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"बालमित्रों, तुम खरीदारी क रने तो जाते ही हांेगे। खरीदारी क रने में कि तना मज़ा आता है! सब नई-नई चीज़ें खरीदने क ो मिलती हैं। तब हमें ऐसा विचार भी आ जाता है कि , दुकनदार क ो कि तना अच्छा है! उसे जब चाहिए तब, सभी चीज़ें घर बैठे ही मिल जाती हैं।! ठीक है न? परम पूज्य दादाश्री हमेशा कहते थे, अपनी जिस चीज़ की दुकान हो, वह चीज़ हमें बाहर से खरीदकर नहीं लानी पड़ती। उसी तरह, जब हम सुख की दुकान खोल दें तो हमें सुख की कभी कमी नहीं पड़ती। सुख की दुकान का मतलब क्या है? वह किस तरह खोलें? उसके क्या फायदंे हैं? इसकी सुंदर समझ इस अंक में दी है। तो चलो, इसे पढ़कर हम भी सुख की दुकान खोलते हैं और घर बैठे सुख पाएँ। " सुख की दुकान | June 2012 | अक्रम एक्सप्रेस
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