिकया है और अवज्ञा के कामों को स्पष्ट कर दिदया है। बिफर उन्हें शलिG एवं इरादा प्रदान बिकया है बिक वे अल्लाह के आदेशों का पालन कर सवा प्राप्त कर सकें और उसकी अवज्ञा के माग; पर चलकर यातना के अधिEकारी न सकें । ज इंसान तक़दीर पर बिवश्वास रखता है, तो उसे बिनम्नलिलखिखत फल प्राप्त होते हैं :

1. बिकसी भी काय; के साEन को अपनाते समय वह अल्लाह पर भरोसा रखता है। क्योंबिक उसे पता होता है बिक साEन और उसका परिरणाम दोनों अल्लाह के बिनण;य का बिहस्सा हैं।

2. इससे आत्मा को शांबित और दिदल को संतोष प्राप्त होता है। क्योंबिक ज उसे बिवश्वास होता है बिक स कुछ अल्लाह के बिनण;य से होता है और उसके भाग्य में जो अबिप्रय ात लिलख दी गई है, वह हर हाल में होकर रहेगी, तो वह अल्लाह के बिनण;य से राXी हो जाता

है और उसके दिदल को संतोष प्राप्त हो जाता है। इस तरह तक़दीर को मानने वाला इंसान दुबिनया का स से प्रसन्न और संतोषप्रद जीवन व्यतीत करता है।

3. यह, मक़सद हालिसल होते समय अपने नफ़्स पर इतराने से रोकता है। क्योंबिक उदे्दश्य का पूरा होना अल्लाह की नेमत है, जो उसके द्वारा उपलब्ध कराए गए भलाई एवं सफलता के साEनों के Xरिरए पूरा होता है। इसलिलए इस अवसर पर इंसान को अल्लाह

का शुक्र अदा करना चाबिहए।4. भाग्य पर ईमान बिकसी मुराद के प्राप्त न होने या संकट के समय परेशानी और गम को दूर करता है। क्योंबिक वह जानता है बिक यह

अल्लाह के फैसले के अनुसार हुआ है और उसके फ़सले को कोई टाल नहीं सकता और न ही उसके आदेश को कोई दल सकता है। वह हर हाल में होकर रहेगा। ऐसे में वह सब्र करता है और अल्लाह से प्रबितफल की आशा रखता है। अल्लाह तआला का फ़रमान

है : “ न कोई कदिठनाई (संकट) दुबिनया में आती है न बिवशेष तुम्हारी जानों पर, लेबिकन इससे पहले बिक हम उसको पैदा करें, वह एक खास बिकता में लिलखी हुई है। ेशक यह काम अल्लाह पर आसान है। ताबिक तुम अपने से लिछन जाने वाली चीX पर दुखी न हो जाया करो और न प्रदान की हुई चीX पर गव; करने लगो और इतराने वाले फख़्र करने वालों से अल्लाह पे्रम नहीं करता।" 279

5. तक़दीर पर ईमान से अल्लाह तआला पर पूण; भरोसा प्राप्त होता है। क्योंबिक मुसलमान जानता है बिक अल्लाह के हाथ में ही लाभ एवं हाबिन है। लिलहाXा वह न बिकसी शलिGशाली की शलिG से डरता है और न बिकसी इंसान के भय से बिकसी अचे्छ काम से पीछे हटता है। अल्लाह के रसूल وسلم عليه الله ने صلى इब्ने अब् ास रजिXयल्लाहु अन्हुमा से फ़रमाया है: “ याद रखो बिक अगर पूरी की पूरी

उम्मत तुमको लाभ पहँुचाना चाहे, तो वह कुछ भी लाभ नहीं पहँुचा सकती, लिसवाय उतने के जिजतना अल्लाह ने तुम्हारे लिलए लिलख

272 सूरा अल-अनक ूत, आयत संख्या : 62।273 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 59 । अगर कुरआन में मात्र यही एक आयत होती, तो यह इस ात का स्पष्ट एवं सशG प्रमाण

होती बिक कु़रआन अल्लाह की बिकता है। ऐसा इसलिलए, क्योंबिक इंसान ने बिकसी भी युग में, यहाँ तक बिक इस आEुबिनक में भी, जिजसमें ज्ञान का बिवस्फोट हो चुका है और इंसान अक्षिभमान का लिशकार हो चुका है, इस व्यापक जानकारी को इकट्ठा करना तो दूर,

उसके ारे में सोचा भी नहीं है। उसकी पूरा कोलिशश इस ात पर कें दिद्रत रहती है बिक बिकसी पेड़ अथवा कीट का बिकसी बिवशेष परिरवेश में अध्ययन बिकया जाए, ताबिक उसके कुछ रहस्यों को सामने लाया जा सके, ज बिक त भी अधिEकतर ातें पद� ही में रह जाती हैं।

रही ात सारी चीXों के ारे में सारी जानकारिरयाँ जुटाने की, तो न तो इसके ारे में कभी इंसान ने सोचा है और न कभी ऐसा कर सकता है।

274 सूरा यासीन, आयत संख्या : 12।275 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 70।276 सूरा यासीन, आयत संख्या : 82।277 सूरा अल-क़मर, आयत संख्या : 49।278 सूरा अX-ज�मर, आयत संख्या : 62।279 सूरा अल-हदीद, आयत संख्या : 22, 23 । देखिखए : "अल- अक़ीदह अस- सहीहह व मा युXाद्दहुा", पृष्ठ : 19, " अक़ीदह अह्लअस- सुन्नह व अल-जमाअह" पृष्ठ : 39 तथा " दीन अल-हक़्क़" पृष्ठ : 18।

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दिदया है, और इसी प्रकार अगर सारे लोग तुमको हाबिन पहँुचाना चाहें, तो तुमको कुछ भी हाबिन नहीं पहँुचा सकते, लिसवाय उतने के

जिजतना अल्लाह ने तुम्हारे लिलए लिलख दिदया है।" 280

तीरी श्रेणी : तीसरी _ेणी एहसान ( उपकार एवं भलाई) है और इसका एक ही स्तंभ है :

एहसान का अथ; यह है बिक आप अल्लाह की इ ादत इस प्रकार से करें बिक गोया आप उसे देख रहे हैं। लेबिकन अगर आप उसे देख नहीं रहे हैं, तो कम से कम यह ख्याल रहे बिक वह आपको देख रहा है। ज इंसान इस तरह अल्लाह की इ ादत करता है और उसे यह एहसास रहता है बिक उसका पालनहार उसके बिनकट ही है और वह उसके सामने खड़ा है , तो उसके अंदर अल्लाह का भय,

उसका खौफ़ और उसके प्रबित सम्मान पैदा होता है, इ ादत की अदायगी में इख़लास आता है और वह उसे संुदर एवं संपूण; नाने का प्रयास होता है।

लिलहाXा ंदा इ ादत करते समय अपने दिदल में अपने पालनहार का भय रखे और अल्लाह की बिनकटता को इस प्रकार से महसूस करे, जैसे बिक वह अल्लाह को देख रहा हो। अगर इस हालत को प्राप्त करने में कोई कदिठनाई आ रही हो, तो उसे प्राप्त करने के लिलए

अल्लाह तआला से सहायता माँगे और इस ात पर बिवश्वास रखे बिक अल्लाह तआला उसे देख रहा है और उसकी सारी ढकी एवं छुपी ातों को जानता है। उसकी कोई भी ात उससे छुपी नहीं है। 281

ज ंदा इस प्रकार से अल्लाह की इ ादत करता है, तो वह इख़लास के साथ अपने र की इ ादत कर रहा होता है। ऐसे में न वह उसके लिसवा बिकसी की ओर तवज्जो देता है, न लोगों की प्रशंसा की प्रतीक्षा करता है और न उनकी ुराई करने से डरता है, क्योंबिक उसके लिलए स इतना काफ़ी हो जाता है बिक उसका पालनहार उससे प्रसन्न हो जाए और उसका प्रभु उसकी प्रशंसा करे।

वह एक ऐसा इंसान न जाता है, जिजसका Xाबिहर और भीतर समान होता है। वह अपने र की इ ादत एकांत में भी करता है और लोगों के सामने भी। वह संपूण; तरीके से इस ात पर बिवश्वास रखता है बिक जो कुछ उसके दिदल में छुपा है और जो ुरे ख़याल उसके

दिदल में आते हैं, अल्लाह स से सूलिचत है। ईमान उसके दिदल में रच- स गया होता है और वह इस ात का एहसास रखता है बिक वह अल्लाह की बिनगरानी में है। इस तरह उसके शरीर के सारे अंग अपने सृधिष्टकता; के सामने समर्तिपतं रहते हैं और वह उनके Xरिरए वही

काम करता है, जो अल्लाह का पसंद हो और जिजससे वह प्रसन्न होता हो। इस प्रकार ज उसका दिदल अपने पालनहार से सं द्ध हो जाता है, वह बिकसी सृधिष्ट की सहायता नहीं माँगता। क्योंबिक वह अल्लाह ही को पया;प्त समझता है। वह बिकसी इंसान के सामने लिशकायत भी नहीं करता, क्योंबिक उसने अपनी Xरूरतें अल्लाह के सामने रख दी

हैं और उसकी मदद के ाद बिकसी और की मदद की आवश्यकता नहीं है। वह कहीं भयभीत नहीं होता और बिकसी से डरता नहीं है , क्योंबिक वह जानता है बिक हर परिरस्थिस्थबित में अल्लाह उसके साथ है और वही उसके लिलए काफ़ी है और वह स से अच्छा मददगार है।

वह अल्लाह के बिकसी आदेश की अवहेलना नहीं करता और उसकी अवज्ञा भी नहीं करता। क्योंबिक वह अल्लाह से हया करता है और इस ात को नापसंद करता है बिक वहाँ न रहे, जहाँ होने का अल्लाह ने आदेश दिदया है और वहाँ रहे, जहाँ न होने का उसने

आदेश दिदया है। वह बिकसी सृधिष्ट पर अत्याचार नहीं करता और उसका हक़ नहीं मारता , क्योंबिक वह जानता है बिक अल्लाह उसकी हर ात से अवगत है और वह उसके सभी कम8 का बिहसा भी लेगा। वह Eरती में उपद्रव नहीं मचाता, क्योंबिक वह जानता है बिक Eरती

की सारी संपदाओं का मालिलक अल्लाह है। अल्लाह ने उन्हें इंसान के काम के लिलए पैदा बिकया है। ताबिक वह आवश्यकता अनुसार उनमें से ले और उन्हें उपलब्ध कराने पर अल्लाह का शुक्र अदा करे।

इस पुल्किस्तका में मैंने जो कुछ यान बिकया और लिलखा है, वह इस्लाम की महत्वपूण; ातें तथा महान स्तंभ हैं। ये वो स्तंभ हैं बिक ज कोई ंदा इनपर बिवश्वास रखता और इनपर अमल करता है, तो मुसलमान हो जाता है। वरना इस्लाम नाम है Eम; और संसार, इ ादत और जीने के माग; का। इस्लाम एक ऐसा व्यापक एवं संपूण; ईश्वरीय व्यवस्था है, जिजसके बिवधिE- बिवEानों के दायरे में जीवन के सारे के्षत्र

समान रूप से शाधिमल हैं। के्षत्र चाहे आस्था का हो या राजनीबित का, आर्शिथंक हो या सामाजिजक अथवा शांबित एवं सुरक्षा से सं ंधिEत। उसके अदंर इंसान को ऐसे बिनयम एवं लिसद्धांत और आदेश तथा बिनद�श धिमल जाते हैं, जो शांबित एवं युद्ध की स्थिस्थबितयों से बिनमटने के

लिलए काफ़ी हैं, अबिनवाय; अधिEकारों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, इंसान एवं पशु- पक्षिक्षयों और उनके आस- पास के माहौल की बिहफ़ाजत करते हैं और इंसान, जीवन, मृत्यु और मौत के ाद के जीवन को स्पष्ट करते हैं। इसी तरह उसके अंदर लोगों के साथ व्यवहार का स से उत्तम आदश; भी धिमल जाता है। जैसा बिक अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ ” और लोगों से अच्छी ात करना। 282 इसी प्रकार

अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ और ऐसे लोग, ” जो लोगों को माफ़ करने वाले हैं। 283 इसी प्रकार अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ और बिकसी क़ौम की दुश्मनी तुम्हें इंसाफ़ न करने पर आमादा न करे। इंसाफ़ करो, वह परहेXगारी से हुत क़री है।" 284

280 इस हदीस को इमाम अहमद ने अपनी मुसनद 1/293 “ और इमाम बितर्मिमंXी ने अपनी सुनन के अंदर अ वा अल-बिक़यामह'' (4/76) में रिरवायत बिकया है।281 देखिखये : " जामे अल- उलूम व अल-बिहकम", पृष्ठ : 128।282 सूरा अल- क़रा, आयत संख्या : 83

283 सूरा आले इमरान, आयत संख्या : 134।284 सूरा अल-माइदा, आयत संख्या : 8।

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इस्लाम की _ेक्षिणयों और उसकी हर _ेणी के सारे रुक्नों ( ुबिनयादी ातों) का वण;न करने ाद ेहतर मालूम होता है बिक हम संक्षेप में इस्लाम की खूबि यों एवं अच्छाईयों का उल्लेख कर दें।

इस्लाम की कुछ खूविबयाँ एर्वं अच्छाइयाँ [292] : इस्लाम की खूबि यों के संपूण; वण;न से क़लम बिववश है और इस Eम; की फ़Xीलतों के संपूण; यान में शब्द अक्षम हैं। इसका कारण

यह है बिक यह Eम; पबिवत्र एवं महान अल्लाह का Eम; है। अतः जिजस तरह मानव दृधिष्ट से अल्लाह के दश;न नहीं हो सकते और मानव ज्ञान उसकी संपूण; जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता, उसी तरह उसकी शरीयत के संपूण; उल्लेख से क़लम बिववश है। इब्न-ए-क़ह्हिय्यम कहते हैं : " ज आप इस सीEे और सरल Eम;, एकेश्वरवाद पर आEारिरत मXह और मुहम्मद وسلم عليه الله की صلى लाई हुई

इस शरीयत पर चिचंतन करेंगे, जिजसका संपूण; वण;न शब्दों के Xरिरए संभव नहीं है, जिजसके सौंदय; का खान मुह्हिम्कन नहीं है और जिजससे आगे के ारे में ज्ञानी लोगों का ज्ञान, यदब्िप स लोगों का ज्ञान उनके बिकसी स से संपूण; व्यलिG के अंदर एकत्र हो जाए, सोच

नहीं सकता। संपूण; एवं उत्कृष्ट ुजिद्धयों के लिलए स इतना ही काफ़ी है बिक उसके सौंदय; को ही महसूस कर लें, उसकी उत्कृषट्ता का इक़रार कर लें और यह जान लें बिक संसार को उससे अधिEक संपूण;, बिवशाल और भव्य जीनव बिवEान प्राप्त नहीं हुआ है। अगर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम इस शरीयत के सत्य होने का कोई प्रमाण न भी लाते, तो भी स्वयं इस शरीयत की

बिवशालता यह ताने के लिलए काफी होती बिक वह अल्लाह की ओर से है। यह पूरी की पूरी शरीयत इस ात की गवाही देती है बिक उसका रचधियता संपूण; ज्ञान वाला, संपूण; बिहकमत वाला, व्यापक दया, भलाई और उपकार का मालिलक, परोक्ष तथा प्रत्यक्ष का ज्ञान

रखने वाला और हर वस्तु के आरंभ एवं अंत से अवगत है। साथ ही यह बिक यह ंदों पर अल्लाह का एक हुत ड़ा उपकार है। अल्लाह ने ंदों पर इससे ढ़कर कोई उपकार नहीं बिकया है बिक उन्हें इस शरीयत का माग;दश;न बिकया तथा उन्हें इसका मानने वाला

और पसंद करने वाला नाया। यही कारण है बिक अल्लाह ने उन्हेें इस शरीयत का माग;दश;न कराने को अपने उपकार ताया है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " ेशक मुसलमानों पर अल्लाह का उपकार (एहसान) है बिक उसने उन्हीं में से एक रसूल उनके अंदर

भेजा, जो उन्हें उसकी आयतें पढ़कर सुनाता है और उन्हें पाक करता है और उन्हें बिकता और बिहकमत लिसखाता है, और ेशक यह स उससे पहले स्पष्ट रूप से भटके हुए थे।" 285 अल्लाह तआला ने अपने ंदों से इस शरीयत का परिरचय कराते हुए, उन्हें अपनी

बिवशाल नेमत का स्मरण कराते हुए और इस शरीयत की प्रान्विप्त पर उनसे अल्लाह का शुक्र अदा करने का तक़ाXा करते हुए कहा है : “ आज मैंने तुम्हारे लिलए तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिदया।'' 286

इस Eम; के प्रबित हम अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए इस्लाम Eम; की कुछ खूबि यों को संक्षेप में वण;न कर रहे हैं :

1- इस्लाम अल्लाह का धम� है : यह वही Eम; है, जिजसे अल्लाह तआला ने अपने लिलए पसंद बिकया है, उसे देकर अपने रसूलों को भेजा है और लोगों को उसके द्वारा

अपनी इ ादत का आदेश दिदया है। जिजस तरह से सृधिष्टकता; और सृधिष्ट के ीच कोई समानता नहीं है, उस तरह अल्लाह के Eम; इस्लाम और मानव बिनर्मिमंत बिवEानों एवं Eम8 के ीच कोई समानता नहीं है। जिजस प्रकार पबिवत्र अल्लाह हर एत ार से संपूण; है, उसी

तरह उसका Eम; हर एत ार से संपूण; है, जो ऐसे बिवधिE- बिवEान प्रस्तुत करता है, जो लोगों की दुबिनया एवं आखिख़रत को सँवारने का काम करते हैं, सृधिष्टकता; के अधिEकारों और उसके प्रबित ंदों की जिXम्मेवारिरयों तथा लोगों के एक- दूसर े के प्रबित अधिEकारों और

जिXम्मेवारिरयों को संपूण; रूप से यान करते हैं।

2- व्यापकता : इस Eम; की एक महत्वपूण; बिवशेषता यह है बिक यह बिक इसकी व्यापकता के दायरे में सारी चीXें आ जाती हैं। अल्लाह तआला का

फ़रमान है : " हमने बिकता में लिलखने से कोई चीX न छोड़ी।" 287 अतः इस Eम; की व्यापकता के अंदर सृधिष्टकता; से सं ंधिEत सारी ातें जैसे अल्लाह के नाम, उसके गुण और उसके अधिEकार आदिद और सृधिष्ट से सं ंधिEत सारी ातें जैसे बिवधिE-बिवEान, जिXम्मेदारिरयाँ,

आचरण और आपसनी मामलात आदिद स कुछ दाखिख़ल है। यह Eम; पहले और ाद के लोगों, फ़रिरश्तों, नबि यों और रसूलों से सं ंधिEत सारी सूचनाएँ प्रदान करता है। यह आकाश, ग्रहों, तारों, समुद्रों, पेड़ों और कायनात के ारें में ात करता है। इसने सृधिष्ट की

रचना के कारण, उदे्दश और अंजाम भी ताया है। इसने जन्नत और ईमान वालों का अंजाम यान बिकया है, तो जहन्नम एवं काबिफ़रों का दिठकाना भी ताया है।

3- इस्लाम ृविष्टकता� और ृविष्ट के बीच ंबंध जोड़ता है : हर समुदाय और हर झूठे Eम; की यह बिवशेषता है बिक वह एक इंसान को उसी के समान दूसरे इंसान से जोड़ता है , जिजसको मौत,

कमXोरी और ीमारी आती है, ल्किल्क कभी- कभार ऐसे मनुष्य से सं ंE जोड़ता है जो सदिदयों पहले मर चुका होता है और सड़- गलकर धिमट्टी और हÂी न गया होता है। लेबिकन इस्लाम की बिवशेषता यह है बिक वह मनुष्य का सं ंE सीEे उसके सृधिष्टकता; से जोड़ता है। यहाँ ीच में न कोई पादरी होता है, न पुण्यात्मा होती है और न Eार्मिमंक संस्कार होते हैं। यहाँ सृधिष्ट एवं सृधिष्टकता; के ीच

सीEा सं ंE होता है। ऐसा सं ंE, जो बिववेक को उसके र से जोड़ देता है, जिजससे वह प्रकाशमय हो जाता है, माग;दश;न प्राप्त करता 285 सूरा आले इमरान, आयत संख्या : 164।286 " धिमफ्ताहु दार अस-सआदह" 1/374-275 । आयत के लिलए देखिखए सूरा माइदा आयत संख्या : 3।287 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 38।

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है, ऊँचाई प्राप्त करता है, संपूण;ता का माग; अपनाता है और तुच्छ चीXों से चता है, क्योंबिक जो दिदल अपने सृधिष्टकता; से सं द्ध नहीं होता, वह पशुओं से भी अधिEक गुमराह है।

यह सृधिष्टकता; और सृधिष्ट के ीच ऐसा सं ंE स्थाबिपत करता है, जिजसके Xरिरये सृधिष्ट यह जानती है बिक अल्लाह उससे क्या चाहता है, फलस्वरूप वह पूरी समझ- ूझ के साथ अल्लाह की इ ादत करता है और अल्लाह के पसंदीदा कामों को जानकर उन्हें करने एथा

उसके नापसंदीदा कामों को जानकर उनसे चने का प्रयास करता है। यह महान सृधिष्टकता; और बिन ;ल एवं बिनE;न सृधिष्ट के ीच सं ंE स्थाबिपत करता है, जिजसके नतीजे में वह उससे मदद, सहायता और

सामथ्य; माँगता है और षड्यंत्रकारिरयों के षड्यंत्र एवं शैतान के हाथ का खिखलौना नने से सुरक्षा माँगता है।

4- इस्लाम दुविनया और आख़िखरत दोनों के विहतों की रक्षा करता है : इस्लामी शरीयत की ुबिनयाद दुबिनया एवं आखिख़रत के बिहतों की रक्षा एवं उच्च नैबितकता को संपूण; रूप देने के बिवचार पर रखी गई है।

जहाँ तक आखिख़रत के बिहतों के यान का सं ंE है, तो याद रहे बिक शरीयत ने उसके सारे रूपों को यान बिकया है और उसके बिकसी भी पहलू को नहीं छोड़ा है। ल्किल्क उनको बिवस्तारिरत रूप से यान कर दिदया है, ताबिक कोई भी ात बिनगाहों से ओझल न रह जाए। इसी क्रम में उसकी नेमतों का वादा बिकया है और उसकी यातनाओं से सावEान बिकया है। और जहाँ तक सांसारिरक बिहतों के यान की ात है, तो अल्लाह ने इस Eम; के द्वारा ऐसे बिवEान प्रस्तुत कर दिदए, जिजनके Xरिरए इंसान के Eम;, जान, माल, नस , इज़्Xत और ुजिद्ध की सुरक्षा हो सके। ज बिक उच्त नैबितकता के यान की ात करें, तो अल्लाह ने भीतरी एवं ाहरी दोनों एत ार से इससे सुसस्थिज्जत होने का आदेश दिदया

है और हीन नैबितकता का लिशकार होने से मना बिकया है। Xाबिहरी उच्च नैबितकता में स्वच्छता एवं गंदबिगयों से साफ़- सुथरा रहना जैसी चीXें आती हैं। इस्लाम ने खुश ू लगाने तथा अचे्छ कपडे़ पहनने और अच्छी शक्ल- सूरत में रहने की प्रेरणा दी है। ज बिक गंदी चीXों जैसे व्यक्षिभचार, मदिदरापान तथा मुदा;र, रG एवं सूअर का मांस खाने को हराम क़रार दिदया है। इसी प्रकार उसने पाक चीXों को खाने

का आदेश दिदया है एवं फ़Xूलखच� से मना बिकया है। जहाँ तक अंदरूनी स्वच्छता की ात है, तो इसका सं ंE हीन नैबितकता से खुद को चाए रखने और उच्च नैबितकता से सुशोक्षिभत करने स े है। हीन नैबितकता के उदाहरण झूठ, गुनाह, क्रोE, ईष्या;, कंजूसी, तुच्छ मानलिसकता, पद एवं दुबिनया का मोह, घमंड,

अक्षिभमान और रिरयाकारी आदिद हैं। ज बिक उच्च नैबितकता के उदाहरण अच्छा आचरण, लोगों के साथ अच्छा व्यवहार, लोगों की भलाई करना, न्याय, बिवनम्रता, सच्चाई, दानशीलता, खच; करना, अल्लाह पर भरोसा करना, इख़लास, अल्लाह का भय, Eैय; और

शुक्र आदिद हैं। 288

5- रलता : सरलता इस Eम; की एक महत्पूण; बिवशेषता है। इसके हर Eार्मिमकं काय; में सरलता एवं आसानी दिदखती है और इसकी हर इ ादत में आसानी दिदखती है। अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " और अल्लाह ने तुमपर दीन के ारे में कोई कदिठनाई नहीं रखी।" 289 इस सरलता का पहला दृश्य यहाँ नXर आता है बिक ज कोई व्यलिG इस Eम; में प्रवेश करना चाहे, तो उसे बिकसी मानव मध्यस्थता अथवा

अतीत में बिकए हुए कामों का एतराफ़ करने की आवश्यकता नहीं है। उसे जो कुछ करना है, वह यह है बिक पाक- साफ़ होकर इस ात की गवाही दे बिक अल्लाह के लिसवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं। बिफर इन

दोनों गवाबिहयों के अथ; को समझे और उनके तक़ाXों पर अमल करे। इसी तरह ज इंसान सफर करता है या ीमार हो जाता है, तो उसकी इ ादत में कमी एवं आसानी कर दी जाती है और उसको उस काय; का वही सवा धिमलता है, जो बिकसी घर में रहने वाले और स्वस्थ आदमी को धिमलता है। इससे भी आगे ढ़कर यह बिक एक

मुसलमान का जीवन सरल एवं संतोषजनक रहता है, ज बिक एक काबिफ़र का जीवन मुल्किश्कल एवं कदिठनाई भरा रहता है। इसी प्रकार मोधिमन की मौत आसान होती है और उसकी आत्मा कुछ इस तरह बिनकलती है, जैसे बिकसी त;न से पानी की ंूद बिनकतली हो। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " वे जिजनकी जान फ़रिरश्ते ऐसी हालत में बिनकालते हैं बिक वे पाक- साफ हों, कहते हैं बिक तुम्हारे लिलए सलामती ही सलामती है, अपने उन कम8 के दले जन्नत में जाओ, जो तुम कर रहे थे।" 290 ज बिक काबिफ़र की मौत के समय डे़

बिनद;यी और शलिGशाली फ़रिरशते उपस्थिस्थत रहते हैं और उसपर कोड़े रसा रहे होते हैं। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ अगर आप Xालिलमों को मौत के सख्त अXा में देखेंगे, ज फ़रिरश्ते अपने हाथ लपकाए होते हैं बिक अपनी जान बिनकालो, आज तुम्हें अल्लाह

पर नाहक आरोप लगाने और अक्षिभमान से उसकी आयतों का इंकार करने के स अपमानकारी दला दिदया जाएगा। '' 291 एक

288 देखिखए : "अल- ऐलाम बि मा फी दीन अन- नसारा धिमन अल- फ़साद व अल-अवहाम", लेखक : इमाम कु़रतु ी, पृष्ठ : 442-445

289 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 78।290 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 32।291 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 93।

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अन्य स्थान पर उसका फ़रमान है : " और अगर आप देखेंगे ज फ़रिरश्ते काबिफरों की जान बिनकालते हैं, उनके चेहरे और कमर पर

मार मारते हैं ( और कहते हैं) तुम जलने के अXा का मXा चखो।'' 292

6- न्याय : इस्लामी शरीयत के बिवधिE- बिवEानों का रचधियता अल्लाह है, जो सारे इंसानों, पुरुष हों बिक स्त्री एवं गोरे हों बिक काले, का सृधिष्टकता; है।

सारे इंसान उसके शासन, न्याय एवं दया के सामने समान हैं। उसने पुरुष एवं स्त्री स के लिलए उसके अनुरूप बिवधिE- बिवEान नाए हैं। ऐसे में यह असंभव है बिक शरीयत ह्हिस्त्रयों की तुलना में पुरुषों का पक्ष ले या स्त्री को तरजीह दे एवं पुरुष पर अत्याचार करे या काले

इंसानों की तुलना में गोरे इंसानों को कुछ बिवशेष सुबिवEाएँ प्रदान करे। सारे लोग अल्लाह की शरीयत के सामने रा र हैं। उनके ीच कोई अंतर नहीं है। यदिद है भी तो तक़वा यानी Eम; के अनुपालन के आEार पर।

7- भलाई का आदेश देना और बुराई े रोकना : इस शरीयत की एक सम्मानीय बिवशेषता और अनूठी ख़ुसूलिसयत भलाई का आदेश देना और ुराई से रोकना है। हर वयस्क , बिववेकी और सक्षम मुसलमान पुरुष तथा स्त्री पर अबिनवाय; है बिक अपनी शलिG के अनुसार, भलाई का आदेश देने और ुराई से रोकने की

बिवक्षिभन्न _ेक्षिणयों को ध्यान में रखते हुए यह काम करे। इस जिXम्मेवारी की बिवक्षिभन्न _ेक्षिणयों से आशय यह है बिक अपने हाथ से भलाई का आदेश दे और ुराई से रोके। अगर हाथ से ऐसा करना संभव न हो, तो X ान से करे और अगर X ान से भी संभव न हो, तो दिदल से करे। ऐसा करने से पूरी उम्मत स्वयं अपनी ही बिनगरानी कर रही होगी। इस तरह हर व्यलिG पर उस आदमी को भलाई का

आदेश देना और ुराई से रोकना अबिनवाय; है, जो बिकसी अचे्छ काम में कोताही करे या बिकसी ग़लत का में पड़ जाए। चाहे वह शासक हो या आम नाबिगरक। उसे अपनी क्षमता एवं उन शरई लिसद्धांतों के अनुसार यह काम करना है, जो इस काम को सुव्यवस्थिस्थत तरीके़ से करने के लिलए नाए गए हैं।

जैसा बिक आपने देखा यह काम हर व्यलिG पर उसकी क्षमता के अनुसार आवश्यक है, ज बिक आज हुत- सी समकालीन राजनीबितक प्रणालिलयाँ इस ात पर गव; करती हैं बिक उन्होंने बिवपक्षी दलों को सारकारी काय;कलापों और आधिEकारिरक एजेंलिसयों के कामकाज पर

नXर रखने का अवसर प्रदान बिकया है। यह इस्लाम की कुछ महत्वपूण; खूबि याँ हैं। अगर मैं बिवस्तृत जानकारी उपलब्ध करना चाहता, तो इस्लाम के हर प्रतीक, हर फ़X;, हर

आदेश एवं हर बिनषेE को अलग- अलग समय देकर उसमें बिनबिहत अनंत बिहकमत, ठोस बिवधिE बिनमा;ण के पक्ष, असीम सौंदय; और अतुलनीय संपूण;ता को यान करना पड़ता। जो व्यलिG इस Eम; के बिवEानों पर ग़ौर करेगा, वह बिनक्षि�त रूप से जान लेगा बिक यह

अल्लाह का Eम; है और यह वह सत्य है जिजसमें कोई संदेह नहीं है और वह माग;दश;न है जिजसमें कोई भटकाव नहीं है। अगर आप अल्लाह की ओर लौटना चाहते हैं, उसकी शरीयत का अनुसरण करना चाहत े ह ैं और उसके नबि यों एवं रसूलों के

पदल्िचह्नों पर चलना चाहते हैं, तो तौ ा का द्वार खुला हुआ है और आपका क्षमाशील एवं दयावान अल्लाह आपको ुलाता है बिक आपको क्षमा कर दे।

तौबा अल्लाह के रसूल وسلم عليه الله ने يصلى फ़रमाया है : " आदम के सारे ेटे खताकार हैं और स से अचे्छ खताकार वह लोग हैं,

जो अपने गुनाहों की अल्लाह से माफी माँगते हैं।" 293 मनुष्य अपनी रचना के एत ार से कमXोर है और अपने साहस तथा बिन�य के एत ार से भी कमXोर है। वह अपने पाप एवं गुनाहों के अंजाम को उठाने की शलिG नहीं रखता। इसलिलए अल्लाह तआला ने उसपर

दया करते हुए उसको हुत सारी छूट दे रखी है। उदाहरणस्वरूप उसके लिलए तौ ा करने का बिवकल्प रखा है। तौ ा से आशय है अल्लाह के भय और मोधिमन ंदों के लिलए उसके द्वारा तैयार की गई नेमतों की आशा में गुनाह को छोड़ देना, जो कोताही हुई है

उसपर शर्मिंमदंा होना, दो ारा गलती न करने का बिन�य करना और सत्कम8 के Xरिरए क्षबितपूर्तितं का प्रयास करना। 294 तौ ा, जैसा बिक आपने देखा, एक हृदय सं ंधिEत काय; है, जिजसका ताल्लुक़ ंदा और उसके र से है। न कोई थकान और न बिकसी कदिठन काय; का

सामना। केवल दिदल से सं ंधिEत काम करना है और आने वाले दिदनों में गुनाहों से चना है। गुनाहों से चना छोड़ना और राहत है।295

ऐसा कुछ Xरूरी नहीं है बिक आप बिकसी इंसान के हाथ पर तौ ा करें, जो आपका अपमान करे, आपका भेद खोल दे और आपकी कमXोरी का फ़ायदा उठाए। तौ ा नाम है आपके और आपके र के ीच मुनाजात है। आप उससे क्षमा माँगते हैं और माग;दश;

तल करते हैं और वह आपकी तौ ा ग्रहण करता है।

292 सूरा अल-अंफाल, आयत संख्या : 50।293 इसे इमाम अहमद ने अपनी मुसनद 3/198 तथा बितरधिमXी ने अपनी सुनन " अ वा लिसफ़ह अल-बिक़यामह" (4/49) एवं इब्ने

माजा ने अपनी सुनन " बिकता अX-ज�ह्द" (4/491) में रिरवायत बिकया है।294 "अल- मुफ़रदात फ़ी गरी अल-कु़रआन", पृष्ठ : 76 । थोडे़ दलाव के साथ।295 "अल-फ़वाइद" लेखक : इब्न अल-क़ह्हिय्यम, पृष्ठ : 116।

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इस्लाम में न बिवरासत में धिमले हुए पाप की कोई कल्पना है और न बिकसी प्रतीक्षिक्षत मुलिGदाता की Eारणा। ल्किल्क आन्विस्·याई यहूदी, जिजसने ाद में इस्लाम ग्रहण कर लिलया था और मुहम्मद असद नाम रख लिलया था, ने जो कुछ महसूस बिकया था, वह कुछ इस तरह है

: “ मुझे पूरे कुरआन में बिकसी भी जगह इस ात का कोई उल्लेख नहीं धिमला बिक मनुष्य को पापों से छुटकारा दिदलाने की Xरूरत है। इस्लाम में बिकसी भी बिवरासत में धिमली हुई प्रथम गलती की कोई कल्पना नहीं है, जो आदमी के और उसके अंबितम परिरणाम के ीच रुकावट नती हो। इसका कारण यह है बिक : " इंसान के लिलए केवल वही है जिजसकी कोलिशश खुद उसने की।" 296 यहाँ इंसान से इस

ात का मुताल ा नहीं होता बिक तौ ा का माग; खुलवाने और गुनाह से मुलिG प्राप्त करने के लिलए कोई कु़र ानी पेश करे या अपना वE कर दे297।" ल्किल्क उसका लिसद्धांत अल्लाह तआला के इस कथन में यान बिकया गया है : “ कोई इंसान बिकसी दूसरे का ोझ न

उठाएगा।'' 298

तौ ा के हुत- से डे़- डे़ प्रभाव प्रकट होते हैं। यहाँ हम इस तरह के कुछ प्रभावों का उल्लेख कर रहे हैं :1. ंदा को अल्लाह तआला की व्यापक सहनशीलता और उसके गुनाहों को उजागर न करने के मामले में उदारता का ज्ञान होता है।

हालाँबिक अगर अल्लाह चाहे, तो ंदे को फौरन उसके गुनाह की सXा दे दे और ंदों के ीच उसका अपमान कर दे, जिजसके ाद वह लोगों की नXरों में खटकने लगे। ऐसा करने के जाय अल्लाह उसके गुनाह पर पदा; डाल देता है और उसे सामथ्य;, शलिG एवं रोXी प्रदान करता है।

2. तौ ा का दूसरा लाभ यह है बिक ंदा अपनी वास्तबिवकता को अच्छी तरह जान जाता है और इस ात से अवगत हो जाता है बिक इंसान का मन उसे ुराई का आदेश देता है। साथ ही यह बिक उससे जो गुनाह और ुराई होती है, वह मन की दु ;लता, अवैE

आकांक्षाओं से दूर रहने में अक्षमता और इस ात का प्रमाण है बिक वह एक क्षण के लिलए भी अल्लाह से ेबिनयाX नहीं हो सकता बिक वह उसे पबिवत्र करे और माग;दश;न करे।

3. अल्लाह ने तौ ा का प्रावEान इसलिलए रखा है, ताबिक उसके Xरिरए ंदे के सैभाग्य का स से ड़ा साEन प्राप्त हो। यानी वह अल्लाह के शरण में आ जाए और उससे मदद माँगने लगे। इसी तरह तौ ा से दुआ, अल्लाह के सामने बिगड़बिगड़ाने, उससे प्रेम, उसके

भय और उससे आशा आदिद के द्वार भी खुलते हैं। तौ ा नफ़्स को उसके सृधिष्टकता; से एक बिवशेष प्रकार की बिनकटता प्रदान करती है, जो तौ ा एवं अल्लाह के शरण में गए बि ना प्राप्त नहीं हो सकती।

4. तौ ा करने से अल्लाह तआला मनुष्य के बिपछले पापों का क्षमा कर देता है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ आप काबिफरों से कह दीजिजए बिक अगर यह लोग रुक जाए,ँ तो इनके सारे गुनाह जो पहले कर चुके हैं, माफ़ कर दिदये जायेंगे।" 299

5. तौ ा के द्वारा इंसान के गुनाहों को नेबिकयों में दल दिदया जाता है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ उन लोगों के लिसवाय जो माफी माँग लें और ईमान लाएँ और नेक काम करें। ऐसे लोगों के गुनाहों को अल्लाह नेकी में दल देता है। अल्लाह तआला ड़ा

क्षमा करने वाला और दया करने वाला है।" 300

6. इंसान अन्य इंसानों के साथ उनकी कोताबिहयों एवं गलबितयों में उसी प्रकार का व्यवहार करे, जिजस प्रकार का व्यवहार वह पसंद करता है बिक अल्लाह उसकी कोताबिहयों, गलबितयों एवं गुनाहों के ारे में करे। क्योंबिक इंसान जिजस तरह का कम; करता है, उसे उसी

तरह का प्रबितफल धिमलता है। अतः ज वह लोगों के साथ इस तरह का अच्छा व्यवहार करेगा, तो उसी तरह का प्रबितफल अपने प्रभु से प्राप्त करेगा और अल्लाह उसके गुनाहों एवं गलबितयों को नेबिकयों और अच्छाइयों से दल देगा।

7. इंसान इस ात को जान ले बिक उससे भी हुत- सी गलबितयों होती हैं और उसके अंदर भी हुत- सी कधिमयाँ हैं। इससे वह दूसरे लोगों की कधिमयाँ बिगनना छोड़ देगा और दूसरे लोगों की कधिमयों के ारे में सोचने के जाय अपना सुEार करने पर ध्यान देने लगेगा।

301

मैं इस भाग का अंत एक हदीस से करना चाहता हँू, जिजसमें है बिक एक व्यलिG अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम के पास आया और ोला : ऐ अल्लाह के रसूल! मैंने हर प्रकार की ुराइयाँ की हैं। आपने पूछा : " क्या तुम यह गवाही नहीं देते बिक अल्लाह

के लिसवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं?" आपने तीन ार कहा तो उस आदमी ने उत्तर दिदया : जी हाँ। इसपर आपने कहा : " यह वाक्य उन्हें खत्म कर देगा।" और दूसरी रिरवायत में है बिक : “ उन स को यही काफी है।'' 302

296 सूरा अन-नज्म, आयत संख्या : 39।297 "अत- तरीक़ इला अल-इस्लाम" लेखक : मुहम्मद असद, पृष्ठ : 140।298 सूरा अन-नज्म, आयत संख्या : 38।299 सूरा अल-अंफाल, आयत संख्या : 38।300 सूरा अल-फुरक़ान, आयत संख्या : 70।301 देखिखए : “ धिमफ्ताहु दार-अस-सआदह" 1/358,370।302 इस हदीस को अ ू याला ने अपनी मुसनद 6/155, त रानी ने "अल- मोजम औसत" 7/132 तथा "अल- मोजम अस-सग़ीर" 2/201, एनं जिXया ने "अल-मुख़तारह" 5/151,152 में रिरवायत बिकया है और कहा है : इसकी सनद सहीह है। ज बिक हैसमी ने"अल-मजमा" 10/83 में कहा है : इसे अ ू याला तथा ज़्Xार ने इससे धिमलते- जुलते शब्दों के साथ रिरवायत बिकया है एवं त रानी ने"अस-सग़ीर" तथा "अल-औसत" में रिरवायत बिकया है और इसके सारे वण;नकता; बिवश्वसनीय है।

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एक दूसरी रिरवायत में है बिक वह अल्लाह के रसूल وسلم عليه الله के صلى पास आया और ोला : आपका क्या बिवचार है उस

व्यलिG के ारे में, जिजसने हर प्रकार के गुनाह बिकए हों, लिसवाय इसके बिक उसने अल्लाह के साथ बिकसी को शरीक नहीं बिकया हो? क्या ऐसे व्यलिG के लिलए तौ ा (प�ाताप) का दरवाXा खुला हुआ है? तो आपने उससे पूछा : " क्या तू इस्लाम लाया है?" उस आदमी

ने उत्तर दिदया : मैं गवाही देता हँू बिक अल्लाह के लिसवा कोई इ ादत के लायक़ नहीं है, वह एक है और उसका कोई साझी नहीं है और आप अल्लाह के रसूल हैं। तो आपने फ़रमाया : " ठीक है, अचे्छ काय; करते रहो औप ुरे काय8 से चते रहो। तो अल्लाह तआला तुम्हारे लिलए उन्हें भी नेबिकयों में दल देगा।" बिफर उसने कहा : मेरी पहले की गलबितयाँ और नाफरमाबिनयाँ भी? आपने कहा : "हाँ।"

यह सुन उसने " अल्लाहु अक र" कहा और इसे दोहराता ही रहा, यहाँ तक नXरों से ओझल हो गया। 303

इस तरह इस्लाम पहले के सारे गुनाहों को धिमटा देता है और सच्ची तौ ा भी अपने से पहले के गुनाहों को धिमटा देती है, जैसा बिक अल्लाह के न ी وسلم عليه الله की صلى हदीस से साबि त है।

इस्लाम का पालन न करने र्वाले का परिरणाम इस पुस्तक से यह ात स्पष्ट हो चुकी है बिक इस्लाम अल्लाह का Eम; है, वही सच्चा Eम; है, उसी Eम; को लेकर सारे न ी और रसूल आए थे, उसपर ईमान लाने वाले को अल्लाह दुबिनया एवं आखिखरत में हुत ड़ा प्रबितफल प्रदान करेगा, ज बिक उसे न मानने वाले को उसने भयानक यातना की Eमकी दी है। चँूबिक अल्लाह तआला ही इस ब्रह्माण्ड का रचधियता, स्रष्टा, स्वामी और प्र ंEक है और इंसान उसकी सृधिष्टयों में से एक सृधिष्ट है, जिजसे उसने पैदा बिकया है और ब्रहमाण्ड की सारी चीजों को उसके काम में लगाया है , उसके लिलए बिवEान नाए हैं और उसे उनके अनुसरण

का आदेश दिदया है। अ यदिद वह ईमान लाता है, अल्लाह के आदेशों का पालन करता है और उसके मना बिकए हुए कामों से चता है, तो अल्लाह ने आखिख़रत में जिजन सदा रहने वाली नेमतों का वादा बिकया है वह उन्हें प्राप्त करने में सफल हो जाएगा, दुबिनया में

अल्लाह की प्रदान की हुई बिवक्षिभन्न प्रकार की नेमतों का आनंद उठाएगा और मानव जाबित के स से संपूण; बिववेक और पबिवत्र आत्मा वाले लोगों यानी नबि यों, रसूलों, सदाचारिरयों और बिनकटवत� फ़रिरश्तों से समानता रखने वाले लोगों में शुमार होगा।

लेबिकन अगर अबिवश्वास का माग; अपनाया और अपने पालनहार की अवज्ञा की तो दुबिनया एवं आखिख़रत में घाटा उठाने वाला लिसद्ध होगा, लोक तथा परलोक में अल्लाह के क्रोE और उसकी यातना का सामना करेगा और स से दुष्ट, ुजिद्धहीन एवं तुच्छ आत्मा वाले

लोगों जैसे शैतानों, अत्याचारिरयों और फ़साद मचाने वाले ताग़ूतों से समानता वाले लोगों में शुमार होगा। यह संक्षिक्षप्त ात हुई। अ मैं बिवस्तार से कुफ्र के कुछ परिरणामों का उल्लेख कर रहा हँू :

1- भय और अुरक्षा : अल्लाह तआला ने अपने ऊपर ईमान रखने वालों और अपने संदेष्टाओं का अनुसरण करने वालों के लिलए लोक और परलोक में

संपूण; सुरक्षा का वादा बिकया है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : " जो लोग ईमान लाए और अपने ईमान में लिशक; (अनेकेश्वरवाद) की धिमलावट नहीं की, उन्हीं लोगों के लिलए सुरक्षा है और वही लोग माग;दश;न प्राप्त हैं।'' 304 अल्लाह तआला ही शांबित प्रदान करने वाला

और रक्षक है तथा वही ब्रह्माण्ड की सभी चीजों का स्वामी है। ज वह बिकसी ंदे से उसके ईमान की वजह से प्यार करता है तो उसे सुरक्षा, शांबित और चैन प्रदान कर देता है और ज मनुष्य उसके साथ कुफ़्र करता है तो वह उसके चैन और सुरक्षा को छीन लेता है।

अतः आप इस तरह के व्यलिG को सदा आखिख़रत के जीवन के अंजाम और दुबिनया में आने वाली आपदाओं तथा ीमारिरयों एवं अपने भबिवष्य से डरा हुआ देखेंगे। इसी असुरक्षा की भावना और अल्लाह पर भरोसा न होने के कारण जीवन ीमा तथा संपक्षित्त ीमा का ाXार खू उफान पर है।

2- कठि]न जीर्वन : अल्लाह ने मनुष्य को पैदा बिकया और ह्माण्ड की सभी चीजों को उसके अEीन कर दिदया तथा प्रत्येक प्राणी को उसके बिहस्से की जीबिवका और आयु आवंदिटत कर दी। आप पक्षी को देखते हैं बिक वह जीबिवका की तलाश में सवेरे अपने घोंसले से ाहर जाता है और जीबिवका प्राप्त करता है, एक डाली से उड़कर दूसरी डाली में ैठता है और मीठे- मीठे गीत गाता रहता है। मानव भी इन्हीं प्राक्षिणयों में

से एक प्राणी है, जिजनकी आजीबिवका और आयु बिनEा;रिरत है। अ अगर वह अपने पालनहार पर बिवश्वास रखता है और उसके Eम; बिवEान का पालन करता है, तो उसे सौभाग्य और सुकून प्रदान करता है और उसके लिलए जीवन के माग; को आसान कर देता है।

यदब्िप उसके पास जीवन के साEन कम से कम परिरमाण ही में क्यों न हों। लेबिकन अगर उसने अपने पालनहार के प्रबित अबिवश्वास व्यG बिकया और उसकी इ ादत से अहंकार प्रदर्शिशंत बिकया; तो वह उसके जीवन को तंग और कठोर ना देगा और उसके ऊपर दुःखों एवं चिचंताओं का पहाड़ लाद देगा। यदब्िप उसके पास सुकून के सारे साEन और हर प्रकार के सामान ही मौजूद क्यों न हों। क्या आप उन देशों में आत्महत्या करने वालों की ड़ी संख्या नहीं देखते, जो अपने नागरिरकों के लिलए समृजिद्ध व बिवलालिसता के सभी साEन सुबिनक्षि�त करते हैं? क्या आप जीवन का आनंद लेने के लिलए बिवक्षिभन्न

303 इसे इब्ने अ ू आलिसम ने "अल- आहाद व अल-मसानी" 5/188 तथा त रानी ने "अल-क ीर" 7/53,314 में रिरवायत बिकया है और हैसमी ने "अल-मजमा" 1/32 में कहा है : इसे त रानी और ज़्Xार ने इससे धिमलते- जुलते शब्दों के साथ रिरवायत बिकया है और

ज़्Xार की सनद के वण;नकता; सहीह के वण;नकता; हैं, लिसवाय मुहम्मद बि न हारून अ ू नशीत के, जो स्वयं भी बिवश्वसनीय हैं।304 सूरा अल-अंआम, आयत संख्या : 82।

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प्रकार के फन�चरों और तरह- तरह की यात्राओं में बिफ़Xूलखच� नहीं देखते? दरअसल इस बिफ़Xूलख़च� का कारण दिदल का ईमान की दौलत से वंलिचत होना, दिदल के अंदर ेचैनी का एहसास और इस ेचैनी को कुछ अन्य साEनों के Xरिरए दलने का प्रयास है। इस संदभ; में अल्लाह तआला का यह फ़रमान बिकतना सच्चा है : " और हाँ, जो मेरी याद से मुँह फेरेगा, उसके जीवन में तंगी रहेगी और

हम उसे क़यामत के दिदन अँEा करके उठायेंगे।'' 305

3- र्वह अपने आप और अपने आपा के ब्रह्माण्ड के ार्थ ंघर्ष� में रहता है :

इसका कारण यह है बिक उसकी सृधिष्ट एकेश्वरवाद पर हुई है। अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " अल्लाह तआला की वह बिफ़तरत (प्रकृबित) को थोमे रखो, जिजसपर उसने लोगों को पैदा बिकया है।'' 306 उसका शरीर भी अपने पैदा करने वाले अल्लाह को मानता और

उसकी व्यवस्था के अनुसार चलता है। लेबिकन स्वयं वह अपनी बिफ़तरत का बिवरोE करने और अपने अस्थि¦तयारी बिवषयों में अपने पालनहार के आदेश की मुख़ालफ़त करते हुए जीनव बि तान े पर अड़ा हुआ है। इस तरह, एक ओर उसका शरीर अल्लाह की

व्यवस्था को मानता है, तो दूसरी ओर वह अपने अस्थि¦तयारी मामलों में उसकी मुख़ालफ़त करता है। वह अपने चारों ओर के ब्रह्माण्ड के साथ भी संघष;रत है। क्योंबिक यह पूरा ब्रह्माण्ड, ड़ी- ड़ी आकाशगंगाओं से छोटे- छोटे कीड़ों-

मकोड़ों तक, अपने पालनहार की नाई हुई व्यवस्था के अनुसार ही चल रहे हैं। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " बिफर वह आकाश की ओर ुलंद हुआ और वह Eंुआ (सा) था, तो उसे और Eरती को आदेश दिदया बिक तुम दोनों आओ, चाहो या न चाहो। दोनों ने

बिनवेदन बिकया बिक हम खुशी- खुशी हाजिXर हैं।'' 307 ल्किल्क यह ब्रह्माण्ड उससे प्यार करता है जो अपने अल्लाह के प्रबित समप;ण में उससे सहमत है और उससे घृणा करता है जो उसका बिवरोE करता है। ज बिक काबिफ़र इस सृधिष्ट के अंदर अपने र का नाफ़रमान है , जिजसने अपने आपको अपने र के बिवरोEी के रूप में स्थाबिपत कर रखा है। अतः आकाश, Eरती और सभी सृधिष्टयों का उससे तथा उसके अबिवश्वास एवं नाल्किस्तकता से घृणा करना उलिचत भी है। अल्लाह सव;शलिGमान का फ़रमान है : " और उनका कहना तो यह है

बिक अबित दयावान अल्लाह ने संतान ना रखी है। बिन: संदेह तुम हुत ( ुरी और) भारी चीX लाए हो। करी है बिक इस कथन से आकाश फट जाए और Eरती में दराड़ हो जाए और पहाड़ कण- कण हो जाए।ँ बिक वे रहमान की संतान साबि त करने ैठे हैं। और

रहमान के लायक नहीं बिक वह संतान रखे। आकाशों और Eरती में जो भी हैं, स अल्लाह के गुलाम न कर ही आने वाले हैं।" 308 अल्लाह सव;शलिGमान ने बिफरऔन और उसके सैबिनकों के ारे में फ़रमाया : " तो उनपर न आकाश रोया, न Eरती रोई और न उन्हें

” अवसर धिमला। 309

4- र्वह अज्ञानता का जीर्वन र्गुज़ारता है : क्योंबिक कुफ़्र अज्ञानता ही नहीं, स से ड़ी अज्ञानता है। कारण यह है बिक काबिफ़र अपने र से अनक्षिभज्ञ रहता है। वह इस ब्रहमांड

को देखता है, जिजसे उसके र ने ड़े अनूठे अंदाX में पैदा बिकया है तथा स्वयं अपनी शानदार रचना को भी देखता है और इसके ावजूद इस कायनात की रचना और अपनी सृधिष्ट से अज्ञानता दिदखाता है। क्या यह स से ड़ी अज्ञानता नहीं है?

5- र्वह अपने ऊपर और अपने आपा की चीज़ों पर जbल्म (अत्याचार) करते हुए जीर्वन विबताता है :

क्योंबिक उसने अपने आपको उस उदे्दश्य की प्रान्विप्त के लिलए समर्तिपंत नहीं बिकया है, जिजसके लिलए उसे पैदा बिकया गया है। उसने अपने पालनहार की इ ादत के जाय औरों की इ ादत की है। वैस े "ज�ल्म" शब्द का अथ; है, बिकसी चीX को उसके असल स्थान से

हटाकर दूसरे स्थान में रख देना और इ ादत जो बिक अल्लाह की होनी चाबिहए उसे उसके अबितरिरG बिकसी और के लिलए करने से ड़ा ज�ल्म और क्या हो सकता है!! लुक़मान हकीम ने लिशक; (अनेकेश्वरवाद) की ुराई को स्पष्ट करते हुए फ़रमाया : “ ऐ मेर े ेटे! तू

अल्लाह के साथ लिशक; न करना। बिन: संदेह लिशक; महा अन्याय महापाप) है।'' 310

वह अपने आसपास के इंसानों और सृधिष्टयों पर अत्याचार करता है, क्योंबिक वह बिकसी हक़दार के हक़ से अवगत नहीं होता। अतः क़यामत के दिदन उसके सामने वह सार े इंसान और जानवर खड़े हो जाएगेँ, जिजनपर उसने अत्याचार बिकया था। हर कोई अपने पालनहार से उससे बिक़सास दिदलवाने की गुहार लगाएगा।

305 सूरा ताहा, आयत संख्या : 124।306 सूरा अर-रूम, आयत संख्या : 30।307 सूरा फुस्थिस्सलत, आयत संख्या : 11।308 सूरा मरयम, आयत संख्या : 88,93।309 सूरा अद-दुखान, आयत संख्या : 29।310 सूरा लुक़मान, आयत संख्या : 13।

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6- र्वह दुविनया में अपने आपको अल्लाह की घृणा और उके क्रोध का पात्र

बना लेता है : चुनाँचे वह तत्काल दंड के रूप में आपदाओं और वेदनाओं से पीबिड़त होने के बिनशाने पर होता है। अल्लाह सव;शलिGमान का फ़रमान

है : “ क्या ुरा छल- कपट करने वाले इस ात से बिनश्चि�ंत हो गए हैं बिक अल्लाह उन्हें Eरती में Eंसा दे या उनके पास ऐसी जगह से अXा (प्रकोप) आ जाए, जिजसका उन्हें एहसास भी न हो? या उनको चलते- बिफरते पकड़ ले, तो वे बिकसी भी तरह से अल्लाह को मज ूर नहीं कर सकते? या उन्हें डरा- Eमका कर पकड़ ले, बिफर ेशक तुम्हारा पालनहार ड़ा करुणामया और दयावान है? 311 एक

अन्य स्थान में उसका फ़रमान है : “ काबिफ़रों को तो उनके कुफ़्र के दले सदैव ही कोई न कोई सख्त सXा पहँुचती रहेगी, या उनके मकानों के आसपास उतरती रहेगी, यहाँ तक बिक अल्लाह का वादा आ पहँुचे। बिन: संदेह अल्लाह तआला वादा नहीं तोड़ता।'' 312 इसी

तरह उसका फ़रमान है : " क्या इन ल्किस्तयों के रहने वाले इस ात से बिनश्चि�ंत हो गए हैं बिक उनपर हमारा अXा दिदन चढे़ आ जाए , जिजस समय वे खेलों में व्यस्त हों?" 313 यही हाल हर उस व्यलिG का है, जिजसने अल्लाह के जिXक्र से मँुह फेरा। अल्लाह तआला बिपछले

काबिफ़र समुदायों की सXाओं के ारे में सूचना देते हुए फ़रमाया है : " बिफर तो हमने हर एक को उसके पाप की सXा में Eर लिलया, उनमें से कुछ पर तो हमने पत्थरों की ारिरश की, उनमें से कुछ को तेX चीख ने द ोच लिलया, उनमें से कुछ को हमने Eरती में Eँसा

दिदया, और उनमें से कुछ को हमने पानी में डु ो दिदया। अल्लाह तआला ऐसा नहीं बिक उनपर जुल्म करे, ल्किल्क वही लोग अपनी जानों पर स्वयं जुल्म करते थे।" 314 इसी तरह आप अपने पास के उन लोगों की मुसी तों को देखते हैं, जिजनको अल्लाह की सXा

और दंड का सामना करना पड़ा।

7- उके सिलए विर्वफलता और घाटा सिलख ठिदया जाता है : अपने अत्याचार कारण उसने हृदय और आत्मा के आनंद की स से ड़ी वस्तु यानी अल्लाह के ज्ञान, उसकी मुनाजात से प्रेम और उसके जिXक्र से सुकून की प्रान्विप्त की दौलत को खो दिदया होता है। वह दुबिनया में भी घाटा का लिशकार रहता है, क्योंबिक दुबिनया में दुखमय और परेशान जीवन व्यतीत करता है। वह स्वयं अपने आपको भी घाटा में रखता है, क्योंबिक उसने अपने आपको उस काम में

नहीं लगाया, जिजसके लिलए उसे पैदा बिकया गया था। इस वह ुरा जीवन व्यतीत करता है, ुरी मौत मरता है और ुरे लोगों के साथ ही दो ारा जीबिवत बिकया जाएगा। अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " और जिजसका ( नेबिकयों का) पलड़ा हल्का होगा, तो ये वे लोग हैं, जिजन्होंने अपना घाटा कर लिलया।'' 315 वह अपने परिरवार के लोगों का भी नुक़सान करता है, क्योंबिक उनके साथ अबिवश्वास की अवस्था

में जीवन गुXारता है, जिजसके कारण वे भी उसी की तरह दुभा;ग्य और कदिठनाई से भरा जीवन बि ताते हैं और उनका भी दिठकाना जहन्नम है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " वास्तव में घाटा उठाने वाले वे लोग हैं, जो क़यामत के दिदन अपने आपको और अपने परिरवार को घाटे में डाल देंगे।" 316 बिफर कयामत के दिदन वे नरक की ओर इकट्ठा बिकए जाएगँे और वह एक ुरा दिठकाना है। अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " जो लोग जुल्म करते थे उन्हें इकट्ठा करो, और उनके समान लोगों को और जिजन- जिजनकी वे अल्लाह को छोड़कर पूजा करते थे, ( उन स को जमा करके) उन्हें नरक का रास्ता दिदखा दो।" 317

8- र्वह अपने पालनहार के ार्थ कुफ्र करने र्वाला और उकी नेमतों का इनकार करने र्वाला बनकर जीर्वन र्गुज़ारता है :

अल्लाह ने उसे अनल्किस्तत्व से अल्किस्तत्व प्रदान बिकया और उसे हर प्रकार की नेमतें प्रदान कीं, लेबिकन इसके ावजूद वह दूसरों की इ ादत करता है, दूसरों से प्रेम रखता है और उनका आभार व्यG करता है। भला इससे ढ़कर हठEम� और क्या हो सकती है और

इससे ुरी नाशुक्री और क्या हो सकती है?

9- र्वह र्वास्तविर्वक जीर्वन े र्वंसिचत कर ठिदया जाता है : इसलिलए बिक जीवन के योग्य मनुष्य वह है जो अपने पालनहार पर ईमान लाए, जीवन के उदे्दश्य को समझे, अपने अंजाम से अवगत

हो और मरने के ाद पुनः जीबिवत बिकए जाने पर यकीन रखते। इस तरह वह हर हक़दार के हक को पहचाने। अतः बिकसी का हक़ न मारे और बिकसी प्राणी को कष्ट न दे। चुनाँचे सौभाग्यशाली लोगों का जीवन गुXारे और दुबिनया एवं आखिख़रत में उत्तम जीवन बि ताए।

अल्लाह तआला का फ़रमान है : " जो व्यलिG सत्कम; करेगा, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, बिकन्तु मोधिमन हो, तो बिन: सन्देह हम उसे उत्तम

311 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 45-47।312 सूरा अर-राद, आयत संख्या : 31।313 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 98।314 सूरा अल-अनक ूत, आयत संख्या : 40।315 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 9।316 सूरा अX-जुमर, आयत संख्या : 15।317 सूरा अस-साफ़्फ़ात, आयत संख्या : 22,23।

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जीवन प्रदान करेंगे।" 318 और आखिख़रत में उत्तम जीवन का जिXक्र इस आयत में है : “( वे लोग) सदा रहने वाले ागों के अंदर अचे्छ

घरों में होंगे। यह हुत ड़ी सफलता है।'' 319

परन्तु जो व्यलिG इस जीवन में चौपायों के समान जीवन व्यतीत करेगा, चुनाँचे वह न अपने पालनहार को जानता हो और न अपने जीवन के उदे्दश्य को जानता हो और न उसे यह पता हो बिक उसका अंबितम परिरणाम कहाँ है? ल्किल्क उसका उदे्दश्य महX खाना-पीना

और सोना हो, तो उसके ीच और अन्य जानवरों के ीच कोई अंतर नहीं है, ल्किल्क वह उनसे भी अधिEक पथभ्रष्ट है। अल्लाह सव;शलिGमान ने फ़रमाया है : " और हमने ऐसे हुत- से जिजन्न और इन्सान जहन्नम के लिलए पैदा बिकए हैं, जिजनके दिदल ऐसे हैं जिजनसे वे

नहीं समझते, और जिजनकी आँखें ऐसी हैं जिजनसे वे नहीं देखते, और जिजनके कान ऐसे हैं जिजनसे वे नहीं सुनते। ये लोग चौपायों (पशुओं) की तरह हैं, ल्किल्क उनसे भी अधिEक भटके हुए हैं। यही लोग ग़ाबिफ़ल हैं।'' 320 एक अन्य स्थान में उसने कहा है : “ क्या आप

इसी सोच में हैं बिक उनमें से अधिEकतर लोग सुनते या समझते हैं? वे तो बिनरे जानवर की तरह हैं, ल्किल्क उनसे भी अधिEक भटके हुए हैं।'' 321

10- र्वह दैर्व अज़ाब (यातना) में रहेर्गा : काबिफ़र एक यातना से दूसरी यातना की यात्रा करता रहता है। वह दुबिनया से उसके कड़वे घोंट पीने और उसकी मुसी तों का सामना

करने के ाद आखिख़रत की ओर जाता है और उसके पहले ही मह;ले में उसके पास मौत के फ़रिरश्ते आते हैं और उनसे भी पहले यातना के फ़रिरश्ते आ जाते हैं, ताबिक उसे ऐसी यातना दी जाए, जिजसका वह हक़दार है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " काश आप

देखते ज फ़रिरश्ते काबिफरों की प्राण बिनकालते हैं, उनके मुख पर और बिनतम् ों पर मार मारते हैं।'' 322 बिफर ज उसके प्राण बिनकल जाते हैं और उसे उसकी कब्र में रखा जाता है, तो उसका सामना अबित कठोर यातना से होता है। अल्लाह तआला ने बिफरऔबिनयों के

ारे में सूचना देते हुए फ़रमाया है : " आग है, जिजसपर वे प्रात: काल और सायंकाल पेश बिकये जाते हैं, और जिजस दिदन महाप्रलय होगी ( आदेश होगा बिक) बिफ़रऔबिनयों को अत्यंत कदिठन अXा (यातना) में झोंक दो।'' 323 बिफर ज क़यामत का दिदन होगा, लोगों को

उठाया जाएगा, कम8 को पेश बिकया जाएगा, तो काबिफ़र देख लेगा बिक अल्लाह ने उसके सभी कामों को उस बिकता में बिगन-बिगनकर लिलख रखा है। इसके ार े म ें अल्लाह ने फ़रमाया ह ै : “ और कम;पत्र (आमालनामे) आगे रख दिदए जाएगेँ, तो आप उस समय

अपराधिEयों को देखेंगे बिक वे उनमें अंबिकत ातों से डर रहे होंगे, और कह रहे होंगे बिक हाय हमारा बिवनाश! यह कैसी पुस्तक है, जिजसने कोई छोटा- ड़ा (काय;) बि ना बिगने हुए नहीं छोड़ा।" 324 उस समय काबिफ़र कामना करेगा बिक वह धिमट्टी हो गया होता : " जिजस दिदन इंसान अपने हाथों की कमाई को देख लेगा और काबिफ़र कहेगा बिक काश मैं धिमट्टी न जाता।''325

उस समय स्थिस्थबित इतनी भयावह होगी बिक अगर इंसान के पास Eरती की सारी चीXें भी आ जाएँ, तो उन्हें उस दिदन की यातना से चाव के लिलए पेश कर देगा। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " और यदिद जालिलमों के पास वह स कुछ हो, जो Eरती पर है, और उसके साथ उतना ही और हो, तो भी वे क़यामत के दिदन ुरे दंड के दले में ये स कुछ दे दें।'' 326 एक अन्य स्थान में उसने कहा है :

“ पापी उस दिदन के अXा के दले में अपने पुत्रों को देना चाहेगा, अपनी पत्नी को और अपने भाई को को भी देना चाहेगा, और अपने परिरवार को भी देना चाहेगा, जो उसे पनाह देता था। और Eरती के सभी लोगों को देना चाहेगा, ताबिक यह उसे मुलिG दिदला दें।''

327

चँूबिक वह घर दले का घर है, इच्छाओं और कामनाओं का घर नहीं है, इसलिलए इंसान को उसके कम8 का प्रबितफल Xरूर धिमलेगा। अगर कम; अचे्छ होंगे तो प्रबितफल अच्छा धिमलेगा और अगर कम; ुरे होंगे तो प्रबितफल ुरा धिमलेगा। आखिख़रत के घर में काबिफ़र को जिजस स से ुरी चीX का सामना करना पडे़गा, वह जहन्नम की यातना है। जहन्नम में प्रवेश करने वालों को अल्लाह तरह- तरह की

यातनाएँ देगा, ताबिक वे अपने बिकए का मXा चख सकें । अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : “ यह है वह नरक, जिजसे अपराEी झूठा मानते थे। वे इसके और गम; उ लते पानी के ीच चक्कर लगाएगेँ।'' 328 उनके पीने की चीजों और पोशाक के ारे में फ़रमाया है :

318 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 97।319 सूरा अस-सफ़्फ़, आयत संख्या : 12।320 सूरा अल-आराफ़, आयत संख्या : 179।321 सूरा अल-फुरक़ान, आयत संख्या : 44।322 सूरा अल-अंफाल, आयत संख्या : 50।323 सूरा अल-मोधिमन, आयत संख्या :46।324 सूरा अल-कह्फ़, आयत संख्या : 49।325 सरा अन-न ा, आयत संख्या : 40।326 सूरा अX-ज�मर, आयत संख्या : 47।327 सूरा अल- मआरिरज : 11-14।328 सूरा अर-रहमान, आयत संख्या : 43-44।

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" काबिफरों के लिलए आग के कपड़े नापकर काटे जाएगँे और उनके लिसर के ऊपर से गम; पानी की Eारा हाई जाएगी। जिजससे उनके

पेट की स चीजें और खालें गला दी जाएगँी। और उनकी सXा के लिलए लोहे के हथौडे़ हैं।" 329

मापन हे मनुष्य!

तेरा कोई अल्किस्तत्व नहीं था। जैसा बिक अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " क्या यह इंसान इतना भी याद नहीं रखता बिक हमने उसे इससे पहले पैदा बिकया, ज बिक वह कुछ भी नहीं था?'' 330 बिफर अल्लाह ने तुझे वीय; की एक ूंद से पैदा बिकया और तुझे सुनने वाला

और देखने वाला ना दिदया। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " वास्तव में इन्सान पर Xमाने का एक वह समय भी गुXर चुका है, ज बिक वह कोई उल्लेखनीय चीX न थी। बिन: संदेह हमने इन्सान को धिमले- जुले वीय; से, परीक्षा के लिलए, पैदा बिकया है और उसको

सुनने वाला और देखने वाला नाया है।'' 331 बिफर तू Eीरे- Eीरे कमXोरी की अवस्था से शलिG की अवस्था की तरफ आया और बिफर तुझे एक दिदन कमXोरी की अवस्था की ओर पलट कर जाना है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ अल्लाह (सव;शलिGमान) वह है,

जिजसने तुम्हें कमXोर अवस्था में पैदा बिकया, बिफर उस कमXोरी के ाद शलिG प्रदान की, बिफर उस शलिG के ाद कमXोरी और ुढ़ापा दिदया। वह जो चाहता है पैदा करता है। वह स कुछ जानने वाला और सामथ्य;वान है।'' 332 बिफर तेरा अंत जिजसमें कोई संदेह

नहीं मृत्यु है। तू उन चरणों में एक कमXोरी से दूसरी कमXोरी की यात्रा में लगा रहता है। तू अपनी बिकसी क्षबित को रोक नहीं सकता और अपना कुछ भला कर नहीं सकता। ऐसा मुह्हिम्कन तभी हो सकता है, ज अल्लाह तुझे इसकी शलिG और सामथ्य; प्रदान करे। तू

अपनी सृधिष्ट के अनुसार बिन ;ल और मोहताज है। चुनाँचे बिकतनी ही ऐसी चीजें हैं, जिजनका तू अपने जीवन को रक़रार रखने के लिलए मोहताज है, जो तेरे हाथ में नहीं हैं। कभी तू उसे पा लेता है और कभी उससे वंलिचत रह जाता है। बिकतनी ही ऐसी चीजें हैं, जो तेरे

लिलए लाभदायक हैं और तू उन्हें प्राप्त करना चाहता है, परन्तु कभी तो तू उन्हें प्राप्त कर लेता है और कभी वे तेरे हाथ नहीं जाती हैं। बिकतनी ही चीजें ऐसी हैं, जो तुझे नुकसान पहँुचाती हैं और तेरी आशाओं पर पानी फेर देती हैं, तेरे प्रयासों को नष्ट कर देती हैं और

तेरे लिलए आपदाओं और कष्ट का कारण नती हैं, और उन्हें अपने आपसे दूर करना चाहता है। मगर कभी तो दूर कर देता है और कभी दूर नहीं कर पाता। क्या तुझे अपनी लाचारी और अल्लाह की ओर अपनी Xरूरत का एहसास नहीं होता। ज बिक अल्लाह कहता है : " हे लोगो! तुम अल्लाह के क्षिभखारी हो और अल्लाह ही ेबिनयाX तारीफ़ वाला है।'' 333

तेरे ऊपर एक कमXोर वायरस का हमला होता है, जिजसे तू खुली आँखों से देख भी नहीं सकता। वह तुझे ीमार ना देता है और तू उसे भगा नहीं पाता। बिफर तू इलाज के लिलए तेरे ही जैसे एक कमXोर इंसान के पास जाता है। कभी तो दवा काम कर जाती है और कभी डॉक्टर भी बिववश दिदखाई देता है और डॉक्टर तथा रोगी दोनों परेशान दिदखते हैं।

हे आदम के ेटे! तू बिकतना कमXोर है। यदिद मक्खी तुझसे कोई चीX छीन ले, तो तू उसे वापस लाने की शलिG नहीं रखता। अल्लाह तआला ने सच फ़रमाया है : " ऐ लोगो! एक उदाहरण (धिमसाल) दिदया जा रहा है, Xरा ध्यान से सुनो। अल्लाह के लिसवाय तुम जिजन-

जिजन को पुकारते रहे हो, वे एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते, अगर सारे के सारे जमा हो जाएँ तो भी। ल्किल्क अगर मक्खी उनसे कोई चीX ले भागे, तो वे उसे भी उससे छीन नहीं सकते। ड़ा कमXोर है माँगने वाला और हुत कमXोर है वह, जिजससे माँगा जा

रहा है।" 334 ज तुम आप उस चीज को वापस ला नहीं सकते, जो एक मक्खी तुमसे छीन ले, तो भला तुझे अपने बिकस काम का अस्थि¦तयार है? " तेरी पेशानी अल्लाह के हाथ में है, तेरी जान उसी के हाथ में है, तेरा दिदल रहमान ( अबित कृपाशील अल्लाह) की

उंगलिलयों में से दो उंगलिलयों के ीच में है, वह उसे जिजस तरह चाहता है उलटता- पलटता है, तेरा जीवन और मृत्यु उसी के हाथ में है, तेरा सौभाग्य और दुभा;ग्य उसी के हाथ में है, तेरा चलना- बिफरना और ठहरना, ोलना और खामोश रहना उसी की अनुमबित और इरादे के अEीन है। तू उसकी अनुमबित के बि ना अपनी जगह से बिहल नहीं सकता और उसकी इच्छा के बि ना कुछ कर नहीं सकता।

यदिद वह तुझे तेरे नफ़्स के हवाले कर दे, तो उसने तुझे लाचारी, कमजोरी, कोताही, पाप और तु्रदिट के हवाले कर दिदया। और यदिद उसने तुझे बिकसी और के हवाले कर दिदया, तो उसने तुझे ऐसे व्यलिG के हवाले कर दिदया जो लाभ तथा हाबिन, मृत्यु और जीवन एवं मरने के ाद पुनज�वन का मालिलक नहीं है। अतः पलक झपकने के रा र भी तू उससे ेबिनयाX नही हो सकता। ल्किल्क ज तक साँस ाकी है, परोक्ष एव ं प्रत्यक्ष रूप से त ू उसका मोहताज है। वह तुझे नेमत ें प्रदान करता ह ै और तू अवज्ञाओं, पापों और

नाल्किस्तकता के द्वारा उसके क्रोE को आमंबित्रत कर रहा है, ज बिक तुझे हर पहलू से उसकी सख्त Xरूरत है। तूने उसे बि ल्कुल भुला दिदया है, ज बिक तुझे उसी की ओर पलटकर जाना है और उसके सामने खड़ा होना है। 335

329 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 19-21।330 सूरा मरयम, आयत संख्या : 67।331 सूरा अल-इंसान, आयत संख्या : 1,2।332 सूरा अर-रूम, आयत संख्या : 54।333 सूरा अल-फ़ाबितर, आयत संख्या : 15।334 सूरा अल-हज्ज, आयत संख्या : 73।335 इब्न "अल-फ़वाइद" लेखक : इब्न अल-क़ह्हिय्यम, पृष्ठ : 56।

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हे मनुष्य! तेरी कमXोरी और अपने पापों के परिरणाम को भुगतने में तेरी असमथ;ता को देखते हुए : " अल्लाह तुम्हारे ऊपर आसानी

करना चाहता है और इन्सान कमXोर पैदा बिकया गया है।'' 336 अल्लाह तआला ने पैगं रों को भेजा, पुस्तकें अवतरिरत कीं, बिवधिE- बिवEान नाए, तेरे सामने सीEा माग; स्थाबिपत कर दिदया, और प्रमाण, तक; , साक्ष्य और स ूत उपलब्ध कर दिदए, यहाँ तक बिक तेरे लिलए

हर चीX में एक बिनशानी रख दी, जो उसकी एकता, उसकी रु ूबि यत, उसकी उलूबिहयत पर दलालत करती है, और तू सत्यको “ असत्य से द ा रहा है और अल्लाह को छोड़कर शैतान को दोस्त नाता है और ाबितल तरीके से हस करता है। और इन्सान सभी

चीजों से ज़्यादा झगड़ालू है।'' 337 अल्लाह तआला की उन नेमतों के कारण जिजनका तू आनंद ले रहा है, तुने अपने आरंभ और अंत को भुला दिदया है। क्या तुझे याद नहीं बिक तू वीय; की एक ंूद से पैदा बिकया गया है और तेरी वापसी एक गढे़ (क़ब्र) की ओर है और मरने के ाद तेरा अंबितम दिठकाना स्वग; या नरक है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : " क्या इंसान को इतना भी ज्ञान नहीं बिक हमने

उसे वीय; से पैदा बिकया है? बिफर भी वह खुला झगड़ालू न ैठा। और उसने हमार े लिलए धिमसाल यान की और अपनी असल पैदाइश को भूल गया। कहने लगा बिक इन गली- सड़ी हबिÂयों को कौन जिXन्दा कर सकता है? आप जवा दीजिजए बिक उन्हें वह जीबिवत

करेगा, जिजसने उन्हें पहली ार पैदा बिकया है, जो हर प्रकार की पैदाइश को भली- भाँबित जानने वाला है।'' 338 एक अन्य स्थान में वह कहता है : " ऐ इंसान! तुझे अपने दयालु र से बिकस चीX ने हकाया, जिजसने तुझे पैदा बिकया, बिफर ठीक- ठाक बिकया बिफर (मुनालिस तरीके से) रा र नाया, जिजस रूप में चाहा, तुझे जोड़ दिदया?'' 339

हे मनुष्य! तू अपने आपको अल्लाह के सामने खड़े होने के आनंद से क्यों वंलिचत करता है बिक तू उससे मुनाजात करे; ताबिक वह तेरी बिनE;नता को दूर कर दे, तुझे ीमारी से स्वस्थ कर दे, तेरी परेशानी को दूर कर दे, तेरे पाप को क्षमा कर दे, तेरी परेशानी को दूर कर

दे, अगर तुझपर जुल्म हो तो तेरी सहायता करे, यदिद तो भटक जाए तो तेरा माग;दश;न करे, जिजससे तू अनक्षिभज्ञ है उसका ज्ञान प्रदान करे, अगर तू भयभीत है तो तुझे सुरक्षा प्रदान करे, तेरी कमXोरी की स्थिस्थबित में तुझपर दया करे, तेरे शत्रुओं को तुझसे दूर कर दे और

तुझे आजीबिवका प्रदान करे340। हे मनुष्य! Eम; की नेमत के ाद, अल्लाह तआला की इन्सान पर स से ड़ी नेमत ुजिद्ध की नेमत है, ताबिक वह उसके द्वारा अपने

लाभ और हाबिन की चीजों के ीच अंतर कर सके, अल्लाह के आदेश और बिनषेE को समझ सके, जीवन के स से महान उदे्दश्य को जान सके, जो बिक एकमात्र अल्लाह, जिजसका कोई साझी नहीं है की उपासना है। अल्लाह तआला का फ़रमान ह ै : " तुम्हें जो भी

सुख- सुबिवEा प्राप्त है, वह अल्लाह ही की ओर से है। बिफर ज तुम्हें दुःख पहँुचता है, तो उसी को पुकारते हो। बिफर ज तुमसे दुःख दूर कर देता है, तो तुम्हारा एक समुदाय अपने पालनहार का साझी नाने लगता है।'' 341

हे मनुष्य! ुजिद्धमान इन्सान ऊँची ातों को पसंद करता है और तुच्छ ातों को नापसंद करता है। वह नबि यों एवं सदाचारिरयों जैसे अचे्छ काम करने वाले और सम्माबिनत लोगों का अनुसरण करना पसंद करता है और उसकी मनोकामना उनके साथ धिमलने की होती

है, भले ही वह उनको न पा सके। इसका रास्ता वही है, जिजसका उल्लेख अल्लाह तआला ने अपने इस कथन में बिकया ह ै : “कह दीजिजए बिक अगर तुम अल्लाह से मुहब् त करते हो, तो मेरा आज्ञापालन करो, (स्वयं) अल्लाह तुमसे मुहब् त करेगा।'' 342 अगर वह इसका पालन करेगा, तो अल्लाह तआला नबि यों, रसूलों और सदाचारिरयों के साथ कर देगा। अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : “और

जो भी अल्लाह और रसूल के आदेश की पैरवी करेगा, वह उन लोगों के साथ होगा, जिजनपर अल्लाह ने अपनी नेमतें की हैं, जैसे नबि यों, सत्यवादिदयों, शहीदों और नेक लोगों के (साथ), और ये अचे्छ साथी हैं।'' 343

हे मनुष्य! मैं तुम्हें इस ात की सलाह देता हूँ बिक कहीं एकांत में कुछ देर ैठ जाओ, बिफर तुम्हारे पास जो सत्य आया है उसमें बिवचार करो, उसके प्रमाणों में चिचंतन करो और उसके स ूतों में गौर करो, यदिद उसे सच्चा पाओ तो अबिवलं उसका पालन करने लगो और रीबित- रिरवाजों और परंपराओं के ंEन तोड़ डालो। इस ात को Xेहन में रखो बिक तुम्हारा नफ़्स तुम्हारे दोस्तों, तुम्हारे सालिथयों और

तुम्हारे ाप- दादाओं की बिवरासत से अधिEक प्यारा है। अल्लाह तआला ने काबिफरों को इसकी नसीहत करते हुए और उनसे इसका आह्वान करते हुए कहा है : " कह दीजिजए बिक मैं तुम्हें केवल एक ही ात की नसीहत करता हँू बिक तुम अल्लाह के लिलए ( खालिलस तौर

से तथा जिXद को छोड़कर) दो- दो धिमलकर या अकेले- अकेले खडे़ होकर चिचंतन तो करो। तुम्हारे इस साथी को कोई जुनून नहीं है। वह तो तुम्हें एक डे़ अXा के आने से पहले आगाह करने वाला है।'' 344

हे मनुष्य! यदिद तूने इस्लाम स्वीकार कर लिलया, तो तेरा कुछ भी घाटा नहीं होगा। अल्लाह तआला का फ़रमान है : “ और उनका क्या नुकसान होता अगर वे अल्लाह और आखिख़रत के दिदन पर ईमान ले आते और अल्लाह ने उन्हें जो Eन प्रदान बिकया है उससे खच;

336 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 28।337 सूरा अल-कह्फ़, आयत संख्या : 54।338 सूरा यासीन, आयत संख्या : 77-79।339 सूरा अल-इंबिफ़तार, आयत संख्या : 6,8।340 देखिखए : " धिमफ्ताहु दार अस-सआदह" : 1/251।341 सूरा अन-नह्ल, आयत संख्या : 53,54।342 सूरा आले इमरान, आयत संख्या : 31।343 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 69।344 सूरा अल-फ़ाबितर, आयत संख्या : 46।

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करते? और अल्लाह तआला उन्हें अच्छी तरह जानने वाला है।'' 345 इब्न-ए- कसीर ने कहते ह ैं : “ उनका क्या नुकसान है यदिद वे

अल्लाह पर ईमान ले आए,ँ उसके प्रशंसनीय रास्ते पर चलें, अल्लाह के द्वारा अच्छ अमल करने वाले के हक़ में आखिख़रत में बिकए गए वादे की आशा में उसपर ईमान लाए,ँ अल्लाह के दिदए हुए Eन का कुछ भाग उन रास्तों में खच; करें जिजन्हें अल्लाह पसंद करता और

जिजनसे वह खुश होता है। वह अल्लाह, जो उनकी अच्छी और ुरी नीयतों और इच्छाओं को जानता है, वह यह भी जानता है बिक कौन सत्य के माग; पर चलने का सामथ्य; प्रदान बिकए जाने का हक़दार है। चुनांचे वह उसे सामथ्य; देता है, उसका माग;दश;न करता है और ऐसे सत्कम; की शलिG प्रदान करता है, जिजसके आEार पर वह उससे राXी होता है। इसी तरह वह जानता है बिक कौन उसके

बिवशाल दर ार से Eुतकारे जाने का हक़दार है, जिजससे Eुकतारा जाने वाला व्यलिG दुबिनया एवं आखिख़रत में नाकाम एवं नामुराद हो जाता है346।" तुम्हारा इस्लाम, तुम्हारे ीच और अल्लाह की हलाल की हुई उन चीXों के ीच रुकावट नहीं नेगा, जिजन्हें तुम करना

या अपनाना चाहते हो, ल्किल्क अल्लाह तआला तुम्हें हर उस चीX पर पुरस्कृत करेगा, जिजसे तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिलए करोगे, भले ही उस काम का सं ंE तुम्हारे सांसारिरक बिहत से हो और उससे तुम्हारे Eन या प्रबितष्ठा या पद में वृजिद्ध होती हो। ल्किल्क यहाँ तक बिक जो जायX काम तुम करते हो, यदिद तुम उनसे हलाल चीXों के द्वारा हराम चीXों से चने का इरादा कर लो; तो उसमें तुम्हारे लिलए नेकी है। अल्लाह के पैगं र وسلم عليه الله ने صلى फ़रमाया है : " और तुम्हारा सहवास करना भी सदक़ा है।" लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हममें से एक व्यलिG अपनी कामवासना की पूर्तितं करता है और उसे उसमें पुण्य भी धिमलेगा? आपने कहा : " तुम्हारा क्या बिवचार है यदिद वह अपनी काम वासना को अवैE तरीके़ से पूरा करता, तो क्या उसे उसका पाप होता? तो

इसी प्रकार ज उसने उसे वैE तरीके़ से पूरा बिकया, तो उसे उसका पुण्य धिमलेगा।'' 347

हे मनुष्य! बिनस्संदेह रसूलगण सच्चा Eम; लेकर आए और अल्लाह के उदे्दश्य का प्रसार बिकया।अतः, मनुष्य को अल्लाह की शरीयत का ज्ञान प्राप्त करना चाबिहए; ताबिक वह इस जीवन को ज्ञान और जानकारी के आEार पर गुXारे और परलोक में सफलता प्राप्त

करने वालों में से हो जाए। जैसाबिक अल्लाह तआला का फरमान है : " हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे र की तरफ से सच लेकर संदेष्टा (मुहम्मद) आ गए हैं। अतः, उनपर ईमान लाओ, तुम्हारे लिलए ेहतर है और अगर तुमने नकार दिदया, तो आसमानों और जमीन में जो

भी है, स अल्लाह का है और अल्लाह जानने वाला बिहकमत वाला है।'' 348 एक अन्य स्थान में उसका फ़रमान ह ै : “ आप कह दीजिजए बिक हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे र की तरफ़ से हक़ पहँुच चुका है, इसलिलए जो इंसान सीEे रास्ते पर आ जाए, वह अपने

लिलए सीEे रास्ते पर आएगा और जो इन्सान रास्ते से भटक जाएगा, तो उसका भटकना उसका ही हाबिन करेगा, और मैं तुमपर प्रभारी (बिनगराँ) नहीं नाया गया हँू।'' 349

हे मनुष्य! अगर तूने इस्लाम स्वीकार कर लिलया तो अपने आप ही को लाभ पहँुचाएगा, और अगर तूने अबिवश्वास का माग; चुना तो अपना ही नुकसान करेगा। बिन: संदेह अल्लाह तआला अपने न्दों से ेबिनयाX है तथा उसे अपने न्दों की आवश्यकता नहीं है। अत:

अवज्ञाकारिरयों की अवज्ञा उसे कोई नुकसान नहीं पहँुचाती और न ही आज्ञाकारिरयों की आज्ञाकारिरता उसे कोई लाभ पहँुचाती है। चुनाँचे उसके ज्ञान के बि ना उसकी अवज्ञा नहीं की जा सकती और उसकी अनुमबित के बि ना उसका आज्ञापालन नहीं बिकया जा सकता। ज बिक एक हदीस कु़दसी के अनुसार अल्लाह तआला का फ़रमान है : " हे मेरे न्दो! मैंने अपने ऊपर अत्याचार को वर्जिजंत

कर लिलया है और उसे तुम्हारे ीच हराम ठहराया है। अत: तुम आपस में एक- दूसरे पर अत्याचार न करो। हे मेर े न्दो! तुम स पथभ्रष्ट हो लिसवाय उसके जिजसे मैं माग;दश;न प्रदान कर दँू। अत: तुम मुझसे माग;दश;न का अनुरोE करो, मैं तुम्हें माग;दश;न प्रदान करँूगा। हे मेरे न्दो! तुम स के स भूखे हो लिसवाय उसके जिजसे मैं खाना खिखला हँू। अत: तुम मुझसे खाना माँगो, मैं तुम्हें खाना

खिखलाऊँगा। हे मेरे न्दो! तुम स के स वस्त्रहीन हो लिसवाय उसके जिजसे मैं कपड़ा पहनाऊँ। अत: तुम मुझसे कपड़ा पहनाने का प्रश्न करो, मैं तुम्हें कपड़ा पहनाऊँगा। हे मेरे न्दो! तुम रातदिदन गलती करते हो और मैं सभी गुनाहों को क्षमा कर देता हँू। अत : तुम मुझसे

क्षमा याचना करो, मैं तुम्हें क्षमा कर दँूगा। हे मेरे न्दों! तुम मेरे नुकसान को कभी नहीं पहँुच सकते बिक तुम मुझे नुकसान पहँुचाओ तथा तुम कभी मेरे लाभ तक नहीं पहँुच सकते बिक तुम मुझे लाभ पहँुचाओ। हे मेरे न्दो! यदिद तुम्हारे पहले लोग और तुम्हारे ाद के

लोग, तुम्हारे इंसान और तुम्हारे जिजन्नात तुममें से स से अधिEक परहेXगार व्यलिG के दिदल के समान हो जाए,ँ तो इससे मेरी सत्ता में कुछ भी वृजिद्ध नहीं होगी। हे मेरे न्दो! यदिद तुम्हारे पहले के लोग और तुम्हारे ाद के लोग, तुम्हारे इन्सान और तुम्हारे जिजन्नात स के स तुममें से स से दुष्ट (पापी) व्यलिG के दिदल के समान हो जाए,ँ तो इससे मेरी सत्ता में कुछ भी कमी नहीं होगी। हे मेरे न्दो! यदिद

तुम्हारे पहले लोग और तुम्हारे ाद के लोग, तुम्हारे इन्सान और तुम्हारे जिजन्नात स के स एक मैदान में खडे़ होकर मुझसे माँगें और मैं हर एक को उसकी माँगी हुई चीX प्रदान कर दँू, तो इससे मेरे पास जो कुछ है, उसमें केवल उतनी ही कमी होगी, जिजतनी बिक सूई को समुद्र में डालने से होती है। हे मेरे न्दो! ये तुम्हारे काय; हैं जिजन्हें मैं तुम्हारे लिलए बिगनकर रख रहा हँू, बिफर मैं तुम्हें इनका पूरा दला

प्रदान करँूगा। अत: जो व्यलिG भलाई पाए वह अल्लाह की प्रशंसा व गुणगान करे, और जो इसके अलावा पाए, वह केवल अपने आप को मलामत करे।" 350

सारी प्रशंसाएँ सव;शलिGमान अल्लाह के लिलए हैं तथा दया एवं शांबित की Eारा रसे स से उत्तम न ी और रसूल हमारे न ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैबिह व सल्लम और आपकी संतान- संतबित तथा सालिथयों पर।

345 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 39।346 " तफ़सीर अल- कु़रआन अल-अXीम" 1/497 । मामूली दलाव के साथ।347 इसका हवाला दिदया जा चुका है।348 सूरा अन-बिनसा, आयत संख्या : 170।349 सूरा यूनुस, आयत संख्या : 108।350 इसे इमाम मुस्थिस्लम ने अपनी सहीह " बिकता अल- बि र; व अस-लिसलह", अध्याय : " तहरीम अX-ज�ल्म" ( हदीस संख्या : 2577 )

में रिरवायत बिकया है।

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इस्लाम के लिसद्धांत और उसके मूल आEार............................................................................................................1

माग; कहाँ है?............................................................................................................................................... 3

अल्लाह सव;शलिGमान का अल्किस्तत्व, उसका एकमात्र पालनहार होना, उसकी एकत्व और उसका एकमात्र पूजा योग्य होना [7] :.....4

1. इस ब्रह्माण्ड की रचना और इसके अंदर बिवद्यमान अद्भतु व उत्कृष्ट कारीगरी :.......................................................5

2. प्रकृबित :........................................................................................................................................... 6

3. समुदायों की सव;सहमबित :.................................................................................................................... 6

4. ौजिद्धक अबिनवाय;ता :.......................................................................................................................... 7

ब्रह्माण्ड की रचना........................................................................................................................................ 10

ब्रह्माण्ड की रचना की तत्वदर्शिशंता..................................................................................................................... 11

इन स के ाद, हे मनुष्य!............................................................................................................................. 13

मनुष्य की रचना और उसे सम्मान प्रदान बिकया जाना..............................................................................................13

स्त्री का स्थान............................................................................................................................................. 15

मनुष्य की पैदाइश की बिहकमत.................................................................................................................... 17

मनुष्य को Eम; की आवश्यकता.................................................................................................................... 19

सच्चे Eम; का मापदंड................................................................................................................................... 21

Eम8 के प्रकार......................................................................................................................................... 24

वत;मान Eम8 की स्थिस्थबित............................................................................................................................. 25

न ूवत की वास्तबिवकता................................................................................................................................. 29

न ूवत की बिनशाबिनयाँ................................................................................................................................ 31

मानव जाबित को रसूलों की Xरूरत................................................................................................................32

आखिख़रत.................................................................................................................................................. 34

रसूलों के आह्वान के प्रमुख लिसद्धांत..................................................................................................................37

ख़त्म-ए-न ूवत........................................................................................................................................... 42

इस्लाम की वास्तबिवकता :.............................................................................................................................. 44

कुफ्र की वास्तबिवकता :................................................................................................................................. 45

इस्लाम के स्रोत........................................................................................................................................... 47

क- पबिवत्र कुरआन :................................................................................................................................. 47

ख- न ी की सुन्नत :................................................................................................................................. 50

पहली _ेणी [234]...................................................................................................................................... 51

इस्लाम में इ ादत का अथ; [244].................................................................................................................54

दूसरी _ेणी [247]....................................................................................................................................... 54

तीसरी _ेणी :............................................................................................................................................. 62

इस्लाम की कुछ खूबि याँ एवं अच्छाइयाँ [292] :...................................................................................................63

1- इस्लाम अल्लाह का Eम; है :....................................................................................................................64

2- व्यापकता :........................................................................................................................................ 64

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3- इस्लाम सृधिष्टकता; और सृधिष्ट के ीच सं ंE जोड़ता है :....................................................................................64

4- इस्लाम दुबिनया और आखिखरत दोनों के बिहतों की रक्षा करता है :.........................................................................65

5- सरलता :.......................................................................................................................................... 65

6- न्याय :.............................................................................................................................................. 66

7- भलाई का आदेश देना और ुराई से रोकना :...............................................................................................66

तौ ा....................................................................................................................................................... 66

इस्लाम का पालन न करने वाले का परिरणाम........................................................................................................68

1- भय और असुरक्षा :.............................................................................................................................. 69

2- कदिठन जीवन :................................................................................................................................... 69

3- वह अपने आप और अपने आसपास के ब्रह्माण्ड के साथ संघष; में रहता है :..........................................................69

4- वह अज्ञानता का जीवन गुXारता है :.........................................................................................................70

5- वह अपने ऊपर और अपने आसपास की चीXों पर ज�ल्म (अत्याचार) करते हुए जीवन बि ताता है :..............................70

6- वह दुबिनया में अपने आपको अल्लाह की घृणा और उसके क्रोE का पात्र ना लेता है :.............................................70

7- उसके लिलए बिवफलता और घाटा लिलख दिदया जाता है :.....................................................................................71

8- वह अपने पालनहार के साथ कुफ्र करने वाला और उसकी नेमतों का इनकार करने वाला नकर जीवन गुXारता है :.........71

9- वह वास्तबिवक जीवन से वंलिचत कर दिदया जाता है :........................................................................................71

10- वह सदैव अXा (यातना) में रहेगा :.......................................................................................................72

समापन.................................................................................................................................................... 73