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देवभूमि माना जाने वाला उत्तराखंड आजकल महिलाओं की तस्करी करने वालों का स्वर्ग बना हुआ है. 2013 उत्तराखंड के लिए नंदा देवी राजजात का वर्ष है. हर 12 साल बाद राज्य के चमोली जिले में होने वाली इस विश्वप्रसिद्ध यात्रा में गढ़वाल और कुमाऊं के हजारों लोग 18 दिन में 280 किमी चलकर होमकुंड तक जाते हैं. नंदा-घुंघटी पर्वत की तलहटी तक की यह यात्रा नंदा (पार्वती) को ससुराल विदा करने के लिए होती है जो लोकमान्यताओं के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं और जिनका बाद में भगवान शिव से विवाह हुआ. उत्तराखंड के लोग नंदा को अपनी बहन की तरह मानते हैं. हर बहन की तरह नंदा को भी मायके की याद आती है. वह प्रतीकात्मक रूप में मायके आती है. मायके से ससुराल यानी कैलाश के लिए नंदा की विदाई ही ‘नंदा देवी राजजात’ है. गांव-गांव से गुजरती राजजात के दौरान नंदा को भावविह्वल विदाई मिलती है.
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