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1 पद घघऱ बध Note: not be confused two different books: Pad Ghunghru Bandh (पद घघ बध) - 150 letters written by Osho in Hindi to his disciples, friends and lovers. Pad Ghunghru Bandh (पद घघ बध) (2) - 20 Talks on Meera. अनम 1. ेम कᳱ झील म नौक-विहर ................................................................................................3 2. समवध कᳱ अविविय .................................................................................................. 25 3. म तो विरधर के घर जऊ .................................................................................................. 47 4. मृय क िरणः अमृत क िद........................................................................................... 69 5. पद घघऱ बध मीर नची रे ............................................................................................. 91 6. है र ि क ........................................................................................................ 114 7. मने रम रतन धन पयो .................................................................................................. 140 8. दमन नह--ऊिविमन ..................................................................................................... 163 9. रम नम रस पीजै मनआ ................................................................................................ 186 10. फू ल विलत है--अपनी वनजत से ..................................................................................... 210 11. िविः एक विरट यस .................................................................................................. 233 12. मनयः अनविल परमम ............................................................................................. 252 13. मीर से पकरन सीिो ................................................................................................... 272 14. समिय नह--सधन करो .............................................................................................. 293 15. हेरी! म तो दरद ᳰदिनी .................................................................................................. 314 16. सयस है--दृव क उपचर ............................................................................................. 335 17. िवि क णः वन .................................................................................................... 359 18. जीिन क रहय--मृय म ................................................................................................ 382 19. िविः चकर बनने कᳱ कल ............................................................................................ 405

पद घ ुंघू ब ुंध - Oshodharaoshodhara.org.in/admin/Bookthumb/books/Osho_Rajneesh_Pad...1 पद घ घ ब ध Note: not be confused two different books: Pad

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    पद घ ुंघरू ब ुंध

    Note: not be confused two different books:

    Pad Ghunghru Bandh (पद घ ुंघरू ब ुंध) - 150 letters written by Osho in Hindi to his

    disciples, friends and lovers.

    Pad Ghunghru Bandh (पद घ ुंघरू ब ुंध) (2) - 20 Talks on Meera.

    अन क्रम

    1. प्रेम की झील में नौक -विह र ................................................................................................3

    2. सम वध की अविव्यविय ुं .................................................................................................. 25

    3. मैं तो विरधर के घर ज ऊुं .................................................................................................. 47

    4. मृत्य क िरणः अमृत क स्ि द........................................................................................... 69

    5. पद घ ुंघरू ब ुंध मीर न ची रे ............................................................................................. 91

    6. श्रद्ध है द्व र प्रि क ........................................................................................................ 114

    7. मैंने र म रतन धन प यो .................................................................................................. 140

    8. दमन नहीं--ऊर्धिविमन ..................................................................................................... 163

    9. र म न म रस पीजै मन आुं ................................................................................................ 186

    10. फूल विलत है--अपनी वनजत से ..................................................................................... 210

    11. िविः एक विर ट प्य स .................................................................................................. 233

    12. मन ष्यः अनविल परम त्म ............................................................................................. 252

    13. मीर से प क रन सीिो ................................................................................................... 272

    14. समन्िय नहीं--स धन करो .............................................................................................. 293

    15. हेरी! मैं तो दरद ददि नी.................................................................................................. 314

    16. सुंन्य स है--दृवि क उपच र ............................................................................................. 335

    17. िवि क प्र णः प्र र्वन .................................................................................................... 359

    18. जीिन क रहस्य--मृत्य में ................................................................................................ 382

    19. िविः च कर बनने की कल ............................................................................................ 405

    http://www.sannyas.wiki/index.php?title=Pad_Ghunghru_Bandh_(%E0%A4%AA%E0%A4%A6_%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%98%E0%A4%B0%E0%A5%82_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7)_(2)http://www.sannyas.wiki/index.php?title=Pad_Ghunghru_Bandh_(%E0%A4%AA%E0%A4%A6_%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%98%E0%A4%B0%E0%A5%82_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7)_(2)

  • 2

    20. प्रेम श्व स है आत्म की .................................................................................................... 428

  • 3

    पद घ ुंघरू ब ुंध

    पहल प्रवचन

    प्रेम की झील में नौक -विह र

    बसौ मेरे नैनन में नुंदल ल।

    मोहनी मूरत स ुंिरी सूरत, नैन बने वबस ल।

    मोर म क ट मकर कृवत क ुं डल, अरुण वतलक शोिे ि ल।

    अधर स ध रस म रली र जवत, उर िैजुंती म ल।

    छ द्र घुंटटक कटटतट सोवित, नूप र सबद रस ल।

    मीर प्रि सुंतन स िद ई, िि बच्छल िोप ल।

    हटर मोरे जीिन प्र ण आध र।

    और आवसरो न हहुं त म वबन, तीनूुं लोक मुंझ र।

    आप वबन मोवह कछ न स ह िै, वनरिौ सब सुंस र।

    मीर कहै मैं द स र िरी, दीज्यौ मवत वबस र।

    मेरे तो विरधर िोप ल, दूसरो न कोई।

    ज के वसर मोर म क ट, मेरो पवत सोई।

    छ वि दई क ल की क वन, कह कटर है कोई।

    सुंतन ढ ुंि बैटि बैटि लोकल ज िोई।

    अुंस िन जल सींवच सींवच प्रेम-बेवल बोई।

    अब तो बेवल फैल िई, आनुंद फल होई।

    िित देि र जी हुई, जित देि रोई।

    द सी मीर ल ल विरधर, त रो अब मोवह।

    आओ, प्रेम की एक झील में नौक -विह र करें। और ऐसी झील मन ष्य के इवतह स में दूसरी नहीं है, जैसी

    झील मीर है। म नसरोिर िी उतन स्िच्छ नहीं। और हुंसों की ही िवत हो सकेिी मीर की इस झील में। हुंस

    बनो, तो ही उतर सकोिे इस झील में। हुंस न बने तो न उतर प ओिे।

    हुंस बनने क अर्व हैः मोवतयों की पहच न आुंि में हो, मोती की आक ुंक्ष हृदय में हो। हुंस तो मोती

    च िे! क छ और से र जी मत हो ज न । क्ष द्र से जो र जी हो िय , िह विर ट को प ने में असमर्व हो ज त है।

    नदी-न लों क प नी पीने से जो तृप्त हो िय , िह म नसरोिरों तक नहीं पहुुंच प त है; जरूरत ही नहीं रह

    ज ती।

    मीर की इस झील में त म्हें वनमुंत्रण देत हुं। मीर न ि बन सकती है। मीर के शब्द त म्हें डूबने से बच

    सकते हैं। उनके सह रे पर उस प र ज सकते हो।

    मीर तीरं्कर है। उसक श स्त्र प्रेम क श स्त्र है। श यद श स्त्र कहन िी िीक नहीं।

    न रद ने िवि-सूत्र कहे हैं; िह श स्त्र है। िह ुं तकव है, व्यिस्र् है, सूत्रबद्धत है। िह ुं िवि क दशवन है।

    मीर स्ियुं िवि है। इसवलए त म रेि बद्ध तकव न प ओिे। रेि बद्ध तकव िह ुं नहीं है। िह ुं तो हृदय में

    कौंधती हुई वबजली है। जो अपने आवशय ने जल ने को तैय र होंिे, उनक ही सुंबुंध ज ि प एि ।

  • 4

    प्रेम से सुंबुंध उन्हीं क ज ित है, जो सोच-विच र िोने को तैय र हों; जो वसर िुंि ने को उत्स क हों। उस

    मूल्य को जो नहीं च क सकत , िह सोचे िवि के सुंबुंध में, विच रे; लेदकन िि नहीं हो सकत ।

    तो मीर के श स्त्र को श स्त्र कहन िी िीक नहीं। श स्त्र कम है, सुंिीत ज्य द है। लेदकन सुंिीत ही तो

    केिल िवि क श स्त्र हो सकत है। जैसे तकव ज्ञ न क श स्त्र बनत है, िैसे सुंिीत िवि क श स्त्र बनत है। जैसे

    िवणत आध र है ज्ञ न क , िैसे क व्य आध र है िवि क । जैसे सत्य की िोज ज्ञ नी करत है, िि सत्य की

    िोज नहीं करत , िि सौंदयव की िोज करत है। िि के वलए सौंदयव ही सत्य है। ज्ञ नी कहत हैः सत्य स ुंदर है।

    िि कहत हैः सौंदयव सत्य है।

    रिींद्रन र् ने कह हैः ब्यूटी इ.ज ट्रुर्। सौंदयव सत्य है। रिींद्रन र् के प स िी िैस ही हृदय है जैस मीर

    के प स। लेदकन रिींद्रन र् प रुष हैं; िलते-िलते िी प रुष की अिचनें रह ज ती हैं; मीर जैसे नहीं वपघल प ते।

    िूब वपघले। वजतन वपघल सकत है प रुष, उतने वपघले; दफर िी मीर जैसे नहीं वपघल प ते।

    मीर स्त्री है। स्त्री के वलए िवि ऐसे ही स िम है जैसे प रुष के वलए तकव और विच र।

    िैज्ञ वनक कहते हैंःः मन ष्य क मवस्तष्क दो वहस्सों में विि वजत है। ब ईं तरफ जो मवस्तष्क है िह सोच-

    विच र करत है; िवणत, तकव , वनयम, िह ुं सबशृुंिल बद्ध है। और द ईं तरफ जो मवस्तष्क है िह ुं सोच-विच र

    नहीं है; िह ुं ि ि है, िह ुं अन िूवत है। िह ुं सुंिीत की चोट पिती है। िह ुं तकव क कोई प्रि ि नहीं होत । िह ुं

    लयबद्धत पहुुंचती है। िह ुं नृत्य पहुुंच ज त है; वसद्ध ुंत नहीं पहुुंचते।

    स्त्री द एुं तरफ के मवस्तष्क से जीती है; प रुष ब एुं तरफ के मवस्तष्क से जीत है। इसवलए स्त्री-प रुष के

    बीच ब त िी म वककल होती है; कोई मेल नहीं बैित ददित । प रुष क छ कहत है, स्त्री क छ कहती है। प रुष और

    ुंि से सोचत है, स्त्री और ुंि से सोचती है। उनके सोचने की प्रदिय एुं अलि हैं। स्त्री विवधित नहीं सोचती;

    सीधी छल ुंि लि ती है, वनष्कषों पर पहुुंच ज ती है। प रुष वनष्कषव पर नहीं पहुुंचत , विवधयों से ि जरत है--

    िमबद्ध, एक-एक कदम।

    प्रेम में कोई विवध नहीं होती, विध न नहीं होत । प्रेम की क्य विवध और क्य विध न! हो ज त है

    वबजली की कौंध की तरह। हो िय तो हो िय । नहीं हुआ तो करने क कोई उप य नहीं है।

    प रुषों ने िी िवि के िीत ि ए हैं, लेदकन मीर क कोई म क बल नहीं है; क्योंदक मीर के वलए, स्त्री

    होने के क रण जो वबल्क ल सहज है, िह प रुष के वलए र्ोि आरोवपत स म लूम पित है। प रुष िि हुए;

    वजन्होंने अपने को परम त्म की प्रेयसी म न , पत्नी म न । मिर ब त क छ अिचन िरी हो ज ती है। सुंप्रद य है

    ऐसे ििों क , बुंि ल में अब िी जीवित--जो प रुष हैं, लेदकन अपने को म नते हैं कृष्ण की पत्नी। र त स्त्री

    जैस शृुंि र करके, कृष्ण की मूर्तव को छ ती से लि कर सो ज ते हैं। मिर ब त में क छ बेहद पन लित है। ब त

    क छ जमती नहीं। ऐस ही बेहद पन लित है जैसे दक त म, जह ुं जो नहीं होन च वहए, उसे जबरदस्ती वबि ने

    की कोवशश करो, तो लिे।

    प रुष प रुष है; उसके वलए स्त्री होन ोंि ही होि । िीतर तो िह ज नेि ही दक मैं प रुष हुं। ऊपर से त म

    स्त्री के िस्त्र िी पहन लो और कृष्ण की मूर्तव को हृदय से िी लि लो--तब िी त म िीतर के प रुष को इतनी

    आस नी से िो न सकोिे। यह स िम नहीं होि ।

    वस्त्रय ुं िी हुई हैं वजन्होंने ज्ञ न के म िव से य त्र की है। मिर िह ुं िी ब त क छ बेहदी हो िई। जैसे ये

    प रुष बेहदे लिते हैं और र्ोि स विच र पैद होत है दक ये क्य कर रहे हैं! ये प िल तो नहीं हैं! ऐसे ही

    लल्ल ककमीर में हुई, िह मह िीर जैसे विच र में पि िई होिी; उसने िस्त्र फेंक ददए, िह नग्न हो िई।

    लल्ल में िी र्ोि स क छ अशोिन म लूम होत है। स्त्री अपने को वछप ती है। िह उसके वलए सहज है।

    िह उसकी िटरम है। िह अपने को ऐस उघ िती नहीं। ऐस उघ िती है तो िेकय हो ज ती है। लल्ल ने बिी

  • 5

    वहम्मत की, फेंक ददए िस्त्र। अस ध रण स्त्री रही होिी! लेदकन र्ोिी सी अस्ि ि विक म लूम होती है ब त।

    मह िीर के वलए नग्न ििे हो ज न अस्ि ि विक नहीं लित ; वबल्क ल स्ि ि विक लित है। ऐसी ही ब त है।

    मीर में जैसी सहज उदि िन हुई है िवि की, कहीं िी नहीं है। िि और िी हुए हैं, लेदकन सब मीर

    से पीछे पि िए, वपछि िए। मीर क त र बहुत जिमि त हुआ त र है। आओ, इस त रे की तरफ चलें।

    अिर र्ोिी सी िी बूुंदें त म्ह रे जीिन में बरस ज एुं, मीर के रस की, तो िी त म्ह रे रेविस्त न में फूल विल

    ज एुंिे। अिर त म्ह रे हृदय में र्ोिे से िी िैसे आुंसू घ मि आएुं, जैसे मीर को घ मिे, और त म्ह रे हृदय में र्ोिे

    से र ि बजने लिें, जैस मीर को बज , र्ोि स सही! एक बूुंद िी त म्हें रुंि ज एिी और नय कर ज एिी।

    तो मीर को तकव और ब वद्ध से मत स नन । मीर क क छ तकव और ब वद्ध से लेन -देन नहीं है। मीर को

    ि ि से स नन , िवि से स नन , श्रद्ध की आुंि से देिन । हट दो तकव इत्य दद को, दकन रे सरक कर रि दो।

    र्ोिी देर के वलए मीर के स र् प िल हो ज ओ। यह मस्तों की द वनय है। यह प्रेवमयों की द वनय है। तो ही त म

    समझ प ओिे, अन्यर् चूक ज ओिे।

    बहुत ब र मौके आए जब मैं मीर पर बोलत ; लेदकन ट लत िय । क्योंदक मीर पर क छ बोलन कटिन

    है। मह िीर पर बोलन बहुत आस न है। ब द्ध पर बोलन बहुत आस न है। पतुंजवल पर बोलन बहुत आस न है।

    मीर पर बोलन बहुत कटिन है। क्योंदक यह ब त बोलने की है ही नहीं; यह ब त तो होने की है। यह ि ि की

    है। मीर ि नि न ई ज सकती है, मीर पर बोलो क्य ? मीर ि ई ज सकती है, मीर पर बोलो क्य ? मीर

    न ची ज सकती है, मीर पर बोलो क्य ?

    इसवलए त म से कहत हुंःः आओ, इस िौरीशुंकर पर चढ़ें--प्रेम के िौरीशुंकर पर! इस ऊुं च ई पर पुंि

    फैल एुं! केिल िे ही उि प ने में समर्व होंिे जो तकव क बोझ एक तरफ हट कर रि देंिे।

    मीर के प स त म्हें देने को बहुत है। मीर एक मेघ है, जो बरस ज ए तो त म तृप्त हो ज ओ।

    तर नों में मोहब्बत क तर न ले के आय हुं

    फस नों में हकीकत क फस न ले के आय हुं

    तल शे-बके-आदमसोज में वनकल हुं जन्नत से

    जल ने ही को आविर आवशय न ले के आय हुं

    जम ने से अलि हुं अहले-सोहबत के वलए लेदकन

    नय हक-ओ-अमल क इक जम न ले के आय हुं

    उि और तय दो जह ुं की मुंवजलें इक ि म में कर ले

    जनूने-अशो-पैम ुं ि लह न ले के आय हुं

    उि! ज ि!

    उि और तय दो जह ुं की मुंवजलें इक ि म में कर ले

    मीर के स र् स री य त्र एक कदम में हो सकती है। तकव बहुत कदम लेत है, क्योंदक विवध से चलत है।

    मीर छल ुंि है।

    उि और तय दो जह ुं की मुंवजलें इक ि म में कर ले

    इसवलए त मसे कहत हुं दक आओ, एक ही कदम में यह य त्र हो सकती है।

    जनूने-अशो-पैम ुं ि लह न ले के आय हुं

    मीर मस्ती से िरी हुई एक शर ब वलए ििी है। उसक रस स्ि दन करो। मीर शर ब है--पीओ। समझो

    कम--पीओ ज्य द । उसक तर न प्रेम क तर न है।

    म झे मौक दो दक मैं त म्ह रे हृदय की िीण को र्ोि बज सकूुं । तो ही त म समझ प ओिे।

    ये मीर के जो िचन हम स नेंिे, चच व करेंिे, ि नि न एुंिे, डूबेंिे--इन िचनों में ऊपर से कोई त रतम्य नहीं

    है। ये तो िि की अन िूवतय ुं हैं। लेदकन िीतर बि त रतम्य है। ऊपर-ऊपर क छ न ददि ई पिेि दक इनमें

  • 6

    क्य सुंबुंध है। मीर ने कोई र मचटरतम नस नहीं वलि है दक श रू दकय ब लक ुंड से और चले। ये तो ि ि की

    अर जक अविव्यविय ुं हैं। जब उि ि ि, ि य । जैस उि , िैस ि य ।

    दफर ये लोिों के स मने िी ि ई िई ब तें नहीं हैं। ये तो उस परम प्य रे के स मने ि ए िए िीत हैं। इन

    िीतों में स ध र िी नहीं दकय िय है। कवि वलित है तो िूब स ध र-सुंशोधन करत है। ये तो कच्चे, कोरे, िैसे

    के िैसे, जैसे िद न से हीरे वनकलते हैं--तर शे नहीं िए--बेतर शे, अनिढ़!

    मीर को दफकर नहीं है आदवमयों की दक इनमें, िीतों में िूल-चूक लिेिी, क व्य के वनयम पूरे होंिे दक

    नहीं, म त्र एुं िीक बैिती हैं दक नहीं; इस सबक कोई वहस ब नहीं है।

    त म जब अपने प्रेमी के स मने िीत ि ते हो, तो यह सब र्ोिे ही दफकर रिते हो! प्रेमी त म्ह र परीक्षक

    र्ोिे ही है! प्रेमी के स मने जब त म िीत ि ते हो, तो त म यह र्ोिे ही सोचते हो दक िीत ि ष की दृवि से,

    व्य करण की दृवि से, म त्र -छुंद की दृवि से--पूर है य नहीं! इतन ही देिते हो दक मेर हृदय इस िीत में

    उुं डल रह है य नहीं! जब शर ब से िरी हुई प्य ली हो तो प्य ली क आक र कौन देित है--दकस आक र की

    है!

    तो त म पीओिे तो समझोिे। और त रतम्य िी वमलेि । लेदकन त रतम्य ऐस रहेि , ऊपर-ऊपर से

    ददि ई नहीं पिेि ! जैसे एक ि ल ब की झ िी पर बहुत से ि ल ब के फूल विले हैं, ऊपर से तो कोई ज िे ददि ई

    नहीं पिते। कोई छोट है, कोई बि है। और अिर म ली क शल रह हो तो कोई सफेद है, और कोई ल ल है,

    और कोई पील है। सब अलि-अलि ुंि के विले हैं। लेदकन सब एक ही जि से ज िे हैं। िही जि त म्हें ददि ई

    पि ज ए तो त म मीर के स र् हो लोिे।

    इसके पहले दक हम मीर के शब्दों में उतरें, मीर के सुंबुंध में क छ ब तें समझ लेनी जरूरी हैं।

    पहली ब तः मीर क कृष्ण से प्रेम मीर की तरह श रू नहीं हुआ! प्रेम क इतन अपूिव ि ि इस तरह

    श रू हो िी नहीं सकत । यह कह नी प र नी है। यह मीर कृष्ण की प र नी िोवपयों में से एक है। मीर ने ि द िी

    इसकी घोषण की है, लेदकन पुंवडत तो म नते नहीं। क्योंदक इसके वलए इवतह स क कोई प्रम ण नहीं है। मीर

    ने ि द िी कह है दक कृष्ण के समय में मैं उनकी एक िोपी र्ी, लवलत मेर न म र् । मिर पुंवडत तो इसको

    ट ल ज ते हैं; यह ब त को ही कह देते हैं दक ढकुं िदुंती है, कर् -कह नी है।

    मैं ऐस न कर सकूुं ि । मैं पुंवडत नहीं हुं। और हज र पुंवडत कहते हों तो उनकी मैं दो कौिी की म नत हुं।

    मीर ि द कहती है, उसे मैं स्िीक र करत हुं। सच-झूि क म झे वहस ब िी नहीं लि न है। ब त के इवतह स

    होने न होने से कोई प्रयोजन िी नहीं है। मीर क ििव्य, मैं र जी हुं। मीर जब ि द कहती है तो ब त ितम

    हो िई। दफर दकसी और को इसमें और प्रश्न उि ने क प्रश्न नहीं उिन च वहए। और जो इस तरह के प्रश्न उि ते

    हैं िे मीर को समझ िी न प एुंिे।

    अुंगे्रजी में एक शब्द हैः देज ि ह। उसक अर्व होत हैः पूिविि की स्मृवत क अच नक उि आन । किी-

    किी त म्हें िी देज ि ह होत है। कल र त ही एक य ि सुंन्य सी म झसे ब त कर रह र् । उसने ब र-ब र म झे

    पत्र वलिे, िह बि परेश न र् । परेश नी होिी ही। उसे कई ब र ऐस लित है यह ुं इन िैटरक िस्त्रध री

    सुंन्य वसयों के स र् उिते-बैिते-चलते दक जैसे पहले िी िह किी ऐसी ही दकसी वस्र्वत में रह है--पहले किी

    दकसी जन्म में। इससे बिी बेचैनी िी हो ज ती है। किी-किी तो कोई घटन उसे ऐसी लिती है दक वबल्क ल

    दफर से दोहर रही है। तो बेचैनी स्ि ि विक है। और पविम से आय य िक है तो बेचैनी और स्ि ि विक है।

    उसने बहुत ब र म झे वलि । कल िह विद होने को आय र् , अब िह ज रह है ि पस, तो म झसे पूछने लि ः

    आपने किी क छ कह नहीं दक मैं क्य करूुं ? म झे ब र-ब र ऐस लित है। तो उसे मैंने कह दक देज ि ह, यह

    पूिविि क स्मरण एक ि स्तविकत है। बेचैन तो करेिी, क्योंदक इससे तकव क कोई सुंबुंध नहीं ज ित है।

    हम यह ुं नये नहीं हैं, हम यह ुं प्र चीन हैं; सन तन से हैं। ऐस कोई समय न र् जब त म न रे्। ऐस कोई

    समय न र् जब मैं न र् । ऐस कोई समय न र् , न ऐस कोई किी समय होि जब त म नहीं हो ज ओिे।

  • 7

    रहोिे, रहोिे, रहोिे। रूप बदलेंिे, ुंि बदलेंिे, शैवलय ुं बदलेंिी; अवस्तत्ि श श्वत है। जो श श्वत है, िही सत्य

    है; शेष जो बदलत ज त है, िह तो केिल आिरण है। जैसे कोई िस्त्र बदल लेत है।

    तो र मकृष्ण ने मरते िि कह ः रोओ मत, क्योंदक मैं केिल िस्त्र बदल रह हुं। और रमण ने मरते िि

    कह --जब दकसी ने पूछ दक आप कह ुं चले ज एुंिे? आप कह ुं ज रहे हैं? हमें छोि कर कह ुं ज रहे हैं? तो

    उन्होंने कह ः बुंद करो यह बकि स! मैं कह ुं ज ऊुं ि ? मैं यह ुं र् और यहीं रहुंि । ज न कह ुं है! यही तो

    एकम त्र अवस्तत्ि है।

    रूप बदलते हैं। बीज िृक्ष हो ज त है; िृक्ष बीज हो ज त है। िुंि स िर बन ज ती है; स िर सूरज की

    दकरणों से चढ़ कर मेघ बन ज त है; मेघ दफर िुंि में विर ज त है; दफर िुंि स िर में विर ज ती है। मिर

    एक जल की बूुंद िी किी िोई नहीं है; जल उतन ही है वजतन सद से र् । और एक िी आत्म कहीं िोई

    नहीं है।

    तो मैंने उस य िक को कह ः वबल्क ल घबि ओ न। हो सकत है, मेरे प स त म किी अतीत में न िी बैिे

    हो; यह हो सकत है, क्योंदक यह अनुंत है जित। यह हो सकत है दक मेर त मसे वमलन किी न हुआ हो।

    लेदकन दफर िी यह ब त पक्की है दक मेरे जैसे दकसी आदमी से त म्ह र वमलन हुआ होि । त मने दकसी ब द्ध की

    आुंिों में झ ुंक होि । त म दकसी सदि रु के चरणों में बैिे होओिे। दफर िह कौन र् , मोहम्मद र् दक कृष्ण दक

    ि इस्ट, इससे कोई फकव नहीं पित ; क्योंदक सदि रुओं क स्ि द एक है और उनकी आुंिों क दृकय एक है।

    तो किी-किी, अिर त म ब द्ध के स र् रहे हो ई हज र स ल पहले, तो मेरे प स बैिे-बैिे एक क्षण को

    त म अवििूत हो ज ओिे। एक क्षण को लिेि ः यह तो दफर िैस ही क छ हो रह है, जैस पहले हुआ है। एक

    क्षण को यह ुं से त म विद हो ज ओिे और अतीत क दृकय ि ल ज एि । कोई पद व जैसे पि र् । और अच नक

    त म प ओिेः यह तो िही हो रह है जो पहले हुआ। श यद किी ऐस िी हो सकत है दक मैं त मसे जो शब्द कहुं,

    िे ही शब्द त मसे ब द्ध ने िी कहे हों। और यह िी सुंिि है दक किी त म मेरे स र् िी रहे होओ। सिी क छ सुंिि

    है। इस जित में असुंिि क छ िी नहीं है।

    मीर ने कह हैः मैं लवलत र्ी। कृष्ण के स र् न ची, िृुंद िन में कृष्ण के स र् ि ई। यह प्रेम प र न है--

    मीर यही कह रही है--यह प्रेम नय नहीं है। और इसकी श रुआत वजस ुंि से हुई, िह श रुआत िी करती है

    स फ दक पुंवडत िलत होंिे, मीर सही है। और पुंवडत दकतने ही सही लिें, दफर िी सही नहीं होते, क्योंदक

    उनके सोचने क ुंि ही ब वनय द से िलत होत है। िे प्रम ण म ुंिते हैं। अब प्रम ण क्य ? दकसी अद लत की

    सील-मोहर लिी हुई कोई फ इल मौजूद करे मीर , दक कृष्ण के समय में र्ी? कह ुं से प्रम णपत्र ल ए? िि ह

    ज ट ए? अुंति वि पय वप्त है। और उसक अुंति वि प्रम ण है।

    मीर छोटी र्ी, च र-प ुंच स ल की रही होिी, तब एक स ध मीर के घर मेहम न हुआ, और जब स बह

    स ध ने उि कर अपनी मूर्तव--कृष्ण की मूर्तव छ प ए र् अपनी ि दिी में--वनक ल कर जब उसकी पूज की तो

    मीर एकदम प िल हो िई। देज ि ह हुआ। पूिविि क स्मरण आ िय । िह मूर्तव क छ ऐसी र्ी दक वचत्र पर

    वचत्र ि लने लिे। िह मूर्तव जो र्ी--श रुआत हो िई दफर से कह नी की; वनवमत्त बन िई। उससे चोट पि िई।

    कृष्ण की मूरत दफर य द आ िई। दफर िह स ुंिल चेहर , िे बिी आुंिें, िे मोरम क ट में बुंधे, िे ब ुंस री बज ते

    कृष्ण! मीर लौट िई हज रों स ल पीछे अपनी स्मृवत में। रोने लिी। स ध से म ुंिने लिी मूर्तव। लेदकन स ध को

    िी बि लि ि र् अपनी मूर्तव से; उसने मूर्तव देने से इनक र कर ददय । िह चल िी िय । मीर ने ि न -

    पीन बुंद कर ददय ।

    पुंवडतों के वलए यह प्रम ण नहीं होत दक इससे क छ प्रम ण वमलत है देज ि ह क । लेदकन मेरे वलए

    प्रम ण है। च र-प ुंच स ल की बच्ची! ह ुं, बच्चे किी-किी विलौनों के वलए िी तरस ज ते हैं। लेदकन घिी दो

    घिी में िूल ज ते हैं। ददन िर बीत िय , न उसने ि न ि य , न प नी पीय । उसकी आुंिों से आुंसू बहते रहे।

  • 8

    िह रोती ही रही। उसके घर के लोि िी हैर न हुए दक अब क्य करें? स ध तो िय िी, कह ुं उसे िोजें? और

    िह देि , इसकी िी सुंि िन कम है।

    और िह कृष्ण की मूरत जरूर ही बिी प्य री र्ी, घर के लोिों को िी लिी र्ी। उन्होंने िी बहुत मूर्तवय ुं

    देिी र्ीं, मिर उस मूर्तव में क छ र् जीिुंत, क छ र् ज ित हुआ, उस मूर्तव की तरुंि ही और र्ी। जरूर दकसी ने

    िढ़ी होिी प्रेम से; व्यिस य के वलए नहीं। दकसी ने िढ़ी होिी ि ि से। दकसी ने अपनी स री प्र र्वन , अपनी

    स री पूज उसमें ल दी होिी। य दकसी ने, वजसने कृष्ण को किी देि होि , उसने िढ़ी होिी। मिर ब त

    क छ ऐसी र्ी, मूर्तव क छ ऐसी र्ी दक मीर िूल ही िई, इस जित को िूल ही िई। िह तो उस मूर्तव को लेकर

    रहेिी, नहीं तो मर ज एिी। यह विरह की श रुआत हुई च र-प ुंच स ल की उम्र में!

    र त उस स ध ने सपन देि । दूर दूसरे ि ुंि में ज कर सोय र् । र त सपन आय ः कृष्ण ििे हैं। उन्होंने

    कह दक मूर्तव वजसकी है उसको लौट दे। तूने रि ली बहुत ददन तक; यह अम नत र्ी; मिर यह तेरी नहीं है।

    अब तू न हक मत ो। तू ि पस ज , मूर्तव उस लिकी को दे दे; वजसकी है उसको दे दे। उसकी र्ी, तेरी अम नत

    पूरी हो िई। तेर क म पूर हो िय । यह ुं तक त झे पहुुंच न र् , िह ुं तक पहुुंच ददय ; अब ब त ितम हो िई।

    मूर्तव उसकी है वजसके हृदय में मूर्तव के वलए प्रेम है। और दकसकी मूर्तव?

    स ध तो घबि िय । कृष्ण तो किी उसे ददि ई िी न पिे रे्। िषों से प्र र्वन -पूज कर रह र् , िषों से

    इसी मूर्तव को वलए चलत र् , फूल चढ़ त र् , घुंटी बज त र् , कृष्ण किी ददि ई न पिे रे्। िह तो बहुत

    घबि िय । िह तो आधी र त ि ि हुआ आय । आधी र त आकर जि य और कह ः म झे क्षम करो, म झसे

    िूल हो िई। इस छोटी सी लिकी के पैर पिे, इसे मूर्तव देकर ि पस हो िय ।

    यह जो च र-प ुंच स ल की उम्र में घटन घटी, इससे दफर से दृकय ि ले; दफर प्रेम उमि ; दफर य त्र श रू

    हुई। यह मीर के इस जीिन में कृष्ण के स र् प निविबुंधन की श रुआत है। मिर यह न त प र न र् । नहीं तो

    बि कटिन है। कृष्ण को देि न हो, कृष्ण को ज न न हो, कृष्ण की स िुंध न ली हो, कृष्ण क ह र् पकि कर

    न चे न होओ--तो ल ि उप य करो, त म कृष्ण को किी जीिुंत अन िि न कर सकोिे। इसवलए जीत सदि रु ही

    सहयोिी होत है।

    त म िी कृष्ण की मूर्तव रि कर बैि सकते हो, मिर त म्ह रे िीतर ि ि क उदे्रक नहीं होि । ि ि के

    उदे्रक के वलए त म्ह री अुंतर-कर् में कोई सुंबुंध च वहए कृष्ण से; त म्ह री अुंतर-कर् में कोई सम न ुंतर दश

    च वहए। मीर क िजन त म िी ि सकते हो; लेदकन जब तक कृष्ण से त म्ह र क छ अुंतर-न त न हो, तब तक

    िजन ही रह ज एि , ज ि न प ओिे। हृदय--हृदय न वमलेि , सेत न बनेि ।

    िह च र-प ुंच िषव की उम्र में घटी छोटी सी घटन --स ुंयोविक घटन --और ि ुंवत हो िई। मीर मस्त

    रहने लिी, जैसे एक शर ब वमल िई। दो िषव ब द पिोस में दकसी क विि ह हुआ, और यह स त-आि स ल की

    लिकी ने पूछ अपनी म ुं कोः सबक विि ह होत है, मेर कब होि ? और मेर िर कौन है? और म ुं ने तो ऐसे

    ही मज क में कह --क्योंदक िह उस िि िी कृष्ण की मूर्तव को छ ती से लि ए ििी र्ी--दक तेर िर कौन है?

    यह विरधर िोप ल! यह विरधरल ल! यही तेरे िर हैं! और क्य च वहए? यह तो मज क में ही कह र् ! म ुं को

    क्य पत र् दक किी-किी मज क में कही िई ब त िी ि ुंवत हो ज सकती है। और ि ुंवत हो िई। और किी-

    किी दकतनी ही िुंिीरत से त मसे कह ज ए, क छ िी नहीं होत , क्योंदक त म्ह रे िीतर क छ छूत ही नहीं। हो

    तो छ ए। बीज को पत्र्र पर फेंक दोिे तो अुंक टरत नहीं होत ; िीक िूवम वमल ज ए तो अुंक टरत हो ज त है। िह

    िीक िूवम र्ी। म ुं को िी पत नहीं र् ; सोचती र्ी दक बच्चे क विलि ि है; कृष्ण एक विलौन हैं। वमल िए हैं

    इसको। स ुंदर मूर्तव है, म न । तो न चती-ि नि न ती रहती है, िीक है, अपन उलझी रहती है; क छ हज व िी नहीं

  • 9

    है। मज क में ही कह र् दक तेरे तो और कौन पवत! ये विरधर िोप ल हैं! ये नुंदल ल हैं! मिर उसक मन उसी

    ददन िर िय । यह ब त हो िई।

    किी-किी सुंयोि मह रुंि बन ज ते हैं--मह प्रस्र् न के पर् पर। उसने तो म न ही वलय । िह छोट स

    िोल -ि ल मन! उसने म न वलय दक यही उसके पवत हैं। दफर क्षण िर को िी यह ब त डिमि ई नहीं। दफर

    क्षण िर को िी यह ब त िूली नहीं।

    असल में, बचपन में अिर कोई ि ि बैि ज ए तो बि दूरि मी होत है। यह ब त बैि िई। उस ददन से

    उसने अपन स र प्रेम कृष्ण पर उुं डेल ददय । वजतन त म प्रेम उुं डेलोिे, उतने ही कृष्ण जीवित होते चले िए।

    पहले अकेली ब त करती र्ी, दफर कृष्ण िी ब त करने लिे। पहले अकेली डोलती र्ी, दफर कृष्ण िी डोलने

    लिे। यह न त िि क और मूर्तव क न रह ; िि और ििि न क हो िय ।

    और इसके ब द क छ घटन एुं घटीं, जो ख्य ल में ले लेनी च वहए--जो महत्िपूणव हैं।

    मीर पर वजन लोिों ने दकत बें वलिी हैं, िे सब वलिते हैंःः द ि वग्य से मीर की म ुं मर िई, जब िह

    बहुत छोटी र्ी। दफर उसके ब ब ने उसे प ल । दफर ब ब मर िए। दफर सत्रह-अि रह स ल की उम्र में उसक

    विि ह दकय िय । दफर उसके पवत मर िए। दफर सस र ने उसकी सम्ह ल की। और दफर सस र िी मर िए।

    दफर वपत उसकी देिि ल दकए, दफर वपत िी मर िए। ऐसी प ुंच मृत्य एुं हुईं। जब मीर कोई बत्तीस-तैंतीस

    स ल की र्ी, तब तक उसके जीिन में जो िी महत्िपूणव व्यवि रे्, सिी मर िए। वजनको िी उसने च ह र्

    और प्रेम दकय र् , िे सब मर िए। जो लोि मीर पर दकत बें वलिते हैं, िे सब वलिते हैंःः द ि वग्य से।

    मैं ऐस नहीं कह सकत । यह सौि ग्य से ही हुआ। िे वलिते हैं द ि वग्य से, क्योंदक मृत्य को सिी लोि

    द ि वग्य म नते हैं। लेदकन यही तो मीर के जन्म क क रण बन । वजतन िी प्रेम कहीं र् , िह सब वसक ित

    िय । स र प्रेम िोप ल पर उमित िय । म ुं से लि ि र् , म ुं चल बसी। उतन प्रेम जो म ुं से उलझ र् , िह

    िी िोप ल के चरणों में रि ददय । दफर ब ब ने प ल , दफर ब ब चल बसे; उनसे प्रेम र् , िह िी िोप ल के

    चरणों में रि ददय । ऐसे सुंस र छोट होत िय , वसक ित िय और परम त्म बि होत िय । तो मैं नहीं कह

    सकत द ि वग्य से; मैं तो कहुंि सौि ग्य से। क्योंदक मृत्य क मेरे वलए कोई ऐस ि ि नहीं है मृत्य के प्रवत दक

    िह कोई आिकयक रूप से अविश प है। सब त म पर वनिवर है। मीर ने उसक िीक उपयोि कर वलय । जह ुं-

    जह ुं से प्रेम उिित िय , एक-एक प्रेम-प त्र ज ने लि , िह अपने उस प्रेम को परम त्म में चढ़ ने लिी।

    अुंवतम सूत्र र् --वपत क रहन । वपत िी चल बसे। पवत िी चल बसे, वपत िी चल बसे। प ुंच मृत्य एुं

    हो िईं सतत। जित से स र सुंबुंध टूट िय । उसने िीक उपयोि कर वलय । जित से टूटते हुए सुंबुंधों को उसने

    जित के प्रवत िैर ग्य बन वलय । और जित से जो प्रेम म ि हो िय , उसको परम त्म के चरणों में चढ़ ददय ।

    िह कृष्ण के र ि में डूब िई।

    और इन मृत्य ओं ने एक और सौि ग्य क क म दकय , दक इन्होंने एक ब त ददि दी दक इस जित में सब

    क्षणिुंि र है; अिर प्य र िोजन हो तो श श्वत में िोजो। यह ुं क छ अपन नहीं है। यह ुं िरमो मत, अपने को

    िरम ओ मत, भ्रम ओ मत! यह ुं सब छूट ज ने ि ल है। यह ुं मृत्य ही मृत्य फैली है। यह मरघट है। यह ुं बसने

    के इर दे मत करो। यह ुं कोई किी बस नहीं। अपनी आुंि से देि सबको ज ते उसने। बत्तीस-तैंतीस स ल की

    उम्र कोई बिी उम्र नहीं। जि न र्ी। जि नी में इतनी मौत घटीं दक मौत क क ुंट उसे िीक-िीक स फ-स फ

    ददि ई पि िय दक जीिन क्षणिुंि र है। और तब उसक मन यह ुं से विरि हो िय । जो यह ुं से विरि है, िही

    परम त्म में अन रि हो सकत है। त म दोनों र ि एक स र् नहीं प ल सकते हो। त म दो न िों पर एक स र्

    सि र नहीं हो सकते हो।

    तो जब मैंने त मसे कह , "आओ, प्रेम की झील में नौक -विह र को चलें"--तो मैं त मसे यह कह रह हुंःः

    अब त म अपनी सुंस र की न ि से उतरो, अब परम त्म को न ि बन ओ। "आओ, पे्रम के िौरीशुंकर पर चढ़ें"--

    तो मैं त मसे यह कह रह हुंःः अपनी अुंधेरी घ टटयों से लि ि छोिो; िह ुं मृत्य के वसि य और कोई िी नहीं है।

  • 10

    वजन्हें त मने घर समझ है, िह मरघट है। वजन्हें त मने अपन समझ है, स र् हो िय है दो क्षण क र ह

    पर--सब अजनबी हैं। आज नहीं कल सब छूट ज एुंिे। त म अकेले आए हो और अकेले ज ओिे। और त म अकेले

    हो। इस जित में वसफव एक ही सुंबुंध बन सकत है--और िह सुंबुंध परम त्म से है; शेष स रे सुंबुंध बनते हैं और

    वमट ज ते हैं। स ि तो क छ ज्य द नहीं ल ते, द ि बहुत ल ते हैं। स ि की तो केिल आश रहती है; वमलत किी

    नहीं है। अन िि तो द ि ही द ि क होत है।

    ये जो प ुंच मृत्य एुं र्ीं, ये प ुंच सीदढ़य ुं बन िईं। और एक-एक मृत्य मीर को सुंस र से विम ि करती िई

    और कृष्ण के सन्म ि करती िई। इधर पीि हो िई सुंस र की तरफ--कृष्ण की तरफ म ुंह हो िय । धीरे-धीरे,

    पहले तो मीर घर में ही न चती र्ी--अपने कृष्ण की प्रवतम पर; दफर ब ढ़ की तरह उिने लि प्रेम, दफर घर

    उसे नहीं सम सक । दफर ि ुंि के मुंददरों में, स ध -सत्सुंिों में, िह ुं िी न चने लिी। दफर प्रेम इतन ब ढ़ की

    तरह आन श रू हुआ दक उसे होश-हि स न रह । िह मिन हो िई, िह तल्लीन हो िई, िह कृष्णमय हो िई।

    स्िि ितः, र जघर ने की मवहल र्ी, प्रवतवित पटरि र से र्ी, पटरि र को अिचन आई। पटरि र को

    अिचन सद आ ज ती है। सम ज में हज र तरह की ब तें चलने लिीं, क्योंदक यह लोकल ज के ब हर र्ी ब त।

    त म सोच सकते हो, र जस्र् न प ुंच सौ स ल पहले--जह ुं घूुंघट के ब हर वस्त्रय ुं नहीं आती र्ीं; वजनक चेहर

    किी लोि नहीं देिते रे्। दफर र जघर ने की तो और कटिन र्ी ब त। और िह र स्तों पर न चने लिी।

    स ध रणजनों के बीच न चने लिी। यद्यवप िह न च परम त्म के वलए र् , दफर िी घर के लोिों को तो "न च"

    न च र् ; उनको तो क छ फकव नहीं र् ।

    दफर, उसके वनकटतम जो लोि रे् िे ज च के रे्; उसक देिर िद्दी पर र् । जह ुं-जह ुं मीर उल्लेि करेिी

    दक र ण ने जहर िेज , दक र ण ने स ुंप की वपट री िेजी, दक र ण ने सेज पर क ुंटे वबछि ददए--उस र ण

    से य द रिन , उसके देिर की तरफ इश र है। उसके पवत तो चल बसे रे्। उसके देिर रे् वििम जीत हसुंह। िह

    िोधी दकस्म क य िक र् । द ि प्रकृवत क य िक र् । और उसकी यह बरद कत के ब हर र् । और उसे मीर की

    प्रवति िी बरद कत के ब हर र्ी। मीर इतनी प्रवतवित हो रही र्ी, दूर-दूर से लोि आने लिे रे्। स ध रणजन

    तो आते ही रे् उसके दशवन को; सुंत, स ध , ख्य वत-उपलब्ध लोि िी दूर-दूर से मीर की िबर स न कर आने लिे

    रे्। िह स िुंध उिने लिी र्ी। िह स िुंध कस्तूरी की तरह र्ी। वजनको िी न स प टों में र्ोि अन िि र् कस्तूरी

    की िुंध क , िे चल पिे रे्।

    यह बिी हैर नी की ब त है। देश के कोने-कोने से लोि आ रहे रे्, लेदकन पटरि र के अुंधे लोि न देि

    प ए। असल में इन लोिों क आन उन्हें और अिचन क क रण हो िय , मीर की प्रवति उनके अहुंक र को

    चोट करने लिी। जो र ण िद्दी पर र् , िह सोचत र् दक म झसे िी ऊपर कोई मेरे पटरि र में हो, यह

    बरद कत के ब हर है।

    दफर हज र बह ने वमल िए। और बह ने सब तकव य ि रे्--उनमें किी िूल नहीं िोजी ज सकती--दक यह

    स ध रणजनों में वमलने लिी है; घूुंघट उघ ि ददय है; र स्ते पर न चती है; न च में किी िस्त्रों क िी र्धय न

    नहीं रह ज त । यह अशोिन है। यह र जघर की मवहल को श ि नहीं है।

    लेदकन जो कह वनय ुं हैं िे ख्य ल में लेन । जहर िेज और मीर उसे कृष्ण क न म लेकर पी िई। और

    कहते हैं, जहर अमृत हो िय ! हो ही ज न च वहए। होन ही पिेि । इतने प्रेम से, इतने स्ि ित से अिर कोई

    जहर िी पी ले तो अमृत हो ही ज एि । और अिर त म िोध से, हहुंस से, घृण से, िैमनस्य से अमृत िी पीओ

    तो जहर हो ज एि ।

    ख्य ल रिन , ऐस इवतह स में हुआ य नहीं, म झे प्रयोजन नहीं है। मैं तो इसके िीतर की मनोिैज्ञ वनक

    घटन को त मसे कह देन च हत हुं, क्योंदक उसी क मूल्य है। अिर त म्ह र प त्र िीतर से वबल्क ल श द्ध है,

    वनमवल है, वनदोष है, तो जहर िी त म्ह रे प त्र में ज कर वनमवल और वनदोष हो ज एि । और अिर त म्ह र प त्र

  • 11

    िुंद है, कीिे-मकोिों से िर है और हज रों स ल और हज रों हजुंदिी की िुंदिी इकट्ठी है--तो अमृत िी ड लोिे

    तो जहर हो ज एि । सब क छ त म्ह री प त्रत पर वनिवर है। अुंततः वनण वयक यह ब त नहीं है दक जहर है य

    अमृत, अुंततः वनण वयक ब त यही है दक त म्ह रे िीतर वस्र्वत कैसी है। त म्ह रे िीतर जो है, िही अुंततः

    वनण वयक होत है।

    मीर ने देि ही नहीं दक जहर है। सोच ही नहीं दक जहर है। र ण ने िेज है, तो जो वमलत है, प्रि ही

    िेजने ि ल है। र ण के पीछे िी िही िेजने ि ल है। उसके अवतटरि तो कोई िी नहीं है। तो अमृत ही होि ।

    िह अमृत म न कर पी िई।

    यह म न्यत इतन फकव कर सकती है?

    त म सम्मोहनविद से पूछोिे तो िह कहेि ः ह ुं। और सम्मोहनविद ही ज नत है दक मन ष्य के मन के क म

    करने की प्रदिय क्य है।

    अिर दकसी व्यवि को सम्मोवहत कर ददय ज ए, और उसके ह र् में आि क अुंि र रि ददय ज ए और

    सम्मोवहत दश में उससे कह ज ए दक एक िुं ड कुं कि त म्ह रे ह र् में रि है, तो आि क अुंि र िी उसे

    जल त नहीं। क्योंदक उसक मन इस ब त को स्िीक र करत है दक यह िुं ड कुं कि है। अुंि र रि रहत है

    ह र् पर, और चमत्क र घटटत हो ज त है; ह र् जलत नहीं। इस पर हज रों प्रयोि हो िए हैं। इसी तरह तो

    लोि आि पर चलते हैं और जलते नहीं। िह ि ि की दश है।

    और इससे उलटी ब त िी हो ज ती है। सम्मोवहत व्यवि के ह र् में उि कर एक कुं कि रि दो--स ध रण

    कुं कि, िुंड कुं कि--और उससे कहो दक जलत हुआ कोयल रि है त म्ह रे ह र् पर! िह एकदम फेंक देि

    घबि कर। िह बेहोश है। िह एकदम फेंक देि घबि कर। और चमत्क र तो यह है दक उसके ह र् पर फफोल

    आ ज एि ; जैसे दक िह जल िय । जलने के पूरे लक्षण हो ज एुंिे।

    इन घटन ओं में, जो सुंतों के जीिन में िरी पिी हैं, मैं इसी मनोिैज्ञ वनक सत्य की उदघोषण देित हुं।

    मीर ने स्िीक र कर वलय जहर अमृत की तरह, तो अमृत हो िय ।

    त म जैस जित को स्िीक र कर लोिे, िैस ही हो ज त है। यह जित त म्ह री स्िीकृवत से वनर्मवत है।

    यह जित त म्ह री दृवि क फैल ि है।

    स ुंप एक वपट री में रि कर िेज ददय --जहरील स ुंप--उसने वपट री िोली और उसे तो स ुंिले कृष्ण

    ही ददि ई पिे। उसने उि कर उन्हें िले से लि वलय । उस स ुंप ने मीर को क ट नहीं। स ुंप इतने अिद्र होते

    िी नहीं वजतन मन ष्य होत है। स ुंप इतने जि होते िी नहीं वजतन मन ष्य होत है। मीर क उसे प्रेम से

    अपने िले से लि लेन स ुंप को िी समझ में आ िय होि दक यह ुं कोई शत्र नहीं, वमत्र है। स ुंप िी तिी

    हमल करत है जब कोई शत्र हो; जो कोई चोट पहुुंच ने को उत्स क हो, तिी हमल करत है, नहीं तो हमल

    नहीं करत । हमल तो स रक्ष के वलए है, आत्मरक्ष के वलए है। स ुंप को त मसे कोई द कमनी नहीं है, त म किी

    स ुंप पर पैर रि दो य म रने की इच्छ करो--तो। और तब तो लोि कहते हैं दक स ुंप ऐस होत है दक अिर

    एक दफे त मने उससे द कमनी ले ली, तो हजुंदिी िर त मसे बदल लेने की कोवशश करत है; िूलत ही नहीं।

    उसकी स्मृवत बिी मजबूत है। लेदकन मीर ने जब उसे प्रेम से िले लि वलय होि , तो उस तरुंि को उसने िी

    समझ होि ; उस प्रेम में िह िी डूब होि । इस स्त्री को क ट नहीं ज सकत ।

    समझ लें, दफर से दोहर दूुं, इवतह स से म झे प्रयोजन नहीं है। इवतह स से िी ज्य द मूल्यि न है इन

    घटन ओं के पीछे वछप हुआ मनस-तत्ि। क्योंदक िही त म समझोिे तो क म क है। और चमत्क र िी इनमें क छ

    नहीं है। ये चमत्क र ददि ई पिते हैं, क्योंदक इनके पीछे क वनयम हम री समझ में नहीं आत । वनयम सीध -

    स फ हैः त म जैसे हो, करीब-करीब यह जित त म्ह रे वलए िैस ही हो ज त है। त म अिर प्रेमपूणव हो तो प्रेम

    की प्रवतर्धिवन उिती है। और त मने अिर परम त्म को सि ंि मन से स्िीक र कर वलय है, सि ंिीण रूप से--तो

    दफर इस जित में कोई, कोई ह वन त म्ह रे वलए नहीं है।

  • 12

    लेदकन यह ब त बहुत घटी और उसक मीर क रहन ि ुंि में म वककल हो िय , तो उसने र जस्र् न

    छोि ददय । िह िृुंद िन चली िई। अपने प्य रे की बस्ती में चलें--उसने सोच । कृष्ण के ि ुंि चली िई। लेदकन

    िह ुं िी झुंझटें श रू हो िईं। क्योंदक कृष्ण तो अब िह ुं नहीं रे्। कृष्ण के ि ुंि पर पुंवडतों क कब्ज र् --ब्र ह्मण,

    पुंवडत-प रोवहत।

    बिी प्य री घटन है। जब मीर िृुंद िन के सबसे प्रवतवित मुंददर में पहुुंची तो उसे दरि जे पर रोकने की

    कोवशश की िई, क्योंदक उस मुंददर में वस्त्रयों क प्रिेश वनवषद्ध र् । क्योंदक उस मुंददर क जो महुंत र् , िह

    वस्त्रय ुं नहीं देित र् ; िह कहत र् ः ब्रह्मच री को स्त्री नहीं देिनी च वहए। तो िह वस्त्रय ुं नहीं देित र् ।

    मीर स्त्री र्ी। तो रोकने की व्यिस्र् की िई र्ी। लेदकन जो लोि रोकने द्व र पर ििे रे्, िे ढकुं कतवव्यविमूढ़ हो

    िए। जब मीर न चती हुई आई, अपने ह र् में अपन एकत र वलए बज ती हुई आई, और जब उसके पीछे

    ििों क हुजूम आय , और शर ब छलकती च रों तरफ, और सब मदमस्त। उस मस्ती में िे जो द्व रप ल ििे रे्,

    िे िी टििक कर ििे हो िए। िे िूल ही िए दक रोकन है। तब तक तो मीर िीतर प्रविि हो िई। हि की

    लहर र्ी एक--िीतर प्रविि हो िई, पहुुंच िई बीच मुंददर में। प ज री तो घबि िय । प ज री पूज कर रह र्

    कृष्ण की। उसके ह र् से र् ल विर िय । उसने िषों से स्त्री नहीं देिी र्ी। इस मुंददर में स्त्री क वनषेध र् । यह

    स्त्री यह ुं िीतर कैसे आ िई?

    अब त म र्ोि सोचन । द्व र पर ििे द्व रप ल िी डूब िए ि ि में, प ज री न डूब सक ! नहीं, प ज री इस

    जित में सबसे ज्य द अुंधे लोि हैं। और पुंवडतों से ज्य द जिब वद्ध िोजने कटिन हैं। द्व र पर ििे द्व रप ल िी

    डूब िए इस रस में। यह जो मदम ती, यह जो अलमस्त मीर आई, यह जो लहर आई--इसमें िे िी िूल िए--

    क्षण िर को िूल ही िए दक हम र क म क्य है। य द आई होिी, तब तक तो मीर िीतर ज च की र्ी। िह तो

    वबजली की कौंध र्ी। तब तक तो एकत र उसक िीतर बज रह र् , िीि िीतर चली िई र्ी। जब तक उन्हें

    होश आय , तब तक तो ब त चूक िई र्ी। लेदकन पुंवडत नहीं डूब । कृष्ण के स मने मीर आकर न च रही है,

    लेदकन पुंवडत नहीं डूब । उसने कह ः ऐ औरत! त झे समझ है दक इस मुंददर में स्त्री क वनषेध है?

    मीर ने स न । मीर ने कह ः मैं तो सोचती र्ी दक कृष्ण के अवतटरि और कोई प रुष है नहीं। तो त म िी

    प रुष हो? मैं तो कृष्ण को ही बस प रुष म नती हुं, और तो स र जित उनकी िोपी है; उनके ही स र् र स चल

    रह है। तो त म िी प रुष हो? मैंने सोच नहीं र् दक दो प रुष हैं। तो त म प्रवतयोिी हो?

    िह तो घबि िय । पुंवडत तो समझ नहीं दक अब क्य उत्तर दे! पुंवडतों के प स बुंधे हुए प्रश्नों के उत्तर

    होते हैं। लेदकन यह प्रश्न तो किी इस तरह उि ही नहीं र् । दकसी ने पूछ ही नहीं र् । यह तो किी दकसी ने

    मीर के पहले कह ही नहीं र् दक दूसर िी कोई प रुष है, यह तो हमने स न ही नहीं। त म िी बिी अजीब

    ब त कर रहे हो! त मको यह िहम कह ुं से हो िय ? एक कृष्ण ही प रुष हैं, ब की तो सब उसकी प्रेयवसय ुं हैं।

    लेदकन अिचनें श रू हो िईं। इस घटन के ब द मीर को िृुंद िन में नहीं टटकने ददय िय । सुंतों के स र्

    हमने सद द व्यविह र दकय है। मर ज ने पर हम पूजते हैं; जीवित हम द व्यविह र करते हैं। मीर को िृुंद िन िी

    छोि देन पि । दफर िह द्व टरक चली िई।

    िषों के ब द र जस्र् न की र जनीवत बदली, र ज बदल , र ण स ुंि क सबसे छोट बेट र ज

    उदयहसुंह मेि ि की िद्दी पर बैि । िह र ण स ुंि क बेट र् और र ण प्रत प क वपत । उदयहसुंह को बि

    ि ि र् मीर के प्रवत। उसने अनेक सुंदेशि हक िेजे दक मीर को ि पस वलि ल ओ। यह हम र अपम न है।

    यह र जस्र् न क अपम न है दक मीर ि ुंि-ि ुंि िटके, यह ुं-िह ुं ज ए। यह ल ुंछन हम पर सद रहेि । उसे

    वलि ल ओ। िह ि पस लौट आए। हम िूल-चूकों के वलए क्षम च हते हैं। जो अतीत में हुआ, हुआ।

    िए लोि, पुंवडतों को िेज , प रोवहतों को िेज , समझ ने-ब झ ने; लेदकन मीर सद समझ कर कह देती

    दक अब कह ुं आन -ज न ! अब इस प्र ण-प्य रे के मुंददर को छोि कर कह ुं ज एुं!

    िह रणछोिद सजी के मुंददर में द्व टरक में मस्त र्ी।

  • 13

    दफर तो उदयहसुंह ने बहुत कोवशश की, एक सौ आदवमयों क जत्र् िेज , और कह दक दकसी िी तरह

    ले आन , न आए तो धरन दे देन ; कहन दक हम उपि स करेंिे। िहीं मुंददर पर बैि ज न ।

    और उन्होंने धरन दे ददय । उन्होंने कह दक चलन ही होि , नहीं तो हम यहीं मर ज एुंिे।

    तो मीर ने कह ः दफर ऐस है, चलन ही होि , तो मैं ज कर अपने प्य रे को पूछ लूुं। उनकी वबन आज्ञ

    के तो न ज सकूुं िी। तो रणछोिद सजी को पूछ लूुं!

    िह िीतर िई। और कर् बिी प्य री है और बिी अदि त और बिी बहुमूल्य! िह िीतर िई और कहते

    हैं, दफर ब हर नहीं लौटी! कृष्ण की मूर्तव में सम िई!

    यह िी ऐवतह वसक तो नहीं हो सकती ब त। लेदकन होनी च वहए। क्योंदक अिर मीर कृष्ण की मूर्तव में

    न सम सके तो दफर कौन सम एि ! और कृष्ण को अपने में इतन सम य , कृष्ण इतन िी न करेंिे दक उसे

    अपने में सम लें! तब तो दफर िवि क स र िवणत ही टूट ज एि । दफर तो िि क िरोस ही टूट ज एि ।

    मीर ने कृष्ण को इतन अपने में सम य , अब क छ कृष्ण क िी तो द वयत्ि है! िह आविरी घिी आ िई

    मह सम वध की! मीर ने कह होि ः य तो अपने में सम लो म झे, य मेरे स र् चल पिो, क्योंदक अब ये लोि

    िूिे बैिे हैं, अब म झे ज न ही पिेि ।

    िह आविरी घिी आ िई, जब िि ििि न हो ज त है। यही प्रतीक है उस कर् में दक मीर दफर नहीं

    प ई िई। मीर कृष्ण की मूर्तव में सम िई। अुंततः िि ििि न में सम ही ज त है।

    र्धय न रिन , इसे तथ्य म न कर सोचने मत बैि ज न । यह सत्य है और सत्य तथ्यों से बहुत विन्न होते

    हैं। सत्य तथ्यों से बहुत ऊपर होते हैं। तथ्यों में रि ही क्य है? दो कौिी की ब तें हैं। तथ्य सीम नहीं है सत्य

    की। तथ्य तो आदमी की छोटी सी ब वद्ध से जो समझ में आत है, उतने सत्य क ट कि है; सत्य बहुत बि है।

    म झसे पूछो तो मैं कहुंि ः ऐस हुआ। होन ही च वहए; नहीं तो िि क िरोस िलत हो ज एि । मीर

    ने यही कह होि ः अब क्य इर दे हैं? अब मैं ज ऊुं ? और अब ज ऊुं कह ुं? य तो मेरे स र् चलो, य म झे अपने

    स र् ले लो।

    इकब ल क एक पद हैः

    तू है म हीते-बेकर ुं, मैं हुं जर सी आबजू

    य म झे हमदकन र कर य म झे बेदकन र कर

    कह हैः

    तू है म हीते-बेकर ुं...

    तू तो स िर है असीम। म हीते-बेकर ुं! तेर कोई दकन र नहीं है, ऐस स िर है तू।

    तू है म हीते-बेकर ुं, मैं हुं जर सी आबजू

    और मैं हुं एक छोट स झरन य छोटी सी नदी।

    य म झे हमदकन र कर...

    य तो म झे अपने स र् दौिने दे--सम न ुंतर, िलब ुंही ड ल कर।

    य म झे हमदकन र कर य म झे बेदकन र कर

    य म झे अपने में सम ले और म झे िी असीम बन दे। अिर सीवमत रिन हो तो म झे स र्-स र् दौिने

    दे; जह ुं तू ज ए, मैं चलूुं। और अिर यह असुंिि हो, क्योंदक तू असीम है और मैं सीवमत, कैसे तेरे स र् दौि

    प ऊुं िी; तू विर ट, मैं क्ष द्र, तो कैसे तेरे स र् दौि प ऊुं िी, कह ुं तक दौि प ऊुं िी!

    ... मैं हुं जर सी आबजू

    मैं तो एक छोट स झरन हुं, जल्दी सूि ज ऊुं िी, दकसी मरुस्र्ल में िो ज ऊुं िी! तेरे स र् कैसे दौि

    प ऊुं िी? तो दफर दूसर उप य यह हैः

    य म झे हमदकन र कर य म झे बेदकन र कर

  • 14

    य तो दकन रे पर स र् लि ले और य दफर म झे अपने में ड ब ले, म झे िी असीम बन ले।

    ऐस ही मीर ने कह होि ः

    तू है म हीते-बेकर ुं, मैं हुं जर सी आबजू

    य म झे हमदकन र कर य म झे बेदकन र कर

    और कृष्ण ने उसे बेदकन र कर ददय । क्योंदक हमदकन र तो दकय नहीं ज सकत । छोट स झरन कैसे

    स िर के स र् दौिेि ! कह ुं तक दौिेि ! र्क ज एि , टूट ज एि , उिि ज एि , सूि ज एि । यह तो नहीं हो

    सकत । मीर को बेदकन र कर ददय --अपने में ले वलय ।

    मेरे ददल को दोस्त ने ल ल ज र कर ददय

    ये विज ुंजद चमन प रबह र कर ददय

    देिते ही देिते बके-शोल प श को

    इक वनि हे-ल त्फ से आबश र कर ददय

    अब म झे ददय ददि मौत से परे है क्य

    हजुंदिी क र ज सब आशक