Kishore Karuppaswamy · Web viewप र मच द ब हन : 3 ब द दरव ज : 10 त...

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पे्रमचंद

बोहनी : 3बंद दरवाजा : 10ति रसूल : 12स्वांग : 28सैलानी बंदर : 41

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बोहनी

स दिदन जब मेरे मकान के सामने सड़क की दूसरी रफ एक पान की दुकान खुली ो मैं बाग-बाग हो उठा। इधर एक फला(ग क पान की कोई दुकान न थी और मुझे

सड़क के मोड़ क कई चक्कर करने पड़ े थे। कभी वहां कई-कई मिमनट क दुकान के सामने खड़ा रहना पड़ ा था। चौराहा है, गाहकों की हरदम भीड़ रह ी है। यह इन् जार मुझको बहु बुरा लग ा थां पान की ल मुझे कब पड़ी, और कैसे पड़ी, यह ो अब याद नहीं आ ा लेतिकन अगर कोई बना-बनाकर तिगलौरिरयां दे ा जाय ो शायद मैं कभी इन्कार न करंू। आमदनी का बड़ा तिहस्सा नहीं ो छोटा तिहस्सा जरूर पान की भेंट चढ़ जा ा है। कई बार इरादा तिकया तिक पानदान खरीद लूं लेतिकन पानदान खरीदना कोई खला जी का घर नहीं और तिफर मेरे लिलए ो हाथी खरीदने से तिकसी रह कम नहीं है। और मान लो जान पर खेलकर एक बार खरीद लूं ो पानदान कोई परी की थैली ो नहीं तिक इधर इच्छा हुई और तिगलोरिरयां तिनकल पड़ीं। बाजार से पान लाना, दिदन में पांच बार फेरना, पानी से र करना, सडे़ हुए टुकड़ों को राश्कर अलग करना क्या कोई आसान काम है! मैंने बडे़ घरों की और ों को हमेशा पानदान की देखभाल और प्रबन्ध में ही व्यस् पाया है। इ ना सरददG उठाने की क्षम ा हो ी ो आज मैं भी आदमी हो ा। और अगर तिकसी हर यह मुश्किश्कल भी हल हो जाय ो सुपाड़ी कौन काटे? यहां ो सरौ े की सूर देख े ही कंपकंपी छूटने लग ी है। जब कभी ऐसी ही कोई जरूर आ पड़ी, जिजसे टाला नहीं जा सक ा, ो लिसल पर बटे्ट से ोड़ लिलया कर ा हंू लेतिकन सरौ े से काम लूं यह गैर-मुमतिकन। मुझे ो तिकसी को सुपाड़ी काट े देखकर उ ना ही आश्चयG हो ा है जिज ना तिकसी को लवार की धार पर नाच े देखकर। और मान लो यह मामला भी तिकसी रह हल हो जाय, ो आखिखरी मंजिजल कौन फ ह करे। कत्था और चूना बराबर लगाना क्या कोई आसान काम है? कम से कम मुझे ो उसका ढंग नहीं आ ा। जब इस मामले में वे लोग रोज गलति यां कर े हैं ो इस कला में दक्ष हैं ो मैं भला तिकस खे की मूली हंू। मोली ने अगर चूना ज्यादा कर दिदया ा कत्था और ले लिलया, उस पर उसे एक डांट भी ब ायी, आंसू पंूछ गये। मुसीब का सामना ो उस वक्त हो हो ा है, जब तिकसी दोस् के घर जायँ। पान अन्दर से आयी ो इसके लिसवाय तिक जान-बूझकर मक्खी तिनगलें, समझ-बूझकर जहर का घूंट गले से नीचे उ ारें और चारा ही क्या है। लिशकाय नहीं कर सक े, सभ्य ा बाधक हो ी है। कभी-कभी पान मुंह में डाल े ही ऐसा मालूम हो ा है, तिक जीभ पर कोई लिचनगारी पड़ गयी, गले से लेकर छा ी क तिकसी ने पारा गरम करके उडे़ल दिदया, मगर घुटकर रह जाना पड़ ा है। अन्दाजे में इस हद क गल ी हो जाय यह ो समझ में आने वाली बा नहीं। मैं लाख अनाड़ी हंू लेतिकन कभी इ ना ज्यादा चूना नहीं डाल ा,हां दो-चार छाले पड़ जा े हैं। ो मैं समझ ा हंू, यही अन् :पुर के कोप की अभिभव्यलिक्त है। आखिखर वह आपकी ज्यादति यों का प्रोटेस्ट क्यों कर करें। खामोश बायकाट

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से आप राजी नहीं हो े, दूसरा कोई हलिथयार उनके हाथ में है नही। भंवों की कमान और बरौतिनयों का नेजा और मुस्कराहट का ीर उस वक्त तिबलकुल कोई असर नहीं कर े जब आप आंखें लाल तिकये, आस् ीनें समेटे इसलिलए आसमान सर पर उठा ले े हैं तिक नाश् ा और पहले क्यों नहीं ैयार हुआ, ब सालन में नमक और पान में चूना ज्यादा कर देने के लिसवाय बदला लेने का उनके हाथ में और क्य साधन रह जा ा है!

खैर, ीन-चार दिदन के बाद एक दिदन मैं सुबह के वक्त म्बोलिलन की दुकान पर गया ो उसने मेरी फरमाइश पूरी करने में ज्यादा मुस् ैदी न दिदखलायी। एक मिमनट क ो पान फेर ी रही, तिफर अन्दर चली गयी और कोई मसाला लिलये हुए तिनकली। मैं दिदल में खुश हुआ तिक आज बडे़ तिवमिधपूवGक तिगलौरिरयां बना रही है। मगर अब भी वह सड़क की ओर प्र ीक्षा की आंखों से ाक रही थी तिक जैसे दुकान के सामने कोई ग्राहक ही नहीं और ग्राहक भी कैसा, जो उसका पड़ोसी है और दिदन में बीलिसयों ही बार आ ा है! ब ो मैंने जरा झुंझलाकर कहा—मैं तिक नी देर से खड़ा हंू, कुछ इसकी भी खबर है?

म्बोलिलन ने क्षमा-याचना के स्वर में कहा—हां बाबू जी, आपको देर ो बहु हुई लेतिकन एक मिमनट और ठहर जाइए। बुरा न मातिनएगा बाबू जी, आपके हाथकी बोहनी अच्छी नहीं है। कल आपकी बोहनी हुई थी, दिदन में कुल छ: आने की तिबक्री हुई। परसो भी आप ही की बोहनी थी, आठ आने के पैसे दुकान में आये थे। इसके पहले दो दिदन पंतिड जी की बोहनी हुई थी, दोपहर क ढाई रूपये आ गये थे। कभी तिकसी का हाथ अच्छा नहीं हो ा बाबू जी!

मुझे गोली-सी लगी। मुझे अपने भाग्यशाली होने का कोई दवा नहीं है, मुझसे ज्यादा अभागे दुतिनया में नहीं होंगे। इस साम्राज्य का अगर में बादशाह नहीं, ो कोई ऊंचा मंसबदार जरूर हंू। लेतिकन यह मैं कभी गवारा नहीं कर सक ा तिक नहूस का दाग बदाGश् कर लूं। कोई मुझसे बोहनी न कराये, लोग सुबह को मेरा मुंह देखना अपशकुन समझे, यह ो घोर कलंक की बा है।

मैंने पान ो ले लिलया लेतिकन दिदल में पक्का इरादा कर लिलया तिक इस नहूस के दाग को मिमटाकर ही छोडंूगा। अभी अपने कमरे में आकर बैठा ही था तिक मेरे एक दोस् आ गये। बाजार साग-भाजी जेने जा रहे थे। मैंने उनसे अपनी म्बोलिलन की खूब ारीफ की। वह महाशय जरा सैंदयG-पे्रमी थे और मजातिकया भी। मेरी ओर शरार -भरी नजरों से देखकर बोलग—इस वक्त ो भाई, मेरे पास पैसे नहीं हैं और न अभी पानों की जरूर ही है। मैंने कहा—पैसे मुझसे ले लो।

‘हां, यह मंजूर है, मगर कभी काजा म करना।‘‘यह ो टेढ़ी खीर है।‘‘ ो क्या मुफ् में तिकसी की आंख में चढ़ना चाह े हो?’मजबूर होकर उन हजर को एक ढोली पान के दाम दिदये। इसी रह जो मुझसे

मिमलने आया, उससे मैंने म्बोलिलन का बखान तिकया। दोस् ों ने मेरी खूब हंसी उड़ायी, मुझ

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पर खूब फबति यां कसीं, मुझे ‘लिछपे रुस् म’, ‘भग जी’ और न जाने क्या-क्या नाम दिदये गये लेतिकन मैंने सारी आफ ें हंसकर टालीं। यह दाग मिमटाने की मुझे धुन सवार हो गयी।

दूसरे दिदन जब मैं म्बोलिलन की दुकान पर गया ो उसने फौरन पान बनाये और मुझे दे ी हुई बोली—बाबू जी, कल ो आपकी बोहनी बहु अच्छी हुई, कोई साढे ीन रुपये आये। अब रोज बोहनी करा दिदया करो।

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न-चार दिदन लगा ार मैंने दोस् ों से लिसफारिरशें कीं, म्बोलिलन की स् ुति गायी और अपनी तिगरह से पैसे खचG करके सुखGरुई हालिसल की। लेतिकन इ ने ही दिदनों में मेरे

खजाने में इ नी कमी हो गयी तिक खटकने लगी। यह स्वांग अब ज्यादा दिदनों क न चल सक ा था, इसलिलए मैंने इरादा तिकया तिक कुद दिदनों उसकी दुकान से पान लेना छोड़ दंू। जब मेरी बोहनी ही न होगी, ो मुझे उसकी तिबक्री की क्या तिफक्र होगी। दूसरे दिदन हाथ-मुंह धोकर मैंने एक इलायची खा ली और अपने काम पर लग गया। लेतिकन मुश्किश्कल से आधा घण्टा बी ा हो, तिक तिकसी की आहट मिमली। आंख ऊपर को उठा ा हंू ो म्बोलिलन तिगलौरिरयां लिलये सामने खड़ी मुस्करा रही है। मुझे इस वक्त उसका आना जी पर बहु भारी गुजरा लेतिकन इ नी बेमुरौव ी भी ो न हो सक ी थी तिक दुत्कार दंू। बोला— ुमने नाहक कलीफ की, मैं ो आ ही रहा था।

म्बोलिलन ने मेरे हाथ में तिगलौरिरयां रखकर कहा—आपको देर हुई ो मैंने कहा मैं ही चलकर बोहनी कर आऊं। दुकान पर ग्राहक खडे़ हैं, मगर तिकसी की बोहनी नहीं की।

क्या कर ा, तिगलौरिरया खायीं और बोहनी करायी। जिजस लिचन ा से मुलिक्त पाना चाह ा था, वह फर फन्दे की रह गदGन पर लिचपटी हुई थी। मैंने सोचा था, मेरे दोस् दो-चार दिदन क उसके यहां पान खायेंगे ो आपही उससे तिहल जायेंगे और मेरी लिसफारिरश की जरूर न रहेगी। मगर म्बोलिलन शायद पान के साथ अपने रूप का भी कुछ मोल कर ी थी इसलिलए एक बार जो उसकी दुकान पर गया, दुबारा न गया। एक-दो रलिसक नौजवान अभी क आ े थे, वह लोग एक ही हंसी में पान और रूप-दशGन दोनों का आनन्द उठाकर चल े बने थे। आज मुझे अपनी साख बनाये रखने के लिलए तिफर पूरे डेढ़ रुपये खचG करने पडे़, बमिधया बैठ गयी।

दूसरे दिदन मैंने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिलया, मगर जब म्बोलिलन ने नीचे से चीखना, लिचल्लाना और खटखटाना शूरू तिकया ो मजबूरन दरवाजा खोलना पड़ा। आंखें मल ा हुआ नीचे गया, जिजससे मालूम हो तिक आज नींद आ गयी थी। तिफर बोहनी करानी पड़ी। और तिफर वही बला सर पर सवार हुई। शाम क दो रुपये का सफाया हो गया। आखिखर इस तिवपभिf से छुटकारा पाने का यही एक उपाय रह गया तिक वह घर छोड़ दंू।

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ने वहां से दो मील पर एक अनजान मुहल्ले में एक मकान ठीक तिकया और रा ो-रा असबाब उठवाकर वहां जा पहुंचा। वह घर छोड़कर मैं जिज ना खुश हुआ शायद कैदी

जेलखाने से भी तिनकलकर उ ना खुश न हो ा होगा। रा को खूब गहरी नींद सोया, सबेरा हुआ ो मुझे उस पंछी की आजादी का अनुभव हो रहा था जिजसके पर खुल गये हैं। बडे़ इत्मीनान से लिसगरेट तिपया, मुंह-हाथ धोया, तिफर अपना सामान ढंग से रखने लगा। खाने के लिलए तिकसी होटल की भी तिफक्र थी, मगर उस तिहम्म ोड़नेवाली बला से फ ेह पाकह मुझे जो खुशी हो रही थी, उसके मुकाबले में इन लिचन् ाओं की कोई तिगन ी न थी। मुंह-हाथ धोकर नीचे उ रा। आज की हवा में भी आजादी का नशा थां हर एक चीज मुस्करा ी हुई मालूम हो ी थी। खुश-खुश एक दुकान पर जाकर पान खाये और जीने पर चढ़ ही रहा था तिक देखा वह म्बोलिलन लपकी जा रही है। कुछ न पूछो, उस वक्त दिदल पर क्या गुजरी। बस, यही जी चाह ा था तिक अपना और उसका दोनों का लिसर फोड़ लूं। मुझे देखकर वह ऐसी खुश हुई जैसे कोई धोबी अपना खोया हुआ गधा पा गया हो। और मेरी घबराहट का अन्दाजा बस उस गधे की दिदमागी हाल से कर लो! उसने दूर ही से कहा—वाह बाबू जी, वाह, आप ऐसा भागे तिक तिकसी को प ा भी न लगा। उसी मुहल्ले में एक से एक अचे्छ घर खाली हैं। मुझे क्या मालूम था तिक आपको उस घर में कलीफ थी। नहीं ो मेरे तिपछवाडे़ ही एक बडे़ आराम का मकान था। अब मैं आपको यहां न रहने दंूगी। जिजस रह हो सकेगा, आपको उठा ले जाऊंगी। आप इस घर का क्या तिकराया दे े हैं?

मैं

मैंने रोनी सूर बना कर कहा—दस रुपये।मैंने सोचा था तिक तिकराया इ ना कम ब ाऊं जिजसमें यह दलील उसके हाथ से तिनकल

जाय। इस घर का तिकराया बीस रुपये हैं, दस रुपये में ो शायद मरने को भी जगह न मिमलेगी। मगर म्बोलिलन पर इस चकमे का कोई असर न हुआ। बोली—इस जरा-से घर के दस रुपये! आप आठा ही दीजिजयेगा और घर इससे अच्छा न हो ो जब भी जी चाहे छोड़ दीजिजएगा। चलिलए, मैं उस घर की कंुजी ले ी आई हंू। इसी वक्त आपको दिदखा दंू।

मैंने त्योरी चढ़ा े हुए कहा—आज ही ो इस घर में आया हंू, आज ही छोड़ कैसे सक ा हंू। पेशगी तिकराया दे चुका हंू।

म्बोलिलन ने बड़ी लुभावनी मुस्कराहट के साथ कहा—दस ही रुपये ो दिदये हैं, आपके लिलए दस रुपये कौन बड़ी बा हैं यही समझ लीजिजए तिक आप न चले ो मैं उजड़ जाऊंगी। ऐसी अच्छी बोहनी वहां और तिकसी की नहीं है। आप नहीं चलेंगे ो मैं ही अपनी दुकान यहां उठा लाऊंगी।

मेरा दिदल बैठ गया। यह अच्छी मुसीब गले पड़ी। कहीं सचमुच चुडै़ल अपनी दुकान न उठा लाये। मेरे जी में ो आया तिक एक फटकार ब ाऊं पर जबान इ नी बेमुरौव न हो

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सकी। बोला—मेरा कुछ ठीक नहीं है, कब क रहंू, कब क न रहंू। आज ही बादला हो जाय ो भागना पडे़। ुम न इधर की रहो, न उधर की।

उसने हसर -भरे लहजे में कहा—आप चले जायेंगे ो मैं भी चली जाऊंगी। अभी आज ो आप जा े नहीं।

‘मेरा कुछ ठीक नहीं है।’‘ ो मैं रोज यहां आकर बोहनी करा लिलया करंुगी।’‘इ नी दूर रोज आओगी?’‘हां चली आऊंगी। दो मीन ही ो है। आपके हाथ की बोहनी हो जायेगी। यह

लीजिजए तिगलौरिरयां लाई हंू। बोहनी ो करा दीजिजए।’मैंने तिगलौरिरयां लीं, पैसे दिदये और कुछ गश की-सी हाल में ऊपर जाकर चारपाई

पर लेट गया।अब मेरी अक्ल कुछ काम नहीं कर ी तिक इन मुसीब ों से क्यों कर गला छुड़ाऊं।

ब से इसी तिफक्र में पड़ा हुआ हंू। कोई भागने की राह नजर नहीं आ ी। सुखGरू भी रहना चाह ा हंू, बेमुरौव ी भी नहीं करना चाह ा और इस मुसीब से छुटकारा भी पाना चाह ा हंू। अगर कोई साहब मेरी इस करुण स्थिkति पर मुझे ऐसा कोई उपाय ब ला दें ो जीवन-भर उसका कृ ज्ञ रहंूगा।

—‘पे्रमचालीसा’ से

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बन्द दरवाजा

रज भिक्षति ज की गोद से तिनकला, बच्चा पालने से—वही स्निस्नग्ध ा, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी।

सूमैं बरामदे में बैठा था। बचे्च ने दरवाजे से झांका। मैंने मुस्कराकर पुकारा। वह मेरी

गाद में आकर बैठ गया।उसकी शरार ें शुरू हो गईं। कभी कलम पर हाथ बढ़ाया, कभी कागज पर। मैंने

गोद से उ ार दिदया। वह मेज का पाया पकडे़ खड़ा रहा। घर में न गया। दरवाजा खुला हुआ था।

एक लिचतिड़या फुदक ी हुई आई और सामने के सहन में बैठ गई। बचे्च के लिलए मनोरंजन का यह नया सामान था। वह उसकी रफ लपका। लिचतिड़या जरा भी न डरी। बचे्च ने समझा अब यह परदार खिखलौना हाथ आ गया। बैठकर दोनों हाथों से लिचतिड़या को बुलाने लगा। लिचतिड़या उड़ गई, तिनराश बच्चा रोने लगा। मगर अन्दर के दरवाजे की रफ ाका भी नहीं। दरवाजा खुला हुआ था।

गरम हलवे की मीठी पुकार आई। बचे्च का चेहरा चाव से खिखल उठा। खोंचेवाला सामने से गुजरा। बचे्च ने मेरी रफ याचना की आंखों से देखा। ज्यों-ज्यों खोंचेवाला दूर हो ा गया, याचना की आंखें रोष में परिरवर्ति s हो ी गईं। यहां क तिक जब मोड़ आ गया और खोंचेवाला आंख से ओझल हो गया ो रोष ने पुर जोर फरिरयाद की सूर अस्थिt यार की। मगर मैं बाजर की चीजें बच्चों को नहीं खाने दे ा। बचे्च की फरिरयाद ने मुझ पर कोई असर न तिकया। मैं आगे की बा सोचकर और भी न गया। कह नहीं सक ा बचे्च ने अपनी मां की अदाल में अपील करने की जरूर समझी या नहीं। आम ौर पर बचे्च ऐसी हाल ों में मां से अपील कर े हैं। शायद उसने कुछ देर के लिलए अपील मुल् बी कर दी हो। उसने दरवाजे की रफ रूख न तिकया। दरवाजा खुला हुआ था।

मैंने आंसू पोंछने के खयाल से अपना फाउण्टेनपेन उसके हाथ में रख दिदया। बचे्च को जैसे सारे जमानकी दौल मिमल गई। उसकी सारी इंदिuयां इस नई समस्या को हल करने में लग गई। एकाएक दरवाजा हवा से खुद-ब-खुद बन्द हो गया। पट की आवाज बचे्च के कानों में आई। उसने दरवाजे की रफ देखा। उसकी वह व्यस् ा त्क्षण लुप् हो गई। उसने फाउण्टेनपेन को फें क दिदया और रो ा हुआ दरवाजे की रपु चला क्योंतिक दरवाजा बन्द हो गया था।

—‘पे्रमचालीसा’ से

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ति�रसूल

धेरी रा है, मूसलाधार पानी बरस रहा है। खिखड़तिकयों पर पानीके थप्पड़ लग रहे हैं। कमरे की रोशनी खिखड़की से बाहर जा ी है ो पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें ीरों की रह

नोकदार, लम्बी, मोटी, तिगर ी हुई नजर आ जा ी हैं। इस वक्त अगर घर में आग भी लग जाय ो शायद मैं बाहर तिनकलने की तिहम्म न करंू। लेतिकन एक दिदन जब ऐसी ही अंधेरी भयानक रा के वक्त मैं मैदान में बन्दूक लिलये पहरा दे रहा था। उसे आज ीस साल गुजर गये। उन दिदनों मैं फौज में नौकर था। आह! वह फौजी जिजन्दगी तिक ने मजे से गुजर ी थी। मेरी जिजन्दगी की सबसे मीठी, सबसे सुहानी यादगारें उसी जमाने से जुड़ी हुई हैं। आज मुझे इस अंधेरी कोठरी में अखबारों के लिलए लेख लिलख े देखकर कौन समझेगा तिक इस नीमजान, झुकी हुई कमरवाले खस् ाहाल आदमी में भी कभी हौसला और तिहम्म और जोश का दरिरया लहरे मार ा था। क्या-क्या दोस् थे जिजनके चेहरों पर हमेशा मुसकराहट नाच ी रह ी थी। शेरदिदल रामसिसsह और मीठे गलेवाले देवीदास की याद क्या कभी दिदल से मिमट सक ी है? वह अदन, वह बसरा, वह मिमस्त्र; बस आज मेरे लिलए सपने हैं। यथाथG है ो यह ंग कमरा और अखबार का दफ् र।

अं

हां, ऐसी ही अंधेरी डरावनी सुनसान रा थी। मैं बारक के सामने बरसा ी पहने हुए खड़ा मैग्जीन का पहरा दे रहा था। कंधे पर भरा हुआ राइफल था। बारक के से दो-चार लिसपातिहयों के गाने की आवाजें आ रही थीं, रह-रहकर जब तिबजली चमक जा ी थी ो सामने के ऊंचे पहाड और दरt और नीचे का हराभरा मैदान इस रह नजर आ जा ेथे जैसे तिकसी बचे्च की बड़ी-बड़ी काली भोली पु लिलयों में खुशी की झलक नजर आ जा ी है।

धीरे-धीरे बारिरश ने ुफानी सूर अस्थिt यार की। अंधकार और भी अंधेरा, बादल की गरज और भी डरावनी और तिबजली की चमक और भी ेज हो गयी। मालूम हो ा था प्रकृति अपनी सारी शलिक्त से जमीन को बाह कर देगी।

यकायक मुझे ऐसा मालूम हुआ तिक मेरे सामने से तिकसी चीज की परछाई-सी तिनकल गयी। पहले ो मुझे खयाल हुआ तिक कोई जंगली जानवर होगा लेतिकन तिबजली की एक चमक ने यह खयाल दूर कर दिदया। वह कोई आदमी था, जो बदन को चुराये पानी में भिभग ा हुआ एक रफ जा रहा था। मुझे हैर हुई तिक इस मूलसाधार वषाG में कौन आदमी बारक से तिनकल सक ा है और क्यों? मुझे अब उसके आदमी होने में कोई सन्देह न था। मैंने बन्दूक सम्हाल ली और फोजी कायदे के मु ातिबक पुकारा—हाल्ट, हू कम्स देअर? तिफर भी कोई जवाब नहीं। कायदे के मु ातिबक ीसरी बार ललकारने पर अगर जवाब न मिमले ो मुझे बन्दूक दाग देनी चातिहए थी। इसलिलए मैंने बन्दूक हाथ में लेर खूब जोर से कड़ककर कहा—हाल्ट, हू कम्स देअर? जवाब ो अबकी भी न मिमला मगर वह परछाई मेरे सामने आकर

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खड़ी हो गई। अब मुझे मालूम हुआ तिक वह मदG नहीं और है। इसके पहले तिक मैं कोई सवाल करंू उसने कहा—सन् री, खुदा के लिलए चुप रहो। मैं हंू लुईसा।

मेरी हैर की कोई हद न रही। अब मैंने उस पहचान लिलया। वह हमारे कमास्थिण्डंग अफसर की बेटी लुईसा ही थी। मगर इस वक्त इस मूसलाधार मेह और इस घटाटोप अंधेरे में वह कहां जा रही है? बारक में एक हजार जवान मौजूद थे जो उसका हुक्म पूरा कर सक े थे। तिफर वह नाजुकबदन और इस वक्त क्यों तिनकली और कहां के लिलए तिनकली? मैंने आदेश के स्वर में पूछा— ुम इस वक्त कहां जा रही हो?

लुईसा ने तिवन ी के स्वर में कहा—माफ करो सन् री, यह मैं नहीं ब ा सक ी और ुमसे प्राथGना कर ी हंू यह बा तिकसी से न कहना। मैं हमेशा ुम्हारी एहसानमन्द रहंूगी।

यह कह े-कह े उसकी आवाज इस रह कांपने लगी जैसे तिकसी पानी से भरे हुए ब Gन की आवाज।

मैंने उसी लिसपातिहयाना अन्दाज में कहा—यह कैसे हो सक ा है। मैं फौज का एक अदना लिसपाही हंू। मुझे इ ना अस्थिt यार नहीं। मैं कायदे के मु ातिबक आपको अपने साजyन्ट के सामने ले जाने के लिलए मजबूर हंू।

‘लेतिकन क्या ुम नहीं जान े तिक मैं ुम्ळारे कमास्थिण्डंग अफसर की लड़की हंू?मैंने जरा हंसकर जवाब दिदया—अगर मैं इस वक्त कमास्थिण्डंग अफसर साहब को भी

ऐसी हालम में देखंू ो उनके साथ भी मुझे यही सt ी करनी पड़ ी। कायदा सबके लिलए एक-सा है और एक लिसपाही को तिकसी हाल में उसे ोड़ने का अस्थिt यार नही है।

यह तिनदGय उfर पाकर उसने करुणा स्वर में पूछा— ो तिफर क्या दबीर है?मुझे उस पर रहम ो आ रहा था लेतिकन कायदों की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। मुझे

न ीजे का जरा भी डर न था। कोटGमाशGल या नज्जुली या और कोई सजा मेरे ध्यान में न थी। मेरा अन् :करण भी साफ था। लेतिकन कायदे को कैसे ोडंू। इसी हैस-बैस में खड़ा था तिक लुईसाने एक कदम बढ़कर मेरा हाथ पकड़ लिलया और तिनहाय पुरददG बेचैनी के लहाजे में बोली— ो तिफर मैं क्या करंू?

ऐसा महसूस हो रहा था तिक जैसे उसका दिदल तिपघला जा रहा हो। मैं महसूस कर रहा था तिक उसका हाथ कांप रहा था। एक बार जी में आया जाने दंू। पे्रमी के संदेश या अपने वचन की रक्षा के लिसवा और कौन-सी शलिक्त इस हाल में उसे घर से तिनकलने पर मजबूर कर ी? तिफर मैं क्यों तिकसी की मुहब्ब की राह का काटा बनंू। लेतिकन कायदे ने तिफर जबान पकड़ ली। मैंने अपना हाथ छुड़ाने की कोलिशश न करके मुंह फेरकर कहा—और कोई दबीर नहीं है।

मेरा जवाब सुनकर उसकी पकड़ ढीली पड़ गई तिक जैसे शरीर में जान न हो पर उसने अपना हाथ हटाया नहीं, मेरे हाथ को पकडे़ हुए तिगड़तिगड़ा कर बोली—सं री, मुझ पर रहम करो। खुदा के लिलए मुझ पर रहम करों मेरी इज्ज खाक में म मिमलाओ। मैं बड़ी बदनसीब हंू।

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मेरे हाथ पर आंसूओं के कई गरम क रे टपक पडे़। मूसलाधार बारिरश का मुझ पर जराG-भर भी असर न हुआ था लेतिकन इन चन्द बूंदों ने मुझे सर से पांव क तिहला दिदया।

मैं बडे़ पसोपेश में पड़ गया। एक रफ कायदे और कजG की आहनी दीवार थी, दूसरी रफ एक सुकुमार युव ी की तिवन ी-भरा आग्रह। मैं जान ा था अगर उसे साजyण्ट के लिसपुदG कर दंूगा ो सवेरा हो े ही सारे बटालिलन में खबर फैल जाएगी, कोटGमाशGल होगा, कमास्थिण्डंग अफसर की लड़की पर भी फौज का लौह कानून कोई रिरयाय न कर सकेगा। उसके बेरहम हाथ उस पर भी बेदद~ से उठें गे। खासकर लड़ाई के जमाने में।

और अगर इसे छोड़ दंू ो इ नी ही बेदद~ से कानूने मेरे साथ पेश आयेगा। जिजन्दगी खाक में मिमल जायेगी। कौन जाने कल जिजन्दा भी रहंू या नहीं। कम से कम नज्जुली ो होगी ही। भेद लिछपा भी रहे ो क्या मेरी अन् रात्मा मुझे सदा न मिधक्कारेगी? क्या मैं तिफर तिकसी के सामने इसी दिदलेर ढंग से ाक सकंूगा? क्या मेरे दिदल में हमेशा एक चोर-सा न समाया रहेगा?

लुईसा बोल उठी—सन् ी!तिवन ी का एक शब्द भी उसके मुंह से न तिनकला। वह अब तिनराशा की उस सीमा पर

पहुंच चुकी थी जब आदमी की वाक्शलिक्त अकेले शब्दों क सीमिम हो जा ी है। मैंने सहानुभूति के स्वर मे कहा—बड़ी मुश्किश्कल मामला है।

‘सन् री, मेरी इज्ज बचा लो। मेरे सामर्थ्ययG में जो कुछ है वह ुम्हारे लिलए करने को ैयार हंू।’

मैंने स्वाभिभमानपूवGक कहा—मिमस लुईसा, मुझे लालच न दीजिजए, मैं लालची नहीं हंू। मैं लिसपुG इसलिलए मजबूर हंू तिक फौजी कानून को ोड़ना एक लिसपाही के लिलए दुतिनया में सबसे बड़ा जुमG है।

‘क्या एक लड़की के सम्मान की रक्षा करना नैति क कानून नहीं है? क्या फौजी कानून नैति क कानून से भी बड़ा है?’ लुईसाने जरा जोश में भरकर कहा।

इस सवाल का मेरे पास क्या जवाब था। मुझसे कोई जवाब न बन पड़ा। फौजी कानून अkाई, परिरव Gनशील हो ा है, परिरवेश के अधीन हो ा है। नैति क कानून अटल और सना न हो ा है, परिरवेश से ऊपर। मैंने कायल होकर कहा—जाओ मिमस लुईसा, ुम अब आजाद हो, ुमने मुझे लाजवाब कर दिदया। मैं फौजी कानून ोड़कर इस नैति क कfGव्य को पूरा करंूगा। मगर ुमसे केवल वही प्राथGना है तिक आगे तिफर कभी तिकसी लिसपही को नैति क कfGव्य का उपदेश न देना क्योंतिक फौजी कानून फौजी कानून है। फौज तिकसी नैति क, आस्नित्मक या ईश्वरीय कानून की परवाह नहीं कर ा।

लुईसा ने तिफर मेरा हाथ पकड़ लिलया और एहसान में डूबे हुए लहजे में बोली—सन् री, भगवान् ुम्हें इसका फल दे।

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मगर फौरन उसे संदेह हुआ तिक शायद यह लिसपाही आइन्दा तिकसी मौके पर यह भेद न खोल दे इसलिलए अपने और भी इत्मीनान के खयाल से उसने कहा—मेरी आबरू अब ुम्हारे हाथ है।

मैंने तिवश्वास दिदलाने वाले ढंग से कहा—मेरी ओर से आप तिबल्कुल इत्मीनान रखिखए।‘कभी तिकसी से नहीं कहोगे न?’‘कभी नहीं।’‘कभी नहीं?’‘हां, जी े जी कभी नहीं।’‘अब मुझे इत्मीनान हो गया, सन् री। लुईसा ुम्हारी इस नेकी और एहसान को मौ

की गोद में जा े वक्त भी न भूलेगी। ुम जहां रहोगे ुम्हारी यह बहन ुम्हरे लिलए भगवान से प्राथGना कर ी रहेगी। जिजस वक्त ुम्हें कभी जरुर हो, मेरी याद करना। लुईसा दूतिनया के उस पदG पर होगी ब भी ुम्हारी खिखदम के लिलए हाजिजर होगी। वह आज से ुम्हें अपना भाई समझ ी है। लिसपाही की जिजन्गी में ऐसे मौके आ े हैं, जब उसे एक खिखदम करने वाली बहन की जरुर हो ी है। भगवान न करे ुम्हारी जिजन्दगी में ऐसा मौका आयें लेतिकन अगर आयें ो लुईसा अना फजG अदा करने में कभी पीछे न रहेगी। क्या मैं अपने नेकमिमजाज भाई का नाम पूछ सक ी हंू?’

तिबजली एक बार चमक उठी। मैंने देखा लुईसा की आंखों में आंसू भरे हुए हैं। बोला-लुईसाख् इन हौसला बढ़ाने वाली बा ों के लिलए मैं ुम्हारा ह्रदय से कृ ज्ञ हंू। लेतिकन मैं जो कुछ कर रहर हंू, वह नैति क ा औरहमदद~ के ना े कर रहा हंू। तिकसी इनाम की मुझे इच्छा नहीं है। मेरा नाम पूछकर क्या करेगी?

लुईसा ने लिशकाय के स्वर में कहा-क्या बहन के लिलए भाई का नाम पूछना भी फौजी कानून के खिखलाफ है?

इन शब्द में कुछ ऐसी सच्चाई, कुछ ऐस पे्रम, कुछ ऐसा अपनापन भरा हुआ था, तिक मेरी आंखों मे बरबस ऑंसू भर आये।

बोला—नहीं लुईसा, मैं ो लिसफG यही चाह ा हंू तिक इस भाई जैसे सलूक में स्वाथG की छाया भी न रहने पाये। मेरा नाम श्रीनाथ सिसsह है।

लुईसा ने कृ ज्ञ ा व्यक्त करने के ौर पर मेरा हाथ धीरे से दबाया और थैक्स कहकर चली गई। अंधेरे के कारण तिबल्कुल नजर न आया तिक वह कहां गई और न पूछना ही उलिच था। मैं वहीं खड़ा-खड़ा इस अचानक मुलाका के पहलुओं को सोच ा रहा। कमास्थिण्डंग अफसर की बेटी क्या एक मामूली लिसपाही को और वह भी जो काल आदमी हो, कुfे से बदfर नहीं समझ ी? मगर वही और आज मेरे साथ भाई का रिरश् ा कायम करके फूली नहीं समा ी थी।

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सके बाद कई साल बी गये। दुतिनया में तिक नी ही क्रान्तिन् यां हो गई। रुस की जारशाही मिमट गई, जमGन को कैसर दुतिनया के स्टेज से हमेशा के लिलए तिबदा हो गया, प्रा ंत्र की

एक श ाब्दी में जिज ना उन्न ी हुई थी, उ नी इन थोडे़-से सालों में हो गई। मेरे जीवन में भी तिक ने ही परिरवG न हुए। एक टांग युद्ध के देव ा की भेंट हो गई, मामूली से लेस्थिफ्टनेंट हो गया।

इएक दिदन तिफर ऐसी चमक और गरज की रा थी। मैं क्वाटGर मैं बैठ हुआ कप् ान

नाक्स और लेस्थिफ्टनेंट डाक्टर चन्uसिसsह से इसी घटना की चचाG कर रहा था जो दस-बारह साल पहले हुई थी, लिसफG लुईसा का नाम लिछपा रखा था। कप् ान नाक्स को इस चचाG में असाधरण आनन्द आ रहा था। वह बार-बार एक-एक बा पूछ ा और घटना क्रम मिमलाने के लिलए दुबारा पूछ ा था। जब मैंने आखिखर में कहा तिक उस दिदन भी ऐसा ही अंधेरी रा थी, ऐसी ही मूसलाधार बारिरश हो रही थी और यही वक्त था ो नाक्स अपनी जगह स उठकर खड़ा हो गया और बहु उति�ग्न होकर बोला-क्या उस और का नाम लुईसा ो नहीं था?

मैंन आश्चयG से कहा, ‘आपको उसका नाम कैसे मालूम हुआ? मैंने ो नहीं ब लाया’, पर नाक्स की आंखों में आंसू भर आये। लिससतिकयां लेकर बोले—यह सब आपको अभी मालूम हो जाएगा। पहले यह ब लाइए तिक आपका नाम श्रीनाथ सिसsह हैं या चौधरी।

मैंने कहा-मेरा नाम श्रीनाथ सिसsह है। अब लोग मुझे लिसफG चौधरी कह े है। लेतिकन उस वक्त चौधरी का नाम से मुझे कोई न जान ा था। लोग श्रीनाथ कह े थे।

कप् ान नाक्स अपनी कुस� खींचकर मेर पास आ गये और बोले- ब ो आप मेरे पुराने दोस् तिनकाल। मुझे अब ब नाम के बदल जाने से धोखा हो रहा था, वनाG आपका नाम ो मुझे खूब याद है। हां, ऐसा याद है तिक शायद मर े दम क भी न भूलूं क्योंतिक य उसकी आखिखर वसीय है।

यह क हे-कह े नाक्स खामोश हो गये और आंखें बन्द करके सर मेज पर रख लिलया। मेरा आश्चयG हर क्षण बढ़ ा ज रहा था और लेस्थिफ्टनझ्ट डा. चन्uसिसsह भी सवाल-भरी नजरों से एक बार मेरी रफ और दूसरी बार कप् ान नाक्स के चेहरे की रफ देख रहे थे।

दो मिमनट क खामोश रहने के बाद कप् ान नाक्स ने सर उठाया और एक लम्बी सांस लेकर बोले-क्यों लेस्थिफ्टनेंट चौधरी, ुम्हें याद है एक बार एक अंग्रेज लिसपाही ने ुम्हें बुरी गाली दी थी?

मैंने कहा-हां,खूब याद है। वह कारपोरल था मन उसका लिशकाय कर दी थी और उसका कोटGमशGल हुआ था। व कारपोल के पद से तिगर कर मामूली लिसपाही बना दिदया गया था। हां, उसका नाम भी याद आ गया तिक्रप या कु्रप...

कप् ान नाक्स ने बा काट े हुए कहा—तिकरतिपन। उसकी और मेरी सूर में आपको कुछ मेल दिदखाई पड़ ा है? मैं ही वह तिकरतिपन हंू। मेरा नाम सी, नाक्स है, तिकरतिपन नाक्स। जिजस रह उन दिदनों आपको लोग श्रीनाथ कह े थे उसी हर मुझे भी तिकरतिपन कहा कर े थे।

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अब जो मैंने गौर नाक्स की रफ देखा ो पहचाना गया। बेशक वह तिकरतिपन ही था। मैं आश्चयG से उसकी ओर ाकने लगा। लुईसा से उसका क्या सम्बन्ध हो सक ा है, यह मेरी समझ में उस वक्त भी न आया।

कप् ान नाक्स बोले—आज मुझे सारी कहानी कहनी पडे़गी। लेस्थिफ्टनेण्ट चौधरी, ुम्हारी वजह से जब मै कारपोल से मामूली लिसपाही बनाया गया और जिजल्लद भी कुछ कम न हुई ो मेरे दिदल में ईर्ष्यायाG और प्रति शोध की लपटे-सी उठने लगीं। मैं हमेशा इसी तिफग्र में रह ा था तिक तिकस रह ुम्हें जलील करंु तिकस रह अपनी जिजल्ल का बदला लूं। मैं ुम्हारी एक-एक हरक को एक-एक बा को ऐब ढंूढने वाली नजरों से देखा कर ा था। इन दस-बारह सालों में ुम्हारी सूर बहु कुछ बदल गई और मेरी तिनगाहों में भी कुछ फकG आ गया है जिजसके कारण मैं ुम्हें पहचान न सका लेतिकन उस वक्त ुम्हारी सूर हमेशा मेरी ओखों के सामने रह ी थी। उस वक्त मेरी जिजन्दगी की सबसे बड़ी मन्ना यही थी तिक तिकसी रह ुम्हें भी नीचे तिगराऊं। अगर मुझे मौका मिमल ा ो शायद मैं ुम्हारी जान लेने से भी बाज न आ ा।

कप् ान नाक्स तिफर खामोश हो गये। मैं और डाक्टर चन्uसिसsह टकटकी लगाये कप् ान नाक्स की रफ देख रहे थे।

नाक्स ने तिफर अपनी दास् ान शुरु की—उस दिदन, रा को जब लुईसा ुमसे बा ें कर रही थी, मैं अपने कमरे मैं बैठा हुआ ुम्हें दूर से देख रहा था। मुझे उस वक्त मालूम था तिक वह लुईसा है। मैं लिसफG यह देख रहा था तिक ुम पहरा दे े वक्त तिकसी और का हाथ पकडे़ उससे बा ें कर रहे हो। उस वक्त मुझे जिज नी पाजीपन से भरी हुई खुशी हुई व बयान नहीं कर सक ा। मैंने सोचा, अब इसे जलील करंुगा। बहु दिदनों के बाद बच्चा फंसे हैं। अब तिकसी रह न छोडंूगा। यह फैसला करके मैं कमरे से तिनकाला और पानी में भीग ा हुआ ुम्हारी रफ चला। लेतिकन जब क मैं ुम्हारे पास पहुंचंू लुईसा चली गई थी। मजबूर होकर मैं अपने कमरे लौट आया। लेतिकन तिफर भी तिनराश न था, मैं जान ा था तिक ुम झूठ न बोलोगे और जब मैं कमास्थिण्डंग अफसर से ुम्हारी लिशकाय करंुगा ो ुम अपना कसूर मान लोगो। मेरे दिदल की आग बुझाने के लिलए इ ना इम्मीनान काफी था। मेरी आरजू पूरी होने में अब कोई संदेह न था।

मैंने मुस्कराकर कहा-लेतिकन आपने मेरी लिशकाय ो नहीं की? क्या बाद को रहम आ गया?

नाक्सा ने जवाब दिदया-जी, रहम तिकस मरदूद को आ ा था। लिशकाय न करने का दूसरा ही कारण था, सबेरा हो े ही मैंने सबसे पहला काम यही तिकया तिक सीधे कामस्थिण्डंग अफसर के पास पहुंचा। ुम्हें याद होगा मैं उनके बडे़ बेटे राजसG को घुड़सवारी लिसखाया कर ा था इसलिलए वहां जाने में तिकसी तिकस्म की जिझझक या रुकावट न हुई। जब मैं पहुंचा ा राजसG ने कहा—आज इ नी जल्दी क्यों तिकरतिपन? अभी ो वक्त नहीं हुआ? आज बहु खुश नजर आ रहे हो?

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मैंने कुस� पर बैठ े हुए कहा—हां-हां, मालूम है। मगर ुमने उसे गाली दी थी। मैंने तिकसी कदर झेंप े हुए कहा—मैंने गाली नहीं दी थी लिसफG ब्लडी कहा था। लिसपातिहयों में इस रह की बदजबानी एक आम बा है मगर एक राजपू ने मेरी लिशकाय कर दी थी। आज मैंने उसे एक संगीन जुमG में पकड़ लिलया हैं। खुदा ने चाहा ो कल उसका भी कोटG-माशGल होगा। मैंने आज रा को उसे एक और से बा ें कर े देखा है। तिबलकुल उस वक्त जब वह डू्यटी पर था। वह इस बा से इन्कार नहीं कर सक ा। इ ना कमीना नहीं है।

लुईसा के चेहरे का रंग का कुछ हो गया। अजीब पागलपन से मेरी रफ देखकर बोली— ुमने और क्या देखा?

मैंने कहा—जिज ना मैंने देखा है उ ना उस राजपू को जलील करने के लिलए काफी है। जरुर उसकी तिकसी से आशानाई है और वह और तिहन्दोस् ानी नहीं, कोई योरोतिपयन लेडी है। मैं कसम खा सक ा हंू, दोनों एक-दूसरे का हाथ पकडे़ तिकलकुल उसी रह बा ें कर रहे थे, जैसे पे्रमी-पे्रमिमका तिकया कर े हैं।

लुईसा के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं। चौधरी मैं तिक ना कमीना हंू, इसका आन्दाजा ुम खुद कर सक े हो। मैं चाह ा हंू, ुम मुझे कमीना कहो। मुझे मिधक्कारो। मैं दरिरन्दे=वहशी से भी ज्यादा बेरहम हंू, काले सांप से भी ज्यादा जहरीला हंू। वह खड़ी दीवार की रफ ाक रही थी तिक इसी बीच राजसG का कोई दोस् आ गया। वह उसके साथ चला गया। लुईसा मेरे साथ अकेली रह गई ो उसने मेरी ओर प्राथGना-भरी आंखों से देखकर कहा—तिकरतिपन, ुम उस राजपू लिसपाही की लिशकाय म करना।

मैंने ाज्जबु से पूछा—क्यों?लुईसा ने सर झुकाकर कह—इसलिलए तिक जिजस और को ुमने उसके साथ बा ें

कर े देखा वह मैं ही था। मैंने और भी चतिक होकर कहा- ो क्या ुम उसे...लुईसा ने बा काटकर कहा-चुप, वह मेरा भाई है। बा यह है तिक मैं कल रा को

एक जगह जा रही थी: ुमसे लिछपाऊंगी नहीं, तिकरतिपन जिजसको मैं दिदलोजान से ज्यादा चाह ी हंू, उससे रा को मिमलने का वादा था, वह मेरा इन् ाजार में पहाड़ के दामन में खड़ा था। अगर मैं न जा ी ो उसकी तिक नी दिदललिशकनी हो ी मैं ज्योंही मैगजीन के पास पहुंची उस राजपू लिसपाही ने मुझे टोंक दिदया। वह मुझे फौजी कायदे के मु ातिबक साजyण्ट के पास ले जाना चाह ा था लेतिकन मेरे बहु अनुनय-तिवनय करने पर मेरी लाज रखने के लिलए फौजी कानून ोड़ने को ैयार हो गया। सोचो, उसने आनन लिसर तिक नी बड़ी जिजम्मेदारी ली। मैंने उसे अपना भाई कहक पुकार है और उसने भी मुझे बहन कहा है। सोचो अगर ुम उसकी लिशकाय करोगे ो उसकी क्या हाल होगी वह नाम न ब लायेगा, इसका मुझे पूरा तिवश्वास है। अगर उसके गले पर लवार भी रख दी जाएगी, ो भी वह मेरा नाम न ब ायेगा, मैं नहीं चाह ी तिक एक नेक काम करने का उसे यह इनाम मिमले। ुम उसकी लिशकाय हरतिगज म करना। ुमसे यही मेरी प्राथGना है।

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मैंन तिनदGय कठोर ा से कहा—उसने मेरी लिशकाय करके मुझे जलील तिकया है। ऐसा अच्छा मौका पाकर मैं उसे छोड़ना नहीं चाह ा। जब ुम को यकीन है तिक वह ुम्हारा नाम नहीं ब ायेगा ो तिफर उसे जहनु्नम में जाने दो।

लुईसा ने मेरी रफ घृणापूवGक देखकर कह-चुप रहो तिकरतिपन, ऐसी बा ें मुझसे न करो। मैं इसे कभी गवारा न करंुगी तिक मेरी इज्ज -आबरु के लिलए उसे जिजल्ल और बदनामी का तिनशान बनना पडे़। अगर ुम मेरी न मानोगे ो मैं सच कह ी हंू, मैं खुदकुशी कर लूंगी।

उस वक्त ो मैं लिसफG प्रति शोध का प्यासा था। अब मेरे ऊपर वासना का भू सवार हुआ। मैं बहु दिदनों से दिदल में लुईसा की पूजा तिकया कर ा था लेतिकन अपनी बा कहने का साहस न कर सक ा था। अब उसको बस में लाने का मुझे मौका मिमला। मैने सोचा अगर यह उस राजपू लिसपाही के लिलए जान देने को ैयार है ो तिनश्चय ही मेरी बा पर नाराज नहीं हो सक ी। मैंने उसी तिनदGय स्वाथGपर ा के साथ कहा-मुझे सt अफसोस है मगर अपने लिशकार को छोड़ नहीं सक ा।

लुईसा ने मेरी रफ बेकस तिनगाहों से देखकर कहा—यह ुम्हारा आखिखरी फैसला है?

मैंने तिनदGय तिनलGज्ज ा से कहा—नही लुईसा, यह आखिखरी फैसला नहीं है। ुम चाहो ो उसे ोड़ सक ी हो, यह तिबलकुल ुम्हारे इमकान में है। मैं ुमसे तिक ना मुहब्ब कर ा हंू, यह आज ति शायद ुम्हें मालूम न हो। मगर इन ीन सालों में ुम एक पल के लिलए भी मेरे दिदल से दूर नहीं हुई। अगर ुम मेरी रफ से अपने दिदल को नमG कर लो, मेरी मोहब्ब को कu करो ो मै सब कुछ करने को ैयार हंू। मैं आज एक मामूली लिसपाही हंू, और मेरे मुंह से मुहब्ब का तिनमन्त्रण पाकर शायद ुम दिदल में हंस ी होगी, लेतिकन एक दिदन मैं भी कप् ान हो जाऊंगा और ब शायद हमारे बीच इ नी बड़ी खाई न रहेगी।

लुईसा ने रोकर कहा-तिकरतिपन, ुम बडे़ बेरहम हो, मैं ुमको इ ना जालिलम न समझ ी थी। खुदा ने क्यों ुम्हें इ ना संगदिदल बनाया, क्या ुम्हें ए बेकस और पर जरा भी रहम नहीं आ ा

मैं उसकी बेचारगी पर दिदल में खुश होकर बोला-जो खुद संगदिदल हो उसे दूसरों की संगदिदली की लिशकय करने का क्या हक है?

लुईसा ने गम्भीर स्वर में कहा-मैं बेरहम नहीं हंू तिकरतिपन, खुदा के लिलए इन्साफ करो। मेरा दिदल दूसरे का हो चुका, मैं उसके बगैर जिजन्दा नहीं रह सक ी और शायद वह भी मेर बगैर जिजन्दा न रहे। मैं अपनी बा ा रखने के लिलए, अपने ऊपर नेकी करने वाले एक आदमी की आबरु बचाने के लिलए अपने ऊपर जबGदस् करके अगर ुमसे शादी कर भी लूं ो न ीजा क्या होगा? जोर-जबदGस् ी से मुहब्ब नहीं पैदा हो ी। मैं कभी ुमसे मुहब्ब न करंुगी...

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दोस् ों, आनी बेशम� और बेहायई का पदाGफाश कर े हुए मेरे दिदल को दिदल को बड़ी सt कलीफ हो रही है। मुझे उस वक्त वासना ने इ ना अन्धा बना दिदया था तिक मेरे कानों पर जूं क न रेंगी। बोला—ऐसा म tयाल करो लुईसा। मुहब्ब् अपना अपना असर जरुर पैदा कर ी है। ुम इस वक्त मुझे न चाहो लेतिकन बहु दिदन न गुजरने पाएगंे तिक मेरी मुहब्ब रंग लाएगी, ुम मुझे स्वाथ� और कमीना समझ रही हो, समझो, पे्रम स्वाथ� हो ा है ही है, शायद वह कमीना भी हो ा है। लेतिकन मुझे तिवश्वास है तिक यह नफर और बेरुखी बहु दिदनों क न रहेगी। मैं अपने जानी दुश्मन को छोड़ने के लिलए ज्यादा से ज्यादा कीम लूंगा, जो मिमल सके।

लुईसा पंuह मिमनट क भीषण मानलिसक या ना की हाल में खड़ी रही। जब उसकी याद आ ी है ो जी चाह ा है गले में छुरी मार लूं। आखिखर उसने आंसूभरी तिनगाहों से मेरी रफ देखकर कहा—अच्छी बा है तिकरतिपन, अगर ुम्हारी यह इच्छा है ो यही सही। ुम वक्त जाओं, मुझे खूब जी भरकर रो लेने दो।

यह कह े-कह े कप् ान नाक्स फूट-फूटकर रोने लगे। मैंने कहा—अगर आपको यह ददG—भरी दास् ान कहने में दु:ख हो रहा है ो जाने दीजिजए।

कप् ान नाक्स ने गला साफ करके कहा-नहीं भाई, वह तिकस्सा के पास जा ा, और उसके दिदल से अपने प्रति �न्�ी के खयाल को मिमटाने की कोलिशश कर ा। वह मुझे देख े ही कमरे से बाहर तिनकल आ ी, खुश हो-होकर बा ें कर ी। यहां क तिक मैं समझने लगा तिक उसे मुझसे प्यार हो गया है। इसी बीच योरोतिपयन लड़ाई लिछड़ गई। हम और ुम दोनों लड़ाई पर चले गए ुम फं्रस गये, मैं कमास्थिण्डंग अफसर के साथ मिमस्र गया। लुईसा अपने चचा के साथ यहीं रह गई। राजसG भी उसके के साथ रह गया। ीन साल क मैं लाम पर रहा। लुईसा के पास से बराबर ख आ े रहे। मैं रक्क ी पाकर लेस्थिफ्टनेण्ट हो गया और कमास्थिण्डंग अफसर कुछ दिदन और जिजन्दा रह े ो जरुर कप् ान हो जा ा। मगर मेरी बदनसीबी से वह एक लड़ाई में मारे गये। आप लोगों को उस लड़ाई का हाल मालूम ही है। उनके मरने के एक महीने बाद मैं छुट्टी लेकर घर लौटा। लुईसा अब भी अपने चचा के साथ ही थी। मगर अफसोस, अब न वह हुस्न थी न वह जिजन्दादिदली, घुलकर कांटा हो गई थी, उस वक्त मुझे उसकी हाल देखकर बहु रंज हुआ। मुझे अब मालूम हो गया तिक उसकी मुहब्ब तिक नी सच्ची और तिक नी गहरी थी। मुझेसे शादी का वादा करके भी वह अपनी भावनाओं पर तिवजय न पा सकी थी। शायद इसी गम में कुढ़-कुढ़कर उसकी यह हाल हो गई थी। एक दिदन मैंने उससे कहा—लुईसा, मुझे ऐसा खयाल हो ा है तिक शायद ुम अपने पुराने पे्रमी को भूल नहीं सकीं। अगर मेरा यह खयाल ठीक है ो मैं उस वादे से ुमको मुक्त कर ा हंू, ुम शौक से उसके साघ्थ शादी कर लो। मेरे लिलए यही इत्मीनान काफी होगा तिक मैं दिदन रह े घर आ गया। मेरी रफ से अगर कोई मलाल हो ो उसे तिनकाल डालो।

लुईसा की बड़ी-बड़ी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगीं। बोली—वह अब इस दुतिनया में नहीं है तिकरतिपन, आज छ: महीने हुए वह फ्रांस में मारे गये। मैं ही उसकी मौ का

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कारण हुई—यही गम है। फौज से उनका कोई संबंध न था। अगर वह मेरी ओर से तिनराश न हो जा े ो कभी फौज में भ � हो े। मरने ही के लिलए वह फौज में गए। मगर ुम अब आ गए, मैं बहु जल्द अच्छी हो जाऊंगी। अब मुझमें ुम्हारी बीवी बनने की काबलिलय ज्यादा हो गई। ुम्हारे पहलू में अब कोई कांटा नहीं रहा और न मेरे दिदल में कोई गम।

इन शब्दों में वं्यग भरा हुआ था, जिजसका आशय यह था तिक मैंने लुईसा के पे्रमी कीह जान जी। इसकी सच्चाई से कौन इन्कार कर सक ा है। इसके प्रायभिश्च की अगर कोई सूर थी ाक यहीं तिक लुईसा की इ नी खाति रदरी, इ नी दिदलजोई करंु, उस पर इस रह न्यैछावर हो जाऊं तिक उसके दिदल से यह दुख तिनकल जाय।

इसके एक महीने बाद शादी का दिदन य हो गया। हमारी शादी भी हो गई। हम दोनों घर आए। दोस् ों की दाव हुई। शराब के दौर चले। मैं अपनी खुशनसीबी पर फूला नहीं समा ा था और मैं ही क्यों मेरे इष्टमिमत्र सब मेरी खुशतिकस्म पर मुझे बधाई दे रहे थे।

मगर क्या मालूम था कदीर मुझे यों सब्ज बाग दिदखा रही है, क्या मालूम था तिक यह वह रास् ा है, जिजसके पीछे जालिलम लिशकारी का जाल तिबछा हुआ है। मैं ो दास् ों की खाति र- वाजों में लगा हुआ था, उधर लुईसा अन्दरकमरे में लेटी हुई इस दुतिनया से रुखस होने का सामान कर रही थी। मैं एक दोस् की बधाई का धन्यावाद दे रहा था तिक राजसG ने आकर कहा-तिकरतिपन, चलो लुईसा ुम्हें बुला रही है। जल्द। उसकी न जाने क्या हाल हो रही है। मेरे पैरों ले से जमीन खिखसक गई। दौड़ ा हुआ लुईसा के कमरे में आया।

कप् ान नाक्स की आंखों से तिफर आंसू बहने लगे, आवाज तिफर भारी हो गई। जरा दम लेकर उन्होंने कहा-अन्दर जाकर देखा ो लुईसा कोच पर लेटी हुई थी। उसका शरीर ऐंठ रहा था। चेहरे पर भी उसी एठंन के लक्षण दिदखाई दे रहे थे। मुझे देखकर बोली-तिकरतिपन, मेरे पास आ जाओ। मैंने शादी करके अपना वचन पूरा कर दिदया। इससे ज्यादा मैं ुम्हें कुछ और न दे सक ी थी क्योंतिक मैं अपनी मुहब्ब पहले ही दूसरी की भेंट कर चुकी हंू, मुझे माफ करना मैंने जहर खा लिलया है और बस कुछ घतिड़यों की मेहमान हंू।

मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। दिदल पर एक नश् र-सा लगा। घुटने टेककर उसके पास बैठ गया। रो ा हुआ। बोला—लुईसा, यह ुमने क्या तिकया हाय क्या ुम मुझे दाग देकर जल्दी चली जाओगी, क्या अब कोई दबीर नहीं है?

फौरन दौड़कर एक डाक्टर के मकान पर गया। मगर आह जब क उसे साथ लेकर आऊं मेरी वफा की देवी, सच्ची लुईसा हमेशा के लिलए मुझसे जुदा हो गई थी। लिसफG उसके लिसरहाने एक छोटा-सा पुजाG पड़ा हुआ था जिजस पर उसने लिलखा था, अगर ुम्हें मेरा भाई श्रीनाथ नजर आये ो उससे कह देना, लुईसा मर े वक्त भी उसका एहसान नहीं भूली।

यह कहकर नाक्स ने अपनी वास्केट की जेब से एक मखमली तिडतिबया तिनकाली और उसमें से कागज का एक पुजाG तिनकालकर दिदखा े हुए कहा-चौधरी, यही मेरे उस अkायी सौभाग्य की स्मृति है जिजसे आज क मैंने जान से ज्यादा संभाल कर रखा हैं आज ुमसे परिरचय हो गए होगे, मगर शुक्र है तिक ुम जी े-जाग े मौजूद हो। यह आमान ुम्हारे सुपुदG

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कर ा हंू। अब अगर ुम्हारे जी में आए ो मुझे गोली मार दो, क्योंतिक उस स्वार्तिगsक जीव का हत्यारा मैं हंू।

यह कह े-कह े कप् ान नाक्स फैलकर कुस� पर लेट गए। हम दोनों ही की आंखों से आंसू जारी थे मगर जल्दी ही हमें अपने ात्कालिलक क Gव्य की याद आ गई। नाक्सा को सान्त्वाना देने के लिलए मैं कुस� से उठकर उनके पास गया, मगर उनका हाथ पकड़ े ही मेरे शरीर में कंपकंपी-सी आ गई। हाथ ठंडा था। ऐसा ठंडा जैसा आखिखर घतिड़यों में हो ा है। मैंने घबराकर उनके चेहरे की रफ देखा और डाक्टर चन्u को पुकारा। डाक्टर साहब ने आकर ने आकर फौरन उनकी छा ी पर हाथ रखा और ददG-भरे लहजे में बोले—दिदल की धड़कड़ा उठी, कड़...कड़..कड़..

---‘पे्रमचलीसा’ से

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स्वांग

जपू खानदान में पैदा हो जाने ही से कोई सूरमा नहीं हो जा ा और न नाम के पीछे ‘सिसsह’ की दुम लगा देने ही से बहादुरी आ ी है। गजेन्u सिसsह के पुरखे तिकस जमाने में

राजपू थे इसमें सन्देह की गुंजाइश नहीं। लेतिकन इधर ीन पुश् ों से ो नाम के लिसवा उनमें रापू ी के कोई लक्षण न थे। गजेन्u सिसsह के दादा वकील थे और जिजरह या बहस में कभी-कभी रापू ी का प्रदशGन कर जा े थे। बाप ने कपडे़ की दुकान खालकर इस प्रदशGन की भी गुंजाइश न रखी।और गजेन्u सिसsह ने ो लूटीया ही डूबो दी। डील-डौल में भी फकG आ ा गया। भूपेन्u सिसsह का सीना लम्बा-चौड़ा था नरेन्u सिसsह का पेट लम्बा-चौड़ा था, लेतिकन गजेन्u सिसsह का कुछ भी लम्बा-चौड़ा न था। वह हलके-फुल्के, गोरे-लिचटे्ट, ऐनाकबजा, नाजुक बदन, फैशनेबुल बाबू थे। उन्हें पढ़ने-लिलखने से दिदलचस्पी थी।

रा

मगर राजपू कैसा ही हो उसकी शादी ो राजपू खानदान ही में होगी। गजेन्u सिसsह की शादी जिजस खानदान में हुई थी, उस खानदान में राजपू ी जौहर तिबलकुल फना न हुआ था। उनके ससुर पेंशन सूबेदार थे। साले लिशकारी और कुश् ीबाज। शादी हुए दो साल हो गए थे, लेतिकन अभी क एक बार भी ससुराल न आ सका। इम् ाहानों से फुरस ही न मिमल ी थी। लेतिकन अब पढ़ाई ख म हो चुकी थी, नौकरी की लाश थी। इसलिलये अबकी होली के मौके पर ससुराल से बुलावा आया ो उसने कोई हील-हुज्ज न की। सूबेदार की बडे़-बडे़ अफसरों से जान-पहचान थी, फौजी अफसरों की हुक्कम तिक नी कu और तिक नी इज्ज कर े हैं, यह उसे खूब मालूम था। समझा मुमतिकन है, सूबेदार साहब की लिसफारिरश से नायब हसीलदारी में नामजद हो जाय। इधर श्यामदुलारी से भी साल-भर से मुलाका नहीं हुई थी। एक तिनशाने से दो लिशकार हो रहे थे। नया रेशमी कोट बनवाया और होली के एक दिदन पहले ससुराल जा पहुंचा। अपने गराण्डील सालों के सामने बच्चा-सा मालूम हो ा था।

ीसरे पहर का वक्त था, गजेन्u सिसsह अपने सालों से तिवद्याथ� काल के कारनामें बयान कर रहा था। फूटबाल में तिकस रह एक देव जैसे लम्बे- डं़गे गोरे को पटखनी दी, हाकी मैच मे तिकस रह अकेले गोल कर लिलया, तिक इ ने में सूबेदार साहब देव की रह आकर खडे़ हो गए और बडे़ लड़के से बोले—अरे सुनों, ुम यहां बैठे क्या कर रहे हो। बाबू जी शहर से आये है, इन्हें लजे जाकर जरा जंगल की सैर करा लाओ। कुछ लिशकार-तिवकार खिखलाओ। यहा ठंठर-वेठर ो है नहीं, इनका जी घबरा ा होगा। वक्त भी अच्छा है, शाम क लौट आओगे।

लिशकार का नाम सुन े ही गजेन्u सिसsह की नानी मर गई। बेचारे ने उम्र-भर कभी लिशकार न खेला था। यह देहा ी उजड़ लौंडे उसे न जाने कहां-कहां दौड़ाएगंे, कहीं तिकसी जानवर का सामन हा गया ो कहीं के न रहे। कौन जाने तिहरन ही चोट कर बैठे। तिहरन भी ो भागने की राह न पाकर कभी-कभी पलट पड़ ा है। कहीं भेतिड़या तिनकल आये ो काम

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ही माम कर दे। बोले—मेरा ो इस वक्त लिशकार खेलने को जी नहीं चाह ा, बहु थक गया हंू।

सूबेदार साहब ने फरमाया— ुम घोडे़ पर सवार हो लेना। यही ो देहा की बहार है। चुनू्न, जाकर बन्दूक ला, मैं भी चलंूग। कई दिदन से बाहर नहीं तिनकला। मेरा राइफल भी ले े आना।

चुनू्न और मुनू्न खूश-खूश बन्दूक लेने दौडे़, इधर गजेन्u की जान सूखने लगी। पछ ा रहा था तिक नाहक इन लौडों के साथ गप-शप करने लगा। जान ा तिक यह बला लिसर पर आने वाली है, ो आ े ही फौरन बीमार बानकर चारपाई पर पड़ रहा ा। अब ो कोई हीला भी नहीं कर सक ा। सबसे बड़ी मुसीब घोडे़ की सवारी। देहा ी घोडे़ यो ही थान पर बंधे-बंधे टरy हो जा े हैं और आसन का कच्चा सवार देखकर ो वह और भी शेखिखयां करने लग े हैं। कहीं अलफ हो गया मुझे लेकर तिकसी नाले की रफ बे हाशा भागा ो खैरिरय नहीं।

दोनों सालों बन्दूके लेकर आ पहुंचे। घोड़ा भ खिखsचकर आ गया। सूबेदार साहब लिशकुरी कपडे़ पहन कर ैयार हो गए। अब गजेन्u के लिलए कोई हीला न रहा। उसने घोडे़ की रफ कनाखिखयों से देखा—बार-बार जमीन पर पैर पटक ा था,तिहनतिहना ा था, उठी हुई गदGन, लाला आंखें, कनौति यां खड़ी, बोटी-बोटी फड़क रही थी। उसकी रफ देख े हुए डर लग ा था। गजेन्u दिदल में सहम उठा मगर बहादूरी दिदखाने के लिलए घोडे़ के पास जाकर उसके गदGन पर इस रह थपतिकयां दीं तिक जैसे पक्का शहसवार हैं, और बोला—जानवर ो जानदार है मगर मुनालिसब नहीं मालूम हो ा तिक आप लोगो ो पैदल चले और मैं घोडे़ पर बैठंू। ऐसा कुछ थका नहीं। मैं भी पैदल ही चलूगां, इसका मुझे अभ्यास है।

सूबेदार ने कहा-बेटा, जंगल दूर है, थक जाओगे। बड़ा सीधा जानवर हैं, बच्चा भी सवार हो सक ा है।

गजेन्u ने कहा-जी नहीं, मुझे भी यो ही चलने दीजिजए। गप-शप कर े हुए चलेंगे। सवारी में वह लुफ् कहां आप बुजगG हैं, सवार हो जायं।

चारों आदमी पैदल चले। लोगों पर गजेन्u की इस नम्र ा का बहु अच्छा असर हुआ। सम्य ा और सदाचार ो शहरवाले ही जान े हैं। ति स पर इल्म की बरक।

थोड़ी दूर के बाद पथरीला रास् ा मिमला। एक रफ हरा-भरा मैदान दूसरी रफ पहाड़ का लिसललिसला। दोनों ही रफ बबूल, करील, करौंद और ढाक के जंगल थे। सूबेदार साहब अपनी-फौजी जिजन्दगी के तिपटे हुए तिकस्से कह ेग चले आ े थे। गजेन्u ेज चलने की कोलिशश कर रहा था। लेतिकन बार-बार तिपछड़ जा ा था। और उसे दो-चार कदम दौड़कर उनके बराबर होना पड़ ा था। पसीने से र हांफ ा हुआ, अपनी बेवकूफ पर पछ ा ा चला जा ा था। यहां आने की जरुर ही क्या थी, श्यामदुलारी महीने-दो-महीने में जा ी ही। मुझे इस वक्त कुfें की रह दौड़ े आने की क्या जरुर थी। अभी से यह हाल है। लिशकार नजर आ गया ो मालूम नहीं क्या आफ आएगी। मील-दो-मील की दौड़ ो उनपके लिलए मामूली

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बा है मगर यहां ो कचूमर ही तिनकल जायगा। शायद बेहोश होकर तिगर पडंू। पैर अभी से मन-मन-भर के हो रहे थे।

यकायक रास् े में सेमल का एक पेड़ नजर आया। नीचे-लाल-लांल फूल तिबछे हुए थे, ऊपर सारा पेड़ गुलनार हो राह था। गजेन्u वहीं खड़ा हो गया और उस पेड़ को मस् ाना तिनगाहों से देखने लगा।

चुनू्न ने पूछा-क्या है जीजा जी, रुक कैसे गये?गजेन्u सिसsह ने मुग्ध भाव से कहा—कुछ नहीं, इस पेड़ का आकG षक सौन्दयG देखकर

दिदल बाग-बाग हुआ जा रहा है। अहा, क्या बहार है, क्या रौनक है, क्या शान है तिक जैसे जंगल की देवी ने गोधीलिल के आकाश को लस्थिज्ज करने के लिलए केसरिरया जोड़ा पहन लिलया हो या ऋतिषयों की पतिवत्र आत्माए ंअपनी शाश्व यात्रा में यहा आराम कर रही हों, या प्रकृति का मधुर संगी मूर्ति sमान होकर दुतिनया पर मोतिहन मन्त्र डाल रहा हो आप लोग लिशकार खेलने जाइए, मुझे इस अमृ से ृप् होने दीजिजए।

दोनों नौजवान आश्चयG से गजेन्u का मुंह ाकने लगे। उनकी समझ ही में न आया तिक यह महाश्य कह क्या रहे हैं। देहा के रहनेवाले जंगलों में घूमनेवाले, सेमल उनके लिलए कोई अनोखी चीज न थी। उसे रोज देख े थे, तिक नी ही बार उस पर चढे़, थे उसके नीचे दौडे़ थे, उसके फूलों की गेंद बनाकर खेले थे, उन पर यह मस् ी कभी न छाई थी, सौंदयG का उपभोग करना बेचारे क्या जाने।

सूबेदार साहब आगे बढ़ गये थे। इन लोगों को ठहरा हुआ देखकर लौट ओये और बोले—क्यों बेटा ठहर क्यों गये?

गजेन्u ने हाथ जोड़कर कहा-आप लोग मुझे माफ कीजिजए, मैं लिशकार खेलने न जा सकंूगा। फूलों की यह बहार देखकर मुझ पर मस् ी-सी छा गई हैं, मेरी आत्मा स्वगG के संगी का मजा ले रही है। अहा, यह मेरा ही दिदल जो फूल बनकर चमक रहा है। मुझ में भी वही लाली है, वहीं सौंदयG है, वही रस है। मेरे ह्दय पर केवल अज्ञान ा का पदाG पड़ा हुआ है। तिकसका लिशकार करें? जंगल के मासूम जानवारों का? हमीं ो जानवर हैं, हमीं ो लिचतिड़यां हैं, यह हमारी ही कल्पनाओं का दपGण है जिजसमें भौति क संसार की झलक दिदखाई पड़ रही है। क्या अपना ही खून करें? नहीं, आप लोग लिशकार करन जांय, मुझे इस मस् ी और बहार में डूबकर इसका आन्नद उठाने दें। बश्किल्क मैं ो प्राथGना करुगां तिक आप भी लिशकार से दूर रहें। जिजन्दगी खुलिशयों का खजाना हैं उसका खून न कीजिजए। प्रकृति के दृश्यों से अपने मानस-चकु्षओं को ृप् कीजिजए। प्रकृति के एक-एक कण में, एक-एक फूल में, एक-एक पfी में इसी आन्नद की तिकरणों चकम रही हैं। खून करके आन्नद के इस अक्षय स्रो को अपतिवत्र न कीजिजए।

इस दशGतिनक भाषण ने सभी को प्रभातिव कर दिदया। सूबेदार ने चुनू्न से धीमे से कहा—उम्र ो कुछ नहीं है लेतिकन तिक ना ज्ञान भरा हुआ है। चुनू्न ने भी अपनी श्रृद्धा को व्यक्त तिकया—तिवद्या से ही आत्मा जाग जा ी है, लिशकार खेलना है बुरा।

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सूबेदार साहब ने ज्ञातिनयों की रह कहा—हां, बुरा ो है, चलो लौट चलें। जब हरेक चीज में उसी का प्रकाश है, ो लिशकार कौन और लिशकार कौन अब कभी लिशकार न खेलूंगा।

तिफर वह गजेन्u से बोले-भइया, ुम्हारे उपदेश ने हमारी आंखें खोल दीं। कसम खा े हैं, अब कभी लिशकार न खेलेगे।

गजेन्u पर मस् ी छाई हुई थी, उसी नशे की हाल में बोला-ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद है तिक उसने आप लोगों को यह सदबुजिद्ध दी। मुझे खुद लिशकार का तिक ना शौक था, ब ला नहीं सक ा। अनतिगन जंगली सूअर, तिहरन, ुंदुए, नीलगायें, मगर मारे होंगे, एक बार ची े को मार डाला। मगर आज ज्ञान की मदिदरा का वह नश हुआ तिक दुतिनया का कहीं अश्किस् त्त्व ही नहीं रहा।

ली जलाने का मुहूG नौ बजे रा को था। आठ ही बजे से गांव के और -मदG, बूढे़-बचे्च गा े-बजा े कबींरे उड़ा े होली की रफ चले। सूबेदार साहब भी बाल-बच्चों को लिलए

मेहमान के साथ होली जलाने चले।

होगजेन्u ने अभी क तिकसी बडे़ गांव की होली न देखी थी। उसके शहर में ो हर

मुहल्ले में लकड़ी के मोटे-मोटे दो चार कुन्दे जला दिदये जा े थे, जो कई-कई दिदन क जल े रह े थे। यहां की होली एक लम्बे-चौडे़ मैदान में तिकसी पहाड़ की ऊंची चोटी की रह आसमान से बा ें कर रही थी। ज्यों ही पंतिड जी ने मंत्र पढ़कर नये साल का स्वाग तिकया, आति शबाजी छूटने लगी। छोटे-बडे़ सभी पटाखे, छछंूदरे, हवाइयां छोड़ने लगे। गजेन्u के लिसर पर से कई छछंूदर सनसना ी हुई तिनकल गईं। हरेक पटाखे पर बेचार दो-दो चार-चार कदम पीछे हट जा ा था और दिदल में इस उजड़ देहाति यां को कोस ा था। यह क्या बेहूदगी है, बारुद कहीं कपडे़ में लग जाय, कोई और दुघGटना हो जाय ो सारी शरार तिनकल जाए। रोज ही ो ऐसी वारदा ों हो ी रह ी है, मगर इन गंवारों क्या खबर। यहां दादा न जो कुछ तिकया वही करेंगे। चाहे उसमें कुछ ुक हो या न हो

अचानक नजदीक से एक बमगोल के छूटने की गगनभेदी आवज हुई तिक जैसे तिबजली कड़की हो। गजेन्u सिसsह चौंककर कोई दो फीट ऊंचे उछल गए। अपनी जिजन्दगी में वह शायद कभी इ ना न कूदे थे। दिदल धक-धक करने लगा, गोया ोप के तिनशाने के सामने खडे़ हों। फौरन दोनों कान उंगलिलयों से बन्द कर लिलए और दस कदम और पीछे हट गए।

चुनू्न ने कहा—जीजाजी, आप क्या छोड़ेंगे, क्या लाऊं?मुनू्न बाला-हवाइयां छोतिड़ए जीजाजी, बहु अच्छी है। आसमान में तिनकल जा ी हैं। चुनू्न-हवाइयां बचे्च छोड़ े हैं तिक यह छोडे़गे? आप बमगोला छोतिड़ए भाई साहब। गजेन्u—भाई, मुझे इन चीजों का शौक नहीं। मुझे ो ाज्जुब हो रहा है बूढे़ भी

तिक नी दिदलचस्पी से आति शबाजी छुड़ा रहे हैं। मुनू्न-दो-चार महा ातिबयां ो जरुर छोतिड़ए।

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गजेन्u को मह ातिबयां तिनरापद जान पड़ी। उनकी लाल, हरी सुनहरी चमक के साचमने उनके गोरे चेहरे और खूबसूर बालों और रेशमी कु � की मोहक ा तिक नी बढ़ जायगी। कोई ख रे की बा भी नहीं। मजे से हाथ में लिलए खडे़ हैं, गुल टप-टप नीचे तिगर रहा है ओर सबकी तिनगाहें उनकी रफ लगी हुई हैं उनकी दशGतिनक बुजिद्ध भी आत्मप्रदशGन की लालसासे मुक्त न थी। फौरन मह ाबी ले ली, उदासीन ा की एक अजब शान के साथ। मगर पहली ही मह ाबी छोड़ना शुरु की थी तिक दुसरा बमगोला छूटा। आसमान कांप उठा। गजेन्u को ऐसा मालूम हुआ तिक जैसे कान के पदy फट गये या लिसर पर कोई हथौड़ा-तिगर पड़ा। मह ाबी हाथ से छूटकर तिगर पड़ी और छा ी धड़कने लगी। अभी इस धामके से सम्हलने ने पाये थे तिक दूसरा धामाक हुआ। जैसे आसमान फट पड़ा। सारे वायुमण्डल में कम्पन-सा आ गया, लिचतिड़या घोंसलों से तिनकल तिनकल शोर मचा ी हुई भागी, जानवर रस्थिस्सयां ुड़ा- ुड़ाकर भागे और गजेन्u भी लिसर पर पांव रखकर भागे, सरपट, और सीधे घर पर आकर दम लिलया। चुनू्न और मुनू्न दोनों घबड़ा गए। सूबेदार साहब के होश उड़ गए। ीनों आदमी बगटुट दौडे़ हुए गजेन्u के पीछे चले। दूसरों ने जो उन्हें भाग े देखा ो समझे शायद कोई वारदा हो गई। सबके सब उनके पीछे हो लिलए। गांव में एक प्रति मि� अति लिथ का आना मामूली बा न थी। सब एक-दूसरे से पूछ रहे थे—मेहमान को हो क्या गया? माजरा क्या हैं? क्यों यह लोग दौडे़ जा रहे हैं।

एक पल में सैकड़ों आदमी सूबेदार साहब के दरवाजे पर हाल-चाल पूछने लिलए जमा हो गए। गांव का दामाद कुरुप होने पर भी दशGनीय और बदहाल हो े हुए भी सबका तिप्रय हो ा है।

सूबेदार ने सहमी हुई आवाज में पूछा- ुम वहां से क्यों भाग आए, भइया।गजेन्u को क्या मालूम था तिक उसके चले आने से यह हलका मच जाएगा। मगर

उसके हाजिजर दिदमाग ने जवाब सोच लिलया था और जवाब भी ऐसा तिक गांव वालों पर उसकी अलौतिकक दृमिष्ट की धाक जमा दे।

बोला—कोई खास बा न थी, दिदल में कुछ ऐसा ही आया तिक यहां से भाग जाना चातिहए।

‘नहीं, कोई बा ा जरुर थी।’ ‘आप पूछकर क्या करेंगे? मैं उसे जातिहर करके आपके आन्नद में तिवध्न ’नहीं डालना

चाह ा।’‘जब क ब ला न दोगे बेटा, हमें सल्ली नहीं होगी। सारा गांव घबराया हुआ है।’ गजेन्u ने तिफर सूतिफयों का-सा चेहरा बनाया, आंखें बन्द कर लीं, जम्हाइयां लीं और

आसमान की रफ देखकर- बोले –बा यह है तिक ज्यों ही मैंने मह ाबी हाथ में ली, मुझे मालूम हुआ जैसे तिकसी ने उसे मेरे हाथ से छीनकर फें क दिदया। मैंने कभी आति शबाजिजयां नहीं छोड़ी, हमेशा उनको बुरा—भला कह ा रहा हंू। आज मैंने वह काम तिकया जो मेरी अन् रात्मा के खिखलाफ था। बस गजब ही ो हो गया। मुझे ऐसा मालूम हुआ जैसे मेरी

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आत्मा मुझे मिधक्कार रही है। शमG से मेरी गदGन झुक गई और मैं इसी हाल में वहां से भागा। अब आप लोग मुझे माफ करें मैं आपको जशन में शरीक न हो सकंूगा।

सूबेदारा साहब ने इस रह गदGन तिहलाई तिक जैसे उनके लिसवा वहां कोई इस अध्यात्मा का रहस्य नहीं समझ सक ा। उनकी आंखें कह रही थीं—आ ी हैं ुम लोगों की समझ में यह बा ें? ुम भला क्या समझोगे, हम भी कुछ-कुछ ही समझ े हैं।

होली ो तिनय समय जलाई गई थी मगर आति शबाजीयां नदी में डाल दी गईं। शरीर लड़को ने कुछ इसलिलए लिछपाकर रख लीं तिक गजेन्u चले जाएगंे ो मजे से छुड़ाएगंे।

श्यामदुलारी ने एकान् में कहा— ुम ो वहां से खूब भागोगजेन्u अकड़ कर बोले-भाग ा क्यों, भागने की ो कोई बा न थी। ‘मेरी ो जान तिनकल गई तिक न मालूम क्या हो गया। ुम्हारे ही साथ मैं भी दौड़ी

आई। टोकीर-भर आति शबाजी पानी में फें क दी गई।’‘यह ो रुपये को आग में फूकना है।’‘यह ो रुपये को आग में फंूकना हैं।’‘होली में भी न छोडे़ ो कब छोडे़। त्यौहार इसीलिलए ो आ े हैं।’‘त्यौहार में गाओ-बजाओ, अच्छी-अच्छी चीजें पकाओ-खाओ, खैरा करो, या-

दोस् ों से मिमलों, सबसे मुहब्ब से पेश आओ, बारुद उड़ने का नाम त्यौहार नहीं है।’रा को बारह बज गये थे। तिकसी ने दरवाजे पर धक्का मारा, गजेन्u ने चौंककर पूछा

—यह धक्का तिकसने मारा? श्यामा ने लापरवाही से कहा-तिबल्ली-तिबल्ली होगी।कई आदमिमयों के फट-फट करने की आवाजें आईं, तिफर तिकवाड़ पर धक्का पड़ा।

गजेन्u को कंपकंपी छूट गई, लालटेन लेकर दराज से झांक ो चेहरे का रंग उड़ गया—चार-पांच आदमी कु y पहने, पगतिड़यां बाधे, दादिढ़यां लगाये, कंधे पर बन्दूकें रखे, तिकवाड़ को ोड़ डालने की जबदGस् कोलिशश में लगे हुए थे। गजेन्u कान लगाकर बा ें सुनने लगा—

‘दोनों सो गये हैं, तिकवाड़ ोड़ डालो, माल अलमारी में है।’‘और अगर दोनों जाग गए?’‘और क्या कर सक ी हैं, मदG का चारपाई से बांध देंगे।’‘सुन े है गजेन्u सिसsह कोई बड़ा पहलवान हैं।’‘कैसा ही पहलवान हो, चार हलिथयारबन्द आदमिमयों के सामने क्या कर सक ा है।’गजेन्u के कोटो ो बदन में खून नहीं शयामदुलारी से बोले-यह डाकू मालूम हो े हैं।

अब क्या होगा, मेरे ो हाथ-पांव कांप रहे हैचोर-चोर पुकारो, जाग हो जाएगी, आप भाग जाएगे। नहीं मैं लिचला ी हंू। चोर का

दिदल आधा।’‘ना-ना, कहीं ऐसा गजब न करना। इन सबों के पास बन्दूके हैं। गांव में इ ना सन्नाटा

क्यों हैं? घर के आदमी क्या हुए?’

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‘भइया और मुनू्न दादा खलिलहान में सोने गए हैं, काक दरवाजें पर पडे़ होंगे, उनके कानों पर ोप छूटे ब भी न जागेंगे।’

‘इस कमरे में कोई दूसरी खिखड़की भी ो नहीं है तिक बाहर आवाज पहुंचे। मकान है या कैदखाने’

‘मै ो लिचल्ला ी हंू।’‘अरे नहीं भाई, क्यों जान देने पर ुली हो। मैं ो सोच ा हंू, हम दोनों चुपचाप लेट

जाए ंऔर आंखें बन्द कर लें। बदमाशों को जो कुछ ले जाना हो ले जांए, जान ो बचे। देखों तिकवाड़ तिहल रहे हैं। कहीं टूट न जाए।ं हे ईश्वर, कहां जाए,ं इस मुसीब में ुम्हारा ही भरोससा है। क्या जान ा था तिक यह आफ आने वाली हैं, नही आ ा ही क्यों? बसा चुप्पी ही साध लो। अगर तिहलाए-ंतिवलाए ं ो भी सांस म लेना।’

‘मुझसे ो चुप्पी साधकर पड़ा न रहा जाएगा।’‘जेवर उ ारकर रख क्यों नहीं दे ी, शै ान जेवर ही ो लेंगे।’‘जेवर ो न उ ारंुगी चाहे कुछ ही क्यों न हो जाय।’‘क्यों जान देने पर ुली हुई हो?’खुशी से ो जेवर न उ ारंुगी, जबदGस् ओर बा हैं’खामोशी, सुनो सब क्या बा ें कर रहे हैं।’बाहर से आवाज आई—तिकवाड़ खोल दो नहीं ो हम तिकवाड़ ोड़ कर अन्दर आ

जाएगंे। गजेन्u श्यामदुलीरी की मिमन्न की—मेरी मानो श्यामा, जेवर उ ारकर रख दो, मैं

वादा कर ा हंू बहू जल्दी नये जेवर बनवा दंूगा। बाहर से आवाज आई-क्यों, आई! बस एक मिमनट की मुहल और दे े हैं, अगर

तिकवाड़ न खोले ो खैरिरय नहीं। गजेन्u ने श्यामदुलारी से पूछा—खोल दंू? ‘हा, बुला लो ुम्हारे भाई-बन्द हैं? वह दरवाजे को बाहर से ढकेल े हैं, ुम अन्दर से

बाहर को ठेली।’‘और जो दरवाजा मेरे ऊपर तिगर पडे़? पांच-पांच जवान हैं!’‘वह कोने में लाठी रखी है, लेकर खडे़ हो जाओ।’‘ ुम पागल हो गई हो।’‘चुन्नी दादा हो े ो पांचों का तिगर े।’‘मैं लट्टाबाज नहीं हंू।’‘ ो आओ मुंह ढांपकर लेट जाओं, मैं उन सबों से समझ लूंगी।’‘ ुम्हें ो और समझकर छोड़ देंगे, माथे मेरे जाएगी।’‘मैं ो लिचल्ला ी हंू।’‘ ुम मेरी जान लेकर छोड़ोगी!

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‘मुझसे ो अब सब्र नहीं हो ा, मैं तिकवाड़ खोल दे ी हंू।’उसने दरवाजा खोल दिदया। पांचों चोर में भड़भड़कर घुस आए। एक ने अपने साथी

से कहा—मैं इस लौंडे को पकडे़ हुए हंू ुम और के सारे गहने उ ार लो। दूसरा बोला-इसने ो आंखों बन्द कर लीं। अरे, ुम आंखें क्यों नहीं खोल ी जी? ीसरा-यार, और ो हसीन है!

चौथा—सुन ी है ओ मेहरिरया, जेवर दे दे नहीं गला घोंट दंूगा।गजेन्u दिदल में तिबगड़ रहे थे, यह चुडै़ल जेवर क्यों नही उ ार दे ी।श्यामादुलीरी ने कहा—गला घोंट दो, चाहे गोली मार दो जेवर न उ ारंूगी। पहला—इस उठा ले चलो। यों न मानेगी, मजिन्दर खाली है।दूसरा—बस, यही मुनालिसब है, क्यों रे छोकरी, हामारे साथ चलेगी? श्यामदुलारी— ुम्हारे मुहं में कालिलख लगा दंूगी। ीसरा—न चलेगी ो इस लौंडे को ले जाकर बेच डालेंगे।श्यामा—एक-एक के हथकड़ी लगवा दंूगा।चौथा—क्यों इ ना तिबगड़ ी है महारानी, जरा हमारे साथ चली क्यो नहीं चल ी।

क्या हम इस लौंडें से भी गये-गुजरे है। क्या रा जाएगा, अगर हम ुझे जबदGस् ी उठा ले जाएगंे। यों सीधी रह नहीं मान ी हो। ुम जैसी हसीन और पर जुल्म करने को जी नहीं चाह ा।

पांचवां—या ो सारे जेवर उ ारकर दे दो या हमारे साथ चालो। श्यामदुलारी—काका आ आएगंे ो एक-एक की खाल उधेड़ डालेंगे। पहला—यह यों न मानेगी,ख् इस लौंडें को उठा ले चलो। ब आप ही पैरों पडे़गी। दो आदमिमयों ने एक चादर से गजेन्u के हाथ-पांव बांधे। गजेन्u मुदy की रह पडे़ हुए

थे, सांस क न आ ी थी, दिदल में झुंझला रहे थे—हाय तिक नी बेवफा और है, जेवर न देगी चाहे यह सब मुझे जान से मार डालें। अच्छा, जिजन्दा बचंूगा ो देखंूगा। बा क ो पूछं नहीं।

डाकूओं ने गजेन्u को उठा लिलया और लेकर आंगन में जा पहुंचे ो श्यामदुलारी दरवाजे पर खड़ी होकर बोली—इन्हें छोड़ दो ो मैं ुम्हारे साथ चलने को ैयार हंू।

पहला—पहले ही क्यों न राजी हो गई थी। चलेगी न?श्यामदुलारी—चलंूगी। कह ी ो हंू ीसरा—अच्छा ो चल। हम इसे इसे छोड़ दे े है।दोनों चोरों पे गजेन्u को लाकर चारपाई पर लिलटा दिदया और श्यामदुलारी को लेकर

चले दिदए। कमरे में सन्नटा छा गया। गजेन्u ने डर े-डर े आंखें खोलीं, कोई नजर ल आया। उठकर दरवाजे से झांका। सहन में भी कोई न था। ीर की रह तिनकलकर सदर दरवाजे पर आए लेतिकन बाहर तिनकलने का हौसला न हुआ। चाहा तिक सूबेदार साहब को जगाए,ं मुंह से आवाज न तिनकली।

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उसी वक्त कहकहे की आवाज आई। पांच और ें चुहल कर ी हुई श्यामदुलारी के कमरे में आईं। गजेन्u का वहां प ा न था।

एक—कहां चले गए? श्यामदुलारी—बाहर चले गए होगें।दूसरी—बहु शर्मिमsन्दा होंगे। ीसरी—डरके मारे उनकी सांस क बन्द हो गई थी। गजेन्u ने बोलचाल सुनी ो जान में जान आई। समझे शायद घर में जाग हो गईं।

लपककर कमरे के दरवाजें पर आए और बोले—जरा देखिखए श्यमा कहां हैं, मेरी ो नींद ही न खुली। जल्द तिकसी को दौड़ाइए।

यकायक उन्हीं और ों के बीच में श्यामा को खड़क हंस े देखकर हैर में आ गए। पांचों सहेलिलयों ने हंसना और ालिलयां पीटना शुरु कर दिदया। एक ने कहा—वाह जीजा जी, देख ली आपकी बहादुरी। श्यामदुलारी— ुम सब की सब शै ानी हो। ीसीर—बीवी ो चारों के साथ चली गईं और आपने सांस क न ली!गजेन्u समझ गए, बड़ा धोखा खाया। मगर जबान के शेर फौरन तिबगड़ी बा बना

ली, बाले— ो क्या कर ा, ुम्हारा स्वांग तिबगाड़ दे ा! मैं भी इस माशे का मजा ले रहा था। अगर सबों को पकड़कर मूंछे उखाड़ ले ा ो ुम तिक न शर्मिमsन्दा हो ीं। मैं इ ना बेहरहम नहीं हंू।

सब की गजेन्u का मुंह देख ी रह गईं। ---वारदा से

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सैलानी बंदर

वनदास नाम का एक गरीब मदारी अपने बन्दर मनू्न को नचाकर अपनी जीतिवका चलाया कर ा था। वह और उसकी स्त्री बुमिधया दोनों मनू्न का बहु प्यार कर े थे।

उनके कोई सन् ान न थी, मनू्न ही उनके स्नेह और पे्रम का पात्र था दोनों उसे अपने साथ खिखला े और अपने साथ सुला े थे: उनकी दृमिष्ट में मनू्न से अमिधक तिप्रय वस् ु न थी। जीवनदास उसके लिलए एक गेंद लाया था। मनू्न आंगन में गेंद खेला कर ा था। उसके भोजन करने को एक मिमट्टी का प्याला था, ओढ़ने को कम्बल का एक टुकड़ा, सोने को एक बोरिरया, और उचके के लिलए छप्पर में एक रस्सी। मनू्न इन वस् ुओं पर जान दे ा था। जब क उसके प्याले में कोई चीज न रख दी जाय वह भोजन न कर ा था। अपना टाट और कम्बल का टुकड़ा उसे शाल और गदे्द से भी प्यारा था। उसके दिदन बडे़ सुख से बी े थे। वह प्रा :काल रोदिटयां खाकर मदारी के साथ माशा करने जा ा था। वह नकलें करने मे इ ना तिनपुण था तिक दशGकवृन्द माशा देखकर मुग्ध हो जा े थे। लकड़ी हाथ में लेकर वृद्धों की भांति चल ा, आसन मारकर पूजा कर ा, ति लक-मुuा लगा ा, तिफर पोथी बगल में दबाकर पाठ करने चल ा। ढोल बजाकर गाने की नकल इ नी मनोहर थी तिक इशGक लोट-पोट हो जा े थे। माशा ख म हो जाने पर वा सबको सलामा कर े था, लोगों के पैर पकड़कर पैसे वसूल कर ा था। मनू्न का कटोर पैसों से भर जा ा था। इसके उपरान् कोई मनू्न को एक अमरुद खिखला दे ा, काई उसके सामने मिमठाई फें क दे ा। लड़कों को ो उसे देखने से जी ही न मार था। वे अपने-अपने घर से दौड़-दौड़कर रोदिटयां ला े और उसे खिखला े थे। मुहल्ले के लोगों के लिलए भी मनू्न मनोरंजन की एक सामग्री थी। जब वह घर पर रह ा ो एक न एक आदमी आकर उससे खेल ा रहा ा। खोंचेवाले फेरी कर े हुए उसे कुछ न कुछ दे दे े थे। जो तिबना दिदए तिनकल जाने की चेष्टा कर ा उससे भी मनू्न पैर पकड़ कर वसूल कर लिलया था, क्योंतिक घर पर वह खुला रह ा था मनू्न को अगा लिचढ़ थी ो कुfों से। उसके मारे उधर से कोई कुfा न तिनकलने पा ा था और कोई आ जा ा, ो मनू्न उसे अवश्य ही दो-चार कनेदिठयां और झॉँपड़ लगा ा था। उसके सवGतिप्रया होने का यह एक और कारण था। दिदन को कभी-कभी बुमिधया धूप में लेट जा ी, ो मनू्न उसके लिसर की जुए ं तिनकाल ा और वह उसे गाना सुना ी। वह जहां कहीं जा ी थी वहीं मनू्न उसके पीछे-पीछे जा ा था। मा ा और पुत्र में भी इससे अमिधक पे्रम न हो सक ा था।

जी

क दिदन मनू्न के जी में आया तिक चलकर कहीं फल खाना चातिहए। फल खाने को मिमल े ो थे पर वृक्षों पर चढ़कर डालिलयों पर उचकने, कुछ खाने और कुछ तिगराने में कुछ और ए

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ही मजा था। बन्दर तिवनोदशील हो े ही हैं, और मनू्न में इसकी मात्रा कुछ अमिधक थी भी। कभी पकड़-धकड़ और मारपीट की नौब न आई थी। पेड़ों पर चढ़कर फल खाना उसके स्वाभातिवक जान पड़ ा था। यह न जान ा था तिक वहां प्राकृति वस् ुओं पर भी न तिकसी की छाप लगी हुई है, जल, वायु प्रकाश पर भी लोगों ने अमिधकार जमा रक्खा है, तिफर बाग-बगीचों का ो कहना ही क्या। दोपहर को जब जीवनदास माशा दिदखाकर लौटा, ो मनू्न लंबा हुआ। वह यो भी मुहल्ले में चला जाया कर ा था, इसलिलए तिकसी को संदेह न हुआ तिक वह कहीं चला गया। उधर वह घूम ा-घाम ा खपरैलौं पर उछल ा-कूद ा एक बगीचे में जा पहुंचा। देखा ो फलों से पेड़ लदे हुए हैं। आंवलो, कटहल, लीची, आम, पपी े वगैरह लटक े देखकर उसका लिचf प्रसन्न हो गया। मानो वे वकृ्ष उसे अपनी ओर बुला रहे थे तिक खाओ, जहां क खाया जाय, यहां तिकसी रोक-टोक नहीं है। ुरन् एक छलांग मारकर चहारदीवारी पर चढ़ गया। दूसरी छलांग में पेड़ों पर जा पहुंचा, कुछ आम खाये, कुछ लीलिचयां खाई। खुशी हो-होकर गुठलिलया इधर-उधर फें कना शुरु तिकया। तिफर सबसे ऊंची डाल पर जा पहुंचा और डालिलयों को तिहलाने लगा। पके आम जमीन पर तिबछ गए। खड़खड़ाहट हुई ो माली दोपहर की नींद से चौंका और मनू्न को देख े ही उसे पत्थरों से मारने लगा। पर या ो पत्थर उसके पास क पहुंच े ही न थे या वह लिसर और शरीर तिहलाकर पत्थरों को बचा जा ा था। बीच-बीच में बांगबान को दां तिनकालकर डरा ा भी था। कभी मुंह बनाकर उसे काटने की धमकी भी दे ा था। माली बुदरघुड़तिकयों से डरकर भाग ा था, और तिफर पत्थर लेकर आ जा ा था। यह कौ ुक देखकर मुहल्ले के बालक जमा हो गए, और शोर मचाने लगे—

ओ बंदरवा लोयलाय, बाल उखाडू टोयटाय। ओ बंदर ेरा मुंह है लाल, तिपचके-तिपचके ेरे गाल।

मगर गई नानी बंदर की,टूटी टांग मुछन्दर की।

मनू्न को इस शोर-गुल में बड़ा आनन्द आ रहा था। वह आधे फल खा-खाकर नीचे तिगर ा था और लड़के लपक-लपकक चुन ले े और ालिलयां बजा-बजाकर कह े थे—

बंदर मामू और, कहा ुम्हारा ठौर।

माली ने जब देखा तिक यह तिवप्लव शां होने में नहीं आ ा, ो जाकर अपने स्वामी को खबर दी। वह हजर पुलिलस तिवभाग के कमGचारी थे। सुन े ही जामे से बाहर हो गए। बंदर की इ नी मजाल तिक मेरे बगीचे में आकर ऊधम मचावे। बंगले का तिकराया मैं दे ा हंू, कुछ बंदर नहीं दे ा। यहां तिक ने ही असहोयोतिगयों को लदवा दिदया, अखबरवाले मेरे नाम से कांप े हैं, बंदर की क्या हस् ी है! ुरन् बन्दूक उठाई, और बगीचे में आ पहुचें। देखों मनू्न

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एक पेड़ को जोर-जोर से तिहला रहा था। लाल हो गए, और उसी रफ बन्दू ानी। बन्दूक देख े ही मनू्न के होश उड़ गए। उस पर आज क तिकसी ने बन्दूक नहीं ानी थी। पर उसने बन्दूक की आवाज सुनी थी, लिचतिड़यों को मारे जा े देखा था और न देखा हो ा ो भी बन्दूक से उसे स्वाभातिवक भय हो ा। पशु बुजिद्ध अपने शतु्रओं से स्व : सशंक हो जा ी है। मनू्न के पांव मानों सुन्न हो गए। व उछालाकर तिकसी दूसरे वृक्ष पर भी न जा सका। उसी डाल पर दुबकर बैठ गया। साहब को उसकी यह कला पसन्द आई, दया आ गई। माली को भेजा, जाकर बन्दर को पकड़ ला। माली दिदल में ो डरा, पर साहब के गुस्से को जान ा था, चुपके से वृक्ष पर चढ़ गया और हजर बंदर को एक रस्सी में बांध लाया। मनू्न साहब को बरामदे में एक खम्मभे से बांध दिदया गया। उसकी स्वच्छन्द ा का अन् हो गया संध्या क वहीं पड़ा हुआ करुण स्वर में कंू-कंू कर ा रहा। सांझ हो गई ो एक नौकर उसके सामने एक मुट्ठी चने डाल गया। अब मनू्न को अपनी स्थिkति के परिरव Gन का ज्ञान हुअ। न कम्बल, न टाट, जमीन पर पड़ा तिबसूर रहा था, चने उसने छुए भी नहीं। पछ ा रहा था तिक कहां से फल खाने तिनकला। मदारी का पे्रम याद आया। बेचारा मुझे खोज ा तिफर ा होगा। मदारिरन प्याले में रोटी और दूध लिलए मुझे मनू्न-मनू्न पुकार रही होगी। हा तिवपभिf! ूने मुझे कहां लाकर छोड़ा। रा -भर वह जाग ा और बार-बार खम्भे के चक्कर लगा ा रहा। साहब का कुfा टामी बार-बार डरा ा और भंूक ा था। मनू्न को उस पर ऐसा क्रोध आ ा था तिक पाऊं ो मारे चप ों के चौंमिधया दंू, पर कुfा तिनकट न आ ा, दूर ही से गरजकर रह जा ा था।

रा गुजारी, ो साहब ने आकर मनू्न को दो- ीन ठोकरे जमायीं। सुअर! रा -भर लिचल्ला-लिचल्लाकर नींद हराम कर दी। आंख क न लगी! बचा, आज भी ुमने गुल मचाया, ो गोली मार दंूगा। यह कहकर वह ो चले गए, अब नटखट लड़कों की बारी आई। कुछ घर के और कुछ बाहर के लड़के जमा हो गए। कोई मनू्न को मुंह लिचढ़ा ा, कोई उस पर पत्थर फें क ा और कोई उसको मिमठाई दिदखाकर ललचा ा था। कोई उसका रक्षक न था, तिकसी को उस पर दया न आ ी थी। आत्मरक्षा की जिज नी तिक्रयाए ं उसे मालूम थीं, सब करके हार गया। प्रणाम तिकया, पूजा-पाठ तिकया लेतिकन इसक उपहार यही मिमला तिक लड़कों ने उसे और भी दिदक करनर शुरु तिकया। आज तिकसी ने उसके सामने चने भी न डाले और यदिद डाले भी ो वह खा न सक ा। शोक ने भोजन की इच्छा न रक्खी थी।

संध्या समय मदारी प ा लगा ा हुआ साहब के घर पहुंचा। मनू्न उस देख े ही ऐसा अधीर हुआ, मानो जंजीर ोड़ डालेगा, खंभे को तिगरा देगा। मदारी ने जाकर मनू्न को गले से लगा लिलया और साहब से बोला—‘हुजूर, भूल-चूक ो आदमी से भी हो जा ी है, यह ो पशु है! मुझे चाहे जो सजा दीजिजए पर इसे छोड़ दीजिजए। सरकार, यही मेरी रादिटयों का सहारा है। इसके तिबना हम दो प्राणी भूखों मर जाएगंे। इसे हमने लड़के की रह पाला हैं, जब से यह भागा है, मदारिरन ने दाना-पानी छोड़ दिदया है। इ नी दया तिकजिजए सरकार, आपका आकबाल सदा रोशन रहे, इससे भी बड़ा ओहदा मिमले, कलम चाक हो, मुद्दई बेबाक हो। आप हैं सपू , सदा रहें मजूब । आपके बैरी को दाबे भू ।’ मगर साहब ने दया का पाठ

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न पढ़ा था। घुड़ककर बोले-चुप रह पाजी, टें-टें करके दिदमाग चाट गया। बचा बन्दर छोड़कर बाग का सत्यानाश कर डाला, अब खुशामद करने चले हो। जाकर देखो ो, इसने तिक ने फल खराब कर दिदये। अगर इसे ले जाना चाह ा है ो दस रुपया लाकर मेरी नजर कर नहीं ो चुपके से अपनी राह पकड़। यह ो यहीं बंधे-बंधे मर जाएगा, या कोई इ ने दाम देकर ले जाएगा।

मदारी तिनराश होकर चला गया। दस रुपये कहां से ला ा? बुमिधया से जाकर हाल कहा। बुमिधया को अपनी रस पैदा करने की शलिक्त पर ज्यादा भरोसा था। बोली—‘बस, ली ुम्हारी कर ू ! जाकर लाठी-सी मारी होगी। हातिकमों से बडे़ दांव-पेंच की बा ें की जा ी हैं, ब कहीं जाकर वे पसीज े है। चलो मेरे साथ, देखों छुड़ा ल ी हंू तिक नहीं।’ यह कहकर उसने मनू्न का सब सामान एक गठरी में बांधा और मदारी के साथ साहब के पास आई, मनू्न अब की इ ने जोर से उछला तिक खंभा तिहल उठा, बुमिधया ने कहा—‘सरकार, हम आपके �ार पर भीख मांगने आये हैं, यह बन्दर हमको दान दे दीजिजए।’

साहब—हम दान देना पाप समझ े है। मदारिरन—हम देस-देस घूम े हैं। आपका जस गावेंगे। साहब—हमें जस की चाह या परवाह नहीं है। मदारिरन—भगवान् आपको इसका फल देंगे। साहब—मैं नहीं जान ा भगवान् कौन बला है।मदारिरन—महाराज, क्षमा की बड़ी मतिहमा है। साहब—हमारे यहां सबसे बड़ी मतिहमा दण्ड की है। मदारिरन—हुजूर, आप हातिकम हैं। हातिकमों का काम है, न्याय कराना। फलों के पीछे

दो आदमिमयों की जान न लीजिजए। न्याय ही से हातिकम की बड़ाई हो ी है। साहब—हमारी बड़ाई क्षमा और न्याय से नहीं है और न न्याय करना हमारा काम है,

हमारा काम है मौज करना। बुमिधया की एक भी युलिक्त इस अहंकार-मूर्ति s के सामने न चली। अन् को तिनराश

होकर वह बोली—हुजूर इ ना हुक्म ो दे दें तिक ये चीजें बंदर के पास रखा दंू। इन पर यह जान दे ा है।

साहब-मेरे यहां कूड़ा-कड़कट रखने की जगह नहीं है। आखिखर बुमिधया ह ाश होकर चली गई।

मी ने देखा, मनू्न कुछ बाल ा नहीं ो, शेर हो गया, भंूक ा-भंूक ा मनू्न के पास चला आया। मनू्न ने लपककर उसके दोनों कान पकड़ लिलए और इ ने माचे लगाये तिक

उसे छठी का दूध याद आ गया। उसकी लिचल्लाहट सुनकर साहब कमरे से बाहर तिनकल टा

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आए और मनू्न के कई ठोकरें लगाई। नौकरों को आज्ञा दी तिक इस बदमाश को ीन दिदन क कुछ खाने को म दो।

संयोग से उसी दिदन एक सकG स कंपनी का मैनेजर साहब से माशा करने की आज्ञा लेने आया। उसने मनू्न को बंधे, रोनी सूर बनाये बैठे देखा, ो पास आकर उसे पुचकारा। मनू्न उछलकर उसकी टांगों से लिलपट गया, और उसे सलाम करने लगा। मैनेजर समझ गया तिक यह पाल ू जानवर है। उसे अपने माशे के लिलए बन्दर की जरुर थी। साहब से बा ची की, उसका उलिच मूल्य दिदया, और अपने साथ ले गया। तिकन् ु मनू्न को शीघ्र ही तिवदिद हो गया तिक यहां मैं और भी बुरा फंसा। मैनेजर ने उसे बन्दरों के रखवाले को सौंप दिदया। रखवाला तिन�ुर और कू्रर प्रकृति का प्राणी था। उसके अधीन और भी कई बन्दर थे। सभी उसके हाथों कष्ट भोग रहे थे। वह उनके भोजन की सामग्री खुद खा जा ा था। अन्य बंदरों ने मनू्न का सहषG स्वाग नहीं तिकया। उसके आने से उनमें बड़ा कोलाहाल मचा। अगर रखवाले ने उसे अलग न कर दिदया हो ा ो वे सब उसे नोचकर खा जा े। मनू्न को अब नई तिवद्या सीखनी पड़ी। पैरगाड़ी पर चढ़ना, दौड़ े घोडे़ की पीठ पर दो टांगो से खडे़ हो जाना, प ली रस्सी पर चलना इत्यादिद बड़ी ही कष्टप्रद साधनाए ंथी। मनू्न को ये सब कौशल सीखने में बहु मार खानी पड़ ी। जरा भी चूक ा ो पीठ पर डंडा पड़ जा ा। उससे अमिधक कष्ट की बा यह थी तिक उसे दिदन-भर एक कठघरे में बंद रक्खा जा ा था, जिजसमें कोई उसे देख न ले। मदारी के यहां माशा ही दिदखाना पड़ ा था तिकन् ु उस माशे और इस माशे में बड़ा अन् र था। कहां वे मदारी की मीठी-मीठी बा ें, उसका दुलारा और प्यार और कहां यह कारावास और ठंडो की मार! ये काम सीखने में उसे इसलिलए और भी देर लग ी थी तिक वह अभी क जीवनदास के पास भाग जाने के तिवचार को भूला न था। तिनत्य इसकी ाक में रह ा तिक मौका पाऊं और लिलक जाऊं, लेतिकन वहां जानवरों पर बड़ी कड़ी तिनगाह रक्खी जा ी थी। बाहर की हवा क न मिमल ी थी, भागने की ो बा क्या! काम लेने वाले सब थे मगर भोजन की खबर लेने वाला कोई भी न था। साहब की कैद से ो मनू्न जल्द ही छूट गया था, लेतिकन इस कैद में ीन महीने बी गये। शरीर घुल गया, तिनत्य लिचन् ा घेरे रह ी थी, पर भागने का कोई ठीक-दिठकाने न था। जी चाहे या न चाहे, उसे काम अवश्य करना पड़ ा था। स्वामी को पैसों से काम था, वह जिजये चाहे मरे।

संयोगवश एक दिदन सकG स के पंडाल में आग लग गई, सकG स के नौकर—चाकर सब जुआरी थे। दिदन-भर जुआ खेल े, शराब पी े और लड़ाई-झगड़ा कर े थे। इन्हीं झंझटों में एकएक गैस की नली फट गई। हाहाकार मच गया। दशGक वृन्द जान लेकर भागे। कंपनी के कमाGचारी अपनी चीजें तिनकालने लगे। पशुओं की तिकसी का खबर न रही। सकG स में बडे़-बडे़ भयंकर जीव-जन् ु मायशा कर े थे। दो शेर, कई ची े, एक हाथी,एक रीछ था। कुfों घोड़ों था बन्दरों की संtया ो इससे कहीं अमिधक थी। कंपनी धन कमाने के लिलए अपने नौकरों की जान को कोई चीज नहीं समझ ी थी। ये सब क सब जीव इस समय माशे के

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लिलए खोले गये थे। आग लग े ही वे लिचल्ला-लिचल्लाकर भागे। मनू्न भी भागा खड़ा हुआ। पीछे तिफरकर भी न देखा तिक पंडाल जला या बचा।

मनू्न कूद ा-फांद ा सीधे घर पहुंचा जहां, जीवनदास रह ा था, लेतिकन �ारा बन्द था। खरपैल पर चढ़कर वह घर में घुस गया, मगर तिकसी आदमी का लिचन्ह नहीं मिमला। वह kन, जहां वह सो ा था, और जिजसे बुमिधया गोबर से लीपकर साफ रक्खा कर ी थी, अब घास-पा से ढका हुआ था, वह लकड़ी जिजस पर चढ़कर कूदा कर ा था, दीमकों ने खा ली थी। मुहल्लेवाले उसे देख े ही पहचान गए। शोर मच गया—मनू्न आया, मनू्न आया।

मनू्न उस दिदन से राज संध्या के समय उसी घर में आ जा ा, और अपने पुराने kान पर लेट रह ा। वह दिदन-भर मुहल्ले में घूमा कर ा था, कोई कुछ दे दे ा, ो खा ले ा था, मगर तिकसी की कोई चीज नहीं छू ा था। उसे अब भी आशा थी तिक मेरा स्वामी यहां मुझसे अवश्य मिमलेगा। रा ों को उसके कराहने की करूण ध्वतिन सुनाई दे ी थी। उसकी दीन ा पर देखनेवालों की आंखों से आंसू तिनकल पडे़ थे।

इस प्रकार कई महीने बी गये। एक दिदन मनू्न गली में बैठा हुआ था, इ ने में लड़कों का शोर सुनाई दिदया। उसने देखा, एक बुदिढ़या नंगे बदन, एक चीथड़ा कमर में लपेटे लिसर के बाल लिछटकाए, भू तिनयों की रह चली आ रही है, और कई लड़के उसक पीछे पत्थर फें क े पगली नानी! पगली नानी! की हांक लगा े, ालिलयां बजा े चले जा रहे हैं। वह रह-रहकर रुक जा ी है और लड़को से कह ी है—‘मैं पगली नानी नहीं हंू, मूझे पगली क्यों कह े हो? आखिखर बुदिढ़या जमीन पर बैठ गई, और बोली—‘ब ाओ, मुझे पगली क्यों कह े हो?’ उसे लड़को पर लेशमात्र भी क्रोध न आ ा था। वह न रो ी थी, न हंस ी। पत्थर लग भी जा ा चुप हो जा ी थी।

एक लड़के ने कहा- ू कपडे़ क्यों नहीं पहन ी? ू पागल नहीं ो औरक्या है?

बुदिढ़या—कपडे़ मे जाडे़ में सद~ से बचने के लिलए पहने जा े है। आजकल ो गम� है।

लड़का— ुझे शमG नहीं आ ी?बुदिढ़या—शमG तिकसे कह े हैं बेटा, इ ने साधू-सन्यासी-नंगे रह े हैं, उनको पत्थर से

क्यों नहीं मार े? लड़का—वे ो मदG हैं। बुदिढ़या—क्या शमG और ों ही के लिलए है, मद¦ को शमG नहीं आनी चातिहए? लड़का— ुझे जो कोई जो कुछ दे दे ा है, उसे ू खा ले ी है। ू पागल नहीं ो और

क्या है?बुदिढ़या—इसमें पागलपन की क्या बा है बेटा? भूख लग ी है, पेट भर ले ी हंू। लड़का— ुझे कुछ तिवचार नहीं है? तिकसी के हाथ की चीज खा े मिघन नहीं आ ी?बुदिढ़या—मिघन तिकसे कह े है बेटा, मैं भूल गई।

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लड़का—सभी को मिघन आ ी है, क्या ब ा दंू, मिघन तिकसे कह े है। दूसरा लड़का— ू पैसे क्यों हाथ से फें क दे ी है? कोई कपडे़ दे ा है ो क्यों छोड़कर

चल दे ी है? पगली नहीं ो क्या है?बुदिढ़या—पैसे, कपडे़ लेकर क्या करंु बेटा? लड़का—और लोग क्या कर े हैं? पैसे-रुपये का लालच सभी को हो ा है। बुदिढ़या—लालच तिकसे कह े हैं बेटा, मैं भूल गई।लड़का—इसी से ुझे पगली नानी कह े है। ुझे न लोभ है, मिघन है, न तिवचार है, न

लाज है। ऐसों ही को पागल कह े हैं।बुदिढ़या— ो यही कहो, मैं पगली हंू। लड़का— ुझे क्रोध क्यों नहीं आ ा? बुदिढ़या—क्या जाने बेटा। मुझे ो क्रोध नहीं आ ा। क्या तिकसी को क्रोध भी आ ा

है? मैं ो भूल गई। कई लड़कों ने इस पर ‘पगली, पगली’ का शोर मचाया और बुदिढ़या उसी रह शां

भाव से आगे चली। जब वह तिनकट आई ो मनू्न उसे पहचान गया। यह ो मेरी बुमिधया है। वह दौड़कर उसके पैरों से लिलपट गया। बुदिढ़या ने चौंककर मनू्न को देखा, पहचान गई। उसने उसे छा ी से लगा।

नू्न को गोद में ले े ही बुमिधया का अनुभव हुआ तिक मैं नग्न हंू। मारे शमG के वह खड़ी न रह सकी। बैठकर एक लड़के से बोली—बेटा, मुझे कुछ पहनने को दोगे?मलड़का— ुझे ो लाज ही नहीं आ ी न?बुदिढ़या—नहीं बेटा, अब ो आ रही है। मुझे न जान क्या हो गया था। लड़को ने तिफर ‘पगली, पगली’ का शोर मचाया। ो उसने पत्थर फें ककर लड़को को

मारना शुरु तिकया। उनके पीछे दौड़ी। एक लड़के ने पूछा—अभी ो ुझे क्रोध नहीं आ ा था। अब क्यों आ रहा है? बुदिढ़या—क्या जाने क्यों, अब क्रोध आ रहा है। तिफर तिकसी ने पगली काहा ो बन्दर

से कटवा दंूगी।एक लड़का दौड़कर एक फटा हुआ कपड़ा ले आया। बुमिधया ने वह कपड़ा पहन

लिलया। बाल समेट लिलये। उसके मुख पर जो एक अमानुष आभा थी, उसकी जगह लिचन् ा का पीलापन दिदखाई देने लगा। वह रो-रोकर मनू्न से कहने लगी—बेटा, ुम कहां चले गए थे। इ ने दिदन हो गए हमारी सुध न ली। ुम्हारी मदारी ुम्हारे ही तिवयोग में परलोक लिसधारा, मैं भिभक्षा मांगकर अपना पेट पालने लगी, घर-�ारर हस-नहस हो गया। ुम थे ो खाने की, पहनने की, गहने की, घर की इच्छा थी, ुम्हारे जा े सब इच्छाए ंलुप् हो गई। अकेली भूख

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ो स ा ी थी, पर संसार में और तिकसी की लिचन् ा न थी। ुम्हारा मदारी मरा, पर आंखें में आंसम न आए। वह खाट पर पड़ा कराह ा था और मेरा कलेजा ऐसा पत्थर का हो गया था तिक उसकी दवा-दारु की कौन कहे, उसके पास खड़ी क न हो ी थी। सोच ी थी—यह मेरा कौन है। अब आज वे सब बा ें और अपनी वह दशा याद आ ी है, ो यही कहना पड़ ा है तिक मैं सचमुच पगली हो गई थी, और लड़कों का मुझे पगली नानी कहकर लिचढ़ाना ठीक ही था।

यह कहकर बुमिधया मनू्न को लिलये हुए शहर के बाहर एक बाग में गई, जहां वह एक पेड़ के नीचे रह ी थी। वहां थोड़ी-सी पुआल हुई थी। इसके लिसवा मनुर्ष्याय के बसेरे का और कोई लिचन्ह न था।

आज से मनू्न बुमिधया के पास रहने लगा। वह सबरे घर से तिनकल जा ा और नकले करके, भीख मांगकर बुमिधया के खने-भर को नाज या रोदिटयां ले आ ा था। पुत्र भी अगर हो ा ो वह इ ने पे्रम स मा ा की सेवा न कर ा। उसकी नकलों से खुश होकर लोग उसे पैसे भी दे े थे। उस पैसों से बुमिधया खाने की चीजें बाजार से ला ी थी।

लोग बुमिधया के प्रति बंदर का वह पे्रम देखकर चतिक हो जा े और कह े थे तिक यह बंदर नहीं, कोई देव ा है।

‘माधुरी,’ फरवरी, १९२४

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